कंटिन्यूइंग गारंटी: रिवोकेशन की प्रकृति और तरीके

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Indian Contract Act
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यह लेख Tanisha Gautam द्वारा लिखा गया है, जो लॉसिखो से एडवांस सिविल लिटिगेशन प्रैक्टिस, प्रोसीजर और ड्राफ्टिंग में सर्टिफिकेट कोर्स कर रही हैं। यह लेख कंटीन्यूइंन गारंटी के रिवोकेशन की प्रकृति और तरीको से संबंधित है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन)

इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 की धारा 6 के अनुसार, “गारंटी का कॉन्ट्रैक्ट” एक प्रकार का कॉन्ट्रैक्ट है जो वादे के प्रदर्शन, या देनदारियों (लायबिलिटी) के निर्वहन (डिस्चार्ज) और तीसरी पार्टी के उल्लंघन के मामले में उनकी चूक से संबंधित है। गारंटी मौखिक (ओरल) या लिखित रूप में हो सकती है। गारंटी का कॉन्ट्रैक्ट 3 पार्टियों से संबंधित है, जिसमें श्योरिटी वह है जो चूक होने पर पार्टी की ओर से दायित्वों (ऑब्लिगेशन) और देनदारियों को पूरा करने के लिए पार्टी के रूप में कार्य करता है। गारंटी के कॉन्ट्रैक्ट के तीन पार्टी हैं:

  1. श्योरिटी – वह पार्टी जो गारंटी देता है।
  2. प्रिंसिपल डेटर – वह पार्टी जिसकी चूक में गारंटी दी जाती है।
  3. प्रिंसिपल क्रेडिटर – वह पार्टी जिसे गारंटी दी जाती है।

उदाहरण- T, Y के साथ कॉन्ट्रैक्ट में हर दिन 10 लीटर संतरे का रस देने के लिए आता है, बशर्ते कि यदि G, Y की ओर से श्योरिटी के रूप में कार्य करता है अगर Y बाद में 10 लीटर संतरे के रस का भुगतान करने में विफल हो जाता है। अब, यदि Y, T को भुगतान करने में विफल होता है, तो G को आवश्यक भुगतान करना होगा।

यह लेख कॉन्ट्रैक्ट एक्ट के एक भाग के बारे में बात करता है, जिसमें विस्तार (डिटेल) से निर्दिष्ट (स्पेसिफिक) किया गया है कि कंटिन्यूइंग गारंटी का क्या अर्थ है और इसकी पेचीदगियां (इंट्रिकेसिज) क्या हैं। यह लेख कंटिन्यूइंग गारंटी की प्रकृति, श्योरिटी की देनदारियों और एक कंटिन्यूइंग गारंटी कॉन्ट्रैक्ट के रिवोकेशन के तरीके बताता है।

कंटिन्यूइंग गारंटी क्या है?

इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1972 की धारा 129 के अनुसार, एक गारंटी जो एक श्रृंखला (सीरीज) और कई लेन-देन तक फैली हुई है, एक कॉन्ट्रैक्ट में “कंटिन्यूइंग गारंटी” के रूप में जानी जाती है। इन गारंटियों की एक निर्धारित (सेट) समय सीमा होती है या एक निश्चित अवधि शायद एक महीने, एक वर्ष, आदि के लिए होती है। एक भी वादे के निर्वहन या एकल ऋण (सिंगल डेट) या लेनदेन के पुनर्भुगतान (रिपेमेंट) के बाद कंटिन्यूइंग गारंटी समाप्त नहीं होती है। यह सुनिश्चित कि समय या राशि के संबंध में दायित्व उसकी इच्छा और ब्याज के अनुसार सीमित किए जा सके श्योरिटी के हाथ में है। कंटिन्यूइंग देनदारियों के तहत, श्योरिटी गारंटी के अंत में बकाया और शेष राशि के लिए उत्तरदायी (लायबल) है।

कंटिन्यूइंग गारंटी दो प्रकार की होती है,

  1. भावी (प्रोस्पेक्टिव)
  2. पूर्वव्यापी (रेट्रोस्पेक्टिव)

पहली भविष्य के ऋणों के लिए दी जाती है और दूसरी मौजूदा ऋणों के लिए दी जाती है।

कंटिन्यूइंग गारंटी के उदाहरण

  1. T, इस बात को ध्यान में रखते हुए कि Y अपनी उत्तरदायी जमींदारी का किराया इकट्ठा करने के लिए G को नियुक्त (एम्प्लॉय) करेगा, Y को 5000 रुपये की राशि को इकट्ठा करने और G द्वारा किराए के भुगतान के लिए जिम्मेदार होने का वादा करता है और इसलिए, यह एक कंटिन्यूइंग गारंटी कॉन्ट्रैक्ट है।
  2. T, Y को 10 बोरी गेहूं की कीमत के भुगतान की गारंटी देता है, जिसे Y द्वारा G को वितरित (डिस्ट्रीब्यूट) किया जाना है और इसके लिए एक महीने में भुगतान किया जाना है। Y, G को 10 बोरे देता है और  G उनके लिए भुगतान करता है। बाद में, Y 8 बोरे G को देता है जिसका G ने भुगतान नहीं किया था। T द्वारा दी गई गारंटी एक कंटिन्यूइंग गारंटी नहीं थी, और इस प्रकार वह 8 बोरियों के लिए भुगतान की गई कीमत के लिए  नहीं है।

स्पेसिफिक और कंटिन्यूइंग गारंटी

कॉन्ट्रैक्ट की गारंटी के दो प्रकार होते हैं:

  1. स्पेसिफिक गारंटी;
  2. कंटिन्यूइंग गारंटी।

पूर्व एक प्रकार की गारंटी है जो एक विशिष्ट लेनदेन या ऋण के लिए दी जाती है। उदाहरण के लिए – A ने यस बैंक से 1 लाख रुपये उधार लिए गए थे। C द्वारा ऋण की पुनर्भुगतान के लिए गारंटी दी गई थी। जैसे ही A यस बैंक को ऋण की राशि चुकाता है, C की देनदारी समाप्त हो जाती है। 

दूसरी वाली एक प्रकार की गारंटी है जो एक से अधिक लेनदेन के लिए दी जाती है। उदाहरण के लिए- A एक कॉफी-डीलर B को 10000 रुपये की राशि के भुगतान की गारंटी देता है जिससे किसी भी कॉफी के लिए वह समय-समय पर C को आपूर्ति (सप्लाई) कर सकता है। B 10000 रुपये के मूल्य से ऊपर कॉफी के साथ C की आपूर्ति करता है और C इसके लिए B को भुगतान करता है। बाद में, B 20000 रुपये के मूल्य पर C को कॉफी की आपूर्ति करता है। हालांकि, C भुगतान करने में विफल रहता है और A द्वारा दी गई गारंटी एक कंटिन्यूइंग गारंटी थी, और इस प्रकार, वह तदनुसार 10000 रुपये की सीमा तक B के लिए उत्तरदायी है।

कंटीन्यूइंग गारंटी कॉन्ट्रैक्ट की प्रकृति

एक कंटिन्यूइंग गारंटी का महत्वपूर्ण पहलू (एस्पेक्ट) यह है कि यह लागू होता है और एक श्रृंखला और अलग-अलग लेनदेन से संबंधित है। इसलिए, जब एक गारंटी पूरे विचार (कंसीडरेशन) के लिए दी जाती है, तो इसे एक कंटिन्यूइंग गारंटी के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है।

नॉटिंघम हाईड कंपनी बनाम बॉटट्रिल के मामले में, यह कहा गया था कि “हर एक मामले के तथ्यों (फैक्ट्स), परिस्थितियों और इरादों को यह निर्धारित करने के लिए देखा जाना चाहिए कि यह कंटिन्यूइंग गारंटी का मामला है या नहीं। यदि क्रेडिटर द्वारा भौतिक (मैटेरियल) परिस्थितियों के संबंध में गलत बयानी या धोखाधड़ी द्वारा या क्रेडिटर द्वारा भौतिक तथ्यों को छुपाकर कॉन्ट्रैक्ट किए जाते हैं, तो कॉन्ट्रैक्ट को अमान्यकर्णीय (इंवेलिड) और अमान्य (वॉयड) माना जाएगा।

एक बार जब गारंटर क्रेडिटर को आवश्यक ऋण का भुगतान करके अपने दायित्व के लिए प्रतिबद्ध (कमिट) हो जाता है, तो वह क्रेडिटर बन जाता है और उन सभी अधिकारों का लाभ उठाता है जो प्रिंसिपल डेटर के पास थे। प्रिंसिपल डेटर द्वारा दर्ज किए गए सभी लेन-देन जब तक कि वे उस सिक्यॉरिटी द्वारा रिवोक नहीं किए जाते हैं, तब तक वे एक कंटिन्यूइंग गारंटी के अधीन होंगे। डेटर्स को अधिसूचना (नोटिफिकेशन) द्वारा भविष्य के लेनदेन की गारंटी किसी भी समय रिवोक की जा सकती है। हालांकि, गारंटी के ऐसे रद्द होने से पहले दर्ज किए गए लेनदेन के लिए एक गारंटर की देनदारी कम नहीं होगी।

कंटीन्यूइंग गारंटी कॉन्ट्रैक्ट श्योरिटी की देनदारिया

इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1972 की धारा 128 के तहत श्योरिटी की देनदारियों का सिद्धांत दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि जब तक कॉन्ट्रैक्ट द्वारा अन्यथा प्रदान नहीं किया जाता है, तब तक श्योरिटी की देनदारिया प्रिंसिपल डेटर के साथ सह-विस्तृत (को-एक्सटेंसिब) है। श्योरिटी क्रेडिटर द्वारा प्रिंसिपल डेटर को दिए गए लेनदेन के लिए उत्तरदायी बना रहेगा। श्योरिटी राशि के लिए उत्तरदायी है जो समय-समय पर लेन-देन या क्रेडिटर और प्रिंसिपल डेटर के बीच लेनदेन के कारण हो सकती है। जब वह अपनी गारंटी को रिवोक करता है तो श्योरिटी को उसकी देनदारियो से मुक्त कर दिया जाता है। श्योरिटी की देनदारिया कॉन्ट्रैक्ट के लिए अनुपूर्वक (सेकेंडरी) है और इसके परिणामस्वरूप, यदि प्रिंसिपल डेटर उत्तरदायी नहीं है, तो श्योरिटी भी उत्तरदायी नहीं होगी।

कंटिन्यूइंग गारंटी कॉन्ट्रैक्ट के रिवोकेशन के विभिन्न तरीके 

  • एक नोटिस देकर

जब कोई लेन-देन किया गया हो और वह प्रगति में हो, तो उस विशेष लेनदेन के संबंध में श्योरिटी की देनदारियों को रिवोक नहीं किया जा सकता है। यह भविष्य के लेनदेन पर भी लागू होता है। एक श्योरिटी सिर्फ नोटिस देकर अपनी देनदारियों को रिवोक/छोड़ नहीं सकता है। यदि गारंटी के कॉन्ट्रैक्ट में निश्चित समय अवधि का एक क्लॉज शामिल है जिसे कॉन्ट्रैक्ट को रिवोक करने से पहले पूरा करने की आवश्यकता होती है, तो किसी भी मौके पर श्योरिटी देनदारियों से बच नहीं सकता हैं।

ऑफर्ड बनाम डेविस के मामले में, श्योरिटी ने उन बिलों के पुनर्भुगतान की गारंटी दी थी जिसका क्रेडिटर द्वारा डेटर के लिए डिस्काउंट किया गया था। इसे 1 वर्ष की अवधि के लिए $600 की राशि तक किया जाना था। क्रेडिटर ने बिलों का डिस्काउंट जारी रखा, तब भी जब श्योरिटी ने बिल के डिस्काउंट किए जाने से पहले अपनी गारंटी रिवोक कर दी, क्योंकि डेटर बिलों का भुगतान करने में डिफॉल्ट कर रहा था। यह माना गया कि गारंटी रिवोक करने के बाद डिस्काउंट हुए बिलों के लिए श्योरिटी उत्तरदायी नहीं होगा।

  • श्योरिटी की मृत्यु पर

कंटिन्यूइंग गारंटी कॉन्ट्रैक्ट श्योरिटी की मृत्यु के साथ समाप्त हो जाता है। भविष्य के लेनदेन के संबंध में यह अपने आप ही रिवोक हो जाता है। हालांकि, श्योरिटी के वारिसों को उन लेन-देन के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है जो उसकी मृत्यु से पहले किए गए थे। यदि गारंटी के संबंधित कॉन्ट्रैक्ट में कोई प्रावधान (प्रोविजन) है कि श्योरिटी की मृत्यु पर, उसकी संपत्ति या कानूनी प्रतिनिधियों (रिप्रजेंटेटिव) या वारिस या एजेंटों को किसी भी देनदारी या उल्लंघन के लिए जिम्मेदार और उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, तो यह कॉन्ट्रैक्ट, इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1972 की धारा 131 के अर्थ के विपरीत (कंट्रारी) होगा और श्योरिटी की मृत्यु के बाद भी गारंटी रिवोक नहीं की जाती है।

दुर्गा प्रिया चौधरी बनाम दुर्गा पाडा रॉय में, श्योरिटी ने प्रिंसिपल डेटर द्वारा क्रेडिटर की जमींदारी के किराए को इकट्ठा करने और भुगतान की गारंटी दी। एक एजेंट के रूप में प्रिंसिपल डेटर के रोजगार के विचार के साथ 600 रुपये की राशि को सामने रखा गया था। बाद में, श्योरिटी की मृत्यु पर, प्रिंसिपल डेटर ने डिफॉल्ट कर दिया और क्रेडिटर ने उस पर और श्योरिटी के कानूनी प्रतिनिधियों पर मुकदमा दायर किया। श्योरिटी के कानूनी प्रतिनिधियों ने दलील दी कि एक कंटिन्यूइंग गारंटी होने के कारण, यह श्योरिटी की मृत्यु के साथ अपने आप रद्द हो जाती है। गारंटी के प्रावधानों में कहा गया है कि वारिस और श्योरिटी के प्रतिनिधि गारंटी की शर्तों से उसी तरह बाध्य (बाउंड) और उत्तरदायी होंगे जैसे श्योरिटी इसके द्वारा बाध्य थी। न्यायाधीशों ने माना कि श्योरिटी की मृत्यु के बाद भी गारंटी रिवोक नही की गई थी और उसके वारिस उत्तरदायी माने गए थे।

  • श्योरिटी की सहमति के बिना कॉन्ट्रैक्ट के नियमों और शर्तों में किए गए परिवर्तन

श्योरिटी के परामर्श (कंसल्टेशन) और सहमति के बिना प्रिंसिपल डेटर और क्रेडिटर के बीच कॉन्ट्रैक्ट के नियमों और शर्तों में कोई परिवर्तन और संशोधन (अमेंडमेंट) होने पर कंटिन्यूइंग गारंटी का कॉन्ट्रैक्ट रिवोक कर दिया जाता है। श्योरिटी लेन-देन पर अपनी देनदारियों से आगे किए गए बदलावों से मुक्त हो जाती है।

बिश्वनाथ अग्रवाल बनाम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के मामले में, श्योरिटी ने समय-समय पर क्रेडिटर को प्रिंसिपल डेटर द्वारा देय ऋण राशि और ब्याज को सुरक्षित करने के लिए 2,50,000 रुपये तक की कंटिन्यूइंग गारंटी एक्जीक्यूट की। डेटर ने ऋण का भुगतान करने में डिफॉल्ट किया और श्योरिटी की सहमति के बिना उसी ऋण खाते में उस सीमा से अधिक की ओवरड्रा किया गया था। श्योरिटी को केवल 2,50,000 रुपये तक के लिए उत्तरदायी ठहराया गया था और वह श्योरिटी की सहमति के बिना बैंक द्वारा डेटर को अनुमति देने वाले अन्य ओवरड्रा के लिए बाध्य नहीं था।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

कॉन्ट्रैक्ट को कंटिन्यूइंग गारंटी को इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1972 के तहत परिभाषित किया गया है। यहां मूल (बेसिक) कार्य क्रेडिटर को प्रिंसिपल डेटर की ओर से कॉन्ट्रैक्ट के उल्लंघन से होने वाले किसी भी प्रकार के नुकसान से बचाना है। गारंटी के प्रत्येक कॉन्ट्रैक्ट, चाहे वह स्पेसिफिक हो या कंटिन्यूइंग में तीन पार्टी शामिल होती हैं- प्रिंसिपल डेटर, क्रेडिटर और श्योरिटी। इस तरह के कॉन्ट्रैक्ट में प्रवेश करते समय श्योरिटी की ओर से सावधान रहना आवश्यक है। कंटिन्यूइंग गारंटी का कॉन्ट्रैक्ट अंग्रेजी कानून में भी बहुत प्रमुख भूमिका निभाता है। इस प्रकार, क्रेडिटर की सुरक्षा के लिए गारंटी के कॉन्ट्रैक्ट का अस्तित्व में होना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।

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