संविदा का नवीयन

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Indian Contract Act
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यह लेख स्कूल ऑफ लॉ, सुशांत विश्वविद्यालय, गुरुग्राम की छात्रा Shivi Khanna द्वारा लिखा गया है। यह लेख भारतीय संविदा, 1872 की धारा 62 के तहत शामिल नवीयन की अवधारणा की जांच करने और नवीयन के प्रकारों को देखने का प्रयास है, और यह विस्तार से बताता है कि एक संविदा की समाप्ति के रूप में नवीयन कैसे काम करता है। उसी के कुछ वास्तविक जीवन के उदाहरण को मामलों और महत्वपूर्ण खंडों के माध्यम से समझाया गया है। इस लेख का अनुवाद Lavika Goyal द्वारा किया गया है

Table of Contents

परिचय

भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (आगे अधिनियम के रूप में संदर्भित) की धारा 2 (h) के अनुसार, कोई भी समझौता जो कानून द्वारा लागू किया जा सकता है, एक संविदा है। एक संविदा दो या दो से अधिक पक्षों के बीच एक कानूनी संबंध में प्रवेश करने के इरादे से, एक निश्चित प्रतिफल के बदले में, और उनकी स्वतंत्र सहमति से बनता है। स्वतंत्र सहमति का अर्थ है कि पक्षों को संविदा करने के लिए सक्षम होना चाहिए;  एक वैध उद्देश्य और प्रतिफल होना चाहिए; और संविदा को कानून के तहत स्पष्ट रूप से शून्य घोषित नहीं किया जाना चाहिए। संविदा किए जाने के बाद, संविदा करने वाले पक्षों को संविदा में उल्लिखित अपने-अपने दायित्वों को पूरा करना होगा। एक बार जब पक्ष   अपने दायित्वों को पूरा कर लेते हैं, तो संविदा का उद्देश्य पूरा हो जाता है और इस तरह उनका दायित्व समाप्त हो जाता है। जब संविदा का उद्देश्य पूरा हो जाता है, तो संविदा को मुक्ति दे दी जाती है। हालांकि, पक्षों को अपने संविदात्मक दायित्वों को पूरा करना संविदा की समाप्ति करने का एकमात्र तरीका नहीं है। संविदा  की समाप्ति के अन्य तरीकों में शामिल हैं: –

  • प्रदर्शन (अधिनियम की धारा 3167)
  • प्रदर्शन की असंभवता (अधिनियम की धारा 56);
  • समझोते द्वारा (धारा 6267);  और
  • उल्लंघन (धारा 39 और 73)।

भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 62 में नवीयन की अवधारणा शामिल है। जब संविदा के पक्ष यह निर्णय लेते हैं कि वे नए तरीके से संविदा की समाप्ति करना चाहते हैं, तो इसका मतलब है कि वे मौजूदा संविदा को एक नए  संविदा के साथ बदलना चाहते हैं।

भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 62 के तहत नवीयन

धारा 62 इस सिद्धांत पर आधारित है – जो कुछ बनाता है वह उसका अंत भी कर सकता है। भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 62 में कहा गया है कि जब संविदा करने वाले पक्ष संविदा की समाप्ति करना चाहते हैं, तो वे ऐसा पुराने के स्थान पर एक नई संविदा बनाकर कर सकते है; या इसे रद्द करके या बदलकर कर सकते है। लॉर्ड सेलबोर्न ने स्कार्फ बनाम जार्डिन (1882) के मामले में संविदा के नवीयन का विस्तार किया है। उनके अनुसार, नवीयन तब होता है जब एक नया संविदा पहले से मौजूद एक संविदा को बदल देता है, या तो एक ही पक्ष के बीच या विभिन्न पक्षों के बीच। मुख्य बिंदु यह है कि एक नया संविदा पुराने की जगह लेता है, और परिणामस्वरूप, पुरानी संविदा समाप्त हो जाता है।

लॉर्ड सेलबोर्न साझेदारी फर्म के विघटन (डिसोल्यूशन) के मामले में नवीयन का उदाहरण देते हैं। व्यवसाय को जारी रखने के इच्छुक साझेदार और छोड़ने के इच्छुक साझेदार व्यवसाय की जिम्मेदारी को पूरी तरह से समाप्त करने के संबंध में एक समझौते पर आते हैं।  यदि जारी रखने वाले साझेदार संपत्ति को लेना चाहते हैं तो उन्हें लेनदार को सूचित करना होगा। लेनदार को पुरानी जिम्मेदारी के स्थान पर नई जिम्मेदारी को स्वीकार करने के लिए सहमति देनी होगी और बदले में साझेदार प्रतिफल का भुगतान करेंगे।

 निम्नलिखित परिदृश्य नवीयन के उदाहरण हैं:-

  1. ऋण के मामले में: उदाहरण के लिए, ‘X और ‘Y’ के बीच एक संविदा है, जहां ‘X’ को एक निश्चित समय अवधि के भीतर ‘Z’ द्वारा उसे दिए गए पैसे पर एक निश्चित ब्याज का भुगतान करना है। नतीजतन, ‘X ‘, ‘Y ‘ और ‘Z’ एक नए समझौते में प्रवेश करते हैं, जिसमे ‘Z ‘ उस ब्याज का भुगतान करेगा जो ‘X ‘ को ‘Y’ पर बकाया है। यहां, ‘Z ‘और ‘Y’ के बीच एक पुराने संविदा के स्थान पर नया ऋण संविदाित है।
  2. बंधक (मॉरगेज) के मामले में: उदाहरण के लिए, ‘P’ पर ‘Q ‘ का 50 लाख रुपये बकाया है। इसके बाद, ‘P’ और Q’ एक नया समझौता करते हैं, जहां ‘P’ अपने फ्लैट को लगभग 25 लाख के स्थान पर गिरवी रखता है।  यह नई व्यवस्था एक नया संविदा बन जाती है और पुराने को समाप्त कर देती है।

हालांकि, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि मौजूदा मूल संविदा में संविदा का उल्लंघन नहीं होना चाहिए था। इसके अलावा, संविदा वैध और लागू करने योग्य होना चाहिए। उदाहरण के लिए, शंकर लाल दामोदर बनाम अंबालाल अजयपाल (1964) ए. आई. आर. 1946 नाग 260 के मामले में, एक पुराने बंधक समझौते को एक नए के साथ प्रतिस्थापित किया गया था। हालांकि, इस तथ्य के कारण कि नया बंधक लागू करने योग्य नही था  क्योंकि यह पंजीकृत नहीं था, और पक्ष अब भी मूल बंधक समझौते से बाध्य थे।

यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पुराने संविदा को एक नए के साथ बदलने के लिए पक्षों के बीच आपसी सहमति होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, ‘A’ को B को 300 रु देने है। दूसरी ओर, ‘B ‘ पर  C के 300 रु बकाया है। ‘B एक व्यवस्था करने का फैसला करता है जहां ‘A’ 300 रुपये का भुगतान करेगा जिसे वह ‘B’ के बजाय ‘C’ को देगा। हालांकि, ‘C’ इस व्यवस्था के लिए सहमति नहीं देता है। इसलिए, एक नया संविदा नहीं किया जाता है क्योंकि ‘B और ‘C’ के बीच मौजूदा संविदा में, बाद वाला पुराने संविदा को नए के साथ बदलने के लिए सहमत नहीं है। इस प्रकार, ‘B पर C के 300 रु बकाया है।

एक अच्छा नवीयन क्या होता है?

लता कंस्ट्रक्शन बनाम रमेशचंद्र रमणीकलाल (2000) के मामले में निम्नलिखित फैसला किया गया था।

तथ्य – प्रतिवादी लीबिया में रहते थे और उन्होंने अपीलकर्ता को भारत में एक फ्लैट बनाने के लिए कमीशन दिया था ताकि प्रतिवादी वहा रह सके। उन्होंने इसी के लिए एक समझौता किया। प्रतिवादियों ने देय भुगतान किया और फ्लैट का कब्जा मांगा, हालांकि, अपीलकर्ताओं ने कहा कि फ्लैट तैयार नहीं है। जब प्रतिवादी लीबिया से लौटे तो उन्होंने पाया कि फ्लैट पर ताला लगा हुआ था और उस पर एक पट्टिका थी जिस पर लिखा था ‘इंदिरा जोशी’। नतीजतन उन्होंने एक नया समझौता किया जहां अपीलकर्ता प्रतिवादी को मौद्रिक माध्यम से मुआवजा देंगे। हालांकि, अपीलकर्ताओं ने किसी भी समझौते का सम्मान नहीं किया।

मुद्दा – क्या पुराने संविदा में पुराने अधिकार पूरी तरह से समाप्त हो गए थे और एक नए संविदा द्वारा प्रतिस्थापित किए गए थे?

निर्णय –  यह माना गया था कि जब संविदा का केवल एक हिस्सा बदल दिया जाता है, और नया संविदा पुराने संविदा के साथ इतना विरोधी है कि वे एक साथ खड़े नहीं हो सकते हैं, तो यहां कोई अच्छा नवीयन नहीं है।

क्या एकतरफा नवीयन किया जा सकता है?

 निम्नलिखित को  सिटी बैंक एनए बनाम स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक (2004) के मामले में आयोजित किया गया था।

मामले के तथ्य – भारतीय रिजर्व बैंक ने पाया कि दलालों और कुछ बैंकों और वित्तीय संस्थानों के बीच प्रतिभूति (सिक्योरिटी) बाजार में भ्रष्टाचार और अनियमितता (इरेगुलेरिटी) फैलाने की मिलीभगत थी, इसमें तीन मुख्य पक्ष शामिल थे – सिटीबैंक, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक और कैनबैंक फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड।

मामले में शामिल मुद्दा – दायित्व किस पर है?

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय– यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं था कि  यह एक त्रिपक्षीय समझौता था जिसके तहत किसी तीसरे पक्ष पर दायित्व था। यह माना गया कि दोनों संविदा करने वाले पक्षों को पुराने संविदा को एक नए के साथ प्रतिस्थापित करने के लिए सहमत होना चाहिए। जहां केवल एक पक्ष एकतरफा नवीयन लाने का प्रयास करता है, वहां कोई अच्छा नवीयन नहीं होता है।

नवीयन के तत्व

 नवीयन में निम्नलिखित तत्व होते हैं:-

  1. पक्षों के बीच आपसी सहमति होनी चाहिए।
  2. मूल संविदा का उल्लंघन नहीं होना चाहिए था।
  3. नया संविदा वैध और लागू करने योग्य होना चाहिए।
  4. नवीयन के बाद पुराना संविदा समाप्त हो जाता है और पक्षों को बांधता नहीं है।

एक नवीयन समझौते का उद्देश्य

नवीयन में एक पुराने संविदा को एक नए संविदा के साथ बदलने, या एक नए तीसरे पक्ष के साथ मूल पक्षों के प्रतिस्थापन (रिप्लेसमेट) पर जोर दिया जाता है। आम तौर पर, नवीयन किया जाता है क्योंकि मूल संविदा के लिए समाप्ति प्रक्रिया से गुजरना और एक नया संविदा तैयार करना काफी बोझिल और समय लेने वाला होता है। नवीयन पिछले नियमों और शर्तों को जोड़कर या घटाकर पक्षों  की जरूरतों के अनुरूप मूल समझौते को संपादित या संशोधित करने की अनुमति देता है। जब मूल पक्षों में से कोई एक छोड़ना चाहता है और अपनी संबंधित जिम्मेदारियों की समाप्ति करता है, तो उन्हें बदलने के लिए तीसरे पक्ष को लाना अधिक सुविधाजनक हो जाता है।

इसलिए कर्ज या ऋण के मामले में नवीयन एक उपयुक्त विकल्प बन जाता है। उदाहरण के लिए, मूल देनदार (डेब्टर) लेनदार (क्रेडीटर) की सहमति से किसी तीसरे पक्ष को ऋण दे सकता है। और तीनों पक्षों को समझौते में होना होगा और नए समझौते पर हस्ताक्षर करना होगा। एक अन्य मामला तब होता है जब एक साझेदारी फर्म विघटित हो जाती है। प्रस्थान करने वाला साथी नवीयन के माध्यम से खुद को अपेक्षाकृत आसानी से निकाल सकता है, और उसके अधिकारों और जिम्मेदारियों को एक नए आने वाले साथी या शेष मूल साझेदारों द्वारा लिया जा सकता है। हालांकि, एक साझेदारी फर्म के विघटन के मामले में भी फर्म के लेनदारों की सहमति प्राप्त करना एक जरूरी कदम है।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि नवीयन से जुड़े जोखिम की एक निश्चित डिग्री है। उपरोक्त उदाहरणों में लेनदार को अपेक्षाकृत यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि तीसरा या नया पक्ष जो मूल पक्ष की जिम्मेदारियों को पूरा कर रहा है, उन्हें पूरा करने में सक्षम होगा। जोखिम उस हिस्से से जुड़ा होता है जहां संविदा के नवीयन होने के बाद लेनदार मूल पक्ष को उत्तरदायी नहीं ठहरा पाते है।

नवीयन समझौते पर किसे हस्ताक्षर करना चाहिए?

तीन पक्ष हैं जो एक नवीयन समझौते पर हस्ताक्षर करते हैं: –

  1. मूल पक्ष जिसकी जिम्मेदारियों को नवीयन के बाद समाप्त कर दिया जाएगा।
  2. तीसरा पक्ष या नया पक्ष जो नवीयन पूरा होने के बाद मूल पक्ष की जिम्मेदारियों को लेता है।
  3. लेनदार या प्रतिपक्ष (काउन्टर्पॉर्टी) जिसकी सहमति नवीयन से गुजरने के लिए आवश्यक है, चाहे वह पक्षों के प्रतिस्थापन या शर्तों के संशोधन के संबंध में हो।

पक्ष आमतौर पर निम्नलिखित परिदृश्यों में नवीयन का विकल्प चुनते हैं

  • ऋण – ‘X’ पर ‘Y’ के ऋण में एक निश्चित राशि बकाया है। ‘X’ अंततः ऋण चुकाने में असमर्थ है। परिणामस्वरूप, एक तीसरा पक्ष ‘Z’ ‘X’ को देनदार के रूप में बदलने और ‘Y’ को ऋण का भुगतान करने के लिए सहमत होता है क्योंकि लेनदार अपनी सहमति देता है। इस प्रकार, तीनों ने नवीयन का विकल्प चुना और ‘X’ ऋण चुकाने के अपने दायित्व से मुक्त हो गया। इस बीच, ‘Z’ ‘Y’ को ऋण चुकाने की जिम्मेदारी लेता है।
  • व्यापार सौदों में कब्ज़ा – कब्जा तब होता है जब एक कंपनी दूसरी कंपनी में बहुमत हिस्सेदारी हासिल कर लेती है। जब पक्षों को बदलने की आवश्यकता होती है तो कब्जे में नवीयन का उपयोग किया जाता है।
  • व्यवसाय के संदर्भ में बिक्री – जब पक्षों को प्रतिस्थापित करने की आवश्यकता होती है तो नवीयन का उपयोग किया जाता है।
  • वित्तीय बाजारों में प्रतिभूतियों में व्यापार करना – प्रतिभूति बाजार में व्युत्पन (डेरिवेटिव) के साथ व्यापार करते समय एक मध्यस्थ (इंटरमीडियरी) के माध्यम से प्रतिभूतियों की खरीद में नवीयन का उपयोग किया जाता है।

नवीयन कैसे काम करता है?

नवीयन में मूल पक्ष से तीसरे पक्ष को संविदात्मक दायित्व का स्थानांतरण (ट्रांसफर) शामिल है। नवीयन से गुजरने के लिए पक्षों के बीच आपसी सहमति एक आवश्यक अंग है। आम तौर पर, नवीयन तब होता है जब संविदा का प्रदर्शन असंभव होता है और यह संविदा को समाप्त करने के तरीकों में से एक होता है। इसलिए, एक बार एक संविदा का नवीयन करने के बाद, मूल पक्षों को मूल संविदा द्वारा निर्धारित दायित्वों को पूरा करने के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। तीसरा पक्ष नवीयन संविदा में संविदात्मक कर्तव्यों को लेता है और मूल पक्ष जिसकी जिम्मेदारियां समाप्त हो चुकी है उसे  उलझा नही सकता है ।

कमर्शियल बैंक ऑफ तस्मानिया बनाम जोन्स (1893) के ऐतिहासिक निर्णय में एक प्रमुख सिद्धांत स्थापित किया गया है। इस मामले में, दिवंगत जेम्स बोनी ने अपीलकर्ताओं को जॉर्ज एंड्रयूज वेकहैम को दी गई राशि को वापस भुगतान करने की गारंटी प्रदान की थी। अपीलकर्ता चाहते थे कि जेम्स बोनी के निष्पादक (एक्जिक्यूटर) उस राशि का भुगतान करें जिसकी उसने जॉर्ज के लिए गारंटी दी थी। यह माना गया था कि सिर्फ इसलिए कि मूल पक्ष को नवीयन संविदा के संबंध में अपने संविदात्मक दायित्वों के लिए जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता है, इसका मतलब यह नहीं है कि उस पर मुकदमा नहीं किया जा सकता।

नवीयन के बाद एक क्षतिपूर्ति (इंडेम्निटी) खंड भी लाया जा सकता है जहां पक्ष समझौते के संबंध में दूसरे पक्ष के कार्यों के कारण हुए नुकसान के संबंध में एक-दूसरे की क्षतिपूर्ति करने के लिए सहमत होते हैं।

नवीयन के प्रकार

संविदा कानून में दो प्रकार के नवीयन हो सकते हैं:-

पक्षों का परिवर्तन

पक्षों के परिवर्तन की अवधारणा को उस परिदृश्य में देखा जा सकता है जहां एक लेनदार ‘A’ और एक देनदार ‘B’ है। ‘A’ और ‘B’ के बीच मूल संविदा को एक नए संविदा के साथ प्रतिस्थापित किया जाता है जहां ‘A’  लेनदार ‘B’ के स्थान पर ‘C’ को ऋण चुकाने के लिए सहमत है। इस तरह ‘A’ और ‘B’ के बीच पुराना संविदा समाप्त हो जाता है, जिसे ‘A’ और ‘C’ के बीच नए संविदा द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है। इस तरह का नवीयन सबसे अधिक बार देखा जाता है जब एक मौजूदा फर्म के लिए एक नया भागीदार पेश किया जाता है। एक अन्य मामला यह है कि जब एक भागीदार सेवानिवृत्त (रिटायर)  होता है, तो पुरानी फर्म की जिम्मेदारियां समाप्त हो जाती हैं, और लेनदारों की मंजूरी से एक नई फर्म की स्थापना होती है। एक बार फिर यह बहुत महत्वपूर्ण है कि मूल संविदा के पक्ष इसके स्थान पर एक नए के प्रतिस्थापन के लिए सहमति दें। नवीयन संविदा में, कम से कम एक या अधिक पक्ष नए होने चाहिए और उन्हें नए संविदा के तहत संबंधित दायित्वों को पूरा करना चाहिए।

नए समझौते का प्रतिस्थापन

एक नवीयन संविदा में, पक्षों की आपसी सहमति से, एक पुराने संविदा को एक नए संविदा द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है। नवीयन पूरा हो जाने के बाद, पुराने संविदा को समाप्त कर दिया जाता है और इसके लिए किसी प्रदर्शन की आवश्यकता नहीं होती है। हालांकि, यह इस शर्त पर है कि मूल संविदा स्थाई होना चाहिए यानी कोई उल्लंघन नहीं होना चाहिए ।

एक नए संविदा को ऐसे मामले में प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है जहां पुराने संविदा का पहले ही उल्लंघन किया जा चुका है। इस सिद्धांत को कोयल बनाम ठाकुर दास नस्कर (1887) के ऐतिहासिक मामले में उजागर किया गया था। यहां, वादी ने 1173 रुपए एक बांड पर उधार दिए थे और  वह राशि वसूल करना चाहता था। हालांकि, बांड चुकाने के लिए निर्धारित समय बीत चुकी है। नतीजतन, वादी ने समझौता किया और 400 रुपये नकद और शेष 700 रुपये किश्तों में प्राप्त करने के लिए सहमत हो गया। अंततः, प्रतिवादी मूल बांड की राशि या 400 रुपये का भुगतान करने में विफल रहा। तब वादी ने मूल बांड के आधार पर अपने पैसे की वसूली के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पाया कि संविदा वास्तव में समाप्त हो गया था, लेकिन नवीयन द्वारा नहीं। वादी को मूल संविदा के उल्लंघन के लिए मुकदमा करने का अधिकार था।

नवीयन और वित्तीय बाजार

व्युत्पन बाजार में प्रतिभूतियों की खरीद और बिक्री के दौरान भी नवीयन होता है। व्युत्पन  बाजार में प्रतिभूतियों की बिक्री करते समय, मालिक अपनी प्रतिभूतियों को एक मध्यस्थ यानी क्लियरिंगहाउस के माध्यम से खरीदारों को स्थांतरित करना पसंद करते हैं। इसलिए, इसे सरल शब्दों में समझने के लिए, प्रतिभूतियां मालिक के हाथों से मध्यस्थ तक और अंत में खरीदार के पास जाती हैं। मध्यस्थ बिचौलिया (मिडिलमैन) के रूप में कार्य करता है और प्रतिपक्ष की भूमिका निभाता है। इसलिए, मध्यस्थ अपने दायित्वों में चूक करने वाले पक्षों में से एक के जोखिम को भी वहन करता है।

यह नवीयन सुनिश्चित करता है कि प्रतिभूतियों को खरीदने और बेचने की प्रक्रिया सरल और अधिक सुरक्षित हो। जब तक मध्यस्थ प्रतिपक्ष जोखिम वहन करता है, तब तक पक्षों को दूसरे पक्ष की साख (क्रेडिट वर्थिनेस) का निर्धारण करने जैसी बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ता है। इस प्रकार के लेन-देन में एकमात्र खतरा यह है कि यदि कोई समस्या मध्यस्थ के साथ आती है, जैसे कि दिवाला (इंसोल्वेंसी), धोखाधड़ी आदि। हालांकि, मध्यस्थ के साथ इस प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होना एक सामान्य घटना नहीं है और वे आमतौर पर विश्वसनीय होते हैं।

नवीयन और विलय (मर्जर) और अधिग्रहण (एक्विजिशन)

नवीयन विलय और अधिग्रहण में भी प्रयोग में आता है। उदाहरण के लिए, दो कंपनियां ‘A’ और ‘B’ क्रमशः कुछ सामान खरीदने और बेचने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर करती हैं, और इसलिए, एक खरीदार और आपूर्तिकर्ता संबंध विकसित करती हैं। उनके पास एक नवीयन हो सकता है जो यह निर्धारित करता है कि यदि ‘B’ अपने व्यवसाय को किसी अन्य कंपनी को बेचता है, विलय करता है या स्थानांतरित करता है या किसी अन्य कंपनी को अपने व्यवसाय का हिस्सा बेचता है, विलय करता है या स्थानांतरित करता है, तो विलय या अधिग्रहण के बाद नई उभरती हुई कंपनी कंपनी ‘B’ के संविदात्मक दायित्व को पूरा करेगी। यहां, इसका मतलब है कि नई कंपनी मूल संविदा के अनुसार कंपनी ‘A’ को माल की आपूर्ति जारी रखेगी।

मामला

दादरी सीमेंट कंपनी बनाम बर्ड एंड कंपनी (प्राइवेट) लिमिटेड (1974)

मामले के तथ्य – इस मामले में संपत्ति की बिक्री की संविदा थी। पक्षों ने समझौते, प्रतिज्ञा (प्लेज) के दस्तावेज (डीड), और  प्रतिनिधि (अटॉर्नी) की शक्ति को प्रतिस्थापित करके एक नई व्यवस्था में प्रवेश करने का इरादा किया था। प्रतिस्थापन ने पुरानी व्यवस्था को नए द्वारा प्रतिस्थापित करने की अनुमति दी।

मामले में शामिल मुद्दा – क्या यह नवीयन के बराबर होगा?

न्यायालय का निर्णय – दिल्ली उच्च न्यायालय की राय थी कि यह नवीयन के समान है। इसलिए, पुरानी व्यवस्था निष्क्रिय (इनोपेरेटिव) हो गई और पुराने संविदा को समाप्त कर दिया गया।

अंधेरी ब्रिज व्यू कॉप हाउसिंग सोसाइटी बनाम कृष्णकांत आनंदराव देव (1991)

मामले के तथ्य – इस मामले में एक आवास परियोजना के संबंध में एक संविदा की गई थी। संविदा ने निर्धारित किया कि भूमि को भार से मुक्त होना था। हालांकि, एक समस्या उत्पन्न हो गई क्योंकि पक्ष भूमि पर झोपड़ी के कब्जे को हटाने में असमर्थ थे। इसलिए, उन्हें पुरानी जगह को छोड़कर एक नई जगह पर जाना पड़ा जहां कीमत दर अधिक थी।

मामले में शामिल मुद्दा – क्या पुरानी जगह के संबंध में पिछली संविदा समाप्त कर दी जाएगी?

न्यायालय का निर्णय – बॉम्बे उच्च न्यायालय ने इस मामले में नवीयन के सिद्धांत को लागू किया। यह माना गया कि पुरानी जगह को नई जगह से बदलना पुराने संविदा को एक नए संविदा के साथ बदलने के बराबर है।

नरेंद्र कुमार बृजराज सिंह बनाम हिंदुस्तान साल्ट्स लिमिटेड (2001)

मामले के तथ्य – इस मामले में याचिकाकर्ता ने एक विज्ञापन के आधार पर एक निश्चित वेतन की नौकरी के लिए आवेदन किया था। उन्हें काम पर रखा गया था लेकिन विज्ञापन में प्रस्तावित मूल्य से कम वेतन पर। याचिकाकर्ता ने उस समय कोई आपत्ति नहीं की और पद स्वीकार कर लिया। बाद में, उन्होंने मूल वेतन का दावा करने का प्रयास किया।

मामले में शामिल मुद्दा – क्या याचिकाकर्ता पुराने वेतनमान का लाभ उठा सकता है?

न्यायालय का निर्णय – याचिकाकर्ता का प्रयास विफल रहा और उसे गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा ऐसा करने की अनुमति नहीं दी गई। यहां नवीयन का सिद्धांत लागू किया गया – पुराने वेतनमान को नए (कम) वेतन की नियुक्ति और स्वीकृति द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था।

बीजीआर माइनिंग एंड इंफ्रा (प्राईवेट) लिमिटेड बनाम सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (2012)

मामले के तथ्य – इस मामले में, बड़े भूस्खलन (लैंडस्लाइड) की घटना ने कोयले के निष्कर्षण  (एक्सट्रैक्शन) संचालन में बाधा डाली, और इससे संबंधित अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) संविदा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। अतः आपदा की वजह से याचिकाकर्ता को कोयला निकालने के लिए एक नया क्षेत्र आवंटित किया गया था। भले ही नया क्षेत्र भूस्खलन से पहले आवंटित किए गए क्षेत्र से छोटा था, याचिकाकर्ता ने इसे स्वीकार कर लिया और कोई आपत्ति नहीं की।

मामले में शामिल मुद्दा – क्या पुराने क्षेत्र के संबंध में पिछली संविदा समाप्त कर दिया गई थी?

न्यायालय का निर्णय – न्यायालय ने माना कि मूल संविदा को समाप्त कर दिया गया, इस प्रकार, मूल क्षेत्र के लिए वैध निविदाओं (टेंडर्स) की पेशकश की जा सकती है।

संविदा के नवीयन के संबंध में महत्वपूर्ण खंड

निम्नलिखित खंड  संविदा के नवीयन  के महत्वपूर्ण तत्व हैं: –

  • परिभाषाएँ – एक संविदा में शर्तों को परिभाषित करना जो पक्षों को संविदा की व्याख्या करते समय पालन करना चाहिए।
  • पक्षों का नाम – संविदा करने वाले पक्षों का विवरण।
  • तीसरे पक्ष का विवरण – तीसरे पक्ष के अधिकार और दायित्व।
  • प्रभावी तिथि खंड – नवीयन का अर्थ अनिवार्य रूप से एक पुराने संविदा को एक नए संविदा के साथ बदलना है। इसलिए, ‘प्रभावी तिथि’ खंड उस तारीख को बताता है जिससे नया संविदा प्रभावी होगा यानी वह तारीख जिससे नया संविदा पक्षों के लिए बाध्यकारी हो जाएगा।
  • मुक्त खंड – एक बार समझौता हो जाने के बाद, नया संविदा प्रभावी हो जाता है और संविदा करने वाले पक्षों पर बाध्यकारी और लागू हो जाता है। पुराना संविदा समाप्त हो जाता है और पक्ष अब प्रदर्शन के दायित्व के अधीन नहीं हैं। मुक्त खंड उस तारीख को बताता है जब से मूल संविदा करने वाले पक्ष पुराने संविदा से मुक्त हो जाते हैं।
  • पक्षों के दायित्व, कर्तव्य, जिम्मेदारियां – दायित्व जो पक्षों को संविदा की शर्तों के अनुसार पूरा करना होगा।
  • प्रतिनिधत्व – पक्ष द्वारा किया गया कोई भी प्रतिनिधत्व या वारंटी।
  • उत्पन्न होने वाली कोई भी लागत/शुल्क – न्यायिक/न्यायालय प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न होने वाली लागत या शुल्क।
  • नवीयन समझोते के प्रभाव – एक नए संविदा को प्रतिस्थापित करने से निस्संदेह पक्षों या संविदा के संदर्भ में बदलाव आएगा जिसका लेनदेन पर प्रभाव पड़ेगा।
  • क्षेत्राधिकार (ज्यूरिएडिक्शन) – संविदा करने वाले पक्षों पर कौन सा कानून और अदालतें लागू होंगी।
  • प्रतिपक्ष – वह पक्ष जो समझौते का हिस्सा बना रहता है, उदाहरण के लिए, लेनदार

एक नवीयन संविदा का मसौदा कैसे तैयार करें?

एक नए संविदा का मसौदा तैयार करना एक मानक (स्टैंडर्ड) संविदा का मसौदा तैयार करने से अलग नहीं है। नया संविदा जो मूल संविदा की जगह ले रहा है वह वैध और लागू करने योग्य होना चाहिए। इसके अलावा, नवीयन किए जाने से पहले मूल संविदा का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। नवीयन के संविदा में एक मानक संविदा के सामान्य खंड होते हैं, जैसे, संविदा करने वाले पक्षों का विवरण (नाम, पता आदि), क्षेत्राधिकार, परिभाषाएं और उत्पन्न होने वाली शुल्क/लागत। ध्यान करने के लिए महत्वपूर्ण खंड प्रभावी तिथि खंड, मुक्त खंड, नवीयन समझौते का प्रभाव है।

नवीयन के प्रमुख लाभ हैं:-

  • मूल संविदा को समाप्त करने और फिर एक नया बनाने की प्रक्रिया से गुजरने के बजाय, नवीयन के माध्यम से भले ही पक्ष संविदा की सामग्री को बदल दें, संविदा वही रहता है। नवीयन पक्षों को बदलना अधिक सुविधाजनक बनाता है।
  • जब दो पक्ष समझौते की कुछ शर्तों को बदलना या संशोधित करना चाहते हैं, तो वे इसे नवीयन के माध्यम से पूरा कर सकते हैं।

मध्यस्थता (आर्बिट्रेशन) पर नवीयन का प्रभाव

एस.के शर्मा बनाम भारत संघ (2009) में, संविदा करने वाले पक्ष को जबरन समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया था। हालांकि, मूल समझौते के तहत मध्यस्थता खंड अमान्य नहीं था। पक्षों के बीच समझौता असंगत था, क्योंकि विवाद की प्रकृति पक्षों के बीच ऐसी थी कि इसे मध्यस्थता के माध्यम से हल किया जा सकता था।

नवीयन और निर्धारण

निम्‍नलिखित विशेषताएँ नवीयन को निर्धारण से अलग करती हैं:-

कारक  नवीयन  निर्धारण
वैधता नवीयन के समझौते के लिए सभी पक्षों की आपसी सहमति की आवश्यकता होती है। निर्धारण तब संभव है जब दूसरे पक्ष को नोटिस भेजा जाता है।
जवाबदेही  एक नवीयन में, मूल पक्ष के सभी अधिकार और दायित्व तीसरे पक्ष को स्थांतरित कर दिए जाते हैं। इसलिए, जैसा कि पहले ही उल्लेख किया जा चुका है, तीसरा पक्ष मूल पक्ष को संविदा द्वारा निर्धारित संविदात्मक कर्तव्यों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि नवीयन में मूल पक्ष सभी जिम्मेदारियों से मुक्त होता है और तीसरा पक्ष वह होता है जो पूर्व के स्थान पर उक्त जिम्मेदारियों को वहन करने के लिए सहमत होता है। निर्धारण में केवल आंशिक स्थानांतरण होता है यानी केवल अधिकार और लाभ तीसरे पक्ष को हस्तांतरित किए जाते हैं।

नवीयन के पक्ष और विपक्ष

पक्ष  विपक्ष 
मूल संविदा की समाप्ति करने और फिर एक नया संविदा तैयार करने से अधिक सुविधाजनक है। अक्सर ऋण, बंधक, कर्ज और साझेदारी के विघटन में उपयोग किया जाता है। सभी पक्षों की सहमति की आवश्यकता होती है, इसलिए इसे एकतरफा नहीं  बनाया जा सकता है। लेनदार के लिए एक निश्चित जोखिम कारक है क्योंकि उसे यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि आने वाला पक्ष/तीसरा पक्ष उसके द्वारा किए गए दायित्वों को पूरा करेगा। नवीयन पूरा होने के बाद लेनदार मूल पक्ष को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकता है।

निर्धारण के पक्ष और विपक्ष

पक्ष विपक्ष
निर्धारण, नवीयन की तुलना में कम बोझिल है। निर्धारण यह निर्धारित नहीं करता है कि सभी पक्षों से सहमति होनी चाहिए। जब तक सूचना भेजी जाती है तब तक निर्धारण वैध है। तृतीय-पक्ष केवल निर्धारण के माध्यम से लाभ प्राप्त करता है। इसलिए, मूल पक्ष को अभी भी अपने संविदात्मक दायित्वों को पूरा करने के लिए जवाबदेह ठहराया जा सकता है।

नवीयन और विखंडन

विखंडन (रेस्सिशन) नवीयन 
सरल शब्दों में, विखंडन तब होता है जब पक्षों द्वारा संविदा को समाप्त या रद्द कर दिया जाता है। इसका मतलब है कि पक्ष अब अपने संबंधित संविदात्मक दायित्वों से बाध्य नहीं हैं। दूसरी ओर, नवीयन तब होता है जब एक पुराने संविदा को एक नए संविदा से बदल दिया जाता है। नवीयन पिछले संविदा की कुछ शर्तों या इसमें शामिल पक्षों को बदलकर संशोधित या संपादित करने का एक सुविधाजनक तरीका है। मूल पक्षों में से एक को उनके दायित्वों से मुक्त किया जा सकता है, लेकिन एक तीसरा पक्ष उनकी जगह लेगा और उक्त दायित्वों को पूरा करेगा।

यूनिकोल बॉटलर्स लिमिटेड बनाम ढिल्लों कूल ड्रिंक्स (1995) के मामले में मूल संविदा में एक खंड था जो  पक्षों को संविदा समाप्त करने की अनुमति देता था। पक्षों ने तब समाप्ति को स्थगित करने के लिए एक पूरक (सप्लीमेटरी) संविदा किया। यह माना गया था कि यह संविदा के नवीयन के बराबर नहीं था I

नवीयन और परिवर्तन

परिवर्तन नवीयन 
परिवर्तन तब होता है जब मूल संविदा की कुछ शर्तों को सभी पक्षों की सहमति से संशोधित या परिवर्तित किया जाता है। नवीयन एक पुराने संविदा का एक नए संविदा के साथ प्रतिस्थापन है। परिवर्तन में, संविदा के पक्ष नहीं बदलते हैं। नवीयन में मूल पक्ष को एक नए तीसरे पक्ष के साथ बदलने की गुंजाइश है।

भारत संघ बनाम तांतिया कंस्ट्रक्शन (प्राइवेट) लिमिटेड (2011) में, एक रेल ओवरब्रिज बनाने की  संविदा थी। हालांकि, ओवरब्रिज के डिजाइन में एक बदलाव किया गया था जो मूल योजना में ही पर्याप्त बदलाव के बराबर था। पूरी योजना को पूरी तरह से नई परियोजना में बदलने के लिए परिवर्तन काफी महत्वपूर्ण था। परिवर्तन मूल संविदा के वृद्धि या कमी खंड के अंतर्गत नहीं आया था। यह माना गया कि सरकार इसके लिए नई निविदाएं आमंत्रित करने के हक में नहीं थी, और पहले से किए गए काम के लिए ठेकेदार को भुगतान भी करना था। ठेकेदार को पुरानी दरों पर नया प्रोजेक्ट करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता था।

निष्कर्ष

नवीयन भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 62 के तहत शामिल  किया गया है। यह एक सुविधाजनक और सरल प्रक्रिया है जो संविदा करने वाले पक्षों को मूल समझौते की शर्तों को संशोधित करने और पुराने संविदा को एक नए संविदा के साथ बदलने की अनुमति देती है। नवीयन पक्षों को मूल संविदा के लिए तीसरे पक्ष को बाध्य करके पक्षों को बदलते समय संविदा की शर्तों को समान रखने का विकल्प भी देता है। नवीयन मूल संविदा को पूरा करने के तरीकों में से एक है। कर्ज, ऋण, बंधक, विलय और अधिग्रहण, और व्यावसायिक लेनदेन के मामलों में नवीयन सबसे अधिक पाया जाता है। वित्तीय और व्युत्पन (डेरिवेटिव) बाजार में भी नवीयन देखा जाता है।

 

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