स्वतंत्र निदेशकों की विश्वसनीयता और जवाबदेही

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Companies Act 2013

यह लेख Shubhanshu Singhai द्वारा लिखा गया है, जो यूएस कॉरपोरेट लॉ फॉर कंपनी सेक्रेटरी में डिप्लोमा कर रहे हैं और Shashwat Kaushik द्वारा संपादित किया गया है। इस लेख में स्वतंत्र निदेशकों (डायरेक्टर) की विश्वसनीयता और जवाबदेही के बारे में चर्चा की गई है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta के द्वारा किया गया है।

परिचय

“स्वतंत्र निदेशकों की विश्वसनीयता और जवाबदेही की जांच के लिए निगरानी” एक ऐसा विषय है जो कॉर्पोरेट प्रशासन से संबंधित है। स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका यह सुनिश्चित करना है कि कंपनियों के मामलों को नैतिक और कानूनी रूप से प्रबंधित किया जाए। हाल ही में, स्वतंत्र निदेशकों की विश्वसनीयता और जवाबदेही पर विशेष रूप से कंपनी या किसी अन्य व्यक्तिगत मामलों के साथ उनके वित्तीय संबंधों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। बढ़ते घोटालों और धोखाधड़ी के कारण स्वतंत्र निदेशकों पर ध्यान बढ़ गया है।

घोटालों के युग ने बाद के दशकों में देश की व्यवस्था और आर्थिक हड्डियों को हिला कर रख दिया है। ये हड्डियाँ इसकी कंपनियाँ मानी जाती हैं। उन्हें देश की हड्डी माना जाता है क्योंकि वे देश में समृद्धि लाने के लिए जिम्मेदार हैं। लेकिन क्या होगा अगर वे सभी घोटालों और धोखाधड़ी में शामिल हों जाए?

जैसा कि हम सभी जानते हैं, बड़े निगमों का किसी देश, उसके लोगों और उसकी आर्थिक नीतियों पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। इसलिए, कंपनी में एक छोटी सी गड़बड़ी भी गंभीर प्रभाव डाल सकती है।

अपने निवेशकों और आम जनता के लिए कंपनी की संरचना और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए, कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 149(6) में ‘स्वतंत्र निदेशक’ नाम का एक व्यक्ति है।

एक स्वतंत्र निदेशक कंपनी का एक असंबद्ध (अनरिलेटेड) व्यक्ति होता है जिसकी कंपनी में कोई दिलचस्पी नहीं होती है और कंपनी के दैनिक कामकाज में भाग लिए बिना कंपनी के कामकाज की देखभाल के लिए जिम्मेदार होता है। वह, जैसा कि उसके नाम से पता चलता है, किसी भी बाहरी प्रभाव से ‘स्वतंत्र’ होता है, उसकी एक सलाहकार की भूमिका होती है, और वह कंपनी से परामर्श करता है ताकि वह कुछ ऐसा गैरकानूनी न करे जो भविष्य में हानिकारक हो सकता है।

स्वतंत्र निदेशक कौन है

कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के अनुसार, एक स्वतंत्र निदेशक एक बाहरी व्यक्ति होता है जो कंपनी के लोगों से संबंधित नहीं होता है। उन्हें महत्वपूर्ण जनहित वाली कंपनियों में नियुक्त किया जाना अनिवार्य है और यह कॉर्पोरेट प्रशासन को बढ़ावा दे सकता है। कॉर्पोरेट प्रशासन के गठन में स्वतंत्र निदेशक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि विशेषज्ञ अभी भी इन निदेशकों की स्वतंत्रता के बारे में सवाल उठाते हैं, लेकिन उनके और हितधारकों के बीच संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है।

उन्हें अपने कर्तव्यों, कार्यों, शक्तियों और सदस्यों या हितधारकों की अपेक्षाओं के बारे में ठीक से अवगत कराया जाना चाहिए ताकि कंपनी मुनाफा कमा सके। अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते समय, उन्हें स्वतंत्र निदेशकों पर वर्ष 2020 में जारी किए गए मार्गदर्शन नोट का पालन करना चाहिए। इस मार्गदर्शन नोट से सेबी विनियमों (रेगुलेशन) और कंपनी अधिनियम में कुछ संशोधन हुए है।

सूचीबद्ध कंपनियों के मामले में कोरम बनाए रखने के लिए उनसे कंपनी की बोर्ड बैठकों और अन्य समिति की बैठकों में भाग लेने की भी उम्मीद की जाती है। जहां कंपनी सूचीबद्ध नहीं है, वे ऐसी बैठकों में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं हैं।

एक स्वतंत्र निदेशक की योग्यता

एक स्वतंत्र निदेशक के पास वित्त, कानून, प्रबंधन, बिक्री, विपणन (मार्केटिंग), प्रशासन, अनुसंधान (रिसर्च), कॉर्पोरेट प्रशासन, तकनीकी संचालन, या कंपनी के व्यवसाय से संबंधित अन्य कार्यक्षेत्र के एक या अधिक कार्यक्षेत्र में उचित कौशल, अनुभव और ज्ञान होना चाहिए।

एक स्वतंत्र निदेशक को निम्न होना चाहिए: –

  • वह उच्च निष्ठा वाला व्यक्ति होना चाहिए और उसके पास आवश्यक विशेषज्ञता और अनुभव होना चाहिए।
  • उसका कंपनी के प्रवर्तकों (प्रमोटर्स) या निदेशकों के साथ कोई करीबी संबंध नहीं होना चाहिए।
  • पिछले दो वित्तीय वर्षों या सीएफवाई के दौरान उसके रिश्तेदारों की कंपनी की होल्डिंग्स, सहायक कंपनियों आदि में कोई दिलचस्पी नहीं होनी चाहिए।
  • उसे पिछले दो वित्त वर्ष या सीएफवाई के दौरान किसी भी तरह से कंपनी का ऋणी नहीं होना चाहिए।

एक स्वतंत्र निदेशक की नियुक्ति

स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति कंपनी के शेयरधारकों द्वारा की जानी चाहिए, और उन्हें अपने निदेशकों को चुनते समय बहुत परिश्रमी होना चाहिए क्योंकि उन्हें कंपनी की रीढ़ माना जाता है। स्वतंत्र निदेशक भारतीय या किसी अन्य देश से हो सकता है, लेकिन किसी अन्य देश से स्वतंत्र निदेशक नियुक्त करने वाली कंपनी को कंपनी अधिनियम के तहत केंद्र सरकार से पूर्व अनुमति लेनी होगी। हालाँकि, एक स्वतंत्र निदेशक की नियुक्ति से जुड़े कुछ नियम और शर्तें हैं जो भारतीय मूल के नहीं हैं।

कंपनी के प्रत्येक निदेशक को अपना नाम, निवास और अन्य विवरणों का खुलासा करना चाहिए जैसा कि सूचीबद्ध किया जा सकता है। निदेशक के पास अपने पद से इस्तीफा देने का भी विकल्प है। जब निदेशक ने इस्तीफा दे दिया है, तो उसे दायित्व से मुक्त करने के लिए कंपनी को ऐसी जानकारी का वितरण साबित करना होगा।

कंपनी (निदेशकों की नियुक्ति और योग्यता) नियम, 2014 ने कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय को उन लोगों का रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए अधिकृत (ऑथराइज्ड) किया है जो स्वतंत्र निदेशकों के रूप में काम करने के इच्छुक हैं, और वे उनका https://www.independentdirectorsdatabank.in/ पर डेटाबैंक में पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) करा सकते है या जोड़ सकते हैं।

नियुक्ति अवधि की समाप्ति के बाद, निदेशक को अगली बोर्ड बैठक में फिर से नियुक्त किया जा सकता है यदि बोर्ड उनके प्रदर्शन से संतुष्ट है और उन्हें और अधिक कार्य करते देखना चाहता है।

एक स्वतंत्र निदेशक की जवाबदेही और विश्वसनीयता का क्या अर्थ है

कंपनी अधिनियम, 2013 की अनुसूची 4 और धारा 149 स्वतंत्र निदेशक की आचार संहिता और उसके कर्तव्यों के बारे में बात करती है।

आम आदमी की भाषा में, जवाबदेही का मतलब ‘जिम्मेदारी’ है। यहां यह शब्द निदेशक की जिम्मेदारियों को संदर्भित करता है।

निदेशकों की जिम्मेदारियां कदाचार और समस्या की गंभीरता में निदेशक की भूमिका को दर्शाती हैं। निवेशक उन निदेशकों को जवाबदेह ठहराने की संभावना रखते हैं जिनकी कंपनी के वित्त में अधिक भूमिका होती है। जैसा कि वे कंपनी की वित्तीय संरचना निर्धारित करते हैं और सभी प्रमुख खर्चों के लिए जिम्मेदार होते हैं।

विश्वसनीयता और जवाबदेही साथ-साथ चलती है। यदि उनमें से एक गिर जाता है, तो दूसरे पर प्रश्न आता है। अगर कोई व्यक्ति विश्वसनीय होगा तभी उसे जिम्मेदारी मिलेगी और उसके बाद ही किसी तरह की अनियमितता (इरेगुलेरिटी) की स्थिति में उसे जवाबदेह ठहराया जाएगा।

विश्वसनीयता को यह भी कहा जा सकता है कि स्वतंत्र निदेशक भरोसेमंद, विश्वसनीय और उसमें निहित जिम्मेदारियों को निभाने में सक्षम है। विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए, एक निदेशक को अधिनियम के अनुसार आचार संहिता का पालन करना चाहिए और उसे सौंपे गए सभी कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को पूरा करना चाहिए।

एक स्वतंत्र निदेशक की स्कैनिंग

स्वतंत्र निदेशकों को स्कैन और जाँचने की आवश्यकता है, चाहे वारंट हो या न हो, और हमने यह उन विभिन्न घोटालों से सीखा है जो अतीत में हुए हैं, जैसे 2G स्पेक्ट्रम घोटाला, जिसमें यह पाया गया था कि स्वतंत्र निदेशक, नौकरशाह और राजनेता अंदर के इच्छुक लोग थे जो घोटाले के लिए जिम्मेदार थे। बाद में उनके खिलाफ जांच शुरू की गई। सीएजी को अभी भी घोटाले का सही आंकड़ा नहीं पता है, लेकिन अनुमानित आंकड़ा 1.76 लाख करोड़ रुपए है। यह घोटाला 2014 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के लिए पतन साबित हुआ था।

स्वतंत्र निदेशकों की विश्वसनीयता जांचने की जरूरत है। किसी भी परेशानी से बचने के लिए समय-समय पर उनके स्रोत, उनके संपर्क, संचार, कनेक्शन, अंदरूनी व्यापार की जांच और गोपनीयता की जांच की जानी चाहिए। ये स्कैन निदेशकों पर स्वयं कंपनी द्वारा, या आईटी अधिकारियों, सीबीआई, आदि द्वारा किए जाते हैं।

स्कैनिंग निदेशक की गोपनीयता में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देती है; अन्यथा कोई भी स्वतंत्र निदेशक बनने को तैयार नहीं होगा। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि यहां निम्न प्रकार की चीज होनी चाहिए-

  • निगरानी तंत्र जो निदेशकों की गोपनीयता में बाधा नहीं डालती हो;
  • स्कैन कानूनी रूप से किया जाना चाहिए और निदेशक की गोपनीयता में बाधा नहीं डालना चाहिए;
  • केंद्र सरकार द्वारा हस्तक्षेप की सीमा स्पष्ट रूप से निर्धारित की जानी चाहिए; और
  • उनके कार्यालय में अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए और निगरानी उद्देश्यों के लिए उनके कार्यालय में कोई गुप्त तार नहीं लगाया जाना चाहिए।

एक स्वतंत्र निदेशक पर कब जांच हो सकती है

ऐसे कई मुद्दे, समस्याएं और कारण हैं जो कंपनी के निदेशकों के खिलाफ जांच का मुद्दा उठा सकते हैं; उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

  • भेदिया व्यापार (इनसाइडर ट्रेडिंग): स्वतंत्र निदेशकों के पास कंपनी से संबंधित बहुत सी महत्वपूर्ण जानकारी होती है जिसका उपयोग लोगों पर लाभ प्राप्त करने और उससे अनुचित लाभ अर्जित करने के लिए किया जा सकता है।
  • विशेषज्ञता की कमी: स्वतंत्र निदेशकों को उन क्षेत्रों में विशेषज्ञ ज्ञान होना चाहिए जिनमें वे प्रभारी हैं; यदि निदेशक के पास ज्ञान या विशेषज्ञता की कमी है, तो इसका परिणाम निदेशकों द्वारा गलत निर्णय लेना हो सकता है और यह उन्हें परेशानी में डाल सकता है।
  • कॉरपोरेट शासन मानदंडों (नॉर्म्स) का उल्लंघन: स्वतंत्र निदेशकों से कॉरपोरेट शासन के अनुपालन की अपेक्षा की जाती है। यदि कोई निदेशक विभिन्न अधिनियमों (भारत में कंपनियों को नियंत्रित करने वाले) के तहत सूचीबद्ध मानदंडों का पालन करने में विफल रहता है और अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ होता है, तो उसके खिलाफ जांच का आदेश दिया जा सकता है।
  • व्यक्तिगत हित: यदि किसी स्वतंत्र निदेशक का कंपनी के मामलों में किसी प्रकार का व्यक्तिगत हित है, तो उसके खिलाफ जांच का आदेश दिया जा सकता है।

कुछ प्रसिद्ध घोटाले

  • सत्यम कांड: ‘सत्यम कंप्यूटर्स’ भारतीय आईटी क्षेत्र का रत्न था। जब घोटाला हुआ उस समय यह भारत की चौथी सबसे बड़ी आईटी कंपनी थी। सत्यम के सीईओ श्री रामलिंगम राजू ने धोखाधड़ी की जिम्मेदारी ली और कहा कि उन्होंने कंपनी के वित्तीय रिकॉर्ड और राजस्व (रेवेन्यू) को बढ़ा-चढ़ाकर बताया है। उन्होंने यह भी कहा कि कंपनी को निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक बनाने के लिए उन्होंने सभी वित्तीय आंकड़ों को अधिक बताया था।

जांच के बाद स्वतंत्र निदेशकों को सवालों के घेरे में लाया गया क्योंकि वे कंपनी में चल रहे वित्तीय धोखाधड़ी का पता लगाने में अक्षम पाए गए और अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ दिखे।

लापरवाही के परिणामस्वरूप, कई स्वतंत्र निदेशकों को कई कानूनी कार्रवाइयों का सामना करना पड़ा, और कंपनी की देखभाल के लिए सरकार द्वारा एक नया बोर्ड गठित किया गया।

  • यस बैंक 2020 संकट: मार्च 2020 में, भारत के प्रमुख वित्तीय बैंक को संकट का सामना करना पड़ा, जिसके कारण इसका प्रशासन आरबीआई ने संभाल लिया था। यस बैंक के सभी स्वतंत्र निदेशकों को सवालों के घेरे में रखा गया क्योंकि वे अपने कर्तव्यों को पूरा करने में असमर्थ थे और कंपनी के प्रबंधन को आवश्यक प्रोटोकॉल के भीतर काम करने का निर्देश देने में असमर्थ थे।

इसके बाद आरबीआई द्वारा एक नई प्रबंधन टीम का गठन किया गया। इसके संस्थापक (फाउंडर) श्री राणा कपूर सहित इसके कई शीर्ष अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया था।

इस संकट ने एक उदाहरण पेश किया कि स्वतंत्र निदेशक के लिए अपने कर्तव्यों का पालन करना और कंपनी की वित्तीय अनियमितताओं की देखभाल करना कितना महत्वपूर्ण है; यदि वे अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हैं, तो जनता का एक बड़ा हिस्सा इससे प्रभावित होगा।

  • नीरव मोदी घोटाला: इस घोटाले में पंजाब नेशनल बैंक के कर्मचारियों ने नीरव मोदी और उनकी कंपनी को विदेशी बैंकों से कर्ज लेने के लिए एक फर्जी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) जारी किया था। एलओयू बिना सहायक के जारी किए गए थे। धोखा करीब 14,000 करोड़ रुपये का था। स्वतंत्र निदेशक की लापरवाही और अक्षमता को उठाया गया क्योंकि वे उस वित्तीय धोखाधड़ी की पहचान करने में असमर्थ थे जो वर्षों से चल रही थी जब तक कि एक विदेशी बैंक ने बैंक द्वारा जारी एलओयू की प्रामाणिकता पर प्रश्न चिह्न नहीं लगाया। वे लापरवाह थे और कंपनी के वित्त की जांच करने के अपने कर्तव्य को निभाने में सक्षम नहीं थे और इतनी बड़ी राशि की वित्तीय त्रुटि का पता नहीं लगा सके। इसने कंपनी के स्वतंत्र निदेशकों के खिलाफ जांच की और उनमें से अधिकांश को हटा दिया।

निष्कर्ष

स्वतंत्र निदेशकों को कंपनी की गैर-निष्पादित (नॉन परफॉर्मेंस) संपत्ति के रूप में दिखाया और दर्शाया जाता है; जब तक उनका मुख्य कार्य नहीं हो जाता, तब तक उन्हें हमेशा एक अनावश्यक जरूरत के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। वे इन बड़े निगमों में जनता के एजेंट की तरह काम करते हैं और व्यापार के लिए एक गैर कपटपूर्ण वातावरण बनाने के लिए जिम्मेदार होते हैं।

जैसा कि हमने उपरोक्त मामलों में देखा है, लापरवाह स्वतंत्र निदेशक इस प्रकार की धोखाधड़ी शुरू करने के लिए जिम्मेदार थे, और उनकी लापरवाही के कारण अर्थव्यवस्था को व्यापक नुकसान हुआ। उन खामियों पर उनकी छोटी सी नज़र एक बड़ा बदलाव ला सकती थी।

इसलिए इस लेख के बाद यह बहुत स्पष्ट है कि स्वतंत्र निदेशक एक नज़र में अनावश्यक लग सकते हैं लेकिन कंपनी की स्थिरता के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकते हैं।

संदर्भ

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