इस लेख में, Swati Garg, जो एक वकील है और गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी से एलएलएम कर रही स्नातक द्वारा इस लेख में एक नियन्त्रक (होल्डिंग) और सहायक (सब्सिडियरी) कंपनी संरचना बनाने, नियन्त्रक और सहायक कंपनियों के बीच अनुमत लेनदेन (परमिटेड ट्रांजैक्शंस) और सहायक कंपनियों के लेयरिंग के वाणिज्यिक (कमर्शियल) कारणों पर चर्चा की गई है। इस लेख का अनुवाद Shreya Prakash के द्वारा किया गया है।
Table of Contents
यह समझना कि एक सहायक और नियन्त्रक कंपनी क्या है
अनिवार्य रूप से, यदि एक कंपनी दूसरे के 50% से अधिक शेयर रखती है या अन्य कंपनी के अधिकांश निदेशकों (डायरेक्टर्स) को नियुक्त करती है, तो दूसरी कंपनी पहली कंपनी की सहायक कंपनी होती है। ऐसे में, पहली कंपनी को नियन्त्रक कंपनी कहा जाता है।
यदि नियन्त्रक कंपनी सहायक के 100% शेयर्स की मालिक है, तो सहायक को पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी (डबल्यू ओ एस – होली ओन्ड सब्सिडियरी) के रूप में जाना जाता है।
एक निजी कंपनी को कम से कम दो शेयरधारकों की आवश्यकता होती है, इसलिए तकनीकी रूप से 100% शेयरधारिता असंभव है। कंपनी एक शेयर दूसरे शेयरधारक को दे सकती है (जो नियन्त्रक कंपनी के अनुकूल या एक गठबंधन है)। आमतौर पर, यह कंपनी चलाने वाले प्रमोटर्स का रिश्तेदार होता है।
नियन्त्रक सहायक संरचना के निर्माण के 5 वाणिज्यिक कारण
- व्यवसाय संरचना को अलग करना और अलग प्रबंधन (मैनेजमेंट) के साथ अलग-अलग संस्थाओं का निर्माण करना। उदाहरण के लिए, एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) उत्पादों को एक श्रेणी में रखा जा सकता है और उपभोक्ता (कंज्यूमर) ड्यूरेबल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स को दूसरे में रखा जा सकता हैं। यह विभिन्न व्यवसायों के मूल्य को अलग-अलग करना सक्षम बनाता है। यह एक व्यक्तिगत व्यवसाय की खरीद और बिक्री की सुविधा प्रदान करता है। एक निवेशक सीधे उस कंपनी के शेयरों का अधिग्रहण (एक्वायर) कर सकता है जिसमें वह रुचि रखता है। यदि कोई निवेशक दोनों खंडों में एक्सपोजर (यानी हिस्सेदारी या लाभ) चाहता है, तो वह मूल कंपनी स्तर पर निवेश कर सकता है।
- नियन्त्रक-सहायक संरचना का उपयोग कंपनियां विभिन्न प्रकार के उत्पादों के लिए विभिन्न ब्रांड और ब्रांड श्रेणियां बनाने के लिए भी कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, विवांता, ताज ग्रुप ऑफ होटल्स का बजट ब्रांड है। कंपनियां अलग-अलग वर्टिकल के तहत अलग-अलग ब्रांड रखना पसंद कर सकती हैं। यह उन्हें बिक्री की स्थिति में एक ब्रांड और उसकी बौद्धिक संपदा (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी) को एक साथ बंडल करना सक्षम बनाता है। यह योजना आम तौर पर पहले से की जाती है या जब कंपनी के संचालन का विस्तार होता है और उन्हें नए तरीके से ‘संगठित’ या ‘पुनर्गठन (रिस्ट्रक्चर्)’ करने की आवश्यकता होती है।
- जब वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करते हैं, तो कंपनियां सहायक संरचनाओं का उपयोग करती हैं, जहां वे प्रत्येक देश में एक अलग सहायक कंपनी को निगमित (इनकॉरपोरेट) करती हैं। यह एक कंपनी को किसी विशेष देश के संबंध में व्यवसाय में प्रवेश करने और बाहर निकलने में सक्षम बनाता है।
- कभी-कभी, संरचना का यह रूप कंपनियों को अन्य न्यायालयों में कम कर दरों (टैक्स रेट्स) का लाभ उठाने में सक्षम बनाता है। उदाहरण के लिए, कई अंतरराष्ट्रीय उद्यम पूंजी निधियों (इंटरनेशनल वेंचर कैपिटल फंड्स) ने भारत और मॉरीशस डबल टैक्सेशन अवॉइडेंस एग्रीमेंट्स (डीटीएए) के तहत लाभ कर छूट लेने के लिए मॉरीशस इकाई के माध्यम से भारत में निवेश की संरचना की है।
- सहायक कंपनियों की अधिक परतों को जोड़कर संरचना का विस्तार किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, एक वैश्विक (ग्लोबल) कंपनी के पास एक दक्षिण एशिया नियन्त्रक कंपनी हो सकती है, जिसकी मूल (पैरेंट) भारत की सहायक कंपनी है, और विभिन्न उद्योग क्षेत्रों के लिए आगे की सहायक कंपनियां हैं, जिनमें कंपनी उत्पाद/ सेवाएं बेची जाती है।
कंपनी अधिनियम के तहत सहायक और नियन्त्रक कंपनी
नियन्त्रक कंपनी और सहायक कंपनी को कंपनी अधिनियम, 2013 (यहां अधिनियम के रूप में संदर्भित) के तहत परिभाषित किया गया है।
नियन्त्रक कंपनी
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(46) नियन्त्रक कंपनी को परिभाषित करती है। कंपनी को नियन्त्रक कंपनी कहा जाता है यदि वह किसी एक विशेष कंपनी या अन्य कंपनियों के कम से कम 50% का मालिक है और प्रबंधन निर्णय लेने का अधिकार रखती है, या कंपनी के निदेशक मंडल को प्रभावित करती है और नियंत्रित करती है। सहायक कंपनियों को नियंत्रित और प्रबंधित करने के एकमात्र उद्देश्य के लिए एक नियन्त्रक कंपनी मौजूद हो सकती है।
सहायक कंपनी
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(87) सहायक कंपनी को परिभाषित करती है। सहायक कंपनी वह कंपनी है जिसे नियन्त्रक या मूल कंपनी द्वारा नियंत्रित किया जाता है। इसे एक कंपनी/ बॉडी कॉरपोरेट के रूप में परिभाषित किया गया है जहां नियन्त्रक कंपनी निदेशक मंडल की संरचना को नियंत्रित करती है। कंपनी संशोधन अधिनियम, 2017, धारा 2(87)(ii) के अनुसार, यदि नियन्त्रक कंपनी का किसी अन्य कंपनी की आधे से अधिक वोटिंग शक्ति पर नियंत्रण है, तो उस विशेष कंपनी को सहायक कंपनी के रूप में पहचाना जाएगा।
नोट: यदि एक नियन्त्रक कंपनी के पास अन्य कंपनी के स्टॉक का 100% स्वामित्व है, तो दूसरी कंपनी को नियन्त्रक कंपनी की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी के रूप में जाना जाएगा।
सहायक कंपनियों की परतें
अधिनियम की धारा 2(87) में प्रयुक्त शब्द परत (लेयर) का तात्पर्य किसी नियन्त्रक कंपनी की सहायक या सहायक कंपनियों से है। जिस सन्दर्भ में इसका प्रयोग अनुभाग में किया गया है, उसका अर्थ है लंबवत अनुषंगियाँ (वर्टिकल सब्सिडियरी)। कंपनी अधिनियम की धारा 186 और धारा 2(87) के प्रावधान नियन्त्रक कंपनियों की परतों की संख्या को प्रतिबंधित करते हैं। इसे कंपनी (परतों की संख्या पर प्रतिबंध) नियम (कंपनीज (रिस्ट्रिक्शन ऑन नंबर ऑफ लेयर्स) रूल्स), 2017 के संयोजन में पढ़ा जाना चाहिए।
ध्यान दें कि पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनियों को अब उपरोक्त नियमों के अनुसार एक अलग परत के रूप में माना जाने से बाहर रखा गया है।
परत की संरचना पर प्रतिबंध तब भी लागू नहीं होता जब किसी विशिष्ट कानून के लिए एक परत बनाने की आवश्यकता होती है। हमने बाद में इस पर चर्चा की है।
स्टेप-डाउन सहायक कंपनी
इस वाक्यांश को कंपनी अधिनियम, 2013 में कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है। आम बोलचाल में, इसका उपयोग सहायक कंपनी की सहायक कंपनी को निर्दिष्ट करने के लिए किया जाता है।
कंपनी A (नियन्त्रक कंपनी)
|
कंपनी B (कंपनी A की सहायक कंपनी)
|
कंपनी C (कंपनी B की सहायक कंपनी और कंपनी A की स्टेप डाउन सहायक कंपनी)
नियन्त्रक और सहायक कंपनियों के बीच लेनदेन की 5 अनूठी विशेषताएं
- सभी लेनदेन संबंधित पार्टी लेनदेन के रूप में योग्य हैं और संबंधित पार्टी लेनदेन पर संबंधित प्रतिबंधों का पालन करने की आवश्यकता होती है। लेन-देन के प्रकार के आधार पर ये प्रतिबंध कई प्रकार के होते हैं। वे लेन-देन में प्रवेश करने से पहले ब्याज के प्रकटीकरण, मतदान से परहेज या शेयरधारकों के एक विशिष्ट बहुमत का अनुमोदन (अप्रूवल) लेने से लेकर हो सकते हैं। ये सिद्धांत यह सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं कि लेन-देन केवल पक्षों के बीच संबंधों से प्रभावित नहीं होता है और एक हाथ की लंबाई के आधार (आर्म्स लेंथ बेसिस) पर निष्पादित किया जाता है।
- नियन्त्रक और सहायक कंपनियों के बीच लेनदेन पर कुछ स्टैंप ड्यूटी छूट उपलब्ध हैं, खासकर यदि वे पूर्ण स्वामित्व वाली हैं। चूंकि नियन्त्रक और सहायक अलग-अलग कानूनी संस्थाएं हैं, उनके संबंध और उनके बीच लेनदेन के लिए विभिन्न प्रकार के अनुबंधों को निष्पादित करने की आवश्यकता होगी, और प्रत्येक अनुबंध पर स्टैंप ड्यूटी का भुगतान कठिन हो सकता है। इसलिए, स्टैंप शुल्क में छूट फायदेमंद है। ये छूट कंपनी के व्यवसाय की ऐसी संरचना और संगठन को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से की गई हैं। इन छूटों को अलग-अलग अधिसूचनाओं (नोटिफिकेशन) के माध्यम से उपलब्ध कराया जाता है, इसलिए वे राज्य स्तरीय स्टैंप अधिनियम या अनुसूची के पाठ में सामान्य रूप से दिखाई नहीं देते हैं।
- आयकर के नजरिए से, आर्म्स लेंथ प्राइसिंग निर्धारण सिद्धांतों को विशेष रूप से लागू करना पड़ सकता है, यदि नियन्त्रक-सहायक संबंध अंतरराष्ट्रीय है। कुछ मामलों में, भारतीय कानून के तहत घरेलू स्थितियों में भी आर्म्स लेंथ प्राइसिंग लागू होती है।
- नियन्त्रक कंपनी को लेवल 2 या लेवल 3 सब्सिडियरी (जहां अनुमति हो) से डिविडेंड ट्रांसफर करना बोझिल (कंबरसम) हो सकता है और अगर संरचना सावधानी से नहीं की जाती है तो इसका अनपेक्षित कर प्रभाव भी पड़ता है।
- ऋण लेनदेन के लिए, एक या एक से अधिक नियन्त्रक कंपनियां सहायक कंपनी के दायित्वों के लिए गारंटी जारी कर सकती हैं।
प्रैक्टिकल टिप: जब आप किसी नियन्त्रक और सहायक कंपनी के बीच लेन-देन पर काम कर रहे हों, तो संबंधित राज्य-स्तरीय स्टैंप अधिनियम या लेनदेन के लिए अनुसूची के तहत स्टैंप ड्यूटी की जाँच के समय, सुनिश्चित करें कि आप यह भी जाँच लें कि क्या कोई छूट या उस लेनदेन के लिए छूट प्राप्त की जा सकती है यदि यह नियन्त्रक और सहायक कंपनियों के बीच किया जाता है।
सहायक और नियन्त्रक कंपनियों के बीच अनुमत लेनदेन क्या हैं? क्या कोई लेन-देन निषिद्ध है? इसके पीछे क्या तर्क है?
अनुमत लेनदेन (पर्मिटेड ट्रांजैक्शंस)
- एक नियन्त्रक कंपनी द्वारा अपनी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी को दिए गए किसी भी ऋण की अनुमति है यदि उक्त ऋण का उपयोग पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनियों के प्रमुख व्यवसाय के लिए किया जाता है। सहायक कंपनी द्वारा किसी अन्य निवेश के लिए ऋण का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
- नियन्त्रक कंपनी अपनी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी को दिए गए किसी भी ऋण के लिए गारंटी / सुरक्षा प्रदान कर सकती है यदि उक्त ऋण का उपयोग पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनियों के प्रमुख व्यवसाय के लिए किया जाता है। सहायक कंपनी द्वारा किसी अन्य निवेश के लिए ऋण का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
- इसके अलावा, नियन्त्रक कंपनी किसी भी बैंक और वित्तीय संस्थान द्वारा अपनी सहायक कंपनी को दिए गए किसी भी ऋण के लिए गारंटी / सुरक्षा प्रदान कर सकती है यदि उक्त ऋण का उपयोग पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनियों के प्रमुख व्यवसाय के लिए किया जाता है। सहायक कंपनी द्वारा किसी अन्य निवेश के लिए ऋण का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
उपरोक्त के अलावा, नियन्त्रक कंपनियों और सहायक कंपनियों के बीच लेनदेन को धारा 2(76) के तहत संबंधित पक्ष लेनदेन के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन लेन-देन के लिए, निदेशक मंडल की बैठक में एक प्रस्ताव द्वारा निदेशक मंडल की सहमति दी जानी चाहिए। इसके अलावा, यदि ये लेन-देन नियन्त्रक या सहायक कंपनी द्वारा अपने सामान्य व्यवसाय में दर्ज नहीं किए जाते हैं, तो उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्होंने आर्म्स लेंथ सिद्धांत का पालन किया है। इसके बाद, नियन्त्रक कंपनी और सहायक कंपनी निम्नलिखित चीजों के लिए एक अनुबंध या व्यवस्था कर सकती है:
- किसी भी सामान या सामग्री की बिक्री, खरीद या आपूर्ति;
- किसी भी प्रकार की संपत्ति को बेचना या अन्यथा निपटाना या खरीदना;
- किसी भी प्रकार की संपत्ति को पट्टे (लीज) पर देना;
- किसी सेवा का लाभ उठाना या प्रदान करना;
- माल, सामग्री, सेवा या संपत्ति की खरीद या बिक्री के लिए किसी एजेंट की नियुक्ति;
- कंपनी, या इसकी सहायक कंपनी या सहयोगी कंपनी में किसी भी कार्यालय या लाभ के स्थान पर संबंधित पार्टी की नियुक्ति;
- कंपनी की किसी भी प्रतिभूति (सिक्योरिटी) या उसके डेरिवेटिव की सदस्यता को हामीदारी (अंडर राइट) करना।
इन संबंधित पार्टी लेनदेन को और नियंत्रित करने के लिए, केंद्र सरकार कंपनी (बोर्ड की बैठक और उसकी शक्तियां) नियम (कंपनीज (मीटिंग्स ऑफ बोर्ड एंड इट्स पावर्स) रूल्स), 2014 लेकर आई है।
निषिद्ध लेनदेन
जैसा कि ऊपर देखा जा सकता है, अधिनियम में अनुमत लेनदेन निर्दिष्ट किए गए हैं। एक बात हमें याद रखने की जरूरत है कि यदि अनुमत लेनदेन के संचालन के लिए उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है, तो यह अधिनियम के उल्लंघन में होगा और इसके परिणामस्वरूप कंपनी को जुर्माना देना होगा।
हालाँकि इसके अलावा, अधिनियम सहायक और नियन्त्रक कंपनी के बीच विभिन्न निषिद्ध लेनदेन को भी निर्दिष्ट करता है। इसके पीछे तर्क यह है कि यह सुनिश्चित करना कि निदेशक अपने लाभ के लिए कंपनियों के धन का उपयोग नहीं कर रहे हैं। निषिद्ध लेनदेन का अर्थ हैं:
- एक सहायक कंपनी की नियन्त्रक कंपनी में शेयर नहीं हो सकते हैं। इस प्रकार, सहायक कंपनियों को धारण करने के बीच क्रॉस-नियन्त्रक की अनुमति नहीं है। नियन्त्रक कंपनी अपनी किसी भी सहायक कंपनी को अपने शेयर आवंटित या स्थानांतरित नहीं कर सकती है। यदि आप टाटा समूह की नियन्त्रक संरचना को देखें तो कंपनियों के बीच कई क्रॉस-नियन्त्रक हैं (यानी कंपनी A के पास कंपनी B के कुछ शेयर होंगे और कंपनी B के पास कंपनी A के भी कुछ शेयर होंगे)। यह तभी संभव है जब दोनों कंपनियां नियन्त्रक न हों और सहायक कंपनियां (अर्थात एक-दूसरे में आपसी शेयरधारिता 50% से कम रखते हो)।
- एक नियन्त्रक कंपनी द्वारा सहायक कंपनी को किए गए किसी भी ऋण की अधिनियम के तहत अनुमति नहीं है।
- सहायक कंपनी द्वारा नियन्त्रक कंपनी के निदेशक को दिए गए किसी भी ऋण/ गारंटी/ प्रतिभूति की अनुमति नहीं है।
कंपनी अधिनियम और नियमों के तहत किस तरह की लेयरिंग की अनुमति है? क्या विदेशी नियन्त्रक कंपनी या विदेशी सहायक कंपनी के मामले में स्थिति अलग है?
जैसा कि ऊपर बताया गया है, अधिनियम के तहत लेयरिंग का अर्थ है सहायक या नियन्त्रक कंपनियों की सहायक कंपनियां। जैसा कि धारा 2(87) के प्रावधान के तहत दिया गया है, नियन्त्रक कंपनी पर अधिनियम के तहत निर्धारित अनुसार अधिक परतें नहीं रखने का निषेध है। अधिनियम की धारा 186(1) निर्दिष्ट करती है कि किसी कंपनी को निवेश कंपनियों की दो परतों से अधिक में निवेश नहीं करना चाहिए। अधिनियम की धारा 2(87) के प्रावधान को ध्यान में रखते हुए, 20 सितंबर 2017 को, केंद्र सरकार ने “कंपनी (परतों की संख्या पर प्रतिबंध) नियम, 2017” अधिनियमित किया। इन नियमों में निर्दिष्ट है कि किसी भी कंपनी में सहायक कंपनियों की दो से अधिक परतें नहीं होंगी। यह प्रतिबंध लंबवत सहायक कंपनियों के लिए है न कि क्षैतिज सहायक कंपनियों के लिए।
लेयरिंग के विवरण में जाने से पहले, आइए पहले समझें कि कंपनी की परतों को प्रतिबंधित करने की आवश्यकता क्यों है, जो इस प्रकार है:
- अवैध धन प्रवाह को कम करने के लिए।
- धन के विचलन (डायवर्सन) को रोकने के लिए।
- सहायक कंपनियों की कई परतों पर नजर रखने के लिए।
- फंड के विचलन के लिए शेल कंपनियों को कम करने के लिए कंपनियों को रोकना।
- कंपनी को मनी लॉन्ड्रिंग से रोकने के लिए, जो धन प्राप्त करने का अवैध तरीका है।
- अधिकारियों को कॉर्पोरेट संरचनाओं के लाभार्थियों की पहचान करने में सक्षम बनाना।
कंपनी (परतों की संख्या पर प्रतिबंध) नियम, 2017 के तहत लेयरिंग पर प्रतिबंध
आइए अब इन नियमों के प्रावधानों पर एक नजर डालते हैं।
- एक कंपनी में सहायक कंपनियों की दो परतों से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- एक पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी को एक अलग परत के रूप में नहीं लिया जाएगा।
- कंपनियों के निम्नलिखित वर्ग इन नियमों के दायरे से बाहर हैं:
- एक बैंकिंग कंपनी;
- एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी;
- एक बीमा कंपनी;
- एक सरकारी कंपनी।
- भारत के बाहर निगमित एक कंपनी का अधिग्रहण करने वाली कंपनी जिसमें दो से अधिक सहायक कंपनियां हैं, बशर्ते वह उस देश के कानून के अनुसार हो।
- एक सहायक कंपनी जिसे किसी कानून या नियमों के तहत एक निवेश सहायक कंपनी की आवश्यकता होती है।
- ये नियम प्रकृति में भावी (प्रोस्पेक्टिव) हैं। इसलिए, कोई भी कंपनी जिसके पास इन नियमों के लागू होने पर या उससे पहले सहायक कंपनियों की दो से अधिक परतें थीं, उन्हें यह करने की आवश्यकता है।
- इन नियमों के प्रकाशन के 150 दिनों के भीतर फॉर्म सीआरएल-1 में रजिस्ट्रार के पास रिटर्न दाखिल करें।
- सहायक कंपनियों की और परतें नहीं जोड़ेगी।
- यदि इन नियमों के लागू होने के बाद परतों को कम किया जाता है, तो उनकी परतों की संख्या दो से अधिक नहीं बढ़ाई जानी चाहिए।
- रुपये का अधिकतम जुर्माना– इन नियमों का उल्लंघन करने वाली कंपनियों और कंपनी के प्रत्येक अधिकारी पर 10,000 का जुर्माना लगाया जाएगा। यदि उल्लंघन जारी है, तो अधिकतम हर दिन रु. 1,000 लगाया जाएगा।
चित्रण 1: लेयरिंग – सहायक और स्टेप-डाउन सहायक के बीच भेद
कंपनी A — नियन्त्रक कंपनी
| | | |
कंपनी B कंपनी F कंपनी G कंपनी H
|
कंपनी C
|
कंपनी D
|
कंपनी E
यहां कंपनी A नियन्त्रक कंपनी है।
कंपनी B, F, G और H नियन्त्रक कंपनी की क्षैतिज (होरीजोंटल) सहायक कंपनियां हैं जहां प्रतिबंध लागू नहीं हैं। उनके पास कई क्षैतिज सहायक कंपनियां हो सकती हैं।
कंपनी F, G और H में कंपनी B की तरह ही स्टेप डाउन/ लेयर सब्सिडियरी हो सकती है।
नियन्त्रक कंपनी A की लंबवत सहायक कंपनी के रूप में कंपनी B, C, D और E हैं। यहां, हमें प्रतिबंधों का परीक्षण करना है।
चूंकि कंपनी B कंपनी A की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है, इसलिए इसे अलग से एक परत के रूप में नहीं माना जाएगा। इसलिए, यह कहा जा सकता है कि दिए गए दृष्टांत में, नियन्त्रक कंपनी A की 3 स्टेप डाउन सब्सिडियरी या लेयर कंपनियां यानी कंपनी C, D और E हैं।
जैसा कि नियम निर्दिष्ट करते हैं, किसी भी नियन्त्रक कंपनी में केवल दो परतें हो सकती हैं, इसलिए कंपनी C और D कानूनों के भीतर अच्छी तरह से हैं। हालाँकि, कंपनी A की सहायक कंपनी के रूप में कंपनी E नहीं हो सकती है।
चित्रण 2: लेयरिंग: सिंगल और टू-लेवल सब्सिडियरी (अपवादों के साथ)
A- नियन्त्रक कंपनी
| | | | |
B C D E F
| | |
C1 D1 F1
| | |
F2
यहां कंपनी A नियन्त्रक कंपनी है।
कंपनी B, C, D, E सहायक कंपनियां है और F, कंपनी A की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।
कंपनी B और E एक लेयर वाली सहायक कंपनियां हैं।
कंपनी C, D और F, दो लेयर वाली सहायक कंपनियां हैं। यहां, F को गिनती में शामिल नहीं किया गया है क्योंकि वह एक पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।
चित्रण 3: अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में परतें बनाना
B1- अपतटीय (ऑफशोर) कंपनी
अपतटीय भारत
| |
B2 C (भारतीय मूल कंपनी)
| |
B3 C1 (भारतीय सहायक)
| |
B4 C2 (भारतीय स्टेप डाउन सहायक)
(दो से ज्यादा लेयर भी हो सकते है अगर उस कंपनी का अधिकार क्षेत्र इसकी अनुमति देता है तो)
यहाँ उदाहरण में, भारत में, एक मूल कंपनी C में सहायक की दो परतें हो सकती हैं, लेकिन अगर उसे एक अपतटीय (ऑफशोर) कंपनी का अधिग्रहण करना है और अपतटीय कंपनी में सहायक कंपनियों की दो से अधिक परतें हैं, जिन्हें अपतटीय कंपनी के अधिकार क्षेत्र के अनुसार अनुमति है, इसे भारतीय कानून के तहत छूट दी जाएगी।
I was extremely pleased to discover this page. I want to to thank you for ones time due to this wonderful read!! I definitely appreciated every part of it and I have you bookmarked to look at new information on your web site.