ई-अनुबंध

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यह लेख लॉसिखो में एडवांस्ड अनुबंध ड्राफ्टिंग, नेगोशिएशन और डिस्प्यूट रिजॉल्यूशन में डिप्लोमा कर रहे Arya B S द्वारा लिखा गया है और Shashwat Kaushik द्वारा संपादित (एडिट) किया गया है। यह लेख कानून में ई-अनुबंधों के समायोजन (एकोमोडेशन) का एक विश्लेषण है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

परिचय

हम प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजी) के युग में रहते हैं, जहां हम गैजेट और उपकरणों की मदद से अपनी रोजमर्रा की लगभग सभी गतिविधियां करते हैं। अब प्रौद्योगिकी के बिना जीवन की कल्पना करना लगभग असंभव ही है, क्योंकि इसने हमारे जीवन को आसान बना दिया है। यह ध्यान रखना उचित है कि, अनजाने में, हम अपने जीवन को सरल बनाने के लिए प्रौद्योगिकी पर बहुत अधिक रूप से निर्भर हैं; किराने का सामान खरीदने जैसे साधारण काम से लेकर कर रिटर्न दाखिल करने या किसी कंपनी के शेयर खरीदने जैसे बड़े काम करने तक, ये सभी काम सिर्फ एक क्लिक में किए जा सकते हैं। प्रौद्योगिकी का यही महत्व है कि यह कैसे हमारे जीवन को हर कदम पर सहज और परेशानी मुक्त बनाती है। प्रौद्योगिकी ने भी पूरी दुनिया को जुड़ने में मदद की है। दुनिया भर में उपलब्ध विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों और अनुप्रयोगों (एप्लीकेशंस) के माध्यम से, व्यक्तियों में व्यक्तिगत रूप से मिले बिना अपने-अपने स्थान पर आराम से एक दूसरे को देखने की, बात करने की और एक-दूसरे से जुड़ें रहने के क्षमता है। एक और महत्वपूर्ण परिवर्तन जो प्रौद्योगिकी के द्वारा हमारे लिए लाया गया है, वह कागज-आधारित रिकॉर्ड से इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड में बदलाव था। दस्तावेज़ों, अभिलेखों (रिकॉर्ड), समझौतों आदि खो जाने या गलत फाइल होने के डर के बिना और कागज के उपयोग के बिना, इन्हे कॉपी किया जा सकता है, संशोधित किया जा सकता है, खोजा और ले जाया जा सकता है, और इस प्रकार पर्यावरण की रक्षा की दिशा में एक कदम उठाया जा सकता है।

जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी और इंटरनेट का उपयोग आगे बढ़ा है, उनसे संबंधित कानूनों को अपनाने की आवश्यकता है, क्योंकि प्रौद्योगिकी और इंटरनेट की मदद से किए गए लेनदेन का दुरुपयोग हो सकता है। इसलिए, ऐसी स्थिति उत्पन्न होने से रोकने के लिए और इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ों के उपयोग को प्रमाणित और कानूनी मान्यता देने के लिए दुनिया भर में कानून बनाए और लागू किए गए हैं। कानून के विभिन्न क्षेत्र हैं जहां विभिन्न वस्तुओं की प्रौद्योगिकी और ई-प्रारूपों से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। इस लेख में, हम इस बात से निपटेंगे कि कैसे संविदात्मक कानून इलेक्ट्रॉनिक अनुबंधों के लिए अनुकूलित हो गया है, जिन्हें आमतौर पर ई-अनुबंध के रूप में जाना जाता है। 

ई-अनुबंध क्या हैं?

एक अनुबंध कानूनी रूप से लागू करने योग्य समझौता है, जैसा कि भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 (इसके बाद”आई.सी.ए., 1872″ के रूप में संदर्भित) की धारा 2 (h) के तहत परिभाषित किया गया है। सरल शब्दों में, यह एक ऐसा समझौता है जो वचनकर्ता (प्रॉमिसर) (वह व्यक्ति जो वचन करता है) द्वारा दिए गए प्रतिफल (कंसीडरेशन) के बदले में वचनग्रहिता (प्रॉमिसी) (जिस व्यक्ति से वचन किया गया है) द्वारा किए गए वचन के अनुसार कार्य करने के लिए कानूनी दायित्व को जन्म देता है। एक इलेक्ट्रॉनिक अनुबंध, जिसे आमतौर पर ई-अनुबंध के रूप में जाना जाता है, इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से बनाया गया एक कानूनी रूप से लागू करने योग्य समझौता है। इसका मसौदा डिजिटल रूप से तैयार किया जाता है, बातचीत की जाती है और निष्पादित किया जाता है, और इसलिए यह पूरी तरह से डिजिटल प्रकृति का होता है। शब्द “ई-अनुबंध” या “इलेक्ट्रॉनिक अनुबंध” को भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 या सूचना प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजी) अधिनियम, 2000 (आगे इसे “आई.टी. अधिनियम, 2000” के रूप में संदर्भित किया गया है), के तहत परिभाषित नहीं किया गया है। लेकिन आई.टी. अधिनियम, 2000, इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से बने अनुबंधों की वैधता के बारे में बात करता है। आई.टी. अधिनियम, 2000 की धारा 10A के तहत यह उल्लेख किया गया है कि यदि प्रस्तावों (प्रोपोजल) का संचार (कम्युनिकेशन), स्वीकृति या निरसन (रिवोकेशन) इलेक्ट्रॉनिक रूप में या किसी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के माध्यम से व्यक्त किया जाता है, तो ऐसे अनुबंध को लागू करने योग्य माना जाता है।

ई-अनुबंधों का मुख्य लाभ यह है कि वे कागज-आधारित नहीं होते हैं और ई-अनुबंध के पक्षकार इसमें प्रवेश कर सकते हैं, भले ही वचनकर्ता और वचनग्रहीता अलग-अलग स्थानों पर हों, यानी, अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के लिए व्यक्तिगत बैठक की आवश्यकता नहीं है। इसके बजाय, पक्ष डिजिटल हस्ताक्षर के माध्यम से अनुबंध में प्रवेश कर सकते हैं। डिजिटल हस्ताक्षर, हाथ से लिखे हस्ताक्षर का एक वैध डिजिटल प्रतिस्थापन (रिप्लेसमेंट) या विकल्प है। इसे आई.टी. अधिनियम, 2000 की  धारा 2(1)(p) के तहत परिभाषित किया गया है। आई.टी. अधिनियम, 2000 की  धारा 3, किसी व्यक्ति के डिजिटल हस्ताक्षर लगाकर इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के प्रमाणीकरण (ऑथेंटिकेशन) का प्रावधान करती है।

ई-अनुबंध की अनिवार्यताएँ

एक वैध ई-अनुबंध की अनिवार्यताएं एक वैध पारंपरिक अनुबंध के समान ही हैं। एक अनुबंध की अनिवार्य बातें आई.सी.ए., 1872 की धारा 10 के तहत दी गई हैं। इनमें शामिल हैं:

  • प्रस्ताव,
  • स्वीकृति,
  • किसी वैध उद्देश्य की उपस्थिति,
  • वैध प्रतिफल की उपस्थिति,
  • अनुबंध के पक्ष सक्षम होने चाहिए, और
  • पक्षों को स्वतंत्र सहमति से अनुबंध में प्रवेश करना होगा।

उपर्युक्त किसी भी अनिवार्यता के बिना बनाया गया इलेक्ट्रॉनिक अनुबंध शून्य माना जाएगा।

ई-अनुबंध के प्रकार

इलेक्ट्रॉनिक अनुबंध के तीन मुख्य प्रकार हैं। वे हैं:

  • श्रिंक- रैप अनुबंध;
  • क्लिक-रैप अनुबंध; और
  • ब्राउज-रैप अनुबंध।

श्रिंक- रैप अनुबंध

इस प्रकार के अनुबंध में, यह कहा जाता है कि एक व्यक्ति एक निश्चित उत्पाद या सॉफ़्टवेयर की खरीदारी करने के बाद समझौते के नियमों और शर्तों से सहमत होता है। ये समझौते इस सरल विचार पर आधारित हैं कि एक बार पैक किया गया या लपेटा हुआ एक निश्चित उत्पाद खोला जाता है, तो उस उत्पाद के नियमों और शर्तों को स्वीकृत माना जाता है। ध्यान देने योग्य एक महत्वपूर्ण कारक यह है कि श्रिंक-रैप अनुबंधों में पक्षों के बीच कोई बातचीत नहीं होती है। ऐसा उदाहरण जहां इस प्रकार के समझौते तब देखे जाते हैं जब ग्राहक द्वारा मोबाइल फोन या किसी सॉफ्टवेयर डिवाइस की खरीदारी की जाती है। श्रिंक रैप समझौते का एक उदाहरण एक अंतिम उपयोगकर्ता लाइसेंस समझौता है, जिसे आमतौर पर ई.यू.एल.ए. के रूप में जाना जाता है। 

क्लिक-रैप अनुबंध

इस प्रकार के अनुबंध में, किसी व्यक्ति द्वारा स्वीकृति या अनुमोदन (अप्रूवल) दिया गया माना जाता है यदि उसने वेब इंटरफ़ेस के नियमों और शर्तों में “मैं स्वीकार करता हूं” या “स्वीकार करने के लिए क्लिक करें” विकल्प पर क्लिक किया है। यहां उपयोगकर्ता को वेबसाइट या इंटरफ़ेस के उपयोग के लिए स्वीकृति देने से पहले नियम और शर्तों या गोपनीयता नीतियों में उल्लिखित बिंदुओं को पढ़ना और समझना होगा। श्रिंक-रैप अनुबंधों की तरह, क्लिक-रैप अनुबंधों में भी बातचीत का कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है। क्लिक-रैप अनुबंध हमारे द्वारा उपयोग की जाने वाली लगभग सभी वेबसाइटों पर देखे जा सकते हैं। इनमें से कुछ वेबसाइटों में लिंक्डइन, फेसबुक, अर्बनिक, अर्बन क्लैप आदि शामिल हैं।

ब्राउज-रैप अनुबंध

ये एक वेबसाइट या वेब इंटरफ़ेस पर प्रदान किए गए लाइसेंस प्राप्त अनुबंध हैं जिसमें एक “हाइपरलिंक”, जब डबल-क्लिक किया जाता है, तो उपयोगकर्ता को उस विशेष एप्लिकेशन का उपयोग करने के नियमों और शर्तों वाले वेबपेज पर ले जाता है। ऐसे एप्लिकेशन को डाउनलोड करने या वेबसाइट का उपयोग करने का मतलब है कि उपयोगकर्ता ने अनुबंध के नियमों और शर्तों को स्वीकार कर लिया है। ब्राउज-रैप अनुबंधों में भी, बातचीत की कोई शक्ति नहीं है। उदाहरणों में हाइपरलिंक शामिल हैं जो नेटफ्लिक्स, अमेज़ॅन आदि जैसे मोबाइल एप्लिकेशन डाउनलोड करने से पहले नियम और शर्तें दिखाते हैं।

कानून में ई-अनुबंधों के समायोजन का विश्लेषण

वर्तमान समय में इलेक्ट्रॉनिक अनुबंध बहुत उपयोग में आते हैं, और वे व्यापार और व्यवसाय में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि वे आसानी से सुलभ, पर्यावरण-अनुकूल, तेज और काम करने में आसान हैं, और कागज-अनुबंधों की तुलना में त्रुटियों की संभावना न्यूनतम है। जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, ई-अनुबंधों से संबंधित प्रावधानों को भी कानून के विभिन्न क्षेत्रों में समायोजित किया गया है।

तमिलनाडु ऑर्गेनिक्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम भारतीय स्टेट बैंक (2019) के मामले में ई-अनुबंधों की वैधता और प्रवर्तनीयता (एंफोर्सेबीलिटी) पर विस्तार से चर्चा की गई। इस मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने माना कि ई-अनुबंध कानून के तहत लागू करने योग्य हैं और संविदात्मक दायित्व उसी से उत्पन्न होंगे।

ट्राइमेक्स इंटरनेशनल एफजेडई लिमिटेड दुबई बनाम वेदांत एल्युमीनियम लिमिटेड (2010) में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि चूंकि प्रस्ताव और स्वीकृति की सूचना पक्षों द्वारा ई-मेल के आदान-प्रदान के माध्यम से दी गई थी, इसलिए ई-मेल अपने आप में एक अनुबंध होगा। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि कोई अनुबंध संपन्न होता है, तो पक्षों द्वारा तैयार और हस्ताक्षरित औपचारिक अनुबंध ऐसे अनुबंध के कार्यान्वयन (इंप्लीमेंटेशन) को प्रभावित नहीं करेगा।

रूडर बनाम माइक्रोसॉफ्ट कॉर्पोरेशन (1999) के मामले में वादी, जो उसी का ग्राहक था, ने एम.एस.एन. (माइक्रोसॉफ्ट द्वारा प्रदान किया गया एक वेब पोर्टल) के खिलाफ, दुर्विनियोजन (मिस अप्रोप्रीएशन), अनुबंध के उल्लंघन और प्रत्ययी (फिडूशियरी) कर्तव्य के उल्लंघन के लिए एक वर्गीय कार्रवाई (क्लास एक्शन सूट) शुरू की। माइक्रोसॉफ्ट ने तर्क दिया कि ग्राहकों और कंपनी के बीच क्लिक-रैप अनुबंध में विवाद समाधान के लिए वाशिंगटन राज्य को विशेष अधिकार क्षेत्र प्रदान करने वाला एक खंड मौजूद था और इसलिए वर्गीय कार्रवाई को खारिज करने का अनुरोध किया गया था। रूडर, वादी ने तर्क दिया कि ऐसा खंड लागू नहीं होगा क्योंकि इसे उपयोगकर्ताओं के ध्यान में नहीं लाया गया था। न्यायमूर्ति वॉरेन विंकलर ने माइक्रोसॉफ्ट के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि पोर्टल के ग्राहकों को वेब पोर्टल के नियमों और शर्तों को स्वीकार करने के लिए “मैं सहमत हूं” विकल्प पर दो बार क्लिक करना था। वादी ने इस विकल्प पर क्लिक किया था, इससे वह अनुबंध के नियमों और शर्तों में उल्लिखित खंडों का पालन करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य हो जाता है, भले ही उसने अनुबंध पढ़ा हो या नहीं। न्यायालय ने कहा कि अनुबंध लागू करने योग्य होगा, यह कहते हुए कि किसी वेबपेज या वेब पोर्टल के कई पृष्ठों को स्क्रॉल करना कागज-आधारित अनुबंध के कई पृष्ठों को पलटने के समान है।

भगवानदास गोवर्धनदास केडिया बनाम गिरधारी लाल परषोत्तमदास एंड कंपनी और अन्य (1965) के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से बने अनुबंध को लागू करने का स्थान वही होगा जहां प्रस्ताव की स्वीकृति प्राप्त हुई थी।

निष्कर्ष

निष्कर्ष के तौर पर, पिछले एक दशक से ई-अनुबंध का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है और इससे दुनिया भर में कई लोगों को फायदा हुआ है। इन अनुबंधों को समझदारी से समझना और उपयोग करना महत्वपूर्ण है। ई-अनुबंध का उपयोग भविष्य में बढ़ना निश्चित है, खासकर जब से सरकार द्वारा डिजिटलीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है, और इसलिए ई-अनुबंध और उससे संबंधित मामलों को लागू करने के लिए एक सर्व-समावेशी (ऑल इन्क्लूसिव) कानून विकसित करने की आवश्यकता है।

संदर्भ

  • https://www.legallore.info/post/pros-and-cons-of-e-contract

 

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