भारत में बलात्कार: कारण और प्रिवेंशन- एक डिटेल्ड डिस्कशन

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Indian penal code
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यह लेख एमिटी यूनिवर्सिटी, कोलकाता से बीबीए.एलएलबी (ऑनर्स) कर रही Gitika Jain ने लिखा है। यह एक विस्तृत (एग्जोस्टिव) लेख है जो भारत में बलात्कार कानूनों से संबंधित है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

बलात्कार, को अंग्रेजी में रेप के नाम से जाना जाता है, बलात्कार अपने आप में एक भयानक शब्द है। भारत में, यह सबसे आम आपराधिक गतिविधियों (एक्टिविटीज) में से एक है। बलात्कार शब्द इतना भयानक, अपमानजनक (ह्यूमिलिएटिंग), और दर्दनाक है कि यह पूरे मनोविज्ञान (साइकोलॉजी) को नष्ट कर देता है और जिसके साथ बलात्कार हुआ है उस व्यक्ति भावनाओं को प्रभावित करता है। रेप शब्द लैटिन भाषा के ‘रेपियो’ शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है छीन लेना। इसलिए बलात्कार का शाब्दिक (लिटरल) अर्थ किसी से जबरन कुछ छीनना हो सकता है जो स्पष्ट रूप से एक अपराध है। जबरदस्ती का अर्थ है किसी अन्य की सहमति के बिना किसी गतिविधि में शामिल होना। भारत मातृ देवो भव की अवधारणा (कंसेप्ट) में विश्वास करता था जिसका अर्थ है महिला या माता की पूजा करना। लेकिन भारत में प्रतिदिन होने वाले बलात्कार के मामलों की संख्या को देखते हुए मातृ देवो भव की अवधारणा गायब होती दिख रही है। बलात्कार केवल पीड़िता के खिलाफ ही नहीं बल्कि पूरे समाज के खिलाफ एक अपराध है। यह अपराध इतना शर्मनाक (शेमफुल) है कि यह बुनियादी (बेसिक) मानवाधिकारों (ह्यूमन राइट्स) के खिलाफ भी अपराध है। कोई एक परिभाषा बलात्कार शब्द को उसकी व्यापक (वाइड) प्रकृति के कारण परिभाषित नहीं कर सकती है। इसे केवल भुगतने वाला व्यक्ति ही जानता है। इसलिए बलात्कार को सेक्स अपराध कहा जा सकता है।

बलात्कार की अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए एक और अवधारणा पेश करना महत्वपूर्ण है जो सेक्सुअल हैरेसमेंट है। एक ऐतिहासिक (लैंडमार्क) मामले विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान स्टेट के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ बिंदु (पॉइंट्स) निर्धारित (लेड डाउन) किए थे जो सेक्सुअल हैरेसमेंट का गठन करेंगे:

  • शारीरिक संपर्क और एडवांसेज
  • सेक्सुअल फेवर के लिए कोई भी मांग
  • शरीर पर कोई भी टिप्पणी (रिमार्क) जो सेक्सुअली कलर्ड है
  • पोर्नोग्राफी दिखाना
  • सेक्सुअल प्रकृति का कोई अन्य जबरन शारीरिक, मौखिक या अशाब्दिक (नॉन्वरबल) आचरण (कंडक्ट)।

इसलिए, इस मामले में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सेक्सुअल हैरेसमेंट फंडामेंटल राइट्स का उल्लंघन है। सेक्सुअल हैरेसमेंट से आर्टिकल 14, 15, 19(1)(g), 21 का उल्लंघन होता है।

भारत में बलात्कार से संबंधित कानूनी प्रावधान

भारत में बलात्कार एक कॉग्निजेबल अपराध है। बलात्कार के लिए अलग-अलग एक्ट में कई प्रावधान (प्रोविजंस) हैं।

इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 375, 376A, 376B, 376C और 376D, क्रिमिनल प्रोसिजर कोड की धारा 53(1)(4), 164A(5), 327(2)(6), इंडियन एविडेंस एक्ट की धारा 114A(3)

इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 375 के तहत बलात्कार शब्द को कानूनी रूप से परिभाषित किया गया है एक पुरुष को बलात्कार करने के लिए उत्तरदायी तब किया है जब निम्नलिखित में से किसी भी परिस्थिति में किसी महिला के साथ सेक्सुअल इंटरकोर्स होता है:

  1. उसकी इच्छा के विरुद्ध
  2. उसकी सहमति प्राप्त किए बिना
  3. जब सहमति प्राप्त की जाती है, तो वह सहमति व्यक्ति को मृत्यु के भय में डालकर नहीं होनी चाहिए।
  4. जब भविष्य में पति बनने का वादा कर धोखे से सहमति ली गई हो।
  5. जब सहमति किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा दी जाती है जो विकृत दिमाग (अनसाउंड माइंड) का है या नशे में है या सहमति देने की प्रकृति को समझने में असमर्थ है।
  6. जब कोई लड़की 16 साल से कम उम्र की है, तो उसकी सहमति से या उसके बिना।

यदि उपरोक्त (अबव) में से कोई भी शर्त पूरी होती है, तो कहा जाता है कि बलात्कार किया गया है।

  • आई.पी.सी 1860 की धारा 376 बलात्कार के लिए सजा को निर्दिष्ट (स्पेसिफाई) करती है जो कम से कम 7 साल की कैद है और इसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी हो सकता है।
  • धारा 376A पीड़ितों की लगातार वेजिटेटिव अवस्था (स्टेट) के लिए मृत्यु के मामले में सजा का उल्लेख (मेंशन) करती है। ऐसी परिस्थितियों के लिए सजा 20 साल की कैद है जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।
  • धारा 376B में सेपरेशन के दौरान पति द्वारा पत्नी से सेक्सुअल इंटरकोर्स करने का उल्लेख है। इसके लिए सजा कम से कम 2 साल की कैद है जिसे 7 साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी हो सकता है।
  • धारा 376C में अथॉरिटी में व्यक्तियों द्वारा सेक्सुअल इंटरकोर्स के लिए सजा का उल्लेख है जो कम से कम 6 साल के लिए कारावास है जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना हो सकता है।
  • धारा 376D कहती है कि जब सामूहिक (गैंग) बलात्कार हुआ है, तो उसके लिए सजा कम से कम 20 साल की कैद होगी जिसे आजीवन कारावास तक बढाया जा सकता है और जुर्माना हो सकता है।
  • आई.पी.सी की धारा 376E  में रिपीटेड ऑफेंडर के लिए सजा का उल्लेख है जो आजीवन कारावास या मृत्यु है।
  • आई.पी.सी की धारा 228A(2) में कहा गया है कि बलात्कार पीड़िता के नाम का खुलासा नहीं किया जा सकता है और यदि कोई ऐसा करता है तो उसे 2 साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकता है।

क्रिमिनल प्रोसिजर कोड के अन्य संबंधित प्रावधान बलात्कार पीड़िता की चिकित्सा (मेडिकल) जांच और सभी बलात्कार पीड़ितों के लिए अनिवार्य कैमरा परीक्षण (एग्जामिनेशन) आदि के प्रावधान बताते हैं।

क्या सच में भारत में महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं?

भारत में प्रतिदिन बलात्कार के मामले दर्ज होने की बढ़ती संख्या के साथ, भारत में महिलाओं की सुरक्षा का सवाल बिल्कुल भी प्रासंगिक (रिलेवेंट) नहीं है। भारत में एक भी दिन ऐसा नहीं बीतता जब किसी महिला के साथ बलात्कार का मामला ना सुना हो। भारत अरबों लोगो का देश है जिसमें से 48 प्रतिशत महिलाएं हैं लेकिन यह अभी भी महिलाओं के लिए असुरक्षित है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) 2018 के अनुसार, भारत में कुल 33,356 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 93.9 प्रतिशत मामलों को उपयुक्त (एप्रोप्रिएट) माना गया। इतनी क्रूरता वाले मामलों के साथ, सवाल फिर से एक तथ्य पर उठता है कि क्या भारत महिलाओं के लिए सुरक्षित है।

भारत में सेक्सुअल वॉयलेंस के मामलों में वृद्धि के कारण

महिला पुलिस की कम संख्या

महिला पुलिस की कम संख्या भारत में सेक्सुअल वॉयलेंस की समस्या का एक कारण हो सकती है। जब भी किसी महिला के साथ बलात्कार होता है, तो वह अपने मामले की रिपोर्ट महिला पुलिस अधिकारी को करने की अधिक संभावना रखती है। ऐतिहासिक रूप से कहा जाए तो नई दिल्ली में सिर्फ 7% महिला पुलिस अधिकारी हैं। आंकड़ों (स्टेटिस्टिक्स) की बात करें तो दिल्ली के 161 जिला पुलिस थानों में केवल एक महिला थाना है।

अभद्र कपड़ों का दोष (ब्लैमिंग ऑफ इंडीसेंट क्लोथ्स)

भारतीय समाज किसी न किसी तरह यह मानता है कि पीड़िता के कपड़ों की भावना ने उन्हें उस अवस्था में डाल दिया है। यह भारत में न्यायाधीशों के सर्वेक्षण (सर्वे) में साबित हुआ है जहां 68% रेस्पोंडेंट्स ने एक ही बिंदु पर सहमति व्यक्त की है।

घरेलू हिंसा को स्वीकार करना 

भारतीय समाज घरेलू हिंसा को कुछ योग्य मानता है। यूनिसेफ ने अपनी एक रिपोर्ट में पाया कि 57% भारतीय लड़के और 53% लड़कियों को लगता है कि पत्नी की पिटाई जायज है।

कोई सार्वजनिक सुरक्षा नहीं

जो महिलाएं शराब पीती हैं, धूम्रपान करती हैं या देर रात क्लब जाती हैं, उन्हें ज्यादातर भारतीय समाज में अनैतिक (इम्मोरल) के रूप में देखा जाता है और बलात्कार होता है। अगर जनता खुद सोचती है और बलात्कार के पीछे इस तरह के तर्क से सहमत है तो भारत में महिलाएं सार्वजनिक (पब्लिक) स्थानों पर निश्चित रूप से सुरक्षित नहीं हैं।

बलात्कार पीड़िताओं का समझौता करने के लिए डिस्करेजमेंट

भारतीय समाज में कोई भी परिवार इस बात को मानने को तैयार नहीं है कि उनके परिवार में किसी के साथ बलात्कार हुआ है और वे अक्सर पीड़ितों को थाने में बलात्कार के बाद होने वाली अनहोनी से दूर रहने की सलाह देते हैं। यही एकमात्र कारण है कि ज्यादातर बलात्कार भारत में रजिस्टर्ड भी नहीं होते हैं।

हालांकि बलात्कार पीड़ितों की सुरक्षा और उन्हें उनके कानूनी अधिकार देने के लिए कानून बनाए जा रहे हैं, फिर भी बनाए गए कानूनों के क्रियान्वयन (इंप्लीमेंटेशन) में एक समस्या है।

बलात्कार के खिलाफ निवारक उपाय (प्रिवेंटिव मेजर्स अगेंस्ट रेप)

कोई उम्र कारक (फेक्टर), जाति या सामाजिक स्थिति नहीं है जो बलात्कार का कारण बनती है। बलात्कार के खिलाफ कुछ निवारक (प्रिवेंटिव) उपायों को अपनाने के लिए व्यक्ति अपनी ओर से कुछ कर सकता हैं।

  1. सभी के लिए सुरक्षा युक्तियों (टिप्स) का एक सत्र (सेशन) आयोजित (कंडक्ट) करना।
  2. यदि आवश्यक हो तो पुलिस को सभी जानकारी प्रदान करना।
  3. बच्चों के लिए बलात्कार, गुड टच और बैड टच आदि के बारे में जागरूकता (अवेयरनेस) पैदा करना।

भारत में बलात्कार के मामलों पर नियंत्रण रखेंने के लिए सुझाव

जन्म से ही लड़कों का सही पालन-पोषण करना सबसे महत्वपूर्ण कारक है जिससे बड़ी संख्या में बलात्कार के मामलों में कमी आएगी। भारतीय समाज के साथ समस्या यह है कि जब भी कोई बलात्कार होता है तो केवल पीड़िता से ही सवाल किया जाता है, बलात्कारी से नहीं। पीड़िता को समाज से अनगिनत सवालों से गुजरना पड़ता है और कभी-कभी खुद बलात्कार के लिए भी दोषी ठहराया जाता है। लेकिन जब कोई डकैती होती है तो कोई लूटे गए व्यक्ति से सवाल नहीं करता है और उसे बताता है कि यह उसकी गलती थी, वैसे ही हत्यारे व्यक्ति के परिवार के सदस्यों से कोई सवाल नहीं करता है। इसी तरह, भारतीय समाज के सभी व्यक्ति पीड़िता को बलात्कार से बचाव के तरीके सिखाने में व्यस्त हैं, लेकिन पार्टी के दूसरे पक्ष को क्या करें और क्या न करें के बारे में शिक्षित नहीं करते है। हम में से बहुत से लोग यह भी नहीं जानते हैं कि भारत में लड़कियों के जितना बलात्कार किया जा रहा है उतना ही लड़को के साथ भी होता है, लेकिन वे इसके बारे में बात नहीं करते क्योंकि उनके लिए कोई सहायता केंद्र नहीं है। बलात्कार के संबंध में कानून लैंगिक (जेंडर) पक्षपाती (बायस्ड) भी हैं। इसलिए सभी को समाज में सही और गलत के बारे में शिक्षित करने और जागरूकता पैदा करने की प्रथा को अपनाना चाहिए क्योंकि वे ही हैं जो भविष्य में बदलाव लाने वाले हैं।

ऐतिहासिक निर्णय जिन्होंने भारत में बलात्कार कानूनों को बदल दिया है

  1. विशाखा बनाम राजस्थान स्टेट के मामले में भंवरी देवी के साथ 5 लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया क्योंकि वह बाल विवाह को रोक रही थी। वह ट्रायल कोर्ट में गई लेकिन ट्रायल कोर्ट ने सभी 5 आरोपियों को बरी कर दिया। बाद में महिला शिक्षा और अनुसंधान (रिसर्च) के एक समूह (ग्रुप) विशाखा ने भंवरी देवी का मामला उठाया और कार्यस्थल पर सेक्सुअल हैरेसमेंट के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पिटीशन दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा जरूरी है और 5 आरोपियों को दोषी ठहराया और सेक्सुअल हैरेसमेंट की एक नई परिभाषा दी।
  2. निर्भया कांड का मामला 2013 का ऐतिहासिक मामला है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इस मामले में बलात्कार कानूनों की परिभाषा को चौड़ा (वाइड) किया था। सुप्रीम कोर्ट ने मामले के सभी तथ्यों की समीक्षा (रिव्यू) करते हुए 4 वयस्कों (एडल्ट्स) को मौत की सजा दी और नाबालिग को 3 साल के लिए सुधार के लिए भेज दिया। बदली हुई परिभाषा में बलात्कार तब माना जाएगा जब महिला के शरीर के किसी अंग में प्रवेश (पेनिट्रेशन) हो। बलात्कार की सजा में कम से कम 20 साल की कैद और चरम (एक्सट्रीम) परिस्थितियों में मौत शामिल है।
  3. तुकाराम और एक अन्य बनाम महाराष्ट्र स्टेट (मथुरा मामला) में चंद्रपुर जिले के एक पुलिस थाने में 1978 में दो पुलिसकर्मियों द्वारा एक युवा आदिवासी लड़की के बलात्कार पर सुप्रीम कोर्ट ने बहुत बाद में ध्यान दिया। बाद में, यह मामला क्रिमिनल लॉ 1983 द्वारा भारतीय बलात्कार कानून में अमेडमेंट की ओर ले जाता है।
  4. आर बनाम फुरोल के मामले में 6 साल की बच्ची के साथ बलात्कार हुआ था लेकिन चोट नहीं आई थी। हालांकि, इस घटना के बाद, वह गोनोरिया से पीड़ित हो गई। इस मामले में आरोपित को दुष्कर्म का दोषी करार दिया गया था।
  5. प्रेमचंद बनाम हरियाणा स्टेट के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की जनता ने काफी आलोचना (क्रिटिसाइज) की थी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बलात्कार के लिए 100 साल की सजा को घटाकर 5 साल कर दिया था। उसके बाद समीक्षा याचिका भी दायर की गई लेकिन यह विफल रही क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण बयान जारी करके उनकी कार्रवाई को सही ठहराया।
  6. महाराष्ट्र स्टेट बनाम मधुकर के मामले में मधुकर एक पुलिस इंस्पेक्टर था जो एक लड़की के साथ शारीरिक संबंध बनाना चाहता था और उसकी झोपड़ी में चला गया। उस इंस्पेक्टर के खिलाफ शिकायत दर्ज होने के बाद उन्होंने इसे खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि महिला आसान गुणी (इसी वर्च्यू) थी और इंस्पेक्टर के पक्ष में फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया और कहा कि आसान गुण वाली कोई भी महिला अपने फंडामेंटल राइट्स की हकदार है इसलिए निर्णय को बदल दिया गया।
  7. साक्षी बनाम यूनियम ऑफ़ इंडिया के मामले में साक्षी और एनजीओ ने बलात्कार के अर्थ को फिर से परिभाषित करने के लिए एक याचिका दायर की थी। 2000 में भारत के लॉ कमिशन ने बलात्कार की परिभाषा का एक हिस्सा बदल दिया। इंडियन पीनल कोड की धारा 375 के अनुसार बलात्कार शब्द को सेक्सुअल असॉल्ट से बदल दिया जाना चाहिए और किसी भी प्रकार का प्रवेश सेक्सुअल इंटरकोर्स शब्द के तहत होना चाहिए।
  8. स्टेट बनाम दीपक के मामले में सेशन कोर्ट के न्यायाधीशों ने फैसला किया कि सेक्स वर्कर होने का मतलब सेक्सुअल इंटरकोर्स के लिए सहमति देना नहीं है। सेक्स वर्कर के पास अभी भी इस तरह के कार्यों के लिए अनुमति देने का अधिकार है।
  9. पंजाब स्टेट बनाम गुरमीत सिंह के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भले ही पीड़ित सेक्सुअल इंटरकोर्स का आनंद लेता है, कोर्ट को मामले का फैसला नहीं करना चाहिए और पीड़ित को लूज चरित्र का वर्णन नहीं करना चाहिए।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

बलात्कार के मामलों का उचित समाधान खोजने में न्यायपालिका महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वे कानून पर सख्ती (रिजिडली) से भरोसा नहीं करने के लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन इस तरह के गहन (इंटेंस) मामलों को तय करते समय कुछ लचीलेपन (फ्लेक्सिबिलिटी) की अनुमति देते हैं। हर कोई आजकल भारतीय समाज के दुखद हिस्से और बलात्कार के प्रति उनके दृष्टिकोण (एप्रोच) को सामने लाने की कोशिश कर रहा है। बॉलीवुड जैसे फिल्म उद्योग भी धारा 375, पिंक आदि संवेदनशील (सेंसिटिव) विषयों पर फिल्में बनाकर जागरूकता पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि बलात्कार पीड़ितों की सुरक्षा के लिए कोई सख्त नियम नहीं बनाए गए हैं जो तस्वीर के सकारात्मक (पॉजिटिव) पक्ष को दर्शाता है, आंकड़े बताते हैं कि वास्तविक (एक्चुअल) पक्ष यह है कि सख्त कानूनों के बावजूद वास्तव में ऐसा कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। अगर कानूनों का वास्तव में पालन करना है, तो कोर्ट और कानून को कुछ बदलाव करने की जरूरत है। इसका कारण यह है कि कानून वही रहते हैं और पीड़ितों की संख्या हर साल बढ़ती रहती है। बिगड़ती स्थिति को नियंत्रित करने में सक्षम होने के लिए कुछ राजनीतिक संवेदनशीलता, न्यायिक संवेदनशीलता, विशेष कोर्ट्स और प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) कार्यक्रमों की आवश्यकता है।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

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