यह लेख Kanika Aggarwal द्वारा लिखा गया है, जो लॉसिखो से एडवांस्ड कॉन्ट्रैक्ट ड्राफ्टिंग, नेगोशिएशन और डिस्प्यूट रेजोल्यूशन में डिप्लोमा कर रही हैं। इस लेख में इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट के तहत रेटिफिकेशन के सिद्धांत के बारे में बताया गया है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।
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परिचय (इंट्रोडक्शन)
अनुसमर्थन (रेटिफिकेशन) का सिद्धांत (डॉक्ट्रिन) इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 (भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872) के तहत एक महत्वपूर्ण अवधारणा (कंसेप्ट) है और इसे एक्ट के तहत कानूनी कहावत (लीगल मैक्सिम) और धारा 196 से 200 के माध्यम से समझाया गया है।
अर्थ
अनुसमर्थन का मूल अर्थ “किसी निर्णय पर मतदान का कार्य या इसे आधिकारिक बनाने के लिए एक लिखित समझौते पर हस्ताक्षर करना” है।
अनुसमर्थन का कानूनी अर्थ है “एक एक्ट के लिए सहमति जो पहले ही निष्पादित (परफॉर्म) की जा चुकी है”।
कानूनी मैक्सिम
लैटिन कहावत “ओम्निस रतिहाबिटियो रेट्रोराहिटुर एट मैंडाटो प्रायरी एइक्विपरैटुर”, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक अनुसमर्थन को वापस खींच लिया जाता है और एक कमांड या पिछले प्राधिकरण (प्रीवियस अथॉरिटी) के बराबर माना जाता है। सरल शब्दों में, इसका अर्थ यह है कि अनुसमर्थन का सिद्धांत तस्वीर में तब आता है यदि किसी व्यक्ति ने किसी “अन्य व्यक्ति” की ओर से बिना किसी अधिकार, ज्ञान या सहमति के कुछ किया है, तो यदि ऐसा “अन्य व्यक्ति” उसकी पुष्टि करता है, तो वही परिणाम आएगा मानो यह काम उसने खुद किया हो।
इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट के तहत अनुसमर्थन
इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट , 1872 की धारा 196 के अनुसार, एक व्यक्ति दूसरे के कार्य की पुष्टि (रेटीफाई) या अस्वीकार (डिसओन) करने का चुनाव कर सकता है, जब ऐसा कोई अन्य व्यक्ति उसके अधिकार, ज्ञान या सहमति के बिना उसकी ओर से कोई कार्य करता है।
उदाहरण के लिए – “A” बिना किसी अधिकार के “C” को क्रेडिट पर “B” का सामान बेचता है। फिर ऐसे मामले में, “B” इसकी पुष्टि कर सकता है या इसकी पुष्टि न करके लेनदेन को रद्द कर सकता है।
इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 की धारा 197 के अनुसार, उस व्यक्ति की ओर से अनुसमर्थन या तो व्यक्त (एक्सप्रेस) या निहित(इंप्लाई) किया जा सकता है जो लेनदेन की पुष्टि या अस्वीकार करने के विकल्प के चुनाव की स्थिति में है।
उदाहरण के लिए –
- “A” “B” से “C” को ब्याज पर पैसा उधार देता है। फिर ऐसे मामले में, यदि “B” “C” से ब्याज स्वीकार करता है। यह इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 के तहत निहित अनुसमर्थन(इंप्लाइड रेटिफिकेशन) है।
- “A” बिना किसी अधिकार के “C” को क्रेडिट पर “B” का सामान बेचता है। फिर ऐसी स्थिति में “B” एक महीने के बाद “C” से पैसे स्वीकार करता है। यह इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 के तहत अनुसमर्थन व्यक्त (एक्सप्रेस रेटिफिकेशन) किया गया है।
इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 की धारा 198 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के कार्य की पुष्टि कर रहा है, तो ऐसे व्यक्ति को तथ्यों का पूरा ज्ञान होना चाहिए। अनुसमर्थन को अमान्य माना जाता है यदि कोई व्यक्ति मामले के तथ्यों के बारे में पूरा जाने बिना ही एक्ट की पुष्टि कर देता है।
उदाहरण के लिए – “A” बिना किसी अधिकार के “C” को क्रेडिट पर “B” का सामान बेचता है और “A” भौतिक तथ्य (मैटेरियल फैक्ट) प्रदान नहीं करता है कि सामान किस कीमत पर बेचा गया है, तो “B” द्वारा लेनदेन का अनुसमर्थन अमान्य होगा।
इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 की धारा 199 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति लेन-देन के किसी अन्य व्यक्ति के एक काम (सिंगल एक्ट) की पुष्टि कर रहा है, तो इस तरह के अनुसमर्थन को पूरे लेनदेन के लिए माना जाएगा न केवल एक काम के लिए।
इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 के धारा 200 के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति की ओर से बिना किसी अधिकार, ज्ञान या सहमति के किया गया कोई भी कार्य किसी तीसरे व्यक्ति को नुकसान या किसी तीसरे व्यक्ति के किसी अधिकार या हित को समाप्त करता है और यदि वही काम अधिकार के साथ किया जाता है तो इसका प्रभाव, अनुसमर्थन द्वारा इसे प्रभाव में नही लाया जा सकता है।
ऐतिहासिक निर्णयों के माध्यम से अनुसमर्थन के सिद्धांत का विकास
इरादा और अनुसमर्थन (इंटेंशन एंड रेटिफिकेशन)
एक मामले में पी.सी. ने माना कि बिना इरादे के कोई अनुसमर्थन नहीं किया जा सकता है और इसकी अवैधता की जानकारी के बिना किसी भी गैर-कानूनी या गैर-नियमित (नॉन-रेगुलर) काम की पुष्टि करने का कोई इरादा नहीं किया जा सकता है।
इसमें कहा गया था कि अनुसमर्थन के सिद्धांत द्वारा मालिक को बाध्य (बाइंड) करने के लिए यह दिखाया जाना चाहिए कि अनुसमर्थन उसके द्वारा लेनदेन से जुड़े सभी प्रासंगिक तथ्यों के पूर्ण ज्ञान (एब्सोल्यूट नॉलेज ऑफ़ ऑल रिलेवेंट फैक्ट्स) के साथ किया गया है।
एक्ट के लिए अनुसमर्थन जो प्रकृति में कानूनी नहीं है (रेटिफिकेशन फॉर एक्स विच इज नॉट लीगल इन नेचर)
एक मामले में यह माना गया था कि यदि कोई अनुबंध किया जाता है जो प्रकृति में गैर-कानूनी था, और जब ऐसा करना कानूनी रूप से संभव नहीं था, तो इसे लागू नहीं किया जा सकता है यदि वह कानूनी रूप से उसी अनुबंध को पूरा करना संभव हो गया है।
इसी तरह, यह माना गया कि ऐसे लेनदेन के लिए अनुसमर्थन और लेनदेन की स्वीकृति नहीं की जा सकती है जो शून्य (वॉयड) या अवैध (इललीगल) है।
लोक सेवकों के कामों के लिए अनुसमर्थन (रेटिफिकेशन फॉर एक्ट्स ऑफ़ पब्लिक सर्वेंट्स)
वह काम जो सरकारी अधिकारियों द्वारा किए जाते है उनकी पुष्टि उसी तरह की जा सकती है जैसे निजी लेनदेन (प्राइवेट ट्रांजैक्शंस), साधारण घोषणाओं (सिंपल डिक्लेरेशन) या आचरण द्वारा, लेकिन उस अधिकारी को वह काम उसके कर्तव्य के अनुसार ही काम करना चाहिए। निजी (प्राइवेट) एजेंटों और सरकारी अधिकारियों के बीच केवल एक अंतर है, जिसे प्रिंसिपल या निजी एजेंट के मालिक के रूप में संदर्भित किया जाता है, वह अपने एजेंट को स्पष्ट रूप से दी गई शक्ति के लिए उत्तरदायी होता है, जबकि राज्य केवल उस शक्ति के लिए उत्तरदायी होगा जो वास्तव में अपने अधिकारियों को दिया हो।
नाबालिग द्वारा अनुसमर्थन (रेटिफिकेशन बाई माइनर)
एक मामले में यह माना गया कि 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति ने रुपये के 30000 का ऋण के लिए एक साहूकार (मनी लेंडर) को अपना घर गिरवी पे दे दिया। गिरवी रखने के बाद प्राप्त ऋण की असल में 30000 रूपए से कम थी। वादी (पेटीशनर) ने कहा कि, जब उसने अपना घर गिरवी रखा था, तब उसकी आयु 18 वर्ष से कम थी, इसलिए साहूकार के साथ अनुबंध कॉन्ट्रैक्ट शून्य था। यह माना गया कि 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के साथ कॉन्ट्रैक्ट शून्य है। आगे, स्पष्ट किया कि 18 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति अभिभावक (गार्डियन) या किसी अन्य एजेंट के माध्यम से कॉन्ट्रैक्ट में प्रवेश नहीं कर सकता है क्योंकि यह एक शून्य अनुबंध होगा और यह 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति द्वारा अनुसमर्थन के लिए सक्षम नहीं है।
अनुसमर्थन का संचार (कम्युनिकेशन ऑफ़ रेटिफिकेशन)
किसी अन्य पक्ष को अनुसमर्थन का संचार आवश्यक है या कॉन्ट्रैक्ट यदि अनुसमर्थित किया जाता है तो बाद के लेन-देन द्वारा लीगल दिखाया जा सकता है।
एक मामले में, एक व्यक्ति द्वारा बालिक उम्र प्राप्त करने पर ऋणग्रस्तता का एक प्रमाण पत्र (सर्टिफिकेट ऑफ़ इंडेब्टनेस) दिया गया था, जो उसके द्वारा अपने नाबालिक उम्र में दिए गए ऋण के एक अन्य प्रमाण पत्र के नवीनीकरण (रिन्यूअल) के रूप में नकद के विचार में उधार लिया गया था। इस मामले में यह माना गया की, क्योंकि ऋणी के प्रमाण पत्र के लिए विचार केवल बालिक होने का सबूत भर है, इसीलिए सर्टिफिकेट ऑफ़ इंडेब्टनेस लागू करने योग्य नहीं होगा।
प्रिंसिपल या मालिक की मृत्यु के बाद अनुसमर्थन (रेटिफिकेशन आफ्टर ऑनर ऑर प्रिंसिपल डेथ)
ज्यादातर, यह देखा जा रहा है कि यदि मालिक या प्रिंसिपल के लिखित अधिकार के तहत काम करने वाला कोई एजेंट मालिक या प्रिंसिपल की मृत्यु होने पर खुद को एजेंट के रूप में बाहर रखता है और यदि व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसकी कार्रवाई को औपचारिक रूप (फॉर्मलाइज) देने में सक्षम है, तो एजेंट अधिकार की सीमाओं के अंदर काम करने वाला माना जाना चाहिए, जिसे वह वैधता के साथ अगले मालिकों के एजेंट के रूप में रखता है।
सिद्धांत का विश्लेषण (क्रिटिकल एनालिसिस ऑफ़ द डॉक्ट्रिन)
एजेंसी के कानून में विश्वास का एक बोहोत महत्वपूर्ण किरदार है और सिद्धांत के कोण (एंगल ऑफ़ थ्योरी) से कुछ हद तक खराब है। इस सिद्धांत में एक ऐसा कार्रवाई शामिल है, जिससे एजेंट एक बार अनधिकृत (अनअथोराइज्ड) काम करता है, तो प्रिंसिपल या मालिक निश्चित हो जाता है। एक बार सहयोगी एजेंट की अनधिकृत काम के वास्तविक तथ्य की जानकारी होने पर प्रिंसिपल या मालिकों को वास्तविक प्राधिकरण (एक्चुअल अथॉरिटी) के कानूनी परिणाम बनाने में सक्षम बनाता है। यह विश्वास प्रिंसिपल या मालिक या अन्य पार्टियों के लिए शिक्षाप्रद परिस्थितियों (इंस्ट्रक्टिव सर्कमस्टेंस) में मदद करता है, जो पहले अनिश्चित या अस्पष्ट थे। एक उदाहरण के रूप में, पुष्टिकरण (कन्फर्मेशन) एक चौथे पक्ष को आश्वस्त (रीएश्योर) करने का काम कर सकता है जो प्रिंसिपल या मालिक और इस तरह तीसरे पक्ष के बीच कॉन्ट्रैक्ट की प्रवर्तनीयता (इंफोर्सीएबिलिटी ऑफ़ कॉन्ट्रैक्ट) के लिए प्रतिबद्ध (कमिटेड) है।
यह सिद्धांत दो बुनियादी विचारों की कभी-कभी-विरोधी मांगों के बीच एक ट्रेड-ऑफ़ को दर्शाती है। एक ओर, पुष्टि के रूप में प्रभावी होने के लिए, प्रिंसिपल या मालिक के कार्य को प्रिंसिपल या मालिक की सहमति को प्रतिबिंबित करना चाहिए, वास्तविक प्राधिकरण के निर्माण के तहत प्रिंसिपल या मालिक द्वारा सहमति को संजोना चाहिए। दूसरी ओर, तीसरे पक्ष के लिए निष्पक्षता के विचार चाहते हैं कि पुष्टि विश्वास एक साथ एक प्रिंसिपल या मालिक की शक्ति की सीमा को तीसरे पक्ष को बाध्य करने के लिए बाध्य करता है, एक बार सहयोगी एजेंट की अनधिकृत (अनअथोराइज्ड) कार्रवाई के वास्तविक तथ्य, प्रिंसिपल या नहीं से अलग मालिक सुनिश्चित करने के लिए सहमत हैं।
निष्कर्ष (कंक्लूज़न)
ए.एन. के फिलासफी के अनुसार, एजेंट अधिकार से बाहर कुछ कार्य कर सकता है लेकिन वास्तविक शक्ति केवल मालिक या प्रिंसिपल के पास निहित होती है क्योंकि उसके पास समान को स्वीकृत या अस्वीकृत करने की शक्ति होती है। यदि एक्ट स्वीकृत किया जाता है तो इसे प्रिंसिपल या मालिक की अनुमति से एक्ट के परिणाम के रूप में माना जाएगा। यदि नहीं, तो कॉन्ट्रैक्ट अपनी वैधता खो देगा।
हालांकि, प्रिंसिपल या मालिक को कुछ सीमाओं के द्वारा सुनिश्चित करना होता हैं। इसी तरह, यदि मालिक या प्रिंसिपल ने अपना अधिकार नहीं दिया है, तो वह अभी भी तीसरे पक्ष के साथ एजेंट द्वारा किए गए अनुबंधों के लिए निश्चित होगा, क्योंकि प्रिंसिपल या मालिक निश्चित रूप से अंतराल पर एजेंटों के कामों द्वारा समान है जैसे की वह काम केवल उसके द्वारा किया गया था। प्रिंसिपल या मालिक एजेंट द्वारा की गई धोखाधड़ी या टोटकों (टॉर्ट्स) के लिए लायबल है, क्योंकि वह प्रिंसिपल या मालिक के लिए व्यवसाय के दौरान अंतराल पर काम कर रहा था।