कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, 2019 के अंदर आने वाली सेवाएं

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Consumer Protection Act
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यह लेख Anagha S S. द्वारा लिखा गया है। इस लेख में कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, 2019 के अंदर आने वाली सेवाओं के बारे में चर्चा की गई है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन)

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट), 2019 उन अवधारणाओं (कॉन्सेप्ट) का विस्तार (एक्सपैंड) करता है, जिन्हें अधिनियम द्वारा कवर किया जाएगा, उदाहरण के लिए, उत्पाद का दायित्व (प्रोडक्ट लायबिलिटी), ई-कॉमर्स, आदि। अधिनियम द्वारा प्रदान की गई सुरक्षा, खरीदी गई वस्तुओं (गुड्स) या उपयोग की गई सेवा (सर्विस) के लिए होती है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2(o) सेवाओं को परिभाषित करती है, जबकि वर्तमान अधिनियम में इसे धारा 2(42) के तहत परिभाषित किया गया है।

सेवा का अर्थ, किसी भी प्रकार की सेवा से है जो उपभोक्ताओं (कंज्यूमर) को उनके उपयोग के लिए, प्रतिफल (कंसीडरेशन) के भुगतान के बदले उपलब्ध कराई जाती है। परिभाषा को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है: वर्णनात्मक (डिस्क्रिप्टिव) भाग, समावेशी (इंक्लूसिव) भाग और अपवर्जनात्मक (एक्सक्लूजनरी) भाग।

वर्णनात्मक भाग कहता है कि सेवा में ‘किसी भी’ प्रकार की सेवा शामिल है, जिसका संभावित (पोटेंशियल) उपभोक्ता द्वारा लाभ उठाया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि, कोई भी और हर तरह की सेवा परिभाषा के दायरे में आएगी। समावेशी भाग, उन सेवाओं की सूची (लिस्ट) है, जिनका उल्लेख क़ानून में किया गया है। सी.पी.ए., 2019 में ई-कॉमर्स को क़ानून के तहत एक नई सेवा के रूप में शामिल किया गया है। टेलीकॉम सेक्टर को एक सेवा के रूप में माना जाता था और अब कानून में इसका स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है। अपवर्जनात्मक भाग, उन सेवाओं को निर्धारित (डिटरमाइन) करने के लिए है, की क्या उन्हें मुफ्त में लिया गया है या नहीं और व्यक्तिगत सेवा के लिए है या नहीं।

बैंकिंग

बैंकिंग, पैसे से संबंधित एक लेन-देन (ट्रांजेक्शन) है और ऐसे कई बैंक हैं जो चेक या कर्ज या जमा (डिपॉजिट) स्वीकार करने, लॉकर सुविधा, निवेश आदि के रूप में धन से संबंधित सेवाएं प्रदान करने के लिए स्थापित किए गए हैं। बैंकों द्वारा प्रदान की जाने वाली कोई भी सेवा निःशुल्क नहीं होती है और उनके द्वारा लेनदेन शुल्क का कुछ प्रतिशत काटा जाता है। 

इस प्रकार, सेवा नि: शुल्क नहीं है। बचत खाता खोलने जैसी बुनियादी गतिविधि (बेसिक एक्टिविटी) को बैंकों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवा माना जाता है। बैंक का लेनदार-देनदार (क्रेडिटर-डेटर) संबंध होगा जहां बैंक कर्ज देता है या ओवरड्राफ्ट सुविधाओं पर पैसा उधार देता है या इसके विपरीत करता हैै। भारतीय रिजर्व बैंक को भी सेवा की परिभाषा के अंतर्गत माना गया है। इस मामले में, आर.बी.आई. को सेवा की कमी के लिए उत्तरदायी ठहराया गया था, क्योंकि कर्मचारियों को उनकी आवास सुविधाओं के लिए कर्ज प्रदान करने में देरी हुई थी।

बीमा (इंश्योरेंस)

बीमा, एक समझौता है, जिसे पक्ष, बीमाकर्ता (इंश्योरर) के बीच अनुबंध (कॉन्ट्रेक्ट) के नियमों और शर्तों के अनुसार, किसी भी वित्तीय (फाइनेंशियल) नुकसान के मामले में, बीमाधारक (इंश्योर्ड) को क्षतिपूर्ति (इंडेम्निफाई) करने के लिए किया जाता है। यदि बीमा कंपनी, बीमाधारक को धोखा देती है या कंपनी की लापरवाही के कारण लाभार्थी (बेनेफिशियरी) को नुकसान होता है, तो बीमा कंपनी पर मुकदमा चलाया जा सकता है। 

उदाहरण के लिए, यदि परिवहन (ट्रांसपोर्ट) कंपनी द्वारा माल, परिवहन में खो जाता है, तो बीमा कंपनी परिवहन कंपनी की लापरवाही के कारण यात्री को हुए नुकसान का दावा कर सकती है।

हाल ही के एक मामले में, बीमा की सेवाओं का लाभ उठाने वाले उपभोक्ता की परिभाषा की व्याख्या (इंटरप्रिटेशन), समझौते के लाभार्थियों को भी शामिल करने के लिए की गई है। सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने माना है कि बीमा, समझौते द्वारा दिए गए कवरेज में सिर्फ बीमाधारक व्यक्ति से ज्यादा लोग शामिल हो सकते हैं।

ई-कॉमर्स

ई-कॉमर्स एक नई अवधारणा है जिसे सी.पी.ए., 2019 में शामिल किया गया है। ई-कॉमर्स डिजिटल मीडिया या इलेक्ट्रॉनिक सेवा प्रदाताओं (सर्विस प्रोवाइडर्स) के माध्यम से ऑनलाइन सामान खरीद या बेच रहा है या सेवाओं का उपयोग कर रहा है। ई-कॉमर्स संस्थाओं (एंटिटिज) द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएं, उनके द्वारा सुनिश्चित गुणवत्ता (क्वालिटी) के अनुसार नहीं हो सकती हैं और इसलिए उपभोक्ताओं को सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए। 

उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम (कंज्यूमर प्रोटेक्शन (ई-कॉमर्स ) रूल), 2020 को हाल ही में प्रदान की गई ऑनलाइन सेवाओं की सुविधा के लिए, सी.पी.ए., 2019 के साथ-साथ पास किया गया था। यह नियम उन ई-कॉमर्स संस्थाओं पर लागू होते हैं, जिनकी भारत में कोई कंपनी पंजीकृत (रजिस्टर्ड) नहीं है लेकिन भारत में सेवाएं प्रदान करते है। सभी ई-कॉमर्स संस्थाओं के लिए, अपना नाम, पता, वेबसाइट का पता, संपर्क विवरण, जैसे मेल एड्रेस, नंबर का उल्लेख करना अनिवार्य है।

प्रत्येक ई-कॉमर्स संस्था द्वारा, एक शिकायत निवारण प्रणाली (ग्राइवेंस रिड्रेसल सिस्टम) स्थापित की जानी चाहिए और शिकायत निवारण अधिकारी को नियुक्त किया जाना चाहिए, ताकि वह, 2 दिनों के अंदर शिकायत की पुष्टि करे और 30 दिनों के अंदर शिकायत का समाधान प्रदान करे। सेवाओं का लाभ उठाने के लिए उपभोक्ताओं की सहमति अपने नहीं ली जा सकती है, लेकिन उपभोक्ताओं द्वारा स्पष्ट रूप से दी जानी चाहिए। ई-कॉमर्स संस्थाओं द्वारा लगाया गया रद्दीकरण शुल्क (कैंसिलेशन चार्ज) उस राशि के बराबर होना चाहिए, जो उन्होंने रद्द करने के कारण खर्च किया है।

ई-कॉमर्स संस्थाओं को ई-कॉमर्स इन्वेंट्री संस्थाओं के रूप में अलग किया गया है, जो सीधे उपभोक्ताओं और ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस संस्थाओं को सेवाएं प्रदान करते हैं, जहां ई-कॉमर्स संस्थाएं कई अन्य सेवाओं के लिए एक मंच के रूप में कार्य करती हैं। ये नियम उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अधीन हैं। 

टेलीकॉम सेक्टर

सी.पी.ए., 2019 के समक्ष इस संबंध में कई विवाद रहे हैं कि क्या टेलीकॉम विवादों का निर्णय, उपभोक्ता मंचों (कंज्यूमर फोरम) द्वारा किया जा सकता है। टेलीकॉम उपभोक्ता संरक्षण और शिकायत निवारण विनियम (टेलीकॉम कंज्यूमर प्रोटेक्शन एंड रिड्रेसल ऑफ़ ग्राइवेंसेज रेगुलेशंस), 2007 ने प्रावधान किया है कि उपभोक्ता, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत अपनी शिकायतों के निवारण की मांग कर सकते हैं। ऐसे कई क्षेत्र हैं जिनमें उपभोक्ता फोरम का अधिकार क्षेत्र लागू किया गया है, जैसे टेलीफोन वाहकों (कैरियर्स) की बहुत अधिक बिलिंग, प्रशासनिक (एडमिंसिट्रेटिव) समस्याएं जैसे टेलीफोन लाइन के पते को बदलने के लिए आवेदन (एप्लीकेशन) के प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) में देरी, टेलीफोन कंपनियों द्वारा ब्रॉडबैंड सेवाएं जैसे बी.एस.एन.एल., टेलीफोन कंपनी के डिफॉल्ट होने के कारण उपभोक्ताओं द्वारा प्राप्त कपटपूर्ण (फ्रॉडुलेंट) संदेश जैसे, भारती एयरटेल, आदि।

बिजली क्षेत्र (इलेक्ट्रिसिटी सेक्टर)

बिजली, विद्युत अधिनियम (इलेक्ट्रिसिटी एक्ट), 2003 द्वारा शासित है, लेकिन यह अन्य कानूनों के तहत शिकायत दर्ज करने का भी प्रावधान करता है और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उनमें से एक है। बिजली और अन्य ऊर्जा (एनर्जी) क्षेत्रों को परिभाषा में शामिल किया गया है और जिन उपभोक्ताओं को बिजली सेवा में कमी का सामना करना पड़ता है या इससे संबंधित कुछ भी, तो वह उपभोक्ता मंच में मामला दर्ज कर सकते हैं। एन.सी.डी.आर.सी. ने पुष्टि की है कि मीटर से छेड़छाड़, बिजली के अनधिकृत (अनऑथराइज्ड) उपयोग, आदि से संबंधित मामलों पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का कोई अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिस्डिक्शन) नहीं हो सकता है। बिजली की आपूर्ति (सप्लाई), सी.पी.ए. के दायरे में आती है और एक आटा चक्की के लिए बिजली कनेक्शन जारी करने में देरी के मामले को सेवा की कमी माना गया है।

आवास और निर्माण सेवा (हाउसिंग एंड कंस्ट्रक्शन सर्विस)

निर्माण और आवास व्यवसाय समय के साथ बढ़ा है, क्योंकि जनसंख्या में वृद्धि और व्यवसाय का विस्तार देखा गया है, जिसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर और आवास की आवश्यकता है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में आने वाली आवास सेवाएं, निर्माण में उपयोग की जाने वाली सामग्री की गुणवत्ता के संबंध में हो सकती हैं, या यदि इंफ्रास्ट्रक्चर की संपत्तियों को समझौते के अनुसार वादा किया गया है या कब्जे के लिए मकान का समय पर वितरण (डिलीवरी) नहीं किया गया है या अधूरा निर्माण, एक सरकारी प्राधिकरण द्वारा भूमि का आवंटन (एलोकेशन), आदि। एक सेवा के रूप में, आवास को सबसे पहले, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लखनऊ डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाम एम.के. गुप्ता के ऐतिहासिक फैसले में शामिल किया गया था। अचल (इमूवेबल) संपत्ति का व्यवसाय भी आवास और निर्माण सेवाओं के दायरे में आता है। 

परिवहन सेवा (ट्रांसपोर्ट सर्विस)

परिवहन सेवा में सड़क या रेल या उड़ान द्वारा परिवहन शामिल है। अलग-अलग उदाहरणों में, पीड़ित उपभोक्ताओं को मुआवजा (कंपनसेशन) प्रदान करने के लिए, इन तीनों क्षेत्रों को सेवा माना जाता है। रेलवे के मामले में, ट्रेन की देरी के लिए यात्रियों को पैसा वापस करना, आरक्षित (रिजर्व्ड) डिब्बों में अनाधिकृत प्रवेश, नियमों और शर्तों में वादे के अनुसार आरामदायक सीटों की अनुपस्थिति, चेन स्नेचिंग के लिए मुआवजा, आदि शामिल है, जिन्हे उपभोक्ता आयोग (कंज्यूमर कमीशन) द्वारा निपटाया जाता है। एक असामान्य मामले में, दो डिब्बों के बीच रास्ते से गिरकर मरने वाले यात्री को मुआवजा दिया गया था।

वायुमार्ग (एयरवे) के संबंध में, विभिन्न मामले, जैसे पारगमन (ट्रांसिट) में यात्री का सामान खो जाना या एयरलाइंस से बिना किसी कारण के कन्फर्म टिकट रद्द करना, सीढ़ी को लापरवाही से हिलाने पर यात्री को चोट लगना, दिए गए भोजन की खराब गुणवत्ता या मांसाहारी भोजन के बदले शाकाहारी भोजन परोसना, समय से पहले प्रस्थान (डिपार्चर), आदि को सेवा की कमी के रूप में माना जा सकता है और संबंधित एयरलाइंस के खिलाफ मामले दर्ज किए जा सकते हैं। सड़क पर परिवहन के संबंध में, लगभग उन्हीं आधारों का उपयोग, उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज करने के लिए किया जा सकता है जो एयरलाइन या रेलवे द्वारा कवर किए गए हैं।

शिक्षा

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत, शिक्षा को इस अधिनियम के दायरे में, एक सेवा के रूप में शामिल किया जाए या नहीं, इस पर पूरे समय प्रश्नचिह्न लगा रहा है। उपभोक्ता आयोगों और कोर्ट्स द्वारा कई मामले तय किए गए हैं लेकिन शिक्षा क्षेत्र को शामिल करने के लिए उनके विचार विपरीत हैं।

भूपेश खुराना बनाम विश्व भुधा परिषद के मामले में फैसला लिया गया कि शिक्षा एक सेवा है और छात्र, अधिनियम के तहत उपभोक्ता हैं। लेकिन महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय बनाम सुरजीत कौर में सर्वोच्च न्यायालय ने इसके विपरित निर्णय दिया और कहा कि शिक्षा कोई वस्तु नहीं है और संस्थान, वाणिज्य (कॉमर्स) के लिए व्यवसाय नहीं चलाते हैं।

लेकिन फिर से सर्वोच्च न्यायालय ने पी.टी. कोशी बनाम एलन चैरिटेबल ट्रस्ट में अपना विचार बदल दिया, इसे उलट दिया और निर्धारित किया कि किसी भी शैक्षणिक संस्थान का मूल्यांकन योग्यता के आधार पर किया जाना चाहिए और फिर सेवा के प्रश्न का उत्तर दिया जाना चाहिए, क्योंकि हर मामला एक दूसरे से अलग है। इसके अलावा किसी शैक्षणिक संस्थान की गतिविधियों जैसे परीक्षा में बैठने के लिए शुल्क लेना, परीक्षा के लिए समय पर रोल नंबर या सीट नंबर न देना, छात्रों को गलत नंबर देना, जिसके परिणामस्वरूप उन छात्रों की विफलता होती है, आदि को सेवाएं माना जाता है।  

लेकिन गतिविधिया जैसे, सार्वजनिक परीक्षा आयोजित करना, प्रश्नपत्रों का मूल्यांकन, परिणामों की घोषणा आदि को वैधानिक कर्तव्य माना जाता था और सी.पी.ए. के तहत इस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता था। दूसरी ओर, एक बार फिर, एक छात्र, जिसने परीक्षा की गलत मार्क शीट प्राप्त की थी, उसको हुए नुकसान की भरपाई की गई। हाल ही के एक मामले में, यह माना गया है कि कोचिंग कक्षाएं, सी.पी.ए. के प्रावधानों को आकर्षित नहीं करती हैं। इस प्रकार, इस मामले पर कोर्ट्स द्वारा कोई एक विचार व्यक्त नहीं किया गया और निर्णय अलग-अलग रहे हैं, लेकिन फिर भी मामलों का मूल्यांकन योग्यता के आधार पर और प्रत्येक मामले के तथ्यों के आधार पर किया जाना चाहिए।

लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस में गैस सिलेंडर या सेवा

एलपीजी को प्रत्येक घर में पाया जाता है, जिसका प्रयोग विभिन्न प्रयोजनों के लिए किया जाता है। गैस सिलेंडर के वितरण में शामिल कंपनियों को ऐसा करने में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि एल.पी.जी. ज्वलनशील (फ्लेमेबल) होती है और थोड़ी सी चूक से गंभीर चोट लग सकती है। ऐसे मामलों में, कंपनियों को सेवाओं की कमी के लिए उत्तरदायी ठहराया जाता है। इस क्षेत्र में उपभोक्ता आयोग द्वारा निपटाए गए कुछ मामलों में डीलर द्वारा भेजे गए मैकेनिक की गलती के कारण मृत्यु या चोट शामिल है, सिलेंडर को गलत पते पर पहुंचाना, डीलर द्वारा सिलेंडर की दोबारा जांच करने में विफलता, आदि शामिल है। 

चिटफंड बिजनेस

चिट फंड एक ऐसी प्रक्रिया (प्रोसेस) है जहां छोटे व्यवसाय और व्यापारी महीने की किस्तों के माध्यम से धन जुटाते हैं। यह, चिट फंड अधिनियम, 1982 द्वारा शासित है, लेकिन कुछ ऐसे मामले हैं जो उपभोक्ता आयोग के समक्ष आए हैं। ऐसे मामलों का रखरखाव एक मुद्दा रहा है और मद्रास उपभोक्ता आयोग और आंध्र प्रदेश उपभोक्ता आयोग के बीच इस पर अलग-अलग विचार रहे हैं। लेकिन राष्ट्रीय आयोग (नेशनल कमीशन) ने, श्री राम प्रिया चिट फंड प्राइवेट लिमिटेड बनाम यारा श्रीनिवास राव में एक चिट फंड मामले पर फैसला किया था।

सेवा की परिभाषा का अपवाद

जैसा कि इस उत्तर के पहले भाग में बताया गया है, सी.पी.ए., 2019 में दी गई परिभाषा में एक अपवर्जनात्मक हिस्सा भी है जो कहता है कि अधिनियम के तहत मुफ्त सेवाओं और व्यक्तिगत सेवा के अनुबंध पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।

‘किराया (हायर)’ सेवाओं में उपभोक्ताओं द्वारा प्राप्त सेवाओं के बदले में कुछ प्रतिफल का भुगतान किया जाता है। यदि कोई भुगतान नहीं किया गया है, तो वह विशेष सेवा ‘सेवा’ नहीं है। उदाहरण के लिए, भले ही स्वास्थ्य सेवा को सेवा की परिभाषा से हटा दिया गया हो, इसलिए सेवा में किसी भी कमी के मामले में, रोगियों द्वारा प्राप्त उपचार के लिए उपभोक्ता आयोग के पास नहीं जा सकते है। 

नागरिकों द्वारा भुगतान किए गए करों का उपयोग सरकार द्वारा किया जाता है और इसे नागरिकों द्वारा सरकार को किया गया भुगतान नहीं माना जाता है। यदि कोई उपभोक्ता गृह कर का भुगतान कर रहा है और फिर शिकायत दर्ज करता है कि निगम (कॉर्पोरेशन) द्वारा पानी की आपूर्ति अपर्याप्त है, तो ऐसा मामला दर्ज नहीं किया जा सकता क्योंकि निगम अपने वैधानिक कर्तव्य को पूरा कर रहा है, जो सी.पी.ए. द्वारा कवर नहीं किया गया है। एक सरकारी अधिकारी, राज्य के खिलाफ शिकायत नहीं कर सकता क्योंकि वह राज्य का सेवक होता है और राज्य नि:शुल्क सेवाएं प्रदान करता है।

‘सेवा’ का एक अन्य अपवाद व्यक्तिगत सेवा का अनुबंध है। दो प्रकार की सेवाएं उपलब्ध हैं: सेवा के लिए अनुबंध (कॉन्ट्रेक्ट फॉर सर्विस) और सेवा का अनुबंध (कॉन्ट्रेक्ट ऑफ़ सर्विस)। सेवा के लिए अनुबंध एक प्रिंसिपल-एजेंट संबंध की तरह है, जहां प्रिंसिपल अपने एजेंट को कुछ काम करने के लिए कहता है और एजेंट द्वारा अपनाया गया तरीका उसके ऊपर है, जबकि सेवा का अनुबंध, मास्टर-नौकर संबंध होने की अधिक संभावना है, जहां मास्टर आदेश देता है की क्या काम करना है और कैसे करना है। सेवा का अनुबंध कर्मचारी को अपनी स्वतंत्रता पर काम करने और काम छोड़ने की अनुमति देता है, क्योंकि कोई अनुबंध हस्ताक्षरित नहीं है। यह व्यक्तिगत रूप से नियोक्ता को दी जाने वाली समग्र सेवा का एक हिस्सा है।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत जिन सेवाओं पर सवाल उठाया जा सकता है, उनकी सूची एक विस्तृत (एक्जोस्टिव) सूची नहीं है, बल्कि समावेशी है क्योंकि परिभाषा में, “शामिल है लेकिन सीमित नहीं” वाक्यांश का उपयोग किया गया है। हालांकि स्वास्थ्य सेवा को समावेशी हिस्से से हटा दिया गया है, इसका मतलब यह नहीं है कि चिकित्सा पेशेवर (प्रोफेशनल) सी.पी.ए. के अंतर्गत नहीं आते हैं। यह समय की बात है जब तक कि किसी कोर्ट को इस संबंध में व्याख्या नहीं करनी पड़ेगी। कुछ अन्य सेवा क्षेत्र जिन्हें सेवा के दायरे में शामिल किया गया है, वे हैं मनोरंजन और विज्ञापन उद्योग (इंडस्ट्री), डाक सेवाएं, निवेश (इंवेस्टमेंट) संबंधी सेवाएं आदि।

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