समान नागरिक संहिता और मुस्लिम व्यक्तिगत कानून पर इसका प्रभाव

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Uniform Civil Code And It’s Impact On Muslim Personal Law

इस ब्लॉग पोस्ट में, राजीव गांधी नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ पंजाब के छात्र Shantanu Pandey के द्वारा मुस्लिम व्यक्तिगत कानून पर समान नागरिक संहिता के प्रभाव का वर्णन और विवरण किया गया है। इस लेख का अनुवाद Chitrangda Sharma के द्वारा किया गया है।

परिचय 

मौजूदा दौर में समान नागरिक संहिता का कार्यान्वयन (इंप्लीमेंटेशन) देश के सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक है। समान नागरिक संहिता लागू करने का मुस्लिम बड़े पैमाने पर विरोध कर रहे हैं। हालाँकि, बहुत सारे मुस्लिम महिला समूह हैं जो समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन का समर्थन कर रहे हैं। समान नागरिक संहिता के आने से मुस्लिम व्यक्तिगत कानून में भारी बदलाव आएगा। व्यक्तिगत कानून के कारण भारतीय मुसलमानों में प्रचलित कुछ बातें यहां दी गई हैं जो यूसीसी के लागू होने के साथ बदल जाएंगी।

तीन तलाक

मुस्लिम कानून के तहत तलाक हमेशा एक प्राथमिक चिंता का विषय रहा है। मुस्लिम व्यक्तिगत कानून के तहत एक पारंपरिक प्रथा मानी जा रही तीन तलाक की प्रथा को खत्म करने के लिए विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच काफी हंगामा और विरोध हो रहा है। कई भारतीय इस प्रथा को अन्यायपूर्ण और समानता के सिद्धांत के विरुद्ध मानते हैं। यह प्रथा पुरुष को केवल तीन बार तलाक शब्द बोलकर अपनी पत्नी को तलाक देने की शक्ति देती है। इस प्रथा के परिणामस्वरूप, मुसलमानों के बीच तलाक के मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है, जिसके कारण अंततः यह प्रथा एक महत्वपूर्ण चिंता का मुद्दा बन गई है। इस प्रथा को महिलाओं के खिलाफ माना जाता है और इसलिए विभिन्न कार्यकर्ताओं और महिला समूहों द्वारा यह सुझाव दिया जा रहा है कि इस प्रथा को समाप्त कर दिया जाए। यह प्रथा कानूनी सिद्धांतों के विरुद्ध है और प्रकृति में अनैतिक है, संवैधानिक सिद्धांत के विरुद्ध कोई भी चीज़ वैध कानून या प्रथा नहीं मानी जाएगी, चाहे वह प्रथागत प्रथा हो या नियमित प्रथा। 

समान नागरिक संहिता और तीन तलाक

समान नागरिक संहिता के लागू होने से तीन तलाक की प्रथा समाप्त हो जाएगी और हर विवाह का विघटन अदालती कार्यवाही के माध्यम से होगा। अदालत में दायर अलगाव (सेप्रेशन) की याचिकाएं मुस्लिम पुरुषों और महिलाओं को पुनर्विवाह करने से रोकेंगी क्योंकि भारत में दूसरी शादी को सामाजिक रूप से वर्जित माना जाता है।  तीन तलाक की इस प्रथा के ख़त्म होने से मुस्लिम व्यक्तिगत कानून पर काफी असर पड़ेगा और इसलिए मुस्लिम समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन का विरोध कर रहे हैं।

बहुविवाह का उन्मूलन (एबोलिशन)

मुस्लिम कानून के तहत बहुविवाह एक बहुत व्यापक प्रथा है। भारत में कई मशहूर हस्तियों ने एक से अधिक महिलाओं से शादी करने के लिए इस्लाम धर्म अपना लिया है। समान नागरिक संहिता के आने से मुस्लिम कानून में एक बड़ा बदलाव यह होगा कि इससे बहुविवाह की प्रथा समाप्त हो जाएगी। भारत में बहुविवाह प्रथा को आम तौर पर एक सामाजिक बुराई माना जाता है।  ऐसी प्रथा का उन्मूलन समाज के लिए सकारात्मक सुधार होगा। महिलाओं का उनके पति के द्वारा शोषण और दुर्व्यवहार किया जाना इस प्रथा की बड़ी कमियों में से एक है। मुसलमानों के लिए चिंता का एक और बड़ा मुद्दा यह है कि इस प्रथा के ख़त्म होने पर उन पर हिंदू क़ानून लागू हो जाएगा। हालाँकि, अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा यह कहा गया है कि समान नागरिक संहिता आने से किसी भी धर्म पर हिंदू कानून लागू नहीं होगा। इसके विपरीत, समान नागरिक संहिता में सभी धर्मों की अनिवार्यताएं शामिल होंगी।

भरण-पोषण

प्राचीन मुस्लिम कानूनों के आगमन के साथ, भरण-पोषण जीवनसाथी के लिए प्राथमिक चिंता का विषय रहा है। मुस्लिम कानून के तहत, मुस्लिम महिलाएं मुस्लिम महिला संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत भरण-पोषण का दावा कर सकती हैं। हालांकि, एक बड़ी चिंता का सवाल यह था कि क्या मुस्लिम महिला आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत भरण-पोषण का दावा कर सकती हैं।  इस प्रश्न पर विचार करते हुए शाहबानो बेगम के मामले को ऐतिहासिक निर्णय माना गया है। अदालत ने माना कि एक मुस्लिम महिला जिसे उसके पति ने तलाक दे दिया है, वह सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण की हकदार है। हालाँकि, उसे न केवल इद्दत अवधि के दौरान बल्कि इद्दत अवधि पूरी होने के बाद भी भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार था। हालाँकि, डेनियल लतीफ़ी बनाम भारत संघ के मामले में अदालत ने माना कि भरण-पोषण संबंधी प्रावधान निष्पक्ष और उचित होना चाहिए और इस मामले में मुस्लिम महिला संरक्षण अधिनियम, 1986 की संवैधानिक वैधता को भी बरकरार रखा गया था।

समान नागरिक संहिता एवं भरण-पोषण

समान नागरिक संहिता के प्रभाव से मुस्लिम व्यक्तिगत कानून पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यह मुस्लिम महिलाओं को अपने जीवनकाल के लिए भरण-पोषण का दावा करने की अनुमति देगा। हालाँकि, इस मुद्दे को मुसलमानों द्वारा इस आधार पर विरोध और हंगामे का सामना करना पड़ रहा है कि इससे उनके व्यक्तिगत कानून पर असर पड़ेगा और समान नागरिक संहिता लागू होने पर हिंदू कानून उनके व्यक्तिगत कानून पर हावी हो जाएगा।  हालाँकि, यह पहले ही चित्रित किया जा चुका है कि समान नागरिक संहिता प्रकृति में एक धर्मनिरपेक्ष कानून है और यह किसी भी धर्म के व्यक्तिगत कानून को किसी भी हद तक प्रभावित नहीं करेगा।

गोद लेना

गोद लेना देश में मौजूद प्रमुख मुद्दों में से एक माना जा रहा है। हिंदू कानून को छोड़कर किसी भी अन्य धर्म का व्यक्तिगत कानून जोड़ों को गोद लेने की प्रथा का पालन करने की अनुमति नहीं देता है। हिंदू कानून के तहत गोद लेने से संबंधित प्रक्रिया हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 द्वारा शासित होती है। वैधानिक प्रावधान के रूप में, मुस्लिम व्यक्तिगत कानून गोद लेने की प्रथा की अनुमति नहीं देता है। गोद लेने से संबंधित कानूनों को नियंत्रित करने के लिए समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन से मुस्लिम व्यक्तिगत कानून के तहत महत्वपूर्ण और कठोर बदलाव आएंगे। समान नागरिक संहिता लागू होने पर सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तनों में से एक यह होगा कि संरक्षकता और वार्ड अधिनियम, 1890 को समाप्त कर दिया जाएगा। इससे गोद लेने के कानून में बड़े बदलाव होंगे, जैसे:

  1. एक मुस्लिम महिला को बच्चा गोद लेने की अनुमति होगी।
  2. जोड़े कानूनी तौर पर उस बच्चे के गोद लेने वाले माता-पिता होने का दावा कर सकते हैं जिसे उनके द्वारा गोद लिया जा रहा है।
  3. गोद लेने पर, बच्चा प्राकृतिक व्यक्ति को दिए गए सभी अधिकारों का हकदार होता है।
  4. गोद लेने वाले माता-पिता द्वारा गोद लिए जाने के बाद, एक बच्चा उस परिवार से सभी बंधन तोड़ देता है जिसमें वह पैदा हुआ था, और वह एक प्राकृतिक बच्चे के रूप में अपने गोद लेने वाले पिता की संपत्ति का उत्तराधिकारी बन जाता है।

उत्तराधिकार और विरासत

कानून के तहत मौजूदा मुद्दों में उत्तराधिकार और विरासत प्रमुख चिंता का विषय है। उत्तराधिकार और विरासत से संबंधित प्रावधान एक दूसरे से भिन्न हैं।  मुस्लिम कानून के तहत निर्वसीयत उत्तराधिकार के मामले में बेटों को दो बेटियों के बराबर हिस्सा मिलेगा। बच्चों की मां मृत पति की संपत्ति में छठा हिस्सा पाने की हकदार होंगी। मुस्लिम कानून के तहत, मां को उस स्थिति में अपने बच्चे से भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार है, जब वह अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो। मुस्लिम कानून के तहत, नाजायज बच्चा पिता की संपत्ति में हिस्सा पाने का हकदार है। हालाँकि, सुन्नी कानून के तहत, एक नाजायज बच्चा अपनी माँ की ओर से संपत्ति में हिस्सा पाने का हकदार है, हालाँकि, शिया कानून बच्चे को माता-पिता में से किसी की संपत्ति में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं देता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत उत्तराधिकार को लेकर नियम अलग-अलग बताए जा रहे हैं। उन्हें उत्तराधिकारियों के विभिन्न वर्गों में बांटा जा रहा है, और ऐसे बदलाव भी हो रहे हैं जो कानून के कामकाज को काफी हद तक प्रभावित करते हैं।

समान नागरिक संहिता और उत्तराधिकार एवं विरासत

समान नागरिक संहिता के लागू होने से मुस्लिम कानून में व्यापक बदलाव होंगे, जैसे:

  1. इसके परिणामस्वरूप विरासत और उत्तराधिकार के नियमों के संदर्भ में एक संहिताबद्ध (कोडीफाइड) कानून लागू होगा।
  2. साझाकरण प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिए शेयर की एक स्थिर संरचना स्थापित की जाएगी।
  3. नाजायज़ बच्चों और गोद लिए हुए बच्चों को भी पिता की संपत्ति में हिस्सा मिलेगा।

विवाह, अब कोई संविदात्मक बाध्यता नहीं 

मुस्लिम विवाह को पक्षों के लिए एक संविदात्मक दायित्व माना जाता है। मुस्लिम व्यक्तिगत कानून के तहत, दोनों पक्षों के बीच विवाह तभी संपन्न होता है, जब एक पक्ष द्वारा प्रस्ताव रखा जा रहा हो और दूसरे पक्ष द्वारा इसे स्वीकार किया जा रहा हो। मुस्लिम व्यक्तिगत कानून के तहत विवाह, पक्षों के बीच एक अनुबंध द्वारा होता है। समान नागरिक संहिता के लागू होने से विवाह की यह प्रथा एक अनुबंध के रूप में समाप्त हो जाएगी।

विवाह का पंजीकरण अनिवार्य है

समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन के साथ जो महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिलेंगे उनमें से एक यह होगा कि विवाह का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया जाएगा। समान नागरिक संहिता लागू होने से विवाह के पक्षों को अपनी शादी को रजिस्टर में पंजीकृत कराना बाध्यता होगी। इससे विवाह की प्रामाणिकता को और अधिक बढ़ावा मिलेगा और दोनों पक्षों के बीच विवाह को संपन्न कराने के लिए एक साक्ष्य के रूप में काम किया जाएगा।

इद्दत प्रथा की समाप्ति

समान नागरिक संहिता के आने से मुस्लिम व्यक्तिगत कानून में जो महत्वपूर्ण बदलाव होंगे उनमें से एक यह तथ्य है कि समान नागरिक संहिता इद्दत की प्रथा को समाप्त कर देगी। मुस्लिम कानून के तहत इद्दत एक प्रथा है जो मुस्लिम महिलाओं द्वारा अपने पति से तलाक या पति की मृत्यु के परिणामस्वरूप की जाती है। नागरिक कानूनों को नियंत्रित करने के लिए एक समान संहिता स्वचालित रूप से इद्दत की प्रथा को समाप्त कर देगी।

धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक विवाद 

समान नागरिक संहिता को समय की मांग माना जा रहा है। भारत के ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र होने के बाद, संसद ने देश में मौजूद विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच राष्ट्रीय अखंडता (इंटेग्रिटी) और एकता लाने की दृष्टि से धर्मनिरपेक्ष मामलों को नियंत्रित करने के लिए एक मानक संहिता स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर दिया, जिसमें विवाह, तलाक, विरासत और उत्तराधिकार शामिल हैं। समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन का मुसलमानों द्वारा इस आधार पर विरोध किया गया है कि यह उनके व्यक्तिगत कानून के प्रावधानों का उल्लंघन होगा और अल्पसंख्यकों के किसी भी धर्म को मानने के अधिकार का भी उल्लंघन होगा। समान नागरिक संहिता का मुख्य उद्देश्य भारत के नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन किए बिना राष्ट्रीय अखंडता लाना है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि राज्य पूरे भारत में अपने नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।  इसमें कहा गया है कि समान नागरिक संहिता के दायरे में राज्य देश के नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं करेगा।

सन्दर्भ

  • गौरी कुलकर्णी, समान नागरिक संहिता, कानूनी सेवाएं भारत।”
  • 1985 एससीआर(3)844
  • दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125
  • डैनियल लतीफ़ी बनाम भारत संघ 2001 मामला
  • “अल्मास शेख, भारत में गोद लेने को नियंत्रित करने वाले कानूनी कानून।”

 

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