यह लेख केआईआईटी स्कूल ऑफ लॉ की Sushree Surekha Choudhury द्वारा लिखा गया है। इस लेख में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 365 और उसके प्रावधानों का विस्तृत विवरण दिया गया है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।
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परिचय
अनुच्छेद 365, भारतीय संविधान के भाग XIX (प्रकीर्ण (मिसेलेनीअस) के अंतर्गत आता है। अनुच्छेद 365 के प्रावधानों की अक्सर अनदेखी की जाती है। लेकिन यह केंद्र-राज्य सहयोग और समन्वय (कोऑर्डिनेशन) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और संवैधानिक तंत्र को महत्व देता है। संविधान का अनुच्छेद 365 उस राज्य पर राष्ट्रपति शासन लगाता है जो केंद्र सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करने में विफल रहता है। भले ही राज्यों को अपने आंतरिक मामलों को चलाने और राज्य के व्यवसाय का संचालन करने में स्वायत्तता (ऑटोनोमी) और विवेक का आनंद मिलता है, लेकिन कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं जब संघ विशेष निर्देश देता है जिसका हर राज्य को पालन करना चाहिए। जब राज्य इस तरह के निर्देशों का पालन करने में विफल रहता है, तो संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति राज्य में आपातकाल लगा सकते है और विशेष राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकतें हैं। यह लेख अनुच्छेद 365 के प्रावधानों और भारत में इसे लागू करने के तरीके के बारे में बात करता है।
केंद्र-राज्य संबंध
भारत के संविधान और केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन को 3 सूचियों में विभाजित किया गया है: राज्य सूची, संघ सूची और समवर्ती (कॉन्करेंट) सूची।
- राज्य सूची के तहत, राज्यों को निर्णय लेने, कानून बनाने और उन्हें लागू करने की शक्ति है।
- संघ सूची में सूचीबद्ध विषयों के लिए, कानून बनाना केंद्र सरकार का पूर्ण विवेकाधिकार है।
- समवर्ती सूची एक ऐसी सूची है जहां राज्यों और केंद्र दोनों के पास निर्णय लेने की शक्तियां होती हैं, फिर भी अंतिम विवेक अपने-अपने राज्यों के लिए राज्य सरकारों का होता है।
राज्य सरकारों को दी गई विवेकाधीन शक्तियों और पूरे देश के व्यवसाय को संचालित करने के लिए केंद्र सरकार की शक्ति के बीच संतुलन बनाने के लिए, केंद्र-राज्य संबंध एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इन्हें विभाजित किया जाता है:
- केंद्र और राज्यों के बीच विधायी संबंध (भारतीय संविधान के अनुच्छेद 245–255 )
- केंद्र और राज्यों के बीच प्रशासनिक संबंध (भारतीय संविधान का अनुच्छेद 256-263)
- केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संबंध (भारतीय संविधान का अनुच्छेद 268-293 )।
इस प्रकार राज्य, संविधान के प्रावधानों और संसद द्वारा बनाए गए कानूनों का पालन करने के लिए बाध्य हैं। उन्हें अपने कार्यकारी (एग्जीक्यूटिव) कर्तव्यों का पालन इस तरह से करना होता है जो उस राज्य पर संघ की कार्यकारी शक्तियों को बाधित नहीं करता है। राज्य सरकारें कई पहलुओं पर केंद्र सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं जहां केंद्र सरकार को राज्यों को निर्देश देने का अधिकार है। ये अनिवार्य प्रावधान हैं और इनका पालन करने में विफलता के कारण अनुच्छेद 365 लागू किया जाता है। जब किसी राज्य द्वारा अनुच्छेद 365 का उल्लंघन किया जाता है, तो राष्ट्रपति के पास संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत उस राज्य में राष्ट्रपति शासन की घोषणा करने का विवेक होता है। इस प्रकार, अनुच्छेद 365 और अनुच्छेद 356 को अक्सर एक साथ पढ़ा जाता है।
मामले जिन पर केंद्र राज्यों को निर्देश जारी कर सकता है
चूंकि केंद्र, केंद्र-राज्य संबंधों द्वारा सशक्त है, इसलिए यह निम्नलिखित मामलों में राज्यों को निर्देश जारी कर सकता है:
- केंद्र राष्ट्रीय महत्व वाले चीज़ो जैसे रोडवेज, रेलवे और संचार (कम्युनिकेशन) के अन्य साधन और सैन्य महत्व वाली चीजों/स्थानों के निर्माण और रखरखाव के लिए दिशा-निर्देश।
- रेलवे के रखरखाव पर दिशा-निर्देश।
- भाषाई अल्पसंख्यक (माइनोरिटीज) समूहों के लिए शिक्षण संस्थानों को निर्देश।
- राज्यों में अनुसूचित जनजातियों के लिए दिशा-निर्देश और योजनाएं।
- पारस्परिक प्रत्यायोजन (म्यूचुअल डेलीगेशन) की स्थिति भी हो सकती है जहां संघ किसी विशेष राज्य की अपनी कार्यकारी शक्तियों को राज्य सरकार को सौंप सकता है और राज्य सरकार संघ पर अपनी शक्तियों को निहित कर सकती है।
उदाहरण के लिए, 2020 की कोविड-19 महामारी के दौरान, केंद्र सरकार ने कई अनिवार्य निर्देश दिए जिनका पालन हर राज्य को करना था, जिसमें लॉकडाउन नियम भी शामिल थे। ऐसी स्थितियों में, यदि कोई राज्य संघ के निर्देशों का पालन नहीं करता है, तो राष्ट्रपति इसे अनुच्छेद 365 का उल्लंघन और संवैधानिक तंत्र का उल्लंघन करार दे सकते हैं। हाल ही में, जून 2022 में, केंद्र सरकार ने पांच राज्यों – तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, महाराष्ट्र और कर्नाटक को निर्देश जारी किए क्योंकि राज्यों ने कोविड-19 मामलों की संख्या में तेजी से वृद्धि देखी। केंद्र सरकार ने इन राज्यों की सरकारों को संक्रमण के प्रसार (स्प्रेड) को रोकने के लिए तत्काल सतर्क कदम और पूर्व-उपाय करने का निर्देश दिया था।
रामेश्वर उरांव बनाम बिहार राज्य और अन्य (1995) के मामले में, अदालत ने कहा कि राज्य सरकारों के लिए यह अनिवार्य है कि वे केंद्र सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करें। इस मामले में केंद्र सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करने के लिए राज्य सरकारों के दायित्व की अनिवार्यता के बारे में बात की गई थी।
राजस्थान राज्य और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (1977), के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने देखा कि अनुच्छेद 256 के तहत राज्य सरकारों को निर्देश जारी करने की केंद्र सरकार की शक्ति का इस्तेमाल किया जा सकता है और इसे उचित ठहराया जा सकता है यदि केंद्र सरकार की राय है कि राज्य सरकार और राज्य सरकार की कार्यकारी शक्तियां संघ कानूनों के उल्लंघन में चल रही हैं। ।
यह कर्नाटक राज्य बनाम भारत संघ और अन्य (1978), में देखा गया था कि जब केंद्र सरकार राज्य सरकारों को निर्देश जारी करती है और जब यह केंद्रीय कानूनों का उल्लंघन करने वाली राज्य कार्यपालिका की धारणा के साथ किया जाता है, तो ऐसे निर्देश जारी करते समय केंद्र सरकार को एक कानूनी इकाई माना जाता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 365 के प्रावधान
संविधान का अनुच्छेद 365, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के प्रावधानों का विस्तार है। राष्ट्रपति दो स्थितियों में आपातकालीन प्रावधान लागू कर सकते हैं:
- संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रपति द्वारा पूरे भारत पर राष्ट्रीय आपातकाल लगाया जा सकते है ।
- जब किसी राज्य द्वारा अनुच्छेद 365 का उल्लंघन किया जाता है, तो राष्ट्रपति अनुच्छेद 356 के तहत राज्य में आपातकाल लगा सकते है।
अनुच्छेद 365 का इतिहास
संविधान का अनुच्छेद 365 राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों का एक हिस्सा है। जब भी केंद्र सरकार किसी भी संदर्भ में राज्य सरकारों को निर्देश देती है जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, राज्य सरकारें इसका पालन करने के लिए बाध्य होती हैं। यदि राज्य सरकार उन निर्देशों का पालन करने में विफल रहती है, तो यह उस राज्य द्वारा अनुच्छेद 365 का उल्लंघन है, और राष्ट्रपति उस राज्य पर अनुच्छेद 356 लगा सकते हैं और अपना शासन ग्रहण कर सकते हैं। इस प्रकार यह प्रावधान राष्ट्रपति को लोकतंत्र में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को बर्खास्त (डिस्मिस) करने की शक्ति देकर संघ की कार्यपालिका पर भारी शक्तियाँ प्रदान करता है।
दुनिया में केवल दो लोकतंत्रों, भारत और पाकिस्तान के संविधान में ये प्रावधान हैं। इन प्रावधानों की उत्पत्ति भारत सरकार अधिनियम, 1935 देखी जा सकती है, जब भारत और पाकिस्तान दोनों ने इसे अपनाया था। भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 93 के तहत राज्यपाल को उद्घोषणा (प्रोक्लेमेशन) जारी करने की शक्तियाँ निहित थीं, जैसे:
- जब एक प्रांत (प्रोविंस) के राज्यपाल को लगता है कि उस प्रांत की सरकार भारत सरकार अधिनियम (1935) के प्रावधानों के अनुसार नहीं चल रही है, तो वह इस धारा के तहत घोषणा कर सकता है।
- राज्यपाल इस प्रकार उस प्रांत में अपना शासन लागू कर सकता था और घोषणा कर सकता था कि प्रांत उसकी शक्ति के अधीन शासित होगा।
- राज्यपाल उस प्रांत के लिए किसी निकाय या प्राधिकरण (अथॉरिटी) की निहित सभी शक्तियों को अपने पास ले सकता है।
- राज्यपाल इस प्रकार किसी भी प्रांतीय निकाय या प्राधिकरण को निलंबित (सस्पेंड) या भंग कर सकता है जो पहले शक्तियों के साथ निहित है।
- हालाँकि, राज्यपाल उस प्रांत में न्यायपालिका के कामकाज पर अपना शासन लागू करने का हकदार नहीं था।
- इस तरह की उद्घोषणा को उसके द्वारा केवल नई उद्घोषणा के साथ ही निरस्त किया जा सकता है।
- राज्यपाल ऐसी उद्घोषणा की शर्तों को भी बदल सकता है।
- इस तरह की घोषणा दोबारा चुनाव तक 2 साल की अवधि के लिए हो सकती है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 365 के तहत विवेकाधिकार
अनुच्छेद 365 प्रकृति में निर्देशिका (डायरेक्टरी) और विवेकाधीन है। यह अनिवार्य प्रावधान नहीं है। अनुच्छेद 365 कहता है कि ‘राष्ट्रपति के लिए ऐसा करना वैध होगा …’ इसका मतलब यह है कि जब किसी राज्य में आपातकाल की स्थिति उत्पन्न होती है, तो अनुच्छेद 365 के उल्लंघन के कारण, यह राष्ट्रपति का विवेक है कि क्या उस राज्य में आपातकाल की घोषणा करनी है या नहीं। राष्ट्रपति किसी राज्य में शासन और अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिस्डिकशन) ग्रहण करने के लिए बाध्य नहीं है यदि यह माना जाता है कि वह संघ द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करने में विफल रहा है। राष्ट्रपति यदि आवश्यक समझे तो ऐसा करेंगे। इस प्रकार, यह एक दायित्व नहीं बल्कि एक विवेक है क्योंकि राष्ट्रपति यह चुन सकता है कि उस राज्य में शासन करना है या नहीं। राष्ट्रपति इस तरह के नियम को तभी मानते है जब वह संतुष्ट हो कि राज्य के उचित कामकाज के लिए ऐसा करना आवश्यक है। चूंकि राष्ट्रपति शासन लागू करने का अर्थ यह होगा कि राज्य की सरकार अब संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चल सकती है, तो शक्तियों का प्रयोग राष्ट्रपति द्वारा प्रतिबंधित रूप से किया जाता है। राष्ट्रपति को ऐसी स्थिति को प्रभावित करने वाले सभी कारकों पर उचित विचार करना चाहिए जहां राज्य पर केंद्र के निर्देशों का पालन करने में विफल रहने या संविधान का उल्लंघन करने और ऐसी स्थिति उत्पन्न होने के सभी संभावित कारणों का आरोप लगाया जाता है। राज्य सरकार को सुनवाई का उचित अवसर दिया जाना चाहिए। राष्ट्रपति को ऐसी स्थिति को प्रभावित करने वाले सभी कारकों पर उचित विचार करना चाहिए जहां राज्य पर केंद्र के निर्देशों का पालन करने में विफल रहने या संविधान का उल्लंघन करने और ऐसी स्थिति उत्पन्न होने के सभी संभावित कारणों का आरोप लगाया जाता है। राज्य सरकार को सुनवाई का उचित अवसर दिया जाना चाहिए।
राष्ट्रपति शासन
अनुच्छेद 365 उस राज्य में राष्ट्रपति शासन के कार्यान्वयन (इंप्लीमेंटेशन) की ओर ले जाता है जिसने इसका उल्लंघन किया है। जब किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है, तो राज्य सरकार को निलंबित कर दिया जाता है और केंद्र का प्रत्यक्ष (डायरेक्ट) शासन लागू कर दिया जाता है। किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन 6 महीने तक बना रह सकता है, और इसे राष्ट्रपति की इच्छा से किसी भी समय रद्द किया जा सकता है। हालाँकि, 6 महीने की इस अवधि को चरणों में 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है, अगर कुछ मानदंड (क्राइटेरिया) पूरे होते हैं।
भारत के राष्ट्रपति निम्नलिखित कारणों में से किसी एक कारण से राज्य में आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं:
- बाहरी आक्रमण के कारण,
- आंतरिक कुप्रबंधन (इंटरनल मिसमेनेजमेंट) के कारण, या
- भारतीय संविधान के उल्लंघन के कारण।
तीसरे आधार में अनुच्छेद 365 और अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है। भारत के राष्ट्रपति किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र के टूटने या केंद्र सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करने में राज्य की विफलता के कारण अनुच्छेद 365 के तहत आपातकाल की घोषणा करके किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं।
किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करना
भारत के राष्ट्रपति एक राज्य पर अपना शासन तब लागू करते है जब वह संतुष्ट हो जाते है कि इस तरह के शासन को लागू करने की आवश्यकता है और उन सभी प्रासंगिक कारकों पर उचित विचार करते है, जिनके माध्यम से उस राज्य द्वारा संविधान का उल्लंघन किया गया हैं। राष्ट्रपति उस राज्य में अपना शासन लागू करते है जब वह उन परिस्थितियों से संतुष्ट होते है कि ऐसा करना समीचीन (एक्सपीडिएंट) है। राष्ट्रपति अपना शासन निम्नलिखित तरीके से लागू करते है:
- भारत के राष्ट्रपति भारत के प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह पर अपना शासन लागू करते हैं।
- यदि राष्ट्रपति इस बात से संतुष्ट हो जाते है कि राज्य को भारतीय संविधान के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है, तो वह राज्य पर अपना शासन लागू करते है। ऐसा तब होता है जब राज्य सरकार भारतीय संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलती है।
- एक अन्य कारक जो किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का कारण बन सकता है, वह यह है की जब राष्ट्रपति संतुष्ट हो जाते है कि राज्य सरकार उस राज्य के राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट समय अवधि के भीतर उस राज्य के लिए मुख्यमंत्री के रूप में एक उम्मीदवार का चुनाव करने में सक्षम नहीं है।
- यदि राज्य के मुख्यमंत्री राज्य विधानमंडल के सदनों में बहुमत खो देते हैं, तो इससे राज्य में उनकी सरकार भंग हो जाएगी। यदि सत्तारूढ़ दल को बहुमत हासिल करने के लिए पहले एक निश्चित समय दिया जाता है, और यदि वह ऐसा करने में विफल रहता है, तो राष्ट्रपति उस राज्य में अपना शासन लागू कर सकता है।
- यदि सत्तारूढ़ दल राज्य विधान सभा में बहुमत खो देता है, उसके बाद अविश्वास (नो मोशन) प्रस्ताव आता है, तो राष्ट्रपति बहुमत खोने वाली राज्य सरकार को बर्खास्त करने का आदेश देने के बाद, उस राज्य में अपना शासन लागू करने की घोषणा कर सकता है।
- यदि प्राकृतिक आपदाओं, महामारी या युद्ध जैसी स्थितियों के कारण राज्य के चुनाव रोक दिए जाते हैं तो राष्ट्रपति राज्य में अपना शासन थोड़े समय के लिए लगा सकते हैं। इस स्थिति में राष्ट्रपति फिर से चुनाव होने और एक नई सरकार बनने तक, जिसके बाद राष्ट्रपति उस राज्य में अपना शासन रद्द कर सकते है, तब तक वह राज्य पर शासन करना जारी रखते है।
किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का तरीका और उसकी अवधि
किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के चरणों का उल्लेख नीचे किया गया है:
- सबसे पहले, किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए अनुच्छेद 365 के उल्लंघन को साबित करना होगा।
- ऐसी स्थिति पर गौर करना होगा और राष्ट्रपति को संतुष्ट होना होगा कि अनुच्छेद 356 को लागू करना समीचीन है।
- राष्ट्रपति, संतुष्ट होने पर, राज्य आपातकाल की घोषणा जारी करता है।
- इस तरह की घोषणा को लागू करने के लिए भारत की संसद द्वारा अनुमोदित (अप्रूव) किया जाता है।
- इसे जारी होने के दो महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किया जाता है।
- यदि लोकसभा का सत्र नहीं चल रहा है या भंग कर दिया गया है, और राज्य सभा द्वारा उद्घोषणा को मंजूरी दे दी गई है, तो उद्घोषणा लोकसभा के पुन: संविधान से 30 दिनों तक जारी रहती है।
- जब संसद द्वारा उद्घोषणा को मंजूरी दी जाती है, तो यह 6 महीने तक सक्रिय रह सकती है। इस अवधि को छह महीने के चरणों में तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है जहां हर चरण में संसद से अनुमोदन प्राप्त करना होता है। यह 3 साल की विस्तार सीमा 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम (1978) के माध्यम से पेश की गई थी। इस तरह के विस्तार को मजबूत तर्क और औचित्य (जस्टिफिकेशन) द्वारा समर्थित होना चाहिए। 44वें संविधान संशोधन अधिनियम से पहले, राष्ट्रपति शासन लगाने की अधिकतम अवधि एक वर्ष के लिए थी।
राष्ट्रपति शासन के परिणाम
किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद होने वाले परिणामों का उल्लेख नीचे किया गया है:
- ऐसे राज्य के राज्यपाल को राज्य का संवैधानिक प्रमुख बनाया जाता है।
- ऐसे राज्य की विधानसभा या तो भंग हो जाती है या सत्रावसान (प्रोरोग) हो जाती है।
- राज्य का संचालन केंद्र सरकार और केंद्रीय प्रशासन द्वारा किया जाता है।
- चुनाव आयोग को 6 महीने के भीतर राज्य के लिए एक नई राज्य सरकार के गठन के लिए फिर से चुनाव कराने की आवश्यकता है।
- हालांकि इस तरह के लागू करने से राज्य की आम जनता को सीधे तौर पर प्रभावित नहीं किया जाता है, लेकिन यह जनता की भलाई को बाधित करने के रूप में उन्हें प्रभावित करता है क्योंकि राज्य में कोई बड़ा कानूनी या प्रशासनिक परिवर्तन नहीं लाया जा सकता है।
- किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन के दौरान कोई नई नीति नहीं बनाई जा सकती है।
- किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य विधानमंडल में विधेयक (बिल) पारित करके कोई नया कानून नहीं बनाया जा सकता है।
- राष्ट्रपति शासन की इस अवधि के दौरान लंबित सार्वजनिक और राज्य कल्याणकारी नीतियां लंबित रहती हैं।
अनुच्छेद 365 और अनुच्छेद 356 के बीच अंतर्संबंध
अनुच्छेद 356 और अनुच्छेद 365 इस तरह से परस्पर जुड़े हुए हैं कि एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं रह सकता है। उनके अंतर्संबंध, समानताएं और अंतर इस प्रकार देखे जा सकते हैं:
- इन दोनो मे से कोई भी एक दूसरे के बिना नहीं रह सकता। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि अनुच्छेद 356, अनुच्छेद 365 के उल्लंघन के लिए लगाया जाता है और अनुच्छेद 365, अनुच्छेद 356 को लागू करता है।
- जब कोई राज्य केंद्र सरकार द्वारा जारी निर्देशों का पालन न करने का दोषी हो, या जब राज्य सरकार ने भारतीय संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन किया हो; अनुच्छेद 365 लागू हो जाता है।
- यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जहां केंद्र सरकार, संवैधानिक तंत्र के टूटने या किसी अन्य कारण से किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करना समीचीन समझती है तो केंद्र सरकार उस राज्य की सरकार को बर्खास्त करने का आदेश दे सकती है और इस तरह उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकती है।
- अनुच्छेद 356, अनुच्छेद 356 को लागू करने के लिए एक पूर्वापेक्षा (प्रीरिक्विजाइट) है। अनुच्छेद 365 को अनुच्छेद 356 का विस्तार माना जाता है। भारत के राष्ट्रपति अनुच्छेद 356 के प्रावधानों को अनुच्छेद 365 में उल्लिखित दो आधारों में से किसी एक पर राज्य पर लागू कर सकते हैं।
- अनुच्छेद 356 और अनुच्छेद 365 दोनों प्रकृति में विवेकाधीन हैं। इसका अर्थ यह है कि राष्ट्रपति को इन अनुच्छेदों को किसी राज्य पर थोपने का अधिकार नहीं है। राष्ट्रपति ऐसा, अपनी इच्छा और विवेक पर, सभी प्रासंगिक कारकों पर उचित विचार करने के बाद करते है, जिससे अनुच्छेदों का आह्वान किया जाता है।
- अनुच्छेद 356 और अनुच्छेद 365 दोनों चरम स्थितियों में लागू होते हैं और अन्यथा नहीं। उल्लंघन की गंभीरता के लिए सावधानीपूर्वक जांच की जाती है और ऐसा तभी किया जाता है जब स्थिति राष्ट्रपति शासन के कार्यान्वयन और सरकार को बर्खास्त करने की मांग करती है।
- प्रक्रियात्मक पहलू में अनुच्छेद 365 सबसे पहले आता है। अनुच्छेद 365 के तहत उचित विचार और जांच के बाद और जब राष्ट्रपति संतुष्ट हो जाते हैं कि अनुच्छेद 365 का उल्लंघन किया गया है, तो राष्ट्रपति अनुच्छेद 356 लागू करते हैं। इस प्रकार, अनुच्छेद 356 अनुच्छेद 356 के तहत घोषणा करने से पहले पालन की जाने वाली प्रक्रिया है।
उदाहरण जहां भारत में भारतीय संविधान का अनुच्छेद 365 लागू किया गया था
ऐसे कई उदाहरण हैं जहां भारत के राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 365 के उल्लंघन में एक राज्य पर राष्ट्रपति शासन लगाया था। राज्यों में संवैधानिक तंत्र को भंग करने के लिए राष्ट्रपति शासन लागू करने के उदाहरण इस प्रकार हैं:
- 1951 में पंजाब में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया था जब पंडित जवाहरलाल नेहरू सरकार ने राज्य में गोपी चंद भार्गव के मंत्रालय को निलंबित कर दिया था।
- 2001 में, मणिपुर राज्य सरकार, जो सिर्फ एक साल पहले बनी थी, को खरीद-फरोख्त (हॉर्स ट्रेडिंग) के आरोप में निलंबित कर दिया गया था, जिसके बाद अविश्वास प्रस्ताव आया था।
- 2007 में, कर्नाटक में सत्तारूढ़ दल के बहुमत खोने के बाद से राष्ट्रपति शासन लगाया गया था।
- 2008 में, जम्मू और कश्मीर राज्य सरकार ने बहुमत खो दिया, और इसके बाद राज्य में विरोध प्रदर्शन हुए। इस प्रकार राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
- 2014 में, अपने सहयोगियों के साथ संबंध अलग करने के कारण महाराष्ट्र सरकार को भंग कर दिया गया था। नतीजतन, राज्य पर राष्ट्रपति शासन लगाया गया था।
- सत्तारूढ़ दल के विभाजन और परिणामी विफलता के कारण, 2016 में उत्तर प्रदेश में दो बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया था।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 365 पर ऐतिहासिक निर्णय
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 365 के तहत नीचे उल्लिखित ऐतिहासिक निर्णय हैं:
एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ
इस मामले में, यह 1988-89 में था जब एसआर बोम्मई कर्नाटक में जनता दल का प्रतिनिधित्व करने वाले मुख्यमंत्री थे। 1989 में, दोषपूर्ण शासन के कारण बहुमत खोने के आधार पर उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था। हालाँकि, एसआर बोम्मई सरकार को राज्य विधान सभा में अपने बहुमत का परीक्षण करने का अवसर कभी नहीं मिला क्योंकि इसे राज्य के तत्कालीन राज्यपाल द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया था और इस तरह के इनकार के लिए कारण निर्दिष्ट नहीं किए गए थे। इस तरह के कदम को मनमाने ढंग से माना गया और उनकी सरकार की बर्खास्तगी के कारण राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया गया। इस प्रकार, एसआर बोम्मई ने निवारण के लिए अदालत का रुख किया।
वर्षों की मुकदमेबाजी के बाद, 1994 में सर्वोच्च न्यायालय ने 9 जज बेंच के साथ यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया कि एसआर बोम्मई सरकार की बर्खास्तगी मनमानी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस तरह की बर्खास्तगी को अमान्य करने का आदेश दिया और इस तरह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत निहित शक्ति के इस तरह के मनमाने उपयोग को समाप्त करने के लिए कुछ उचित प्रतिबंध लगाए। वे दिशाएँ थीं:
- मंत्रिपरिषद द्वारा प्राप्त बहुमत का परीक्षण सदन के आधार पर किया जाना चाहिए।
- केंद्र को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने से पहले राज्य को चेतावनी देनी चाहिए और जवाब देने के लिए एक सप्ताह का समय भी देना चाहिए।
- राष्ट्रपति को ऐसी स्थिति में विधानसभा को भंग नहीं करना चाहिए या अनुच्छेद 356 (3) के तहत कार्रवाई नहीं करनी चाहिए जब तक कि ऐसा करना समीचीन न हो।
- अनुच्छेद 356 केवल अनुच्छेद 365 के तहत संवैधानिक तंत्र के टूटने के लिए लागू किया जा सकता है और अन्यथा नहीं।
- ऐसा कार्यान्वयन सभी आवश्यक कारकों को ध्यान में रखते हुए उचित रूप से किया जाएगा।
यह एक ऐतिहासिक निर्णय था जिसने अनुच्छेद 365 के आधार को स्थापित किया और अनुच्छेद 356 के तहत इसके कार्यान्वयन को स्थापित किया। अनुकरणीय (एक्सेमप्लरी) मामले और उसमें बताए गए दिशा-निर्देशों का पालन तब से किया गया है।
आंध्र प्रदेश सरकार का मामला [मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी बनाम न्यायाधीश (आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय)]
2020 में, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा संवैधानिक तंत्र के टूटने की जांच करने के लिए स्वत: संज्ञान लिया। राज्यपाल की राय थी कि सरकार को बर्खास्त करने की जरूरत है और राष्ट्रपति शासन लागू किया जाना चाहिए। यह मामला भारत के सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा जहां यह देखा गया कि आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने न्यायिक अतिरेक (ओवररीच) का मामला बनाया और यह मध्यस्थ (आर्बिट्रल) करने योग्य था। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी और कहा कि यह भारतीय संविधान के तहत दी गई शक्ति का दुरुपयोग है और भारतीय संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत का उल्लंघन है।
निष्कर्ष
केंद्र-राज्य संबंध लोकतंत्र की एक मूलभूत विशेषता है। केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय और सहयोग राष्ट्र के सुचारू (स्मूथ) कामकाज में मदद करता है। अनुच्छेद 365 के तहत राष्ट्रपति को निहित शक्तियां असाधारण शक्तियां हैं और उन्हें उचित और अंतिम उपाय के रूप में प्रयोग किया जाता है। जब भी भारत के राष्ट्रपति केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन करने में विफलता के लिए अनुच्छेद 365 के तहत किसी राज्य सरकार को निलंबित करते हैं और उस राज्य में केंद्र सरकार का नियम लागू करते हैं, तो कई परिणाम सामने आते हैं, जैसे राज्य में विधानसभा का विघटन या सत्रावसान, राज्य में नीति निर्माण, निर्णय लेने और नए कानूनों को लागू करने आदि पर अनिश्चितकालीन (इंडेफिनिटी) विराम होता है।
अनुच्छेद 365 राष्ट्रपति शासन लगाने के मुख्य प्रावधान का विस्तार है, जिसका उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत किया गया है। ये अनुच्छेद परस्पर जुड़े हुए हैं और इन्हें एक साथ पढ़ने की आवश्यकता है। जब किसी राज्य को अनुच्छेद 365 के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए उत्तरदायी ठहराया जाता है, तो राष्ट्रपति उस राज्य में राज्य आपातकाल की घोषणा करके और अनुच्छेद 356 के तहत सत्तारूढ़ सरकार को भंग करके अपना शासन लागू करते है। अनुच्छेद 365 पर नीति निर्माताओं और सांसदों द्वारा अत्यधिक बहस की जाती है क्योंकि यह संवैधानिक मशीनरी के वास्तविक टूटने के बजाय राजनीतिक एजेंडा और भ्रष्ट कारणों को पूरा करने के लिए एक उपकरण के रूप में दुरुपयोग किया जा रहा है। कार्यान्वयन की कई घटनाएं उसी के संकेत हैं। यह अनुच्छेद कितना संवैधानिक रूप से वैध है और क्या यह रहने के लिए है यह तो समय ही बताएगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफ.ए.क्यू.)
अनुच्छेद 365 क्या है?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 365 भारत के राष्ट्रपति को एक राज्य में अपना शासन फिर से शुरू करने की शक्ति प्रदान करता है। यह तब होता है जब कोई राज्य केंद्र सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करने में विफल रहता है या कहा जाता है कि उसने संवैधानिक तंत्र का उल्लंघन किया है कि अनुच्छेद 365 लागू किया जाता है। जब अनुच्छेद 365 लागू होता है, तो राष्ट्रपति अनुच्छेद 356 के तहत किसी राज्य में आपातकाल की स्थिति की घोषणा करते है।
अनुच्छेद 365 और अनुच्छेद 356 में क्या अंतर है?
अनुच्छेद 365 तब होता है जब किसी राज्य को कुछ परिस्थितियों में केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को दिए गए निर्देशों का पालन न करके संवैधानिक तंत्र का उल्लंघन करने के लिए माना जाता है। जब माना जाता है कि अनुच्छेद 365 का उल्लंघन किया गया है, तो राष्ट्रपति उस राज्य में अनुच्छेद 356 के तहत आपातकाल की घोषणा करने के हकदार है।
किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन कब तक लगाया जा सकता है?
राष्ट्रपति शासन 6 महीने के लिए लगाया जा सकता है। भारत के संविधान के तहत बताए गए कारणों और अनुमति के लिए इसे चरणों में अधिकतम 3 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
अनुच्छेद 365 की प्रकृति क्या है?
अनुच्छेद 365 के उल्लंघन के लिए राष्ट्रपति शासन विवेकाधीन है। यह प्रकृति में अनिवार्य नहीं है, जिसका अर्थ है कि राष्ट्रपति किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र के हर विश्वास के टूटने के लिए शासन लागू करने के लिए बाध्य नहीं है। इस प्रकार, किसी राज्य में अनुच्छेद 365 लागू करना राष्ट्रपति का विवेकाधिकार है।
संदर्भ