आई.पी.सी. 1860 के तहत रॉबरी और डकैती (धारा 390-402) की अवधारणा

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Indian Penal Code
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यह लेख सिम्बायोसिस लॉ स्कूल, नोएडा में प्रथम वर्ष के लॉ के छात्र Gurkaran Babrah द्वारा लिखा गया है। यह लेख डकैती, एक्सटॉर्शन और थेफ़्ट के संबंध में रॉबरी पर एक ओवरव्यू देता है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है। 

Table of Contents

रॉबरी 

आधुनिक (मॉडर्न) अमेरिकी और अंग्रेजी कानूनों में, रॉबरी के अपराध को आम तौर पर क़ानून द्वारा परिभाषित किया जाता है। यहाँ दो प्रकार की परिभाषाएँ हैं जिनका मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है। पहली जो पुराने अंग्रेजी सामान्य कानून (कॉमन लॉ) से ली गयी है और दूसरी वह है जो अमेरिकी कानून संस्थान (इंस्टीट्यूशन) के मॉडल पीनल कोड द्वारा अनुशंसित (रिकमेंडेड) की गयी है। रॉबरी, थेफ़्ट और एक्सटॉर्शन जैसे शब्द एक-दूसरे से बहुत मिलते-जुलते हैं और इनका इस्तेमाल अक्सर एक-दूसरे के लिए किया जाता है। लेकिन इन तीनो की कानूनी इम्प्लीकेशन एक दूसरे से बहुत अलग है। इंडियन पीनल कोड ने इन शब्दों को बहुत स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है। इसने इन्हें अलग-अलग अपराधों के रूप में पहचाना है। इंडियन पीनल कोड की धारा 390 में रॉबरी को परिभाषित किया गया है और रॉबरी के संबंध में थेफ़्ट और एक्सटॉर्शन को परिभाषित किया गया है। धारा 390 का विश्लेषण (एनालिसिस) करने या समझने से पहले, पहले थेफ़्ट और एक्सटॉर्शन को अलग-अलग समझना बहुत आवशयक है।

थेफ़्ट

थेफ़्ट को इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 378 के तहत परिभाषित किया गया है। इस धारा में यह कहा गया है की, “जो कोई भी किसी व्यक्ति की सहमति के बिना, उसके कब्जे से किसी भी चल (मूवेबल) संपत्ति को बेईमानी से लेने और उसे उस जगह से हटाने का इरादा (इंटेंशन) रखता है, तो यह माना जाता है की उस व्यक्ति ने थेफ़्ट का अपराध किया है।

उदाहरण के लिए: यदि A को B द्वारा नियोजित (एम्प्लॉय) किया जाता है और C, D के द्वारा दिए गए कैश की देखभाल के लिए रखा जाता है, तो D की सहमति के बिना, यदि A बेईमानी से उस कैश को लेके भाग जाता है, तो तब A को थेफ़्ट का अपराधी माना जाएगा।

प्यारे लाल भार्गव बनाम स्टेट ऑफ़ राजस्थान, के मामले में, एक सरकारी कर्मचारी (एम्प्लॉय) ने कार्यालय से एक फाइल ली और श्री A को दे दी और वह कर्मचारी, वह फाइल दो दिन बाद वापस ले आया। तो इस मामले में यह माना गया कि उसने बेईमानी या दुर्भावनापूर्ण (मेलिशियस) इरादे से संपत्ति को छीन लिया और यह कार्य थेफ़्ट के अपराध को करार देने के लिए पर्याप्त है।

थेफ़्ट के एसेंशियल्स

थेफ़्ट के एसेंशियल्स इस प्रकार हैं:

  • संपत्ति को छीनने के लिए एक बेईमान इरादा होना चाहिए।
  • वह संपत्ति, जमीन से नहीं जुड़ी होनी चाहिए। यह चल संपत्ति होनी चाहिए। जैसे ही संपत्ति पृथ्वी से अलग हो जाती है, यह थेफ़्ट का विषय बनने में सक्षम (केपेबल) है। उदाहरण के लिए, यदि A, B की सहमति के बिना B के कब्जे से, बेईमानी से पेड़ को ले जाने के इरादे से B की जमीन से एक पेड़ काटता है। तो जैसे ही वह पेड़ को जमीन से अलग करता है, वह थेफ़्ट का अपराधी माना जाता है।
  • संपत्ति को दूसरे के कब्जे से बाहर किया जाना चाहिए। जो वस्तु किसी के पास न हो, वह थेफ़्ट की वस्तु नहीं हो सकती।
  • सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि संपत्ति को बिना सहमति के छीन लिया जाना चाहिए।
  • संपत्ति का भौतिक (फिज़िकल) संचलन (मूवमेंट) होना चाहिए, हालांकि, यह महत्वपूर्ण नहीं है कि इसका सीधा संचलन किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि कोई हार से बंधी डोरी को काटता है जिससे हार गिरता है, तो यह माना जाएगा कि उसने संपत्ति को पर्याप्त रूप से संचलन किया है, जो कि थेफ़्ट के लिए आवश्यक है।

थेफ़्ट की सजा

थेफ़्ट की सजा इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 379 के तहत दी गई है। इसमें कहा गया है कि थेफ़्ट करने वाले व्यक्ति को 3 साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।

एक्सटॉर्शन

इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 383 के तहत एक्सटॉर्शन को परिभाषित किया गया है। यह धारा कहती है कि, कोई भी व्यक्ति जो जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति के मन में चोट का डर डालता है और बेईमानी से उसे किसी भी मूल्यवान संपत्ति या हस्ताक्षरित (साइंड) कुछ भी, जिसे मूल्यवान सुरक्षा (सिक्योरिटी) में परिवर्तित किया जा सकता है, को वितरित (डिलीवर) करने के लिए उत्प्रेरित (इंड्यूस) करता है, तो यह कहा जाता है कि उसने एक्सटॉर्शन का अपराध किया है।

उदाहरण के लिए, यदि D, A को धमकी देता है कि वह A के बच्चे को रोंगफुली कनफाइन करेगा और उसे मार देगा यदि A उसे एक लाख रुपये की राशि नहीं देता है। तब D ने एक्सटॉर्शन का अपराध किया है।

एक्सटॉर्शन के एसेंशियल्स 

एक्सटॉर्शन के एसेंशियल्स कुछ इस प्रकार हैं:

  • अपराध करने वाले व्यक्ति को जानबूझकर पीड़ित के मन में चोट का डर डालना चाहिए। चोट का डर इस हद तक होना चाहिए कि वह पीड़ित के दिमाग को अस्थिर (अनसेटल) कर सके और उसे अपनी संपत्ति देने के लिए मजबूर कर सके, जैसा कि ऊपर वर्णित उदाहरण में है।
  • अपराध करने वाले व्यक्ति को बेईमानी से पीड़ित को उसकी (पीड़ित की) संपत्ति को लेने के लिए, उसे डरा कर उत्प्रेरित करना चाहिए।

आर.एस. नायक बनाम ए.आर अंतुले के ऐतिहासिक मामले में, ए.आर. अंतुले, एक सीएम, ने चीनी सहकारीयों (को-ऑपरेटिव्स) से वादा किया, जिनके मामले सरकार के सामने विचार (कंसीड्रेशन) के लिए लंबित (पेंडिंग) थे, और उनसे कहा कि मामलों पर तभी गौर किया जाएगा जब वह उन्हें पैसा दान देंगे। यह माना गया था कि डर या धमकी का इस्तेमाल एक्सटॉर्शन के लिए किया जाना चाहिए, और चूंकि इस मामले में चोट या धमकी का कोई डर नहीं था, इसलिए यह एक्सटॉर्शन नहीं माना जाएगा।

एक्सटॉर्शन के लिए सजा

इंडियन पीनल कोड की धारा 384, एक्सटॉर्शन के लिए सजा प्रदान करती है। इसमें कहा गया है कि एक्सटॉर्शन करने वाले किसी भी व्यक्ति को 3 साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।

रॉबरी के एसेंशियल इंग्रीडिएंट्स

इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 390 कहती है कि सभी रॉबरी में या तो एक्सटॉर्शन या थेफ़्ट होता है। ब्लैक लॉ का डिक्शनरी, रॉबरी को किसी व्यक्ति से, दूसरे की निजी (प्राइवेट) संपत्ति लेने या उसकी इच्छा के खिलाफ या तत्काल (इम्मीडिएट) उपस्थिति (प्रेसेंस) में बल और भय का उपयोग करके, वस्तु के मालिक को स्थायी (परमानेंटली) रूप से वंचित (डीप्राइव) करने के इरादे से पूरा करने के गंभीर कार्य के रूप में परिभाषित करता है।

मृत्यु, चोट या रोंगफुल रिस्ट्रेन्ट या भय के कारण

जब थेफ़्ट एक रॉबरी होती है या जब एक्सटॉर्शन रॉबरी होता है, तो मृत्यु, चोट, रोंगफल रिस्ट्रेन्ट या भय का कारण हो सकता है। इन दोनों को नीचे उदाहरणों की सहायता से समझाया गया है।

जब थेफ़्ट रॉबरी होती है

थेफ़्ट एक रॉबरी होती है, जब थेफ़्ट करने के लिए, अपराधी अपनी इच्छा से किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है या उसकी मृत्यु कारित (कॉस) करने का प्रयास करता है, उसे रोंगफल रिस्ट्रेन्ट के अधीन करता है, चोट पहुंचाता है या तत्काल (इंस्टेंट) मृत्यु या तत्काल रोंगफल रिस्ट्रेन्ट का भय पैदा करता है, या तत्काल चोट का कारण बनता है।

थेफ़्ट को रॉबरी कहा जा सकता है जब नीचे दी गई शर्तें पूरी होती हैं:

  • जब अपराधी अपनी इच्छा से मृत्यु कारित करने का प्रयास करता है;
  • रोंगफुल रिस्ट्रेन्ट ;
  • तत्काल मौत का डर;
  • तत्काल रोंगफुल रिस्ट्रेन्ट ;
  • तत्काल चोट।

और उपरोक्त कार्य किए जाते हैं:

  • थेफ़्ट करते समय,
  • थेफ़्ट से अर्जित (अक्वायर्ड) संपत्ति को ले जाते समय, या
  • संपत्ति ले जाने का प्रयास करते समय।

उदाहरण के लिए, यदि A, B को पकड़ता है और B की सहमति के बिना B के कपड़ों से उसके पैसे धोखे से लेता है। यहां A ने थेफ़्ट का अपराध किया है और थेफ़्ट करके उसने अपनी इच्छा से B को रोंगफुल रिस्ट्रेन्ट से रोक दिया है। इसलिए, A ने रॉबरी की है।

जब एक्सटॉर्शन रॉबरी बन जाता है

एक्सटॉर्शन का अपराध करने वाला व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के मन में भय डालता है और उस व्यक्ति को मृत्यु का भय देकर, उस व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति को तत्काल रोंगफुल रिस्ट्रेन्ट से रोककर, ऐसा करने से उस व्यक्ति को उत्प्रेरित करता है और उस संपत्ति को वहां से वितरित करता है, तो एक्सटॉर्शन रॉबरी हो जाती है। 

उदाहरण के लिए, यदि A, B और उसके बच्चे को सड़क पर मिलता है। A बच्चे को ले जाता है और धमकी देता है कि जब तक B अपना पर्स नहीं दे देता तो वह उसे ऊंचाई से नीचे गिरा देगा। B अपना पर्स देता है। यहां A ने B को उसके बच्चे को तत्काल चोट पहुंचाने के डर से, B से पर्स निकलवाया है। इसलिए A ने B को रॉब किया है। हालांकि अगर A यह कहकर संपत्ति प्राप्त करता है कि आपका बच्चा मेरे गैंग के हाथ में है और उसे मार डाला जाएगा, जब तक आप हमें दस लाख रुपये नहीं भेजते। यह एक्सटॉर्शन की कोटि में आएगा, और इस रूप में दंडनीय होगा, लेकिन इसे तब तक रॉबरी नहीं माना जाएगा जब तक कि B को उसके बच्चे की तत्काल मृत्यु का भय नहीं दिया जाता।

चोरी की संपत्ति पर कब्जा (पजेशन ऑफ़ स्टोलन प्रॉपर्टी)

संपत्ति कानून का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इंडियन पीनल कोड की धारा 410 से धारा 414, चोरी की गयी संपत्ति की अवधारणा (कॉन्सेप्ट) के बारे में बात करती है। इंडियन पीनल कोड की धारा 410 इसे परिभाषित करती है, जब कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति किसी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित करता है। यह थेफ़्ट, एक्सटॉर्शन या रॉबरी के माध्यम से हो सकता है। इसमें सभी प्रकार की संपत्तियां शामिल हैं जिनका एक व्यक्ति क्रिमिनल ब्रीच ऑफ़ ट्रस्ट के लिए मिसेप्रोप्रिएट कर सकता है।

संपत्ति से संबंधित इस प्रकार के उदाहरणों को चुराई हुई संपत्ति के रूप में जाना जाता है। इंडियन पीनल कोड की धारा 410 में यह भी कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति नीचे दिए गए किसी भी माध्यम से संपत्ति का हस्तांतरण करता है तो उसे चोरी की गयी संपत्ति माना जाएगा। ये माध्यम इस प्रकार हैं:

  • थेफ़्ट;
  • एक्सटॉर्शन;
  • रॉबरी ;
  • आपराधिक मिसेप्रोप्रिएशन;
  • क्रिमिनल ब्रीच ऑफ़ ट्रस्ट।

इंडियन पीनल कोड की धारा 411 में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति जो बेईमानी से संपत्ति प्राप्त करता है या रखता है, तो उसे कम से कम 3 साल की कैद, जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।

रॉबरी के लिए सजा

इंडियन पीनल कोड, 1860 आपराधिक कानून से संबंधित सभी प्रकार के दंडों से संबंधित है। इस कोड की धारा 392 के तहत रॉबरी  की सजा को परिभाषित किया गया है। इस धारा में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति जो रॉबरी करता है उसे कारावास से दंडित किया जाएगा जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है और वह जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।

इसके अलावा, यह धारा कहती है कि यदि कोई व्यक्ति हाइवे पर रॉबरी करता है तो कारावास की अवधि 14 वर्ष की होगी। इंडियन पीनल कोड की धारा 393 रॉबरी के प्रयास के लिए सजा प्रदान करती है। इसके लिए सजा 7 साल तक की कैद और जुर्माना भी हो सकता है।

रौबर्स के गैंग का सदस्य होने की सजा

इंडियन पीनल कोड की धारा 412, रौबर्स के गैंग का एक सदस्य होने की सजा से संबंधित है। यह धारा उस व्यक्ति से संबंधित है जो चोरी की गई संपत्ति को रखता है या प्राप्त करता है, जिसको वह कब्जे में रखता है यह जानते हुए भी कि यह रॉबरी के दौरान चुराई गयी संपत्ति है। यह आगे कहता है कि, जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से कोई संपत्ति प्राप्त करता है जिसे वह जानता है या उसके पास यह मानने का औचित्य (जस्टिफिकेशन) है कि संपत्ति रौबर्स के गैंग द्वारा चोरी की गयी है, और यह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है कि संपत्ति रॉब ली गई है या चोरी की गई है।

ऐसे सभी लोगों के लिए, सजा आजीवन कारावास या कठोर अवधि के साथ है, जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है। यह धारा रॉबरी के द्वारा अर्जित की गई किसी भी संपत्ति को प्राप्त करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को दंडित करती है।

रॉबरी करने का प्रयास (एटेम्पट टू कमिट रॉबरी)

इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 393 के तहत रॉबरी करने के प्रयास को परिभाषित किया गया है। यह स्पष्ट रूप से कहता है कि कोई भी व्यक्ति जो रॉबरी करने का प्रयास करता है, उसे कठोर कारावास की सजा दी जाएगी, जिसकी अवधि 7 साल तक बढ़ाई जा सकती है और उसे जुर्माने से भी दंडित किया जाएगा।

डकैती (रॉबरी का उग्र रूप) [डेकोईटी (एग्रावेटेड फॉर्म ऑफ़ रॉबरी)]

रॉबरी के उग्र (एग्रावेटेड) रूप में न केवल डकैती शामिल है, बल्कि इसमें थेफ़्ट और पीड़ित को गंभीर चोटें पहुंचाना भी शामिल हैं। जब 5 या 5 से अधिक व्यक्ति रॉबरी करते हैं या रॉबरी करने का प्रयास करते हैं, तो उसे डकैती कहा जाता है। यह रॉबरी का एक उग्र रूप है और आम तौर पर, इसमें डाकुओं के पास घातक (डेडली) हथियार होते है।

डकैती को आई.पी.सी. की धारा 391 के तहत परिभाषित किया गया है और इसके लिए सजा आई.पी.सी. की धारा 395 के तहत प्रदान की गई है। रॉबरी और डकैती के बीच अंतर सिर्फ इन अपराधों में शामिल होने वाली व्यक्तियों की संख्या का है। धारा 395 गैंग के प्रत्येक सदस्य को डकैती के अपराध को करने के लिए दंडित करती है, चाहे उस व्यक्ति ने अपराध के दौरान सक्रिय (एक्टिव) भाग (पार्ट) लिया हो या नहीं। इस धारा के तहत 10 साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान (प्रोविज़न) प्रदान किया गया है।

डकैती 

ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार डकैती का मतलब हिंसक (वॉयलेंट) रॉबरी का एक कार्य है, जो एक सशस्त्र (आर्म्ड) गैंग द्वारा किया जाता है। केवल एक ही कारक (फैक्टर) है जो डकैती को रॉबरी से अलग करता है और वह है अपराधियों की संख्या। एक व्यक्ति भी रॉबरी  कर सकता है और 1 से अधिक व्यक्ति भी रॉबरी  कर सकते हैं, लेकिन जब 5 या 5 से अधिक व्यक्ति मिलकर रॉबरी करते हैं, तो उसे डकैती कहा जाता है।

इंडियन पीनल कोड की धारा 391 डकैती को परिभाषित करती है। इसमें कहा गया है कि जब 5 या 5 से अधिक व्यक्ति संयुक्त (कन्जॉइन्टली) रूप से रॉबरी करते हैं या करने का प्रयास करते हैं, या जहां संयुक्त रूप से रॉबरी करने या करने का प्रयास करने वाले व्यक्तियों की पूरी संख्या, और ऐसे कार्य को करने या यदि उसके प्रयास में उपस्थित हुए और सहायता करने वाले व्यक्तियों की संख्या 5 या अधिक है, तो ऐसा कार्य करने, प्रयास करने या सहायता करने वाला प्रत्येक व्यक्ति “डकैती” का अपराधी करने वाला कहा जाता है।

एसेंशियल इंग्रीएंट्स

डकैती करने के लिए 3 आवश्यक चीजें शामिल होनी चाहिए। ये आवश्यक चीजें इस प्रकार हैं:

  • कम से कम 5 या 5 से अधिक व्यक्ति होने चाहिए;
  • उन्हें मिलकर डकैती का अपराध करना चाहिए या करने का प्रयास करना चाहिए;
  • उनका इरादा बेईमानी करने का होना चाहिए।

डकैती के लिए सजा

डकैती के लिए दंड, इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 395 के तहत प्रदान किया गया है। यह धारा कहती है कि डकैती करने वाले व्यक्ति को आजीवन कारावास, या कठोर कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है, और वह जुर्माना भरने के लिए भी उत्तरदायी होगा। यह अपराध कॉग्निजेबल, नॉन बेलेबल और नॉन कंपाउंडेबल की प्रकृति का है।

द स्टेट बनाम साधु सिंह और अन्य, के मामले में एक कुर्दा सिंह और 4 अन्य लोग डकैती का अपराध करने में शामिल थे। इन सभी लोग के पास राइफल और पिस्टल जैसे घातक हथियार भी थे। उन लोगो ने घरसीराम के घर में रॉबरी की। उन्होंने घरसीराम, जुगलकिशोर, संदल और जुगलकिसोर को घायल कर दिया। इस मामले में डकैतों ने एक व्यक्ति की घड़ी और शॉल लेने की कोशिश की लेकिन क्योंकि वे लोग ग्रामीण (विलेजर्स) थे तो इस कारण डकैत अपने साथ कुछ भी न ले जा सके। ग्रामीणों के पास से जब डकैत भागने लगे तो वहां के लोगों ने उनका जोरदार पीछा किया और बदले में डकैतों ने गोली चला दी। नतीजतन, धर्मा, ग्रामीणों में से एक की मृत्यु हो गई, लेकिन ग्रामीणों ने उन में से एक डकैत को पकड़ लिया। इस मामले में डकैतों पर इंडियन पीनल कोड की धारा 395 के तहत मामला दर्ज किया गया था.

डकैती का उग्र रूप (एग्रावेटेड फॉर्म ऑफ़ डेकोईटी)

डकैती के उग्र रूप को इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 396 के तहत परिभाषित किया गया है। धारा 396 के तहत डकैती के उग्र रूप को मर्डर के साथ डकैती के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसमें कहा गया है कि यदि 5 या 5 से अधिक व्यक्तियों में से कोई भी व्यक्ति, जो संयुक्त रूप से डकैती कर रहा है, इस तरह की डकैती करते समय किसी व्यक्ति का मर्डर कर देता  है, तो उन व्यक्तियों में से प्रत्येक को मौत की सजा दी जाएगी और वह लोग जुर्माना देने के लिए भी उत्तरदायी होंगे।

धारा 396 के इंग्रेडिएंट्स हैं:

  • डकैती का अपराध, आरोपी व्यक्तियों के संयुक्त कृत्य से किया जाना चाहिए;
  • डकैती का अपराध करने के दौरान मर्डर किया जाना चाहिए।

यदि डकैती करने वाले 5 या 5 से अधिक व्यक्तियों में से कोई भी डकैती करने के दौरान किसी का मर्डर कर देता है, तो उनमें से प्रत्येक व्यक्ति को मर्डर के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा, भले ही उनमें से कुछ ने मर्डर में भाग न भी लिया हो। आई.पी.सी. की धारा 396 के तहत यह साबित करना जरूरी नहीं है कि मर्डर किसी एक व्यक्ति द्वारा किया गया था या उन सभी व्यक्तियों द्वारा किया गया था। उन सभी व्यक्तियों के सामान्य आशय (कॉमन इंटेंशन) को सिद्ध करना भी आवश्यक नहीं है। अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) पक्ष को केवल यह साबित करना आवश्यक होता है कि डकैती करते समय मर्डर किया गया था। यदि अभियोजन पक्ष यह साबित कर देता है कि मर्डर, डकैती करते समय किया गया था, तो सभी व्यक्तियों को आई.पी.सी. की धारा 396 के तहत दंडित किया जाएगा।

यदि अपराधी भाग रहे हैं और अन्य लोग उनका पीछा कर रहे होते है, तो यदि डकैतों में से एक व्यक्ति, उन में से व्यक्ति को को मार देता है तो गैंग के अन्य सदस्यों को आई.पी.सी. की धारा 396 के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। ऐतिहासिक मामलों में से एक में ललिया बनाम स्टेट ऑफ़ राजस्थान के मामले में यह देखा गया कि मर्डर, डकैती का हिस्सा है या नहीं, यह पूरी तरह से उस समय की परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

कोर्ट ने फैसला लिया कि किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इन बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक होगा। ये बिंदु कुछ इस प्रकार हैं:

  • डकैत पीछे हटे (रिट्रीट) या नहीं और पीछे हटते समय मर्डर किया गया या नहीं?
  • मर्डर के प्रयास और डकैत के बीच का समय अंतराल (इंटरवल) क्या है?
  • उन स्थानों के बीच की दूरी क्या है जहां डकैतो ने मर्डर का प्रयास किया और डकैती का प्रयास किया था?

श्याम बिहारी बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश के मामले में, डकैतों ने पीड़ितों में से एक को मार डाला, जिसने डकैती का अपराध करने के प्रयास में डाकू के सहयोगी को पकड़ लिया था। इस कारण डाकू को आई.पी.सी. की धारा 396 के तहत दोषी ठहराया गया था क्योंकि किसी भी लड़ाई के दौरान डकैतों द्वारा की गयी किसी भी व्यक्ति की हत्या को मर्डर माना जाता है।

डकैती से जुड़े अपराध (ऑफेंसेस कनेक्टेड विथ डेकोईटी)

किसी भी अपराध को करने से पहले इरादे की बहुत अहम भूमिका (रोल) होती है। आपराधिक कानून के तहत, इरादे को मेन्स रीआ के नाम से जाना जाता है। मेन्स रीआ का अर्थ है जिसके मन में दोष हो। प्रत्येक अपराध के लिए अपराधी की ओर से मेन्स रीआ होना चाहिए। दूसरे शब्दों में देखा जाए तो इसका मतलब यह है कि अपराध करने का इरादा होना चाहिए। “इरादा” शब्द को इंडियन पीनल कोड, 1860 के तहत स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन आई.पी.सी. की धारा 34 के तहत सामान्य इरादे (कॉमन इंटेंशन) से संबंधित प्रावधान दिए गए है।

आई.पी.सी. की धारा 34 में कई व्यक्तियों द्वारा सामान्य इरादे से किए गए कार्यों को परिभाषित किया गया है। यह धारा कहती है कि “जब एक आपराधिक कार्य कई व्यक्तियों द्वारा सभी के सामान्य इरादे को ध्यान में रखते हुए किया जाता है, तो ऐसा प्रत्येक व्यक्ति उसी तरह से कार्य के लिए उत्तरदायी होता है, जैसे कि यह अकेले उसके द्वारा किया गया था।”

इस धारा के लिए एक विशेष (पर्टिक्युलर) आपराधिक इरादे या ज्ञान होने की आवश्यकता होती है और यह कार्य एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा किया जाना चाहिए। हर व्यक्ति जो ऐसे कार्य के परिणामों को जानते हुए भी उस कार्य में शामिल होता है, तो उन सभी को इस धारा के तहत उत्तरदायी बनाया जाता है।

डकैती करने की तैयारी (प्रिपरेशन टू कमिट डेकोईटी)

इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 399 में डकैती का अपराध करने की तैयारी के बारे में बात की गई है। इसमें कहा गया है कि जो कोई भी डकैती का अपराध करने की तैयारी करता है, तो उसे कठोर कारावास की सजा दी जाती है, जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है, और उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

डकैती करने के उद्देश्य से इकट्ठा होना (असेम्बलिंग फॉर द परपज़ ऑफ़ कमिटिंग डेकोइटी)

इंडियन पीनल कोड की धारा 402 के तहत डकैती का अपराध करने के उद्देश्य से इकट्ठा होना परिभाषित किया गया है। इसमें कहा गया है कि जो कोई भी इस एक्ट के पास होने के बाद किसी भी समय, डकैती का अपराध करने के उद्देश्य से इकट्ठे हुए 5 या अधिक व्यक्तियों में से एक होगा, तो उसे कठोर कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे 7 साल तक बढ़ाया जा सकता है और वह जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।

डकैतों के समूह से ताल्लुक रखना (बिलोंगिंग टू गैंग्स ऑफ़ डेकोइट्स)

डकैतों के समूह से ताल्लुक रखने का अपराध आई.पी.सी. की धारा 400 के तहत परिभाषित किया गया है। इस धारा में कहा गया है कि, जो कोई भी व्यक्ति इस एक्ट के पास होने के बाद किसी भी समय, आदतन (हैबिचुअल) डकैती करने के उद्देश्य से जुड़े व्यक्तियों के एक समूह से संबंधित होगा, तो उस व्यक्ति को आजीवन कारावास, या एक अवधि के लिए कठोर कारावास जो 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, से दंडित किया जाएगा और वह जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।

न्यायिक उच्चारण (ज्यूडिशियल प्रोनाउंसमेंट्स)

अर्जुन गणपत संधभोर बनाम स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र

इस मामले में, एक ट्रक चलाने वाले की हत्या कर दी गई और डकैतों ने ट्रक को अपने कब्जे में ले लिया। यह घटना अंधेरे में हुई थी। दुर्घटना के समय, ट्रक में सवार मृतक के बेटे के द्वारा दिए गए साक्ष्य (एविडेंस) संदेह से मुक्त नहीं थे। उसने उस समय स्वीकार किया कि उसे भूलने की प्रवृत्ति (टेनडेन्सी) है। क्रिमिनल मैन्युअल के तहत निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड आयोजित (हेल्ड) नहीं की गई थी इसलिए सबूतों की समग्रता (टोटेलिटी) को देखते हुए आरोपी बरी होने का हकदार था।

मोहम्मद इमामुद्दीन और अन्य बनाम स्टेट ऑफ़ बिहार 

इस मामले में, डकैती की सजा कम करने के लिए याचिका (प्ली) पेश की गयी थी। आरोपियों में से कुछ व्यक्तियों पर चलती ट्रेन में डकैती करने का आरोप लगाया गया था। उन्हें संबंधित अपराधों के लिए 7 साल का कठोर कारावास और 2 साल की सजा उनके द्वारा किये गए अपराधों के सम्बन्ध में सुनाई गई थी। आरोपी काफी समय तक हिरासत में रहा, लगभग 50 प्रतिशत सजा उसने काट ली थी और इस याचिका से उसकी सजा को घटाकर आधा कर दिया गया था, जिसे आरोपी पहले ही कारावास में बिता चुका था।

निष्कर्ष (कन्क्लूज़न)

यह लेख, इंडियन पीनल कोड, 1860 के तहत दी गयी रॉबरी और डकैती की अवधारणा की व्याख्या करता है। लेकिन रॉबरी और डकैती को समझने के लिए, थेफ़्ट और एक्सटॉर्शन की अवधारणा को समझने की बहुत आवश्यकता है। तो, इस लेख में रॉबरी और डकैती के बारे में जानने से पहले, थेफ़्ट और एक्सटॉर्शन को प्रासंगिक (रेलिवेंट) उदाहरणों और प्रासंगिक केस कानूनों के साथ समझाया गया है। इन्हें समझना महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि ये शब्द समान प्रतीत हो सकते हैं, लेकिन इनके कानूनी अनुप्रयोग (एप्लिकेशन) में भिन्नता हैं। वे अक्सर एक दूसरे के स्थान पर उपयोग किए जाते हैं। यह लेख इन सभी अवधारणाओं को ध्यान में रखते हुए और इंडियन पीनल कोड, 1860 के तहत इन सभी अवधारणाओं का एक ओवरव्यू देता है।

संदर्भ (रेफरेन्सेस)

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