औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 के तहत औद्योगिक विवाद के समाधान के लिए तंत्र

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Industrial Relation Code 2020
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यह लेख Udita Prakash ने लिखा है। इस लेख मे वह औद्योगिक विवाद (इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट) के लिए औद्योगिक संबंध संहिता (इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड), 2020 के तहत प्रदान किए गए समाधान के तंत्र पर चर्चा करती हैं। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

औद्योगिक विवादों के समाधान का तंत्र औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 के अध्याय VII के तहत दिया गया है । हम इस विषय को धारा के अनुसार पढ़ेंगे। 

इस संहिता की धारा 43 में कहा गया है कि एक उपयुक्त सरकार कर्मचारी और नियोक्ता (एंप्लॉयर)  के बीच के विवाद के निपटारे के लिए सुलह (कॉन्सिलिएशन) अधिकारियों की नियुक्ति कर सकती है। 

औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 के तहत आवश्यक प्रावधान

औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 के तहत आवश्यक प्रावधान नीचे प्रदान किए गए हैं:

धारा 44: औद्योगिक न्यायाधिकरण (इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल) का गठन

  1. इस धारा के तहत जब एक उपयुक्त सरकार औद्योगिक न्यायाधिकरण बनाती है, तो उसमें 2 सदस्य होने चाहिए (एक न्यायिक सदस्य और एक प्रशासनिक (एडमिनिस्ट्रेटिव) सदस्य)।
  2. जब केंद्र सरकार न्यायाधिकरण बनाती है तो निर्वाह निधि (प्रोविडेंट फंड) से संबंधित विवाद भी इसी अध्याय के तहत न्यायाधिकरण में आएंगे। 
  3. न्यायाधिकरण के किसी भी आदेश को पारित करने के उद्देश्य से गठित की जाने वाली बेंच 2 सदस्यों की हो सकती है; जिसका अर्थ है जिसमे एक प्रशासनिक सदस्य और एक न्यायिक सदस्य हो सकते है या केवल एक सदस्य, जो या तो प्रशासनिक सदस्य या न्यायिक सदस्य हो सकता है। 
  4. प्रशासनिक सदस्य बनने के लिए एक व्यक्ति को कम से कम भारत सरकार या राज्य सरकार का संयुक्त सचिव (ज्वाइंट सेक्रेटरी) होना चाहिए; या इस रैंक के समकक्ष कोई पद पर होना चाहिए। 
  5. प्रशासनिक सदस्य या न्यायिक सदस्य को भुगतान किए जाने वाले वेतन और भत्ते घट नहीं सकते है लेकिन केवल बढ़ ही सकते है।
  6. खंड 7 न्यायाधिकरण की प्रक्रिया के बारे में बात करता है, वे इस प्रकार हैं, जैसे की:
    1. आवेदन और स्थायी आदेश;
    2. निर्वहन (डिस्चार्ज) या बर्खास्तगी (डिस्मिसल) या बहाली (रीइंस्टेटमेंट); 
    3. हड़ताल या तालाबंदी (लॉक आउट) की अवैधता; 
    4. छटनी (रेट्रेंचमेंट); 

7. ट्रेड यूनियन का विवाद। 

तो, इन मामलों में, जो बेंच बनेगी वह एक प्रशासनिक सदस्य और न्यायिक सदस्य की होगी। यहां इन दोनों सदस्यों का होना अनिवार्य है। ऊपर बताए गए इन मामलों के अलावा, विवाद का फैसला प्रशासनिक सदस्य या न्यायिक सदस्य द्वारा किया जा सकता है।  इसके पीछे का कारण यह है कि विवाद के मामले जिनका उल्लेख ऊपर किया गया है, वे मुख्य मामले हैं और इस प्रकार विवाद के सुचारू (स्मूथ) समाधान के लिए अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

  1. प्रशासनिक सदस्य और न्यायिक सदस्य के बीच पीठासीन (प्रीसाइडिंग) अधिकारी न्यायिक सदस्य होगा। 
  2. राष्ट्रीय औद्योगिक विवाद या अंतर्राष्ट्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण में, एक रिक्ति आती है तो उस रिक्ति में शामिल होने वाले नए सदस्य को वहीं से जारी रखना पड़ता है जहां कार्यवाही रोक दी गई थी, उन्हें शुरुआत से कार्यवाही शुरू नहीं करनी चाहिए। 
  3. यदि उपयुक्त सरकार को लगता है कि प्रशासनिक और न्यायिक सदस्यों के लिए सहायक कर्मचारियों की आवश्यकता है तो वे तदनुसार उन्हें नियुक्त कर सकते हैं। 

धारा 45: न्यायाधिकरण के गठन की अंतिमता

इस धारा के तहत जब नए सदस्यों की नियुक्ति की जाती है, जहां कोई रिक्ति होती है और जहां न्यायाधिकरण के गठन में कोई दोष होता है, तो इसे किसी भी तरह से न्यायाधिकरण के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती है।

धारा 46: राष्ट्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण (एन.आई.टी.)

  1. इस धारा के अनुसार केंद्र सरकार एक या एक से अधिक एन.आई.टी. नियुक्त करेगी, और अगर उसे लगता है कि औद्योगिक विवाद राष्ट्रीय महत्व का है और उसके कारण एक या एक से अधिक राज्य की प्रतिष्ठान (एस्टेब्लिशमेंट) प्रभावित होगी, तो वह मामला राष्ट्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण के पास जाएगा। 
  2. उस राष्ट्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण में दो सदस्य होने चाहिए, एक प्रशासनिक सदस्य और एक न्यायिक सदस्य।
  3. न्यायिक सदस्य की योग्यता उच्च न्यायालय के अभ्यास करने वाले न्यायाधीश की होनी चाहिए। 
  4. प्रशासनिक सदस्य की योग्यता यह है कि वह केंद्र या राज्य सरकार में सचिव पद का हो या किसी सचिव के पद के समकक्ष (इक्विवलेंट) पद का हो सकता है। 
  5. राष्ट्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण विवाद के मामले में न्यायिक सदस्य पीठासीन अधिकारी होगा। 

धारा 47: न्यायाधिकरण या राष्ट्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण का निर्णय

  1. न्यायाधिकरण या एन.आई.टी. में किया जाने वाला निर्णय सदस्यों की सहमति से होगा। 
  2. यदि ऐसी स्थिति है जब प्रशासनिक सदस्य और न्यायिक सदस्य दोनों की राय अलग-अलग हो और वह एक निर्णय तक नहीं पहुंचपाते हैं, तो इस मामले में, वे मामले को उपयुक्त सरकार को स्थानांतरित (ट्रांसफर) कर सकते हैं। 
    • न्यायिक सदस्य के मामले में, उपयुक्त सरकार या तो केंद्र सरकार या राज्य सरकार होती है।
    • प्रशासनिक सदस्य के मामले में, उपयुक्त सरकार केवल केंद्र सरकार होती है।
  3. जब मामला उपयुक्त सरकार को हस्तांतरित (ट्रांसफर) किया जाता है, तो उपयुक्त सरकार न्यायिक सदस्य को नियुक्त कर सकती है जो इस मामले से संबंधित नहीं है, और उसकी राय पूछ सकती है और उसके बाद, उपयुक्त सरकार निर्णय ले सकती है। 

धारा 48: न्यायाधिकरण या एन.आई.टी. के सदस्यों के लिए अयोग्यता 

  1. इस धारा के तहत यदि वह एक स्वतंत्र व्यक्ति नहीं है: यहाँ एक स्वतंत्र व्यक्ति का अर्थ है, वह व्यक्ति जो उस औद्योगिक विवाद से जुड़ा नहीं है। इसके पीछे कारण यह है कि यदि कोई स्वतंत्र व्यक्ति नहीं होता तो किया गया निर्णय पक्षपाती होगा और न्याय नहीं मिलेगा। 
  2. यदि सदस्य 65 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेते है। 

धारा 49: मध्यस्थों (आर्बिट्रेटर्स), सुलह अधिकारियों, न्यायाधिकरण और एन.आई.टी. की प्रक्रिया और शक्तियां

  1. सी.पी.सी. में उल्लिखित शक्तियां, जैसे की उपस्थिति को बनाए रखना, दस्तावेजों को प्रस्तुत करना, और साक्ष्य दर्ज करना, लागत लगाना, समन करना आदि, इन सभी शक्तियों का उपयोग एक दीवानी (सिविल) न्यायालय द्वारा किया जाता है, वह अब न्यायाधिकरण, मध्यस्थ, सुलह अधिकारी, न्यायाधिकरण और एन.आई.टी. के अधिकारी द्वारा भी किया जाएगा। 
  2. इन सभी अधिकारियों को अपने आने की उचित सूचना देने से पहले जांच करने और उस परिसर (प्रीमाइस) की प्रतिष्ठान (केवल पूछताछ के उद्देश्य से) का दौरा करने का अधिकार है। 
  3. इस धारा के तहत की गई सभी जांच और परीक्षण आई.पी.सी. की धारा 193 और 228 के तहत ‘न्यायिक कार्यवाही’ कहलाएगे। 
  4. यदि उपयुक्त सरकार उचित समझे तो विशेषज्ञ या मूल्यांकनकर्ता (एसेसर) की नियुक्ति भी कर सकती है। 
  5. औद्योगिक न्यायाधिकरण के सुलह अधिकारियों और सदस्यों को आई.पी.सी. की धारा 21 के तहत ‘लोक सेवक’ कहा जाएगा। 
  6. ये न्यायाधिकरण लागत वसूली आदेश पारित कर सकते हैं। 
  7. आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 345, 346, 348 के तहत मामलों के लिए न्यायाधिकरण और औद्योगिक न्यायाधिकरण को दीवानी न्यायालय माना जाएगा । 
  8. यदि कोई अवॉर्ड या कोई आदेश पारित किया जाता है या न्यायाधिकरण या एन.आई.टी. के तहत कोई समझौता किया जाता है, तो इसे सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XXI के तहत दिए गए नियमों की तरह ही निष्पादित (एग्जीक्यूट) किया जा सकता है ।

धारा 50: श्रमिकों के निर्वहन या बर्खास्तगी के मामले में उचित राहत देने के लिए न्यायाधिकरण और एन.आई.टी. की शक्तियाँ

  1. जब न्यायाधिकरण या एन.आई.टी. को एक आवेदन प्राप्त होता है, और वे सोचते हैं या यह मानने का कारण है कि व्यक्ति का निर्वहन या बर्खास्तगी अन्यायपूर्ण है तो वे या तो इसे रद्द कर सकते हैं या कम सजा जैसी राहत दे सकते हैं।
  2. यदि कोई औद्योगिक विवाद लम्बित (पेंडिंग) है तो उस अवधि में न्यायाधिकरण अंतरिम (इंटरीम) राहत प्रदान कर सकता है। 
  3. इसके परंतुक (प्रोविसो) का कहना है कि, यदि न्यायाधिकरण द्वारा धारा 50 के तहत कोई आदेश पारित किया जाता है, तो वे मामले को केवल इस आधार पर रद्द करेंगे जो पहले से ही रिकॉर्ड में हैं, न कि ताजा सबूत के आधार पर। 

धारा 51: लंबित मामलों का स्थानांतरण

  1. इस धारा में यह दिया गया है कि, इस संहिता के लागू होने के बाद पिछले लंबित मामले,
  • जो श्रम न्यायालय में हैं जो औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत न्यायाधिकरण था, उनको इस संहिता के तहत संबंधित अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिस्डिक्शन) वाले न्यायाधिकरण में स्थानांतरित कर दिया जाएगा। 
  • औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत राष्ट्रीय न्यायाधिकरण से संबंधित अधिकार क्षेत्र वाले एन.आई.टी. को हस्तांतरित किया जाएगा।

2. अब, जब मामला स्थानांतरित हो जाता है, तो वह उसे दुबारा शुरू कर सकता है, या वहा से शुरू कर सकता है जहां स स्थानांतरण से पहले लंबित था। 

धारा 52 : निरसित (रिपील्ड) अधिनियम के तहत पीठासीन अधिकारियों की सेवाओं का समायोजन (एडजस्टमेंट)

इस धारा के तहत, पीठासीन अधिकारी संहिता के तहत योग्य हैं; वे न्यायाधिकरण या औद्योगिक न्यायाधिकरण के न्यायिक सदस्य भी बन सकते हैं और वे अपनी शेष अवधि के लिए सेवा कर सकते हैं। 

धारा 53: विवाद का समाधान और न्यायनिर्णयन (एडजुडिकेशन)

  1. इस धारा के अनुसार, जब उस मामले में जहां एक औद्योगिक विवाद मौजूद है या मौजूद होने की आशंका है, तो सुलह अधिकारी धारा 62 के तहत कार्यवाही कर सकता है
  • सीमा यह है कि सुलह अधिकारी विवाद की तारीख से दो साल बाद कार्यवाही नहीं करेगा। 

2. जब भी सुलह अधिकारी समझौता शुरू करता है, तो मुख्य उद्देश्य दोनों पक्षों की ओर से एक निष्पक्ष और सौहार्दपूर्ण (एमीकेबल) समझौता करना होता है और विवाद सुलझाना होता है।

3. यदि समझौता हो जाता है, तो उसके बाद एक समझौता ज्ञापन (मेमोरेंडम) बनाया जाता है और उसकी रिपोर्ट पक्षों के हस्ताक्षर के साथ उपयुक्त सरकार को दी जाती है। 

4. यदि कोई समझौता नहीं होता है, तो उस मामले में, सुलह अधिकारी, संबंधित पक्षों को और उपयुक्त सरकार को यह कहते हुए पूरी रिपोर्ट भेजता है की:

  • विवाद के निपटारे के लिए उनके द्वारा कदम उठाए गए;
  • मामले के तथ्य;
  • समझौता न करने का कारण। 

5. रिपोर्ट भेजने की समय सीमा सुलह की शुरुआत की तारीख से 45 दिनों तक की होती है। 

  • परंतुक के अनुसार, यदि सुलह अधिकारी को धारा 62 के तहत नोटिस प्राप्त हुआ है, तो सुलह अधिकारी को 14 दिनों के भीतर संबंधित पक्षों और उपयुक्त सरकार को रिपोर्ट जमा करनी होगी। 
  • यदि पक्ष संतुष्ट नहीं हैं, तो पक्षों को न्यायाधिकरण में आवेदन करना आवश्यक है, फिर उन्हें रिपोर्ट प्राप्त होने की तारीख से 90 दिनों के भीतर आवेदन करना होगा। 

धारा 54: एन.आई.टी. को संदर्भ और कार्य 

  1. इस धारा के तहत, केंद्र सरकार औद्योगिक विवाद का मामला एन.आई.टी. को हस्तांतरित कर सकती है, जब:
  • राष्ट्रीय महत्व का मामला है।
  • जब यह एक या एक से अधिक राज्यों के प्रतिष्ठान से सम्बंधित हो। 

2. अब, जब मामला स्थानांतरित किया जाता है, तो कार्यवाही का संचालन (कंडक्ट) करने और तदनुसार आदेश पारित का एन.आई.टी. का कर्तव्य है। 

धारा 55: अवॉर्ड के रूप और इसके संचार (कम्युनिकेशन) और लागू होना 

  1. इस धारा के अनुसार न्यायाधिकरण या एन.आई.टी. का एक अवॉर्ड प्रदान किया जाता है तो यह लिखित रूप में होना चाहिए और न्यायाधिकरण या एन.आई.टी. के सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित भी होना चाहिए। 
  2. यदि कोई निर्णय मध्यस्थता या न्यायाधिकरण का है तो उस अवॉर्ड को पक्षों और उपयुक्त सरकार को सूचित किया जाना चाहिए। 
  3. उपखंड (2) के तहत उल्लिखित संचार की तारीख से 30 दिनों की समाप्ति पर एक अवॉर्ड लागू किया जा सकता है।

 

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