केंद्र शासित प्रदेश और जनजातीय क्षेत्र: भारतीय संविधान के तहत अनुच्छेद 239, 240, 241 और 244

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Constitution of India

यह लेख Aarchie Chaturvedi द्वारा लिखा गया है, जो वर्तमान में नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ, रांची से बीए-एलएलबी कर रही हैं। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 239, 240, 241 और 244 के प्रावधानों और कुछ ऐतिहासिक निर्णयों को शामिल करने वाला एक विस्तृत लेख है। इस लेख का अनुवाद Shreya Prakash के द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

जनता के विपरीत तर्क, वाद के पक्षों के असतत (डिस्क्रीट) दावों और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली बनाम भारत संघ के मामले के दौरान न्यायाधीशों द्वारा प्रस्तुत तर्क और उन तर्क के विभिन्न तरीकों ने फिर से जनता का ध्यान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 239 के प्रावधानों को समझने की दिशा में आकर्षित किया है। इस मामले में विभिन्न विवाद थे कि क्या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के उपराज्यपाल (लेफ्टिनेंट गवर्नर) दिल्ली सरकार के मंत्रिपरिषद (काउंसिल ऑफ़ मिनिस्टर्स) की सहायता और सलाह से बाध्य थे, दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश था या नहीं, क्या अनुच्छेद 73 के प्रावधान दिल्ली के एनसीटी पर लागू थे या नहीं। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद सभी आवाजें खामोश हो गईं, जिसमें कहा गया था कि उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे हैं और मंत्रिपरिषद से असहमत होने की शक्ति भी रखते हैं, यदि ज़रूरत हो तो। अब इस फैसले के पीछे की संवैधानिकता या तर्क को समझने के लिए हमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 239 की बारीकियों के बारे में विस्तार से जानने की जरूरत है।

इसके अलावा, इस लेख में, हम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244 से भी निपटेंगे, जो भारत के एक अन्य क्षेत्र यानी अनुसूचित (शेड्यूलड) क्षेत्रों के लिए कुछ अलग कानून बनाता है।

केंद्र शासित प्रदेशों (यूनियन टेरिटरीज) का प्रशासन

अनुच्छेद 239, जो दिल्ली जैसे केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन से संबंधित है, यहाँ हमारे अध्ययन का प्रतिपादक (एक्सपोनेंट) है। अब केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन के साथ शुरुआत करने से पहले, यह जानना आवश्यक है कि केंद्र शासित प्रदेशों का गठन कैसे होता है।

पहली अनुसूची के भाग C और भाग D के तहत राज्यों और क्षेत्रों को क्रमशः पहली अनुसूची के भाग II के तहत केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा प्रतिस्थापित (रिप्लेस) किया गया था। यह 7वें संशोधन अधिनियम, 1956 में किया गया था।

उस समय केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या छह थी, अर्थात् दिल्ली; हिमाचल प्रदेश; मणिपुर; त्रिपुरा; अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (आइलैंड्स); लैकाडिव; मिनिकॉय और अमीनदीवी द्वीप समूह।

हालाँकि, क्रमिक (सक्सेसिव) संशोधन अधिनियमों के बाद, निम्नलिखित केंद्र शासित प्रदेशों की सूची में शामिल हैं:

  1. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह;
  2. चंडीगढ़;
  3. दादरा और नगर हवेली;
  4. दिल्ली;
  5. दमन और दीव;
  6. लक्षद्वीप;
  7. पुडुचेरी;
  8. जम्मू और कश्मीर;
  9. लद्दाख।

केंद्र शासित प्रदेशों के गठन की आवश्यकता स्वदेशी संस्कृतियों के अधिकारों की रक्षा करना, शासन संबंधी मामलों से संबंधित राजनीतिक उथल-पुथल (टर्मोइल) को टालना आदि थी। इन कारणों से “केंद्र शासित प्रदेश” का दर्जा भारतीय उप-क्षेत्राधिकार (सब- ज्यूरिस्डिक्शन) को सौंपा जा सकता है।

अब वापस आते हैं कि अनुच्छेद 239 किस बारे में बात करता है। अनुच्छेद 239 यह कहते हुए शुरू होता है कि प्रत्येक केंद्र शासित प्रदेश का प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा उस सीमा तक किया जाएगा जैसा वह उचित समझे। एक प्रशासक (एडमिनिस्ट्रेटर) की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जा सकती है जब वह इसकी जरूरत महसूस करता है। उसी अनुच्छेद के खंड (2) में कहा गया है कि राष्ट्रपति किसी राज्य के राज्यपाल (गवर्नर) को एक निकटवर्ती (एडजॉइनिंग) केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक के रूप में नियुक्त कर सकता है और ऐसी नियुक्ति के बाद, राज्यपाल अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकता है और अपनी मंत्रिपरिषद से स्वतंत्र रूप से अपने कार्यों का निष्पादन (एग्जिक्यूशन) कर सकता है।

केंद्र शासित प्रदेशों के लिए विधानमंडल (लेजिस्लेचर) या मंत्रिपरिषद का निर्माण

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 239 A (1) की ओर बढ़ते हुए, जिसमें कहा गया है कि कानून के माध्यम से एक संसद एक निकाय (बॉडी) बना सकती है जो केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी के लिए एक विधानमंडल के रूप में कार्य कर सकती है:

  • निर्वाचित (इलेक्टेड) या आंशिक (पार्टली) रूप से निर्वाचित या आंशिक रूप से नामित (नॉमिनेटेड) व्यक्ति,
  • या मंत्रिपरिषद से मिलकर एक निकाय बना सकती है,
  • या इन दोनों को संसद में निहित संवैधानिक शक्तियों और कार्यों के साथ बना सकते हैं।

अनुच्छेद 239A के खंड (2) में आगे कहा गया है कि उपर्युक्त खंड (1) में उल्लिखित किसी भी चीज के बावजूद, जिसका संविधान में संशोधन का प्रभाव है या अनुच्छेद 368 के माध्यम से संविधान में कोई संशोधन है, उसे संविधान में संशोधन या परिवर्तन होना नहीं माना जाएगा।

दिल्ली के संबंध में विशेष प्रावधान

दिल्ली के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 239 AA के तहत विधानमंडल के निर्माण या मंत्रिपरिषद के निर्माण के लिए विशेष प्रावधान निहित हैं। इसमें कहा गया है कि संविधान (69वां संशोधन) अधिनियम, 1991 की शुरुआत से, दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली कहा जाएगा और उसके बाद नियुक्त प्रशासक को उपराज्यपाल कहा जाएगा।

वर्तमान में दिल्ली सरकार, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और उसके 11 जिलों को नियंत्रित करने वाली प्राधिकरण (अथॉरिटी) है। दिल्ली सरकार के निकाय में न्यायपालिका, विधानमंडल और उपराज्यपाल की अध्यक्षता वाली कार्यपालिका शामिल हैं।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए विधान सभा (लेजिस्लेटिव असेंबली)

अनुच्छेद 239 AA के खंड (2) (a) में यह भी कहा गया है कि दिल्ली के एनसीटी में एक विधान सभा का गठन किया जाएगा, जिसके सदस्यों का चयन क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों (कॉन्स्टीट्यूएंसी) से सीधे चुनाव की प्रक्रिया द्वारा किया जाएगा।

सदस्यों की कुल संख्या, अनुसूचित जातियों के सदस्यों का आरक्षण (रिजर्वेशन), राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का क्षेत्रीय विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली को निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित करने का आधार और विधान सभा के कामकाज से संबंधित ऐसे अन्य सभी मामले हैं, जो अनुच्छेद 239AA के खंड (2) (b) में बताए गए अनुसार संसद के प्रत्यक्ष पर्यवेक्षण (ऑब्जर्वेशन) और नियंत्रण में है।

अनुच्छेद 239 AA के खंड (2) (c) में यह भी उल्लेख किया गया है कि अनुच्छेद 324 से 327 और 329 के प्रावधान राज्य, राज्य की विधान सभा और राज्य की विधान सभा के सदस्यों पर लागू होते हैं, और उसी तरह, दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली की विधान सभा और उसके सदस्यों पर भी लागू होंगे।

विधान सभा को राज्य सूची (स्टेट लिस्ट) और समवर्ती सूची (कंकर्रेंट लिस्ट) में सूचीबद्ध मामलों के लिए कानून बनाने का भी अधिकार है, जहां तक ​​राज्य सूची की प्रविष्टि (एंट्री) 1, 2 और 18 से संबंधित मामलों को छोड़कर केंद्र शासित प्रदेशों के लिए ऐसा कोई मामला प्रासंगिक है और उसी सूची की प्रविष्टि 64, 65 और 66 के मामले यदि वे प्रविष्टि 1, 2 और 18 के संबंध में हैं।

हालांकि, अनुच्छेद 239 AA के खंड (3) (b) में कहा गया है कि उपर्युक्त खंड में कुछ भी संसद की शक्तियों को केंद्र शासित प्रदेशों या किसी भी हिस्से के मामलों के संबंध में कोई कानून बनाने से नहीं रोकेगा या बाधित नहीं करेगा।

फिर भी विधान सभा की शक्तियों को अनुच्छेद 239 AA के खंड (3) (c) द्वारा प्रतिबंधित किया गया है जिसमें कहा गया है कि किसी भी मामले पर बनाया गया कोई भी कानून जो संसद के कानून या किसी अन्य पहले के कानून के लिए अस्वीकार्य है, उस हद तक ऐसी अस्वीकार्यता शून्य होगी। यहां तक ​​कि जब विधान सभा द्वारा पारित कानून के बाद संसद द्वारा एक कानून पारित किया जाता है, और विधान सभा द्वारा पारित कानून तब संसद द्वारा पारित कानून के अनुसार अस्वीकार्य हो जाता है, तो वह कानून अस्वीकार्यता की सीमा तक शून्य होगा।

यदि विधान सभा द्वारा बनाया गया कोई कानून राष्ट्रपति की सहमति की प्रतीक्षा कर रहा है और राष्ट्रपति उस पर अपनी सहमति देते हैं, तो वह कानून राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में लागू होगा।

बशर्ते इस उपखंड में यह भी है कि कोई भी बात संसद को विधान सभा द्वारा बनाए गए कानून को जोड़ने या बदलने या संशोधित करने या निरस्त (कैंसल) करने के लिए कोई कानून बनाने से सीमित नहीं करेगी।

मंत्रिपरिषद

अनुच्छेद 239 AA का खंड (4) राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के संबंध में मंत्रिपरिषद के बारे में बात करता है।

  • इसमें कहा गया है कि मंत्रिपरिषद की कुल संख्या विधान सभा के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।
  • मुख्यमंत्री, मंत्रिपरिषद के प्रमुख होगे।
  • मुख्यमंत्री को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाएगा और अन्य मंत्रियों को भी मुख्यमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाएगा और यह राष्ट्रपति की इच्छा के दौरान अपने पद धारण करेंगे (अनुच्छेद 239 AA के खंड (5))।
  • इस प्रकार निर्वाचित मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से विधान सभा के प्रति उत्तरदायी रहेगी (अनुच्छेद 239 AA के खंड (6))।
  • मुख्यमंत्री के कर्तव्य में उपराज्यपाल को अपने कार्यों के निष्पादन में सहायता और सलाह देना शामिल है, जब तक कि उपराज्यपाल को अपने विवेक से कानून बनाने का अधिकार नहीं है। यदि उपराज्यपाल और उनके मंत्रियों के बीच मतभेद के संबंध में कोई विवाद है तो विवाद को राष्ट्रपति के पास भेजा जाना चाहिए जिसका निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होगा। फिर भी, तत्काल स्थितियों में, जहां उपराज्यपाल को लगता है कि राष्ट्रपति के फैसले की प्रतीक्षा करने से उन स्थितियों की तुलना में बदतर प्रभाव पड़ सकता है, उपराज्यपाल को राष्ट्रपति के अगले आदेश तक तत्काल कार्रवाई करने का अधिकार है।

पूर्वोक्त (एफोरसेड) प्रावधानों को प्रभावी या पूरक (सप्लीमेंट) करने की संसद की शक्ति 

अनुच्छेद 239 AA के खंड (7) (a) के तहत संसद के पास ऊपर बताए गए किसी भी प्रावधान को बढ़ाने या उसके परिणामस्वरूप होने वाले किसी भी मामले के संबंध में कानून बनाने की शक्ति है।

हालांकि, खंड (7) (b) में यह भी कहा गया है कि उपर्युक्त खंड के तहत बनाया गया कोई भी कानून अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन नहीं होगा।

इस अनुच्छेद के खंड (8) में आगे कहा गया है कि अनुच्छेद 239B के प्रावधान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, उपराज्यपाल और विधान सभा पर उसी तरह लागू होंगे जैसे यह केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी, पुडुचेरी के प्रशासक और पुडुचेरी की विधानमंडल पर क्रमशः लागू होते हैं। इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि अनुच्छेद 239A के खंड (1) के किसी भी संदर्भ को इस अनुच्छेद (अर्थात अनुच्छेद 239 AA) और अनुच्छेद 239AB जैसा भी मामला हो, का संदर्भ माना जाएगा।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली बनाम भारत संघ

अब, अनुच्छेद 239 AA के प्रावधानों की व्याख्या करने के बाद, जो दिल्ली से संबंधित है, आइए लेख की शुरुआत में उल्लिखित एनसीटी ऑफ दिल्ली बनाम भारत संघ के प्रसिद्ध मामले पर वापस आते हैं और इसकी मूल बातें समझने की कोशिश करते हैं। अनुच्छेद 239 AA के अनुसार, सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और कानून केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में हैं जबकि राज्य सूची या समवर्ती सूची में अन्य मामले जहां तक ​​वे केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होते हैं, वे विधानसभा के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। 

वर्तमान परिदृश्य में दिल्ली, शासन के 3 पैमानों में विभाजित है:

  • एक उपराज्यपाल के माध्यम से निर्वाचित केंद्र सरकार के नियंत्रण में पहला क्षेत्र प्रशासक के रूप में मौजूद है;
  • दिल्ली विधानसभा के निर्वाचित प्रतिनिधियों (विधायकों) की देखरेख में दूसरा क्षेत्र;
  • तीसरा नगर निकायों के निर्वाचित प्रतिनिधियों (महापौर (मेयर) और पार्षद (कॉर्पोरेटर्स)) के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र हैं, जिनमें से प्रबंधन और नियंत्रण, केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त आयुक्तों के हाथों में है।

मामले की जड़ दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ आम आदमी पार्टी (दिल्ली सरकार) द्वारा दायर अपील में निहित है, जिसमें कहा गया है कि उपराज्यपाल क्षेत्र का एकमात्र प्रशासक है। केंद्र ने 21 मई, 2015 को उपराज्यपाल को कुछ अधिकार प्रदान करते हुए एक शब्द पारित किया, जो आम आदमी पार्टी के दावे के अनुसार “अभूतपूर्व (अनप्रेसिडेंटेड) शक्तियां” थे। तब से आम आदमी पार्टी और उपराज्यपाल के बीच झड़पें (क्लैशेज) हुईं, जिसके बाद हड़ताल, विरोध आदि हुए, जिसके कारण यह मुकदमा अंततः वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय में न्याय के अनुरोध के लिए सुनवाई के लिए दायर किया गया।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनाए गए निर्णय में निम्नलिखित मुख्य बिंदु थे:

  • इस संबंध में फैसला देते हुए मुख्य न्यायाधीश मिश्रा ने कहा कि उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे हैं। वह अपने दम पर कार्रवाई नहीं कर सकते है। मंत्रिपरिषद को अपने निर्णय से उपराज्यपाल को अवगत कराना होता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मंत्रिपरिषद उपराज्यपाल की परिषद की सिफारिश से बाध्य है। पीठ (बेंच) के सभी पांच न्यायाधीशों ने भी इस बात पर सहमति जताई।
  • न्यायमूर्ति चंद्रचूद ने टिप्पणी की कि उपराज्यपाल की सहमति हर मामले में प्राप्त करना अनिवार्य नहीं था। न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने भी इस पहलू पर अपना दृष्टिकोण जोड़ा कि निर्वाचित सरकार की राय और निर्णय का सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन संविधान यह प्रावधान नहीं करता है कि उपराज्यपाल को सरकार के सभी निर्णयों से सहमत होना चाहिए।
  • न्यायाधीशों ने कहा कि “दिल्ली के एनसीटी की स्थिति सुई जेनरिस (अद्वितीय) है और उपराज्यपाल की स्थिति भी राज्यपाल की नहीं है। वह एक सीमित अर्थ में ही प्रशासक बना रहता है। इन कारकों ने ही, न्यायाधीशों के अनुसार दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के रूप में विशेष दर्जा दिया। पीठ ने यह भी कहा कि यह क्षेत्र उपराज्यपाल के नियंत्रण में होगा।

न्यायमूर्ति चंद्रचूद ने इस बिंदु पर कहा कि अदालत को लोकतंत्र के मूल्यों के साथ जारी रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि वास्तविक शक्ति और वास्तविक जवाबदेही लोकतांत्रिक शासन में निर्वाचित प्रतिनिधियों में निहित है। लोगों की संप्रभुता (सोवरेनिटी), शासन का लोकतांत्रिक तरीका और धर्मनिरपेक्षता (सेकुलरिज्म) संविधान के अंतर्निहित (इंट्रिसिक) हैं। मूल संरचना (बेसिक स्ट्रक्चर), घटक शक्ति के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाती है जिसे उनके अनुसार इस मामले में भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।

दिल्ली और पुडुचेरी के क्रमशः उपराज्यपाल और राज्यपाल के बीच अंतर के बिंदु

दिल्ली और पुडुचेरी दोनों में काफी समान प्रशासन और प्रबंधन है। हालांकि, इन दोनों जगहों के संदर्भ में उपराज्यपाल के कामकाज की बात करें तो कुछ अंतर हैं। इन अंतरों को नीचे समझाया गया है:

दिल्ली के उपराज्यपाल पुडुचेरी के राज्यपाल
दिल्ली के उपराज्यपाल को पुडुचेरी के राज्यपाल से अधिक शक्ति प्राप्त है। पुडुचेरी के राज्यपाल के पास दिल्ली के उपराज्यपाल से कम शक्ति है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम (गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली एक्ट), 1991, और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के व्यापार के लेन-देन नियम (ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस ऑफ द गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली रूल्स), 1993, दिल्ली के उपराज्यपाल का मार्गदर्शन करते हैं। पुडुचेरी के राज्यपाल को केंद्र शासित प्रदेशों की सरकार अधिनियम (गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटोरीज एक्ट), 1963 द्वारा निर्देशित किया जाता है।
दिल्ली की विधान सभा को कानून और व्यवस्था को छोड़कर सभी विषयों पर कानून बनाने की शक्ति है। दिल्ली में, केंद्र की आंख और कान के रूप में कार्य करने वाले उपराज्यपाल की भूमिका के विपरीत केंद्र की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण है। पुडुचेरी में विधान सभा राज्य सूचियों और समवर्ती सूचियों के तहत किसी भी मामले पर कानून बना सकती है, हालांकि यह कानून के उल्लंघन में नहीं होना चाहिए।

संवैधानिक तंत्र (कांस्टीट्यूशनल मशीनरी) की विफलता के मामले में प्रावधान

अनुच्छेद 239AB संवैधानिक तंत्र की विफलता के मामलों में प्रावधान के बारे में बात करता है। अब इसे समझने के लिए यह समझना जरूरी है कि संवैधानिक तंत्र क्या है।

संवैधानिक तंत्र से तात्पर्य निर्वाचित व्यक्तियों के निकाय या किसी विशेष क्षेत्र की सरकार से है, जो उस भूमि के संविधान के प्रावधानों के अनुसार विशेष क्षेत्र के मामलों का प्रबंधन करने के लिए बाध्य हैं। हालाँकि, यदि कुछ परिस्थितियों में संवैधानिक तंत्र की विफलता होती है, तो राष्ट्रपति को कार्रवाई करनी होती है।

उपराज्यपाल से एक रिपोर्ट प्राप्त होने पर या यदि वह अन्यथा संतुष्ट है कि कुछ ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसके तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के प्रशासन को अनुच्छेद 239AA के तहत या इसके लिए सहमत किसी कानून के तहत जारी रखना मुश्किल है, या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के उपयुक्त प्रशासन के लिए ऐसा करना एक आवश्यक शर्त है, फिर अनुच्छेद 239 AA के तहत किए गए किसी भी ऑपरेशन को निलंबित किया जा सकता है या किसी भी प्रावधान के तहत एक निर्दिष्ट अवधि के लिए और इस तरह की निर्दिष्ट शर्तों के तहत प्रदान की गई शर्तों के तहत निलंबित किया जा सकता है। राष्ट्रपति राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के उचित प्रशासन के लिए अनुच्छेद 239 A और अनुच्छेद 239 AA के तहत इस तरह के कानून के परिणामस्वरूप कोई भी प्रावधान कर सकते हैं।

विधानमंडल के अवकाश के दौरान अध्यादेश (ऑर्डिनेंस) को प्रख्यापित (प्रोमुलगेट) करने की प्रशासक की शक्ति: अनुच्छेद 239 B

इस अनुच्छेद को समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि अध्यादेश क्या होता है। एक अध्यादेश एक ऐसा कानून है जिसे किसी शहर, आयोग या देश द्वारा उन उद्देश्यों के लिए अधिनियमित (इनैक्ट) किया जा सकता है, जिनका उल्लेख संघीय कानूनों या राज्य कानूनों में नहीं किया गया है। कुछ उदाहरण सुरक्षा और भवन विनियम (रेगुलेशंस) हैं।

दूसरी ओर प्रख्यापित का अर्थ है आधिकारिक उद्घोषणा (प्रोक्लेमेशन) द्वारा एक कानून (या यहाँ एक अध्यादेश) को क्रियान्वित करना।

अब, यदि हम अनुच्छेद 239B को समझने के लिए आगे बढ़ते हैं, तो हम देखते हैं कि यह बताता है कि किसी भी समय को छोड़कर जब [केंद्र शासित प्रदेश (पुडुचेरी)] का विधानमंडल सत्र (सेशन) में है, यदि प्रशासक ऐसा महसूस करता है या संतुष्ट है कि ऐसी परिस्थितियां मौजूद हैं जो उसके लिए तत्काल कार्रवाई करना आवश्यक है, तो प्रशासक ऐसे अध्यादेशों को प्रख्यापित कर सकता है जो उन्हें लगता है कि आवश्यक हैं।

हालांकि, किसी भी अध्यादेश को प्रख्यापित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी यदि राष्ट्रपति द्वारा उस विशेष मामले में निर्णय दिया जाता है, जिसके लिए अध्यादेश को प्रख्यापित करना आवश्यक था।

यह खंड आगे यह भी उल्लेख करता है कि विधानमंडल के विघटन (डिजोल्यूशन) या निलंबन (सस्पेंशन) की अवधि के दौरान प्रशासक एक अध्यादेश को प्रख्यापित नहीं करेगा यदि विधायिका का ऐसा निलंबन या विघटन 239A के खंड (1) या ऐसे किसी अन्य कानून के तहत था।

अनुच्छेद 239B का खंड (2) उन अध्यादेशों के बारे में बात करता है जो राष्ट्रपति की देखरेख में राष्ट्रपति के निर्देशों का पालन करने के बाद प्रख्यापित होते हैं। यह खंड कहता है कि ऐसे सभी निर्देशों को केंद्र शासित प्रदेश के विधानमंडल का कार्य माना जाएगा। लेकिन ऐसा हर अध्यादेश:

  • केंद्र शासित प्रदेश के विधानमंडल के समक्ष रखा जाना चाहिए और विधानमंडल के पुन: संयोजन के समय से छह सप्ताह की समाप्ति के बाद समाप्त हो जाना चाहिए।
  • और ऐसा कोई भी अध्यादेश, जिसे राष्ट्रपति के मार्गदर्शन में पारित किया गया था, ऐसी वापसी के लिए राष्ट्रपति से सहमति प्राप्त करने पर प्रशासक द्वारा निरस्त किया जा सकता है।

इस अनुच्छेद में एक और खंड है जो खंड (3) है, जिसके तहत यह उल्लेख किया गया है कि जब कोई अध्यादेश केंद्र शासित प्रदेश के विधानमंडल में अधिनियमित होने पर वैध नहीं होता है और उस संबंध में प्रावधानों और अनुच्छेद 239 A (1) या ऐसा कोई अन्य कानून को ध्यान में रखकर बनाया गया है, तो वह अध्यादेश शून्य होगा।

कुछ केंद्र शासित प्रदेशों के लिए विनियम बनाने की राष्ट्रपति की शक्ति

राष्ट्रपति की इन शक्तियों पर संविधान के अनुच्छेद 240 के तहत चर्चा की गई है। राष्ट्रपति केंद्र शासित प्रदेश की शांति, प्रगति और अच्छी सरकार के लिए नियम बना सकते हैं:

  1. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह;
  2. लक्षद्वीप;
  3. दादरा और नगर हवेली;
  4. दमन और दीव;
  5. पुडुचेरी।

फिर भी, इस संबंध में राष्ट्रपति की शक्तियों पर प्रतिबंध है। राष्ट्रपति अपनी शक्तियों का प्रयोग केवल तभी करेंगे जब केंद्र शासित प्रदेश के विधानमंडल को अनुच्छेद 239 A के खंड (1) के अनुसार किसी भी कानून के संबंध में निलंबित या भंग कर दिया गया हो। राष्ट्रपति विधानमंडल बनने के बाद अर्थात विधानमंडल के गठन के बाद पहली बैठक के लिए अनुमोदित (अप्रूव्ड) तारीख से अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं करेंगे।

दूसरी ओर, अनुच्छेद 240 के खंड (2) में कहा गया है कि संसद द्वारा बनाए गए किसी भी अधिनियम में संशोधन के लिए केंद्र शासित प्रदेश के लिए बनाया गया कोई भी कानून, जब राष्ट्रपति द्वारा प्रख्यापित किया जाता है, तो उस पर संसद के किसी भी अधिनियम के रूप में केंद्र शासित प्रदेश जैसे ही समान प्रभाव पड़ेगा।

केंद्र शासित प्रदेशों के लिए उच्च न्यायालय

संविधान के अनुच्छेद 241 के अनुसार, खंड (1), संसद कानून द्वारा एक केंद्र शासित प्रदेश के लिए एक उच्च न्यायालय का गठन कर सकती है या संविधान द्वारा किए गए ऐसे किसी भी उद्देश्य के लिए क्षेत्र में एक अदालत को उच्च न्यायालय बना सकती है।

अनुच्छेद 241 के खंड (2) में आगे कहा गया है कि भाग V और भाग VI के प्रावधान उपरोक्त खंड में उल्लिखित केंद्र शासित प्रदेशों के उच्च न्यायालयों पर उसी तरह लागू होंगे जैसे वे अनुच्छेद 214 के तहत अन्य उच्च न्यायालयों पर लागू होते हैं जब तक कि कोई प्रावधान या विनिर्देश (स्पेसिफिकेशन) नहीं है, जैसा कि संसद कानून द्वारा प्रदान कर सकती है।

खंड (3) यह कहता है कि संविधान के गठन से ठीक पहले किसी भी केंद्र शासित प्रदेश पर अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने वाला प्रत्येक उच्च न्यायालय संविधान के प्रावधानों या विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के अधीन ऐसा करता रहेगा। हालांकि, संसद को किसी भी केंद्र शासित प्रदेश या उसके किसी हिस्से पर किसी राज्य के उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने या बाहर रखने के लिए कोई कानून बनाने से नहीं रोकता है [अनुच्छेद 241 का खंड (4)]।

अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्र

इस लेख के दूसरे मुख्य घटक पर आते हैं, जो अनुसूचित क्षेत्र और जनजातीय क्षेत्र हैं। अनुसूचित क्षेत्र और जनजातीय क्षेत्र वर्तमान में आंध्र प्रदेश (तेलंगाना सहित), छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान राज्यों में मौजूद हैं।

जैसा कि भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूची के पैरा 6(1) में प्रावधान किया गया है, किसी राज्य के संबंध में “अनुसूचित क्षेत्रों” का विनिर्देश, उस राज्य के राज्यपाल के परामर्श के बाद, राष्ट्रपति के आदेश द्वारा अधिसूचित किया जाएगा। भारत के संविधान की पांचवीं अनुसूची के पैराग्राफ 6 (2) के प्रावधानों के अनुसार, राष्ट्रपति उस राज्य के राज्यपाल से परामर्श के बाद, किसी राज्य में किसी भी अनुसूचित क्षेत्र के क्षेत्र में वृद्धि कर सकता है और क्षेत्रों को फिर से परिभाषित करने के लिए नए आदेश दे सकता है। यह किसी भी परिवर्तन, वृद्धि, कमी, नए क्षेत्रों को शामिल करने या “अनुमानित (प्रोजेक्टेड) क्षेत्रों” से संबंधित किसी भी आदेश को वापस लेने पर भी लागू होता है।

अनुसूचित क्षेत्रों के निर्माण के लिए कोई मानदंड (क्राइटेरिया) नहीं हैं लेकिन कुछ शर्तें जो प्रसिद्ध हो गई हैं। वे निम्नलिखित हैं:

  • जनजातीय आबादी की व्यापकता;
  • क्षेत्र की सघनता (कॉम्पैक्टनेस) और उचित आकार;
  • एक व्यवहार्य कार्य इकाई जैसे जिला ब्लॉक या तालुक;
  • आसपास के क्षेत्रों की तुलना में इस क्षेत्र का आर्थिक पिछड़ापन।

अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों के इस घटक को भारत के संविधान के भाग X में भी वर्णित किया गया है।

अनुच्छेद 244 जो इनके बारे में बात करता है, खंड (1) से शुरू होता है, जिसमें कहा गया है कि संविधान की 5वीं अनुसूची के प्रावधान असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्य के अलावा किसी भी राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रबंधन और नियंत्रण पर लागू होंगे। हालांकि, इसी अनुच्छेद के खंड (2) में कहा गया है कि संविधान की छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन पर लागू होगी।

अनुच्छेद 244 A आगे बात करता है कि संविधान में कुछ भी कहा गया है, संसद को कानून द्वारा शक्ति है कि वह असम राज्य के भीतर से किसी भी स्वतंत्र राज्य का निर्माण कर सकता है जिसमें 6वीं अनुसूची के पैराग्राफ 20 में संलग्न तालिका (अपेंडेड टेबल) के भाग I में निर्दिष्ट सभी या किसी भी जनजातीय क्षेत्र शामिल हैं और उससे मिलकर एक निकाय बनाएँ:

  • निर्वाचित या आंशिक रूप से निर्वाचित या आंशिक रूप से नामित व्यक्ति;
  • या मंत्रिपरिषद से मिलकर एक निकाय बना सकते हैं;
  • या इन दोनों को संसद में निहित संवैधानिक शक्तियों और कार्यों के साथ बना सकते हैं।

इस अनुच्छेद के खंड (2) में आगे कहा गया है कि खंड (1) के संदर्भ में ऐसा कोई भी कानून विशिष्ट रूप से हो सकता है:

  • राज्य सूची या समवर्ती सूची के मामलों को व्यक्त करें, जिस पर स्वायत्त (ऑटोनोमस) राज्य (या स्वतंत्र राज्य) के विधानमंडल को पूरे राज्य या उसके किसी भी हिस्से के लिए कानून बनाने की शक्ति होगी।
  • उन मामलों की व्याख्या करें जिन तक राज्य की स्वायत्त शक्तियों का विस्तार होगा।
  • बशर्ते कि असम राज्य द्वारा लगाया गया कोई भी कर स्वायत्त राज्य को सौंपा जाएगा, जहां तक ​​कि आय स्वायत्त राज्य के लिए जिम्मेदार है।
  • बशर्ते कि संविधान में राज्य के किसी भी उल्लेख में स्वायत्त राज्य भी शामिल होगा।
  • ऐसे प्रावधानों का निर्माण करें जो सहायक या परिणामी हों या जिन्हें समय की आवश्यकता के रूप में आवश्यक समझा जाए।

उपरोक्त खंड में उल्लिखित प्रावधानों के अनुसार किसी भी कानून में संशोधन या परिवर्तन तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक कि संशोधन को उपस्थित और मतदान करने वाले सदन के 2/3 बहुमत से पारित नहीं किया जाता है। इसका अपवाद खंड (2) के उप-खंड (a) या उप-खंड (b) में कोई संशोधन है। यह प्रावधान अनुच्छेद 241 के खंड (3) में दिया गया है।

और अंतिम खंड, खंड (4) में कहा गया है कि इस अनुच्छेद में उल्लिखित किसी भी चीज के बावजूद, जिसका संविधान में संशोधन का प्रभाव है या अनुच्छेद 368 के माध्यम से संविधान में कोई संशोधन है, को संशोधन या संविधान में बदलाव नहीं माना जाएगा।

निष्कर्ष

भारत का संविधान एक ऐसा कानून बनाता है जो भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए बाध्यकारी है। कानून पूरे देश में समान हैं, लेकिन भारत के किसी विशेष क्षेत्र या क्षेत्र की विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, उन क्षेत्रों को नियंत्रित करने वाले विभिन्न कानून बनाए गए थे। इस तरह के कानून भारतीय संविधान के अनुच्छेद 239 और 244 में शामिल हैं। इस लेख में, इस तरह के प्रावधानों की आवश्यकता से लेकर इस तरह के प्रावधानों की बारीकियों तक सब कुछ विस्तार से समझाया गया है। यह लेख इन अनुच्छेदों के प्रावधानों के संबंध में किसी भी गलत व्याख्या या गलत संचार (मिसकम्युनिकेशन) या गलत धारणा को रोकने का प्रयास करता है। और इन अनुच्छेदों की व्याख्या करना आवश्यक है क्योंकि वे उस देश में ‘समय की बात’ हैं, जिसकी राजनीतिक जागृति दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है।

संदर्भ

  1. http://www.aaptaxlaw.com/constitution-of-india/article-239-239a-constitution-administration-union-territories-creation-local-legislatures-council-of-ministers-for-union-territories-article-239-239a-of-constitution-of-india-1949.html
  2. http://delhiassembly.nic.in/constitution.htm
  3. http://delhiassembly.nic.in/constitution.htm
  4. https://indiankanoon.org/doc/1144754/
  5. https://indiankanoon.org/doc/1823046/
  6. https://indiankanoon.org/doc/1364341/
  7. https://indiankanoon.org/doc/1624304/

 

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