डाउरी को प्रोहिबिट करने के लिए भारत में कानून

2
1838
Dowry Prohibition Act
Image Source- https://rb.gy/pzkwbm

इस ब्लॉगपोस्ट में, एमिटी लॉ स्कूल, लखनऊ की छात्रा Sonal Srivastava, डाउरी क्या है, डाउरी के मामले में अपराधी कौन है, डाउरी कानूनों को प्रोहिबिट करने के लिए भारत में कानून और उनके दुरुपयोग के बारे में भी बताती है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

“डाउरी” एक ऐसा शब्द है जो भारतीय घरों में बहुत प्रचलित (प्रीवेलेंट) और आम है। यह एक ऐसी प्रथा है जो भारतीय समाज के लिए एक परजीवी (पैरासाइट) बन गई है और जिसने विवाह की सुंदर संस्था (इंस्टीट्यूट) को नष्ट कर दिया है। यह कोई नई प्रथा नहीं है बल्कि सदियों से चलती आ रही है और इसका प्रभाव भारतीय समाज में ऐसा है कि इसे कम करने के प्रयास तो किए जा सकते हैं, लेकिन इसे पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता है। डाउरी की प्रथा को प्रोहिबिट करने के लिए कई कानून बनाए गए हैं, लेकिन कानूनी शिकंजे (क्लचेस) डाउरी की प्रथा के दायरे से कमजोर हैं। इसके अलावा, यह लेख डाउरी प्रथा के सामाजिक और कानूनी परिणामों के साथ-साथ इसके अन्य विभिन्न पहलुओं की गणना (एनुमिरेट) करेगा।

डाउरी क्या है?

डाउरी प्रोहिबिशन एक्ट, 1961 की धारा 2 के अनुसार, “डाउरी” शब्द का अर्थ है प्रत्यक्ष (डायरेक्ट) या अप्रत्यक्ष (इनडायरेक्ट) रूप से दी गई या देने के लिए सहमति दी गई कोई भी संपत्ति या मूल्यवान सुरक्षा (सिक्यॉरिटी) है।

  1. विवाह के एक पक्ष द्वारा विवाह के दूसरे पक्ष को, या
  2. शादी के किसी भी पक्ष के माता-पिता के द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा, शादी के किसी भी पक्ष को या किसी अन्य व्यक्ति को, (या शादी के बाद कभी भी) (उक्त पक्षों के विवाह के संबंध में), लेकिन इसमें डावर या महर शामिल नहीं है, जिन व्यक्तियों के मामले में  मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) है ।

अर्जुन धोंडीबा कांबले बनाम महाराष्ट्र स्टेट में, कोर्ट ने माना कि, “डाउरी”, डाउरी प्रोहिबिशन एक्ट द्वारा विचारित (कंटेंप्लेटेड) अभिव्यक्ति (एक्सप्रेशन) के अर्थ में, मूल्यवान सुरक्षा और संपत्ति की मांग है, जिसका विवाह के साथ एक अटूट संबंध है, अर्थात, यह वधू के माता-पिता या रिश्तेदारों की ओर से दूल्हे या उसके माता-पिता और/या गार्जियन की ओर से होने वाली दुल्हन की शादी के समझौते (एग्रीमेंट) के लिए एक प्रतिफल (कंसीडरेशन) है। लेकिन जहां संपत्ति या मूल्यवान सुरक्षा की मांग का विवाह के प्रतिफल से कोई संबंध नहीं है, वहां यह डाउरी की मांग नहीं मानी जाएगी।

राजीव बनाम राम किशन जायसवाल में, कोर्ट ने माना कि दुल्हन के माता-पिता द्वारा दी गई कोई भी संपत्ति शादी के प्रतिफल में नहीं होनी चाहिए, यह शादी के संबंध में भी हो सकती है और यह डाउरी होगी।

कानून के तहत अपराधी कौन होगा?

डाउरी प्रिवेंशन एक्ट, 1961 की धारा 3 के अनुसार डाउरी लेना और देना दोनों ही अपराध है। दूल्हे का परिवार डाउरी लेने के लिए उत्तरदायी होगा और दुल्हन का परिवार डाउरी देने के लिए सहमति देने के लिए उत्तरदायी होगा।

डाउरी को प्रोहिबिट करने के लिए भारत में कानून

डाउरी प्रोहिबिशन एक्ट, 1961

  • डाउरी देने और लेने के लिए दंड (धारा 3) 

धारा 3 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति एक्ट के प्रारंभ होने के बाद डाउरी देता है या लेता है, या डाउरी देने या लेने के लिए उकसाता (अबेट) है तो उसे कम से कम 5 साल के कारावास और जुर्माने से जो 15 हजार रुपये से कम नहीं होगा या डाउरी के मूल्य की राशि, जो भी अधिक हो, उससे दंडित किया जाएगा

  • डाउरी मांगने पर जुर्माना (धारा 4) 

धारा 4 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वर या वधू के माता-पिता, रिश्तेदारों या गार्जियंस से डाउरी की मांग करता है, तो उसे कम से कम 6 महीने की कारावास होगी जिसे 2 साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना जो 10 हजार रुपये तक हो सकता है, से दंडित किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने पांडुरंग शिवराम कवथकर बनाम महाराष्ट्र स्टेट में कहा है कि शादी से पहले डाउरी की मांग करना अपराध है।

भूरा सिंह बनाम उत्तर प्रदेश स्टेट में, कोर्ट ने माना कि मृतक ने अपने ससुराल वालों द्वारा आग लगाने से पहले अपने पिता को एक पत्र लिखा था कि डाउरी की मांग पूरी न होने पर उसके साथ बुरा व्यवहार किया जा रहा है, उसे परेशान किया जा रहा है और गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी जा रही है। इस प्रकार, धारा 4 के तहत डाउरी मांगने का अपराध किया गया था।

  • एडवरटाइजमेंट पर बैन (धारा 4-A) 

धारा 4-A के अनुसार, किसी भी समाचार पत्र, पत्रिका या किसी अन्य माध्यम से एडवरटाइजमेंट या शादी के प्रतिफल के लिए किसी भी व्यक्ति का संपत्ति, व्यवसाय, धन आदि में हिस्सा होना, तो उस व्यक्ति को कारावास से दंडित किया जाएगा जो कम से कम 6 महीने की होगी और जिसे 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना जो 15 हजार रुपये तक हो सकता है।

  • अपराध का कॉग्निजेंस

धारा 7 के अनुसार, मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट या फर्स्ट क्लास के ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के पद से नीचे के न्यायाधीश इस एक्ट के तहत अपराध को ट्राई नहीं करेंगे। कोर्ट अपराध का कॉग्निजेंस केवल पीड़ित, माता-पिता या पीड़ित के रिश्तेदार, पुलिस रिपोर्ट या अपराध के तथ्यों की जानकारी के आधार पर ही दर्ज करेगा।

धारा 8 के अनुसार इस एक्ट के तहत कुछ अपराध कॉग्निजेबल, नॉन-बेलेबल और नॉन-कंपाउंडेबल है।

इंडियन पीनल कोड,1860

  • डाउरी डेथ (धारा 304B)

धारा 304B इस प्रकार है-

  1. जहां किसी महिला की मृत्यु किसी जलने या शारीरिक चोट के कारण हुई हो या उसकी शादी के 7 साल के भीतर सामान्य परिस्थितियों से अलग होती है और यह दिखाया जाता है कि उसकी मृत्यु से ठीक पहले उसके पति या उसके पति के किसी रिश्तेदार द्वारा क्रूरता या उत्पीड़न (हैरेसमेंट) किया गया था जो डाउरी की किसी भी मांग के संबंध में था, तो ऐसी मृत्यु को “डाउरी डेथ” कहा जाएगा और ऐसे पति या रिश्तेदारों को उसकी मृत्यु के लिए जिम्मेदार माना जाएगा।

स्पष्टीकरण (एक्सप्लेनेशन)- इस उप-धारा (सब-सेक्शन) के उद्देश्यो के लिए, “डाउरी” का वही अर्थ होगा जो डाउरी प्रोहिबिशन एक्ट, 1961 की धारा 2 में है।

2. जो कोई भी डाउरी डेथ करेगा, उसे कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसकी अवधि 7 वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।

वेमुरी वेंकटेश्वर राव बनाम आंध्र प्रदेश स्टेट में, कोर्ट ने धारा 304B के तहत अपराध स्थापित (एस्टेब्लिश) करने के लिए निम्नलिखित दिशानिर्देश (गाइडलाइंस) निर्धारित (लेड डाउन) किए हैं और वे हैं-

  1. कि आरोपी द्वारा डाउरी की मांग की गई थीऔर उत्पीड़न किया गया था।
  2. कि मृतक मर गया था,
  3. कि मौत अप्राकृतिक (अननेचरल) परिस्थितियों में हुई थी। चूंकि शादी के 7 साल के भीतर डाउरी की मांग की गई थी और उत्पीड़न किया गया था और मौत हो गई थी, अन्य चीजें स्वत: (ऑटोमेटिकली) पालन करती हैं और धारा 304B  के तहत अपराध साबित होता हैं।
  • पति या पति के रिश्तेदार द्वारा महिलाओं पर क्रूरता (धारा 498A) 

धारा 498A इस प्रकार है-

  1. किसी महिला के पति या पति के रिश्तेदार द्वारा उसके साथ क्रूरता करना- जो कोई भी, किसी महिला के पति या पति के रिश्तेदार होते हुए, ऐसी महिला के साथ क्रूरता करेगा, उसे कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है और वह जुर्माना के लिए उत्तरदायी हो।

स्पष्टीकरण- इस धारा के उद्देश्य के लिए “क्रूरता” का अर्थ है-

  1. कोई भी जानबूझकर किया गया आचरण (कंडक्ट) जो इस तरह की प्रकृति का है, जो महिला को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करे या महिला के जीवन, अंग या स्वास्थ्य (चाहे मानसिक या शारीरिक) के लिए गंभीर चोट या खतरा हो, या
  2. महिला का उत्पीड़न, जहां इस तरह का उत्पीड़न उसे या उससे संबंधित किसी व्यक्ति को किसी संपत्ति या मूल्यवान सुरक्षा की किसी भी गैरकानूनी मांग को पूरा करने के लिए मजबूर करने की दृष्टि (व्यू) से है या ऐसी मांग को पूरा करने में उसके या उससे संबंधित किसी भी व्यक्ति द्वारा विफलता के कारण है।

भूरा सिंह बनाम स्टेट में, यह माना गया कि पति और ससुराल वालों ने अपर्याप्त (इनसफिशिएंट) डाउरी लाने के लिए पत्नी के साथ क्रूरता की और अंत में उसे जला दिया, जिससे इंडियन पीनल कोड की धारा 498A के तहत किए गए अपराध के लिए 3 साल के कठोर कारावास की सजा और 500 रुपये का जुर्माना लगाया गया। 

इंडियन एविडेंस एक्ट, 1872

  • डाउरी डेथ के बारे में अनुमान (प्रिजंपशन एस टू डाउरी डेथ) (धारा 113B) 

धारा 113B इस प्रकार है-

जब प्रश्न यह है कि क्या किसी व्यक्ति ने किसी महिला की डाउरी डेथ की है और यह दिखाया गया है कि उसकी मृत्यु से कुछ समय पहले ऐसी महिला को ऐसे व्यक्ति द्वारा डाउरी की किसी मांग के लिए या उसके संबंध में क्रूरता या उत्पीड़न का शिकार किया गया था, तो कोर्ट मान लेता है कि ऐसा व्यक्ति डाउरी डेथ का कारण बना है।

स्पष्टीकरण- इस धारा के उद्देश्य के लिए “डाउरी डेथ” का वही अर्थ होगा जो इंडियन पीनल कोड (1860 का 45) की धारा 304B में है।

डाउरी की सामाजिक बुराइयां (सोशल एविल्स ऑफ डाउरी)

डाउरी की प्रथा के समाज पर कई दुष्परिणाम (इल-इफेक्ट्स) हुए हैं और विवाह की सुंदर संस्था को विवाह के बदले में पैसे और मूल्यवान संपत्ति देने और लेने के कॉन्ट्रैक्ट के रूप में नष्ट कर दिया है। कुछ सामाजिक बुराइयाँ जो डाउरी प्रथा अपने साथ लाती हैं-

  • फीमेल फिटीसाइड)

आज भी, जब फीमेल फिटीसाइड पर रोक लगाने के लिए बहुत सारे कानून हैं, फिर भी उसके आंकड़े (स्टेटिस्टिक्स) उम्मीदों से कहीं अधिक हैं। इस प्रथा के पीछे सबसे बड़ा कारण यह विचार है कि यदि एक कन्या का जन्म होता है तो वह अपने माता-पिता के खजाने पर बोझ बन जाएगी क्योंकि उसकी शादी में बहुत अधिक खर्चा करना पड़ेगा। इसलिए, लोग समस्या की जड़ को मिटाना बेहतर समझते हैं और वो है “महिला बच्चा”।

  • युवा लड़कियों द्वारा आत्महत्या

कई बार जब माता-पिता अपनी बेटियों की शादी डाउरी के कारण नहीं कर पाते हैं, तो इससे परिवार को प्रताड़ित किया जाता है जिससे युवा लड़कियों को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित किया जाता है ताकि उनके परिवारों के मानसिक उत्पीड़न को समाप्त किया जा सके।

  • लड़कियों को शिक्षा प्रदान ना करना (अनेज्युकेशन टू गर्ल्स)

कई परिवार, डाउरी में पैसे इस्तेमाल होने के कारण शिक्षा के लिए इस्तेमाल होने वाले पैसे को बचाने के विचार से अपनी बेटियों को अच्छी शिक्षा नहीं देते हैं।

  • अक्सर लड़कियों को उनके गहरे रंग, मोटे या शारीरिक रूप में किसी अन्य कमी के कारण मानसिक उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है क्योंकि माता-पिता या रिश्तेदारों को लगता है कि उनकी शादी के लिए बहुत अधिक डाउरी देना होगा और उनके लगातार ताने और बयान न केवल लड़कियों को मानसिक रूप से परेशान करते हैं बल्कि उनमें हीन भावना भी लाते हैं।

महिलाओं द्वारा डाउरी कानूनों का दुरुपयोग

एक सिक्के के हमेशा दो पहलू होते हैं; इसी तरह, हर कानून का उपयोग और दुरुपयोग भी होता है। एंटी-डाउरी कानून महिलाओं के लिए रामबाण साबित होने के साथ-साथ पुरुषों के लिए भी परेशानी का सबब साबित हुए हैं। महिलाओं द्वारा दर्ज किए गए डाउरी के सभी मामले सही नहीं होते हैं और 40% से अधिक दर्ज किए गए मामलो में महिलाओं द्वारा लगाए गए झूठे आरोप होते हैं।

जस्टिस चंद्रमौली कुमार प्रसाद की अध्यक्षता (हेडेड) वाली सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की बेंच ने हाल ही में 21 पन्नों के एक आदेश में कहा कि पति को परेशान करने का सबसे आसान तरीका उसे और उसके रिश्तेदारों को गिरफ्तार करवाना है। 

न्यायाधीशों ने एक उल्लेखनीय (नोटेबल) बात कही कि कई मामलों में पति के बिस्तर पर पड़े दादा और दादी, दशकों से विदेश में रहने वाली उनकी बहनों को गिरफ्तार किया जाता है।

न्यायाधीशों ने अधिकारियों (अथॉरिटी) को यह भी याद दिलाया कि डाउरी संबंधी शिकायत को नोट करने से पहले उन्हें तथाकथित (सो-कॉल्ड) 9 पॉइंट चेकलिस्ट का पालन करना चाहिए जो एंटी-डाउरी कानून का हिस्सा है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर पुलिस गिरफ्तारी करती है, तो मजिस्ट्रेट को आरोपी की हिरासत (डिटेंशन) को मंजूरी देनी चाहिए।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, 2012 में डाउरी अपराधों के संबंध में 47,951 महिलाओं सहित लगभग 200,000 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन केवल 15% आरोपियों को दोषी ठहराया गया था।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

एक प्रथा के रूप में “डाउरी” भारतीय समाज में गहराई से निहित (रुटेड) है, और इसे पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सकता है। भारतीयों की मानसिकता और सोच इसका प्रमुख कारण है कि इस प्रथा को समाप्त नहीं किया जा सकता है। भारत में, एक लड़के को बहुत शिक्षित बनाया जाता है ताकि माता-पिता शादी में उसके लिए भारी डाउरी की मांग कर सकें। आदमी जितना अधिक शिक्षित होता है, उसकी आर्थिक स्थिति जितनी स्थिर (स्टेबल) होती है, उसे उतनी ही डाउरी मिलती है। इसी तरह, लड़कियों के माता-पिता उन्हें बहुत शिक्षित करते है ताकि वे उसकी शादी एक अमीर परिवार में कर सकें। वे डाउरी देने से हिचकिचाते नही हैं क्योंकि यह प्रथा अब पुरानी हो गई है और कई कानूनों के बावजूद बहुत कम प्रतिशत अपराधियों को सजा मिल पाती है। इस सामाजिक बुराई को तभी मिटाया जा सकता है जब लोगों की मानसिकता में बदलाव आएगा। जब लोग समझेंगे कि डाउरी देना और लेना अपनी बेटियों और बेटों को बेचने जैसा है, तब से प्रथा की जड़ें मिटने लगेंगी, और यह प्रथा पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी लेकिन वह अवधि बहुत दूर है।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

  • 1995 AIR HC 273
  • 1994 Cri LJ NOC 255 (All)
  • 2001 Cr LJ 2792 (SC)
  • 1993 Cri LJ 2636 All
  • 1992 Cri. LJ. 563 A.P
  • 1993 Cri. LJ 2636 All

2 टिप्पणी

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here