ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के तहत एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क की स्थिति क्या है 

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Trademark Act

यह लेख Aishwarya Parameshwaran द्वारा लिखा गया है, जो लॉसिखो से इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी, मीडिया और मनोरंजन कानून में डिप्लोमा कर रही हैं। इस लेख का संपादन (एडिट) Aatima Bhatia (एसोसिएट, लॉसिखो) और Ruchika Mohapatra (एसोसिएट, लॉसिखो) ने किया है। इस लेख में ट्रेडमार्क अधिनियम 1999 के तहत एक अपंजीकृत (अनरजिस्टर्ड) ट्रेडमार्क की स्थिति के बारे में चर्चा की गई है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

परिचय

ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 वैधानिक (स्टेच्यूटरी) कानून है जो भारत में ट्रेडमार्क से संबंधित है। सभी मार्क, लोगो, प्रतीक (सिंबल) या ब्रांड जो अलग हैं और अन्य वस्तुओं और सेवाओं से खुद को अलग करते हैं उन्हें ‘ट्रेडमार्क’ कहा जाता है। ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के अनुसार, भारत में ट्रेडमार्क पंजीकृत (रजिस्टर) करना अनिवार्य नहीं है। बहुत से लोग जो अपने ट्रेडमार्क को पंजीकृत करने के लाभों से अवगत नहीं हैं, वे अपना ट्रेडमार्क पंजीकृत नहीं कराते हैं। उनमें से कई यह भी सोचते हैं कि यह एक कठिन प्रक्रिया है और पंजीकरण की उपेक्षा करते है। इसलिए, भारत में, कई पंजीकृत और अपंजीकृत ट्रेडमार्क हैं।

अपंजीकृत ट्रेडमार्क क्या हैं और यह पंजीकृत ट्रेडमार्क से कैसे भिन्न है?

पंजीकृत और अपंजीकृत ट्रेडमार्क की तुलना करने से पहले, आइए पहले यह समझें कि पंजीकृत और अपंजीकृत ट्रेडमार्क क्या हैं और इस तरह के पंजीकरण के बाद क्या कानूनी मान्यता प्राप्त होती है।

पंजीकृत ट्रेडमार्क

ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के तहत पंजीकृत ट्रेडमार्क ऐसे पंजीकृत ट्रेडमार्क के मालिक को विशेष अधिकार प्रदान करता है। पंजीकरण के बाद, ऐसे ट्रेडमार्क पर उसका स्वामित्व प्रथम दृष्टया (प्राइमा फेसी) साक्ष्य बन जाता है। इसके अतिरिक्त, वह इस तरह के मार्क का उपयोग विशेष रूप से उन वस्तुओं के वर्ग के तहत करता है जिनके तहत इसे पंजीकृत किया गया है। एक बार ट्रेडमार्क पंजीकृत हो जाने के बाद, इसकी वैधता 10 वर्षों तक बनी रहती है और आगे, ट्रेडमार्क को नवीनीकृत (रिन्यू) करने की आवश्यकता होती है।

मान लीजिए कि कोई तृतीय पक्ष किसी पंजीकृत ट्रेडमार्क का अवैध रूप से उपयोग करता है, तो ऐसा उपयोग ट्रेडमार्क उल्लंघन के बराबर होगा। ऐसे पंजीकृत ट्रेडमार्क का मालिक ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के तहत उल्लंघन के लिए मुकदमा दायर कर सकता है। उल्लंघन के लिए ऐसा मुकदमा सिवील या आपराधिक हो सकता है।

अपंजीकृत ट्रेडमार्क

जैसा कि हमने पहले चर्चा की थी, अधिनियम के अनुसार ट्रेडमार्क का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, इसलिए जो ट्रेडमार्क पंजीकृत नहीं हैं उन्हें अपंजीकृत ट्रेडमार्क कहा जाता है। इसका उपयोग वस्तुओं और सेवाओं के संबंध में किया जा सकता है। हालांकि, कानून के तहत उन्हें जो सुरक्षा मिलती है, वह पंजीकृत ट्रेडमार्क को दी गई कानूनी सुरक्षा की तुलना में बहुत सीमित है।

मान लीजिए कि यदि कोई तीसरा पक्ष अपंजीकृत ट्रेडमार्क का अवैध उपयोग करता है, तो यह ट्रेडमार्क का उल्लंघन नहीं माना जाएगा। इसलिए, ऐसे मामलों में ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के तहत उल्लंघन का मुकदमा शुरू नहीं किया जा सकता है। एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क के मालिक के पास उपलब्ध उपाय, टॉर्टस के कानून के तहत ‘पासिंग ऑफ’ है।

पासिंग ऑफ के मामलों में एक प्रमुख चिंता यह है कि अदालत में यह स्थापित करना आवश्यक है कि इस तरह के अपंजीकृत ट्रेडमार्क की बाजार में प्रतिष्ठा है और इसे आसानी से माल, व्यवसाय या सेवा के वर्ग के तहत पहचाना जा सकता है जिसके लिए इसका उपयोग किया जाता है। पंजीकृत और अपंजीकृत ट्रेडमार्क के बीच अंतर निम्नलिखित है:

आधार  पंजीकृत ट्रेडमार्क  अपंजीकृत ट्रेडमार्क 
अर्थ  जब ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के तहत दिए गए प्रावधानों के अनुसार उसके मालिक द्वारा कोई प्रतीक, मार्क, शब्द आदि को पंजीकृत किया जाता है तो ऐसे मार्क को पंजीकृत ट्रेडमार्क कहा जाता है। जब किसी प्रतीक, मार्क या शब्द का उपयोग मालिक द्वारा किया जाता है लेकिन ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के प्रावधानों के अनुसार पंजीकृत नहीं किया जाता है तो ऐसे मार्क को अपंजीकृत ट्रेडमार्क कहा जाता है।
सुरक्षा  ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के तहत पंजीकृत ट्रेडमार्क को सुरक्षा प्रदान की जाती है। अपंजीकृत ट्रेडमार्क को सुरक्षा सामान्य कानून के तहत प्रदान की जाती है।
सबूत का भार  एक बार मार्क पंजीकृत हो जाने के बाद, प्रतिद्वंद्वी (अपोनेंट) पर इसके प्रारंभिक उपयोग के सबूत का भार होता है।  जब मार्क पंजीकृत नहीं होता है, तो प्रारंभिक उपयोग के सबूत का भार स्वयं मालिक पर होता है।
उपाय  उल्लंघन के लिए एक मुकदमा स्थापित किया जा सकता है। पासिंग ऑफ के लिए एक मुकदमा स्थापित किया जा सकता है।
प्रतीक  ®

एक पंजीकृत ट्रेडमार्क का मालिक पंजीकरण के आवेदन पर ™ प्रतीक का उपयोग करता है। एक बार मार्क पंजीकृत हो जाने के बाद, मालिक प्रतीक का उपयोग कर सकता है, जो दर्शाता है कि अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार मार्क का पंजीकरण पूरा हो गया है।

™ 

अपंजीकृत ट्रेडमार्क का उपयोगकर्ता ™ प्रतीक का उपयोग कर सकता है लेकिन ® प्रतीक का नहीं।

ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के तहत अपंजीकृत ट्रेडमार्क की सुरक्षा 

हालांकि अपंजीकृत ट्रेडमार्क के अवैध उपयोग के लिए कानून में पासिंग ऑफ का उपाय दिया गया है, लेकिन ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के तहत इसकी बहुत सीमित वैधानिक सुरक्षा है।

ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 की धारा 34 और धारा 35 अपंजीकृत ट्रेडमार्क को वैधानिक सुरक्षा प्रदान करती है। ये धाराएं केवल यह कहकर अपंजीकृत ट्रेडमार्क के हितों की रक्षा करती हैं कि किसी ट्रेडमार्क के पूर्व उपयोगकर्ता को पंजीकृत होने के बावजूद बाद के उपयोगकर्ताओं पर प्राथमिकता मिलेगी।

इसलिए, भले ही ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 अपंजीकृत ट्रेडमार्क के अवैध उपयोग के लिए कोई वैधानिक उपाय प्रदान नहीं करता है, इसका उद्देश्य पूर्व उपयोग के आधार पर ऐसे मार्क के वास्तविक उपयोगकर्ता के हितों की रक्षा करना है। यह धारा पूर्व उपयोगकर्ताओं के हितों की रक्षा करती है और उन्हें एक समान मार्क के बाद के पंजीकृत उपयोगकर्ता द्वारा मार्क के उल्लंघन के लिए मुकदमा किए जाने के डर के बिना अपना व्यवसाय जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करता है।

सामान्य कानून के तहत अपंजीकृत मार्क की सुरक्षा

हमने पहले ही चर्चा की थी कि कैसे एक अपंजीकृत मार्क के अवैध उपयोग के लिए एक उपाय आम कानून के तहत पासिंग ऑफ के माध्यम से है। अब, आइए समझते हैं कि पासिंग ऑफ क्या होता है और सामान्य कानून एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क उपयोगकर्ता के हितों की रक्षा कैसे करता है।

पेरी बनाम ट्रूफिट (1842) के मामले में, यह निर्णय लिया गया था कि ‘किसी को इस बहाने माल नहीं बेचना चाहिए कि वे दूसरे के हैं’ एक सिद्धांत जिस पर पासिंग ऑफ के खिलाफ कार्रवाई आधारित है। इस कानून का आशय यह है कि किसी को किसी और की वस्तु होने के लिए गलत तरीके से प्रस्तुत नहीं करना चाहिए। इसका कारण यह है कि एक ब्रांड अपने उपभोक्ताओं (कंज्यूमर) के बीच विश्वास पैदा करता है और बाजार में इस ब्रांड मूल्य को बनाने में बहुत कुछ जाता है। इसलिए, केवल एक समान ट्रेडमार्क का उपयोग करके, किसी को उपभोक्ताओं को यह गलत तरीके से प्रस्तुत नहीं करना चाहिए कि यह दूसरे का है।

सरल शब्दों में, पासिंग ऑफ एक अनुचित व्यापार प्रथा के अलावा और कुछ नहीं है, जिसके माध्यम से उपभोक्ताओं को आकर्षित करने और बाजार में किसी अन्य मौजूदा ब्रांड द्वारा बनाए गए ब्रांड मूल्य से लाभ प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। यदि यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रतिवादी स्वेच्छा से आम जनता को धोखा देना और गुमराह करना चाहता है, तो पासिंग ऑफ के खिलाफ कार्रवाई सफल हो जाएगी।

पासिंग ऑफ की अनिवार्यता

पासिंग ऑफ के खिलाफ कोई कार्रवाई करने के लिए, यह आवश्यक है कि ट्रेडमार्क के अपंजीकृत उपयोगकर्ता द्वारा निम्नलिखित अनिवार्यताएं पूरी की जाएं।

अच्छी प्रतिष्ठा 

एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क के पास बाजार में कुछ अच्छी प्रतिष्ठा होनी चाहिए, जिसका अर्थ है कि लोगों को ऐसे मार्क को पहचानना चाहिए। जब पासिंग ऑफ के लिए एक कार्रवाई शुरू की जाती है, तो कार्रवाही शुरु करने वाले व्यक्ति यानी अपंजीकृत ट्रेडमार्क के मालिक पर यह साबित करने का भार होता है कि उसके मार्क ने बाजार में एक विशिष्ट प्रतिष्ठा हासिल कर ली है। अब, इस बाजार का मतलब स्थानीय या अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रीय स्तर पर हो सकता है।

पूर्व उपयोग

भले ही पहली आवश्यकता पूरी हो गई हो, लेकिन अपंजीकृत ट्रेडमार्क उपयोगकर्ता पासिंग ऑफ के खिलाफ की गई कार्रवाई में सफल नहीं हो सकता है, इसका कारण ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 की धारा 34 और 35 स्पष्ट करती है कि ट्रेडमार्क के पूर्व उपयोगकर्ता को प्राथमिकता मिलेगी हालांकि बाद के उपयोगकर्ता ने इसे पंजीकृत करा लिया हो। इस प्रकार, एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क पर किसी के हितों की रक्षा के लिए, उपयोगकर्ता को यह साबित करना होगा कि उसका पूर्व में उपयोग किया गया था और इसलिए वह पासिंग ऑफ के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए योग्य है।

हर्जाना

पासिंग ऑफ के खिलाफ कार्रवाई करने वाले पक्ष को यह साबित करने की जरूरत है कि किसी तीसरे पक्ष द्वारा इस तरह के पासिंग ऑफ से उसे व्यापार में वास्तविक नुकसान हुआ है। इस आवश्यकता को सिद्ध करना सामान्यतः कठिन होता है और इसके लिए बहीखातों के लेखाओं (अकाउंट्स ऑफ बुक्स) के निरीक्षण (इंस्पेक्शन) की आवश्यकता होती है।

विश्लेषण

भले ही ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 ने सामान्य कानून उपायों के साथ एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क मालिक को कुछ अधिकार और उपाय प्रदान किए हैं, साथ ही यह उस पर भार भी डालता है। ऐसा लग सकता है कि अपंजीकृत ट्रेडमार्क मालिक के लिए पासिंग ऑफ के खिलाफ कार्रवाई पर्याप्त सुरक्षा है, लेकिन अभी भी कुछ अनिवार्यताएं हैं जिन्हें पूरा करने की आवश्यकता है। यदि मालिक दो अनिवार्यताओं में से किसी एक को पूरा करने में विफल रहता है, तो उसे उपाय प्रदान नहीं किया जाएगा। ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 में एक प्रावधान जोड़ा जाना चाहिए, जिसमें अदालत द्वारा पासिंग ऑफ मामले के निर्धारण के बाद, अदालत को दंड के साथ पक्ष को पासिंग ऑफ के लिए जिम्मेदार ठहराना चाहिए। यह गलत प्रतिनिधित्व करने वाले पक्ष पर एक निवारक (डिटेरेंट) प्रभाव पैदा करेगा और दूसरों को व्यापार की ऐसी गलत रणनीति का उपयोग करने से रोकेगा।

निष्कर्ष

ट्रेडमार्क एक ब्रांड और एक उत्पाद की पहचान है। ऐसे ट्रेडमार्क से उत्पन्न होने वाले अधिकारों के बारे में बहुत जागरूक होना चाहिए। ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के तहत प्रदान किए गए अधिकारों का आनंद लेने के लिए यह सलाह दी जाती है कि ऐसा व्यक्ति अपना ट्रेडमार्क पंजीकृत करे। हालांकि ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 अपंजीकृत मार्क के बारे में बात करता है, एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क के मालिक के अधिकार बहुत सीमित हैं।

यह केवल सामान्य कानून के कारण है जो न्यायाधीश द्वारा बनाए गए कानून के अलावा और कुछ नहीं है, कि ट्रेडमार्क के अपंजीकृत उपयोगकर्ता के पास कम से कम पासिंग ऑफ के खिलाफ कार्रवाई करने का उपाय है और यहां तक ​​कि इस उपाय का लाभ उठाने के लिए, उपयोगकर्ता को यह साबित करना होगा कि इस लेख में निर्दिष्ट अन्य आवश्यक चीजों के साथ उसका उपयोग महत्वपूर्ण था।

अपंजीकृत ट्रेडमार्क के संबंध में ठोस प्रावधानों के अभाव के कारण ही विषय वस्तु से संबंधित मामले न्यायिक निर्णयों पर अत्यधिक निर्भर होते हैं। इसलिए, जब तक सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों द्वारा कोई मिसाल (प्रेसिडेंट) नहीं दी जाती है या ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 में संशोधन नहीं किया जाता है, तो अपंजीकृत व्यापार से संबंधित कानून वही रहेंगे।

संदर्भ

 

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