यह लेख Shreya Patel द्वारा लिखा गया है। यह लेख भारतीय संविधान के 105वें संशोधन पर चर्चा करता है और इसकी पृष्ठभूमि और प्रमुख प्रावधानों की व्याख्या करता है जिन्हें भारतीय संविधान के 105वें संशोधन के तहत शामिल, बदलाव और परिवर्तित किया गया था। इस लेख में आवश्यकता, प्रमुख घटनाएं जिनके कारण ऐसा संशोधन हुआ, इस संशोधन के पीछे का कारण, केंद्र सरकार का सुधारात्मक कदम और संशोधन के प्रभाव पर भी गहराई से चर्चा की गई है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta के द्वारा किया गया हैं।
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परिचय
भारत का संविधान, देश का सर्वोच्च कानून है। भारतीय संविधान का बदलती परिस्थितियों और आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी होना अत्यंत आवश्यक है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 368 वह प्रावधान है जो संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति देता है। संशोधन का अर्थ है संविधान में प्रावधानों में बदलाव, परिवर्धन (एडिशन) या निरसन जैसे परिवर्तन करने की प्रक्रिया।
भारत के संविधान में संशोधन इसलिए किए जाते हैं, ताकि मौलिक सिद्धांतों को बरकरार रखा जा सके और संविधान बदलती परिस्थितियों के अनुकूल बन सके। चूंकि संविधान एक जीवित दस्तावेज़ है, इसलिए समय के साथ इसे प्रासंगिक बनाए रखने के लिए इसमें संशोधन आवश्यक हैं। संविधान में संशोधन से संबंधित सभी प्रावधान भारतीय संविधान के भाग XX के तहत अनुच्छेद 368 में दिए गए हैं। यह प्रावधान संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में संशोधन के दायरे और प्रक्रिया पर विवरण प्रदान करता है।
संविधान में संशोधन के कई महत्व हैं, जैसे, यह शासन की अनुकूलन क्षमता में मदद करता है, सामाजिक सुधार लाने में सहायता करता है, नए अधिकारों को समायोजित करता है, नए अधिकारों के विकास में मदद करता है, उभरते मुद्दों को संबोधित करता है आदि। भारत के संविधान में संशोधन करने की शक्ति पूरी तरह से संसद के पास है। संसद में तीन प्रकार का बहुमत हासिल करना होता है। संविधान के प्रावधानों में संशोधन करने के लिए विशेष बहुमत सुरक्षित करना होता है। बहुमत के प्रकार निम्नलिखित हैं:
- संसद का साधारण बहुमत
- संसद का विशेष बहुमत
- संसद का विशेष बहुमत तथा आधे राज्यों की सहमति।
102वें संवैधानिक संशोधन (2018) के साथ, आरक्षण प्रदान करने के लिए वर्ष 2018 में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की एक सूची तैयार करने की शक्ति केंद्र सरकार के साथ संसद को दी गई थी। राज्य और केंद्र सरकार दोनों द्वारा संकलित सूचियाँ मेल नहीं खातीं, जिसके कारण आरक्षण प्रदान करने में बहुत जटिलता हुई। 127वां संवैधानिक संशोधन विधेयक, 2021 11 अगस्त, 2021 को पारित किया गया था ताकि राज्यों को ऐसी सूची तैयार करने का अधिकार बहाल किया जा सके जिसे आरक्षण प्रदान करने के लिए माना जाएगा।
इसने जयश्री लक्ष्मणराव पाटिल बनाम मुख्यमंत्री और अन्य (2021), के मामले में 2021 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को नजरअंदाज कर दिया जिसने शैक्षिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को अधिसूचित करने की शक्ति केवल केंद्र सरकार को दी, राज्य सरकार को नहीं। 2021 में संविधान के 105वें संशोधन ने ओबीसी से संबंधित लोगों की सूची तैयार करने और उन्हें आरक्षण प्रदान करने का राज्य सरकार का अधिकार फिर से बहाल कर दिया।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत में शैक्षिक और सामाजिक रूप से वंचित वर्गों को हमेशा राज्य सरकारों द्वारा मान्यता दी जाती है। जब शिक्षा और सार्वजनिक नौकरियों की बात आती है तो इन शैक्षिक और सामाजिक रूप से वंचित वर्गों को प्राथमिकता दी जाती है। 1992 में, मंडल आयोग की सिफारिश के आधार पर, भारत की केंद्र सरकार ने केंद्रीय सूची में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) को पहचानने के लिए एक नई प्रणाली की स्थापना की। एक ऐसी प्रणाली बनाई गई जहां सार्वजनिक रोजगार और शैक्षणिक संस्थानों के संबंध में आयु मानदंड के आधार पर और पिछड़े वर्गों के अनुसार आरक्षण दिया जाएगा। इंद्रा साहनी आदि बनाम भारत संघ और अन्य आदि (1992) के ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्धारित किया कि राज्य और केंद्र सरकार दोनों के पास एसईबीसी के लिए आरक्षण देने और मान्यता देने का अधिकार होगा।
संसद ने 1993 में एक विधायी निकाय के रूप में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) की भी स्थापना की, जो एसईबीसी की उन्नति, विकास और कल्याण के लिए जिम्मेदार था। 102वां संवैधानिक संशोधन 2018 में संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया था। इंद्रा साहनी के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने एक स्थायी निकाय के निर्माण का निर्देश दिया था जो पिछड़े वर्गों के बहिष्कार और समावेशन का सिफारिश और जांच करेगा। इस निर्देश के अनुसरण में, संसद द्वारा एनसीबीसी की स्थापना की गई थी। भारत के संविधान के 102वें संवैधानिक संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद 338B डाला गया, जिसने एनसीबीसी को संवैधानिक दर्जा दिया।
उसी नोट पर, पिछड़ेपन का आकलन करने और उसके लिए सकारात्मक उपाय करने के लिए राज्य सरकारों द्वारा पिछड़ा वर्ग आयोग भी स्थापित किए गए थे। 127वां संविधान संशोधन विधेयक 11 अगस्त, 2021 को मतदान और चर्चा के लिए संसद के उच्च सदन में पेश किया गया था, जहां विधेयक पर चर्चा हुई और उसी दिन पारित कर दिया गया।
लोकसभा में विधेयक के पक्ष में 380 मत मिले, जबकि किसी ने इसका विरोध नहीं किया। भारत के राष्ट्रपति को एक विशेष प्रावधान के तहत आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित वर्गों के लिए समुदायों को मान्यता देने का अधिकार भी प्रदान किया गया।
प्रमुख घटनाएँ जिनके कारण भारतीय संविधान का 105वाँ संशोधन हुआ
घटना | महत्व |
मंडल आयोग की रिपोर्ट (1980) | ओबीसी के लिए सार्वजनिक नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की सिफारिश की गई थी। |
इंद्रा साहनी आदि बनाम भारत संघ और अन्य आदि (1992) | मंडल आयोग की सिफ़ारिशों को बरकरार रखा गया और आरक्षण पर पचास प्रतिशत की सीमा लगा दी गई। ओबीसी की “क्रीमी लेयर” को बाहर रखा गया। इस मामले से एक कानूनी मिसाल कायम हुई, जिसने 105वें संशोधन को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। |
सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के लिए महाराष्ट्र राज्य आरक्षण (राज्य में शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और राज्य के तहत सार्वजनिक सेवाओं और पदों में नियुक्तियों के लिए सीटों का) अधिनियम, 2018 | एसईबीसी के तहत, महाराष्ट्र सरकार ने मराठों को आरक्षण दिया। इस अधिनियम ने एसईबीसी के निर्धारण के लिए राज्यों को दी गई शक्ति में संशोधन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। |
जयश्री लक्ष्मणराव पाटिल बनाम मुख्यमंत्री और अन्य (2021) (मराठा कोटा मामला) | इस फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र एसईबीसी अधिनियम, 2018 को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि एसईबीसी की पहचान भारत का संविधान के 102वें संशोधन अधिनियम के बाद राज्यों द्वारा नहीं की जा सकती है। इस मामले में, राज्य की शक्तियों की बहाली के साथ 105वें संशोधन की आवश्यकता देखी गई। |
127वां संशोधन विधेयक – प्रस्तुत करना | 105वां संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया गया था, जिसका उद्देश्य एसईबीसी की पहचान में राज्यों के अधिकारों को बहाल करने के लिए संविधान में संशोधन करना था। |
127वां संशोधन विधेयक – पारित होना | 127वां संशोधन विधेयक दोनों सदनों में पारित हो गया। |
राष्ट्रपति की मंजूरी | 127वें संशोधन विधेयक को भारत के राष्ट्रपति से मंजूरी मिल गई और राज्यों में एसईबीसी की पहचान करने की शक्ति फिर से बहाल हो गई। |
भारतीय संविधान के 105वें संशोधन का नेतृत्व करने वाले प्रमुख मामलों में से एक मराठा कोटा मामला था। आइए मामले के तथ्यों, उठाए गए मुद्दों और भारत के शीर्ष न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले पर एक नजर डालें।
मराठा कोटा मामले के माध्यम से अवधारणा को समझना [जयश्री लक्ष्मणराव पाटिल बनाम मुख्यमंत्री और अन्य (2021)]
मामले के तथ्य
- नवंबर, 2018 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा मराठा समुदाय को एसईबीसी के रूप में चुना गया, जिसने उन्हें सार्वजनिक रोजगार के साथ-साथ शिक्षा में भी प्राथमिकता दी।
- महाराष्ट्र सरकार द्वारा मराठा समुदाय को सार्वजनिक रोजगार और शिक्षा दोनों में 16% आरक्षण देने वाला एक अध्यादेश (ऑर्डिनेंस) जारी किया गया था।
- ऐसे अध्यादेश पर रोक लगाने के लिए बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा एक अंतरिम (इंटेरिम) आदेश जारी किया गया था।
- अंतरिम आदेश को चुनौती सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दी।
- बॉम्बे उच्च न्यायालय ने रोजगार और शिक्षा में 16% आरक्षण देने के लिए महाराष्ट्र द्वारा अधिनियमित सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 2014 के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी।
- महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना की गई और इसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति गायकवाड़ ने की। इस आयोग ने शैक्षणिक संस्थानों में 12% आरक्षण और सार्वजनिक रोजगार में 13% आरक्षण की सिफारिश की।
- सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 2018 (एसईबीसी अधिनियम, 2018) आयोग की सिफारिशों के आधार पर पारित किया गया था। 16% आरक्षण दिया गया, जो अनुशंसित कोटा से अधिक था।
उठाए गए मुद्दे
- क्या महाराष्ट्र राज्य के पास 102वें संशोधन के बाद एसईबीसी की पहचान करने की शक्ति है?
- क्या एसईबीसी अधिनियम, 2018 ने संविधान के अनुच्छेद 15(4) और अनुच्छेद 16(4) का उल्लंघन किया है?
- क्या इंदिरा साहनी मामले में निर्धारित 50% की सीमा पार हो जाएगी?
मामले का फैसला
जयश्री लक्ष्मणराव पाटिल बनाम मुख्यमंत्री और अन्य (2021), मई 2021 (जिसे मराठा कोटा केस के रूप में भी जाना जाता है) के ऐतिहासिक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला दिया कि आरक्षण पर 50% की सीमा पर पुनर्विचार नहीं किया जाना चाहिए और 50% की सीमा को किसी भी परिस्थिति में पार नहीं किया जाना चाहिए। यदि 50% की सीमा पार हो जाती है तो इसे असंवैधानिक माना जाएगा। बॉम्बे उच्च न्यायालय और गायकवाड़ आयोग यह नहीं बता सके कि मराठा आरक्षण की सीमा के अपवाद के अंतर्गत असाधारण स्थिति में कैसे आते हैं।
महाराष्ट्र सरकार द्वारा इस तरह का निर्णय लेने के बाद कई चुनौतियाँ सामने आईं। मराठा समुदाय को एसईबीसी के रूप में नामित करना, जब राज्यों की ऐसी शक्ति 102वें संशोधन द्वारा कम कर दी गई थी, मुख्य चुनौतियों में से एक थी। सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने 3:2 के बहुमत से माना कि राज्यों के पास कोई शक्ति नहीं है। बहुमत के अनुसार, 102वें संशोधन की सही समझ यह थी कि केवल केंद्र सरकार के पास एसईबीसी को पहचानने की शक्ति थी। राज्यों को शक्ति की बहाली पर कई राजनीतिक दलों ने जोर दिया था। संघ ने भी इस पर समीक्षा का अनुरोध किया, जिसे अस्वीकार कर दिया गया, जिसके बाद बाद में 127वां संवैधानिक संशोधन विधेयक पेश किया गया, जो बाद में पारित हुआ और संविधान का 105वां संशोधन बन गया।
भारतीय संविधान में 105वें संशोधन की आवश्यकता
भारतीय संविधान का 105वां संशोधन महाराष्ट्र आरक्षण मामले में अपने फैसले के माध्यम से शीर्ष न्यायालय के फैसले के बाद लागू किया गया था जिसने भारतीय संविधान के 102वें संशोधन को बरकरार रखा था। सर्वोच्च न्यायालय की ओर से कहा गया कि एनसीबीएस की सिफारिश के अनुसार राष्ट्रपति तय करेंगे कि किन समुदायों को ओबीसी राज्य सूची में शामिल किया जाएगा।
भारतीय संविधान के 105वें संशोधन का मुख्य उद्देश्य राज्य सरकार की शक्ति को बहाल करना था, ताकि वे उन वर्गों को पहचान सकें जो शैक्षिक और सामाजिक रूप से वंचित हैं। केंद्र सरकार द्वारा बताए गए 102वें संशोधन का मुख्य उद्देश्य एक केंद्रीय सूची बनाना था जिसका उपयोग विशेष रूप से केवल केंद्र सरकार और उनके संस्थानों द्वारा किया जाएगा। इसका पिछड़े समुदायों को वर्गीकृत करने की राज्य सरकार की शक्ति और पिछड़े वर्गों की राज्य सूची से कोई लेना-देना नहीं था।
105वें संशोधन के साथ अनुच्छेद के खंड 3 को जोड़कर और खंड 1 और 2 में संशोधन करके अनुच्छेद 342A से संबंधित सभी भ्रमों को दूर कर दिया गया। राज्यों में शक्ति की बहाली से लगभग 671 ओबीसी समुदायों को लाभ मिलेगा जो वे खो देते यदि राज्य की ओबीसी सूची बनाने की शक्तियां समाप्त कर दी जातीं और वे शैक्षणिक संस्थानों और रोजगार में आरक्षण तक पहुंच खो देते। राज्यों को शक्ति वापस बहाल करने का उपाय सामाजिक संतुलन को बढ़ावा देता है।
संविधान के प्रावधान (105वां संशोधन) अधिनियम, 2021
धारा 1
इस धारा में कहा गया है कि अधिनियम को संविधान (एक सौ पांचवां संशोधन) अधिनियम, 2021 के रूप में जाना जाएगा। यह अधिनियम तब लागू होगा जब केंद्र सरकार आधिकारिक राजपत्र के माध्यम से अधिसूचित करेगी।
धारा 2
इस धारा में कहा गया है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338B खंड (9) में एक प्रावधान जोड़ा जाएगा। प्रावधान में कहा गया है कि – (बशर्ते कि) खंड (9) में कुछ भी संविधान के अनुच्छेद 342A के खंड (3) के उद्देश्य के लिए लागू नहीं होगा जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के बारे में बात करता है। अनुच्छेद 338B के खंड 9 में कहा गया है कि प्रत्येक राज्य सरकार और केंद्र एसईबीसी को प्रभावित करने वाले सभी नीतिगत मामलों पर एनसीबीसी से परामर्श करेंगे।
धारा 3
इस धारा में कहा गया है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342A में –
- खंड (1) में “सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग जो इस संविधान के प्रयोजनों के लिए होंगे” को “केंद्रीय सूची में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग जो केंद्र सरकार के प्रयोजनों के लिए होंगे” से प्रतिस्थापित किया गया था;
- एक स्पष्टीकरण, जिसमें कहा गया है कि – खंड (1) और (2) के प्रयोजनों के लिए अभिव्यक्ति “केंद्रीय सूची”, का अर्थ एसईबीसी की सूची होगी जो केंद्र सरकार द्वारा और उसके लिए तैयार और रखरखाव की गई थी – खंड( 2) के बाद भी डाला गया था;
- एक उपधारा (3) भी जोड़ा गई थी जिसमें कहा गया था कि – खंड (1) और (2) में निहित किसी भी बात के बावजूद, प्रत्येक संघ और राज्य कानून द्वारा अपने स्वयं के उद्देश्यों के लिए एसईबीसी की एक सूची बनाए रख सकते हैं और तैयार कर सकते हैं और ये प्रविष्टियाँ केन्द्रीय सूची से अलग-अलग हो सकती हैं।
धारा 4
इस धारा में कहा गया है कि “सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग” का अर्थ ऐसे पिछड़े वर्ग जिन्हें केंद्र सरकार या राज्य या केंद्र शासित प्रदेश जैसा भी मामला हो, के प्रयोजनों के लिए अनुच्छेद 342A के तहत समझा जाता है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366 में खंड (26C) के रूप में प्रतिस्थापित किया गया है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 338B
अनुच्छेद 338B राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) की संरचना और शक्तियों का वर्णन करता है। यह प्रावधान है कि एनसीबीसी में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य शामिल होंगे। राष्ट्रपति इन सदस्यों के कार्यकाल और सेवा शर्तों पर निर्णय लेगा। आयोग के कर्तव्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:-
- भारत के संविधान के साथ स्थापित कानूनों के तहत एसईबीसी की सुरक्षा से संबंधित सभी मामलों की निगरानी और जांच करना;
- एसईबीसी के अधिकारों से वंचित करने के संबंध में की गई पूछताछ पर जांच करना;
- वार्षिक या जब भी आवश्यक हो, कामकाज की रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करना;
- राज्य और संघ द्वारा उठाए जाने वाले उपायों पर की गई सिफ़ारिशों पर रिपोर्ट बनाना; और
- एसईबीसी के कल्याण, विकास और सुरक्षा के लिए काम करना।
राष्ट्रपति को सौंपी गई रिपोर्ट को आगे की सिफारिशों के लिए संसद में रखा जा सकता है। जांच करते समय या की गई शिकायत के बारे में पूछताछ करते समय आयोग के पास सिविल न्यायालय की शक्तियां होंगी। एनसीबीसी किसी व्यक्ति को बुला सकता है, किसी व्यक्ति की उपस्थिति को लागू कर सकता है, किसी दस्तावेज़ को प्रस्तुत करने या खोज की आवश्यकता कर सकता है, हलफनामों पर साक्ष्य प्राप्त कर सकता है, किसी भी कार्यालय या अदालत से किसी भी सार्वजनिक रिकॉर्ड की एक प्रति मांग सकता है, और दस्तावेजों या गवाह के परीक्षण के लिए कमीशन भी जारी कर सकता है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 342A
भारत के संविधान का अनुच्छेद 342A राष्ट्रपति को यह निर्णय लेने का अधिकार देता है कि किन समुदायों को केंद्र शासित प्रदेश या राज्य में एसईबीसी के रूप में सूचीबद्ध किया जाएगा। जब किसी राज्य के मामले में निर्णय लेने की बात आती है, तो राष्ट्रपति को राज्य के राज्यपाल से परामर्श करना होगा और फिर सार्वजनिक रूप से इसके बारे में सूचित करना होगा। एसईबीसी की केंद्रीय सूची से, संसद वर्गों को शामिल या बाहर कर सकती है। केंद्रीय सूची केंद्र सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है और एसईबीसी के लिए आधिकारिक सूची है। इस अनुच्छेद में आगे कहा गया है कि अल्पसंख्यकों की एक केंद्रीय सूची होने के बावजूद, सभी संघ और राज्य अपने उद्देश्यों के लिए अपनी सूचियाँ बना सकते हैं जो केंद्रीय सूची से भिन्न हो सकती हैं।
भारतीय संविधान में 105वें संशोधन के मुख्य बिंदु
- भारत के संविधान का 105वां संशोधन 5 अगस्त, 2021 को लागू हुआ।
- 105वां संशोधन 127वें संवैधानिक संशोधन विधेयक (2021) के घटकों में से एक था।
- इस संशोधन के तहत जिन मुख्य अनुच्छेदों में संशोधन किया गया वे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338B, 342A और 366 थे।
- 105वां संशोधन एसईबीसी की पहचान करने के लिए केंद्र शासित प्रदेशों और राज्य सरकार की शक्ति को बहाल करता है।
- 102वें संशोधन अधिनियम, 2018 के साथ राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया। 102वें संशोधन का मुख्य उद्देश्य एसबीईसी को मान्यता देने की राज्यों की शक्ति को छीनना नहीं था।
- महाराष्ट्र सरकार ने 2019 में मराठों को सोलह प्रतिशत आरक्षण दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले को यह कहते हुए अमान्य कर दिया कि इंदिरा साहनी मामले में आरक्षण की जो सीमा तय की गई थी, वह पार हो गई है।
- सभी अनुच्छेद जो 102वें संशोधन द्वारा सम्मिलित किये गये थे, 105वें संशोधन द्वारा संशोधित किये गये। इनमें अनुच्छेद 338B और अनुच्छेद 342A शामिल थे। एसईबीसी को सूचीबद्ध करने के लिए राज्यों की शक्ति फिर से बहाल कर दी गई। अनुच्छेद 342A के खंड 1 और 2 में संशोधन किया गया और शक्ति की बहाली के संबंध में एक नया खंड 3 भी जोड़ा गया।
- 105वें संशोधन में अनुच्छेद 366 (26C) भी जोड़ा गया, जिसमें सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की परिभाषा शामिल है। परिभाषा में कहा गया है कि “सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग” का अर्थ अनुच्छेद 324A के तहत समझे जाने वाले सभी पिछड़े वर्ग हैं।
भारतीय संविधान के 105वें संशोधन का सुधारात्मक पाठ्यक्रम
केंद्र सरकार द्वारा यह दावा किया गया कि 102वां संशोधन विशेष रूप से केंद्र सरकार के लिए था। विशेष रूप से ऐसा कोई खंड नहीं था जो यह कहे कि सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को परिभाषित करने की राज्य सरकार की शक्तियों को छीन लेता है। इससे विभिन्न चरणों में यह भ्रम पैदा हो गया कि क्या राज्य के पास शक्ति थी या केंद्र सरकार के पास एकमात्र शक्ति थी। सभी राज्यों के बहुमत द्वारा इस बात पर सहमति व्यक्त की गई कि राज्यों को उनकी शक्तियाँ पुनः प्रदान की जानी चाहिए। पक्षों ने फैसले को पलटने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। संसद के दोनों सदनों ने बिना किसी विरोध के 105वें संशोधन विधेयक को पारित कर दिया, जिससे राज्यों को एसईबीसी को फिर से मान्यता देने की शक्ति मिल गई।
केंद्र और राज्य सरकार दोनों के बीच शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए सुधारात्मक कदम उठाया गया था। कई एसईबीसी ने आरक्षण के अपने अधिकार खो दिए, जब एसईबीसी को मान्यता देने की शक्ति पूरी तरह से केंद्र सरकार के पास थी। इसलिए, इस तरह के असंतुलन को दूर करने और सभी एसईबीसी के अधिकारों की रक्षा के लिए, 105वां संशोधन पेश किया गया था।
भारतीय संविधान के 105वें संशोधन का प्रभाव
- भारतीय संविधान के 105वें संशोधन का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव ओबीसी को होने वाला लाभ है।
- इस संशोधन से लगभग 650 समुदायों को लाभ हुआ और तब से उन्हें सशक्तिकरण और प्रतिनिधित्व मिल रहा है।
- सामाजिक-आर्थिक प्रकृति की सभी आवश्यकताओं को राज्यों द्वारा शीघ्रता से सुना और हल किया जा सकता है।
- इन समुदायों को रोजगार और शिक्षा के अवसर प्रदान करके उनकी सामाजिक स्थिति को भी बढ़ाया जा सकता है, जिससे समावेशी (इंक्लूजिव) विकास होगा।
- संवैधानिक आरक्षण पर वर्षों से बहस चल रही है और इस संशोधन के साथ एक आदर्श संतुलन बनाया गया है।
- सरकार और समाज का मुख्य उद्देश्य भेदभाव और पूर्वाग्रह को मिटाकर सभी के लिए समान अधिकार बनाना है।
- 105वां संशोधन एक अधिक समतावादी (इगेलिटेरियन) समाज की स्थापना के लिए किया गया प्रयास है।
- भारतीय संविधान के 105वें संशोधन ने राज्यों को ओबीसी की सूची तैयार करने और उन्हें आरक्षण प्रदान करने का अधिकार वापस दे दिया।
निष्कर्ष
भारतीय संविधान का 105वां संशोधन संविधान में किए गए महत्वपूर्ण संशोधनों में से एक है। इस संशोधन के साथ, एसईबीसी की पहचान और स्थापना और उन्हें आरक्षण प्रदान करने में राज्य और केंद्र सरकार दोनों की शक्तियों में एक संतुलित दृष्टिकोण स्थापित किया गया। इस संवैधानिक संशोधन के तहत अनुच्छेद 342A में संशोधन किया गया, जो प्रत्येक केंद्र शासित प्रदेश और राज्य में एसईबीसी को निर्दिष्ट करने की राष्ट्रपति की शक्ति को बताता है।
अपने राज्यों में एसईबीसी की पहचान करने के लिए राज्यों की शक्ति उन्हें वापस बहाल कर दी गई। अनुच्छेद 342A में एक खंड भी जोड़ा गया। खंड (3) जोड़ा गया कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के पास एसईबीसी को निर्दिष्ट और पहचानने की शक्ति होगी। मराठा कोटा मामले के तहत दी गई व्याख्या को 105वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा खारिज कर दिया गया था। 105वां संशोधन राज्यों को सशक्त बनाने की दिशा में एक सकारात्मक बदलाव है, लेकिन संविधान में समावेशिता और समानता को बनाए रखने के लिए शक्तियों के दुरुपयोग को रोकने पर भी नजर रखता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
भारत के संविधान में नवीनतम संशोधन क्या है?
भारत के संविधान में नवीनतम संशोधन 106वां संशोधन है। 106वां संशोधन सितंबर, 2023 में हुआ।106वें संशोधन के साथ, राज्य विधान सभाओं, लोकसभा और राष्ट्रीय राजधानी की विधान सभा में भी सभी सीटों में से एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी गईं।
भारत के संविधान में कितने संशोधन किये गये हैं?
सितंबर 2023 तक, भारत के संविधान में कुल 106 संशोधन किए गए हैं।
भारत की संसद में 105वें संविधान संशोधन की प्रस्तुति किस कैबिनेट मंत्री द्वारा दी गई?
डॉ वीरेंद्र कुमार सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री कैबिनेट मंत्री थे जिन्होंने 105वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम पेश किया और प्रस्तुत किया था।
भारत के संविधान में संशोधन कैसे किया जाता है?
भारत के संविधान में विभिन्न प्रकार के परिवर्तन करने की अलग-अलग प्रक्रियाएँ हैं। भारत के संविधान में संशोधन करने के लिए एक विधेयक को संसद में पेश किया जाना चाहिए और बहुमत के साथ दोनों सदनों में पारित किया जाना चाहिए।
105वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम से एसईबीसी पर अन्य कानूनों और संशोधनों को क्या अलग करता है?
105वां संविधान संशोधन अधिनियम पिछले कुछ वर्षों में संविधान में किए गए अन्य संशोधनों से अलग है, क्योंकि इसका किसी भी लोकसभा सदस्य ने विरोध नहीं किया था। शैक्षिक और सामाजिक रूप से वंचित क्षेत्रों की परिभाषा तय करने का अधिकार भी राज्य सरकारों को वापस दे दिया गया।
भारतीय संविधान का 102वाँ संशोधन क्या निर्दिष्ट करता है?
102वें संशोधन ने राष्ट्रपति को सभी संघों और राज्यों में ओबीसी की पहचान करने की शक्ति दी। राष्ट्रपति की सहमति के साथ दोनों सदनों द्वारा एक ही विधेयक पारित किए जाने के बाद 2018 में संशोधन किया गया था। इस संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद 338B और 342A जोड़े गए। इस संशोधन के तहत राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) को संवैधानिक दर्जा दिया गया।
संदर्भ
- Constitution of India by V. N. Shukla