हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट, 1956 का ओवरव्यू

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Hindu Minority and Guardianship Act 1956
Image Source- https://rb.gy/kizs9n

यह लेख ओडिशा के के.आई.आई.टी. स्कूल ऑफ लॉ के Chandan Kumar Pradhan द्वारा लिखा गया है। यह लेख इस बारे में बात करता है कि एक गार्जियन के अधीन एक नाबालिग बच्चा कैसे सुरक्षित है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन)

अपने जीवन के समयपूर्व (प्रीमेच्योर) चरण (स्टेज) में, एक बच्चा माइनॉरिटी होने के कारण अपनी, अपने शरीर और अपनी संपत्ति की देखभाल करने में असमर्थ होता है। वह अपने मामलों को खुद नहीं संभाल सकता है। वह, यह भी नहीं समझ पाता कि क्या सही है और क्या गलत। इसलिए, उसे अपना ख्याल रखने के लिए किसी अन्य व्यक्ति की मदद की आवश्यकता होती है। नाबालिगों के लाभ के लिए, सांसदों (लॉ-मेकर्स) ने विशिष्ट (स्पेसिफिक) कानून बनाए हैं, जो नाबालिगों के जीवन में कुछ छूट और समर्थन (सपोर्ट) की अनुमति देते हैं।

माइनॉरिटी और गार्जियनशिप पर आधुनिक कानून हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट, 1956 द्वारा विनियमित (रेगुलेटिड) होते हैं। पिता, बच्चे का नेचरल गार्जियन होता है और उनकी मृत्यु के बाद, मां बच्चे की गार्जियनशिप की जिम्मेदारी लेती है।

नाबालिग और गार्जियन की परिभाषाएं

  • धारा 4(a) के अनुसार, जिसने 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है, उसे एक नाबालिग के रूप में परिभाषित किया गया है। 
  • धारा 4(b) के अनुसार, यह परिभाषित किया गया है कि एक गार्जियन का अर्थ उस व्यक्ति से है जिसने 18 वर्ष की आयु पूरी कर ली है और वह एक नाबालिग और उसकी संपत्ति और साथ ही अपनी संपत्ति की उचित देखभाल कर रहा है।

गार्जियन के प्रकार

3 प्रकार के गार्जियन हैं, जो निम्नलिखित में हैं:

  • नेचरल गार्जियन
  • टेस्टामेंट्री गार्जियन
  • न्यायालय द्वारा नियुक्त (अपॉइंटेड) एक गार्जियन

नेचरल गार्जियन

एक्ट की धारा 4(c) के अनुसार, नेचरल गार्जियन, नाबालिग के पिता और माता होते है। नाबालिग पत्नी के लिए उसका पति गार्जियन होता है।

एक्ट की धारा 6 में निम्नलिखित 3 प्रकार के नेचरल गार्जियन प्रदान किए गए है:

  • पिता- पिता एक लड़के या अविवाहित लड़की के नेचरल गार्जियन होते है, नाबालिंग के पिता पहले गार्जियन होते हैं और मां अगली गार्जियन होती है। एक्ट में यह दिया गया है कि केवल 5 वर्ष की आयु तक माता ही बच्चे की नेचरल गार्जियन होती है।

मामला- एसाकायल नादर बनाम श्रीधरन बाबू, के मामले में नाबालिग की मां की मौत हो गई थी और पिता भी बच्चे के साथ नहीं रह रहे थे और बच्चा जिंदा था। बच्चे को हिंदू घोषित नहीं किया गया था या दुनिया को नही त्याग दिया था और उसे अयोग्य (अनफिट) घोषित भी नहीं किया गया था। ये तथ्य अधिकृत (ऑथराइज) नहीं करते हैं कि कोई अन्य व्यक्ति बच्चे को गोद ले ले और नेचरल गार्जियन बन जाए और संपत्ति को स्थानांतरित (ट्रांसफर) कर दे।

  • मां- नाबालिग नाजायज बच्चे की मां पहली गार्जियन होती है, भले ही पिता मौजूद हो।

मामला- जाजाभाई बनाम पाठाखान के मामले में किसी कारणवश माता-पिता अलग हो गए और नाबालिग बेटी मां की गार्जियनशिप में रही। यहां, यह निर्धारित (डिटरमाइन) किया जाएगा कि मां नाबालिग लड़की की नेचरल गार्जियन है।

  • पति- नाबालिग पत्नी के लिए उसका पति नेचरल गार्जियन होता है।

धारा 6 के तहत यह दिया गया है कि इस भाग के तहत किसी भी व्यक्ति को नाबालिग के नेचरल गार्जियन के रूप में कार्य करने के लिए नामित (डेज़िग्नेट) नहीं किया जाएगा, जो निम्नलिखित में है:

  1. अगर वह हिंदू होना बंद कर देता है।
  2. अगर उसने दुनिया को पूरी तरह से त्याग दिया है और वे एक तपस्वी (सयांसी) या साधु (वानप्रस्थ) बन गए हैं।

नोट: धारा 6 में, शब्द “पिता” और “माँ” में सौतेले पिता और सौतेली माँ शामिल नहीं हैं।

एक नेचरल गार्जियन की शक्तियां

धारा 8 के अनुसार, नेचरल गार्जियन की बच्चे पर लागू करने की शक्तियाँ इस प्रकार हैं:

  1. एक हिंदू नाबालिग के नेचरल गार्जियन के पास सभी काम करने की शक्ति होती है, जो अनिवार्य हैं और जो नाबालिग के हित (इंटरेस्ट) के लिए फायदेमंद हैं। नाबालिग की स्थिति का संरक्षण (प्रोटेक्शन) या लाभ।
  2. नेचरल गार्जियन को उसे हस्तांतरित (ट्रांसफर्ड) उपहार, गिरवी (मॉर्टगेज) रखने या नाबालिग की किसी अन्य मूल्यवान वस्तु के उपयोग के लिए न्यायालय से पूर्व अनुमति लेनी चाहिए।
  3. नाबालिग की संपत्ति के किसी भाग को लगभग 5 वर्ष से अधिक के लिए या नाबालिग के वयस्क (मेजर) होने की तिथि से आगे 1 वर्ष की अवधि के लिए लीज पर देने के लिए, न्यायालय से पूर्व अनुमति की बहुत आवश्यकता होती है।
  4. एक नेचरल गार्जियन द्वारा अचल (इम्मूवेबल) संपत्ति के किसी भी निपटान का उल्लंघन, नाबालिग या उसकी ओर से दावा करने वाले किसी अन्य व्यक्ति के मामले में अमान्य हो जाएगा।
  5. कोई भी न्यायालय नेचरल गार्जियन को ऐसा कोई कार्य करने की अनुमति नहीं देगा जो नाबालिग के हित में न हो।
  6. यदि आवेदन इस एक्ट की धारा 29 के तहत न्यायालय की अनुमति प्राप्त करने के लिए है और न्यायालय की अनुमति प्राप्त करने के लिए गार्जियंस एंड वार्ड एक्ट, 1890 के आवेदन पर लागू होगा और इन आधारों पर:
  • नेचरल गार्जियन को डिस्ट्रिक्ट कोर्ट या न्यायालय जो गार्जियंस एंड वार्ड एक्ट, 1890 द्वारा सशक्त (एंपावर्ड) है, के तहत अनुमति की आवश्यकता होती है 
  • आवेदन (एप्लीकेशन) न्यायालय को प्रस्तुत करना चाहिए जिसके अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिसडिक्शन) की स्थानीय सीमा (लोकल लिमिट्स) के भीतर, नाबालिग की संपत्ति का हिस्सा है।
  • एक अपील को अस्वीकार कर दिया जाएगा, जब न्यायालय नेचरल गार्जियन को संपत्ति हस्तांतरण के किसी भी कार्य को करने की अनुमति को अस्वीकार कर देता है और यह उपाय (रेमेडी) आमतौर पर इस न्यायालय के निर्णय का परिणाम होता है।

टेस्टामेंट्री गार्जियन

हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट, 1956 की धारा 9 के तहत टेस्टामेंट्री गार्जियन केवल एक विल द्वारा अधिकृत है। टेस्टामेंट्री गार्जियन के लिए यह अनिवार्य है कि वह गार्जियनशिप अडॉप्शन करे जिसे व्यक्त (एक्स्प्रेस) या निहित (इंप्लाइड) किया जा सकता है। एक टेस्टामेंट्री गार्जियन को नियुक्ति को अस्वीकार करने का अधिकार है, लेकिन एक बार जब वह गार्जियनशिप प्राप्त कर लेता है तो वह न्यायालय की अनुमति के बिना परफॉर्म करने या इस्तीफा देने से इनकार नहीं कर सकता है।

हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट, 1956 के अनुसार गार्जियन चुनने की टेस्टामेंट्री शक्ति पिता और माता दोनों को प्रदान की गई है। यदि पिता एक टेस्टामेंट्री गार्जियन चुनता है लेकिन माता उसे अस्वीकार कर देती है, तो पिता का चुना हुआ गार्जियन अक्षम (इनेफिशियंट) होगा और उसके बाद माता नेचरल गार्जियन होगी। यदि माता एक टेस्टामेंट्री गार्जियन चुनती है, तो उसका चुना हुआ गार्जियन, टेस्टामेंट्री गार्जियन बन जाएगा और पिता की नियुक्ति अमान्य हो जाएगी। यदि माता किसी गार्जियन का चयन नहीं करना चाहती है तो पिता द्वारा नियुक्त व्यक्ति गार्जियन बन जाएगा। ऐसा प्रतीत होता है कि एक हिंदू पिता अपने नाबालिग नाजायज बच्चों के गार्जियन का चयन नहीं कर सकता, भले ही उन्हें उनके नेचरल गार्जियन के रूप में प्रदर्शन करने की अनुमति दी गई हो।

न्यायालय द्वारा नियुक्त एक गार्जियन

स्मृतियों के शुरुआती दिनों में, बच्चों के लिए समग्र (ओवरऑल) अधिकार क्षेत्र राजा पर स्वीकृत किया गया था। राजा के पास गार्जियन के रूप में नाबालिग के करीबी रिश्ते को चुनने की शक्ति थी। मातृ पक्ष (मेटरनल साइड) के ऊपर पितृ (पेटरनल) पक्ष के संबंधियों को ही प्राथमिकता (प्रायोरिटी) दी गई। केवल बच्चे की सुरक्षा के लिए, इस प्रकार के कानून प्राचीन कानूनविदों (लॉगिवर्स) द्वारा तैयार किए गए थे।

अब, इस प्रकार की शक्तियाँ न्यायालयों द्वारा गार्जियन एंड वार्ड एक्ट, 1890 के तहत लागू की जाती हैं।

न्यायालयों द्वारा नियुक्त किए जाने वाले गार्जियन को सर्टिफाइड गार्जियन के रूप में जाना जाएगा।

हिंदू मैरिज एंड गार्जियनशिप एक्ट, 1956 की धारा 13 के तहत, जब किसी भी व्यक्ति को गार्जियन के रूप में न्यायालय द्वारा नियुक्त किया जा रहा है, तो नाबालिग का लाभ प्राथमिक कंसीडरेशन होगा।

इसलिए, प्राचीन और आधुनिक दोनों समय में राजा या न्यायालय को एक नाबालिग की रक्षा के लिए एक गार्जियन नियुक्त करने की जिम्मेदारी दी गई है।

अतिरिक्त आधार जहां एक गार्जियन नियुक्त किया जाता है (एडिशनल ग्राउंड्स व्हेयर ए गार्जियन इज़ अपॉइंटेड)

नाबालिग की संपत्ति की गार्जियनशिप (डी फैक्टो गार्जियन)

एक नाबालिग, जो निविदा (टेंडर) उम्र से कम है, कुछ संपत्ति प्राप्त कर सकता है जो विरासत (इन्हेरिटेंस), उपहार आदि द्वारा दी गई है, कम उम्र का बच्चा होने के कारण, वह संपत्ति की उचित देखभाल नहीं कर सकता है।

स्मृतियों ने राय दी कि राजा को नाबालिग की संपत्ति की रक्षा करनी होगी। इस कथन में, मनु कहते हैं कि राजा को एक बच्चे द्वारा स्वीकार की गई विरासत की तब तक रक्षा करनी चाहिए जब तक कि उसकी पढ़ाई पूरी न हो जाए या जब तक वह वयस्क न हो जाए।

वशिष्ठ कहते हैं कि राजा को उस व्यक्ति की संपत्ति की रक्षा करनी चाहिए जो किसी भी व्यवसाय को करने के लिए अयोग्य है, लेकिन नाबालिग के मामले में जब वह वयस्क हो जाता है, तो संपत्ति उसे सौंप दी जाएगी।

आधुनिक कानून में, नेचरल गार्जियन नाबालिग की देखभाल करेगा। इस कथन का उपयोग टेस्टामेंट्री और सर्टिफाइड गार्जियन में भी किया जाता है और कुछ मामलों में गार्जियन केवल उन्हीं संपत्ति की रक्षा करेगा जिसके लिए उन्हें नियुक्त किया गया था, लेकिन नाबालिग की अपवर्जित (एक्सक्लूडेड) संपत्ति के लिए नहीं और गार्जियन को उस संपत्ति की रक्षा के लिए दावा करने का कोई अधिकार नहीं है।

इसलिए, प्राचीन और आधुनिक दोनों कानून निर्माता (मेकर्स) व्यक्ति और उसकी संपत्ति की सुरक्षा में रुचि रखते हैं। आजकल ऐसे कई कानून हैं जो समाज की बदलती जरूरतों के लिए शामिल किए गए हैं।

धारा 11 के अनुसार, डी फैक्टो गार्जियन को नाबालिग की संपत्ति के निपटान या सौदा करने की अनुमति नहीं है और यह दिया गया है कि गार्जियन के पास कोई लोन लेने का अधिकार नहीं है।

मामला- श्रीमती बेटी बाई बनाम जगदीश सिंह और अन्य, के मामले में अपारबल सिंह, वादी (प्लेंटिफ) के पिता थे, जो अब नहीं रहे। अपरबल सिंह की 2 पत्नियां थीं, क्योंकि उनके जीवनकाल में उनकी पहली पत्नी की किसी समस्या के कारण मृत्यु हो गई, फिर उनकी दूसरी पत्नी उनके जीवन में आईं जो प्रतिवादी (रिस्पॉन्डेंट) थीं। दूसरी पत्नी के बच्चे की भी किसी कारण से मौत हो गई। अंत में अपारबल सिंह की मौत के बाद दूसरी पत्नी ने सारी संपत्ति पर कब्जा कर लिया तो पहली पत्नी के बेटे ने शिकायत दर्ज कराई।

यह माना गया कि, हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट, 1956 की धारा 4, धारा 6, धारा 8, धारा 11 के अनुसार, उत्तर वादी के पक्ष में था और वादी ने संपत्ति का आनंद लिया। न्यायालय ने यह भी माना कि, चूंकि प्रतिवादी का भी उस व्यक्ति के साथ संबंध था, इसलिए, उसे संपत्ति का एक तिहाई (वन-थर्ड) प्राप्त करने का अधिकार है, जब वह सक्षम प्राधिकारी (अथॉरिटी) के समक्ष विभाजन (पार्टीशन) के लिए कहेगी।

हिंदू कानून ने दो कठिन परिस्थितियों से परिणाम खोजने की कोशिश की: एक, जब एक हिंदू बच्चे का कोई कानूनी गार्जियन नहीं होता है, तो कोई भी व्यक्ति नहीं होगा, जो कानून के तहत उसकी संपत्ति का प्रबंधन (मैनेज) करेगा और इसलिए, गार्जियन के बिना बच्चे को उसकी संपत्ति से कोई लाभ नहीं मिलेगा। और दूसरा, बिना किसी पदनाम (डिजिग्नेशन) वाले व्यक्ति को बच्चे की संपत्ति में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है ताकि उसे नुकसान हो। हिंदू कानून को इस कठिन स्थिति का परिणाम डी फैक्टो गार्जियनों की कानूनी स्थिति के अनुसार मिला।

एक नाबालिग विधवा की गार्जियनशिप (एफीनिटी द्वारा गार्जियनशिप)

स्मृतियों के पहले के दिनों में बाल विवाह बहुत आम था। नाबालिग लड़की की शादी होने के बाद पति ही लड़की का गार्जियन बन जाता था। किसी भी स्थिति में पति की मृत्यु हो जाए तो नाबालिग विधवा को असुरक्षित महसूस नहीं करना चाहिए।

नारद के अनुसार, जब एक नाबालिग लड़की विधवा हो जाती है तो पति के रिश्तेदारों का कर्तव्य है कि वह उसकी रक्षा करे और उसका भरण-पोषण करे यदि पति के परिवार में कोई नहीं है, तो विधवा के पिता उसकी रक्षा के लिए, विधवा की जिम्मेदारी लेते हैं।

1956 से पहले, एफिनिट द्वारा गार्जियनशिप नामक एक गार्जियन था। यह एक नाबालिग विधवा का गार्जियन था जो गार्जियनशिप एंड वार्ड एक्ट, 1850 द्वारा दिया गया था।

एक नाबालिग विधवा की गार्जियनशिप के लिए हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट, 1956 के तहत कोई प्रावधान (प्रोविजन) नहीं दिया गया है।

मामला- पारस राम बनाम स्टेट, में यह कहा गया कि एक नाबालिग विधवा के ससुर ने विधवा को उसकी माँ के नियंत्रण (कंट्रोल) से छीन लिया और विधवा की सहमति के बिना उसकी शादी एक अनुचित (इंप्रोपर) व्यक्ति से कर दी। न्यायालय ने ससुर को उसकी सहमति के बिना लड़की को विस्थापित (डिस्प्लेस) करने का दोषी ठहराया।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने माना कि वह दोषी नहीं था क्योंकि वह कानूनी रूप से विधवा का गार्जियन था।

न्यायालय में एक प्रश्न उठा कि क्या पति के निकटतम (नियरेस्ट) रक्त संबंधी निस्संदेह पति या पत्नी की मृत्यु पर नाबालिग विधवा के गार्जियन बन जाते हैं या क्या वह केवल एक विकल्प के रूप में गार्जियनशिप में शामिल होता है और वह गार्जियन के रूप में प्रदर्शन नहीं कर सकता है, लेकिन उन्हें इस तरह नियुक्त किया गया है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

किसी भी गार्जियन द्वारा बच्चे का एडॉप्शन करना बच्चे और गार्जियन का रिश्ता बना रहा है, यह व्यक्तिगत कानून की विषय वस्तु बनाता है और नाबालिग के लिए, उसकी संपत्ति की रक्षा करना अनिवार्य है और इस कारण से, एक गार्जियन है जो उसकी और उसकी संपत्ति की देखभाल करेगा। नाबालिग और उसकी संपत्ति की रक्षा के लिए और अविवाहित लड़की और विधवा के लिए इस प्रकार के कानूनों का आविष्कार करने वाले सांसदों का विशेष धन्यवाद। इस तरह कोई भी नाबालिग की संपत्ति को नहीं चुरा सकता है।

इसलिए, नाबालिग के लिए शारीरिक या मानसिक रूप से खुद को बचाने और किसी भी खतरे से सुरक्षित रहने के लिए गार्जियन बहुत आवश्यक है।

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