कोरोना वायरस महामारी के दौरान भारत में प्रवासी कर्मचारियों के अधिकार

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Epidemic Diseases Act
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यह लेख Janhavi Shah द्वारा लिखा गया है।  इस लेख में कोरोना वायरस महामारी के दौरान भारत में प्रवासी कर्मचारियों के अधिकार के बारे में चर्चा की गई है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन)

प्रवासी कर्मचारी (माइग्रेंट वर्कर्स) भारत के असंगठित (अनोर्गनाइज्ड) कार्य क्षेत्र का सबसे बड़ा हिस्सा है, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन) के अनुसार, भारत के 85% से अधिक कार्यबल (वर्कफोर्स) अर्थव्यवस्था (इकोनॉमी) के इनफॉर्मल क्षेत्र से संबंधित हैं। 2011 की जनगणना (सेंसस) रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 40 मिलियन प्रवासी कर्मचारी हैं। प्रवास के अधिक प्रतिशत वाले राज्य, उत्तर प्रदेश और बिहार हैं, जहां उत्तर प्रदेश में कुल प्रवास का हिस्सा 23% है और बिहार में 13% है। इन प्रवासी कर्मचारियों में अक्सर महत्वपूर्ण कौशल (स्किल्स) की कमी, निरक्षरता (लिटरेसी), जानकारी की कमी, कम सौदेबाजी की शक्ति, कम-मूल्य और खतरनाक काम  के कारण शोषण (एक्सप्लोइटेशन) किया जाता है। पहचान, प्रतिनिधित्व (रिप्रेजेंटेशन) और कानूनी सुरक्षा का अभाव उनकी बुरी हालत को और बढ़ाता है।

संविधान के तहत कर्मचारियों को सुनिश्चित किए गए अधिकार

भारत का संविधान मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करता है। संविधान के तहत प्रिएंबल, मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) और भाग IV के तहत डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी उनकी रक्षा करते है। आर्टिकल 14 में कहा गया है कि कानून के समक्ष सभी समान है, आर्टिकल 15 में विशेष रूप से कहा गया है कि राज्य को नागरिकों के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए और आर्टिकल 16, राज्य के अंदर रोजगार या नियुक्ति (अपॉइंटमेंट) के अवसर की समानता का अधिकार प्रदान करता है। आर्टिकल 43 कहता है कि कर्मचारियों को जीवन यापन (लिविंग वेज) का अधिकार और “एक सभ्य जीवन स्तर (स्टैंडर्ड) सुनिश्चित करने वाली काम करने की स्थिति” का अधिकार होना चाहिए। आर्टिकल 43A, 1976 में भारत के संविधान के 42वें संशोधन (अमेंडमेंट) एक्ट द्वारा डाला गया था, इस आर्टिकल के तहत, राज्य को “अंडरटेकिंग के प्रबंधन (मैनेजमेंट) में कर्मचारियों के भाग लेने को सुरक्षित करने” के लिए कानून बनाने की आवश्यकता है।

आपदा के समय कर्मचारियों को सुनिश्चित किए गए अधिकार 

कोविड-19, वैश्विक (ग्लोबल) महामारी के बीच महामारी रोग अधिनियम (एपिडेमिक डिसीजेस एक्ट), 1897 और आपदा प्रबंधन अधिनियम (डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट), 2005 को लागू किया गया और देशभर में लॉकडाउन लगाया गया, जिसके कारण प्रवासी कर्मचारियों को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा। देश भर में परिवहन (ट्रांसपोर्ट) सेवाओं पर प्रतिबंध (कर्ब) के बावजूद, सभी आर्थिक और वाणिज्यिक (कमर्शियल) गतिविधियों के बंद होने के कारण वित्तीय अनिश्चितता (फाइनेंशियल अनसर्टेनिटी) के कारण लोगों की आजीविका (लाइवलीहुड) का नुकसान हुआ और गंभीर बीमारी का डर पैदा हुआ, जिसके कारण प्रवासी कर्मचारियों को अपने स्थानों, अर्थात उनके गांव, में वापस जाने के लिए बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

भारत के गृह मंत्रालय (मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर्स) ने निर्देश दिया कि प्रवासी कर्मचारियों की आवाजाही (मूवमेंट) लॉकडाउन दिशानिर्देशों (गाइडलाइंस) का उल्लंघन (वॉयलेशन) होगी; उसने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूनियन टेरिटरीज) में फंसे हुए प्रवासी कर्मचारियों को पर्याप्त भोजन, कपड़े, आश्रय (शेल्टर), मूल सुविधाएं जैसे, पीने के लिए साफ पानी और स्वच्छता सेवाएं प्रदान करने के लिए एक एडवाइजरी भी जारी किए। भोजन की कमी, आत्महत्या, शारीरिक थकावट और परिश्रम, सड़क और रेल दुर्घटनाओं, पुलिस की बर्बरता और समय पर अच्छी चिकित्सा देखभाल की कमी के कारण 5 मई, 2020 तक प्रवासी कर्मचारियों की 300 से अधिक मौतों की सूचना मिली थी।

मौतों की घटनाएं

रिपोर्ट की गई मौतों में, ज्यादातर मौते हाशिए (मार्जिनलाइज्ड) पर रहने वाले प्रवासियों और मजदूरों की हुई थी। श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में घर वापस जाते समय, 80 की मौत हो गई थी। महाराष्ट्र में औरंगाबाद के पास रेलवे ट्रैक पर आराम करने के लिए रुके 16 प्रवासियों की मालगाड़ी की चपेट में आने से मौत हो गई थी। गुना के पास प्रवासियों को ले जा रहा एक ट्रक बस से टकरा गया, जिससे 8 प्रवासी कर्मचारियों की मौत हो गई थी और लगभग 55 घायल हो गए थे। उत्तर प्रदेश में प्रवासियों को ले जा रहा एक ट्रेलर, एक खड़े ट्रक से जा टकराया, जिसमें 24 प्रवासी कर्मचारियों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए थे।

कर्मचारी अधिकारों के लिए अधिनियमित कानून

ठेकेदारों द्वारा शोषण के खिलाफ, प्रवासी कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा के लिए, इंटरस्टेट माइग्रेंट वर्कमैन (रेगुलेशन ऑफ़ एम्प्लॉयमेंट एंड कंडीशन ऑफ़ सर्विस) अधिनियम, 1979 अधिनियमित (इनेक्ट) किया गया था। यह कानून, उन प्रतिष्ठानों (एस्टेब्लिशमेंट्स) पर लागू होता है, जो अन्य राज्यों से 5 या अधिक प्रवासी कर्मचारियों को रोजगार देते है। इसके अलावा, जिन ठेकेदारों ने 5 या अधिक अंतरराज्यीय (इंटर-स्टेट) कर्मचारियों को नियुक्त किया है, वे भी इस कानून के दायरे में आते हैं। यह कानून केंद्र सरकार या राज्य सरकारों के पास नियोजित (एम्प्लॉईड) प्रवासी कर्मचारियों के रजिस्ट्रेशन के प्रावधान (प्रोविजन) भी बनाते है। इस कानून में, ठेकेदारों को उन राज्यों से लाइसेंस लेने की आवश्यकता है जहां से वे मजदूरों को लाने का इरादा रखते हैं। 15 दिनों की भर्ती के साथ, प्रत्येक ठेकेदार को प्रवासी कर्मचारियों का पूरा विवरण (डिटेल) पंजीकरण प्राधिकरण (रजिस्टरिंग अथॉरिटी) को प्रदान करना आवश्यक है।

ठेकेदारों को सभी प्रवासी कर्मचारियों के लिए रजिस्टर रखना होगा और उन्हें एक पासबुक प्रदान करनी होगी, जिसमें उनके रोजगार का विवरण होगा। प्रतिष्ठानों को किसी भी व्यवधान (डिसरप्शन) की अवधि के दौरान मजदूरी के अलावा 50% मजदूरी और किराए का विस्थापन भत्ता (डिस्प्लेसमेंट एलाउंस) प्रदान करना होगा। उन्हें आवास और स्वास्थ्य सुविधाएं भी प्रदान करनी होंगी। यह कानून, बिना पंजीकरण के प्रवासी कर्मचारियों के रोजगार पर रोक लगाता है और राज्य सरकारों को इसके इंप्लीमेंटेशन को सुनिश्चित करने के लिए इंस्पेक्टर्स की नियुक्ति की आवश्यकता होती है। प्रवासी कर्मचारी कानून के तहत विभिन्न भत्तों के हकदार हैं, जैसे कि विस्थापन भत्ता, यात्रा भत्ता और यात्रा की अवधि के दौरान मजदूरी का भुगतान, आदि। वह मजदूरी का समय पर भुगतान, भेदभाव के बिना, उपयुक्त आवास के प्रावधान, मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाओं और स्वच्छता सुविधाओं के भी हकदार हैं।

आलोचना (क्रिटिसिजम्स)

इंटर-स्टेट माइग्रेंट वर्कमेन (रेगुलेशन ऑफ़ एम्प्लॉयमेंट एंड कंडीशन ऑफ़ सर्विस) अधिनियम, 1979 को उचित और सटीक तरह से लागू करने से राज्य सरकार को, अपने असली स्थान पर वापस लौटने वाले अंतर-राज्य प्रवासी कर्मचारियों का पूरा विवरण उनके ठेकेदार के माध्यम से उपलब्ध हो जाता है। वैश्विक महामारी के दौरान फंसे प्रवासी कर्मचारियों के संबंध में संकट प्रबंधन के लिए आवश्यक नीतियों, नियमों और विनियमों के निर्माण के लिए आवश्यक डेटा की उपलब्धता के लिए इसको लागू करना और इसका सख्त पालन करना महत्वपूर्ण था।

प्रवासी कर्मचारियों का एक बड़ा वर्ग (सेगमेंट), अधिनियम के प्रावधानों के पालन में अपने आप ही पंजीकृत हो जाएगा और सरकार स्थिति को अधिक कुशल तरीके से संभाल सकती थी और महामारी के दौरान कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा कर सकती थी। हालांकि, इस तरह के एक अप्रचलित (ओब्सोलीट) कानून का कोई अनुपालन (कम्प्लाइअन्स) नहीं था, इसका सबसे पहला कारण, कठिन अनुपालन दिशानिर्देश और आवश्यकताएं प्रतीत होती हैं। समान वेतन के साथ-साथ अधिनियम के तहत देय विभिन्न भत्ते, प्रवासी कर्मचारियों को राज्य के अंदर काम करने वालों की तुलना में अधिक महंगा बना देते हैं। इस तरह के कानून का  ना लागू होने का मुख्य कारण, सरकारी प्रवर्तन (इंफोर्समेंट) और अनुपालन लागतों की कमी भी है, जिन पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। सरकारी तैयारी का अभाव, कमजोर समूहों के सामने आने वाली वास्तविक कठिनाइयों की रोकथाम में विफलता का परिणाम था।

लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को न्यूनतम (मिनिमम) मजदूरी का भुगतान करने के लिए 1 अप्रैल, 2020 को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जनहित याचिका (पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन) को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है और मजदूरी को भुगतान करने  की आवश्यकता पर सवाल उठाते हुए कहा कि, जब प्रवासी कर्मचारियों को भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है तो उन्हे भुगतान करने की आवश्यकता कहा उठती है। प्रभावित प्रवासी कर्मचारियों को नि:शुल्क परिवहन एवं राहत सुविधाएं उपलब्ध कराने के निर्देश जिलाधिकारी (डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट) को दिए गए थे। कुछ समय बाद, सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी तंत्र के कामकाज में कुछ खामियों को स्वीकार किया और केंद्र और राज्यों को, फंसे हुए प्रवासियों को मुफ्त भोजन, परिवहन और आश्रय प्रदान करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण फंसे सभी प्रवासी कर्मचारियों को दो हफ्तों के अंदर-अंदर उनके घरों में वापस भेजा जाए और उन्हें रोजगार के अवसरों सहित कल्याणकारी (वेलफेयर) कार्यक्रमों के बारे में सूचित किया जाए, जिन्हे पेश करने की वह योजना बना रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को उन प्रवासी मजदूरों के खिलाफ दर्ज किसी भी शिकायत या अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) को वापस लेने का भी निर्देश दिया, जो महामारी के दौरान भूख, बेरोजगारी और बीमारी से बचने के लिए बड़े शहरों से पैदल ही अपने गांवों के लिए निकले थे, जो स्पष्ट रूप से लॉकडाउन दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर रहे थे। 

भारत, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का एक संस्थापक सदस्य है और 1922 से वह अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के शासी निकाय (बॉडी) का स्थायी सदस्य रहा है। भारत ने आठ-कोर/मौलिक आई.एल.ओ. कन्वेंशंस में से 6 की पुष्टि की है। ये कन्वेंशन इस प्रकार हैं:

  1. फोर्स्ड लेबर कन्वेंशन (नंबर 29)
  2. एबोलिशन ऑफ़ फोर्स्ड लेबर कन्वेंशन (नंबर 105)
  3. इक्वल रैम्यूनरेशन कन्वेंशन (नंबर 100)
  4. डिस्क्रिमिनेशन (एम्प्लॉयमेंट ऑक्यूपेशन) कन्वेंशन (नंबर 111)
  5. मिनिमम एज कन्वेंशन (नंबर 138)
  6. वर्स्ट फॉर्म्स ऑफ़ चाइल्ड लेबर कन्वेंशन (नंबर 182)

मामले

हैबिटेट फॉर ह्यूमैनिटीज टरविलिगर सेंटर फॉर इनोवेशन इन शेल्टर, 2020 द्वारा एक रैपिड असेसमेंट सर्वे किया गया था। कोविड-19 के कारण देश भर में लॉकडाउन से महाराष्ट्र, पुणे और उल्हासनगर में रहने वाले प्रवासी कर्मचारियों पर प्रभाव की बेहतर समझ के लिए 974 प्रवासी कर्मचारियों का इंटरव्यू लिया गया था:

  • लगभग 71% कर्मचारियों को लॉकडाउन के बाद मजदूरी नहीं मिली थी।
  • 63% कर्मचारियों ने दावा किया कि उनके मूल स्थान, यानी उनके गांवों में आजीविका का कोई स्रोत (सोर्स) नहीं है।

वित्तीय (फाइनेंशियल) सहायता की कमी और उनके गांवों में कोई वैकल्पिक आजीविका न होने के कारण, प्रवासी कर्मचारी को सरकार द्वारा किए गए कल्याणकारी उपायों पर निर्भर रहने को मजबूर किया गया था।

  • 28% कर्मचारियों को सरकार से कोई सहायता या समर्थन (सपोर्ट) नहीं मिला।
  • 26% कर्मचारियों को लॉकडाउन के दौरान भोजन की बहुत कम या कोई पहुंच न होने के कारण भूख का सामना करना पड़ा।
  • 40% कर्मचारियों ने खाने की चीजें और राशन प्राप्त करने के लिए काफी संघर्ष किया।

प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना ने, वरिष्ठ (सीनियर) नागरिकों को 1,000 रुपये के हस्तांतरण (ट्रांसफर) के अलावा, जन धन खातों की महिला धारकों को सीधे नकद हस्तांतरण किया। लॉकडाउन से निपटने के लिए कल्याणकारी उपायों के रूप में प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना के तहत, नामांकित (एनरोल्ड) लाभार्थियों को 1 अप्रैल से 30 जून, 2020 तक 3 महीनों के लिए मुफ्त रसोई गैस/एल.पी.जी. प्रदान की गई थी। भारत के वित्त मंत्री ने ग्रामीण भारत में काम करने वाले गरीबों को समर्थन बढ़ाने के लिए महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी अधिनियम को अतिरिक्त 40,000 करोड़ रुपये आवंटित (एलोकेट) करते हुए, आत्मनिर्भर वित्तीय (फिस्कल) राहत पैकेज की घोषणा की।

नए विकास (न्यू डेवलपमेंट)

ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ और वर्किंग कंडीशंस कोड, 2020 (ओ.एस.एच.) को 19 सितंबर को लोकसभा में पेश किया गया और 22 सितंबर को पास किया गया। इसे 23 सितंबर को राज्यसभा में पेश किया गया और पास किया गया। पिछले कानून, इंटरस्टेट माइग्रेंट वर्कमेन (रेगुलेशन ऑफ़ एम्प्लॉयमेंट एंड कंडीशन ऑफ़ सर्विस) अधिनियम, 1979, के अनुसार, केवल ठेकेदारों के माध्यम से काम पर रखे गए अंतरराज्यीय प्रवासी कर्मचारियों को श्रम कानूनों के तहत कवर किया गया था। इसलिए, जो प्रवासी कर्मचारी रोजगार के लिए या गांवों से बड़े शहरों में रोजगार की तलाश में खुद से यात्रा करते थे, वे श्रम कानूनों के दायरे में नहीं आते थे।

ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ और वर्किंग कंडीशंस कोड, 2020, के तहत एक प्रवासी कर्मचारी को परिभाषित किया गया है, जिसे “नियोक्ता द्वारा प्रत्यक्ष (डायरेक्ट) या अप्रत्यक्ष (इनडायरेक्ट) रूप से एक राज्य में एक ठेकेदार के माध्यम से, दूसरे राज्य में स्थित किसी प्रतिष्ठान में रोजगार के लिए भर्ती किया गया है” या “एक राज्य से स्वयं आकर उसने दूसरे राज्य के किसी प्रतिष्ठान में रोजगार प्राप्त किया है।” यह बिल अंतर-राज्यीय प्रवासी कर्मचारियों के लिए कुछ लाभ प्रदान करता है। कर्मचारियों के पास अपने मूल राज्य या उस राज्य में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम) का लाभ उठाने का विकल्प होता है, जिसमें वे कार्यरत हैं। भवन एवं अन्य निर्माण उपकर निधि (बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन सेस फंड) के अंतर्गत, लाभ रोजगार की स्थिति में प्राप्त किया जा सकता है तथा उसी प्रतिष्ठान में अन्य कर्मचारियों को बीमा एवं भविष्य निधि का लाभ मिलता है।

हालांकि, सरकार ने कानून के पिछले ड्राफ्ट में एक प्रावधान को हटा दिया था, जिसने नियोक्ताओं के लिए प्रवासी कर्मचारियों को “उनके रोजगार की अवधि के दौरान” उपयुक्त रहने के लिए आवास प्रदान करना और बनाना अनिवार्य कर दिया था। 2019 के बिल में ठेकेदारों को उनकी भर्ती के समय अंतर-राज्यीय प्रवासी कर्मचारियों को विस्थापन भत्ता का भुगतान करने की आवश्यकता थी, जो उनके मासिक वेतन के 50% के बराबर था। 2020 के बिल ने इस प्रावधान को हटा दिया है। एक संसदीय पैनल ने कोड में प्रवासी कर्मचारियों पर एक अलग अध्याय पर सिफारिशें की हैं और सिफारिश की है कि हर राज्य में प्रवासी कर्मचारियों के लिए एक हेल्पलाइन होनी चाहिए।

हालांकि, इस तरह के कानून के लागू होने को सुनिश्चित करने के लिए निरीक्षण प्राधिकरण (इंस्पेक्शन अथॉरिटी) को कोड द्वारा और कमजोर कर दिया गया है। यह कोड, आई.एल.ओ. कन्वेंशन्स द्वारा परिकल्पित (इन्वीसेज) निरीक्षकों की शक्तियों के लिए प्रदान नहीं करता है, जैसे कि आर्टिकल 12 “किसी भी समय और बिना किसी पूर्व सूचना के निःशुल्क प्रवेश” आर्टिकल 16 “और जितनी बार संभव हो कानूनों के प्रभावी प्रवर्तन को सुरक्षित करने के लिए” में कहा गया है।

समाधान (सॉल्यूशंस)

इंटरस्टेट माइग्रेंट वर्कमेन (रेगुलेशन ऑफ़ एम्प्लॉयमेंट एंड कंडीशन ऑफ़ सर्विस) अधिनियम, 1979 जैसे अप्रचलित कानूनों को सख्त अनुपालन प्रक्रियाओं को छोड़कर और समान श्रम मानकों (स्टैंडर्ड) को सुनिश्चित करने, और अधिक कुशल बनाया जाना चाहिए। सरकार को प्रवासी कर्मचारी आबादी से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए एक अलग मंत्रालय के बनाने में सहायता करनी चाहिए, सरकारी निकायों के दायरे में लागू करने के द्वारा अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए। सरकार को प्रवासी कर्मचारियों के कानूनी अधिकारों की सुरक्षा के लिए सक्रिय (एक्टिव) रूप से भाग लेने वाले एन.जी.ओ. को बढ़ावा देना और सहायता प्रदान करनी चाहिए और उनके अधिकारों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए एक सक्रिय आंदोलन का निर्माण करना चाहिए, प्रवासी कर्मचारियों के शोषण को रोकने के लिए पैरवी करनी चाहिए। 

यूनेस्को और यूनिसेफ (2013) द्वारा “भारत में आंतरिक प्रवासियों के सामाजिक समावेश (इंक्लूज़न)” पर एक रिपोर्ट के अनुसार, यह बताया गया है कि भारत में आंतरिक प्रवास से संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए एक स्पष्ट और संक्षिप्त (कॉन्साइज) शासन प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है। लागू कानूनों का एक ढांचा, समर्पित संस्थान (इंस्टीट्यूशंस) जो इस तरह के कानून को उचित तरह से लागू होने को सुनिश्चित करते हैं, भारत में प्रवासी कर्मचारियों के अधिकारों का समर्थन करने और उनकी रक्षा करने वाली नीतियां भी होनी चाहिए। कर्मचारियों के शोषण को रोकने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, पी.डी.एस., मुफ्त स्वास्थ्य सेवा या स्वास्थ्य बीमा, और कर्मचारियों द्वारा अवसरों तक आसान और समान पहुंच सुनिश्चित करना। उन्हें बड़े पैमाने पर महत्वपूर्ण राज्य स्तरीय नीतियों (स्टेट लेवल पॉलिसीज) में भी एकीकृत (इंटीग्रेटेड) किया जाना चाहिए।

संदर्भ (रेफरेंसेज)

 

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