यह लेख केआईआईटी स्कूल ऑफ लॉ, भुवनेश्वर के Soma-Mohanti द्वारा लिखा गया है। इस लेख में, उन्होंने स्वतंत्र सहमति की अनिवार्यताओं, इसके अपवादों और कुछ मामलों के बारे में उल्लेख किया है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta के द्वारा किया गया है।
Table of Contents
सहमति का अर्थ
- भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 13 के अनुसार सहमति का अर्थ है जब दोनों पक्ष किसी बात पर समान भाव से या मन की एकता से सहमत हों।
- कंसेंस एड इडम का सिद्धांत लागू होता है।
- चित्रण (इलस्ट्रेशन)-
“A” और “B” एक अनुबंध में दो पक्ष हैं। यह देखा गया कि कुछ संकट था और “A” ने इसे हल करने के लिए एक योजना सामने रखी थी। “B” इस तथ्य से अवगत होने के बाद, उसने विश्लेषण किया कि यह सही समाधान था, और वह इसके लिए सहमत हुआ। इस मामले में दोनों पक्षों ने अपनी सहमति दिखाई थी।
स्वतंत्र सहमति के तत्व
निम्नलिखित कारकों के संतुष्ट होने पर सहमति को स्वतंत्र सहमति माना जाता है:
- यह प्रपीड़न (कोर्जन) से स्वतंत्र होना चाहिए।
- असम्यक् असर (अनड्यू इनफ्लुएंस) के दबाव में अनुबंध नहीं करना चाहिए।
- अनुबंध बिना किसी कपट (फ्रॉड) के किया जाना चाहिए।
- दुर्व्यपदेशन (मिसरिप्रेजेंटेशन) के माध्यम से अनुबंध नहीं किया जाना चाहिए।
- अनुबंध भूल से नहीं किया जाना चाहिए।
स्वतंत्र सहमति का महत्व
- स्वतंत्र सहमति से किया गया अनुबंध एक करार (एग्रीमेंट) की वैधता और प्रवर्तनीयता (एनफोर्सेबिलिटी) की रक्षा करता है।
- यह पक्षों को प्रपीड़न, असम्यक् असर, दुर्व्यपदेशन, कपट और भूल से सुरक्षा कवच प्रदान करता है।
- यह पक्षों को नीति या सिद्धांत बनाने के लिए स्वायत्त (ऑटोनोमी) शक्ति का सामना करने के लिए प्रदान करता है।
- कंसेंस एड इडम के सिद्धांत का पालन किया जाता है।
सहमति और स्वतंत्र सहमति के बीच अंतर
आधार | सहमति | स्वतंत्र सहमति |
अर्थ | जब दोनों पक्ष किसी बात पर समान भाव से या मन की एकता से सहमत होते हैं, तो करार को सहमति से किया गया माना जाता है। | जब एक करार सहमति से किया जाता है और प्रपीड़न, कपट, दुर्व्यपदेशन, असम्यक् असर और भूल से स्वतंत्र होता है। तब करार को स्वतंत्र सहमति से किया गया माना जाता है। |
अनिवार्यताएं | दोनों पक्षों को समान भाव से करार में प्रवेश करना चाहिए। दोनों पक्षों को करार में प्रवेश करना चाहिए और एक ही बात पर सहमत होना चाहिए। | सहमति निम्नलिखित से स्वतंत्र होनी चाहिए:
|
शून्यकरणीयता (वॉयडेबिलिटी) | सहमति की कमी होने पर, अनुबंध शून्य होगा। | जब कोई स्वतंत्र सहमति नहीं है, तो अनुबंध की शून्यकरणीयता पीड़ित पक्ष के विकल्प पर निर्भर करती है। |
स्वतंत्र सहमति में भूल
भूल को एक ऐसे तत्व के रूप में वर्णित किया जाता है, जो अनुबंध में होने पर इसे शून्य कर देता है। एक अनुबंध में दो प्रकार की भूल होती हैं:-
एकतरफा भूल
एक भूल को एकतरफा तब कहा जाता है जब करार में एक पक्ष के द्वारा भूल होती है।
द्विपक्षीय भूल
आपसी भूल
एक भूल को तब आपसी कहा जाता है जब दोनों पक्ष एक दूसरे को गलत समझते हैं। इस प्रकार यह दर्शाता है कि अनुबंधों में कंसेंस एड इडम के सिद्धांत का उल्लंघन हुआ है और अनुबंध को शून्य माना जाना है।
उदाहरण, “A” ने “B” को अपना स्कूटर बेचने का प्रस्ताव दिया। “A” अपना 3G स्कूटर बेचना चाहता था लेकिन “B” का मानना था कि “A” अपना 4G स्कूटर बेच देगा। इस प्रकार कोई उचित संचार नहीं था और तथ्य गलत था। यह एक प्रभावी करार होगा।
सामान्य भूल
भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 20 सामान्य भूल के लिए प्रावधान करती है। सामान्य भूल से उत्पन्न अनुबंध को शून्य माना जाता है। इस प्रकार की भूल दोनों पक्षों से होती है, पर यह भूल आपसी भूल का परिणाम नहीं, लेकिन यह व्यक्तिगत रूप से होती है।
स्वतंत्र सहमति के उदाहरण
चित्रण
- “A” अपनी जमीन “B” को बेचने के लिए सहमत है। “A” के पास अलग-अलग जगहों पर 10 जमीनें हैं और वह पश्चिम दिशा वाली जमीन को बेचना चाहता था लेकिन “B” पूर्व हिस्से में जमीन चाहता था। इस मामले में, यह देखा गया है कि यहां मन का मिलन नही था और कंसेंस एड इडम के सिद्धांत का उल्लंघन हुआ था। अत: करार शून्य माना जाएगा।
- “A” एक बूढ़ा आदमी है जो “B” के साथ रहता है, उसका भतीजा और वह उसकी देखभाल करता है। “B” ने “A” की संपत्ति प्राप्त करने की मांग की क्योंकि वह उसकी देखभाल कर रहा था और उसे कागजात पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करता था। इस मामले में, “A” असम्यक् असर में है।
मामला
सोल बनाम बटचर के मामले में, यह देखा गया कि दोनों पक्षों ने फ्लैट के पट्टे (लीज) के अनुबंध में प्रवेश किया। दोनों पक्षों का मानना था कि फ्लैट की पहचान बदल गई है इसलिए अधिकतम किराया जो 140 जीबीपी प्रति वर्ष था वह भी बदल गया है। लेकिन बाद में अदालत ने माना कि पहचान में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है, इसलिए यह माना गया कि तथ्य की एक पारस्परिक भूल थी और इस प्रकार अनुबंध को शून्य घोषित कर दिया गया था।
स्वतंत्र सहमति को भंग करने वाले तत्व
प्रपीड़न
- जब कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को अनुबंध में प्रवेश करने के लिए मजबूर करने के इरादे से भारतीय दंड संहिता के तहत निषिद्ध कार्य करता है या करने की धमकी देता है, या किसी वस्तु को गैरकानूनी रूप से हिरासत में लेता है या ऐसा करने की धमकी देता है, तो इसे प्रपीड़न कहा जाता है।
- चित्रण:
“A” “B” को एक ऐसे करार में प्रवेश करने का कारण बनता है जो भारतीय दंड संहिता के तहत प्रतिबंधित है। “A” ने यह कार्य तब किया था जब एक अंग्रेजी जहाज गहरे समुद्र में था। “A” मुंबई में अनुबंध के उल्लंघन के लिए “B” पर मुकदमा करता है।
इस करार को शून्य माना गया क्योंकि “A” ने प्रपीड़न का इस्तेमाल किया था, हालांकि भारतीय दंड संहिता उस स्थान पर लागू नहीं थी जहाँ कार्य किया गया था।
प्रपीड़न का प्रभाव
जब किया गया करार प्रपीड़न द्वारा किया गया पाया जाता है, तो अनुबंध को रद्द कर दिया जाएगा, जिसके कारण दोनों पक्ष अनुबंध के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करने के अपने दायित्व से स्वतंत्र हो जाते हैं।
प्रपीड़न और दबाव (ड्यूरेस) के बीच अंतर
आधार | प्रपीड़न | दबाव |
अर्थ | जब कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को अनुबंध में प्रवेश कराने के इरादे से भारतीय दंड संहिता के तहत निषिद्ध कार्य करता है या करने की धमकी देता है, या किसी वस्तु को गैरकानूनी रूप से हिरासत में लेता है या ऐसा करने की धमकी देता है, तो इसे प्रपीड़न कहा जाता है। | जब किसी व्यक्ति को वास्तविक हिंसा या हिंसा की धमकी दी जाती है, तो इसे सामान्य कानून के तहत दबाव कहा जाता है। |
अनुबंध पर प्रभाव | जब यह पाया जाता है कि किया गया करार प्रपीड़न से किया गया है, तो अनुबंध को रद्द कर दिया जाता है, जिसके कारण दोनों पक्ष अनुबंध के अनुसार अपने कर्तव्य का पालन करने के दायित्व से स्वतंत्र हो जाते हैं। | जब करार दबाव के माध्यम से किया जाता है, तो अनुबंध के शून्य होने की संभावना कम होती है। लेकिन अगर पक्ष ने स्वेच्छा से इसके लिए काम किया, तो वह अनुबंध के लिए बाध्य होता है। |
हिरासत | वस्तु को गैर कानूनी रूप से हिरासत में लेना प्रपीड़न के बराबर है। | किसी वस्तु को गैर कानूनी रूप से हिरासत में लेना दबाव की श्रेणी में नहीं आता है। |
दोषसिद्धि | एक व्यक्ति जो अनुबंध में नहीं है या एक अजनबी है, उसके खिलाफ भी प्रपीड़न किया जा सकता है। | लेकिन दबाव में, अनुबंध का पक्ष होना अनिवार्य है। |
क्या आत्महत्या करने की धमकी प्रपीड़न है?
- नहीं, आत्महत्या करने की धमकी देना प्रपीड़न नहीं है।
- अम्मीराजू बनाम शेषम्मा के मामले में, यह देखा गया कि पति द्वारा आत्महत्या करने की धमकी दी गई थी, और उसने अपनी पत्नी से संपत्ति छोड़ने की मांग की। यह देखा गया कि पत्नी पूर्वाग्रह (प्रेजुडिस) से ग्रसित थी और इसे कानून द्वारा प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है। इसलिए यहाँ पति द्वारा आत्महत्या करने की धमकी देना पत्नी पर प्रपीड़न करना है।
- लेकिन भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 15 इस मामले में केवल पूर्वाग्रह से राहत नहीं दे सकती है जो किसी व्यक्ति के अधीन है।
असम्यक् असर
- जब दो पक्षों के बीच एक अनुबंध किया जाता है और उनमें से एक दूसरे पक्ष की इच्छा पर हावी होने की स्थिति में होता है और स्थिति का अनुचित लाभ उठाता है, तो अनुबंध को असम्यक् असर से किया गया कहा जाता है।
- चित्रण-
“A” एक वृद्ध व्यक्ति “B” को अपना सेवक नियुक्त करता है और “B” उसका भतीजा भी है। “B” अपनी संपत्ति का हिस्सा मांगता है और “A” उसे भुगतान करने के लिए सहमत होता है। इस स्थिति में, “A” “B” के असम्यक् असर में है।
- असम्यक् असर का सिद्धांत समानता के सिद्धांत पर आधारित है।
मुख्य विशेषताएं
- दोनों में से किसी एक पक्ष को दूसरे पर हावी होने की स्थिति में होना चाहिए।
- जो पक्ष हावी होने की स्थिति में है उसे पद का अनुचित लाभ उठाना चाहिए।
पक्ष जो असम्यक् असर से प्रभावित हो सकते हैं
- वास्तविक और स्पष्ट अधिकार
- प्रत्ययी (फिड्यूशियरी) संबंध
- माता पिता और बच्चे
- वयस्क बच्चे और माता पिता
- पति और पत्नी
- वकील और मुवक्किल (क्लाइंट)
- डॉक्टर और मरीज
- ट्रस्टी और लाभार्थी
- लेनदार और देनदार
- मकान मालिक और किराएदार
- एक व्यक्ति जिसकी मानसिक क्षमता कम है
- बुढ़ापा
- कच्ची उम्र
असम्यक् असर का प्रभाव
- जब असम्यक् असर के प्रभाव के कारण एक करार किया जाता है, तो भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 19A के अनुसार, उस पक्ष की राय पर इसे शून्य माना जा सकता है जिसकी सहमति इस प्रकार ली गई थी।
सबूत का बोझ
- यह साबित करने की आवश्यकता है कि हावी होने वाले व्यक्ति ने वास्तव में व्यक्ति से असम्यक् असर लिया और यह साबित किया जाना चाहिए कि वह व्यक्ति हावी होने की स्थिति में था।
- केवल एक रिश्तेदार से दूसरे रिश्तेदार को उपहार के हस्तांतरण (ट्रांसफर) को असम्यक् असर नहीं माना जाता है।
परदा-नशीन महिलाओं के साथ एक लेन-देन
- जब किसी स्त्री को परदे से देखा जा सकता है या परदे के पीछे रखा जाता है यानी पर्दा किया जाता है तो उसे पर्दानशीन महिला कहा जाता है।
- पर्दानशीन महिलाओं की सुरक्षा समानता और अच्छे विवेक के सिद्धांत में निहित है।
- परदानशीन महिलाओं के लिए विशेष कानून बनाए गए हैं क्योंकि वे अज्ञानता, दुर्बलता, अशिक्षा आदि के अधीन हैं और इस प्रकार आसानी से प्रभावित हो जाती हैं।
- पर्दानशीन महिलाओं के साथ लेन-देन करने वाले व्यक्ति के खिलाफ सबूत का बोझ प्रदान किया जाना चाहिए। उसे यह साबित करना होगा कि लेन-देन महिला की स्वतंत्र इच्छा से हुआ था और उसका निर्णय उसके द्वारा बिना किसी प्रवर्तन के लिया गया था और उसे लेनदेन के दस्तावेज़ में उल्लिखित प्रावधानों से अवगत कराया गया था।
- पूरे लेन-देन की व्याख्या सबूत के बोझ को स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी।
- तारा कुमारी बनाम चंद्र मौलेश्वर प्रसाद सिंह के मामले में, यह बताया गया कि सबूत के बोझ को स्थापित करने के लिए आवश्यक यह है कि उन्हें निष्पादित (एग्जिक्यूट) करने वाला पक्ष एक स्वतंत्र एजेंट होने चाहिए और महिला को सूचित किया जाना चाहिए कि वह क्या कर रही है।
- कुना देई बनाम मुहम्मद अब्दुल लतीफ के मामले में, यह बताया गया था कि पर्दानशीन महिलाओं को दस्तावेज़ दिखाना सबूत के बोझ को स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। इस प्रकार, उसे यह दिखाना होगा कि लेन-देन के दस्तावेज़ में महिलाओं को तथ्यों को स्पष्ट रूप से समझाया गया था।
प्रपीड़न और असम्यक् असर के बीच अंतर
आधार | प्रपीड़न | असम्यक् असर |
परिभाषा | जब कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को अनुबंध में प्रवेश करने के लिए मजबूर करने के इरादे से भारतीय दंड संहिता के तहत निषिद्ध कार्य करता है या करने की धमकी देता है, या किसी वस्तु को गैरकानूनी रूप से हिरासत में लेता है या ऐसा करने की धमकी देता है, तो इसे प्रपीड़न कहा जाता है। | जब दो पक्षों के बीच एक अनुबंध किया जाता है और उनमें से एक दूसरे पक्ष की इच्छा पर हावी होने की स्थिति में होता है और स्थिति का अनुचित लाभ उठाता है, तो अनुबंध को असम्यक् असर से किया गया कहा जाता है। |
संबन्ध | दोनों पक्षों के बीच संबंध आवश्यक नहीं है। | पक्षों के बीच संबंध इस धारा के तहत सबूत के बोझ को स्थापित करने में मदद करते है। |
उद्देश्य | किसी व्यक्ति को अवैध अनुबंध करने के लिए बाध्य करना। | सत्ता का दुरुपयोग करना और लोगों पर हावी होना, उनका फायदा उठाना। |
अपराध की प्रकृति | आपराधिक अपराध है। | आपराधिक अपराध नहीं है। |
चित्रण | “A” “B” को एक करार में प्रवेश करने का कारण बनता है जो भारतीय दंड संहिता के तहत प्रतिबंधित है। “A” ने यह कार्य तब किया था जब एक अंग्रेजी जहाज गहरे समुद्र में था। “A” मुंबई में अनुबंध के उल्लंघन के लिए “B” पर मुकदमा करता है। इस करार को शून्य माना जाएगा क्योंकि “A” ने प्रपीड़न का इस्तेमाल किया था, हालांकि भारतीय दंड संहिता उस जगह पर लागू नहीं होती थी जहाँ कार्य किया गया था। | “A” एक वृद्ध व्यक्ति “B” को अपना सेवक नियुक्त करता है और “B” उसका भतीजा भी है। “B” अपनी संपत्ति का हिस्सा मांगता है और “A” उसे भुगतान करने के लिए सहमत होता है। इस स्थिति में, “A” “B” के असम्यक् असर में है। |
कपट
- कपट का मतलब एक ऐसा कार्य है जिसमें तथ्यों का झूठा दावा, तथ्यों को छिपाना और किसी व्यक्ति को धोखा देने के इरादे से कोई वादा शामिल है।
- भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 17 के अनुसार जब एक पक्ष धोखा देने के इरादे से दूसरे पक्ष के साथ अनुबंध करता है। पक्ष सीधे दूसरे पक्ष के साथ अनुबंध कर सकता है या यह एक एजेंट की मदद से भी किया जा सकता है।
- चित्रण-
“A” अपने घोड़े को “B” को बेचने के लिए सहमत होता है। “A” को यह ज्ञान था कि घोड़ा विकृत (अनसाउंड) दिमाग का है और उसने “B” को इसकी सूचना नहीं दी। “B” ने “A” से पूछा कि अगर वह इस तथ्य से इनकार नहीं करता है तो “B” घोड़े को स्वस्थ मानेगा और “A” चुप रहा। इस मामले में, मात्र चुप्पी करार के बराबर है, इस प्रकार “A” ने एक कपट का कार्य किया है।
विशेषताएँ
- जब एक पक्ष दूसरे पक्ष से तथ्य को छुपाता है।
- जब एक पक्ष दूसरे पक्ष के लिए कार्य करने का वादा करता है लेकिन वादे को पूरा करने का कोई वास्तविक इरादा नहीं होता है।
- अनुबंध में प्रवेश करने के लिए तथ्यों का गलत प्रतिनिधित्व किया गया है।
- कानून की नजर में कपट माने जाने वाले किसी भी कार्य की चूक।
क्या चुप्पी कपट के बराबर है
- मात्र चुप्पी कपट नहीं है। परन्तु जब बोलना कर्तव्य हो और चुप रहना बोलने के समान हो तो वह कपट है।
- जब दो पक्षों ने एक करार किया है, तो पक्षों को दूसरे पक्ष को हर तथ्य का खुलासा करने के लिए बाध्य नहीं किया जाता है। यह दूसरे पक्ष का कर्तव्य है कि वह चीजों के बारे में पूछताछ करे, न कि यह अपेक्षा करे कि पक्ष आएगा और तथ्य प्रकट करेगा।
- जब कोई व्यक्ति उन तथ्यों पर चुप रहता है जो दूसरे व्यक्ति को धोखा दे सकते हैं, तो उस व्यक्ति को कपट का दोषी ठहराया जा सकता है।
- जसवंत राय बनाम अबनाश कौर के मामले में, यह पाया गया कि विक्रेता ने इस तथ्य को छुपाया कि बेची जाने वाली सामग्री दोषपूर्ण थी। तब यह निर्धारित किया गया था कि तथ्यों का प्रकटीकरण विक्रेता की कपटपूर्ण गतिविधि के समान है।
- बांके फाइनेंसिएरे डे ला साइट एसए बनाम वेस्टगेट इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के मामले में, इसे वार्ता के संदर्भ में दिया गया था, पक्ष बोलने के लिए बाध्य नहीं है।
कपट के प्रभाव
- कपट से किया गया अनुबंध एक शून्यकरणीय अनुबंध है।
- पक्ष जिसके साथ धोखा हुआ को अनुबंध रद्द करने का अधिकार है।
- पक्ष कपटपूर्ण अनुबंध के कारण नुकसान की वसूली के लिए उत्तरदायी है।
दुर्व्यपदेशन
- दुर्व्यपदेशन का अर्थ है तथ्य का झूठा प्रस्तुतीकरण।
- भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 18 के अनुसार, दुर्व्यपदेशन धोखा देने वाली जानकारी का बयान है जिसके परिणामस्वरूप दूसरे पक्ष ने अनुबंध में प्रवेश किया और बाद में उसे नुकसान हुआ। हालाँकि, दोषी पक्ष द्वारा प्रस्तुत की गई जानकारी मामले के बारे में वास्तविक विश्वास का परिणाम है। दुर्व्यपदेशन को सबसे पहले किया हुआ तब कहा जाता है जब धोखा देने वाला व्यक्ति सकारात्मक रूप से दावा करता है कि किसी अन्य को किसी तरह से गुमराह करने वाली जानकारी की गारंटी नहीं है। दूसरा, कर्तव्य का उल्लंघन है जिसके कारण एक या दूसरे का पूर्वाग्रह दाँव पर लगा है। अंत में, गलत तरीके से प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति के कार्य या सूचना के कारण भूल दूसरे द्वारा की गई है।
विशेषताएँ
- यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि झूठा बयान भौतिक तथ्य का था न कि केवल शब्दों का।
- जब एक पक्ष दूसरे पक्ष के समक्ष दुर्व्यपदेशन करता है तो यह सिद्ध किया जाना चाहिए कि पक्ष ने इस तथ्य को सत्य माना है।
- पक्ष को दूसरे पक्ष को अनुबंध में प्रवेश करने के लिए प्रेरित करने के लिए तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना चाहिए था।
प्रकार
दुर्व्यपदेशन दो तरह का होता है:-
लापरवाह दुर्व्यपदेशन
- जब किसी उचित आधार की कमी और लापरवाही के कारण दुर्व्यपदेशन होता है तो इसे एक लापरवाह दुर्व्यपदेशन के रूप में जाना जाता है।
- लापरवाह दुर्व्यपदेशन केवल तभी स्थापित होती है जब प्रतिनिधित्व को सावधानी से संभालने के लिए प्रतिनिधि का कर्तव्य होता है।
- एक व्यक्ति केवल तभी उत्तरदायी होगा जब उसने विशेष रूप से उल्लिखित कर्तव्य की उपेक्षा की हो।
- प्रत्ययी संबंध न होने पर भी दोनों पक्षों के बीच उत्तरदायित्व बना रहता है।
निर्दोष दुर्व्यपदेशन
- जब प्रतिनिधित्व विश्वास करने के लिए अच्छे आधार पर आधारित होता है और इसमें लापरवाही और कपटपूर्ण इरादे का अभाव होता है, तो इसे एक निर्दोष दुर्व्यपदेशन कहा जाता है।
- जब कोई व्यक्ति निर्दोष दुर्व्यपदेशन के साथ एक अनुबंध में प्रवेश करता है तो उसे अनुबंध को रद्द करने का अधिकार है, लेकिन नुकसान उठाने का हकदार नहीं है।
- उचित आधार प्रदान किए बिना एक अनुबंध शून्य नहीं होगा। दुर्व्यपदेशन में बेगुनाही साबित करना तथ्य को स्थापित करने के लिए पर्याप्त होगा।
दुर्व्यपदेशन का प्रभाव
- जब अनुबंध में प्रवेश करते समय दुर्व्यपदेशन के कारण पीड़ित पक्ष अनुबंध को समाप्त करने का विकल्प चुन सकता है तब पक्ष को या तो अनुबंध को रद्द करने या हर्जाने का दावा करने के लिए दो उपाय प्रदान किए जाते हैं।
- हर्जाने के दावे का मतलब है कि अनुबंध बरकरार है और मुकदमे के दौरान पक्ष को धन की क्षति के अधीन किया जाना है।
- निरसन (रिसेशन) का मुकदमा अनुबंध के निष्पादन को समाप्त करना है जो पक्ष को मूल स्थिति में बहाल (रिस्टोर) करता है।
कपट और दुर्व्यपदेशन के बीच अंतर
आधार | कपट | दुर्व्यपदेशन |
अर्थ | कपट का मतलब एक ऐसी कार्रवाई है जिसमें तथ्यों का झूठा दावा, तथ्यों को छिपाना और किसी व्यक्ति को धोखा देने के इरादे से कोई वादा शामिल है। | दुर्व्यपदेशन का अर्थ है तथ्य का झूठा प्रस्तुतीकरण करना। |
परिभाषा | भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 17 के अनुसार, जब एक पक्ष कपट करने के इरादे से दूसरे पक्ष के साथ अनुबंध करता है। पक्ष सीधे दूसरे पक्ष के साथ अनुबंध कर सकता है या यह एक एजेंट की मदद से किया जा सकता है। | भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 18 के अनुसार, दुर्व्यपदेशन धोखा देने वाली जानकारी का बयान है जिसके परिणामस्वरूप दूसरे पक्ष ने अनुबंध में प्रवेश किया और बाद में उसे नुकसान हुआ। हालाँकि, दोषी पक्ष द्वारा प्रस्तुत की गई जानकारी मामले के बारे में वास्तविक विश्वास का परिणाम है। दुर्व्यपदेशन को सबसे पहले किया हुआ तब कहा जाता है जब धोखा देने वाला व्यक्ति सकारात्मक रूप से दावा करता है कि किसी अन्य को किसी तरह से गुमराह करने वाली जानकारी की गारंटी नहीं है। दूसरे, कर्तव्य का उल्लंघन है जिसके कारण एक या दूसरे का पूर्वाग्रह दाँव पर लगा है। अंत में, गलत तरीके से प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति के कार्य या सूचना के कारण भूल दूसरे द्वारा की गई है। |
इरादा | जानबूझकर दूसरे पक्ष को धोखा देने का इरादा होता है। | इरादा एक झूठे तथ्य का प्रतिनिधित्व करते हुए इसे सच मानते हुए वास्तविक इरादा है, धोखा देने का कोई इरादा नहीं होता है। |
हर्जाने का दावा | कपट के मामले में, पीड़ित पक्ष को हर्जाने के लिए दावा करने का अधिकार है | लेकिन दुर्व्यपदेशन के मामले में, पीड़ित पक्ष को हर्जाने का दावा करने का कोई अधिकार नहीं है। |
भूल
- भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 20 के अनुसार, एक अनुबंध को शून्य घोषित किया जाता है जब दोनों पक्षों द्वारा द्विपक्षीय भूल के कारण एक भूल होती है, जो एक करार के लिए अनिवार्यताओं का उल्लंघन करती है।
- चित्रण-
“A” ने “B” के साथ माल बेचने का करार किया। “A” को इस तथ्य की जानकारी नहीं थी कि माल किसी कारण से नष्ट हो गया है। इस मामले में, अनुबंध शून्य होगा क्योंकि जिस आधार पर अनुबंध किया गया था वह मौजूद नहीं है।
कानून की भूल
- लोगों को कानून के बारे में ज्ञान होना चाहिए, उन्हें इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि उन्हें कौन सा कार्य नही करना चाहिए और कौन सा करना चाहिए। और इन परिस्थितियों में कानून की भूल के तथ्य के तहत कोई उपाय प्रदान नहीं किया जाएगा या क्षमा नहीं किया जाएगा।
- राम चंद्र बनाम गणेश चंद्र के मामले में, यह देखा गया कि शिकायतकर्ता ने प्रतिवादी के साथ कोयला खनन के पट्टे के करार में प्रवेश किया। करार के अनुसार, शिकायतकर्ता ने प्रतिवादी को अग्रिम (एडवांस) भुगतान किया। लेकिन प्रिवी काउंसिल और कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले ने पक्षों के बीच कानून की समझ पर सवाल उठाया। इस प्रकार शिकायतकर्ता ने अनुबंध को जारी रखने से इनकार कर दिया और प्रतिवादी पर धनवापसी के लिए मुकदमा दायर किया। कूपर बनाम फिब्स का उदहारण लेते हुए, यह माना गया कि शिकायतकर्ता उसके द्वारा भुगतान किए गए धन वापसी का हकदार होगा।
तथ्य की भूल
- जब एक द्विपक्षीय भूल के कारण अनुबंध शून्य हो जाता है, तो यह तथ्य की भूल के अधीन होता है न कि कानून की भूल के। जब पक्षों के बीच कोई गलतफहमी होती है या तथ्यों की भूल होती है तो इसे तथ्य की भूल कहा जाता है।
द्विपक्षीय
- जब दोनों पक्ष तथ्यों की भूल के तहत अनुबंध में भूल करते हैं, तो भूल को द्विपक्षीय भूल माना जाता है। यह मन के मिलन की कमी के कारण होता है, जो स्वतंत्र सहमति के गठन के लिए एक आवश्यक तत्व है। इस प्रकार अनुबंध शून्य हो जाता है।
- द्विपक्षीय भूल दो प्रकार की होती है:-
- आपसी भूल
- सामान्य भूल
- चित्रण-
“A” अपनी कार “B” को बेचने के लिए सहमत होता है। लेकिन यह पता चला कि उनकी कार चोरी हो गई थी और करार करते समय उन्हें इस तथ्य की जानकारी नहीं थी। इस प्रकार यह अनुबंध शून्य माना जाएगा।
विषय वस्तु के रूप में द्विपक्षीय भूल
विषय वस्तु का अस्तित्व
- जब दोनों पक्षों ने किसी ऐसे विषय पर करार किया है जो मौजूद नहीं है, तो अनुबंध को शून्य माना जाएगा।
विषय वस्तु की गुणवत्ता
- जब दोनों पक्षों ने किसी विषय वस्तु पर एक करार किया है और यह पाया गया है कि गुणवत्ता उससे भिन्न है जिसका उल्लेख किया गया था। लेकिन द्विपक्षीय भूल के मामले में, अनुबंध शून्य माना जाएगा।
विषय वस्तु की पहचान
- जब दोनों पक्षों ने किसी विषय वस्तु की पहचान पर एक करार किया है और यह अलग है तो अनुबंध शून्य हो जाता है।
अनुबंध के निष्पादन की संभावना के रूप में भूल
शारीरिक असंभवता
- जब एक करार किया जाता है और यह पाया जाता है कि विषय वस्तु अब उपलब्ध नहीं है, तो पक्षों के लिए दायित्व के अपने हिस्से को निष्पादित करना असंभव हो जाता है। इसे निष्पादित करने के लिए एक भौतिक असंभवता माना जाता है, इस प्रकार अनुबंध शून्य हो जाता है।
- चित्रण-
“A” ने “B” के साथ माल बेचने का करार किया। “A” को इस तथ्य की जानकारी नहीं थी कि माल किसी कारण से नष्ट हो गया है। इस मामले में, अनुबंध शून्य होगा क्योंकि जिस आधार पर अनुबंध किया गया था वह मौजूद नहीं है।
कानूनी असंभवता
- जब दो देशों के बीच कोई करार किया जाता है, लेकिन देखा जाता है कि देशों के बीच युद्ध होता है। इस प्रकार देशों के बीच अनुबंध कानूनी रूप से असंभव हो जाता है।
- चित्रण-
“A” एक देश 20 साल के लिए एक करार में पेट्रोलियम निर्यात (इंपोर्ट) करने के लिए “B” दूसरे देश के साथ एक अनुबंध में प्रवेश करता है। लेकिन 10 साल बाद देखा गया कि युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई, इस प्रकार सभी आंतरिक निर्यात बंद कर दिए गए। इस मामले में, “A” कानूनी रूप से “B” के साथ अनुबंध समाप्त करने के लिए बाध्य है।
संदर्भ
- 1949] 2 AII ER 1107
- (1917) 32 MLJ 494
- (1932) 34 BOMLR 222
- AIR 1994 Ori 111
- ILR 1974 Delhi 689
- [1989]2 AII ER 952
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