तेजाब हमला : समाज का चेहरा बिगाड़ रहा है

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Indian Penal Code
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यह लेख Aarchie Chaturvedi द्वारा लिखा गया है, जो वर्तमान में नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ, रांची से बी.ए.-एल.एल.बी. कर रही हैं। इस लेख में, वह भारतीय समाज में तेजाब हमले की बुराई पर चर्चा करती है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

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परिचय

“तेजाब एक हथियार है; आप जानते हैं कि अमेरिका कैसे बंदूकों के बारे में बात कर रहा है? भारत में इस तरह से तेजाब का इस्तेमाल किया जाता है।”

ये एक अखबार की रिपोर्ट में छपे, तेजाब के हमले के पीड़िता के शब्द थे। ये शब्द तेजाब के हमले से बचे लोगों की मानसिक स्थिति को दिखाते हैं। वास्तव में, वे अपने जीवन में उस गोली लगने वाले व्यक्ति की तुलना में समान या अधिक आहत महसूस करते हैं। उनका ठीक होना बहुत मुश्किल होता है। ‘मेक लव नॉट स्कार्स’ की सी.ई.ओ. तानिया सिंह के अनुसार, हर साल तेजाब हमले के लगभग 300 मामले सामने आते हैं और ऐसे 1000 मामले हैं जिनकी रिपोर्ट ही नहीं की जाती है। यह अपराध किसी भी लिंग, वर्ग, जाति, धर्म और उम्र के बावजूद हो सकता है। हालांकि आंकड़े बताते हैं कि ऐसा ज्यादातर महिलाओं के साथ होता है। बहुत कम मामलों में इस अपराध का कारण भूमि और संपत्ति का विवाद होता है अन्यथा प्रमुख रूप से, इस अपराध के सबसे सामान्य कारण शादी से इनकार, संभोग करने से इनकार या महिला द्वारा रोमांस की अस्वीकृति होती हैं। यह अपराध महिलाओं के प्रति गहरी ईर्ष्या, शत्रुता, घृणा या बदले की भावना से प्रेरित है। इस लेख में, हम भारत में इस अपराध को कवर करने वाले विभिन्न कानूनों, एक तेजाब हमले के बाद पीड़िता का जीवन, ऐतिहासिक मामले और कुछ पीड़ितो की सफलता की कहानियों पर चर्चा करेंगे।

तेजाब का हमला जैसा कि आई.पी.सी. 1860 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत चर्चा की गई है

अब सबसे पहले बात करते हैं कि तेजाब क्या है। भारतीय दंड संहिता, तेजाब क्या है, इसकी कोई परिभाषा नहीं देती है।

तेजाब एक पदार्थ है जिसका पी.एच. 7 से नीचे होता है, इसका स्वाद खट्टा होता है, हाइड्रॉक्सिल छोड़ता है और लिटमस पेपर को लाल कर देता है। मजबूत अम्ल (एसिड) प्रकृति में संक्षारक (कोरोसिव) होते हैं जबकि कमजोर वाले हानिरहित होते हैं। बाजार में आसानी से मिलने वाले सल्फ्यूरिक तेजाब या हाइड्रोक्लोरिक तेजाब का इस्तेमाल पुरुषों द्वारा महिलाओं का शोषण करने के लिए किया जाता है। कुछ स्थानों पर जहाँ तेजाब नियंत्रित पदार्थ होते हैं, वहाँ कास्टिक सोडा जैसे प्रबल क्षारीय (स्ट्रोंगली एल्कलाइन) पदार्थों के जलीय विलयनों (एक्वियोस सॉल्यूशंस) का भी उपयोग किया जाता है।

तेजाब या किसी स्वाभाविक रूप से खतरनाक या संक्षारक पदार्थ को फेंकने को आमतौर पर ‘तेजाब का हमला’ कहा जाता है। कई मामलों में, पीड़िता पर एक व्यक्ति या उसके जानने वाले पुरुषों के समूह द्वारा हमला किया जाता है।

हथियारों या अन्य साधनों से गंभीर चोट पहुँचाना, इस जघन्य (हिनियस) अपराध से निपटने में बहुत सफल नहीं रहा था। इसलिए न्यायमूर्ति ए.आर. लक्ष्मणन ने आई.पी.सी. में नई धारा 326 A और 326 B और भारतीय साक्ष्य अधिनियम में धारा 114 B का प्रस्ताव रखा था।

आई.पी.सी. की धारा 326 A में कहा गया है कि जो कोई भी व्यक्ति, किसी व्यक्ति पर तेजाब डाल कर या फेंक कर गंभीर चोट पहुंचाता है, इस इरादे से या इस ज्ञान के साथ की वह इस तरह की चोट का कारण बन सकता है, या आंशिक (पार्शियल) रूप से चोट, स्थायी क्षति, जलन या अपंग (मेम), शरीर के अंग या अंगों को विकृत (डिसफिगर) या अक्षम कर सकता है, तो इन परिस्थितियों में वह कम से कम 10 वर्ष की अवधि के लिए कारावास से दंडित होगा जिसे आजीवन करावास तक बढ़ाया जा सकता है और वह जुर्माना देने के लिए भी उत्तरदायी होगा है। इस धारा में आगे कुछ स्पष्टीकरण (एक्सप्लेनेशन) भी शामिल हैं जो इस प्रकार हैं:

  1. हर्जाना न्यायोचित और उचित होना चाहिए ताकि पीड़ित के चिकित्सा खर्च को पूरा किया जा सके।
  2. पीड़ित को हर्जाना दिया जाएगा।
  3. इस विशेष धारा के उद्देश्य के लिए, शब्द ‘तेजाब’ केवल उन पदार्थों तक सीमित नहीं है जो विज्ञान के अनुसार तेजाब के गुण दिखाते हैं, लेकिन यहां तेजाब शब्द का अर्थ संक्षारक या अम्लीय (एसिडिक) प्रकृति के सभी पदार्थ हैं, जो जलने का कारण बन सकते हैं या शारीरिक चोट या निशान जो अस्थायी रूप से या स्थायी रूप से शरीर में अपंगता/विकलांगता का कारण बनने में सक्षम हो सकते हैं। 
  4. इस अपराध के तहत मुआवजे (कंपनसेशन) के लिए हर्जाने का दावा करने के लिए, हुई चोट अपरिवर्तनीय (इरेवर्सिबल) प्रकृति की नहीं होनी चाहिए।

आई.पी.सी. की धारा 326B, आगे किसी पर तेजाब फेंकने की कोशिश के लिए सजा का प्रावधान भी करती है। इस धारा के अनुसार, तेजाब फेंकने के प्रयास के लिए एक व्यक्ति को कम से कम 5 साल की सजा दी जाएगी जिसे 7 साल तक बढ़ाया जा सकता है और साथ में उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

आपराधिक (संशोधन) अधिनियम, 2013 द्वारा, साक्ष्य अधिनियम में जोड़ी गई धारा 114 B में कहा गया है कि यदि एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति पर तेजाब फेंका या पिलाया जाता है, तो ऐसी परिस्थितियों में अदालत यह मान लेगी कि ऐसा कार्य उसके साथ किया गया है, जिसे आई.पी.सी. की धारा 326A में उल्लिखित शारीरिक चोट पहुंचाने के इरादा किया गया है।

पीड़िता पर तेजाब के हमले के परिणाम

“लोग कहते हैं कि आंतरिक सुंदरता मायने रखती है, लेकिन वास्तव में कुछ ही लोग शारीरिक विशेषताओं से परे जाते हैं।” ये शब्द, तेजाब हमले की पीड़िता लक्ष्मी अग्रवाल के थे। घटना के बाद लक्ष्मी को समझ नहीं आ रहा था कि उनके साथ क्या हुआ है। वह इतनी आहत में थी कि उन्होंने महीनों तक अपना चेहरा भी नहीं छुआ और न ही आईने को देखा था। उन्होंने आत्महत्या के बारे में भी सोचा। लक्ष्मी की स्थिति अन्य पीड़ितों से अलग नहीं है। उनकी कहानी दर्शाती है कि तेजाब हमले के हर पीड़ित के साथ ऐसी घटना होने के बाद, वह कितना भयभीत या स्तब्ध (शॉक) हो जाते हैं। आइए हम इस तरह के अपराध के विभिन्न परिणामों के बारे में विस्तार से चर्चा करें।

चोट लगना और शारीरिक परिणाम

तेजाब त्वचा की दो परतों को खत्म करने में सक्षम है। कभी-कभी जब तेजाब फेंका जाता है, तो न केवल वसा (फैट) और मांसपेशियां टूट जाती हैं, बल्कि हड्डी भी घुल जाती है। चोट की गहराई तेजाब की शक्ति और त्वचा के संपर्क में रहने की अवधि पर निर्भर करती है। तेजाब जैसे ही व्यक्ति के चेहरे के संपर्क में आता है वह जल्दी से आंख, कान, नाक और मुंह में चला जाता है। पलकें और होंठ पूरी तरह से जल सकते हैं। कान सूख जाते हैं। नाक फ्यूज हो सकती है, जिससे नासिका छिद्र (नॉस्ट्रिल) बंद हो जाते है। तेजाब चेहरे, गर्दन, कंधों या बाहों से जहां कहीं भी टपकता है, वह हर जगह जल जाती है। जलना तब तक जारी रहता है जब तक तेजाब पूरी तरह से पानी से धुल नहीं जाता।

पीड़ित के लिए सबसे बुरा और सबसे तात्कालिक (इमेडिएट) खतरा सांस लेने में तकलीफ है। तेजाब को अंदर लेने से दो तरह से सांस लेने में समस्या हो सकती है:

  • फेफड़ों में जहरीली प्रतिक्रिया (रिएक्शन) पैदा करके, या
  • गर्दन में सूजन, जो वायुमार्ग (एयरवे) को बाधित करती है और पीड़ित का गला घोंटती है।

जब जलन ठीक हो जाती है, तो निशान बन जाते हैं। निशान त्वचा को बहुत कस कर खींचते हैं और विकृति का कारण बनते हैं। विकृतियों के कुछ उदाहरण हैं:

  • पलकें बंद नहीं हो सकतीं;
  • हो सकता है कि मुंह न खुले, होंठ फटे हों;
  • ठुड्डी छाती से लग जाती है;
  • नाक सिकुड़ जाती है, नासिका छिद्र बंद हो जाते हैं, उपास्थि (कार्टिलेज) नष्ट हो सकती है;
  • गाल झुलस जाते हैं;
  • छाती में संकरी (नैरो) रेखाएं हो सकती हैं या उस पर टपकने या छिड़कने वाले तेजाब के कारण होने वाले निशान के चौड़े धब्बे हो सकते हैं;
  • कंधे इस हद तक क्षतिग्रस्त हो सकते है कि पीड़ित की बाहों की गति प्रतिबंधित हो सकती है।

सामाजिक परिणाम

लक्ष्मी अग्रवाल (तेजाब हमले की पीड़िता) ने अपने एक साक्षात्कार (इंटरव्यू) में उल्लेख किया था कि समाज में लोग, ज्यादातर महिलाएं उन्हें ताना मारती थीं, उनके और उनके परिवार के बारे में बुरा बोलती थीं। दर्द आंतरिक ही नहीं बाहरी भी होता है जो समाज की टिप्पणियों और ताने से थोपा जाता है। समाज उन्हें एक सामान्य इंसान के रूप में स्वीकार नहीं करता है। ऐसे पीड़ितों को वर्षों तक समाज से भेदभाव का सामना करना पड़ता है। पीड़ित यह सोचकर अपने घरों से बाहर नहीं निकल पाते हैं कि उनका मजाक बनाया जाएगा। वे अपने प्रति आम जनता के विरोधी रवैये से डरते हैं। जिन पीड़ितों की शादी नहीं हुई होती, उनके भविष्य में शादी करने की संभावना नहीं होती है।

आर्थिक (इकोनॉमिक) परिणाम

पीड़ित अपनी विकलांगता के कारण काम करने में असमर्थ हो जाते हैं, जिसके कारण उन्हें अपने भोजन और आश्रय (शेल्टर) के लिए किसी और पर निर्भर होना पड़ता है। अगर पीड़ित कुछ काम करना भी चाहते है तो भी उन्हें कोई काम नहीं मिलता है। नियोक्ता (एंप्लॉयर) योग्यता, प्रतिभा (टैलेंट) और क्षमताओं का आकलन (एसेस) करते समय व्यक्ति के रूप का भी आकलन करते हैं जिसके कारण अक्सर इन पीड़ितों को बेरोजगार कर दिया जाता है।

मनोवैज्ञानिक (साइकोलॉजिकल) परिणाम

पीड़ित न केवल सामान्य रूप से स्तब्ध या आघात महसूस करते हैं, बल्कि वे अपने, समाज और हर चीज के बारे में महसूस करने और सोचने के तरीके से भी आघात महसूस करते हैं। यह उस भयावहता (हॉरर) के कारण होता है जिसे वे हमला करते समय झेलते हैं। भयावहता की यह भावना उनमें बसती है क्योंकि उनके लिए यह स्वीकार करना असहनीय होता है कि जिस भी अक्षमता का सामना उन्हें करना पड़ा है, उन्हें अब जीवन भर उसके साथ ही रहना पड़ेगा। वे अपने पूरे जीवन के लिए नहीं तो कुछ वर्षों तक अवसाद (डिप्रेशन) की कमजोरी, थकान, एकाग्रता (कंसट्रेशन) की कमी, आशा की कमी से पीड़ित होते हैं।

तेजाब के हमले से जुड़े मामले

लक्ष्मी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया 

तथ्य

लक्ष्मी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के इस मामले में लक्ष्मी (पीड़ित) पर 16 साल की उम्र में तेजाब से हमला किया गया था। उस पर एक आदमी ने हमला किया था जिससे उसने शादी करने से इनकार कर दिया था। लक्ष्मी ने 2006 में सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी। उन्होंने मुआवजे की मांग के अलावा नए कानून बनाने और तेजाब के हमले से जुड़े मौजूदा कानूनों में संशोधन की भी मांग की। उन्होंने बाजार में तेजाब की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध या रोक लगाने की मांग की थी।

निर्णय

सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को, रासायनिक (केमिकल) हमलों को रोकने के लिए तेजाब की बिक्री पर अंकुश लगाने के लिए एक योजना का मसौदा (ड्राफ्ट) तैयार करने के लिए राज्य सरकारों के साथ बैठकर काम करने का निर्देश दिया था। हालांकि, अपराध के संबंध में केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से गैर-गंभीरता को देखते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आप में एक नया दिशानिर्देश तैयार किया और लक्ष्मी के पक्ष में फैसला सुनाया। निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार:

  • 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को तेजाब नहीं बेचा जा सकता है;
  • यदि आप तेजाब खरीदना चाहते हैं तो आपको अपना फोटो पहचान प्रमाण प्रस्तुत करना होगा।

ये कानून अदालत द्वारा पास किए गए थे क्योंकि तेजाब हमलों की बढ़ती संख्या के प्रमुख कारणों में से एक बाजार में तेजाब की अनधिकृत (अनऑथराइज्ड) बिक्री है। यह इतनी आसानी से उपलब्ध है कि यह महिलाओं के खिलाफ अपराध करने का सबसे आसान साधन बन गया है। हाइड्रोक्लोरिक तेजाब, साबुन की एक टिक्की खरीदने जितना सस्ता है। इसके अलावा, तेजाब के स्टॉक की कोई नियमित (रेगुलर) जांच या निरीक्षण (इंस्पेक्शन) नहीं होता है जैसा कि अन्य विस्फोटकों के लिए होता है।

हालांकि, लक्ष्मी ने दावा किया था कि नियमों के बावजूद बहुत सी चीजें नहीं बदली हैं। दुकानों में अब भी तेजाब फ्री में मिलता है। वह कुछ स्वयंसेवकों (वॉलंटियर्स) के साथ खुद जाकर तेजाब खरीद चुकी हैं। फिर भी, यह तर्क दिया जाता है कि तेजाब को पूरी तरह से प्रतिबंधित करना संभव नहीं है क्योंकि तेजाब का उपयोग कुछ अन्य उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है जैसे कि सफाई में, कार की बैटरी बनाने आदि में। यह सुझाव दिया गया था कि तेजाब के उपयोग को हतोत्साहित (डिसकरेज) करना किसी अन्य तरीके से आना चाहिए, जैसे की ऐसे कानून पास करके जो जघन्य अपराध करने वाले अपराधियों को अधिक कठोर दंड प्रदान करते हों।

परिवर्तन केंद्र बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया, (2016) 3 एस.सी.सी 571

तथ्य

परिवर्तन केंद्र बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के इस मामले में, परिवर्तन केंद्र नामक एक गैर सरकारी संगठन ने अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर करने के अपने अधिकार का प्रयोग किया था। उन्होंने तेजाब हमले के पीड़ितों की दुर्दशा को दूर करने की कोशिश की थी, जो लक्ष्मी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की घोषणा के बाद भी बेहतर नहीं हो पा रही थी। यह गैर सरकारी संगठन, तेजाब हमलों के मामलों की बढ़ती संख्या की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित करना चाहता था जो कि लागू कानूनों और विनियमों (रेगुलेशन) की अक्षमता (इनएफिशिएंसी) को साबित करता है।

बिहार के एक गांव में रहने वाली चंचल नाम की 18 साल की दलित लड़की पर तेजाब फेंके जाने के बाद ये मामल दर्ज किया गया था। प्रारंभ में, उसे 4 व्यक्तियों (जो दोषी थे) द्वारा मौखिक और यौन उत्पीड़न (सेक्शुअल हैरेसमेंट) किया गया था। लेकिन एक दिन, 4 व्यक्तियों में से एक उसके घर की छत पर चढ़ गया। चंचल उस समय अपनी बहन के साथ सो रही थी। आरोपी ने मौके का फायदा उठाया और चंचल के चेहरे पर तेजाब फेंक दिया। न केवल चंचल, बल्कि उसकी बहन को भी चोटें आईं। तेजाब की कुछ बूंदें चंचल की बहन पर भी गिरीं थी। उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने इलाज में देरी की और उनकी हालत बिगड़ गई। चंचल के पिता को दवा पर खर्च करने के लिए 5 लाख रुपये का भुगतान करना पड़ा। वह इतनी बड़ी रकम नहीं चुका पाया और कर्ज में डूब गया। परिवार को डॉक्टरों द्वारा उनकी जाति के कारण दुर्व्यवहार का भी सामना करना पड़ा। मीडिया और अन्य स्थानीय लोगों द्वारा दबाव बनाए जाने तक पुलिस ने भी कुछ नहीं किया था, जिसके बाद पुलिस ने लड़कियों के बयान दर्ज किए बिना आरोपी को गिरफ्तार कर लिया।

बहुत विचार-विमर्श के बाद, चंचल के पिता ने लक्ष्मी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले के आलोक में लड़कियों के इलाज के लिए दिए गए 3 लाख रुपये की व्यवस्था की। लेकिन यह राशि परिवार को हुए नुकसान की भरपाई के लिए पर्याप्त नहीं थी।

नि:शुल्क चिकित्सा देखभाल, दवाएं, दैनिक जांच का खर्च भी आवश्यक पाया गया। इसलिए चंचल के पिता ने याचिकाकर्ता से संपर्क किया जिसने पूरे मामले का विश्लेषण (एनालिसिस) करने के बाद एक रिट याचिका दायर की।

मुद्दे

याचिकाकर्ता ने ये मुद्दे उठाए कि:

  • क्या 3 लाख रुपये की राशि तेजाब हमले के पीड़ितों के लिए पर्याप्त थी जैसा कि लक्ष्मी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के मामले में तय किया गया था?;
  • क्या तेजाब के हमले पीड़ितों के तेजी से ठीक होने के लिए व्यवस्थित उपचार और स्वास्थ्य प्रबंधन (मैनेजमेंट) दिशानिर्देशों की आवश्यकता है?;
  • क्या पीड़ितों के मौलिक अधिकार को सुरक्षित करने के लिए अतिरिक्त उपाय करने की आवश्यकता है?।

निर्णय

अदालत ने मामले के तथ्यों और उठाए गए मुद्दों का विश्लेषण करने के बाद निर्णय दिया कि:

  • 3 लाख रुपये न्यूनतम मुआवजा दिया जाना चाहिए जो पीड़ित को दिया जाएगा;
  • राज्य सरकारों को लापरवाह करार दिया कि वह इतने नियमों के बाद भी तेजाब के वितरण (डिस्ट्रिब्यूशन) को नियंत्रित करने और इसे गलत हाथों में जाने से रोकने में सक्षम नहीं थे;
  • देखा कि राज्य ‘पीड़ित मुआवजा योजना’ का पालन करने में विफल रहे और मुआवजे की बहुत कम राशि प्रदान की जो पर्याप्त नहीं थी;
  • चंचल को 10 लाख रुपये और बहन को 3 लाख रुपये का मुआवजा, तीन महीने की अवधि के भीतर भुगतान करने की अनुमति दी;
  • ऐसे पीड़ितों से निपटने की जिम्मेदारी खुद ली और राज्य से तेजाब हमले के पीड़ितों को विकलांगों की सूची में शामिल करने के लिए प्रावधान करने को कहा।

स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र बनाम अंकुर पंवार (प्रीति राठी मामला), 2019

तथ्य

स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र बनाम अंकुर पंवार का मामला एक 23 वर्षीय लड़की का है जो अपना करियर स्थापित करने के लिए उत्सुक थी। उसे मुंबई के एक अस्पताल में नर्स की नौकरी मिल गई। इसके बाद आरोपी ने एक बार उससे शादी करने के लिए कहा। हालांकि, पीड़िता ने इनकार कर दिया क्योंकि वह अपने करियर को लेकर चिंतित थी। तब आरोपी न केवल शादी के लिए मना किए जाने पर उत्तेजित था, बल्कि पीड़िता से ईर्ष्या भी करने लगा क्योंकि जब वह बेरोजगार था तो पीड़ित को नौकरी मिल चुकी थी। इसलिए इसी आक्रोश के बीच एक बार जब पीड़िता ट्रेन से यात्रा कर रही थी तो उसने उस पर तेजाब फेंक दिया। पीड़िता ने गलती से तेजाब की कुछ बूंदें निगल लीं। थोड़ा सा तेजाब भी बहुत खतरनाक होता है। ऐसे में पीड़िता के लिए जीवित रहना बहुत मुश्किल था। उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन वह केवल एक महीने ही जीवित रह सकी क्योंकि वह तेजाब हमले के कारण हुई घातक चोटों को सहन करने में सक्षम नहीं थी।

निर्णय

इस मामले की सुनवाई एक विशेष अदालत की महिला न्यायाधीश ए.एस शिंदे ने की थी, जिन्होंने पहले बांग्लादेश के एसिड क्राइम सस्पेंशन एक्ट के तहत आरोपी को मौत की सजा सुनाई थी।

यह फैसला उन्होंने इसलिए दिया क्योंकि जो हुआ वह पहले कभी नहीं हुआ था। तेजाब के हमले की वजह से एक पीड़िता की मौत बहुत चौंकाने वाली बात थी, यहां तक ​​कि बेंच के लिए भी और इसलिए भीषण घटना के लिए भीषण सजा दी गई। हालांकि, अदालत ने यह देखा कि इस अपराध के लिए आज तक किसी को सजा नहीं दी गई है। इसलिए अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए और उच्चतम न्यायालय के पूर्व के निर्णयों को ध्यान में रखते हुए, सजा को मौत की सजा से आजीवन कारावास में बदल दिया गया था।

अदालत ने सजा का आदेश देने के साथ ही दोषियों को पीड़िता के माता-पिता को पांच हजार रुपये जुर्माना देने का भी आदेश दिया।

श्रीमंथुला चिन्ना सथैया और अन्य बनाम स्टेट ऑफ़ आंध्र प्रदेश 

इस मामले में श्रीमंथुला चिन्ना सथैया और अन्य बनाम स्टेट ऑफ़ ए.पी., दुश्मनी की स्थिति दो पुरुषों के बीच विकसित हुई। आरोपी को संदेह था कि दूसरे व्यक्ति ने उसे अपराध का हिस्सा दिखाया है। आरोपी को यह भी शक था कि उसकी पत्नी के, पीड़िता के बड़े बेटे के साथ विवाहेतर (एक्स्ट्रामैरिटल) संबंध हैं। नतीजतन, बदला लेने की भावना से आकर्षित हुए आरोपी ने पीड़िता पर तेजाब फेंक दिया जिससे वह झुलस गई और घायल हो गई। आरोपी पर आई.पी.सी. की धारा 302 के तहत आरोप लगाया गया था और वह कठोर कारावास की सजा के लिए उत्तरदायी था।

पियाली दत्ता बनाम स्टेट ऑफ़ पश्चिम बंगाल 

पियाली दत्ता बनाम स्टेट ऑफ़ पश्चिम बंगाल के मामले में, याचिकाकर्ता, पियाली दत्ता, एक तेजाब हमले की पीड़िता है, जिसने मुख्य सचिव, स्टेट ऑफ़ पश्चिम बंगाल को पत्र लिखकर तेजाब के हमले के मामले में तीन लाख रुपये के अंतरिम (इंटरीम) मुआवजे के लिए अनुरोध किया था, लेकिन उसे मुख्य सचिव के कार्यालय से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली और कोई अन्य विकल्प न मिलने पर, कलकत्ता में उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

पश्चिम बंगाल राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (अथॉरिटी) (एस.एल.एस.ए.) ने मामले में प्रवेश किया और यह रुख अपनाया कि 2009 में, आपराधिक प्रक्रिया संहिता में एक संशोधन किया गया था, जिसका नाम “तेजाब हमले पीड़ितों को मुआवजे”  था, और 2013 में, सर्वोच्च न्यायालय ने, तेजाब हमले के पीड़ितों के मुआवजे के संबंध में लक्ष्मी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया में एक ऐतिहासिक निर्णय पास किया। एसएलएसए ने कहा कि चूंकि 2005 में याचिकाकर्ता पर तेजाब हमला हुआ था, उपरोक्त दो घटनाओं से काफी पहले, याचिकाकर्ता किसी भी मुआवजे के लिए पात्र नहीं होगी। मामला कलकत्ता उच्च न्यायालय के समक्ष सुनवाई के लिए आया। अदालत ने पाया कि पश्चिम बंगाल पीड़ित मुआवजा योजना, 2017 के अनुसार, राज्य या जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण को धारा 357A(4) के तहत मुआवजे के अनुदान के लिए एक आवेदन पर निर्णय लेने का अधिकार है। 7 जुलाई, 2017 को, अदालत ने मुआवजे के मुद्दे पर आदेश पास करने के लिए ‘उपयुक्त प्राधिकारी’ से एक निर्णय पास किया। पियाली को फरवरी, 2018 में 3 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया था।

सी.आर.पी.सी. के तहत परिभाषित तेजाब हमलों के मामलों में मुआवजा

आई.पी.सी. और साक्ष्य अधिनियम के अलावा सी.आर.पी.सी. भी तेजाब हमले के अपराध से निपटता है। धारा 357 A उप-धारा (1) में कहा गया है कि केंद्र सरकार की मदद से प्रत्येक राज्य सरकार एक योजना तैयार करेगी ताकि पुनर्वास (रिहैबिलिटेशन) की आवश्यकता वाले लोगों को या पीड़ितों या पीड़ितों के आश्रितों को मुआवजा प्रदान किया जा सके, जिन्हें नुकसान हुआ है।

धारा 357A की उपधारा (2) में आगे कहा गया है कि यदि सिफारिश न्यायालय द्वारा प्रदान की जाती है, तो राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी) या जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (जैसा भी मामला हो) यह तय कर सकता है कि उपधारा (1) में बताए अनुसार किस मुआवजे का भुगतान किया जाना है। 

उप-धारा (3) के तहत, यह भी कहा गया है कि न्यायालय मुआवजे का आदेश भी दे सकता है यदि उसे लगता है कि धारा 357 के तहत प्रदान किया गया मुआवजा पीड़ित के पुनर्वास के लिए संतोषजनक नहीं है या यदि आरोपी को आरोप मुक्त या बरी कर दिया जाता है तब भी अदालत पीड़िता के पुनर्वास के लिए फिर से मुआवजे की मांग का आदेश दे सकती है। 

उप-धारा (4) आगे पीड़ित के अधिकारों के बारे में बात करती है। इसमें कहा गया है कि यदि अपराधी का पता नहीं लगाया जा सकता है या उसका पता नहीं लग पाता है, लेकिन गवाह की पहचान की जा सकती है, तो पीड़ित या उसके आश्रित राज्य या जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण को एक आवेदन लिखकर मुआवजे की मांग कर सकते हैं।

उप-धारा (5) उप-धारा (4) के कामकाज को यह कहकर सुगम (फैसिलिटेट) बनाती है कि यदि उप-धारा (4) के तहत उल्लिखित इस तरह के आवेदन के तहत जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण उचित जांच के बाद संतुष्ट महसूस करता है कि मुआवजे की आवश्यकता है तो यह ऐसा मुआवजा दे सकता है।

अंतिम उप-धारा यानी उप-धारा (6) में कहा गया है कि राज्य या जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण को तत्काल प्राथमिक चिकित्सा सुविधा या चिकित्सा लाभ मुफ्त में देने का प्रयास करना चाहिए। इससे पीड़ित की पीड़ा को कम करने में मदद मिलेगी। लेकिन ये लाभ किसी पुलिस अधिकारी द्वारा जारी किए गए प्रमाण पत्र पर ही दिया जाएगा जो क्षेत्र के मजिस्ट्रेट के पद से कम का न हो। उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा उचित समझे जाने पर कोई अन्य अंतरिम राहत दी जा सकती है।

सी.आर.पी.सी. की धारा 357B आगे स्पष्ट करती है कि धारा 357 के तहत पीड़ित को राज्य द्वारा भुगतान किया गया कोई भी मुआवजा आई.पी.सी. के 326 A, 376 AB, 376 D, 376 DA और 376 DB के तहत दिए गए मुआवजे के अतिरिक्त होगा। सी.आर.पी.सी. की धारा 357C धारा 357B के बिंदु पर यह कहकर जोर देने का प्रयास करती है कि स्थानीय सरकार, राज्य सरकार या केंद्र सरकार द्वारा संचालित सभी सार्वजनिक और निजी अस्पताल भारतीय दंड संहिता की धारा 326A, 376, 376A, 376AB, 376B, 376C, 376D, 376DA, 376DB या धारा 376E के तहत आने वाले किसी भी अपराध के पीड़ितों को तत्काल सहायता या चिकित्सा सहायता प्रदान करेंगे और ऐसी घटना के बारे में तुरंत पुलिस को सूचित करेंगे।

तेजाब हमले के मामलों में उपचार

  • तेजाब के त्वचा के संपर्क में आते ही सबसे पहले जो काम करना चाहिए, वह यह है कि उस जगह को कम से कम 60 मिनट के लिए ठंडे पानी से धो लें।
  • अस्पतालों में आपातकालीन उपचार में घावों को साफ करना और पट्टी बांधना और तेजाब के धुएं के कारण होने वाली सांस लेने में किसी भी समस्या को कम करना शामिल होना चाहिए।
  • संक्रमण एक बड़ा खतरा है क्योंकि जले के आसपास के मृत ऊतक (डेड टिश्यू) संक्रमित हो जाते हैं और जले को ठीक होने से रोकते हैं। यह त्वचा के स्वस्थ हिस्से में भी फैल सकता है और हमले के ठीक बाद हफ्तों या महीनों के भीतर पीड़ित को मार भी सकता है। इसलिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि घाव संक्रमित न हों और संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबायोटिक्स दिए जाएं।
  • आंखों को संक्रमण होने का सबसे अधिक खतरा होता है और इसलिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि आंखें बंद हो सकें और सूखी और संक्रमित न हों। कुछ मामलों में पलकों को फिर से बनाने की भी आवश्यकता हो सकती है। और अगर आंखों के पास मोटे निशान हैं तो जलन ठीक हो जाती है, तब भी उन्हें सर्जरी से ठीक करने की आवश्यकता होती है।
  • संक्रमण से लड़ने और घावों को भरने के लिए भोजन करना आवश्यक है। हालांकि, मुंह के आसपास घाव होने पर खाना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि इससे खाना निगलने में दर्द हो सकता है।
  • जब जला ठीक हो जाता है (3 से 12 महीने की प्रक्रिया) तो वे निशान छोड़ देते हैं। निशान को बदलने में एक साल से अधिक समय लगता है। हालांकि, इस समय के दौरान निशान मोटे हो जाते हैं और सिकुड़ जाते हैं और इसलिए पीड़ित जोड़ों के सख्त होने और प्रतिबंधित गतिविधि से स्थायी रूप से अक्षम हो सकता है। इस प्रकार डॉक्टर निशान को छोड़ने और उनके ऊपर नई त्वचा ग्राफ्ट करने के लिए ऑपरेशन करेंगे।
  • निशान के कारण पीड़ित की गति में कमी को कम करने के लिए लंबे समय तक शारीरिक उपचार की आवश्यकता होती है। निशान की मोटाई और दृढ़ता को कम करने के लिए विशेष लोचदार पट्टियों का उपयोग किया जा सकता है।

अंतिम चरण पीड़ित की उपस्थिति को यथासंभव बहाल (रिस्टोर) करने का प्रयास करना है, इस चरण तक, पीड़ित की जलन ठीक हो सकती है और शरीर पर निशान की पूरी सीमा दिखाई दे सकती है। बहाली के इस चरण में 2 से 3 साल लग सकते हैं।

तेजाब के हमले की स्थिति में क्या नहीं करें?

यह एक आम मिथक है कि दूध तेजाब के हमले की स्थिति में सुखदायक उपाय के रूप में काम कर सकता है लेकिन ऐसा नहीं है। दूध क्षारीय होता है और जब क्षारीय दूध तेजाब के संपर्क में आता है तो इसके परिणामस्वरूप ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया (एक्सोथर्मिक रिएक्शन) होती है। यह अधिक गर्मी पैदा करेगा और अधिक नुकसान कर सकता है और संक्रमण के जोखिम को बढ़ा सकता है। इस प्रकार हमेशा एक उपाय के रूप में पानी का इस्तेमाल करें।

तेजाब हमले के पीड़ितों की सफलता की कहानी

लक्ष्मी अग्रवाल

शुरुआत में जब घटना हुई तो लक्ष्मी ढाई महीने सदमे में थी। उनकी आईने में अपना चेहरा देखने की भी हिम्मत नहीं हुई। वह हमले के मानसिक और शारीरिक नुकसान को सहन करने के लिए संघर्ष कर रही थी। कई दिनों तक वह कंबल के अंदर रही और बाहर नहीं आई। कपड़े का एक टुकड़ा भी उस पर भार के समान था। अपने मासिक धर्म चक्र (मेंस्ट्रुअल साइकिल) का प्रबंधन करना उसके लिए बहुत कठिन काम होता जा रहा था। वह आत्महत्या करना चाहती थी लेकिन अपने माता-पिता के बारे में सोचकर उन्होने अपने जीवन से हार नहीं मानी। उसका इलाज खत्म होने के बाद उन्होंने परामर्श लेना शुरू कर दिया। उन्होंने 2006 में अदालत में एक मामला दायर किया (जिसके बारे में हमने ऊपर चर्चा की है और जिसका फैसला 2013 में आया था)।

लक्ष्मी ने अपने साथ हुए अन्याय को दबाने से इनकार कर दिया। धीरे-धीरे अपने माता-पिता के समर्थन से, उन्होंने आत्मविश्वास हासिल किया और राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान, दिल्ली में शामिल होने में सफल रही। यह 2009 में हुआ था कि उन्होंने महसूस किया कि अगर वह अपना चेहरा ढकेंगी तो सारी दवाएँ व्यर्थ हो जाएंगी और इसलिए उन्होंने चेहरे से अपना दुपट्टा हटा दिया और स्वतंत्र रूप से घूमना शुरू कर दिया। उनके इस कदम की उनके समुदाय में काफी आलोचना (क्रिटिसिज्म) हुई थी। हालांकि, लक्ष्मी ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया और अपना डिप्लोमा कोर्स पूरा करने के लिए आगे बढ़ गईं। 2013 में, वह ‘स्टॉप एसिड अटैक्स कैंपेन’ का हिस्सा बनीं, जिसे आलोक दीक्षित और आशीष शुक्ला ने शुरू किया था।

2014 में अपने सभी प्रयासों की परिणति (कल्मिनेशन) के साथ उन्होंने ‘छांव फाउंडेशन’ की शुरुआत की। इस फाउंडेशन की मदद से, लक्ष्मी ने सैकड़ों पीड़ितों तक पहुंचना शुरू कर दिया और कानूनी सहायता, उपचार, दवा आदि के साथ उनकी सहायता करना शुरू कर दिया। अधिक से अधिक रोगियों से मिलने पर उन्हें अपने अंदर गुस्सा महसूस हुआ। उनके गुस्से ने उनमें पीड़ितों के लिए कुछ और करने का जज्बा पैदा किया। इसलिए उन्होने तेजाब हमले के पीड़ितों को रोजगार और नौकरी के अवसर प्रदान करने के लिए आगरा के फतेहाबाद रोड पर शीरोज़ नाम का एक कैफे खोला। उनके अनुसार, नौकरी का अवसर पीड़ित और पीड़ित के परिवार के आत्मविश्वास को बढ़ाता है। और साथ ही, यह पीड़ितों और आम जनता को खुले में बातचीत करने और संवेदनशील बनने का बेहतर मौका देता है। वह अब पीड़ितों की काउंसलिंग भी करती हैं। वह उन्हें सिखाती है कि कैसे आगे बढ़ना है, हमले के मामले में किन प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिए। वह जनता को त्वचा दान करने के लिए भी प्रोत्साहित करती हैं। वह अपने फाउंडेशन के माध्यम से तेजाब हमले के पीड़ितों की दुर्दशा के बारे में जागरूकता फैलाती है और साथ ही साथ समाज को पुरुषों को महिलाओं का सम्मान करने, उनकी सहमति को समझने और महिलाओं के अधिकारों के लिए उड़ान भरने की आवश्यकता के बारे में शिक्षित करती है। लक्ष्मी ने 2014 में इंटरनेशनल वुमन ऑफ करेज, अवार्ड भी जीता। लक्ष्मी जैसे लोगों की बहादुरी को सलाम है।

रेशमा कुरैशी

रेशमा 17 साल की थी जब उस पर तेजाब से हमला किया गया था। वह इलाहाबाद से लौट रही थी और अपने गृहनगर के रेलवे स्टेशन पर थी, जब उसकी बहन के पति सहित चार लोगों के एक समूह ने उसके चेहरे पर तेजाब फेंक दिया और उसे पूरी तरह से विकृत कर दिया। कथित तौर पर उसकी बहन के पति ने उसे उसकी बहन समझ लिया था।

हमले के बाद रेशमा बहुत उदास थी। धीरे-धीरे उसने इससे बाहर आने की कोशिश की और मॉडलिंग में अपना करियर स्थापित किया। उन्होंने ‘ऐंड एसिड सेल’ से अपनी शुरुआत की जो एक बड़ी हिट रही। उसने भारत में तेजाब की बिक्री की निंदा करते हुए यू ट्यूब पर वीडियो भी बनाए। न्यूयॉर्क फैशन वीक में रैंप वॉक करते हुए वह लोकप्रिय हो गईं। रेशमा एक ब्लॉगर भी बन गई हैं, और हाल ही में उन्होंने ‘बीइंग रेशमा’ नामक एक किताब लिखी है, जिसमें उन्होंने अवसाद से बाहर निकलने के अपने सफर का वर्णन किया है। एक कार्यक्रम में, उन्होंने कहा कि “अपने दिल को सुंदर बनाओ; खूबसूरती सिर्फ इस बात से नहीं है कि आप कैसे दिखते हैं।”

अनमोल रोड्रिगेज

अनमोल दो साल की थी, जब उसके पिता ने उसकी मां पर तेजाब फेंक दिया। उसकी माँ ने दम तोड़ दिया और उसकी मृत्यु हो गई, हालांकि जब उसके पिता ने उसकी माँ पर तेजाब फेंका तो वह अपनी माँ की गोद में लेटी थी और तेजाब की बूंदों के गिरने से गंभीर रूप से जल गई थी। उसे कई चोटें आईं, उसकी एक आंख चली गई और उसका चेहरा स्थायी रूप से विकृत हो गया। अनमोल को एक अनाथालय में रखा गया था जहाँ उसे सामाजिककरण की समस्या का सामना करना पड़ा था। वह दोस्तों के साथ बातचीत नहीं कर सकती थी। अपने जीवन के किसी समय में, उसने अपने कार्यस्थल पर जिस भेदभाव का सामना किया, उसके कारण उसने अपनी नौकरी छोड़ दी। हालांकि, वह अब एक फैशन आइकन हैं। उसने कई इंस्टाग्राम पेज और यूट्यूब चैनलों के लिए मॉडलिंग की है। वह वर्तमान में नाइटवियर बेचने वाले एक ऑनलाइन ब्रांड का चेहरा हैं। अनमोल ने कहा कि तेजाब सिर्फ हमारा चेहरा बदल सकता है लेकिन हमारी आत्मा को बर्बाद नहीं कर सकता। “हम अंदर से एक जैसे हैं और हमें खुद को स्वीकार करना चाहिए कि हम कौन हैं और अपना जीवन खुशी से जीना चाहिए।”

मधु कश्यप

2 दशक से भी ज्यादा समय पहले एक शख्स ने मधु के चेहरे पर तेजाब फेंका था। इसने उसके माथे और गालों की त्वचा को पिघला दिया और उसकी एक आंख को अंधा कर दिया। सालों तक वह सार्वजनिक रूप से अपना चेहरा नहीं दिखा पाईं। उसे कोई नौकरी नहीं मिली क्योंकि उसे ऐसा बताया गया था कि वह नौकरी के लिए बहुत बदसूरत दिखती है।

हालांकि, 2016 में, वह एक वेट्रेस के रूप में ‘शीरोज़ कैफे’ में शामिल हुईं। अब वह अपने दागों के पीछे नहीं छिपती क्योंकि कई पर्यटक कैफे में आते हैं और उसके सहित स्टाफ की तस्वीरें लेते हैं। वह अब सशक्त महसूस करती है और अब परिवार में अपने पति और तीन बच्चों का समर्थन करने वाली एकमात्र कमाने वाली है।

भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वर्तमान परिदृश्य

आज देश भर में तेजाब हमलों की संख्या में वृद्धि हो रही है। बांग्लादेश में तेजाब हमले के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हैं। इसके बाद भारत, कंबोडिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल आदि देश आते हैं। पाकिस्तान में तेजाब की पहुंच आसान है और वहां हमले भी होते हैं। हालांकि, भारत की तरह कुछ और देश तेजाब हमलों के अपराध को नियंत्रित करने के लिए कानून लेकर आए हैं।

बांग्लादेश में बने कानून

बांग्लादेश, जिसमें सबसे अधिक हमले दर्ज होते थे, वह वर्ष 2002 में इस बुराई से लड़ने के लिए नियमों और कानूनों के साथ सामने आया। एसिड कंट्रोल एक्ट, 2002 और एसिड क्राइम प्रिवेंशन एक्ट, 2002 पास किए गए। इन अधिनियमों में तेजाब हमले के मामलों में सजा और तेजाब के आयात (इंपोर्ट), निर्यात (एक्सपोर्ट) और बिक्री को प्रतिबंधित करने के प्रयासों का उल्लेख है। इन अधिनियमों की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  • एसिड अटैक कंट्रोल काउंसिल फंड का निर्माण;
  • तेजाब हमले के पीड़ितों के लिए पुनर्वास केंद्रों का निर्माण;
  • पीड़ितों का पर्याप्त उपचार;
  • पीड़ितों को कानूनी सहायता प्रदान करना।

कंबोडिया में बने कानून

कंबोडिया ने 2011 में तेजाब को विनियमित करने पर कंबोडियन कानून भी पास किया। यह कानून तेजाब हमले की हिंसा का अपराधीकरण (क्रिमिनलाइजेशन) करने की कोशिश करता है और केंद्रित तेजाब के उपयोग को नियंत्रित और नियमित करने का प्रयास करता है। यह अधिनियम सांद्र (कंसेंट्रेटेड) तेजाब की एक विस्तृत परिभाषा प्रदान करता है ताकि इसमें उन वस्तुओं को भी शामिल किया जा सके जिनके भविष्य में सांद्र तेजाबो की सूची में शामिल होने की संभावना है। बिक्री, वितरण और तेजाब के उपयोग के अन्य सभी उद्देश्यों के लिए, कंबोडिया को मंत्रालय से उचित मंजूरी की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो (एन.सी.बी.) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में तेजाब हमलों के 523 मामले दर्ज किए गए थे, जो 2017 में दर्ज किए गए मामलो से ज्यादा थे, जो 442 थे, और 2016 में 407 मामले दर्ज किए गए थे।

2017 में केवल 9.9 प्रतिशत मामलों का ही निपटारा किया गया। हालांकि, 2018 में यह घटकर 6.11% हो गया था। यह दर्शाता है कि प्रणाली इन मामलों में त्वरित न्याय प्रदान करने में असमर्थ है और इसमें तेजी लाने की आवश्यकता है। उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल 2016-2018 के बीच सबसे अधिक तेजाब हमलों की रिपोर्ट करने की सूची में सबसे ऊपर हैं।

हालांकि, यह ध्यान में रखना चाहिए कि ये एकमात्र मामले नहीं हैं जो एक वर्ष में दर्ज किए जाते हैं। ऐसी कई अन्य घटनाएं होती हैं जो अदालत के बाहर सुलझाई जाती हैं। कुछ बाहरी कारक जिन पर किसी का ध्यान नहीं जाता हैं, वे वर्ग, जाति, शक्ति आदि जैसे मामलों को अदालत में दर्ज करने में भी भूमिका निभाते हैं।

तेजाब हमले से निपटने में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका

एन.जी.ओ. पीड़ितों को आशा की किरण प्रदान करते हैं। वे हमले के बाद अपने अस्थिर (उनसेटल्ड) जीवन को संतुलित करने का प्रयास करते हैं। वे देश के विभिन्न हिस्सों से पीड़ितों को एकजुट करने में मदद करते हैं ताकि वे अपनी लड़ाई में अकेला महसूस न करें। एक दूसरे के साथ रहने से उनमें से प्रत्येक को अतिरिक्त सहायता मिलती है। एन.जी.ओ. पीड़ितों के लिए रोजगार के अवसर तलाशने का प्रयास करता है। जब सरकार ज्यादा कुछ नहीं कर पाती है तो एन.जी.ओ. आगे आते हैं और पीड़ितों के इलाज और दवा के लिए धन जुटाने की कोशिश करते हैं। वे सेमिनार आयोजित करते हैं जहां पीड़ित भाग ले सकते हैं और कौशल विकसित करने की दिशा में काम कर सकते हैं।

सुझाव

  • नजरिया बदलना

कई देशों में महिलाओं के खिलाफ उच्च स्तर की हिंसा होती है। लिंग आधारित भेदभाव में हिंसा की जड़ें हैं। सामाजिक मानदंड (सोशल नॉर्म्स) और लैंगिक रूढ़िवादिता (जेंडर स्टीरियोटाइप) उस हिंसा को कायम रखती है। इसलिए तेजाब के हमले (जो कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा का परिणाम भी है) को रोकने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि इसके मूल कारण का पता लगाकर पहले इसे रोकने की कोशिश करें। महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा को समाप्त करने के लिए शिक्षा महत्वपूर्ण है। सम्मानजनक रिश्तों और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाले युवा लड़कों और लड़कियों के साथ शिक्षित और काम करके जीवन में रोकथाम (प्रीवेंशन) जल्दी शुरू होनी चाहिए।

  • अनुसंधान (रिसर्च)

अनुसंधान तेजाब हमलों के कारण और प्रभावों की समझ हासिल करने में मदद करता है। यह व्यवहार्य (फिजिबल) और व्यावहारिक नीतिगत समाधानों को पहचानने में सहायक होगा। गुणवत्ता (क्वालिटेटिव) अनुसंधान परिवर्तन के लिए आम सहमति स्थापित करने में सक्षम बनाता है, विशेष रूप से नीति निर्माताओं को नीतियों, कानूनों को बदलने के लिए राजी करने में मदद करता है।

  • पीड़ित के अधिकारों के प्रवर्तन (एंफोर्समेंट) को सुनिश्चित करना

केंद्र और राज्य सरकार की भूमिका, पीड़ित को आर्थिक मुआवजा देने तक सीमित नहीं है। उनके काम में, पीड़ितों को समाज में बहाल करने में मदद करना भी शामिल है। उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए काम करना चाहिए कि इन पीड़ितों को कुछ अधिकार दिए जाएं। उनमें से कुछ अधिकार हैं:

  • निष्पक्ष (फेयर) व्यवहार का अधिकार;
  • आपराधिक कार्यवाही में भाग लेने और उपस्थित होने का अधिकार;
  • धमकी और उत्पीड़न से परिरक्षित (शील्डेड) होने का अधिकार;
  • पीड़ित मुआवजे के लिए अपील करने का अधिकार;
  • एक त्वरित परीक्षण का अधिकार;
  • निजता (प्राइवेसी) का अधिकार;
  • सुनवाई का अधिकार;
  • आपराधिक अपराधी से क्षतिपूर्ति (रेस्टिट्यूशन) का अधिकार;
  • सूचना का अधिकार;
  • मुआवजे का अधिकार।

निष्कर्ष

हालांकि इन दिनों तेजाब हमलों की ओर लोगों का ध्यान जा रहा है लेकिन इस भयानक अपराध को रोकने के लिए और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। पिछले कुछ वर्षों में, हमने कई विधेयकों (बिल) को पास होते देखा है, कई कानूनों में संशोधन होते देखा है लेकिन हम जानते हैं कि यह पर्याप्त नहीं है। तेजाब की बिक्री को विनियमित करने की गंभीर आवश्यकता है। तेजाब की अनियंत्रित बिक्री इन अपराधों की बढ़ती संख्या का प्रमुख कारण है। दीपिका पादुकोण की अभिनीत (स्टार्ड) फिल्म छपाक भी इस मुद्दे पर प्रकाश डालने की कोशिश करती है।

हमें, एक समाज के रूप में तेजाब हमले के पीड़ितों की दुर्दशा को समझना चाहिए। वे पीड़ित पहले से ही निराश महसूस कर रहे हैं। लेकिन हमें उन्हें ऐसा नहीं सोचने देना चाहिए। हमें उनके साथ अपने बराबर का व्यवहार करना चाहिए। वे किसी भी अन्य इंसानों की तरह सम्मानता के पात्र हैं। समाज के अलावा, कानून को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हे न्याय मिले और पर्याप्त मुआवजा मिले।

 

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