यूनियन और स्टेट्स के बीच लेजिस्लेटिव शक्तियों का डिस्ट्रीब्यूशन

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Constitution of India
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यह लेख कलकत्ता विश्वविद्यालय के अधीन (अंडर) श्यामबाजार लॉ कॉलेज से बी.ए.एलएलबी के छात्र Arkadyuti Sarkar द्वारा लिखा गया है। यह लेख यूनियन और स्टेट्स के बीच लेजिस्लेटिव शक्तियों के डिस्ट्रीब्यूशन पर विस्तार (एक्सटेंसिवली) से चर्चा करता है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

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परिचय (इंट्रोडक्शन)

संविधान में भारत को स्टेट्स के फेडरेशन के रूप में वर्णित (डिस्क्राइब) किया गया है। भारतीय संविधान सेंटर और स्टेट्स के बीच लेजिस्लेटिव और एक्जीक्यूटिव शक्ति के डिस्ट्रीब्यूशन के लिए 3 लिस्ट्स का प्रावधान (प्रोविजन) करता है; अर्थात

  1. यूनियन (सेन्ट्रल) लिस्ट,
  2. स्टेट लिस्ट, और
  3. कंकर्रेंट लिस्ट (यूनियन गवर्नमेंट और स्टेट गवर्नमेंट्स के दायरे में विषय)।

डाइसी के अनुसार, बिजली डिस्ट्रीब्यूशन फेडरेशन की एक अनिवार्य विशेषता है। फेडरल स्टेट के गठन (फॉर्मेशन) के पीछे का उद्देश्य राष्ट्रीय सरकार और अलग-अलग स्टेट्स की सरकार के बीच एक आधिकारिक (अथॉरिटेटिव) विभाजन (डिविजन) शामिल है। फेडरल प्रवृत्ति (टेंडेंसी) सरकारी कार्रवाई के हर पक्ष को प्रतिबंधित (रेस्ट्रिक्ट) करती है, और समानांतर (पैरलल) और स्वतंत्र अधिकारियों के बीच स्टेट की ताकत को अलग करना विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है क्योंकि यह फेडरल प्रणाली (सिस्टम) और सरकार की एकात्मक (यूनिटरी) प्रणाली के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर बनाता है।

लेजिस्लेटिव शक्तियाँ यूनियन और स्टेट लेजिस्लेचर्स के बीच विद्यमान (एक्सिस्टिंग) लेजिस्लेटिव शक्ति के डिस्ट्रीब्यूशन की योजना (स्कीम) के अधीन हैं (जैसा कि संविधान के तहत 3 लिस्ट्स में प्रदान किया गया है), फंडामेंटल राइट्स और अन्य संवैधानिक प्रावधान।

यूनियन और स्टेट्स के बीच लेजिस्लेटिव शक्तियों का डिस्ट्रीब्यूशन

आइए अब हम संविधान के 7वां शेड्यूल के तहत निहित (एनश्राइन) 3 लिस्ट्स को देखते है।

यूनियन लिस्ट

यूनियन लिस्ट में 97 आइटम शामिल हैं जिनमें राष्ट्रीय महत्व वाले विषय शामिल हैं। यह लिस्ट समान कानूनों को स्वीकार करती है जो पूरे भारतीय क्षेत्र पर लागू होते हैं, और केवल भारतीय पार्लियामेंट ही उन पर कानून बनाने में सक्षम है।

इस लिस्ट-I में कुछ आइटम इस प्रकार हैं:

  • रक्षा;
  • सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन;
  • विदेशी मामले;
  • बैंकिंग;
  • इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टीज;
  • जनगणना (सेंसस);
  • निगम कर (कॉर्पोरेशन टैक्स);
  • परमाणु (एटॉमिक) ऊर्जा और आवश्यक खनिज (मिनेरल) संसाधन (रिसोर्सेज);
  • प्रिवेंटिव डिटेंशन;
  • डिप्लोमेटिक, कांसुलर और व्यापार संबंध;
  • युद्ध और शांति;
  • नागरिकता (सिटिजनशिप);
  • हाईवे और रेलवे, आदि।

स्टेट लिस्ट

स्टेट लिस्ट में 66 आइटम शामिल हैं जिनमें स्थानीय (लोकल) हित (इंटरेस्ट) या स्टेट के हित से संबंधित विषय शामिल हैं। इस प्रकार स्टेट लेजिस्लेचर इन विषयों पर कानून बनाने में सक्षम है। इस लिस्ट-II के कुछ विषय इस प्रकार हैं:

  • सार्वजनिक (पब्लिक) व्यवस्था;
  • स्थानीय सरकार;
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता;
  • कृषि;
  • मछली पालन;
  • पुस्तकालय, संग्रहालय (म्यूज़ियम) और अन्य समान संस्थान (इंस्टीट्यूशन);
  • बाजार और मेले;
  • गैस और संबद्ध (एलाइड) कार्य।

कंकर्रेंट लिस्ट

इस लिस्ट में 47 आइटम शामिल हैं, जिनके संबंध में;  यूनियन पार्लियामेंट और स्टेट लेजिस्लेचर दोनों के पास कंकर्रेंट लेजिस्लेटिव शक्ति है। यह लिस्ट टू-फोल्ड डिस्ट्रीब्यूशन में कठोरता से बचने के लिए एक उपकरण (डिवाइस) के रूप में काम करने के लिए थी। इसके अलावा, स्टेट अतिरिक्त रूप से पार्लियामेंट्री कानून को बढ़ाने के लिए कानून बना सकती हैं। हालांकि, यदि इस लिस्ट में शामिल किसी भी विषय के संबंध में कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो यूनियन का कानून स्टेट पर लागू होगा।

इस लिस्ट-III में शामिल कुछ विषय इस प्रकार हैं:

  • आपराधिक कानून और प्रक्रिया;
  • आर्कियोलॉजिकल स्थल;
  • विवाह और तलाक;
  • कृषि भूमि को छोड़कर संपत्ति का हस्तांतरण (ट्रांसफर);
  • सुप्रीम कोर्ट को छोड़कर अन्य कोर्ट की अवमानना (कंटेंप्ट);
  • सिविल कानून और प्रक्रिया;
  • पशु क्रूरता की रोकथाम (प्रिवेंशन);
  • बिजली;
  • आर्थिक और सामाजिक योजना;
  • कानूनी, चिकित्सा और अन्य पेशे।

स्टेट लेजिस्लेचर्स द्वारा बनाए गए कानूनों और पार्लियामेंट्री कानूनों की सीमा

आर्टिकल 245 के अनुसार; संवैधानिक प्रावधानों के अधीन, पार्लियामेंट पूरे भारतीय क्षेत्र या किसी भी हिस्से के लिए कानून बना सकती है, स्टेट क्षेत्र के लिए एक स्टेट लेजिस्लेचर, और कोई भी पार्लियामेंट्री कानून अतिरिक्त-क्षेत्रीय (एक्स्ट्रा-टेरिटोरियल) संचालन (ओपरेबिलिट) अर्थात भारतीय क्षेत्र के बाहर प्रभावी होने के कारण अमान्य नहीं होता है।

ए.एच. वाडिया बनाम टैक्स कमिश्नर में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एक सोवरेन लेजिस्लेचर के मामले में, किसी भी इनैक्टमेंट की वैधता को चुनौती देने के उद्देश्य से किसी भी इनैक्टमेंट की अतिरिक्त-क्षेत्रीय पर सवाल म्युनिसिपल कोर्ट के समक्ष नहीं उठाया जा सकता है। कानून, अंतरराष्ट्रीय कानून के नियमों के विपरीत (कंट्रेरी) हो सकता है, विदेशी कोर्ट्स में पहचानने योग्य नहीं हो सकता है, या उनकी प्रवर्तनीयता (एनफोर्सिएबिलिटी) के संबंध में व्यावहारिक कठिनाइयां हो सकती हैं, लेकिन घरेलू ट्रिब्यूनल केवल नीति (पॉलिसी) के प्रश्नों से संबंधित हैं।

स्टेट लेजिस्लेचर द्वारा बनाए गए कानूनों और पार्लियामेंट्री कानूनों की विषय-वस्तु (सब्जेट मैटर ऑफ़ द पार्लियामेंट्री लॉज एंड लॉज मेड बाय द स्टेट लेजिस्लेचर)

आर्टिकल 246 के अनुसार;

  1. यूनियन पार्लियामेंट, क्लॉज 2 और क्लॉज 3 के तहत कुछ भी होने के बावजूद, यूनियन लिस्ट (लिस्ट-I) में निहित किसी भी मामले के संबंध में कानून बनाने के लिए विशेष रूप से सशक्त (एंपावर) है।
  2. यूनियन पार्लियामेंट और स्टेट लेजिस्लेचर, क्लॉज 3 और क्लॉज 1 के तहत कुछ भी होने के बावजूद, कंकर्रेंट लिस्ट (लिस्ट-III) में निहित किसी भी मामले पर कानून बनाने में सशक्त है।
  3. स्टेट लेजिस्लेचर, क्लॉज 1 और क्लॉज 2 के तहत किसी भी चीज़ को छोड़कर, स्टेट लिस्ट (लिस्ट-II) में निहित किसी भी मामले के संबंध में ऐसे स्टेट और उसके किसी भी हिस्से के लिए कानून बनाने के लिए विशेष रूप से सशक्त है।
  4. यूनियन पार्लियामेंट को भारतीय क्षेत्र के किसी भी हिस्से के लिए किसी भी मामले के संबंध में कानून बनाने का अधिकार है (स्टेट में) इसके बावजूद की यह स्टेट लिस्ट में शामिल है।

कुछ अतिरिक्त कोर्ट्स की स्थापना के लिए उपबंध करने की पार्लियामेंट्री शक्ति (पार्लियामेंट्री पावर टू प्रोवाइड फॉर द एस्टेब्लिशमेंट ऑफ सर्टेन एडिशनल कोर्ट्स)

आर्टिकल 247 के अनुसार; इस अध्याय (चैप्टर) के तहत कुछ भी होते हुए भी, पार्लियामेंट कानूनी रूप से स्टेट लिस्ट (लिस्ट-II) के किसी भी मामले के संबंध में पार्लियामेंट्री कानूनों या किसी भी मौजूदा कानूनों के प्रशासन (एडमिनिस्ट्रेशन) में सुधार के लिए अतिरिक्त कोर्ट्स की स्थापना के लिए प्रदान कर सकती है।

इस प्रकार, पार्लियामेंट द्वारा पास किए गए कानूनों या स्टेट लिस्ट के तहत किसी भी कानून से संबंधित कानूनों को बेहतर ढंग से संचालित करने के लिए इस आर्टिकल के प्रावधान द्वारा पार्लियामेंट को कोर्ट्स या न्यायिक निकायों (बॉडीज) की स्थापना करने का अधिकार है।

रेसिड्यूरी लेजिस्लेटिव शक्तियां

आर्टिकल 248 के अनुसार; कंकर्रेंट लिस्ट या स्टेट लिस्ट में अनुपस्थित किसी भी मामले के संबंध में पार्लियामेंट को विशेष रूप से कानून बनाने का अधिकार है। साथ ही, ऐसी शक्ति में कर लगाने की लेजिस्लेटिव शक्ति शामिल है जिसका उल्लेख उन लिस्ट्स में से किसी में भी नहीं किया गया है।

इसलिए, पार्लियामेंट को किसी भी मामले के संबंध में कानून बनाने की शक्ति है जो कंकर्रेंट लिस्ट या स्टेट लिस्ट में मौजूद नहीं है, जिसमें कर लगाने पर कानून बनाने की शक्ति भी शामिल है।

स्टेट लिस्ट के किसी भी मामले के संबंध में पार्लियामेंट्री लेजिस्लेटिव शक्ति

  • राष्ट्र हित में (इन द नेशनल इंटरेस्ट)

आर्टिकल 249 के अनुसार; यदि राज्य सभा दो-तिहाई बहुमत (मेजॉरिटी) के साथ राष्ट्रीय हित के मामले से संबंधित प्रस्ताव (रेजोल्यूशन) पास करती है। ऐसा प्रस्ताव पार्लियामेंट को स्टेट लिस्ट के किसी भी मामले के संबंध में कानून बनाने का अधिकार देता है, तो पार्लियामेंट के लिए कानून बनाना वैध होगा। इस तरह के कानून पूरे या भारतीय क्षेत्र के किसी भी हिस्से में लागू हो सकते हैं।

ऐसा प्रस्ताव आम तौर पर एक वर्ष के लिए रहता है और आवश्यकता पड़ने पर इसे नवीनीकृत (रिन्यू) किया जा सकता है लेकिन ऐसा विस्तार (एक्सटेंशन) एक वर्ष से अधिक नहीं किया जा सकता है।

हालांकि, ये पार्लियामेंट्री कानून, प्रस्ताव की समाप्ति के बाद, 6 महीने के बाद काम करना बंद कर देंगे।

इस प्रकार, पार्लियामेंट किसी भी कानून पर लेजिस्लेट करने के लिए सक्षम है जो पार्लियामेंट के अपर हाउस में बहुमत से पास हुए प्रस्ताव जिसमें राष्ट्रीय महत्व का कोई मामला शामिल है,पर आधारित है। हालांकि, ऐसा प्रस्ताव एक वर्ष तक चल सकता है और इसे अधिकतम‌ (मैक्जिमम) एक वर्ष की अवधि के लिए बढ़ाया जा सकता है।

  • यदि आपातकाल की उद्घोषणा चल रही हो (इफ ए प्रोक्लेमेशन ऑफ इमर्जेंसी इज इन ऑपरेशन)

आर्टिकल 250 के अनुसार; आपातकाल (इमर्जेंसी) की उद्घोषणा (प्रोक्लेमेशन) के संचालन के दौरान, पार्लियामेंट को स्टेट लिस्ट में उल्लिखित सभी मामलों के संबंध में पूरे भारतीय क्षेत्र या उसके किसी हिस्से के लिए कानून बनाने का अधिकार है।

हालांकि, आपातकाल की उद्घोषणा की समाप्ति के बाद 6 महीने की समाप्ति पर ऐसा कानून समाप्त हो जाएगा।

आपातकाल के दौरान, पार्लियामेंट के पास कोई भी कानून बनाने की शक्ति होती है जो पूरे भारत या किसी भी हिस्से में लागू होगा, और ऐसा कानून आपातकाल वापस लेने के बाद केवल एक वर्ष के लिए लागू होता है।

आर्टिकल 249 और 250 के तहत पार्लियामेंट्री कानून और स्टेट्स के लेजिस्लेचर्स द्वारा बनाए गए कानूनों के बीच इनकंसिस्टेंसी

आर्टिकल 251 के अनुसार; आर्टिकल 249 और 250 के तहत कुछ भी स्टेट लेजिस्लेचर को किसी भी मामले पर कानून बनाने से प्रतिबंधित नहीं करेगा जिसके लिए उसे संविधान के तहत अधिकार दिया गया है। हालांकि, यदि स्टेट लेजिस्लेचर के कोई भी कानूनी प्रावधान पार्लियामेंट के किसी भी कानूनी प्रावधान के प्रतिकूल है, चाहे वह स्टेट के कानून से पहले या उसके बाद लेजिस्लेटेड हो, तो पार्लियामेंट द्वारा बनाया गया कानून स्टेट द्वारा पास कानून पर प्रबल होगा और  पार्लियामेंट्री कानून के लागू होने तक स्टेट का कानून निष्क्रिय (इनोपेरेटिव) रहेगा।

सहमति से दो या दो से अधिक स्टेट्स के लिए पार्लियामेंट्री लेजिस्लेटिव शक्ति और किसी अन्य स्टेट द्वारा ऐसे कानून को अपनाना

आर्टिकल 252 के अनुसार, यदि दो या दो से अधिक स्टेट लेजिस्लेचर्स को यह प्रतीत होता है कि यह वांछनीय (डिजायरेबल) है कि आर्टिकल 249 और 250 के तहत प्रदान किए गए को छोड़कर, स्टेट्स के लिए पार्लियामेंट के पास कोई लेजिस्लेटिव शक्ति नहीं है, तो इसे विनियमित (रेगुलेट) किया जाना चाहिए ताकि स्टेट्स को पार्लियामेंट्री कानून द्वारा नियंत्रित किया जा सके और यदि उन स्टेट लेजिस्लेचर्स के सभी हाउसेस द्वारा इस आशय (इफेक्ट) के प्रस्ताव पास किए जाते हैं, तो पार्लियामेंट के लिए उस मामले को तदनुसार (अकॉर्डिंगली) विनियमित करने के लिए एक एक्ट पास करना वैध होगा, और इस प्रकार से पास किया गया कोई भी एक्ट ऐसे स्टेट्स और किसी अन्य स्टेट जिसके द्वारा इसे बाद में स्टेट लेजिस्लेचर के हाउस या हाउसेस द्वारा पास किए गए प्रस्ताव के माध्यम से अपनाया जाता है, पर भी लागू होगा।  

किसी भी पार्लियामेंट्री एक्ट में अमेंडमेंट या निरसन (रिपील) केवल एक पार्लियामेंट्री एक्ट द्वारा पास या समान तरीके से अपनाया जा सकता है, लेकिन स्टेट लेजिस्लेचर के एक्ट द्वारा नहीं अपनाया जा सकता है।

अंतरराष्ट्रीय समझौतों को प्रभावित करने के लिए कानून

आर्टिकल 253 के अनुसार; इस अध्याय के पूर्वगामी (फॉरगोइंग) प्रावधानों में किसी भी चीज के होते हुए भी, पार्लियामेंट के पास पूरे भारतीय क्षेत्र या उसके किसी भी हिस्से के लिए लेजिस्लेटिव शक्ति है-

  • किसी अन्य देश के साथ किसी ट्रीटी, समझौते (एग्रीमेंट) या अन्य कन्वेंशन का कार्यान्वयन (इंप्लीमेंटेशन);
  • किसी भी अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस, या अंतर्राष्ट्रीय एसोसिएशन, या अंतर्राष्ट्रीय निकाय में किए गए किसी भी निर्णय को लागू करना।

पार्लियामेंट को किसी भी अंतरराष्ट्रीय ट्रीटी, या समझौते या कन्वेंशन, जैसा भी मामला हो, उसको लागू करने से संबंधित कोई भी कानून पास करने का अधिकार है; और किसी भी अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस या एसोसिएशन में लिए गए किसी भी निर्णय के किसी भी कानून से संबंधित है, और पूरे या देश के किसी भी हिस्से पर लागू होगा।

पार्लियामेंट्री कानूनों और स्टेट लेजिस्लेचर के कानूनों के बीच इनकंसिस्टेंसी

आर्टिकल 254 के अनुसार; यदि स्टेट लेजिस्लेचर द्वारा बनाया गया कोई कानूनी प्रावधान पार्लियामेंट द्वारा बनाए गए किसी भी कानूनी प्रावधान, जिस पर वह सक्षम है, या कंकर्रेंट लिस्ट में निहित किसी भी मामले के संबंध में किसी मौजूदा कानूनी प्रावधान के प्रतिकूल है, तो, पार्लियामेंट्री कानून, चाहे स्टेट लेजिस्लेचर द्वारा इनेक्ट होने से पहले या बाद में पास किए गए हो, या, जैसा भी मामला हो, मौजूदा कानून, स्टेट लेजिस्लेचर द्वारा पास कानून पर प्रबल (प्रीवेल) होगा।

जहां कंकर्रेंट लिस्ट में उल्लिखित किसी मामले के संबंध में स्टेट लेजिस्लेचर द्वारा कोई इनेक्टमेंट उस मामले के संबंध में पार्लियामेंट्री कानून या मौजूदा कानून के प्रावधानों के प्रतिकूल है, तो, स्टेट कानून, यदि इसे प्रेसिडेंट की कंसीडरेशन के लिए आरक्षित (रिजर्व) किया गया हो और उसकी सहमति प्राप्त हो गई हो, तो वह उस स्टेट में प्रबल होगा।

बशर्ते (प्रोवाइडेड) कि इस क्लॉज में पार्लियामेंट को किसी भी समय कानून में कुछ भी जोड़ने, अमेंडमेंट, बदलाव या स्टेट के लेजिस्लेचर द्वारा इनेक्टेड कानून को निरस्त करने के साथ किसी भी कानून को बनाने से नहीं रोका जायेगा।

सिफारिशों और पूर्व स्वीकृतियो के रूप में आवश्यकताओं को पूरी तरह से प्रक्रियात्मक मामलों के रूप में माना जाना चाहिए (रिक्वायरमेंट्स एस टू रिकमेंडेशंस एंड प्रीवियस सैंक्शन्स टू बी रिगार्डेड सोलेली एस प्रोसीजरल मैटर्स)

आर्टिकल 255 के अनुसार; कोई पार्लियामेंट्री एक्ट या स्टेट लेजिस्लेचर का कोई भी एक्ट और ऐसे किसी भी एक्ट का कोई प्रावधान केवल इस कारण से अमान्य नहीं होगा कि इस संविधान द्वारा आवश्यक कुछ सिफारिश (रिकमेंडेशन) या पूर्व स्वीकृति (प्रिवियस सैंक्शन) उस एक्ट को सहमति दिए जाने की स्थिति में नहीं दी गई थी:

  1. यदि आवश्यक सिफारिश गवर्नर की थी और गवर्नर या प्रेसिडेंट द्वारा दी जानी थी;
  2. यदि आवश्यक सिफारिश राजप्रमुख की थी, या तो राजप्रमुख द्वारा या प्रेसिडेंट द्वारा दी जानी थी;
  3. यदि प्रेसिडेंट द्वारा सिफारिश या पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता होती है, तो प्रेसिडेंट द्वारा दी जानी थी।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

उपरोक्त समझ से, हम भारतीय यूनियन के स्टेट्स पर सेंट्रल प्रभुत्व (डॉमिनेशन) को देख सकते हैं। हालांकि भारत, स्टेट्स के एक फेडरेशन के रूप में माना जाता है, लेकिन वास्तव में फेडरल नहीं है। आपातकाल के समय के साथ-साथ सामान्य परिस्थितियों के दौरान, यूनियन पार्लियामेंट हमेशा किसी भी स्टेट के कानून को खत्म करने और उसे लागू करने के लिए सक्षम होती है।  इसलिए, भारत को एक क्वासी-फेडरल स्टेट के रूप में माना जा सकता है, जो वास्तव में फेडरल अमेरिका की तुलना में कनाडा के साथ उच्च समानता रखता है।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

  • The Constitution of India (101st Amendment) Act, 2016.
  • Constitutional Law of India (53rd edition) by Dr JN Pandey.

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