आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 270A

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Income Tax Act

यह लेख देहरादून के ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी के कानून के छात्र Monesh Mehndiratta ने लिखा है। इस लेख में आयकर अधिनियम (इनकम टैक्स एक्ट) की धारा 270A, इसकी प्रयोज्यता (एप्लीकेबिलिटी) और इससे संबंधित अन्य प्रावधानों के बारे में बताया गया है। इस लेख का अनुवाद Shreya Prakash द्वारा किया गया है।

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परिचय

शहरीकरण और औद्योगीकरण (इंडस्ट्रियलाइजेशन) के साथ, लोगों के वेतन और आय में जबरदस्त वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें अपनी आय पर आयकर का भुगतान करना पड़ता है। आयकर अधिनियम, 1961, कर भुगतान के प्रावधानों और प्रक्रियाओं से संबंधित है। लेकिन वित्त अधिनियम (फाइनेंस एक्ट), 2016 ने अधिनियम में कई बदलाव लाए हैं, जिसमें अधिनियम की धारा 115 BAC के तहत पुरानी कर व्यवस्था को एक नई कर व्यवस्था से बदलना शामिल है। इसने एक नया प्रावधान भी पेश किया है, यानी, धारा 270A, जो उन मामलों में दंड से संबंधित है जहां आय को कम या गलत तरीके से बताया जाता है। इससे पहले, धारा 271(1)(c) में, अगर आय को ठीक से प्रस्तुत नहीं किया जाता था या किसी भी तरह से छुपाया जाता था, तो उसके लिए दंड दिया गया था। इस तरह, कई अन्य परिवर्तन पेश किए गए हैं और कर भुगतान की प्रणाली को अधिक विश्वसनीय और आसान बना दिया गया है। धारा द्वारा लाए गए परिवर्तनों के बारे में लेख में आगे विस्तार से बताया गया है।

आयकर अधिनियम की धारा 270A की प्रयोज्यता

यह धारा उस व्यक्ति पर लागू होती है जिसने अपनी आय को या तो गलत तरीके से प्रस्तुत किया है या कम दिखाया है। निम्नलिखित व्यक्ति एक मामले में इसके लिए जुर्माना लगा सकते हैं:

  • निर्धारण अधिकारी (एसेसिंग ऑफिसर) या,
  • आयुक्त (कमिश्नर) (अपील), या
  • प्रधान आयुक्त (प्रिंसिपल कमिश्नर) या,
  • आयुक्त

हालांकि, जुर्माना लगाने या न लगाने का सवाल प्रत्येक मामले में अलग-अलग तरीके से तय किया जाता है। इससे पहले, आय को छुपाया गया था या झूठी या गलत आय बताई गई थी, तो जुर्माना लगाया जाता था। इन दोनों आधारों को अलग-अलग माना गया है और अब यह अधिकारी की संतुष्टि के अधीन है। लेकिन अब ‘कम बताई गई आय’ के लिए दंड का एकमात्र आधार अधिकारी की संतुष्टि नहीं है, बल्कि अब इसकी कार्यवाही के उचित समय में और किसी मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से इसे निर्धारित किया जाता है।

आयकर अधिनियम की धारा 270A के तहत कम बताई गई आय

अर्थ

धारा ने ‘अंडर-रिपोर्टेड’ या कम बताई गई शब्द को परिभाषित नहीं किया है, लेकिन ऐसे उदाहरण प्रदान किए हैं, जिनके तहत एक आय को कम बताया हुआ समझा जाएगा। यह 7 ऐसी स्थितियाँ प्रदान करता है, जिनमें से 3 सामान्य आय से संबंधित हैं और अन्य 3 आय से संबंधित हैं जिनका मूल्यांकन एमएटी/ एएमटी के प्रावधानों के तहत किया जाता है। आय को कम बताने के लिए परिस्थितियाँ इस प्रकार हैं:

1. सामान्य आय के मामले में

आय को कम बताया गया कहा जाता है यदि:

  • जब रिटर्न दाखिल किया जाता है तो निर्धारित आय अधिनियम की धारा 143 के अनुसार निर्धारित आय से अधिक होती है।
  • जब आय की रिटर्न दाखिल नहीं की गई है तो निर्धारित आय जो अधिकतम से अधिक है और कर के लिए प्रभार्य (चार्जेबल) नहीं है, उसे कम बताई गई आय के रूप में गिना जाएगा।
  • यदि आय का पुनर्मूल्यांकन (रीएसेस) किया गया है, तो ऐसी आय जो निर्धारित आय से अधिक है, कम बताई गई आय होगी।

2. धारा 115JB और 115JC के तहत आय का आकलन

इस घटना में कि आय धारा 115JB और धारा 115JC के अनुसार निर्धारित की गई है, निम्नलिखित आय को कम बताई गई आय के रूप में गिना जाएगा:

  • जब कुल निर्धारित आय अधिनियम की धारा 143 के अनुसार निर्धारित आय से अधिक है।
  • जब निर्धारित आय अधिकतम आय से अधिक है और कर के लिए प्रभार्य नहीं है।
  • जब कुल पुनर्मूल्यांकन आय निर्धारित आय से अधिक है।

इनके अलावा, एक और आय है जिसे कम बताई गई आय के रूप में गिना जाता है। यदि निर्धारित आय या पुनर्मूल्यांकन आय में नुकसान को कम करने या इसे आय में बदलने की क्षमता है, तो ऐसी आय को भी कम बताई गई आय कहा जाएगा।

अमूर्त जोड़ (इनटैनजिबल एडिशंस)

धारा 270A की उप-धारा 4 के अनुसार, यदि किसी रसीद, निवेश या जमा (डिपॉजिट) का स्रोत ऐसी राशि होने का दावा करता है, जिसे घटाया जाता है या आय में जोड़ा जाता है, जबकि नुकसान की गणना आकलन (असेसमेंट) वर्ष से पहले किसी भी वर्ष में की गई थी जिसमें ऐसी रसीद या जमा दिखाया गया था और कोई जुर्माना नहीं लगाया गया थी, तो कम बताई गई आय इस रसीद, जमा या निवेश को पूरा करने के लिए जोड़ी गई राशि होगी। चूंकि ये जोड़ी गई राशियाँ हैं, इसलिए इन्हें अमूर्त जोड़ के रूप में जाना जाता है।

उप-धारा 5 के अनुसार, उप-धारा 4 में पूर्ववर्ती (प्रीसीडिंग) वर्ष का अर्थ है:

  • उस वर्ष का तत्काल पिछला वर्ष जिसमें ऐसी रसीद, जमा या निवेश दिखाई गई है, पहला पूर्ववर्ती वर्ष कहलाता है।
  • जब पहले पूर्ववर्ती वर्ष में राशि पर्याप्त नहीं होती है, तो पहले पूर्ववर्ती वर्ष के ठीक पहले वर्ष पर विचार किया जाएगा और यह इसी तरह चलता रहेगा।

कम बताई गई आय की गणना कैसे करें?

कम बताई गई आय पर जुर्माना निर्धारित करने की प्रक्रिया धारा 270A की उप-धारा 3 के तहत दी गई है। इसे निम्नलिखित 3 मामलों में विभाजित किया जा सकता है:

  1. सामान्य आय
  2. धारा 115JB और 115JC के तहत निर्धारित आय।
  3. आकलन या पुनर्मूल्यांकन आय नुकसान को कम कर सकती है।

सामान्य आय

  • यदि यह आय का पहला आकलन है और रिटर्न दाखिल किया जाता है, तो कम बताई गई आय, अधिनियम की धारा 143 के अनुसार निर्धारित आय के बीच का अंतर होगी। उदाहरण के लिए – एक कंपनी ने 20 लाख रुपये के लिए अपना रिटर्न दाखिल किया है और अधिनियम की धारा 80IAB के तहत 35 लाख रुपये की छूट का दावा किया, लेकिन आवेदन में कुछ गलती के कारण इसकी अनुमति नहीं दी गई थी, और इसलिए प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) 55 लाख रुपये के लिए किया गया था, लेकिन धारा 143 के अनुसार मूल्यांकन 65 लाख रुपये था। इस प्रकार, कम बताई गई आय 65-55 = 10 लाख रुपये होगी।
  • ऐसी घटना में जब पहले मूल्यांकन के लिए कोई रिटर्न दाखिल नहीं किया गया है, कम बताई गई आय कंपनियों और फर्मों के लिए निर्धारित राशि होगी, लेकिन अन्य के लिए यह निर्धारित आय और अधिकतम आय के बीच का अंतर होगा, जो कर के लिए प्रभार्य नहीं होता है।
  • यदि आय का पहले ही आकलन किया जा चुका है, तो कम बताई गई आय पिछले आदेश की पुनर्निर्धारित आय और निर्धारित आय के बीच का अंतर होगी।

धारा 115JB और 115JC के तहत निर्धारित आय

कम बताई गई आय एक सूत्र की सहायता से आसानी से गिनी जा सकती है:

(A-B) + (C-D) जहां,

  • A, अन्य सामान्य प्रावधानों के अनुसार निर्धारित आय है।
  • B, वह आय है जो कम बताई गई आय से निर्धारित आय को कम करने पर प्रभार्य होती है।
  • C, वह आय है जिसकी गणना उपर्युक्त धाराओं के अनुसार की जाती है।
  • D, वह आय है जिस पर यदि धारा 115JB और 115JC के तहत निर्धारित आय को कम बताई गई आय से घटा दिया जाता है, तो उस पर प्रभार्य लगाया जा सकता है।

आय नुकसान को कम कर सकती है

यदि निर्धारित या पुनर्मूल्यांकन आय नुकसान को कम कर सकती है या इसे आय में परिवर्तित कर सकती है, तो इस मामले में कम बताई गई आय, दावा किया गया नुकसान और मूल्यांकन या पुनर्मूल्यांकन आय के बीच का अंतर होगा।

कम बताई गई आय पर कर

धारा 270A की उप-धारा 10 में प्रावधान है कि कम बताई गई आय पर देय कर 50% या 200% होता है। इसकी गणना निम्नलिखित तरीकों से की जाएगी:

  • यदि कोई रिटर्न दाखिल नहीं किया गया है और पहली बार आय का आकलन किया गया है, तो कम आय पर कर की गणना की जाएगी, जो कि कर के लिए अधिकतम नहीं है, जैसे कि यह कुल आय थी।
  • यदि कुल आय का निर्धारण धारा 143 के अनुसार किया जाता है या पिछले आदेश के अनुसार पुनर्मूल्यांकन किया जाता है, तो कर की गणना इस प्रकार की जाएगी मानो यह कुल आय थी।
  • अन्य स्थितियों में, कर की गणना एक सूत्र (X-Y) द्वारा की जाएगी जहां,
    • X कम बताई गई आय पर गिना गया कर है जिसे धारा 143 के अनुसार निर्धारित किया जाता है या जिसका किसी पिछले आदेश के अनुसार मूल्यांकन किया जाता है।
    • Y धारा 143 के अनुसार निर्धारित या किसी पिछले आदेश के अनुसार निर्धारित कुल आय पर कर है।

कम बताई गई आय से छूट

यह धारा कुछ ऐसी परिस्थितियाँ प्रदान करती है जिनके तहत आय को कम बताई गई आय के रूप में गिने जाने से छूट दी जाएगी। य़े हैं:

  • यदि निर्धारिती (एसेसी) आय का उचित स्पष्टीकरण और भौतिक तथ्य (मैटेरियल फैक्ट) देते हुए एक आवेदन करता है और अधिकारी स्पष्टीकरण से संतुष्ट है बशर्ते कि यह वास्तविक है, तो आय को कम बताई गई नहीं माना जाएगा।
  • यदि कम बताई गई आय की गणना अनुमान की सहायता से की जाती है और उपयोग की जाने वाली विधि विश्वसनीय नहीं है और एक निश्चित आय प्रदान नहीं करती है, तो ऐसी आय को कम बताया हुआ नहीं माना जा सकता है।
  • यदि कम बताई गई आय निर्धारिती द्वारा निर्धारित की गई है और उसने स्वयं किसी मुद्दे पर कम वृद्धि का अनुमान लगाया है या अस्वीकृति से संबंधित सभी भौतिक तथ्यों का खुलासा किया है, तो ऐसी आय पर विचार नहीं किया जाएगा।
  • हस्तांतरण मूल्य (ट्रांसफर प्राइसिंग) निर्धारण मामलों में कम बताई गई आय को तभी छूट दी जा सकती है जब:
    • अधिनियम की धारा 92D के अनुसार सभी दस्तावेज असाइनी द्वारा तैयार किए गए हैं।
    • असाइनी ने सभी अंतरराष्ट्रीय लेनदेन का खुलासा किया है।
    • इस तरह के लेनदेन से संबंधित सभी भौतिक तथ्य भी प्रदान किए है।
  • तलाशी के मामलों के दौरान जो राशि अघोषित होती है और धारा 271AAB के तहत लगने वाले जुर्माने से भी छूट मिलती है।

आयकर अधिनियम की धारा 270A के तहत गलत बताई गई आय

अधिनियम की धारा 270A के अनुसार, यदि आय कम बताई गई है, तो दंड की मात्रा देय कर का 50% होगी, लेकिन यदि यह गलत आय के कारण है, तो यह राशि 200% होगी। इस धारा ने कम बताई गई आय की सूची दी है जिसे उप-धारा 9 के तहत गलत बताया गया माना जाएगा। ये हैं:

  • ऐसी आय जिसे दबा दिया गया है या गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
  • आय जिसमें व्यय (एक्सपेंडिचर) के दावे को किसी साक्ष्य द्वारा प्रमाणित नहीं किया गया है।
  • आय जिसने किसी अंतरराष्ट्रीय लेनदेन का खुलासा नहीं किया है, यदि अधिनियम के अध्याय X के प्रावधान ऐसी आय पर लागू होते हैं।
  • यदि निवेश को बहीखातों (बुक्स ऑफ अकाउंट्स) में दर्ज नहीं किया गया है, तो ऐसी आय को गलत बताया गया माना जाएगा।
  • बहीखातों में गलत प्रविष्टि (एंट्री) या रिकॉर्ड।
  • यदि कुल आय पर कोई प्रभाव पड़ता है लेकिन इसे बहीखतों में दर्ज नहीं किया गया है तो ऐसी आय पर विचार नहीं किया जाएगा।

कम बताई गई और गलत बताई गई आय पर दंड और कर की गणना

आइए इसे एक उदाहरण की मदद से समझते हैं। मानते है कि ABC कंपनी ने रिटर्न दाखिल किया है, और मामला एक वर्ष के लिए अधिनियम की धारा 143 के अनुसार पूरा किया गया है। रिटर्न पर कर 31.20% है। आय का विवरण नीचे दिया गया है:

विवरण सामान्य प्रावधानों के अनुसार आय एमएटी के अनुसार आय
आय/लाभ 800000  2200000
गलत बताई गई आय (अतिरिक्त) 50000 50000
कम बताई गई आय (अतिरिक्त) 60000  0
आस्थगित (डेफर्ड) कर के लिए कम बताई गई आय की गणना एमएटी के अनुसार की जाएगी। 70000
कुल 910000  2320000

चरण 1 – कम बताई गई आय की गणना

A (सामान्य प्रावधानों के अनुसार कुल आय)  910000
B (कुल – कम बताई गई आय – गलत बताई गई आय)  800000
C (आकलन आदेश के अनुसार लाभ)  2320000
D (लाभ – कम बताई गई आय, सिवाय एक को छोड़कर जिसे पहले से ही सामान्य प्रावधानों में माना गया है – गलत बताई गई आय – एमएटी)  2250000
(A-B) + (C-D) 180000

चरण 2 – कम बताई गई आय पर 31.20% की दर से कर की गणना करना 

कम बताई गई आय  गलत बताई गई आय 
60000  50000
70000  0
कुल = 130000 कुल = 50000
कर: 130000 * 31.20 = 40560 कर: 50000 * 31.20 = 15600

चरण 3 – कुल दंड की गणना

कम बताई गई आय 40560 का 50% 20280
गलत बताई गई आय 15600 का 200% 31200
कुल जुर्माना  51480

आयकर अधिनियम की धारा 270A के तहत दंड से प्रतिरक्षा (इम्यूनिटी)

एक व्यक्ति एक आवेदन दाखिल करके और अधिनियम की धारा 270AA के तहत दी गई प्रक्रिया का पालन करके धारा 270A के तहत दंड और धारा 276C या धारा 276CC के तहत अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) से छूट की मांग कर सकता है। एक व्यक्ति निम्नलिखित तरीकों से प्रतिरक्षा प्राप्त कर सकता है:

  • उसे आकलन आदेश के एक महीने के भीतर कर निर्धारण अधिकारी को दंड और कार्यवाही से छूट प्रदान करने के लिए एक आवेदन देना होगा। हालाँकि, निम्नलिखित शर्तों को पूरा किया जाना चाहिए:
    • यह आवश्यक है कि नोटिस में दी गई निर्दिष्ट अवधि के भीतर कर का भुगतान किया जाए।
    • निर्धारण आदेश के संबंध में कोई अपील नहीं की जानी चाहिए।
  • अधिकारी, उपरोक्त सभी शर्तों की संतुष्टि के बाद और अपील की अवधि समाप्त होने पर, ऐसी प्रतिरक्षा प्रदान करता है।
  • गलत आय के मामले में प्रतिरक्षा दी जा सकती है।
  • अधिकारी आवेदन प्राप्त होने के एक महीने के भीतर उसे या तो स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है।
  • आवेदन को अस्वीकार करने से पहले असाइनी को अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अवसर देना अनिवार्य है।
  • निर्धारण अधिकारी का आदेश अंतिम माना जाएगा।

प्रासंगिक निर्णय

अभी तक धारा 270A के लिए कोई मामला सामने नहीं आया है क्योंकि इसे अधिनियम में हाल ही में जोड़ा गया है, लेकिन कुछ पिछली मिसालें हैं जो अधिनियम के तहत किसी भी तरह के दंड को लागू करते समय अभी भी महत्व रखती हैं। मामलों के नाम और उनके निर्णय नीचे दिए गए हैं:

  1. राजीव कुमार गुप्ता बनाम सीआईटी (1980) के मामले में, यह माना गया था कि किसी भी व्यक्ति पर जुर्माना लगाने से पहले किसी भी प्राधिकारी को उसे सुनवाई का अवसर देना चाहिए। इसका उल्लेख अधिनियम की धारा 274 (1) के तहत भी किया गया है, जो निर्धारिती पर जुर्माना लगाते समय अधिकारियों के लिए उसे सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य बनाती है अन्यथा इसे वैधानिक उल्लंघन माना जाएगा।
  2. अदालत ने दिलीप एन. श्रॉफ बनाम सीआईटी (2007) के मामले में कहा कि निर्धारिती पर कोई जुर्माना लगाने के लिए, उसके दुर्भावनापूर्ण इरादे को साबित करना होगा। ‘गलत’ शब्द का अर्थ है जानबूझकर किया गया कार्य या चूक। इस प्रकार, निर्धारिती पर दंड को आकर्षित करने के लिए मेन्स रिया आवश्यक है। सर्वोच्च न्यायालय ने रिलायंस पेट्रोप्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम सीआईटी (2010) के मामले में इसे दोहराया था। 
  3. विजय पावर जेनरेटर्स लिमिटेड बनाम आईटीओ (2007) के मामले में, यह माना गया था कि मूल्यांकन की कार्यवाही में पाए गए भौतिक तथ्यों या सबूतों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। यह निर्धारित करने के लिए सावधानीपूर्वक जांच की जानी चाहिए कि क्या निर्धारिती ने आय या उसके हिस्से को छुपाया है।
  4. सीआईटी बनाम कैपलिन प्वाइंट लेबोरेटरीज लिमिटेड (2021) के मामले में न्यायालय ने माना कि यदि किसी भी कटौती या भत्ते का दावा वास्तविक विश्वास के तहत किसी भी मामले के कानून के आधार पर निर्धारिती द्वारा किया गया है, लेकिन निर्धारण अधिकारी ने इसकी अलग व्याख्या की है, तो ऐसे मामले में कोई दंड नहीं दिया जाएगा।
  5. यदि किसी विशेष शीर्ष के तहत किसी विशेष आय की कर योग्यता के लिए एक कानूनी दावा निर्धारण अधिकारी द्वारा अस्वीकार कर दिया गया है, तो यह उस पर जुर्माना लगाने का उपयुक्त आधार नहीं है। केवल नुकसान की अटकलों पर भी किसी प्रकार का जुर्माना नहीं लगाया जाता है। (सीआईटी बनाम भारतेश जैन, 2010)

निष्कर्ष

2016 के वित्त अधिनियम के कारण 1961 के आयकर अधिनियम में बहुत सारे परिवर्तन हुए हैं। ऐसा ही एक परिवर्तन धारा 270A का सम्मिलन है, जिसने अधिनियम की धारा 271(1)(c) को प्रतिस्थापित (रिप्लेस) किया है। इसे कानूनों में निष्पक्षता (ऑब्जेक्टिविटी), स्पष्टता और निश्चितता लाने के लिए डाला गया है। पिछली धारा में दंड का उल्लेख किया गया है यदि आय को छुपाया गया है या गलत तरीके से बताया गया है। लेकिन अब कम आय और गलत आय के कारण जुर्माना दिया जाता है। हालाँकि, इन्हें अधिनियम के तहत कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन इसने ऐसे मामले प्रदान किए हैं जहाँ आय को कम बताया गया और गलत बताया गया माना जाएगा। अधिनियम के शब्द और नए तंत्र की व्याख्या से मुद्दे और मुकदमेबाजी हो सकती है, जिन्हें प्रावधानों को स्पष्ट करने के लिए हल करने की आवश्यकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)

कम बताई गई आय में स्थानांतरण मूल्य (ट्रांसफर प्राइसिंग) निर्धारण मामलों की स्थिति क्या है?

स्थानांतरण मूल्य निर्धारण मामलों में कम बताई गई आय को तभी छूट दी जा सकती है जब:

  • अधिनियम की धारा 92D के अनुसार सभी दस्तावेज असाइनी द्वारा तैयार किए गए हैं।
  • असाइनी ने सभी अंतरराष्ट्रीय लेनदेन का खुलासा किया है।
  • इस तरह के लेनदेन से संबंधित सभी भौतिक तथ्य भी प्रदान किए।

एक निर्धारण अधिकारी के आदेश के खिलाफ कोई व्यक्ति कहां अपील कर सकता है?

यदि आवेदन स्वीकार कर लिया गया है तो कोई व्यक्ति धारा 270AA के तहत निर्धारण अधिकारी के आदेश के खिलाफ अपील नहीं कर सकता है। हालांकि, यदि प्रतिरक्षा के लिए आवेदन खारिज कर दिया गया है, तो सीआईटी (अपील) में अपील की जा सकती है, लेकिन आवेदन को खारिज करने के आदेश के लिए आवेदन करने की अवधि को इससे बाहर रखा जाएगा।

धारा 271(1)(c) और धारा 270A में क्या अंतर है?

धारा 271(1)(c) में आय को छुपाने या गलत तरीके से बताने पर जुर्माना लगाया जाता है, जहां यह 100% से 300% तक हो सकता है, लेकिन धारा 271A के अनुसार, कम आय या गलत आय के मामले में जुर्माना लगाया जाता है। यह कम बताई गई आय के लिए कर का 50% और गलत आय के लिए कर का 200% है। इसके अलावा, पूर्व अधिनियम के तहत जुर्माना केवल वार्षिक वर्ष 2016-17 तक लगाया जा सकता है, लेकिन बाद के कानून के तहत जुर्माना वार्षिक वर्ष 2017-2018 के लिए भी लगाया जा सकता है।

संदर्भ

 

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