यह लेख सत्यबामा इंस्टीट्यूट एंड टेक्नोलॉजी के छात्र Michael Shriney द्वारा लिखा गया है। यह लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 144 के प्रावधान पर विस्तार से चर्चा करता है, जिसमें प्रावधान के आधार, इसके बारे में कुछ तथ्य और संबंधित निर्णय के साथ-साथ और भी बहुत कुछ शामिल है। इस लेख का अनुवाद Archana Chaudhary द्वारा किया गया है।
Table of Contents
परिचय
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 144 संघ न्यायपालिका (यूनियन ज्यूडिशियरी) के अध्याय IV का हिस्सा है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 144 सर्वोच्च न्यायालय की सहायता के लिए नागरिक और न्यायिक प्राधिकरण (अथॉरिटी) के दायित्वों पर चर्चा करता है। भारतीय क्षेत्र में, सभी प्राधिकरण, नागरिक और न्यायिक, को सर्वोच्च न्यायालय के समर्थन में कार्य करने का निर्देश दिया गया है। 27 मई, 1949 को संविधान सभा ने संविधान के मसौदे (ड्राफ्ट) के अनुच्छेद 120 की जांच की, जिसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 144 के रूप में भी जाना जाता है। संविधान के मसौदे के अनुसार सभी नागरिक प्राधिकरण को सर्वोच्च न्यायालय के समर्थन में कार्य करना आवश्यक था। विधानसभा ने बिना बहस के मसौदा अनुच्छेद को मंजूरी दे दी और इसे 27 मई, 1949 को अपनाया गया था।
संवैधानिक ढांचे (फ्रेमवर्क) में अन्य प्राधिकरण को इस शक्ति का दावा करने या सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को बदलने की अनुमति नहीं है, सिवाय नागरिक और न्यायिक प्राधिकरण के, जिनके पास इस अनुच्छेद के रूप में उल्लेख की गई शक्ति है। यह शक्ति विशेष रूप से नागरिक कानूनों से संबंधित है। नागरिक और न्यायिक प्राधिकरण सर्वोच्च न्यायालय का समर्थन करने के लिए अधीनस्थ (सबोर्डिनेट) के रूप में कार्य करते हैं। अनुच्छेद 144A एक विशेष प्रावधान भी था जो एक कानून की संवैधानिक वैधता से संबंधित है, जिसे संविधान द्वारा 1977 के 43वें संशोधन अधिनियम में हटा दिया गया था।
आइए कुछ प्रासंगिक निर्णय के साथ-साथ अनुच्छेद 144 को विस्तार से देखें।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 144
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 144 में कहा गया है कि
“भारत के क्षेत्र में सभी नागरिक और न्यायिक प्राधिकरण को सर्वोच्च न्यायालय के पक्ष में कार्य करना चाहिए।”
इस शक्ति का दावा किसी अन्य प्राधिकरण द्वारा या सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अधिक्रमण (सुपरसेशन) में नहीं किया जा सकता है। जब सर्वोच्च न्यायालय एक उच्चारित निर्णय की घोषणा करता है, तो विवाद की परवाह किए बिना, इसके बाध्यकारी प्रभाव को पहचानना प्रत्येक व्यक्ति और प्राधिकरण की संवैधानिक जिम्मेदारी है। यह लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर स्थापित एक संवैधानिक संरचना है जिसमें राष्ट्र के कानून का शासन शामिल है, और यह अंत में कानून की व्याख्या करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक भूमिका है। वक्ता (स्पीकर) और अन्य अपने दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं जो संवैधानिक संरचना के प्रति सचेत हैं जो कि उनके अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिसडिक्शन) का उतना ही स्रोत (सोर्स) है जितना कि सर्वोच्च न्यायालय, और यह भी जानते हैं कि संविधान के प्रत्येक भाग को सौंपा गया अधिकार संवैधानिक दायित्व के लिए नहीं बल्कि सार्वजनिक कर्तव्य की पूर्ति के लिए है।
इस दृष्टिकोण की व्याख्या के बाद कोई विवाद नहीं होगा। एक वैधीकरण अधिनियम को अपनाकर, विधायिका सर्वोच्च न्यायालय के एक घोषणात्मक निर्णय को पूर्वव्यापी (रेट्रोस्पेक्टिव) रूप से अप्रभावी घोषित कर सकती है। हालांकि, सरकार उस मामले में न्यायालय के निर्णय से बच नहीं सकती है जिसमें न्यायालय के निर्णय को रद्द करने के लिए पूर्वव्यापी रूप से नियमों को बदलकर सामने रखा गया। समाधान खोजने के लिए समीक्षा (रिव्यू) का उपयोग किया जा सकता है। न्यायालय के फैसले का तब तक पालन किया जाना चाहिए जब तक वह प्रभावी रहता है। नागरिक और न्यायिक प्राधिकरण संवैधानिक रूप से न केवल सर्वोच्च न्यायालय की ओर से कार्य करने के लिए बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के घोषित कानून को निष्पादित (एक्जीक्यूट) करने के लिए और इसके आदेशों, डिक्री या निर्देशों की सहायता के लिए भी बाध्य हैं।
जानबूझकर अवज्ञा (डिसओबिडिएंस) और कानून का पालन न करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की सजा गंभीर है। सर्वोच्च न्यायालय के पास डिफ़ॉल्ट रूप से सरकार के खिलाफ अनुकरणीय लागत (एक्सेमप्लेरी कॉस्ट) लगाने का अधिकार है। कोई भी नागरिक या न्यायिक प्राधिकरण जो सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी निर्देश का पालन करने में विफल रहता है तो उसे अदालती प्रक्रियाओं की अवमानना (कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट) और दंड का सामना करना पड़ सकता है। सर्वोच्च न्यायालय के पास अदालती आरोपों की अवमानना जारी करने की शक्ति है, जिसे नागरिक या न्यायिक प्राधिकरण द्वारा आदेशों का पालन करने में विफलता के लिए याचिका नहीं की जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले और आदेश अनुच्छेद 142 के तहत लागू करने योग्य हैं, जिसका सभी भारतीय नागरिकों को पालन करना चाहिए। अनुच्छेद 144 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों और निर्णयों को लागू करने के उद्देश्य से नागरिक और न्यायिक प्राधिकरण को सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति के अधीन कर दिया गया है, इस अर्थ में कि वे सभी सर्वोच्च न्यायालय के समर्थन में कार्य करने के लिए आवश्यक हैं।
नागरिक और न्यायिक प्राधिकरण कौन हैं?
नागरिक प्राधिकरण
नागरिक प्राधिकरण हमेशा सैन्य प्राधिकरण (मिलिट्री अथॉरिटी) पर सर्वोच्च शासन करते हैं। नागरिक सेवा जनता के निर्वाचित (इलेक्टेड) प्रतिनिधियों के निर्देशन और पर्यवेक्षण (सुपरविजन) के तहत और नियमों और सिद्धांतों के अनुपालन में सरकारी गतिविधियों को करने के लिए कार्यात्मक इकाई (फंक्शनल एंटिटी) है। जैसा कि सरकार के लिए काम करते हुए कैबिनेट द्वारा कहा गया है नागरिक सेवा का काम संसद की इच्छा को पूरा करना है। उनका प्रमुख लक्ष्य नीतियों के निर्माण में सरकार की मदद करना और बाद में, इन नीतियों को जमीनी स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू करना है। भारत में नागरिक प्राधिकरण को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 144 के तहत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सहायता प्राप्त है।
नागरिक सेवा के प्रकार
तीन प्रकार की नागरिक सेवाएं इस प्रकार हैं:
- अखिल भारतीय नागरिक सेवा (ऑल इंडिया सिविल सर्विसेस)
- भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस)
- भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस)
- भारतीय वन सेवा (आईएफओएस)
- समूह ‘A’ नागरिक सेवा
- भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस)
- भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा (इंडियन ऑडिट एंड अकाउंट्स सर्विस) (आईएएएस)
- भारतीय सिविल लेखा सेवा (आईसीएएस)
- भारतीय कॉर्पोरेट कानून सेवा (आईसीएलएस)
- भारतीय रक्षा लेखा सेवा (आईडीएएस)
- भारतीय रक्षा संपदा सेवा (इंडियन डिफेंस एस्टेट्स सर्विस) (आईडीईएस)
- भारतीय सूचना सेवा (आईआईएस)
- भारतीय आयुध निर्माणी सेवा (इंडियन ऑर्डिनेंस फैक्ट्रीज सर्विस) (आईओएफएस)
- भारतीय संचार वित्त सेवा (इंडियन कम्युनिकेशन फाइनेंस सर्विस) (आईसीएफएस)
- भारतीय डाक सेवा (आईपीओएस)
- भारतीय रेलवे खाता सेवा (आईआरएएस)
- भारतीय रेलवे कार्मिक सेवा (इंडियन रेलवे पर्सनल सर्विस) (आईआरपीएस)
- भारतीय रेलवे यातायात सेवा (इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस) (आईआरटीएस)
- भारतीय राजस्व सेवा (इंडियन रेवेन्यू सर्विस) (आईआरएस)
- भारतीय व्यापार सेवा (आईटीएस)
- रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ)
- समूह ‘B’ नागरिक सेवा
- सशस्त्र बल मुख्यालय नागरिक सेवा (आर्म्ड फोर्सेस हेडक्वार्टर सिविल सर्विस)
- डीएएनआईसीएस
- डीएएनआईपीएस
- पांडिचेरी नागरिक सेवा
- पांडिचेरी पुलिस सेवा
न्यायिक प्राधिकरण
सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, जिला न्यायालय या अधीनस्थ न्यायालय और मजिस्ट्रेट न्यायालय भारत की न्यायिक प्रणाली का गठन करते हैं। न्यायपालिका सरकार की एक शाखा है जहां न्यायिक प्राधिकरण कानून की व्याख्या करने, विवादों को सुलझाने और सभी नागरिकों को न्याय देने के लिए जिम्मेदार है। इन प्राधिकरण को संविधान की रक्षा करनी चाहिए और लोकतंत्र का ख्याल रखना चाहिए। भारत में न्यायिक प्राधिकरण को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 144 के तहत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सहायता प्राप्त है।
न्यायिक प्राधिकरण कौन हैं
- भारत के मुख्य न्यायाधीश
- राज्यों के मुख्य न्यायाधीश
- न्यायिक परिषद (ज्यूडिशियल काउंसिल)
- कोई भी अभियोजक (प्रॉसिक्यूटर)
- कोई भी अदालत के मध्यस्थ (आर्बिट्रेटर)
- विशेष मास्टर
- न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) या किसी भी तरह का अन्य समान निकाय (बॉडी) और
- कोई भी अदालत के न्यायाधीश और कोई भी न्यायिक शक्तियों या किसी भी प्रकार के कार्यों का प्रयोग करने वाले सरकारी प्राधिकरण सभी न्यायिक प्राधिकरण हैं।
निर्णय
-
हॉफमैन एंड्रियास बनाम इंस्पेक्टर ऑफ लैंड कस्टम्स स्टेशन (2001)
मामले के तथ्य
याचिकाकर्ता का मामला पंजाब/चंडीगढ़ राज्य में अधिकार क्षेत्र के लिए उपयुक्त किसी अन्य न्यायालय में स्थानांतरण (ट्रांसफर) का अनुरोध करने के लिए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एडिशनल सेशन जज) के न्यायालय में लंबित था। याचिकाकर्ता पर नशीले पदार्थों के अपराध का आरोप लगाया गया और मुकदमा चलाया गया। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील की मौत हो गई। जब याचिकाकर्ता के नए वकील को काम पर रखा गया, तो उसने गवाहों को वापस बुलाने के लिए एक आवेदन प्रस्तुत किया, लेकिन निचली अदालत ने आवेदन को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता को सर्वोच्च न्यायालय में आपराधिक अपील शुरू करने के लिए अधिकृत (ऑथराइज्ड) किया गया था।
मामले में शामिल मुद्दे
याचिका के अनुसार, क्या सर्वोच्च न्यायालय को मामले को पंजाब/चंडीगढ़ राज्य में अधिकार क्षेत्र के लिए उपयुक्त किसी अन्य न्यायालय में स्थानांतरित करने की अनुमति है?
न्यायालय का निर्णय
सर्वोच्च न्यायालय ने गवाहों से दोबारा पूछताछ करने की याचिका मंजूर कर ली। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 141 और 144 के अनुसार, निचली अदालतों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों और निर्देशों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय के मुताबिक निचली अदालत ने निर्देशों का पालन नहीं किया। मामले को जालंधर के विशेष न्यायाधीश जो मामले को शुरुआत से अंत तक समाप्त होने तक न्याय करेंगे, को स्थानांतरित करने के लिए याचिका दी गई थी। विशेष न्यायाधीश उस तर्क से आगे बढ़ सकते है और फैसला सुना सकते है।
-
जी. प्रभाकरण बनाम पुलिस अधीक्षक (2018)
मामले के तथ्य
इस मामले में, याचिकाकर्ता उस दिशा के लिए पूछता है जहां पुलिस एक संज्ञेय (कॉग्निजेबल) अपराध दर्ज करती है। याचिकाकर्ता की शिकायत दर्ज करने के लिए मूल आपराधिक याचिका पुलिस में दायर की गई थी। यह मुद्दा नियमित रूप से न्यायालय को प्रस्तुत किया गया था, लेकिन इस विशेष मामले में, न्यायालय ने इसी तरह की याचिकाओं को हल करने के लिए अस्पष्टता को दूर करना चाहा। इन मुद्दों को हल करने के लिए और पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करने में स्पष्टता प्रदान करने के लिए डिवीजन बेंच को भेजा गया है।
मामले में शामिल मुद्दे
इस मामले में सवाल यह है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 144 को कैसे लागू किया जाता है?
न्यायालय का निर्णय
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 141 और 144 में पुलिस महानिदेशक (डायरेक्टर जनरल) को अनुपालन (कॉम्प्लाई) करने की आवश्यकता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 144 में सर्वोच्च न्यायालय की सहायता के लिए न्यायालय पर कार्रवाई करने का दायित्व निहित है। सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस के लिए अनुच्छेद 141 के तहत कार्रवाई करने के लिए एक समय सीमा निर्धारित की थी, और यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 144 के तहत इस कानून को शुरू करने की अदालत की शक्ति है। यदि पुलिस अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहती है, तो न्यायालय को संविधान के अनुच्छेद 144 और दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 482 के तहत हस्तक्षेप करने का अधिकार है। अदालत के पास याचिकाकर्ता के आरोप के जवाब में पुलिस को तुरंत प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज करने का आदेश देने का अधिकार है।
-
श्रीमती रिंकी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के माध्यम से माध्यमिक उच्च शिक्षा के प्रिंसिपल और अन्य (2019)
मामले के तथ्य
यह मामला शैक्षणिक वर्ष (एकेडमिक ईयर) 2013-2014 के लिए बी.एड पाठ्यक्रम (कोर्स) में विशिष्ट कॉलेजों में प्रवेश की अखंडता (इंटीग्रिटी) के साथ-साथ ऐसे छात्रों के लिए परीक्षा की घोषणा नहीं करने और उनके परिणामों की घोषणा से संबंधित है। इस मुद्दे के जवाब में कई याचिकाएं दायर की गईं थीं। रिंकी ने यह मामला दायर कर चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के प्रशासन से अपनी बी.एड की परीक्षा परिणाम की घोषणा करने का आदेश देने की मांग की थी।
मामले में शामिल मुद्दे
सवाल उठता है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 144 इस याचिका पर कैसे लागू होता है?
न्यायालय का निर्णय
उस याचिका में उच्च न्यायालय के निर्णय की समीक्षा करते हुए, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने नोट किया कि उच्च न्यायालय को उन अनिवार्य प्रश्नों को संबोधित करना था जिन पर निर्णय लेने का माननीय सर्वोच्च न्यायालय हकदार था। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय को अनुच्छेद 144 की याद दिलाई, जिसमें कहा गया है कि सभी नागरिक और न्यायिक निकायों को सर्वोच्च न्यायालय के अच्छे इरादों के साथ कार्य करना चाहिए। यह अनुच्छेद 144 हमारी न्यायिक प्रणाली के न्यायालयों के पदानुक्रमित ढांचे (हिरारर्कियल स्ट्रक्चर) के रखरखाव (मेंटेनेंस) और संचालन (ऑपरेशन) पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 141 और 144 के संदर्भ में, सर्वोच्च न्यायालय ने बी.एड पाठ्यक्रम में प्रवेश और परिणामों की घोषणा के लिए एक समय सीमा निर्धारित की। कॉलेज ऑफ प्रोफेशनल एजुकेशनल और अन्य के लिए समय सीमा निर्धारित की गई थी, लेकिन उन्हें समय सीमा का पालन करने में संकोच नहीं करना चाहिए क्योंकि शक्ति केवल नागरिक और न्यायिक प्राधिकरण को दी जाती है। परिणामों की घोषणा और छात्रों के प्रवेश को निर्धारित समय सीमा के भीतर बी.एड पाठ्यक्रमों में प्रवेश दिया जाना चाहिए। यदि नहीं, तो यह अनुमेय (इम्परमिसिबल) हो जाता है।
निष्कर्ष
अनुच्छेद 144 पर एक संक्षिप्त टिप्पणी देकर लेख का समापन होता है, जिसमें भारत के क्षेत्र में नागरिक और न्यायिक प्राधिकरण को सर्वोच्च न्यायालय के पक्ष में कार्य करने और समर्थन करने की आवश्यकता होती है। शक्ति केवल नागरिक और न्यायिक प्राधिकारियों को प्रदान की जाती है न कि किसी अन्य प्राधिकारियों को। नागरिक प्राधिकरण जैसे पुलिस अधिकारी, आईएएस अधिकारी और रेलवे अधिकारी जो वर्दी कोड पहनते हैं, जबकि न्यायिक प्राधिकरण जैसे अभियोजक, न्यायाधीश, भारत के मुख्य न्यायाधीश और न्यायिक प्राधिकरणों के लिए काम करने वाली सरकारें हैं। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का पालन सभी को करना चाहिए।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
भारतीय संवैधानिक कानून के अनुसार अनुच्छेद 144 क्या है?
भारतीय संवैधानिक कानून के अनुसार, अनुच्छेद 144 नागरिक और न्यायिक प्राधिकरणों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय का समर्थन करने की शक्ति से संबंधित है।
नागरिक प्राधिकरण किसे कहते हैं?
नागरिक प्राधिकरण अपने नागरिकों की ओर से देश के कानूनों को लागू करने के प्रभारी (इंचार्ज) हैं। उदाहरण के लिए, वर्दी कोड पहनने वाले अधिकारियों जैसे पुलिस अधिकारी, आईएएस और रेलवे अधिकारी को नागरिक प्राधिकरण के रूप में जाना जाता है।
न्यायिक प्राधिकरण किसे कहते हैं?
न्यायिक प्राधिकरण के पास देश के कानून को कायम रखते हुए निर्णय लेने की शक्ति और अधिकार क्षेत्र है। भारत का मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायिक प्राधिकरण है, उसके बाद राज्यों के मुख्य न्यायाधीश हैं, जो राज्यों के नियंत्रण और प्रबंधन के प्रभारी राज्यों में सर्वोच्च न्यायिक निकाय हैं।
संदर्भ