घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005

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Domestic Violence against Women
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यह लेख भारत के एमिटी विश्वविद्यालय कोलकाता की छात्रा Abanti Bose द्वारा लिखा गया है। यह लेख घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम (प्रोटेक्शन ऑफ वूमेन फ्रॉम डॉमेस्टिक वायलेंस एक्ट), 2005 की विस्तृत समझ प्रदान करता है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

परिचय

महिलाओं का सबसे बड़ा समूह घरेलू हिंसा का शिकार प्रचीन समय से है और महिलाओं के खिलाफ हिंसा 21वीं सदी में भी जारी है। हर सामाजिक पृष्ठभूमि (बैकग्राउंड) की महिलाएं चाहे उनकी उम्र, धर्म, जाति या वर्ग कुछ भी हो, घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं। हालांकि घरेलू हिंसा केवल महिलाओं तक ही सीमित नहीं है; पुरुष, बच्चे और बुजुर्ग भी इसका शिकार हो सकते हैं। घरेलू हिंसा समाज के सभी स्तरों पर और सभी जनसंख्या समूहों में होती है।

भारत में, 30% महिलाओं ने 15 वर्ष की आयु से कम से कम एक बार घरेलू हिंसा का अनुभव किया है, और लगभग 4% गर्भवती महिलाओं ने गर्भावस्था के दौरान पति की हिंसा का भी अनुभव किया है।

घरेलू हिंसा: एक सामाजिक बुराई

घरेलू हिंसा का अपराध पीड़ित के घरेलू दायरे में किसी के भी द्वारा किया जाता है। इसमें परिवार के सदस्य, रिश्तेदार आदि शामिल हैं। घरेलू हिंसा शब्द का प्रयोग अक्सर तब किया जाता है जब अपराधी और पीड़ित के बीच घनिष्ठ संबंध होता है। घरेलू हिंसा के विभिन्न रूपों में वरिष्ठ शोषण (सीनियर एब्यूज), बाल शोषण, सम्मान-आधारित शोषण जैसे ऑनर किलिंग, महिला जननांग विकृति (जेनिटल म्यूटिलेशन), और एक अंतरंग साथी द्वारा सभी प्रकार के शोषण शामिल हैं।

21वीं सदी में घरेलू हिंसा के सामाजिक मुद्दे के समाधान के लिए विभिन्न कदम उठाए गए हैं। दुनिया भर की सरकारों ने घरेलू हिंसा को खत्म करने के लिए सक्रिय कदम उठाए हैं। इसके अलावा, मीडिया, राजनेताओं और प्रचार समूहों ने लोगों को घरेलू हिंसा को एक सामाजिक बुराई के रूप में स्वीकार करने में सहायता की है।

भारत में घरेलू हिंसा, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 द्वारा शासित है और इसे धारा 3 के तहत परिभाषित किया गया है, जिसमें कहा गया है कि किसी व्यक्ति का कोई भी कार्य, कमीशन, चूक या आचरण किसी अन्य व्यक्ति के स्वास्थ्य या संरक्षण को नुकसान पहुंचाता है या व्यक्ति को घायल करता है या खतरे में डालता है, चाहे मानसिक रूप से या शारीरिक रूप से, तो यह घरेलू हिंसा की श्रेणी में आता है। इसमें आगे किसी भी गैरकानूनी मांग को पूरा करने के लिए किसी व्यक्ति या उस व्यक्ति से संबंधित किसी भी व्यक्ति को नुकसान, उत्पीड़न या चोट शामिल है और यह भी घरेलू हिंसा के बराबर होगा।

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के उद्देश्य

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 का उद्देश्य निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति करना है:

  1. यह पहचानने और निर्धारित करने के लिए कि घरेलू हिंसा का प्रत्येक कार्य कानून द्वारा गैरकानूनी और दंडनीय है।
  2. ऐसे मामलों में घरेलू हिंसा के शिकार हुए लोगों को संरक्षण प्रदान करना।
  3. पीड़ित व्यक्ति को समय पर, लागत प्रभावी और सुविधाजनक तरीके से न्याय प्रदान करना।
  4. घरेलू हिंसा को रोकना और ऐसी हिंसा होने पर पर्याप्त कदम उठाना।
  5. घरेलू हिंसा के पीड़ितों के लिए पर्याप्त कार्यक्रम और एजेंडा लागू करना और ऐसे पीड़ितों की वसूली की गारंटी देना।
  6. घरेलू हिंसा के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करना।
  7. कठोर दंड को लागू करने के लिए और हिंसा के ऐसे जघन्य (हिनियस) कार्यों के लिए दोषियों को जवाबदेह ठहराना।
  8. घरेलू हिंसा की रोकथाम के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों (स्टैंडर्ड) के अनुसार कानून बनाना और उसका संचालन करना।

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के आवश्यक प्रावधान

संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति

संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है। राज्य के आकार और आवश्यकता के आधार पर संरक्षण अधिकारियों की संख्या एक जिले से दूसरे जिले में भिन्न हो सकती है। संरक्षण अधिकारियों द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्तियों और कर्तव्यों को अधिनियम की पुष्टि में निर्धारित किया गया है। जहां तक ​​संभव हो संरक्षण अधिकारी महिलाएं होनी चाहिए और उनके पास अपेक्षित योग्यता और अनुभव होना चाहिए जैसा कि अधिनियम के तहत निर्धारित किया गया है।

संरक्षण अधिकारियों की शक्तियां और कार्य

संरक्षण अधिकारियों की शक्तियों और कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  1. अधिनियम के अनुसार अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए मजिस्ट्रेट की सहायता करना।
  2. घरेलू हिंसा की ऐसी कोई घटना की जानकारी प्राप्त होने के बाद मजिस्ट्रेट को घरेलू हिंसा की घटना की रिपोर्ट करना और इसकी प्रतियां (कॉपी) घटना पर अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिसडिक्शन) वाले पुलिस थाने के प्रभारी (इन चार्ज) पुलिस अधिकारी को भी अग्रेषित (फॉरवर्ड) करना चाहिए।
  3. यदि पीड़ित व्यक्ति संरक्षणत्मक आदेश जारी करने के लिए राहत का दावा करता है तो मजिस्ट्रेट को निर्धारित आदेश में आवेदन करना।
  4. यह सुनिश्चित करने के लिए कि पीड़ित व्यक्ति को कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की जाती है।
  5. मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र के भीतर एक स्थानीय क्षेत्र में कानूनी सहायता या परामर्श, आश्रय गृह और चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करने वाले सभी सेवा प्रदाताओं (सर्विस प्रोवाइडर) की विस्तृत सूची बनाए रखना।
  6. पीड़िता का चिकित्सकीय परीक्षण करने के लिए, यदि उसे कोई शारीरिक चोट लगी है और ऐसी रिपोर्ट निर्धारित तरीके से मजिस्ट्रेट और अधिकार क्षेत्र वाले पुलिस स्टेशन को अग्रेषित करना।
  7. पीड़िता के लिए, यदि आवश्यक हो, तो एक सुरक्षित उपलब्ध आश्रय गृह खोजन और उसके आवास का विवरण निर्धारित तरीके से मजिस्ट्रेट और अधिकार क्षेत्र वाले पुलिस स्टेशन को भेजना।
  8. यह सुनिश्चित करना कि इस अधिनियम के तहत पीड़ितों को मौद्रिक राहत के आदेश का अनुपालन किया जाता है।

सेवा प्रदाताओं की शक्तियां और कार्य

अधिनियम की धारा 10 सेवा प्रदाताओं के कार्यों और कर्तव्यों को निर्धारित करती है। सेवा प्रदाताओं को अधिनियम में सोसायटी पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत किसी भी स्वैच्छिक संघ या कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत पंजीकृत कंपनी के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसका उद्देश्य कानूनी सहायता, चिकित्सक सहायता, वित्तीय सहायता या अन्य सहायता प्रदान करके महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना है। सेवा प्रदाताओं की शक्तियों और कर्तव्यों का उल्लेख नीचे किया गया है।

  1. एक सेवा प्रदाता के पास घरेलू हिंसा की किसी भी घटना को रिकॉर्ड करने और उस मजिस्ट्रेट या संरक्षण अधिकारी को अग्रेषित करने का अधिकार होता है जिसके अधिकार क्षेत्र में घरेलू हिंसा की घटना हुई थी।
  2. सेवा प्रदाता को पीड़ित व्यक्ति की चिकित्सकीय जांच करवानी चाहिए और ऐसी रिपोर्ट संरक्षण अधिकारी, मजिस्ट्रेट और स्थानीय सीमा के भीतर पुलिस स्टेशन, जहां घरेलू हिंसा हुई थी, को अग्रेषित करना चाहिए।
  3. सेवा प्रदाताओं की यह भी जिम्मेदारी है कि वे पीड़ित को आश्रय गृह प्रदान करें यदि उन्हें एक आश्रय गृह की आवश्यकता है और पीड़ित के दर्ज होने की रिपोर्ट अधिकार क्षेत्र वाले पुलिस स्टेशन को अग्रेषित करें।

पुलिस अधिकारियों और मजिस्ट्रेट के कर्तव्य और कार्य

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 5 पुलिस अधिकारियों और मजिस्ट्रेट के कर्तव्यों और कार्यों को निर्धारित करती है। इसमें कहा गया है कि जब किसी पुलिस अधिकारी, सेवा प्रदाता या मजिस्ट्रेट को घरेलू हिंसा की शिकायत प्राप्त होती है, तो उसे घरेलू हिंसा की घटना की सूचना दी जाती है या वह घरेलू हिंसा की घटना स्थल पर मौजूद होता है तो उन्हें निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:

  1. उन्हें संरक्षण के आदेश, आर्थिक राहत के आदेश, हिरासत के आदेश, निवास के आदेश, मुआवजे के आदेश आदि के माध्यम से राहत प्राप्त करने के लिए आवेदन करने के अपने अधिकारों के बारे में पीड़िता को सूचित करना आवश्यक है।
  2. उन्हें पीड़ित को सेवा प्रदाताओं की सेवाओं की पहुंच के बारे में सूचित करना चाहिए।
  3. पीड़ित को संरक्षण अधिकारियों की सेवाओं और कर्तव्यों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए।
  4. उन्हें पीड़िता को कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत मुफ्त कानूनी सेवाओं के अधिकार और भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498A के तहत शिकायत दर्ज करने के उसके अधिकार के बारे में भी सूचित करना चाहिए।

आश्रय गृहों और चिकित्सा सुविधाओं के कर्तव्य

यदि घरेलू हिंसा के किसी पीड़ित को आश्रय गृह की आवश्यकता है तो अधिनियम की धारा 6 के तहत आश्रय गृह का प्रभारी व्यक्ति आश्रय गृह में घरेलू हिंसा के पीड़ितों को उपयुक्त आश्रय प्रदान करेगा।

इसके अलावा अधिनियम की धारा 7 में कहा गया है कि यदि किसी पीड़ित व्यक्ति को चिकित्सा सहायता की आवश्यकता होती है तो चिकित्सा सुविधा का प्रभारी व्यक्ति पीड़ित व्यक्ति को ऐसी सहायता प्रदान करेगा।

सरकार के कर्तव्य

यह अधिनियम आगे सरकार के कर्तव्यों और कार्यों को बताते हुए कुछ प्रावधानों को निर्धारित करता है। ऐसे कर्तव्यों में शामिल हैं;

  1. इस अधिनियम के प्रावधानों का सार्वजनिक मीडिया के माध्यम से व्यापक प्रचार किया जाना चाहिए ताकि हमारे देश के नागरिक ऐसे प्रावधानों से अच्छी तरह अवगत हों।
  2. केंद्र और राज्य सरकार दोनों के अधिकारियों को जैसे पुलिस अधिकारियों और न्यायिक सेवाओं के सदस्यों को अधिनियम के प्रावधानों के बारे में समय-समय पर संवेदीकरण (सेंसटाइजेशन) और जागरूकता प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) दिया जाना चाहिए।
  3. केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि इस अधिनियम के तहत महिलाओं को सेवाएं प्रदान करने से संबंधित विभिन्न मंत्रालयों के प्रोटोकॉल का पूरी लगन से पालन किया जाए।

मजिस्ट्रेट को आवेदन

पीड़ित व्यक्ति, उस इलाके के संरक्षण अधिकारी या पीड़ित व्यक्ति की ओर से कोई अन्य व्यक्ति मजिस्ट्रेट को आवेदन कर घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत एक या एक से अधिक राहत का दावा कर सकता है। आवेदन में अधिनियम द्वारा निर्धारित आवश्यक सभी विवरण शामिल होने चाहिए।

मजिस्ट्रेट सुनवाई की तारीख तय करेगा जो आवेदन प्राप्त होने की तारीख से 3 दिन से अधिक नहीं होगी। इसके अलावा, मजिस्ट्रेट को अधिनियम की धारा 12 के तहत किए गए सभी आवेदनों को उसकी पहली सुनवाई की तारीख से 60 दिनों की अवधि के भीतर निपटाने का भी लक्ष्य रखना चाहिए। इसके अलावा घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 मजिस्ट्रेट को निम्नलिखित आदेश और राहत देने के लिए अधिकृत (ऑथराइज) करता है।

  • मौद्रिक राहत

आवेदन का निपटारा करते समय मजिस्ट्रेट प्रतिवादी को घरेलू हिंसा के परिणामस्वरूप पीड़ित व्यक्ति और पीड़ित व्यक्ति के किसी भी बच्चे को हुए खर्च और नुकसान को पूरा करने के लिए मौद्रिक राहत का भुगतान करने के लिए कह सकता है और इस तरह की राहत में पीड़ित की कमाई का नुकसान, चिकित्सा खर्च, किसी संपत्ति के नुकसान के कारण होने वाली हानि, पीड़ित व्यक्ति और उसके बच्चों का भरण-पोषण, जैसा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत आवश्यक है, शामिल हो सकता है।

  1. दी गई आर्थिक राहत उचित और पर्याप्त होनी चाहिए और पीड़ित व्यक्ति के जीवन स्तर के अनुसार होनी चाहिए।
  2. अधिनियम, मजिस्ट्रेट को पीड़ित व्यक्ति द्वारा अपेक्षित उचित एकमुश्त (लम सम) भुगतान या भरण-पोषण का मासिक भुगतान करने के लिए अधिकृत करता है।
  3. मजिस्ट्रेट आर्थिक राहत के आदेश की प्रति, अधिकार क्षेत्र वाले पुलिस थाने के प्रभारी को भेजेगा।

प्रतिवादी को पीड़ित को मौद्रिक मुआवजे का भुगतान निर्धारित समय के भीतर करना होगा और यदि वे ऐसा करने में विफल रहता है तो मजिस्ट्रेट प्रतिवादी के नियोक्ता (एंप्लॉयर) या देनदार को सीधे पीड़ित को भुगतान करने का या प्रतिवादी की मजदूरी, वेतन, या ऋण का एक हिस्सा अदालत में जमा करने का निर्देश दे सकते है और उस राशि को मौद्रिक राहत के पूरा होने के अंत में समायोजित (एडजस्ट) किया जा सकता है।

अधिनियम की धारा 22 यह भी निर्धारित करती है कि प्रतिवादी मजिस्ट्रेट द्वारा निर्देशित मानसिक यातना (टॉर्चर) और भावनात्मक संकट सहित किसी भी क्षति या चोट के लिए पीड़ित को मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा।

  • हिरासत के आदेश

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 21 के तहत, जब मजिस्ट्रेट को घरेलू हिंसा से संबंधित एक आवेदन प्राप्त होता है, तो उसके पास किसी भी बच्चे या बच्चों की हिरासत को पीड़ित या पीड़ित की ओर से आवेदन करने वाले व्यक्ति को निर्देशित करने का अधिकार है। 

  • संरक्षण का आदेश

यदि मजिस्ट्रेट संतुष्ट है कि घरेलू हिंसा हुई है तो वे प्रतिवादी को घरेलू हिंसा या घरेलू हिंसा के किसी भी कार्य को करने से रोकने के लिए पीड़ित व्यक्ति के पक्ष में एक संरक्षण आदेश पारित कर सकते हैं। मजिस्ट्रेट प्रतिवादी को पीड़ित व्यक्ति से संपर्क करने, पीड़ित व्यक्ति के रोजगार के स्थान पर प्रवेश करने या पीड़ित व्यक्ति के आश्रितों या रिश्तेदारों को हिंसा करने से भी रोक सकते है।

निवास का आदेश

अधिनियम की धारा 19 के तहत यदि मजिस्ट्रेट संतुष्ट है कि घरेलू हिंसा हुई है तो मजिस्ट्रेट प्रतिवादी को, साझा घर में पीड़ित व्यक्ति के कब्जे को परेशान करने से रोकने के लिए या प्रतिवादी या उसके किसी रिश्तेदार को साझा घर में प्रवेश करने से रोकने के लिए और प्रतिवादी को साझा घर में अपने अधिकारों को अस्वीकार करने से रोकने के लिए, साझा घर से उसको निकलने के लिए आदेश पारित कर सकता है।

अधिकार क्षेत्र और प्रक्रिया

प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट या क्षेत्र के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत को इस अधिनियम के तहत मामलों की सुनवाई करने का अधिकार है। हालांकि, अधिनियम की धारा 27 निम्नलिखित कारकों के बारे में बताती है;

  1. पीड़ित व्यक्ति उस क्षेत्र में स्थायी रूप से या अस्थायी रूप से रहता है या व्यवसाय करता है।
  2. प्रतिवादी क्षेत्र की स्थानीय सीमा के भीतर निवास करता है, व्यवसाय करता है या कार्यरत (एंप्लॉयड) है।
  3. सक्षम न्यायालय संरक्षण आदेश या कोई अन्य आदेश, जैसा भी मामला हो, देने के लिए उत्तरदायी होगा।

अधिनियम की धारा 28 में कहा गया है कि इस अधिनियम के तहत उत्पन्न होने वाली सभी कार्यवाही आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 के प्रावधानों द्वारा शासित होगी।

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 का विधायी आशय

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 को अधिनियमित करने के विधायी इरादे पर इंद्र शर्मा बनाम वी.के.वी.सरमा के मामले में सावधानीपूर्वक चर्चा की गई है। यह कहा गया था कि इस तरह के अधिनियम को अधिनियमित करने का कारण उन महिलाओं के अधिकारों को संरक्षण प्रदान करना है जो परिवार में होने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा की शिकार होती हैं। यह अधिनियम महिलाओं को उनके घर की चार दीवारी के भीतर हिंसा का सामना करने से बचाता है।

मद्रास उच्च न्यायालय ने वंदना बनाम टी. श्रीकांत के मामले में आगे कहा कि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 संविधान के तहत उन महिलाओं के गारंटीकृत अधिकारों को अधिक प्रभावी संरक्षण प्रदान करने के लिए एक अधिनियम है, जो परिवार में होने वाली किसी भी प्राकर की हिंसा का शिकार हैं।

निष्कर्ष

यह अधिनियम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के साथ-साथ भारतीय कानूनी व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, ताकि वे अपने घर में सुरक्षित महसूस कर सकें। यह कानून का एक संपूर्ण भाग है क्योंकि यह विभिन्न अधिकारियों की शक्तियों और कर्तव्यों, पीड़ितों को उपलब्ध राहत, घरेलू हिंसा के संबंध में शिकायत दर्ज करने के लिए कदम, घरेलू हिंसा के पीड़ितों को प्रदान की जाने वाली सहायता, भारतीय न्यायपालिका की शक्ति और सीमा और केंद्र सरकार की नियम बनाने की शक्ति को निर्धारित करता है। यह अधिनियम घरेलू हिंसा के पीड़ितों को सिविल उपचार प्रदान करता है और अधिनियम के अधिनियमित होने से पहले, घरेलू हिंसा के पीड़ितों ने सिविल अदालतों का सहारा लेकर तलाक, बच्चों की हिरासत, किसी भी रूप में निषेधाज्ञा (इनजंक्शन) या भरण-पोषण जैसे सिविल  उपचार की मांग की थी। इसलिए, अधिनियम ने भारतीय विधायिका में आवश्यक परिवर्तन लाए है।

हालांकि अधिनियम में घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण के लिए आवश्यक कदम शामिल हैं, लेकिन यह परिवार के पुरुष सदस्यों के लिए कोई उपाय प्रदान करने में विफल रहता है और एलजीबीटीक्यू समुदाय के सदस्यों के बीच सहवास (कोहेबिट) और वैवाहिक संबंधों को पहचानने में भी विफल रहता है। इसलिए, इन्हें भारतीय समाज से घरेलू हिंसा को एक आवश्यक बुराई के रूप में पूरी तरह से समाप्त करने के लिए इस अधिनियम में शामिल किया जाना चाहिए।

संदर्भ

 

 

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