कॉपीराइट कानून के तहत कलाकार के अधिकार

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यह लेख Shreyansh Gupta द्वारा लिखा गया है। यह लेख कॉपीराइट कानून के तहत कलाकार के अधिकारो से संबंधित है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

Table of Contents

सार (एब्स्ट्रैक्ट)

पहले कॉपीराइट कानून के तहत कलाकारों के अधिकारों को मान्यता नहीं दी जाती थी। एक सिनेमैटोग्राफ फिल्म में एक अभिनेता का प्रदर्शन (परफॉर्मेंस) या ध्वनि रिकॉर्डिंग में एक गायक का प्रदर्शन कानूनी रूप से सुरक्षित नहीं था। इसलिए ध्वनि रिकॉर्डिंग या नाटकीय काम का उपयोग करने के लिए कलाकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं थी। लेकिन साल 1994 में भारत में कॉपीराइट एक्ट 1957 के तहत परफॉर्मर राइट्स को मान्यता दी गई। हालांकि, रोम कन्वेंशन, 1961 तक, कलाकारों के अधिकारों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं दी गई थी। लेकिन रोम कन्वेंशन ने कलाकार की सहमति के बिना किसी भी प्रदर्शन के प्रसारण (ब्रॉडकास्ट) के खिलाफ सुरक्षा प्रदान की थी। इसने कलाकारों के अधिकारों को मान्यता दी और कहा कि वह एक कलाकार है और उसकी सहमति के बिना काम प्रसारित नहीं किया जा सकता है। कॉपीराइट एक्ट की धारा 38, 39 और 39A कलाकार के अधिकारों से संबंधित प्रावधानों (प्रोविजंस) से संबंधित है।

परिचय (इंट्रोडक्शन)

जब ब्रिटिश शासन के दौरान कॉपीराइट कानून पेश किया गया था तब उस समय कलाकार के अधिकारों को कोई मान्यता नहीं दी जाती थी। जब स्वतंत्रता के बाद कॉपीराइट एक्ट, 1957 पेश किया गया था तब भी कलाकार के अधिकारों का कोई उल्लेख (मेंशन) नहीं था। 1979 में फॉर्च्यून फिल्म्स बनाम देव आनंद के मामले में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने माना कि कलाकार के अधिकारों का कोई कॉपीराइट नहीं है क्योंकि उनके अधिकार को कॉपीराइट एक्ट के तहत मान्यता प्राप्त नहीं हैं। इस निर्णय के बाद, कॉपीराइट एक्ट में कलाकार के अधिकार को सम्मिलित (इंसर्ट) करने की आवश्यकता महसूस की गई। 1994 में, कॉपीराइट एक्ट में अमेंडमेंट किया गया था और कलाकार के अधिकारों को मान्यता देने के लिए धारा 38, 39 और 39A पेश की गई थी। भारतीय कॉपीराइट एक्ट, रोम कन्वेंशन और ट्रिप्स में निर्दिष्ट (स्पेसिफाइड) न्यूनतम आवश्यकता के अनुसार, से परे कलाकारों के दायरे को पहचानता है। धारा 2(qq) ‘कलाकार’ शब्द को परिभाषित करती है, जिसमें अभिनेता, नाचनेवाला, संगीतकार, गायक, कलाबाज, जादूगर, सपेरा, बाजीगर (जगलर), व्याख्यान (लेक्चर) देने वाला व्यक्ति या प्रदर्शन करने वाला कोई अन्य व्यक्ति शामिल है। हालांकि, खेल के मामले में, खिलाड़ियों को कलाकार नहीं कहा जा सकता क्योंकि खेल प्रतिस्पर्धी (कॉम्पिटेटिव) है और इसका परिणाम निश्चित नहीं है और खिलाड़ी भी नियमों के भीतर खेलने के लिए बाध्य हैं और रचनात्मकता (क्रिएटिविटी) की अनुमति नहीं है। इसलिए खिलाड़ी कलाकारों के दायरे में नहीं आ सकते है।

कलाकार के अधिकारों का ओरिजिन और विकास

पहले बौद्धिक संपदा (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी) के रचनाकारों को अपने काम को जनता तक पहुंचाने में मदद करने वाले व्यक्ति के काम को मान्यता नहीं दी जाती थी। जब कोई गीत गीतकार द्वारा लिखा जाता है तो जब तक वह गायक द्वारा गाया नहीं जाता है, उसका कोई मूल्य नहीं होता है या लेखक द्वारा लिखी गई नाटक स्क्रिप्ट तब तक किसी काम की नहीं होती जब तक कि वह अभिनेता द्वारा नहीं किया जाता है। इसलिए, यदि लेखक या गीतकार अपने काम के मूल्य को बढ़ाना चाहते हैं तो उन्हें कलाकारों की मदद की आवश्यकता होती है। इंटरनेशनल कन्वेंशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ़ परफॉर्मर, प्रोड्यूसर ऑफ़ फोनोग्राम एंड ब्रॉडकास्टिंग ऑर्गेनाइजेशन जिसे आम तौर पर रोम कन्वेंशन, 1961 के नाम से जाना जाता है, कलाकारों के अधिकारों को मान्यता देने वाला पहला कंन्वेंशन था। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (आईएलओ), यूनाइटेड नेशन एज्यूकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गनाइजेशन (यूनेस्को) और वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइजेशन (विपो) रोम कन्वेंशन के प्रशासन (एडमिनिस्ट्रेशन) के लिए एक साथ जिम्मेदार हैं।

इंटरगवर्नमेंटल कमिटी सेक्रेट्रिएट में इन तीनो ऑर्गेनाइजेशन द्वारा गठित (कंस्टीट्यूट) 12 अनुबंधित (कॉन्ट्रैक्टिंग) राज्यों के सदस्य होते हैं। यह कमिटी उन प्रश्नों से संबंधित है जिन पर रोम कंन्वेंशन में विचार किया जाता था। इस कन्वेंशन में, प्रदर्शन करने वाले वर्ष के अंत से कम से कम 20 वर्षों की अवधि के लिए कलाकार के अधिकारों को सुरक्षित किया गया था। रोम कन्वेंशन के आर्टिकल 19 में कहा गया है कि जब कलाकार ने किसी भी ऑडियो-विजुअल या विजुअल मोड में अपने प्रदर्शन को शामिल करने के लिए सहमति दी है तो ये प्रावधान लागू नहीं होंगे। भारत में, कलाकार के अधिकारों को 50 साल की अवधि के लिए सुरक्षा दी जाती है। रोम कन्वेंशन का आर्टिकल 7 कलाकारों के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करता है:

  • कलाकारों को दूसरों को उनकी सहमति के बिना प्रसारण के अलावा अन्य माध्यमों से प्रसारण या जनता से कम्युनिकेट करने से रोकने का अधिकार है।
  • उन्हें यह अधिकार है कि वे दूसरों की सहमति लिए बिना उनके अनिर्धारित (अनफिक्स्ड) लाइव प्रदर्शन के निर्धारण (फिक्सेशन) से दूसरों को रोक सकते हैं।
  • उन्हें, दूसरों को उनकी सहमति के बिना उनके लाइव प्रदर्शन के पुनरुत्पादन (रिप्रोडक्शन) से रोकने का अधिकार है।
  • उन्हें किसी अन्य उद्देश्य के लिए अपने प्रदर्शन के वाणिज्यिक शोषण (कमर्शियल एक्सप्लॉयटेशन) को रोकने का अधिकार है, जिसके लिए सहमति प्राप्त नहीं की गई है।

इस कंन्वेंशन के प्रावधानों को ट्रिप्स समझौते द्वारा और मजबूत किया गया है, जिसे डब्ल्यूटीओ द्वारा प्रशासित किया जाता है। ट्रिप्स समझौते के आर्टिकल 14 में कहा गया है कि:

  • उन्हें अपने काम को वायरलेस माध्यम से जनता तक प्रसारण और कम्युनिकेट से बचाने का अधिकार है।
  • उन्हें अपने लाइव प्रदर्शन के पुनरुत्पादन को रोकने का अधिकार है।
  • उन्हें फोनोग्राम पर अपने लाइव प्रदर्शन के निर्धारण को रोकने का अधिकार है। रोम कन्वेंशन में, इस तरह के प्रदर्शन केवल फोनोग्राम तक ही सीमित नहीं थे, लेकिन यहां संकीर्ण दृष्टिकोण (नैरो एप्रोच) अपनाया गया है।

कलाकार के अधिकारों की सुरक्षा उस वर्ष के अंत से 50 वर्ष तक है जिसमें प्रदर्शन तय किया गया था या यह हुआ था।

1996 में, विपो परफॉर्मेंस एंड फोनोग्राम ट्रीटी (डबल्यूपीपीटी) अस्तित्व में आई। इस ट्रीटी में पहली बार कलाकारों के नैतिक (मोरल) अधिकारों को मान्यता दी गई। यह कलाकारों के आर्थिक (इकोनॉमिक) अधिकारों पर भी चर्चा करती है। कलाकारों को उनके प्रदर्शन के लिए मौद्रिक मुआवजा (मॉनेटरी कंपनसेशन) प्राप्त करते है और यदि काम का शोषण किसी अन्य उद्देश्य के लिए किया जाता है, जिसके लिए सहमति दी जाती है तो कलाकार रॉयल्टी प्राप्त करने के पात्र होते हैं।

2012 में, विपो द्वारा बीजिंग ट्रीटी ऑन ऑडियो-विज़ुअल परफॉर्मेंस को अपनाया गया था जिसमें ऑडियो-विज़ुअल डोमेन में कलाकारों पर विस्तृत (एलेबोरेटली) चर्चा की गई थी। अनुबंधित राज्यों ने फिल्मों, टीवी शो या शॉर्ट वीडियो आदि में काम करने वाले कलाकारों के अधिकारों की रक्षा करने पर चर्चा की थी। डब्ल्यूपीपीटी ने टीवी या फिल्मों में काम करने वाले कलाकार पर चर्चा नहीं की थी लेकिन बीजिंग ट्रीटी में इन सभी अधिकारों पर चर्चा की गई थी और फिल्मों के निर्माताओं को कलाकार के अधिकारों का हस्तांतरण (ट्रान्सफर) के लिए प्रावधान भी निर्धारित किए गए थे।  

कॉपीराइट एक्ट के तहत कलाकार के क्या अधिकार हैं?

  • कलाकार को ध्वनि या विजुअल रिकॉर्डिंग करने का अधिकार है

एक कलाकार को ध्वनि या विजुअल रिकॉर्डिंग करने का अधिकार है। वह लाइव प्रदर्शन को रिकॉर्ड करने के लिए अन्य लोगों को भी सहमति दे सकता है। कलाकार की सहमति के बिना, कोई अन्य व्यक्ति उस ध्वनि रिकॉर्डिंग का उपयोग नहीं कर सकता है। लेकिन, यदि उनका प्रदर्शन सिनेमैटोग्राफ फिल्म के लिए है और ऐसी फिल्म में उनके प्रदर्शन को शामिल करने के लिए लिखित समझौता किया गया है, तो इस तरह की फिल्म के निर्माता द्वारा सभी अधिकारों का आनंद लिया जाएगा, भले ही कलाकार एक गायक या अभिनेता हो।

  • कलाकार को ध्वनि या विजुअल रिकॉर्डिंग तैयार करने का अधिकार है

एक कलाकार ध्वनि या विजुअल रिकॉर्डिंग का निर्माता भी बन सकता है और उन सभी अधिकारों का आनंद ले सकता है जो एक निर्माता को प्राप्त होते हैं जैसे कि कई कॉपी को पुन: प्रस्तुत करना, वाणिज्यिक किराये के लिए कॉपी को देना, जनता को काम का कम्युनिकेट करना आदि। लेकिन इस उद्देश्य के लिए, कलाकार के पास व्यक्तिगत कॉपीराइट मालिक जैसे गीतकार और संगीतकार से पूर्व अनुमति होनी चाहिए और सक्षम प्राधिकारी (अथॉरिटी) द्वारा ध्वनि या विजुअल रिकॉर्डिंग से संबंधित प्रमाण पत्र (सर्टिफिकेट) होना चाहिए।

  • कलाकार को प्रदर्शन प्रसारित करने का अधिकार है

कलाकार दूसरों को उनके लाइव प्रदर्शन को प्रसारित करने से रोक सकते हैं। यदि कलाकार की सहमति नहीं ली जाती है और कोई अन्य व्यक्ति उसके प्रदर्शन को प्रसारित करता है तो यह कॉपीराइट का उल्लंघन होगा।  लेकिन, यदि प्रदर्शन सिनेमैटोग्राफ फिल्म के लिए है तो फिर सिनेमैटोग्राफ फिल्म के निर्माता द्वारा अधिकारों का आनंद लिया जाएगा, लेकिन अगर ऐसी फिल्म के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए प्रदर्शन का व्यावसायिक रूप से शोषण किया जाता है, तो कलाकार को रॉयल्टी का दावा करने का अधिकार है।

  • कलाकार को प्रसारण के अलावा अन्य कार्यों का कम्युनिकेट करने का अधिकार है

कलाकार प्रसारण के माध्यम से जनता के साथ कम्युनिकेट करने के लिए अन्य माध्यमों का उपयोग कर सकता है। प्रसारण का अर्थ है जनता से वायरलेस डिफ्यूजन या वायर द्वारा कम्युनिकेट करना।

ऐसे कार्य जो कलाकार के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं

  • उसकी सहमति के बिना कलाकार के काम का पुनरुत्पादन करना।
  • उसकी सहमति के बिना कलाकार के काम का उपयोग करना।
  • किसी अन्य उद्देश्य के लिए कलाकार के कार्य का उपयोग करना जिसके लिए कलाकार से सहमति प्राप्त नहीं की गई है।
  • कॉपीराइट एक्ट की धारा 39 में उल्लिखित एक के अलावा अन्य कलाकार के काम का प्रसारण करना।
  • प्रसारण के अलावा जनता के लिए कलाकार की सहमति के बिना प्रदर्शन को कम्युनिकेट करना।

ऐसे कार्य जो कलाकार के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करते हैं

  • किसी ध्वनि या विजुअल रिकॉर्डिंग को या तो निजी उपयोग के लिए या केवल शिक्षण और शोध (रिसर्च) कार्य के लिए पुन: प्रस्तुत करने का कार्य करना।
  • मामले में न्यायिक कार्यवाही के उद्देश्य से कार्य को पुन: प्रस्तुत किया जाता है।
  • उचित व्यवहार के अंदर आने वाली रिपोर्टिंग, समीक्षा (रिव्यू) या अन्य चीजों के उद्देश्य से पुनरुत्पादन करना।
  • मामले में विधायिका (लेजिस्लेचर) के सदस्यों द्वारा उपयोग के लिए कार्य को पुन: प्रस्तुत किया जाता है।
  • कुछ अन्य उपयोग जिन्हें कॉपीराइट एक्ट की धारा 52 के तहत उल्लंघन नहीं माना जाता है।

कलाकार के नैतिक अधिकार

कलाकार को अपने काम के लिए पहचाने जाने का अधिकार है, भले ही उसने सिनेमैटोग्राफ फिल्म के निर्माता को अपने सभी अधिकार दिए हों। कलाकार, काम पर अपना अधिकार छोड़ने के बाद भी, अपने काम के लिए पहचाने जाने का अधिकार रखता है। यदि उनके द्वारा किए गए कार्य में कोई परिवर्तन किया जाता है तो उन्हें भी आपत्ति (ऑब्जेक्ट) करने का अधिकार है। यदि सिनेमैटोग्राफ फिल्म का निर्माता कुछ तकनीकी मुद्दों या समय की कमी के कारण प्रदर्शन की लंबाई को छोटा कर देता है या काम के कुछ हिस्से को हटा देता है तो कलाकार के नैतिक अधिकार को पूर्वाग्रही (प्रेज्यूडिस) नहीं कहा जाता है। कलाकार के कानूनी प्रतिनिधियों (रिप्रजेंटेटिव) और कॉपीराइट मालिकों के कानूनी प्रतिनिधियों के नैतिक अधिकार अलग-अलग हैं और एक ही तरीके से प्रयोग नहीं किए जा सकते हैं।

कुछ महत्वपूर्ण मामले

उन शुरुआती मामलों में से एक जहां कलाकारों के अधिकारों पर सवाल उठाया गया था और जहां कोर्ट ने सिनेमैटोग्राफ फिल्म में कलाकार के अधिकार को मान्यता देने से पूरी तरह से इनकार कर दिया था, वह था फॉर्च्यून फिल्म्स इंटरनेशनल बनाम देव आनंद, यहां कोर्ट ने माना कि एक अभिनेता का फिल्म में उनके प्रदर्शन के उपयोग को नियंत्रित (कंट्रोल) करने के लिए कोई अधिकार नहीं है। अभिनेताओं को उनके प्रदर्शन के लिए एक शुल्क (फीस) दिया गया था और उसके बाद निर्माता उनके प्रदर्शन का उपयोग करने के लिए स्वतंत्र थे जैसा वे इसका उपयोग करना चाहते थे। लेकिन 1994 में कॉपीराइट एक्ट में अमेंडमेंट के साथ, कलाकार के अधिकारों को मान्यता दी गई।

सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज बनाम बाथला कैसेट इंडस्ट्रीज में, दिल्ली हाई कोर्ट ने माना कि कॉपीराइट और कलाकारों के अधिकार दो अलग-अलग चीजें हैं और यदि गीत को फिर से रिकॉर्ड किया जाता है तो मूल गायक की पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती है।

नेहा भसीन बनाम आनंद राज आनंद में, कोर्ट ने इस मुद्दे को संबोधित (एड्रेस) किया कि लाइव प्रदर्शन क्या होगा, यहां यह कहा गया कि पहली बार प्रदर्शन स्टूडियो में रिकॉर्ड किया गया है या दर्शकों के सामने, दोनों को लाइव प्रदर्शन कहा जाएगा और अगर कोई कलाकार की सहमति के बिना ऐसे प्रदर्शन का उपयोग करता है तो कलाकार के अधिकारों का उल्लंघन कहा जाता है।

ऊपर दिए हुए निर्णयों के अलावा, भारत में कलाकार के अधिकारों के क्षेत्र में बहुत अधिक विकास नहीं हुआ है। लेकिन तकनिकी के विकास के साथ, भविष्य में कोई उम्मीद कर सकता है कि कलाकार के अधिकारों के प्रावधानों का परीक्षण (टेस्ट) करने वाले नए मुद्दे सामने आएंगे।

कलाकार के अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ उपाय

कलाकार के अधिकार का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ कॉपीराइट एक्ट की धारा 55 और धारा 63 से 70 में भी उपाय उपलब्ध हैं। निम्नलिखित उपायों का लाभ उठाया जा सकता है:

  • सिविल उपाय

कलाकार के अधिकार का मालिक या उसका अनन्य (एक्सक्लूजिव) लाइसेंसधारी कोर्ट जा सकता है और अस्थायी (टेंपरेरी) या स्थायी निषेधाज्ञा (पर्मानेंट इनजंक्शन) प्राप्त कर सकता है या वे नुकसान का दावा भी कर सकते हैं।

  • आपराधिक उपाय

उल्लंघन करने वाले के खिलाफ न केवल सिविल उपाय बल्कि आपराधिक उपाय भी उपलब्ध है। उल्लंघन करने वाले को 6 महीने की सजा हो सकती है जिसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है या 50,000 से रु.  2,00,000 रुपये का जुर्माना भरना पड़ सकता है या दोनों हो सकती है।

  • एंटोन पिलर ऑर्डर

कभी-कभी कोर्ट वादी (प्लेंटिफ) को उसके एक आवेदन (एप्लीकेशन) पर, वकील के साथ प्रतिवादी (डिफेंडेंट) के स्थान पर प्रवेश करने और संबंधित दस्तावेजों का निरीक्षण करने की अनुमति देती है। यह आवश्यक है क्योंकि प्रतिवादी अपने स्थान से दस्तावेजों को हटा सकता है यदि वह पहले से जानता है कि निरीक्षण होने वाला है या कोर्ट द्वारा कोई तलाशी वारंट जारी किया गया है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

कलाकारों को दिए गए अधिकार कॉपीराइट कानून के क्षेत्र में एक बहुत ही उत्साहजनक (एनकरेजिंग) कदम हैं। कॉपीराइट के काम में उनका हमेशा एक विशेष स्थान था लेकिन उनके काम को कभी भी उस तरह की सराहना नहीं मिली जिसकी आवश्यकता थी। अब कॉपीराइट कानून के तहत उनके अधिकार सुरक्षित हैं और इससे उनकी वित्तीय (फाइनेंशियल) स्थिति भी मजबूत होती है।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

 

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