यह लेख इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी, मीडिया एंड इंटरटेनमेंट लॉज में डिप्लोमा कर रही Diya Sagir V M द्वारा लिखा गया है। इस लेख में भारतीय संगीत उद्योग में संगीतकारों के अधिकारों पर चर्चा की गई है। इस लेख का अनुवाद Shreya Prakash के द्वारा किया गया है।
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परिचय
इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि भारतीय संगीत उद्योग दुनिया में सांस्कृतिक रूप से सबसे समृद्ध और विविधतापूर्ण है। संगीतकार लंबे समय से विभिन्न माध्यमों से उच्च गुणवत्ता वाले गाने तैयार करने में सक्षम रहे हैं। उपभोक्ता या श्रोता के रूप में, हम हमेशा संगीत का आनंद लेते हैं लेकिन शायद ही जानते हैं कि संगीतकारों को इस मुकाम तक पहुंचने के लिए किन कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। रचना चरण से लेकर उत्पादन और वितरण तक, उन्हें कई बाधाओं से गुजरना पड़ता है।
इस लेख में, हम देखेंगे कि संगीतकारों को संगीत उद्योग में विभिन्न प्रकार के मुद्दों का सामना करना पड़ता है, कैसे उनके अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है, इन समस्याओं के समाधान के लिए क्या किया जा सकता है, और भी बहुत कुछ।
संगीत कॉपीराइट का स्वामी कौन है
जब आप ‘संगीत’ शब्द सुनते हैं, तो आपके दिमाग में क्या आता है? आपके अनुसार गीत या संगीत रिकॉर्डिंग का स्वामी कौन है? इस पूरी प्रक्रिया में कौन लोग शामिल हैं और उनके पास क्या अधिकार हैं? आइए इसे नीचे देखें –
गीतकार
ये लोग किसी भी प्रकार के संगीत की रीढ़ बनते हैं। गीतकार वे होते हैं जो किसी गीत के लिए लिखित सामग्री या शब्दांकन प्रदान करते हैं। किसी गीत के बोल साहित्यिक कार्य (लिटरेरी वर्क्स) माने जाते हैं। अत: इस पर उनका साहित्यिक अधिकार है।
रचयिता (कंपोजर)
रचयिता वे हैं जो ऐसा संगीत प्रदान करते हैं जो शब्दों को गीत में बदल देते है। इसे एक कलात्मक कार्य (आर्टिस्टिक वर्क) माना जा सकता है। इसलिए, उनके पास कॉपीराइट भी है।
गायक
ये लोग ऊपर बताए गए काम में जान डाल देते हैं। उनके बिना, गीत केवल शब्द और संगीत अलग-अलग बनकर रह जायेगा। जैसा कि कॉपीराइट अधिनियम की धारा 38 में बताया गया है, गायकों के पास कलाकार के अधिकार या नैतिक अधिकार हैं।
निर्माता और रिकॉर्ड लेबल
इनके बिना, कला के इन कार्यों को हमारे सुनने के लिए दुनिया के सामने नहीं लाया जा सकेगा। रिकॉर्ड लेबल और निर्माता संगीतकारों को अपना काम दुनिया तक पहुंचाने में मदद करते हैं। इसलिए, पूरे गाने पर अधिकार या मास्टर कॉपीराइट उनका है।
प्राप्त अधिकारों के प्रकार
अब जब हमने संगीत उद्योग में शामिल लोगों को समझ लिया है, तो अब हम मौजूदा अधिकारों के प्रकार और उन सभी के पास उनके अधिकार पर एक नज़र डाल सकते हैं।
पुनरुत्पादन (रिप्रोड्यूस) का अधिकार
कॉपीराइट अधिनियम की धारा 14(a) के अनुसार, किसी संगीत कार्य के लेखक या निर्माता को अपने कलात्मक कार्य को किसी अन्य रूप में, जो उन्हें उचित लगे, पुनरुत्पाद करने का एकमात्र अधिकार है।
यांत्रिक (मैकेनिकल) अधिकार
ये भी, लेखक या रचनाकार को अपने काम को किसी अन्य विधि या माध्यम में पुन: प्रस्तुत करने के लिए उपलब्ध अधिकार हैं।
तुल्यकालन (सिंक्रोनाइजेशन) अधिकार
यदि लेखक या निर्माता अपने काम को किसी अन्य प्लेटफ़ॉर्म पर एक अलग प्रारूप (जैसे वीडियो) में सिंक करना चाहते हैं, तो वे इस अधिकार का उपयोग करके ऐसा कर सकते हैं।
व्युत्पन्न (डेरिवेटिव) अधिकार
यदि लेखक या रचनाकार अपने पहले से मौजूद कार्यों को अलग तरीके से पुन: प्रस्तुत करके (जैसे रीमिक्स) नया बनाना चाहते हैं, तो इसे व्युत्पन्न अधिकार कहा जाता है।
कार्य प्रदर्शित करने एवं संप्रेषित (कम्युनिकेट) करने का अधिकार
लेखक को अपने संगीत कार्य को प्रदर्शित करने और संप्रेषित करने का अधिकार है।
अनुकूलन (एडाप्टेशन) अधिकार
किसी संगीत कार्य के लेखक या रचनाकार को अपने कार्य को विभिन्न भाषाओं (अनुवाद) में रूपांतरित करने का अधिकार निहित है।
कलाकार के अधिकार
कॉपीराइट अधिनियम की धारा 38 के अनुसार, किसी गीत के गायक या कलाकार के भी कुछ अधिकार होते हैं। उन्हें अपने काम की रिकॉर्डिंग करने और उसे पुन: प्रस्तुत करने की अनुमति है। वे अपने काम को जनता तक प्रसारित भी कर सकते हैं। इन गायकों के लिए यह अधिकार गीत प्रकाशन वर्ष से 50 वर्षों तक रहता है।
नैतिक अधिकार
गायक या कलाकार के पास नैतिक अधिकार भी होते हैं, जो उन्हें खुद को कलाकार के रूप में पहचानने का अधिकार देते हैं और उन्हें हर्जाने का दावा करने का अधिकार भी देते हैं यदि कोई उनके काम को इस तरह से बदलता है कि यह उनके लिए पूर्वाग्रह (प्रेजुडिस) का कारण बनता है। कॉपीराइट अधिनियम की धारा 57 के अनुसार, ये अधिकार अभी भी उनमें निहित रहेंगे (पितृत्व का अधिकार) भले ही उन्होंने अपने अधिकार दूसरों को सौंप दिए हों (रोकने का अधिकार)।
साहित्यिक अधिकार
ये गीत (बोल) के लिखित विषय पर गीतकार को उपलब्ध अधिकार हैं। गीत को साहित्यिक कार्य माना जाता है और कॉपीराइट अधिनियम के तहत संरक्षित किया जाता है।
मास्टर कॉपीराइट
संपूर्ण गीत (रिकॉर्डिंग) के अधिकार निर्माताओं या रिकॉर्ड लेबल में निहित हैं क्योंकि वे ही हैं जो गीत को मूर्त रूप देते हैं।
संगीतकारों के सामने आने वाले मुख्य मुद्दे
सबसे बड़ी समस्याओं में से एक जो संगीतकारों को लंबे समय से सामना करना पड़ रहा है वह यह है कि उन्हें उनकी कड़ी मेहनत के लिए कभी भी पर्याप्त भुगतान नहीं किया जाता है। उन्हें अपना काम लोगों तक पहुंचाने के लिए हमेशा रिकॉर्ड लेबल या निर्माताओं पर निर्भर रहना पड़ता है। भले ही समय बदल गया है और डिजिटल प्रगति के साथ, वे अपने काम को प्रदर्शित करने के लिए इंटरनेट प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग कर सकते हैं, पारंपरिक विधि अभी भी उनके द्वारा उपयोग किया जाने वाला मुख्य माध्यम है। वे इन रिकॉर्ड लेबल और निर्माताओं के साथ अनुचित अनुबंध पर हस्ताक्षर करते हैं और इन संगीतकारों, विशेष रूप से नए कलाकारों, जिन्होंने अभी-अभी इस करियर में कदम रखा है, का लाभ उठाते हैं। इन अनुबंधों के माध्यम से लेबल उन पर अद्वितीय शक्ति का प्रयोग करते हैं, और इन नए कलाकारों के पास उनके साथ बातचीत करने की शक्ति नहीं होती है।
अधिकांश समय, उन्हें शुरुआत में एकमुश्त (लंप सम) भुगतान दिया जाता है, और उनके पास इसके लिए सहमत होने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है। और उसके बाद कोई अन्य अतिरिक्त वित्तीय लाभ नहीं मिलता है। कलाकार के रूप में, भले ही वे अपने काम के लिए रॉयल्टी प्राप्त करने के लिए बाध्य हैं, लेबल उनके अनुबंधों को इस तरह से लिखते हैं कि इससे केवल उन्हें (आर्थिक रूप से) लाभ होता है, न कि संगीतकारों को। अनुबंध की शर्तों के अनुसार, आगे के सभी अधिकार भी लेबल में निहित होंगे, इसलिए वे कलाकार से परामर्श किए बिना संगीत के साथ जो चाहें कर सकेंगे। सारा मौद्रिक लाभ रिकॉर्ड लेबल की जेब में चला जाता है।
रचनात्मक लोग होने के नाते, संगीतकार या कोई भी कलाकार स्वतंत्र होने पर फलते-फूलते हैं और अपना सर्वश्रेष्ठ काम करते हैं। फँस जाने की भावना केवल उनकी संपूर्ण विचार प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करेगी। इस प्रकार, अपने काम के लिए लाभ या रॉयल्टी न मिलना उन्हें हतोत्साहित करता है।
एक और समस्या जिसका संगीत उद्योग से बाहर भी संगीतकारों को सामना करना पड़ता है, वह है डिजिटल चोरी। क्योंकि उनमें ज्ञान और जागरूकता की कमी है, श्रोता अवैध रूप से कॉपीराइट सामग्री को ऑनलाइन डाउनलोड करने के परिणामों को नहीं जानते हैं। इसलिए, यह एक और तरीका बन जाता है जिसके द्वारा संगीतकारों का शोषण किया जाता है। कुल मिलाकर, संगीतकार अपने अधिकारों के लिए इन उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ लड़ने का जोखिम नहीं उठा सकते, खासकर जब वह शुरुआत कर रहे हों।
कॉपीराइट अधिनियम, 1957 में 2012 का संशोधन
तकनीकी प्रगति के इस नए युग में, कॉपीराइट अधिनियम में कुछ बदलाव करने की आसन्न आवश्यकता थी। अधिनियम को वीआईपीओ (विश्व बौद्धिक संपदा संगठन) (वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी आर्गेनाइजेशन) मानदंडों और वीआईपीओ कॉपीराइट संधि (ट्रीटी) (डबल्यूसीटी) और वीआईपीओ प्रदर्शन और फ़ोनोग्राम संधि (डडबल्यूपीपीटी) जैसी “इंटरनेट संधियों” के अनुरूप होना आवश्यक था।
कॉपीराइट अधिनियम, 1957 में 2012 के संशोधन के बाद से कई महत्वपूर्ण बदलाव लाए गए हैं। संगीतकारों को व्यापक सुरक्षा दी जा रही है क्योंकि वे लंबे समय से निर्माताओं और रिकॉर्ड लेबल के हाथों पीड़ित हो रहे हैं। उन्हें अपने स्वयं के काम के स्वामित्व और नियंत्रण के बेहतर अधिकार दिए जा रहे हैं और कानूनी रूप से उच्च पद पर पदोन्नत किया जा रहा है। हालाँकि इस संशोधन के माध्यम से अन्य परिवर्तन भी लाए गए हैं, हम असाइनमेंट और लाइसेंस के संबंध में लेखक और मालिक-अनुकूल अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
धारा 18
संशोधन के माध्यम से धारा 18 में तीन नए प्रावधान पेश किए गए हैं। इसमें कहा गया है कि असाइनी अपने अधिकारों का प्रयोग करते समय केवल उन तरीकों या साधनों का उपयोग कर सकता है जो असाइनमेंट पहली बार किए जाने के समय मौजूद थे। वह इसे भविष्य के तरीकों तक विस्तारित नहीं कर सकता है। दूसरा और तीसरा प्रावधान किसी लेखक को रॉयल्टी प्राप्त करने के उसके अधिकारों को छोड़ने से रोकता है। अधिक से अधिक यह किया जा सकता है कि इसे असाइनी के साथ 50/50 के आधार पर साझा किया जाए। इस प्रावधान के विपरीत किया गया कोई भी अनुबंध शून्य माना जाएगा। इसके कुछ अपवाद भी हैं। ऐसे कुछ उदाहरण हैं जिनमें 50% से अधिक का अधिकार माफ किए जा सकते हैं:
- यह लेखक के कानूनी उत्तराधिकारियों को दिया जाता है।
- सिनेमा हॉल में जनता से संवाद किया जाता है।
- कॉपीराइट सोसाइटी को लेखक की ओर से रॉयल्टी एकत्र करने और वितरित करने का काम सौंपा गया है।
धारा 19
धारा 19 असाइनमेंट के तरीकों से संबंधित है। इस धारा में तीन उपखंड जोड़े गए, अर्थात्, (8), (9) और (10)। उपधारा (8) में कहा गया है कि किसी विशेष कॉपीराइट सोसायटी से संबंधित लेखक कॉपीराइट सोसायटी के साथ हुए समझौते के नियमों और शर्तों के उल्लंघन में अपने अधिकार किसी तीसरे पक्ष को नहीं सौंप सकता है। यदि ऐसा किया गया तो वह शून्य माना जायेगा। ऐसा कॉपीराइट सोसायटी की सुरक्षा और उनके कुशलतापूर्वक काम करने के लिए किया जाता है। कॉपीराइट सोसायटी एकमात्र रास्ता बन जाती है जिसके माध्यम से लेखक रॉयल्टी का अपना हिस्सा प्राप्त कर सकते हैं। यदि लेखक अपने अधिकार किसी तीसरे पक्ष को सौंपना चाहता है, तो उन्हें कॉपीराइट सोसायटी में अपनी सदस्यता छोड़नी होगी।
उपधारा (9) और (10) में कहा गया है कि यदि लेखक सिनेमैटोग्राफिक फिल्म या साउंड रिकॉर्डिंग में अपना कॉपीराइट सौंपता है या लाइसेंस देता है, तो इससे उसके रॉयल्टी के अधिकार में कोई फर्क नहीं पड़ेगा जब तक कि यह एक संचार के रूप में एक सिनेमा हॉल में जनता को नहीं किया जाता है।
कॉपीराइट सोसायटी
किसी व्यक्तिगत लेखक या किसी संगीत कृति के मालिक के लिए उन सभी अलग-अलग तरीकों पर नज़र रखना मुश्किल है, जिनका उपयोग उनके काम में किया जा रहा है। हर समय विभिन्न स्रोतों से अपने काम के लिए रॉयल्टी या मुनाफा इकट्ठा करना भी कठिन होता है। यहीं पर कॉपीराइट सोसायटी की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। कॉपीराइट सोसायटी को अपने सदस्यों के कॉपीराइट मामलों के प्रबंधन और सुरक्षा के लिए बहुत सारी शक्तियां और कार्य दिए जाते हैं। वे इस पर बेहतर नज़र रखने में मदद करते हैं कि उनके कॉपीराइट का उपयोग कौन कर रहा है। वे विभिन्न धाराओं से रॉयल्टी भी एकत्र करते हैं और उसे लेखक या मालिक तक पहुंचाते हैं। कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की धारा 33, कॉपीराइट सोसायटी और उसके गठन से संबंधित है। इसका गठन और संचालन स्वयं लेखकों और मालिकों द्वारा किया जाता है और इसमें कम से कम सात सदस्यों की आवश्यकता होती है।
2012 के संशोधन के हिस्से के रूप में धारा 33 (3A) को कॉपीराइट अधिनियम, 1957 में जोड़ा गया था, और इसके लिए मौजूदा कॉपीराइट सोसायटी को एक वर्ष के भीतर खुद को फिर से पंजीकृत करने की आवश्यकता थी यदि वे कॉपीराइट लाइसेंस जारी रखना चाहते थे।
धारा 14
2012 के संशोधन के अनुसार, अब पुनरुत्पादन के अधिकार में इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से किसी भी तरीके में काम को “भंडारित करने का अधिकार” भी शामिल है। आज की दुनिया में मौजूद डिजिटल प्रगति के कारण यह एक महत्वपूर्ण विषय बन गया है। काम के भंडारण से संबंधित अधिकार डिजिटल प्रौद्योगिकी की वर्तमान स्थिति में और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है, जिसमें इंटरनेट पर डिजीटल कार्यों को प्रसारित करना शामिल है, जिसके परिणामस्वरूप उपयोगकर्ता के कंप्यूटर सहित कई अलग-अलग स्थानों पर क्षणिक प्रतियों का निर्माण होता है।
धारा 17
संशोधन द्वारा इस धारा में एक प्रावधान जोड़ा गया है जिसमें कहा गया है कि किसी भी चीज़ से लेखक के अधिकारों पर प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। यह उन्हें धारा 17 के खंड (b) और (c) से बचाता है।
ईआईएमपीए निर्णय
इंडियन परफॉर्मिंग राइट्स सोसाइटी बनाम ईस्टर्न इंडियन मोशन पिक्चर्स एसोसिएशन (आईपीआरएस बनाम ईआईएमपीए) मामले के तथ्य इस प्रकार हैं। आईपीआरएस एक सोसायटी है जो अपने सदस्यों के संगीत कार्यों के कॉपीराइट का लाइसेंस देती है। आईपीआरएस ने दावा किया कि वे संगीत बनाने वाले लेखकों के नियुक्त व्यक्ति थे और ईआईएमपीए को उन्हें टैरिफ का भुगतान करना होगा क्योंकि ईआईएमपीए सिनेमैटोग्राफिक फिल्मों और रेडियो स्टेशनों में अपने समाज के सदस्यों के कॉपीराइट का उपयोग कर रहा है। यह एक लंबे समय तक चलने वाला मामला था जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने धारा 17 (b) और (c) पर भरोसा करते हुए अंततः ईआईएमपीए, या बल्कि सिनेमैटोग्राफिक फिल्मों के निर्माताओं के पक्ष में फैसला सुनाया। निर्माताओं को मालिक माना जाता था क्योंकि इन संगीतकारों को ‘सेवा अनुबंध’ के आधार पर काम पर रखा जाता था।
उम्मीद है कि 2012 का संशोधन धारा 17 में किए गए बदलावों के कारण आगामी निर्णयों में इस निर्णय को पलटने में मदद करेगा।
धारा 38
एक संशोधन के माध्यम से धारा 38A जोड़ी गई है, जो कलाकारों को भी रॉयल्टी का अधिकार देती है, जब उनके काम का व्यावसायिक उपयोग किया जा रहा हो।
महत्वपूर्ण कानूनी मामले
इंडियन परफॉर्मिंग राइट्स सोसाइटी बनाम आदित्य पांडे और अन्य के मामले में, यह माना गया था कि जिस लेखक के साहित्यिक और संगीत कार्यों को ध्वनि रिकॉर्डिंग में शामिल किया गया है, वह अपने काम का उपयोग करने से उत्पन्न होने वाली रॉयल्टी का बराबर हिस्सा प्राप्त करने का हकदार है।
अमर नाथ सहगल बनाम भारत संघ के मामले में, यह सही माना गया था कि किसी कार्य के नैतिक अधिकार लेखक में ही निहित हैं, और उसे यह तय करने का अधिकार है कि इसकी रक्षा कैसे की जाए, भले ही अधिकार किसी और को सौंपे गए हों।
ग्रामोफोन कंपनी बनाम सुपर कैसेट्स और ग्रामोफोन कंपनी बनाम मार्स के मामले में विपरीत निर्णय दिए गए थे। कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की धारा 52(1)(j) में कहा गया है कि यदि कोई उनके काम का उपयोग करना चाहता है और उसमें कोई बदलाव या संशोधन करना चाहता है तो लेखक से लाइसेंस प्राप्त किया जाना चाहिए। पहले मामले में, यह माना गया कि किसी संगीत कार्य में परिवर्तन करने से पहले उसके मालिक से अनुमति लेनी होगी। लेकिन बाद के मामले में, यह माना गया और कहा गया कि, जहां तक धारा 52(1)(j) के प्रावधानों का अनुपालन किया गया है, कोई अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।
निष्कर्ष
हालाँकि 2012 के संशोधन के कारण कई बदलाव किए गए हैं, फिर भी अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है। एक ऐसा वातावरण बनाया जाना चाहिए जहां संगीतकारों और लेबल दोनों के पास समान सौदेबाजी की शक्ति हो, या यूं कहें कि संगीतकारों की सौदेबाजी की शक्ति में वृद्धि हो। 50/50 दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए जहां दोनों पक्ष राजस्व साझा कर सकें।
हालांकि यह अनिवार्य नहीं है, फिर भी कॉपीराइट पंजीकृत करने की हमेशा सलाह दी जाती है क्योंकि यह बहुत सारे लाभों के साथ आता है। पंजीकृत कॉपीराइट के लिए अधिकारों का आश्वासन दिया जाता है और कॉपीराइट स्वामी उल्लंघनकर्ता पर मुकदमा करने और नागरिक या आपराधिक उपचार का सहारा लेने में सक्षम होगा
इस क्षेत्र में नवीनतम विकासों में से एक आईएसआरए (इंडियन सिंगर्स राइट्स एसोसिएशन) का आईएमआई (भारतीय संगीत उद्योग) के साथ समझौता है। यह समझौता मुख्य रूप से डिजिटल चोरी के खिलाफ लड़ने के लिए है और इसमें भारत के सभी रिकॉर्ड लेबल, गायक और संगीतकार शामिल हैं। इस समझौते से भारतीय संगीत उद्योग के सभी हितधारकों को लाभ होगा और संगीत बाजार को बढ़ने में मदद मिलेगी। इससे उद्योग जगत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।
भारतीय संगीत उद्योग में संगीतकारों के अधिकारों की रक्षा करना कठिन काम है क्योंकि लगभग हर बार, निर्माताओं या रिकॉर्ड लेबल को प्राथमिकता दी जाती है। हम बस इतना कर सकते हैं कि भविष्य के लिए आशान्वित रहें, यह सुनिश्चित करें कि संगीतकार कानून में नवीनतम परिवर्तनों के अनुसार अपने अधिकारों के बारे में जागरूक हों, और यह भी आशा करें कि लिए गए निर्णय कम से कम अभी से उनके लिए अनुकूल हों।