अनुबंधों में विवाद समाधान खंडों का पालन करना

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यह लेख Krishna Gupta द्वारा लिखा गया है, जो लॉसिखो से इंटरनेशनल कॉन्ट्रेक्ट निगोशिएशन, ड्राफ्टिंग एंड एनफॉर्समेंट में डिप्लोमा कर रहे हैं। इस लेख मे अनुबंधों में विवाद समाधान खंडों का पालन करने के बारे मे विस्तृत रूप से चर्चा की गई है। इस लेख मे विवाद समाधान की आवश्यकता, प्रभाव, विवाद समाधान के लाभ, विवाद समाधान प्रक्रिया, विवाद समाधान तंत्र और इसके प्रकार की चर्चा गई है। इस लेख का अनुवाद Chitrangda Sharma के द्वारा किया गया है। 

परिचय

कानून की दृष्टि में अनुबंध, पक्षों के बीच कुछ प्रतिफल (कंसीडरेशन) के लिए किया गया एक पारस्परिक करार (एग्रीमेंट) है, जिसे कानून द्वारा लागू किया जाता है। अनुबंध विभिन्न स्वरूपों के होते हैं और विभिन्न कार्यों में उपयोग किए जाते हैं। अनुबंध मौखिक अथवा लिखित रूप में हो सकते हैं। लिखित अनुबंध या मानक अनुबंध पक्षों की अपेक्षाओं के बारे में अधिक स्पष्टता प्रदान करते हैं और गलतफहमी को रोकने में मदद कर सकते हैं। एक अच्छे लिखित अनुबंध में किसी भी विवाद या मुद्दे के समाधान के लिए एक प्रक्रिया शामिल होगी। 

इसके अलावा, चूंकि अनुबंध प्रवर्तन कानून के अधीन होते हैं, इसलिए लिखित अनुबंध अधिक आसानी से प्रवर्तनीय होते हैं। 

किसी भी अनुबंधात्मक संबंध में अनुबंध से उत्पन्न विवाद को हल करने के लिए एक सहमत दृष्टिकोण होना आवश्यक है। किसी अनुबंध में विवाद समाधान खंड, पक्षों के आशयो को परखने के लिए महत्वपूर्ण उपाय हैं कि वे एक साथ मिलकर कैसे काम करेंगे। मजबूत विवाद समाधान खंड विवाद को हल करने के लिए कम लागत और समयबद्ध दृष्टिकोण प्रदान करती हैं तथा संबंधों को बनाए रखने में मदद कर सकती हैं। 

अनुबंध

अनुबंध एक कानूनी दस्तावेज है जो दो या अधिक पक्षों के बीच करार की शर्तों को रेखांकित करता है। यह एक पारस्परिक समझ है जो दोनों पक्षों के लिए अधिकार और दायित्व बनाती है। किसी अनुबंध को कानून की दृष्टि में वैध माने जाने के लिए, उसे कुछ निश्चित आवश्यकताओं को पूरा करना होगा, जैसे कि वह सक्षम पक्षों के बीच किया गया हो, उसका वैध उद्देश्य हो, तथा उसमें प्रतिफल शामिल  हो। 

किसी अनुबंध का एक प्रमुख तत्व करार होता है। करार को दो या दो से अधिक पक्षों के बीच विचारों के मिलन के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप आपसी समझ विकसित होती है। किसी अनुबंध के संदर्भ में, करार तब होता है जब दोनों पक्ष अनुबंध की शर्तों से सहमत होते हैं और अपनी सहमति दर्शाते हैं। यह सहमति अनुबंध की प्रकृति के आधार पर मौखिक या लिखित रूप में व्यक्त की जा सकती है। 

हालाँकि, सभी करार कानूनी रूप से लागू करने योग्य नहीं होते हैं। किसी करार को अनुबंध माने जाने के लिए, उसे कानून द्वारा लागू करने योग्य भी होना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि करार को कुछ कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करना होगा, जैसे कि प्रतिफल द्वारा समर्थित होना। प्रतिफल को किसी अनुबंध के पक्षों के बीच आदान-प्रदान की जाने वाली मूल्य की वस्तु के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह धन, सामान, सेवाएं या कुछ करने या न करने का वादा भी हो सकता है। बिना प्रतिफल के कोई करार कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होता है तथा उसे अदालत में लागू नहीं कराया जा सकता है। 

भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872, भारत में अनुबंधों के निर्माण और प्रवर्तन के लिए एक व्यापक ढांचा प्रदान करता है। अधिनियम की धारा 2(h) अनुबंध को “कानून द्वारा प्रवर्तनीय करार” के रूप में परिभाषित करती है। यह परिभाषा एक अनुबंध की प्रमुख विशेषता के रूप में प्रवर्तनीयता के महत्व पर प्रकाश डालती है। 

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सभी करार अनुबंध नहीं होते है। यद्यपि सभी अनुबंध करार ही होते हैं, तथापि सभी करार अनुबंध के स्तर तक नहीं पहुंचते हैं। उदाहरण के लिए, दोस्तों के बीच रात्रि भोज पर बाहर जाने के बारे में हुई आकस्मिक बातचीत को अनुबंध नहीं माना जाता हैं, क्योंकि इसमें प्रवर्तनीयता और प्रतिफल के आवश्यक तत्वों का अभाव होता है। 

विवाद समाधान

विवाद समाधान से तात्पर्य विवादों के समाधान के लिए प्रयुक्त सभी प्रक्रियाओं से है, जिसमें विवादों के समाधान के लिए प्रयुक्त सभी विधियां शामिल हैं। यह विवाद समाधान तंत्रों के माध्यम से शीघ्र विवाद समाधान प्रदान करता है जिसमें मध्यस्थता (आर्बिट्रेशन), बिचवई (मिडिएशन), बातचीत (निगोशिएशन) और मुकदमेबाजी शामिल है। 

विवाद निम्नलिखित के बीच हो सकता है: 

  • व्यक्ति (जैसे, साझा रास्ते को लेकर विवाद में पड़ोसी)
  • समुदाय (जैसे, सांप्रदायिक, धार्मिक आदि पर विवाद में फंसे समुदाय)
  • सरकार (जैसे, नदियों, नीतियों आदि से संबंधित राज्य सरकारों के बीच विवाद, या कंपनी के साथ)
  • कंपनियाँ (जैसे, कंपनियों के बीच विवाद) 

विवाद समाधान की आवश्यकता

विवाद मानवीय अंतःक्रिया का एक अपरिहार्य हिस्सा हैं, जो व्यक्तिगत संबंधों, व्यापारिक लेन-देन और अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति जैसे विभिन्न परिवेशों में घटित होते रहते हैं। वह ग़लतफहमियां, परस्पर विरोधी हितों या बस अलग-अलग दृष्टिकोणों से उत्पन्न हो सकते हैं। यद्यपि विवाद विघटनकारी और महंगे हो सकते हैं, लेकिन वे विकास, सीखने और रिश्तों को मजबूत करने का अवसर भी प्रदान करते हैं। 

विवादों का प्रभाव

विवादों के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं, जिनका प्रभाव व्यक्तियों, समुदायों, कंपनियों, सरकारों, संगठनों और समग्र अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। यहां कुछ प्रमुख तरीके दिए गए हैं जिनसे विवाद समाज को प्रभावित कर सकते हैं: 

  • वित्तीय लागत: विवादों के कारण महत्वपूर्ण वित्तीय व्यय हो सकता है, जिसमें कानूनी शुल्क, अदालती खर्च, उत्पादकता की हानि, तथा संपत्ति या प्रतिष्ठा को नुकसान शामिल है। ये लागतें व्यक्तियों, व्यवसायों और सरकारों पर भारी बोझ डाल सकती हैं। 
  • भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक नुकसान: विवाद भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप से नुकसानदायक हो सकते हैं, जिससे तनाव, चिंता और अवसाद (डिप्रेशन) पैदा हो सकता है। वे रिश्तों को नुकसान पहुंचा सकते हैं और इसमें शामिल लोगों के लिए शत्रुतापूर्ण वातावरण पैदा कर सकते हैं। 
  • समय की खपत: विवादों में समय लग सकता है, जिसके लिए अक्सर व्यापक बातचीत, बिचवई या मुकदमेबाजी की आवश्यकता होती है। इससे अन्य महत्वपूर्ण गतिविधियों से ध्यान एवं संसाधन हट सकते हैं, जिससे उत्पादकता एवं प्रगति में बाधा उत्पन्न हो सकती है। 
  • सामाजिक विघटन: विवाद समुदायों और संगठनों को विघटित कर सकते हैं, जिससे विभाजन और विवाद पैदा हो सकता है। वे विश्वास और सहयोग को नष्ट कर सकते हैं, जिससे मिलकर प्रभावी ढंग से काम करना कठिन हो सकता है। 

प्रभावी विवाद समाधान के लाभ

विवादों को प्रारंभिक चरण में रोकने और सुलझाने से व्यक्तियों, समुदायों, कंपनियों, सरकारों, संगठनों और अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण लाभ मिल सकता है। प्रभावी विवाद समाधान के कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:

  • लागत बचत: विवादों का शीघ्र समाधान, लम्बी मुकदमेबाजी या मध्यस्थता की आवश्यकता से बचकर वित्तीय लागत को कम करने में मदद कर सकता है। इससे संपत्ति या प्रतिष्ठा को होने वाली भारी क्षति का जोखिम भी कम हो सकता है। 
  • संबंधों का संरक्षण: प्रभावी विवाद समाधान व्यक्तियों, व्यवसायों और संगठनों के बीच संबंधों को बनाए रखने में मदद कर सकता है। अंतर्निहित मुद्दों को संबोधित करके और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान ढूंढ़कर, पक्ष सकारात्मक संबंध बनाए रख सकते हैं और उत्पादक रूप से एक साथ काम करना जारी रख सकते हैं।
  • समय दक्षता: विवाद का शीघ्र समाधान, लंबी कानूनी कार्यवाही से बचकर समय की बचत कर सकता है। इससे पक्षों को विवाद को शीघ्रता से सुलझाने पर ध्यान केंद्रित करने तथा अपने जीवन या व्यवसाय में आगे बढ़ने का अवसर मिलता है। 
  • सामाजिक सद्भाव: प्रभावी विवाद समाधान सामाजिक सद्भाव और सहयोग को बढ़ावा दे सकता है। विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करके, पक्ष अधिक स्थिर और एकजुट समुदाय या संगठन बनाने में योगदान दे सकते हैं। 

उचित विवाद के लिए समाधान खंड

  1. विवाद समाधान खंड अच्छी तरह से तैयार किया जाना चाहिए तथा स्पष्ट होना चाहिए। एक अच्छे विवाद समाधान खंड को स्पष्ट और संक्षिप्त होना चाहिए तथा इसमें भविष्य में होने वाली किसी भी समस्या का यथासंभव पूर्वानुमान होना चाहिए। व्यावहारिक रूप से, विवाद समाधान खंड में निम्नलिखित शामिल होंगे:
  2. विवाद की स्थिति में पक्षों के अधिकारों और दायित्वों को स्पष्ट शब्दों में परिभाषित करें।
  3. स्पष्ट रूप से बताएं कि विवाद में शामिल पक्षों को क्या प्रक्रिया अपनानी होगी।
  4. विवाद में शामिल पक्षों के हितों और उनकी परिस्थितियों का उल्लेख करें तथा उचित समाधान की संभावना प्रस्तुत करें।
  5. यह प्रावधान है कि जब तक पक्ष विवाद समाधान की किसी प्रक्रिया में भाग ले रहे हैं, तब तक अनुबंध दायित्वों का निष्पादन जारी रहेगा।
  6. विवाद समाधान प्रक्रिया का पालन न किए जाने या इष्टतम तरीके से पालन न किए जाने तथा इसके असफल या अप्रभावी होने की स्थिति में उपलब्ध उपायों को बताएं।
  7. बताएं कि क्या विवाद समाधान खंड या कोई करार जारी रहेगा और यह करार की समाप्ति के बाद भी जारी रहेगा। 
  8. विवाद समाधान प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप किसी भी करार को लागू करने के साधन बताएं। यह अधिकतर न्यायालयों या न्यायाधिकरणों (ट्रिब्यूनल) के माध्यम से होता है। 

विवाद समाधान प्रक्रिया

विवाद समाधान प्रक्रिया एक वैकल्पिक तंत्र है जिसका उपयोग न्यायालय आधारित समाधान की तुलना में अधिक लागत प्रभावी और शीघ्र समाधान के लिए किया जाता है, विशेष रूप से नागरिक विवादों के लिए किया जाता है। 

ये वैकल्पिक तंत्र प्रदान करते हैं: 

  • अधिक लचीलापन और औपचारिकता
  • उच्च विशेषज्ञता और रचनात्मकता
  • गोपनीयता और निजता
  • शीघ्र समाधान
  • अधिक समयबद्धता

विवाद समाधान तंत्र

विवाद समाधान तंत्र विभिन्न प्रकार के होते हैं तथा प्रत्येक की प्रक्रिया भी भिन्न होती है। किसी अनुबंध में एक विवाद समाधान प्रक्रिया को शामिल करने का निर्णय लेना भविष्य में होने वाले कुछ विवादों से बचने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। विवाद समाधान खण्ड का मसौदा तैयार करते समय, हमें ऐसे दृष्टिकोण को अपनाने में सावधानी बरतनी चाहिए जो अनुबंध की विशेष शर्तों, पक्षों, किसी संभावित विवाद की प्रकृति तथा अनुबंध करने वाले पक्षों के लिए उपयुक्त हो। 

विवाद समाधान तंत्र के प्रकार

बातचीत 

विवाद समाधान की प्रक्रिया में यह पहला और सबसे आम तरीका है। लगभग हर समय विवाद को सुलझाने के लिए सबसे पहले बातचीत का प्रयास किया जाता है, जबकि मध्यस्थता और बिचवई ए.डी.आर. के दो सबसे सामान्य प्रकार हैं। बातचीत से पक्षों को विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने में मदद मिलती है। इस प्रकार के विवाद निपटान का प्राथमिक लाभ यह है कि पक्षों को प्रक्रिया के साथ-साथ समाधान पर भी पकड़ होती है। अन्य प्रकार के ए.डी.आर. की तुलना में बातचीत बहुत कम औपचारिक होती है तथा लचीलापन प्रदान करती है। 

बिचवई

बिचवई, विवाद समाधान का एक अनौपचारिक रूप है, जो पारंपरिक मुकदमेबाजी का एक विकल्प प्रदान करता है। इसमें एक तटस्थ (न्यूट्रल) तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप शामिल होता है, जिसे बिचवई करने वाले के रूप में जाना जाता है, जो विवादित पक्षों के बीच संचार और बातचीत को सुगम बनाता है। बिचवई करने वाले को आमतौर पर विवाद समाधान और बातचीत तकनीकों में प्रशिक्षित किया जाता है, तथा उनका उद्देश्य पक्षों को पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समझौते की ओर मार्गदर्शन करना होता है। 

मुकदमेबाजी के विपरीत, बिचवई गैर-बाध्यकारी है, अर्थात पक्ष प्रस्तावित समझौते को स्वीकार करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं हैं। यह लचीलापन इसमें शामिल पक्षों को अधिक स्वतंत्रता और नियंत्रण प्रदान करता है। बिचवई की मांग अक्सर विभिन्न प्रकार के मामलों में की जाती है, जिनमें किशोर अपराधों से लेकर जटिल व्यावसायिक विवाद तक शामिल हैं। यह निवेशकों और उनके स्टॉकब्रोकरों के बीच विवादों को सुलझाने में विशेष रूप से प्रभावी साबित हुआ है, क्योंकि यह अनुबंध के उल्लंघन, गलत बयानी और लापरवाही के मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक गोपनीय और तटस्थ मंच प्रदान करता है। 

बिचवई के दौरान, बिचवई करने वाला एक सुरक्षित और संरचित वातावरण बनाता है जहां दोनों पक्ष अपने दृष्टिकोण और चिंताओं को व्यक्त कर सकते हैं। बिचवई करने वाले का निष्पक्ष और वस्तुपरक (ऑब्जेक्टिव) दृष्टिकोण तनाव को कम करने में मदद करता है और खुली बातचीत को प्रोत्साहित करता है। कुशल सुविधा के माध्यम से, मध्यस्थ पक्षों को साझा हितों की पहचान करने, संभावित समाधानों की खोज करने तथा अंततः पारस्परिक रूप से लाभकारी समझौते पर पहुंचने में सहायता करता है। 

पारंपरिक मुकदमेबाजी की तुलना में बिचवई से अक्सर विवाद का समाधान तेजी से और कम खर्च में होता है। यह अधिक लचीला और व्यक्तिगत दृष्टिकोण प्रदान करता है, जिससे पक्षों को अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुसार प्रक्रिया को अनुकूलित करने की सुविधा मिलती है। इसके अतिरिक्त, बिचवई रिश्तों को सुरक्षित रखती है, क्योंकि यह विवादित पक्षों के बीच समझ और सहयोग को बढ़ावा देती है। 

निष्कर्षतः, बिचवई विभिन्न परिस्थितियों में विवादों को सुलझाने के लिए एक मूल्यवान उपकरण है। इसकी गैर-बाध्यकारी प्रकृति, निष्पक्ष बिचवई की भागीदारी, तथा संचार और बातचीत पर जोर इसे मुकदमेबाजी का एक शक्तिशाली विकल्प बनाते हैं। बिचवई पक्षों को अपने विवाद पर नियंत्रण रखने तथा पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान की दिशा में काम करने का अधिकार देती है, जिससे बेहतर संबंध और अधिक कुशल परिणाम प्राप्त होते हैं। 

मध्यस्थता

मध्यस्थता का अर्थ है किसी मामले को पक्षों के बीच विवादित होने पर निर्णय के लिए एक निष्पक्ष व्यक्ति (मध्यस्थ) के समक्ष प्रस्तुत करना। मध्यस्थता आमतौर पर विवाद के समाधान के लिए अदालत के बाहर समझौता पद्धति है। मध्यस्थ प्रक्रिया को नियंत्रित करता है, दोनों पक्षों को सुनता है और निर्णय लेता है। मध्यस्थता आमतौर पर मुकदमेबाजी की तुलना में त्वरित और कम खर्चीली होती है, तथा निर्णय बाध्यकारी और लागू करने योग्य होता है। मध्यस्थ का निर्णय अंतिम एवं बाध्यकारी होता है। मध्यस्थता पंचाट (अवॉर्ड) के विरुद्ध अपील का कोई अधिकार नहीं है।

सुलह

सुलह की तरह बिचवई भी अनौपचारिक और लचीली होती है। यह स्वैच्छिक भी है, एक तटस्थ तीसरे पक्ष (एक सुलहाकर्ता) की सहायता से आयोजित किया जाता है और विवाद के ऐसे समाधान पर केंद्रित होता है जो पक्षों को स्वीकार्य हो। लेकिन, बिचवई के विपरीत, यदि पक्ष सहमत हों तो सुलहाकर्ता विवाद का संभावित समाधान सुझा सकता है। सुलह में, पक्षों को मध्यस्थ द्वारा सुझाए गए अंतिम प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया जाता है। 

मुकदमेबाजी 

मुकदमेबाजी अदालत में शुरू होती है। मुकदमेबाजी में समय भी बहुत लगता है। यह एक औपचारिक कानूनी प्रक्रिया है जिसमें न्यायाधीश या जूरी विवाद के परिणामों का निर्धारण करते हैं। मुकदमा एक संगठित और संरचित प्रक्रिया है जिसकी अपील न्यायालय में की जा सकती है। यह कठिन एवं समस्याग्रस्त विवादों के लिए उपयुक्त है। मुकदमेबाजी सार्वजनिक, महंगी और समय लेने वाली होती है। इसकी प्रतिकूल प्रकृति के कारण यह व्यापारिक संबंधों को बर्बाद कर सकता है। 

सामान्य नुकसान और प्रतिफल

  • अस्पष्टता: अस्पष्ट खंड अधिक विवादों का आधार बन जाते हैं। अस्पष्ट खंडों की उपस्थिति विवाद समाधान की प्रक्रिया को अत्यंत अप्रभावी बना सकती है। शर्तों या प्रक्रियाओं में अस्पष्टता के कारण व्याख्याओं से संबंधित विवाद उत्पन्न हो सकते हैं, जिससे विवाद समाधान की प्रक्रिया में संभवतः लम्बा समय लग सकता है। इससे बचने के लिए, विवाद समाधान की प्रक्रिया में शामिल सभी नियमों और प्रक्रियाओं को स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए।
  • प्रवर्तनीयता: विवाद समाधान खंड लागू कानून के अंतर्गत प्रवर्तनीय होंगे। विभिन्न अधिकार क्षेत्रों में, यह सुनिश्चित करने के लिए औपचारिक कानूनी आवश्यकताएं मौजूद हैं कि खंड वैध और प्रवर्तनीय है। अन्य बातों के अलावा, मध्यस्थता समझौतों को वैध और लागू होने योग्य बनने के लिए कुछ औपचारिकताओं का पालन करना पड़ सकता है।
  • उचित रूप से तैयार और कठोरता: संरचना और लचीलेपन के बीच उचित संतुलन एक अच्छी तरह से तैयार विवाद समाधान प्रक्रिया खंड की पहचान है। संरचित होने के कारण प्रक्रियाएं स्पष्टता और पूर्वानुमेयता प्रदान करती हैं, जबकि अप्रत्याशित स्थितियों से निपटने और व्यावसायिक संबंधों को समायोजित करने के लिए कुछ लचीलेपन का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। इस तरह, यह खंड अपनी अखंडता से समझौता किए बिना अनुकूलनीय बना रहेगा। 
  • अधिकार क्षेत्र: अधिकार क्षेत्र संबंधी विवादों से बचने के लिए विवाद समाधान खण्ड में अधिकार क्षेत्र संबंधी खण्डों को स्पष्ट रूप से लिखा जाना चाहिए। अधिकार क्षेत्र खंड क़रार से उत्पन्न विवाद को सुनने और निर्धारित करने के लिए न्यायालय की शक्ति निर्धारित करेगा।  अधिकार क्षेत्र संबंधी खंडों में अस्पष्टता अंततः समय और धन की बर्बादी का कारण बन सकती है। शासकीय कानून और अधिकार क्षेत्र दोनों को निर्धारित करने से यह सुनिश्चित होता है कि पक्षों को कानून में अपनी स्थिति और अपनी जिम्मेदारियों का पता है। 
  • खंड का दायरा: खंड का दायरा व्यापक रूप से तैयार किया जाना चाहिए ताकि इस बात पर विवाद न हो कि कोई विशिष्ट विवाद खंड के अंतर्गत आता है या नहीं। विवाद समाधान खंड का दायरा बहुत महत्वपूर्ण है तथा यह निर्धारित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि उक्त खंड में क्या शामिल है। विवाद समाधान खंड में विवादों का दायरा स्पष्ट होना चाहिए, चाहे वह अनुबंध के उल्लंघन, व्याख्या के मुद्दों या तीसरे पक्ष के दावों के बारे में हो। अनुबंध के कार्यक्षेत्र का समुचित रूप से विस्तृत एवं व्यापक होना चाहिए, ताकि सभी संभावित विवादों का समाधान किया जा सके तथा विवादों के अनसुलझे रह जाने की संभावना को कम किया जा सके। 

कुशल विवाद समाधान – कुछ व्यावहारिक सुझाव

सामान्यतः, कुशल मसौदे के अलावा, विवाद-समाधान तकनीकों की उचित रूप से योजना बनाने और क्रियान्वयन की आवश्यकता होती है। प्रभावी विवाद समाधान के लिए कुछ व्यावहारिक सुझाव इस प्रकार हैं: 

  • मॉडल मसौदे की स्पष्टता और भाषा में सटीकता: प्रयुक्त भाषा स्पष्ट एवं सरल होनी चाहिए, उसमें कोई अस्पष्टता नहीं होनी चाहिए। विवाद समाधान से संबंधित प्रक्रिया के सभी चरणों को स्पष्ट रूप से बताया जाएगा। किसी भी गलतफहमी को रोकने के लिए प्रारंभिक चरणों में व्याख्याओं/परिभाषाओं को अच्छी तरह से परिभाषित किया जाएगा। 
  • कस्टम-मेड खंड: विवाद समाधान से संबंधित प्रक्रिया को अनुबंध पक्षों के विशिष्ट हितों और स्थितियों के अनुसार ढाला जाना चाहिए। इससे खंडों की प्रभावकारिता और प्रवर्तनीयता बढ़ सकती है। 
  • चरण-दर-चरण प्रक्रिया का विवरण दें: प्रत्येक विवाद समाधान प्रक्रिया के लिए प्रारंभिक चरण से लेकर अंतिम समाधान तक विस्तृत चरण-दर-चरण प्रक्रिया का विवरण दें। इससे स्पष्टता और अनुवर्ती (फॉलो-थ्रू) कार्रवाई सुनिश्चित होती है, जिससे प्रक्रिया से संबंधित किसी भी विवाद की संभावना कम हो जाती है। 
  • भविष्य के परिदृश्यों की कल्पना करें: विवाद की किसी भी संभावित संभावना को पहले से ही समझ लेना चाहिए तथा अनुबंध अवधि के भीतर उसका समाधान कर लेना चाहिए। ऐसा करने के लिए, व्यावसायिक संबंधों की प्रकृति, उत्पन्न होने वाले विवादों के प्रकार तथा उन विवादों को सुलझाने के सबसे कुशल तरीकों पर विचार किया जाना चाहिए। 
  • नियमित रूप से समीक्षा और अद्यतन (अपडेट) करें: विवाद समाधान प्रावधानों की नियमित समीक्षा और अद्यतन की आवश्यकता होती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे अभी भी उपयोगी और प्रासंगिक हैं। यह विशेष रूप से दीर्घकालिक अनुबंधों या तेजी से विकसित हो रहे उद्योगों के मामले में महत्वपूर्ण हो जाता है।

 

सुझाव

यद्यपि विवाद समाधान प्रावधानों के संबंध में बहुत सारा साहित्य उपलब्ध है, फिर भी कई अंतराल और अनदेखे क्षेत्र अभी भी मौजूद हैं। इन पर ध्यान देने से गहन अंतर्दृष्टि प्राप्त होगी तथा विवाद समाधान रणनीतियों की प्रभावशीलता बढ़ेगी। 

  • सांस्कृतिक अंतर का प्रभाव: पहचाने गए अंतर का एक मुख्य क्षेत्र सांस्कृतिक अंतर पर सीमित शोध है। सांस्कृतिक मतभेद अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों में विवाद समाधान विधियों की प्रभावशीलता को प्रभावित करते हैं। भावी शोध में यह पता लगाया जा सकता है कि सांस्कृतिक गतिशीलता विवाद समाधान विधियों की प्रभावशीलता को किस प्रकार प्रभावित करती है। 
  • विवाद समाधान में तकनीकी विकास: यह एक और अनदेखा क्षेत्र है: विवाद समाधान में प्रौद्योगिकी को कैसे एकीकृत किया जाता है, विशेष रूप से ऑनलाइन विवाद समाधान (ओडीआर) प्लेटफार्मों के माध्यम से किया जाता है। पुनः, यह एक विकासशील क्षेत्र है जहां व्यापक अध्ययनों का अभाव है। विवादों के समाधान में प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग कितना प्रभावी है, इसके लाभ और चुनौतियों के साथ-साथ इस पर अध्ययन से उक्त प्रक्रिया के संबंध में आधुनिकीकरण और दक्षता के स्तर की बेहतर समझ विकसित होगी, मुख्य रूप से सीमा पार विवादों के संबंध में विकसित होगी। 
  • विवाद समाधान विधियों पर दीर्घकालिक प्रभाव: दूसरा क्षेत्र जिसमें बहुत कम शोध किया गया है, वह विवाद समाधान के तरीकों के दीर्घकालिक प्रभाव से संबंधित है। विभिन्न तरीकों से हल किए गए विवादों के दीर्घकालिक परिणामों की पहचान करने वाले व्यापक अध्ययन की आवश्यकता है। इन अध्ययनों का उपयोग व्यावसायिक संबंधों और वित्तीय स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभावों को देखने के लिए किया जा सकता है, साथ ही एक निश्चित अवधि में शर्तों के अनुपालन को भी देखा जा सकता है, ताकि विवाद समाधान रणनीतियों को बेहतर स्थिरता और दक्षता के साथ आगे बढ़ाया जा सके। 
  • वाणिज्यिक व्यवसाय और स्टार्टअप: मौजूदा साहित्य का अधिकांश हिस्सा बड़े निगमों और जटिल वाणिज्यिक अनुबंधों पर केंद्रित है, जिसमें छोटे व्यवसायों और स्टार्टअप्स को शामिल नहीं किया गया है। अक्सर, ऐसी संस्थाओं की विवाद समाधान संबंधी विशिष्ट आवश्यकताएं और चुनौतियां होती हैं, लेकिन वर्तमान साहित्य में उन्हें समुचित रूप से शामिल नहीं किया जाता। विवाद समाधान में व्यवसायों और स्टार्ट-अप्स की आवश्यकताओं को समझने और उन्हें पूरा करने के संबंध में विशेष रूप से डिजाइन किए गए अनुसंधान के परिणामस्वरूप देश के इन महत्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्रों से निपटने के लिए अधिक प्रभावी, उपयोगकर्ता-अनुकूल तरीके सामने आएंगे। 

कानूनी मामले 

रमेश चंद्र, 5 एससीसी 719 (2007) में यह माना गया था कि किसी खंड को मध्यस्थता करार बनने के लिए, इसमें स्पष्ट रूप से पक्ष के विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने की इच्छा और न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) के निर्णय से बाध्य होने का संकेत होना चाहिए। 

मेडिसिमो बनाम लॉजिका (2014) में न्यायालय डी कैसेशन ने फैसला सुनाया कि विवाद समाधान खंड को एक शर्त के रूप में अनिवार्य रूप से आवश्यक होना चाहिए, और दावे को स्वीकार्य माने जाने के लिए पर्याप्त रूप से विस्तृत होना चाहिए। 

निष्कर्ष

किसी करार में प्रभावी विवाद समाधान खंड विवादों के समाधान के लिए एक स्पष्ट मार्ग तैयार करके समय, धन और यहां तक कि व्यावसायिक संबंधों को भी बचाता है। पक्ष ऐसे खंड तैयार कर सकते हैं जो उनके हित में काम करें और साथ ही विवाद के प्रकार, अधिकार क्षेत्र संबंधी मुद्दों और समाधान प्रक्रिया से संबंधित अन्य विशिष्ट विवरणों के संबंध में अनुबंधों के सुचारू निष्पादन के लिए अनुकूल हों। 

संदर्भ

 

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