भारत में एक्सपोर्ट और इंपोर्ट से संबंधित प्रावधान

0
4464
foreign trade (development and regulation) act 1992
Image Source- https://rb.gy/obya6x

यह लेख, यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज, देहरादून के स्कूल ऑफ लॉ की छात्रा Chandana Pradeep ने लिखा है। यह लेख, भारत में निर्यात (एक्सपोर्ट) और आयात (इंपोर्ट) के प्रावधानों (प्रोविजंस) के बारे में विस्तार (डिटेल) से विश्लेषण (एनालिसिस) करता है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन)

एलेक्सिस डी टोकेविल द्वारा कहा गया है कि “व्यापार, सभी हिंसक भावनाओं का स्वाभाविक शत्रु है। व्यापार संयम (मॉडरेशन) के साथ चलता है, समझौता करने में प्रसन्न होता है, और क्रोध से बचने के लिए अधिक सावधान रहता है। यह धैर्यवान (पेशेंट), कोमल और आग्रहपूर्ण (इंसिनुएटिंग) है, और केवल पूर्ण आवश्यकता के मामलों में अत्यधिक उपायों का सहारा लेता है” और यह, व्यापार में वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात और आयात के बारे में बात करता है।

निर्यात को “वस्तुओं और सेवाओं के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो एक देश में बनाए जाते हैं और दूसरे देशों में खरीदारों को बेचे जाते हैं”, जबकि आयात को “एक देश में खरीदी गई वस्तु या सेवा, जिसे दूसरे देश में बनाया गया है” के रूप में परिभाषित किया जाता है और इन दो तत्वों को एक साथ मिलाकर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का आधार बनता है, जो वैश्वीकरण (ग्लोबलाइज़ेशन) के लिए आवश्यक है। हालाँकि ये तत्व व्यापार के लिए एक प्रमुख विशेषता हैं, लेकिन इसके पास अपनी स्वयं की कुछ बाधाएं हैं, जो इसे हटानी है। इसमें, व्यापार बाधाएं हैं या तो औपचारिक (फॉर्मल) व्यापार बाधाएं जो बाजार द्वारा बनाई गई हैं या अनौपचारिक (इनफॉर्मल) व्यापार बाधाएं, जो वस्तुओं और सेवाओं के आयात में बाधा डालने के प्रभाव के लिए बनाई गई हैं और वास्तव में ऐसा नहीं करती हैं।

भारत के विदेशी व्यापार का इतिहास

भारत के पास हमेशा से ही बहुत मात्रा में धन और प्राकृतिक संसाधन (रिसोर्सेज) रहे हैं, जो इस बात का एक प्रमुख कारण थे, कि अंग्रेजों ने भारत में अपना एक ठिकाना स्थापित किया। हालांकि राजनीतिक प्राथमिकताओं (प्रेफरेंसेज) के आधार पर कई संघर्ष थे, फिर भी भारत व्यापार के मामले में बहुत आगे बढ़ रहा था। हॉकिन्स ने भारत के बारे में बोला था कि, “भारत अपने व्यापार के कारण समृद्ध है, क्योंकि सभी देश अपने सिक्के यहां लाते हैं और बदले में भारतीय वस्तुएं ले जाते हैं। ये सिक्के भारत में गढ़े हुए हैं और उन्हें खोदा नहीं जा सकता।

दिल्ली एक प्रमुख व्यापारिक शहर था और इसके माध्यम से घरेलू व्यापार को भी बहुत महत्व दिया गया था, भारत को, सड़कों के साथ-साथ नदियों का लाभ मिला था, जो विभिन्न आकर्षण के केंद्र से जुड़े हुए थे। पूरे देश में बहुत सारे प्रमुख व्यापारिक खिलाड़ी थे और भारत के लिए आयात से अधिक संख्या निर्यात की थी। एक उदाहरण यह होगा कि कैसे, अरबों ने भूमध्य सागर (मेडिटेरेनियन सी) के रास्ते से भारतीय वस्तुएं को यूरोप में भेजा।

18वीं शताब्दी के अंत में, भारत ने अपने व्यापार में गिरावट देखी क्योंकि यह वह समय था जब अंग्रेजों ने आयात और निर्यात के लिए वस्तुओं और सेवाओं पर कर (टैक्स) लागू किया, जिससे भारत में विदेशी व्यापार क्षेत्र में भारी गिरावट आई।

1947 में जब भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली थी तब देश की जनता को किस चीज की जरूरत थी इस पर ज्यादा ध्यान नहीं था, बल्कि प्रमुख ध्यान इस पर था कि विदेशों से व्यापार कैसे बढ़ाया जाए, ताकि भारत अपनी स्थिति को विकसित राष्ट्र में बदल सके।

भारत के लगभग सभी देशों के साथ बहुत अच्छे व्यापारिक संबंध हैं, जिसने भारत को कई तरह से लाभ प्रदान किया है, लेकिन इस पूरी अवधि के दौरान, भारत ने अपने स्वयं के संसाधनों का ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाने पर ध्यान केंद्रित किया है, जो भारत के लिए, व्यापार को लेकर एक गेम-चेंजर रहा है।

निर्यात और आयात के लाभ

  • ये दो साधन विदेशी व्यापार में प्रवेश करने के सबसे आसान तरीकों में से हैं।
  • आयात और निर्यात रोजगार के बहुत से अवसर पैदा करता है।
  • विदेशी बाजार में प्रवेश करने के अन्य साधनों की तुलना में, इसमें कम समय और निवेश (इंवेस्टमेंट) के रूप में कम धन की आवश्यकता होती है।
  • जोखिम कम है।
  • क्योंकि कोई भी देश अपने दम पर पूरी तरह कार्य करने में सक्षम नहीं है इसलिए किसी देश के साथ विदेशी संबंध, आसानी से स्थापित करने के लिए निर्यात और आयात आवश्यक है।
  • आयात और निर्यात के माध्यम से, जिन देशों के पास कुछ संसाधनों तक पहुंच नहीं है, वे उन्हें प्राप्त कर सकते हैं।
  • यह व्यापार पर नियंत्रण देता है।

आयात और निर्यात के नुकसान

  • आयात और निर्यात करते समय कुल लागत बढ़ जाती है, क्योंकि अन्य मानदंड (क्राइटेरिया) सामने आते हैं जैसे पैकेजिंग या बीमा।
  • जब कोई देश आयात की अनुमति नहीं देता है, तो निर्यात नहीं किया जा सकता है।
  • डोमेस्टिक ऑर्गनाइजेशन कभी-कभी किसी भी विदेशी संगठन से बेहतर, संगठन की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं।
  • विदेशी व्यापार के लिए दस्तावेज़ीकरण प्रक्रिया (डॉक्यूमेंटेशन प्रोसेस) और लाइसेंस प्राप्त करना एक कठिन कार्य है।
  • मौजूदा ग्राहकों को बनाए रखना बेहद मुश्किल होता है।

भारत में आयात और निर्यात के लिए सामान प्रावधान

मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री और डायरेक्टरेट जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड (डी.जी.एफ.टी.) ने वर्ष 2015-2020 की विदेश व्यापार नीति (फॉरेन ट्रेड पॉलिसी) लागू की, जिसमें अध्याय (चैप्टर) 2 में आयात और निर्यात के सामान प्रावधान शामिल हैं, जो कि इस प्रकार हैं:

  1. निर्यात और आयात तब तक मुक्त हैं जब तक कि वह विनियमित (रेग्यूलेट) न हो- निर्यात और आयात मुक्त होंगे, सिवाय उन मामलों के जहां वे इस नीति या किसी अन्य कानून के प्रावधानों द्वारा विनियमित होते हैं। वस्तुओं के अनुसार निर्यात और आयात नीति को आई.टी.सी. (एच.एस.) में निर्दिष्ट (स्पेसिफाई) किया जाएगा, जिसे डायरेक्टरेट जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड द्वारा प्रकाशित (पब्लिश) और अधिसूचित (नोटिफाई)  और समय-समय पर संशोधित (अमेंड) किया जाएगा।
  2. कानूनों का पालन किया जाना चाहिए- प्रत्येक निर्यातक (एक्सपोर्टर) या आयातक (इंपोर्टर), फॉरेन ट्रेड (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) एक्ट, 1992 के प्रावधानों और उसके तहत बनाए गए नियमों और आदेशों, इस नीति के प्रावधानों और उन्हें प्रदान किए गए किसी भी लाइसेंस/प्रमाण पत्र/अनुमति के नियमों और शर्तों (टर्म्स एंड कंडीशंस), साथ ही अन्य कानून के प्रावधान जो उस समय लागू हो, का पालन करेंगे। सभी आयातित (इंपोर्टेड) वस्तुएं, घरेलू कानूनों, नियमों, आदेशों, विनियमों, तकनीकी विशिष्टताओं (स्पेसिफिकेशन), पर्यावरण और सुरक्षा मानदंडों के अधीन होंगी, जो इस देश में उत्पादित वस्तुओं पर लागू होते हैं। अनगढ़ हीरे (रफ डायमंड्स) के किसी भी आयात या निर्यात की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती, जब तक कि शिपमेंट पार्सल के साथ जेम एंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (जी.जे.ई.पी.सी.) द्वारा इसे, निर्दिष्ट प्रक्रिया के तहत आवश्यक किम्बरली प्रोसेस (के.पी.) प्रमाण पत्र न हो।
  3. प्रक्रिया (प्रोसीजर)- डी.जी.एफ.टी. उस प्रक्रिया को निर्दिष्ट करता है, जिसका पालन, निर्यातक और आयातक या किसी अन्य प्राधिकरण (अथॉरिटी) द्वारा, किसी भी अधिनियम, हैंडबुक आदि में निर्धारित किसी भी प्रक्रिया का पालन करने के लिए, किया जाना चाहिए। एक बार प्रक्रिया स्थापित होने के बाद इसे सार्वजनिक नोटिस पर प्रकाशित करना होगा, और इन प्रक्रियाओं को भी बदला जा सकता है।
  4. छूट (एक्सेंपशन) – यदि किसी वास्तविक कारण की वजह से, किसी भी प्रक्रिया में छूट की आवश्यकता होती है, तो डी.जी.एफ.टी. से अनुरोध किया जा सकता है, जो उस पर आदेश पास कर सकता है। यदि अनुरोध अध्याय 4, नीति/प्रक्रिया के प्रावधान के संबंध में हो (जेम एंड ज्वैलरी क्षेत्र से संबंधित किसी भी प्रावधान को छोड़कर), तो डी.जी.एफ.टी., सार्वजनिक हित (पब्लिक इंटरेस्ट) के लिए कुछ प्रक्रियाओं में भी छूट दे सकता है, ऐसे अनुरोध पर एडवांस लाइसेंसिंग कमेटी (ए.एल.सी.) से परामर्श (कंसल्टेशन) करने के बाद ही विचार किया जा सकता है।
  5. प्रतिबंध सिद्धांत (रिस्ट्रिक्शन प्रिंसिपल्स)- अधिसूचना के आधार पर डी.जी.एफ.टी. किसी भी निर्णय को लागू कर सकता है जो निम्नलिखित के लिए जरूरी हो:
    1. सार्वजनिक नैतिकता की सुरक्षा,
    2. मानव, पशु, या पौधे के जीवन या स्वास्थ्य की सुरक्षा,
    3. पेटेंट, ट्रेडमार्क और कॉपीराइट की सुरक्षा और भ्रामक प्रथाओं का रोकथाम (प्रिवेंशन),
    4. जेल श्रम (प्रिसन लेबर) के उपयोग की रोकथाम, 
    5. कलात्मक (आर्टिस्टिक), ऐतिहासिक या पुरातात्विक (आर्कियोलॉजिकल) मूल्य के राष्ट्रीय खजाने की सुरक्षा,
    6. एग्जॉस्टिबल प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण (कंजर्वेशन)
    7. विखंडनीय सामग्री (फिशनेबल मटेरियल) या सामग्री जिससे वे प्राप्त होते हैं, के व्यापार का संरक्षण
    8. हथियारों, गोला-बारूद और युद्ध के उपकरणों में ट्रैफिक की रोकथाम।
  6. वस्तुएं जो प्रतिबंधित (रिस्ट्रिक्टेड) हैं- कोई भी वस्तुएं जो प्रतिबंधित है, उन्हे केवल तभी आयात और निर्यात किया जा सकता है, जब उसके लिए लाइसेंस हो और इस संबंध में एक सार्वजनिक नोटिस भी जारी किया जाना चाहिए।
  7. नियम और शर्तें- कुछ नियम और शर्तें हैं जिन्हें लाइसेंस या प्रमाण पत्र प्राप्त करते समय प्रस्तुत करना होता है, उनमें शामिल हैं
  1. वस्तुओं की मात्रा, विवरण और मूल्य 
  2. वास्तविक उपयोगकर्ता शर्त (एक्चुअल यूजर कंडीशन) 
  3. निर्यात दायित्व (ऑब्लिगेशन)
  4. प्राप्त किया जाने वाला वैल्यू एडिशन
  5. न्यूनतम निर्यात मूल्य (मिनिमम एक्सपोर्ट प्राईस)।
  1. जुर्माना- यदि कोई लाइसेंस/प्रमाण पत्र/ अनुमति धारक, लाइसेंस/प्रमाण पत्र/ अनुमति की किसी भी शर्त का उल्लंघन करता है या निर्यात दायित्व को पूरा करने में विफल रहता है, तो वह अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों और आदेशों, नीति और उस समय लागू किसी और कानून के अनुसार कार्रवाई के लिए उत्तरदायी (लायबल) होगा।
  2. लाइसेंस आदि प्राप्त करने की अनुमति- कोई भी व्यक्ति लाइसेंस/प्रमाणपत्र/अनुमति का दावा अधिकार के रूप में नहीं कर सकता है और डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड या लाइसेंसिंग अथॉरिटी के पास, अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों के प्रावधानों के साथ, लाइसेंस/प्रमाणपत्र/अनुमति देने या उसे दोबारा बनाने से इनकार करने की शक्ति होती है। 
  3. निर्यात के आधार पर आयात- नए या पुराने पूंजीगत वस्तुएं (कैपिटल गुड्स), उपकरण (इक्विपमेंट्स), घटक (कंपोनेंट), पुर्जे और सहायक उपकरण, निर्यात के लिए वस्तुओं की पैकिंग के लिए कंटेनर, जिग्स, फिक्स्चर, डाई और मोल्ड, बिना लाइसेंस/प्रमाणपत्र/अनुमति के निर्यात के लिए आयात की जा सकती हैं और यह, सीमा शुल्क अधिकारियों के साथ कानूनी उपक्रम (लीगल अंडरटेकिंग)/ बैंक गारंटी के निष्पादन (एग्जिक्यूशन) पर किया जा सकता है लेकिन इस शर्त के साथ, कि वह आइटम बिना किसी शर्त/लाइसेंस/अनुमति की आवश्यकता के बिना स्वतंत्र रूप से निर्यात योग्य हो, जैसा कि आईटीसी (एचएस) अनुसूची (शेड्यूल) II के तहत आवश्यक हो सकता है।

भारत में आयात के लिए उठाए गए कदम

आई.ई.सी.

निर्यात करने से पहले, आई.ई.सी. (आयात निर्यात कोड) प्राप्त करना एक महत्वपूर्ण कदम है, जो डी.जी.एफ.टी. से जारी किया जाता है। यह कोड, पैन पर आधारित एक पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) है जिसकी आजीवन वैधता है। इसका उपयोग सीमा शुल्क को हटाने, विदेशी धन प्राप्त करने, आदि के लिए किया जाता है। इस कोड को प्राप्त करने की प्रक्रिया में लगभग 15 दिन लगते हैं।

सुनिश्चित करें कि सभी कानूनों का पालन किया गया हैं

आयात निर्यात कोड जारी होने के बाद, कस्टम्स एक्ट (1962) की धारा 11, फॉरेन ट्रेड (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) एक्ट (1992) और विशेष वर्ष की विदेश व्यापार नीति का पालन करना होगा।

आयात लाइसेंस

यह निर्धारित करने के लिए कि क्या किसी विशेष वाणिज्यिक (कमर्शियल) उत्पाद या सेवा को आयात करने के लिए लाइसेंस की आवश्यकता है, एक आयातक को कोडिंग या आई.टी.सी. (एच.एस.) वर्गीकरण (क्लासिफिकेशन) की एक सामंजस्यपूर्ण प्रणाली (हार्मोनाइज्ड सिस्टम) के आधार पर अपने भारतीय व्यापार स्पष्टीकरण (क्लेरिफिकेशन) की पहचान करके पहले वस्तु को वर्गीकृत करना होगा। दो प्रकार के आयात लाइसेंस जारी किए जाते हैं और वे वस्तु लाइसेंस और विशिष्ट लाइसेंस होते हैं। यह लाइसेंस पूंजीगत वस्तुओं के मामले में 24 महीने और कच्ची वस्तुओं के लिए 18 महीने के लिए वैध है।

दस्तावेज़ीकरण प्रक्रिया को पूरा करना

कस्टम्स एक्ट की धारा 46 के तहत, आयातकों को प्रवेश के बिल के साथ अपना पर्सनल आइडेंटिफिकेशन नंबर (पैन) आधारित बिजनेस आइडेंटिफिकेशन नंबर (बी.आई.एन.) प्राप्त करना आवश्यक है।

आयात शुल्क (इंपोर्ट ड्यूटीज)

कस्टम्स टैरिफ एक्ट, 1975 की अनुसूची 1, उन शुल्को की सूची है, जो आयातित वस्तुओं के लिए लगाए गए वस्तुओं पर लगाए गए हैं, एक एकीकृत वस्तुएं और सेवा कर (इंटीग्रेटेड गुड्स एंड सर्विस टैक्स) भी होता है जो कि आई.जी.एस.टी. एक्ट 2017, की धारा 5 के अनुसार लगाया गया है। 

भारत में निर्यात करने की प्रक्रिया

भारत में निर्यात करने की प्रक्रिया, आयात के लगभग समान है, जो एक आयात और निर्यात कोड प्राप्त करना है, यह सुनिश्चित करना कि सभी कानूनों का पालन किया गया है, और यदि आवश्यक हो तो एक निर्यात लाइसेंस प्राप्त करना है।

निर्यातकों को इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स (आई.सी.सी.) के साथ पंजीकरण करने की भी आवश्यकता होती है, जो मूल के गैर-अधिमान्य प्रमाण पत्र (नॉन प्रेफरेंशियल सर्टिफिकेट) जारी करेगा, जो यह बताएगा कि आयात की जाने वाली वस्तुएं भारत में उत्पन्न हुई हैं। 

2021 में भारत की विदेशी नीति में बदलाव

12 जनवरी, 2020 को मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने कहा कि नई विदेश नीति (2021-2026) अप्रैल, 2021 से लागू होगी। नई नीति जो 1 अप्रैल से पांच साल के लिए लागू होगी, का उद्देश्य भारत को 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था (इकोनॉमी) बनाने के लक्ष्य के साथ रोजगार और विकास के लिए व्यापार और सेवाओं के निर्यात के माध्यम से प्राप्त तालमेल को चैनलाइज करना होगा।

जिला निर्यात हब की पहल नई नीति का एक प्रमुख हिस्सा है जो बहुत जल्द प्रभावी होगी। इस पहल का मकसद, जिलों को एक्सपोर्ट हब बनाने पर ध्यान केंद्रित करना है। इनमें से एक फोकस विदेशी और देश की बाधाओं को व्यवस्थित रूप से संबोधित (एड्रेस) करके भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने पर भी है जो लेनदेन लागत को कम करने और व्यापार करने में आसानी को बढ़ाने के लिए नियामक (रेगुलेटरी), नीति और परिचालन ढांचे (ऑपरेशनल फ्रेमवर्क) से संबंधित हैं। यह कुशल उपयोगिता (यूटिलिटी) और लॉजिस्टिक इन्फ्रास्ट्रक्चर की मदद से कम लागत वाला परिचालन वातावरण भी बनाएगा।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

वर्तमान महामारी के साथ, भारत को बहुत सावधानी से आगे बढ़ना है, यदि उसे व्यापार के प्रमुख खिलाड़ियों में से एक के रूप में उभरना है, और ऐसा करने का सबसे आसान तरीका व्यापार है, जिसमें निर्यात और आयात शामिल हैं। भारत को खुद को स्थापित करने के लिए बहुत सारी बाधाओं का सामना करना पड़ेगा लेकिन अगर उसके अनुसार योजना बनाई जाए और विभिन्न प्रावधानों को स्थापित करके, यह धीरे-धीरे उभर कर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।

संदर्भ (रेफरेंसेज)

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here