स्वतंत्र निदेशकों की जवाबदेही और कॉर्पोरेट प्रशासन में आरोप

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यह लेख लॉसिखो से कॉरपोरेट लॉ एंड प्रैक्टिस: ट्रांजेक्शन्स, गवर्नेंस एंड डिस्प्यूट्स कोर्स में डिप्लोमा कर रहे Nazmal Mohammed द्वारा लिखा गया है। इस लेख को Shashwat kaushik द्वारा संपादित किया गया है। इस लेख में स्वतंत्र निदेशकों की जवाबदेही और कॉर्पोरेट प्रशासन में आरोप के बारे में चर्चा की गई हैं। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta के द्वारा किया गया है।

परिचय

प्रभावी कॉर्पोरेट प्रशासन किसी भी व्यावसायिक उद्यम (एंटरप्राइज) की कुंजी है, जिसे पारदर्शिता, जवाबदेही और प्रबंधन और कर्मचारियों के नैतिक व्यवहार द्वारा संचालित किया जाना चाहिए। कंपनी में स्वतंत्र निदेशकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उन्हें निष्पक्ष निरीक्षण करने, सभी हितधारकों के हितों की रक्षा करने और प्रबंधन के कार्यों पर एक महत्वपूर्ण जांच के रूप में कार्य करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

स्वतंत्र निदेशकों की इस महान भूमिका के बावजूद, चिंताएँ उठाई गई हैं, और आरोप लगाए गए हैं कि कुछ स्वतंत्र निदेशक कंपनी संस्थापक (प्रमोटर) द्वारा चालाकी से महज़ कठपुतलियाँ बन रहे हैं। यह लेख स्वतंत्र निदेशकों से जुड़े विवाद की पड़ताल करता है और उन संभावित कमजोरियों पर प्रकाश डालता है जो उन्हें अनुचित प्रभाव में ला सकती हैं।

सत्यम घोटाला भारत सरकार के लिए आंखें खोलने वाला था, और इसने कॉर्पोरेट नियामक ढांचे को सुधारने की मांग की। इन प्रयासों के हिस्से के रूप में, नया कानून कंपनी अधिनियम 2013 बनाया गया। इस विधायी पहल का उद्देश्य कॉर्पोरेट प्रशासन को सुदृढ़ करना, निदेशकों की स्वतंत्रता की चुनौतियों का समाधान करना, स्थायी व्यावसायिक प्रथाओं के लिए नियामक परिदृश्य को मजबूत करना और यह सुनिश्चित करना है कि ऐसे घोटाले दोबारा न हों।

स्वतंत्र निदेशकों को समझना

स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका अपने हर काम में स्वतंत्रता का प्रयोग करना है। निदेशक मंडल की संरचना, मंडल के स्वतंत्र कामकाज के लिए महत्वपूर्ण है। कंपनी में मुख्य रूप से तीन प्रकार के निदेशक होते हैं – कार्यकारी निदेशक, गैर-कार्यकारी निदेशक और स्वतंत्र निदेशक। स्वतंत्र निदेशकों को कंपनी के प्रहरी, मुखबिर, प्रतिनिधि, मार्गदर्शक, प्रशिक्षक (ट्रेनर) और संरक्षक के रूप में कार्य करना चाहिए।

स्वतंत्र निदेशकों को, एक प्रहरी के रूप में, कॉर्पोरेट प्रशासन और विभिन्न व्यावसायिक जोखिमों पर नज़र रखनी चाहिए। उन्हें मालिकों के दबाव का विरोध करना चाहिए, प्रमुख नियुक्तियों में निर्णय लेना चाहिए, विवादों का प्रबंधन करना चाहिए, एक वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण (ऑब्जेक्टिव) लाना चाहिए और हितधारकों के हितों की रक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।

“संरक्षक” के रूप में, कॉर्पोरेट प्रशासन, उत्पादकता, दक्षता और कई अन्य स्थिरता कारकों के मामलों में कंपनी की स्थिरता की रक्षा की जानी चाहिए।

“मुखबिर” और एक गैर-कार्यकारी निदेशक के रूप में, स्वतंत्र निदेशक को कंपनी के संचालन, व्यापार रणनीति और रिपोर्टिंग व्यवस्था में “अखंडता, स्वतंत्रता और प्रभावशीलता” सुनिश्चित करनी चाहिए, जिसमें मंडल की वार्षिक रिपोर्ट और स्वतंत्रता का प्रयोग करने के लिए पर्याप्त नियंत्रण सुनिश्चित करना भी शामिल है।

एक स्वतंत्र निदेशक निदेशक मंडल का सदस्य होता है, जिसका किसी कंपनी के साथ कोई भौतिक संबंध नहीं होता है और वह न तो इसकी कार्यकारी टीम का हिस्सा होता है और न ही कंपनी के दिन-प्रतिदिन के कार्यों में शामिल होता है, बल्कि “प्रतिनिधित्व” करता है और सभी हितधारकों, विशेषकर अल्पसंख्यक शेयरधारकों के हितों की रक्षा करता है। एक स्वतंत्र निदेशक को कंपनी के लिए एक मार्गदर्शक, प्रशिक्षक और संरक्षक के रूप में भी कार्य करना चाहिए। उन्हें कॉर्पोरेट विश्वसनीयता और शासन मानकों में सुधार करना चाहिए।

आरोप: चिंताओं को समझना

स्वतंत्र निदेशकों पर ऐसे कई आरोप लगे हैं जिनसे जिनकी स्वतंत्रता पर सवाल उठाए गए हैं। तर्क यह है कि स्वतंत्र निदेशक अपने प्राथमिक कर्तव्यों को पूरा करने के बजाय कंपनी के संस्थापकों द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों को पूरा करने के लिए अधिक इच्छुक होते हैं।

नियुक्तियाँ एवं संरचना

आरोप यह है कि संस्थापक स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति प्रक्रिया के दौरान अनुचित प्रभाव डाल सकते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि मंडल का गठन ऐसे व्यक्तियों के साथ किया जाता है जो अल्पसंख्यक शेयरधारकों की तुलना में संस्थापकों के हितों का पक्ष लेते हैं।

अपर्याप्त स्वतंत्रता

ज्यादातर मामलों में जहां आरोपों की सूचना दी जाती है, स्वतंत्र निदेशकों के संस्थापक या उनके सहयोगियों के साथ व्यक्तिगत या वित्तीय संबंध होते हैं, हालांकि यह उन्हें अयोग्य ठहराने के लिए स्पष्ट रूप से पर्याप्त नहीं है। इन गुप्त संबंधों से समझौता हो जाता है और महत्वपूर्ण निर्णय लेते समय निष्पक्षता खो जाती है। इसलिए, स्वतंत्रता का प्रयोग नहीं किया जाता है।

भत्ते और पारिश्रमिक

कुछ आलोचकों का तर्क है कि स्वतंत्र निदेशकों को संस्थापकों द्वारा दिए जाने वाले भव्य भत्तों, निदेशक शुल्क या अन्य वित्तीय प्रोत्साहनों से लुभाया जा सकता है। ऐसे प्रलोभन संभावित रूप से उनके निर्णय को प्रभावित कर सकते हैं और हितों के टकराव को जन्म दे सकते हैं।

प्रतिशोध का डर

जो निदेशक संस्थापकों के निर्णयों या कार्यों को चुनौती देते हैं, उन्हें प्रतिशोध का सामना करना पड़ता है, जैसे कि मंडल से हटाया जाना या उनकी पेशेवर प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाना। प्रतिशोध का यह डर स्वतंत्र निदेशकों को स्वतंत्र रूप से कार्य करने से रोक सकता है।

कॉर्पोरेट प्रशासन पर प्रभाव

कठपुतली स्वतंत्र निदेशकों की उपस्थिति का कॉर्पोरेट प्रशासन और कंपनी के समग्र स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है:

जवाबदेही का कम होना 

कठपुतली निदेशक आवश्यक जांच और संतुलन प्रदान करने में विफल हो सकते हैं, जिससे अनियंत्रित प्रबंधन निर्णय और शक्ति का संभावित दुरुपयोग हो सकता है। अनियंत्रित प्रबंधन निर्णयों के परिणाम दूरगामी हो सकते हैं। दीर्घकालिक स्थिरता की कीमत पर अल्पकालिक लाभ को प्राथमिकता दी जा सकती है, जिससे वित्तीय अस्थिरता और प्रतिष्ठा को नुकसान हो सकता है। जोखिम प्रबंधन और अनुपालन को नजरअंदाज किया जा सकता है, जिससे संगठन कानूनी और नियामक जोखिमों के संपर्क में आ सकता है। इसके अलावा, शेयरधारकों, कर्मचारियों और ग्राहकों सहित हितधारकों के बीच विश्वास का क्षरण (इरोजन), संगठन की प्रतिभा को आकर्षित करने और बनाए रखने की क्षमता के साथ-साथ निवेशकों के विश्वास को गंभीर रूप से कमजोर कर सकता है।

इन जोखिमों को कम करने के लिए, संगठनों को वास्तव में स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति को प्राथमिकता देनी चाहिए जिनके पास प्रबंधन निर्णयों पर सवाल उठाने और प्रभावी निरीक्षण प्रदान करने का साहस और सत्यनिष्ठा हो। मंडलरूम में विभिन्न प्रकार के दृष्टिकोण लाने के लिए इन निदेशकों के पास विविध पृष्ठभूमि, कौशल और अनुभव होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, नियमित प्रदर्शन मूल्यांकन और जवाबदेही के लिए तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निदेशक अपने प्रत्ययी (फिडूशियरी) कर्तव्यों को पूरा करें और संगठन और उसके हितधारकों के सर्वोत्तम हित में कार्य करें।

निवेशकों का भरोसा कम होना

हितधारक, विशेष रूप से अल्पसंख्यक शेयरधारक और संस्थागत निवेशक, कंपनी की शासन प्रथाओं में विश्वास खो सकते हैं, जिससे निवेश में गिरावट आ सकती है।

ऐसे कई हितधारक हैं जो निवेशकों के विश्वास में कमी से प्रभावित हो सकते हैं। इसमे निम्नलिखित शामिल है:

  • अल्पसंख्यक शेयरधारक: अल्पसंख्यक शेयरधारक ऐसे व्यक्ति या समूह होते हैं जिनके पास कंपनी के शेयर का एक छोटा प्रतिशत होता है। वे अक्सर संस्थागत निवेशकों की तुलना में कम शक्तिशाली होते हैं, और यदि कंपनी के शेयर की कीमत में गिरावट आती है तो वे घाटे के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं।
  • संस्थागत निवेशक: संस्थागत निवेशक ऐसे संगठन हैं जो अपने ग्राहकों की ओर से बड़ी रकम का निवेश करते हैं। इनमें पेंशन फंड, म्यूचुअल फंड और हेज फंड शामिल हैं। संस्थागत निवेशक किसी कंपनी के शेयर मूल्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं, और यदि वे कंपनी के नेतृत्व और शासन प्रथाओं में विश्वास खो देते हैं तो उनके शेयर बेचने की अधिक संभावना होती है।

निवेशकों का विश्वास कम होने के परिणाम

निवेशकों का विश्वास कम होने से किसी कंपनी के लिए कई नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  • कंपनी के शेयर मूल्य में गिरावट: जब निवेशकों का किसी कंपनी पर से भरोसा उठ जाता है, तो उनके शेयर खरीदने की संभावना कम हो जाती है। इससे कंपनी के शेयर मूल्य में गिरावट आ सकती है, जिससे कंपनी के लिए पूंजी जुटाना अधिक कठिन हो सकता है।
  • पूंजी की लागत में वृद्धि: जब निवेशकों को किसी कंपनी पर कम भरोसा होता है, तो वे अपने निवेश पर अधिक रिटर्न की मांग करने की अधिक संभावना रखते हैं। इससे कंपनी की पूंजी लागत में वृद्धि हो सकती है, जिससे कंपनी के लिए अपने परिचालन (ऑपरेशन) को वित्तपोषित (फाइनेंस) करना अधिक कठिन हो सकता है।
  • विश्वसनीयता की हानि: जब निवेशक किसी कंपनी में विश्वास खो देते हैं, तो उन्हें कंपनी के नेतृत्वकर्ता (लीडर) की बातों पर विश्वास करने की संभावना कम हो जाती है। इससे कंपनी के लिए शीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित करना और उन्हें बनाए रखना मुश्किल हो सकता है, और इससे कंपनी की प्रतिष्ठा को भी नुकसान हो सकता है।

कंपनियों के लिए सिफ़ारिशें

ऐसी कई चीजें हैं जो कंपनियां निवेशकों के घटते विश्वास को दूर करने के लिए कर सकती हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  • कॉर्पोरेट प्रशासन प्रथाओं में सुधार: कंपनियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी कॉर्पोरेट प्रशासन प्रथाएँ पारदर्शी, निष्पक्ष और जवाबदेह हों। इसमें एक मजबूत निदेशक मंडल, स्वतंत्र लेखा परीक्षक (ऑडिटर) और एक स्पष्ट आचार संहिता शामिल है।
  • निवेशकों के साथ नियमित रूप से संवाद करना: कंपनियों को निवेशकों के साथ कंपनी के प्रदर्शन और भविष्य की योजनाओं के बारे में सूचित रखने के लिए नियमित रूप से संवाद करना चाहिए। इससे निवेशकों के बीच भरोसा और विश्वास बनाने में मदद मिल सकती है।

पारदर्शिता का क्षरण 

स्वतंत्र निरीक्षण की कमी निर्णय लेने की प्रक्रियाओं की पारदर्शिता में बाधा डाल सकती है, जिससे हितधारकों के लिए कंपनी के प्रदर्शन का निष्पक्ष मूल्यांकन करना मुश्किल हो जाता है। स्वतंत्र निरीक्षण निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय के रूप में कार्य करता है। स्वतंत्र निरीक्षण निकाय, जैसे लेखा परीक्षा समितियाँ, स्वतंत्र निदेशक, या बाहरी निगरानीकर्ता, एक वस्तुनिष्ठ परिप्रेक्ष्य प्रदान करते हैं और यह सुनिश्चित करने में मदद करते हैं कि निर्णय अनुचित प्रभाव या छिपे हुए एजेंडे के बिना, योग्यता के आधार पर किए जाते हैं।

स्वतंत्र निरीक्षण के अभाव में, निर्णय लेने की प्रक्रियाएँ अपारदर्शी और हेरफेर के प्रति संवेदनशील हो सकती हैं। हितधारकों को निर्णयों के पीछे के तर्क का आकलन करना चुनौतीपूर्ण लग सकता है, जिससे संदेह पैदा होगा और संगठन के नेतृत्व में विश्वास कम हो जाएगा। स्वतंत्र जांच के बिना, हितों के टकराव, पक्षपात और अनैतिक व्यवहार पर ध्यान न दिए जाने का खतरा बढ़ जाता है।

मामला 1- किंगफिशर एयरलाइंस लिमिटेड (2012)

2006 में, कैप्टन जी.आर. गोपीनाथ द्वारा प्रवर्तित (प्रोमोटेड), डेक्कन एविएशन लिमिटेड 148 रुपये प्रति शेयर की भारी कीमत पर आईपीओ लेकर आए। कुछ महीनों के बाद 2007 में कैप्टन गोपीनाथ ने इस कंपनी में नियंत्रण हिस्सेदारी विजय मालया को बेच दी, जो एक गैर-सूचीबद्ध कंपनी किंगफिशर एयरलाइंस लिमिटेड चला रहे थे।

अंततः, कैप्टन गोपीनाथ द्वारा प्रवर्तित कंपनी ने एक वर्ष की अवधि के भीतर अपना अस्तित्व खो दिया और किंगफिशर एयरलाइंस लिमिटेड में विलय (मर्जर) हो गया। विजय माल्या के देश छोड़ने से पहले ही किंगफिशर ने अपना परिचालन काफी पहले ही बंद कर दिया था और जनता द्वारा किया गया निवेश शून्य हो गया था। अपना खोया हुआ पैसा वापस पाने के लिए उनके पास कोई सहारा उपलब्ध नहीं है। दुर्भाग्य से, यह कोई अकेला मामला नहीं है।

मामला 2- आईएल एंड एफएस (इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज) संकट (2018)

आईएल एंड एफएस के मामले में, कंपनी के वित्तीय स्वास्थ्य की देखरेख में उचित परिश्रम नहीं करने के लिए स्वतंत्र निदेशकों से पूछताछ की गई थी। संकट से महत्वपूर्ण प्रशासनिक चूक का पता चला, और कुछ स्वतंत्र निदेशकों पर अपने प्रत्ययी कर्तव्यों को पूरा नहीं करने का आरोप लगाया गया।

संकट ने अपर्याप्त जोखिम प्रबंधन, पारदर्शिता की कमी और कमजोर आंतरिक नियंत्रण सहित शासन में महत्वपूर्ण खामियों को उजागर किया। स्वतंत्र निदेशकों से वित्तीय रूप से साक्षर होने, उद्योग का ज्ञान रखने और विवेक और स्वतंत्रता के साथ कार्य करने की अपेक्षा की जाती है। हालाँकि, आईएल एंड एफएस के मामले में, कुछ स्वतंत्र निदेशकों पर अपने प्रत्ययी कर्तव्यों को पूरा करने में विफल रहने का आरोप लगाया गया था, जिसके परिणामस्वरूप कंपनी का पतन हुआ।

आईएल एंड एफएस पराजय के बाद स्वतंत्र निदेशकों की जांच बढ़ गई है और उनकी भूमिका को मजबूत करने के लिए सुधारों की मांग बढ़ गई है। नियामकों और नीति निर्माताओं ने स्वतंत्र निदेशकों की जवाबदेही और जिम्मेदारी बढ़ाने सहित कॉर्पोरेट प्रशासन प्रथाओं को बढ़ाने के लिए कदम उठाए हैं। इसमें नियमित प्रशिक्षण को अनिवार्य बनाना, प्रकटीकरण आवश्यकताओं को बढ़ाना और मंडलों पर अधिक विविधता को बढ़ावा देना शामिल है।

इसके अतिरिक्त, स्वतंत्र निदेशकों को स्वतंत्र निर्णय लेने और प्रमुख शेयरधारकों या प्रबंधन के अनुचित प्रभाव का विरोध करने में सक्षम होना चाहिए। इसे प्राप्त करने के लिए, उन्हें अपने कर्तव्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन करने में सक्षम बनाने के लिए सूचना, संसाधनों और समर्थन तक पहुंच होनी चाहिए।

मामला 3- पीएनबी धोखाधड़ी (2018)

नीरव मोदी से जुड़े पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) धोखाधड़ी ने धोखाधड़ी गतिविधियों को रोकने में स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं। बैंक के संचालन में अनियमितताओं पर सवाल नहीं उठाने के लिए कुछ स्वतंत्र निदेशकों की आलोचना की गई।

कथित तौर पर उचित परिश्रम करने में विफल रहने और बैंक के संचालन में अनियमितताओं के बारे में सवाल उठाने के लिए पीएनबी के मंडल में कई स्वतंत्र निदेशकों की आलोचना की गई थी। आलोचना इस तथ्य से उपजी है कि, अपनी प्रत्ययी जिम्मेदारियों के बावजूद, कुछ स्वतंत्र निदेशकों ने उन लाल झंडों को नज़रअंदाज कर दिया जो संभावित रूप से धोखाधड़ी वाली गतिविधियों को रोक सकते थे या उनका पता लगा सकते थे।

आलोचकों ने तर्क दिया कि कार्यकारी प्रबंधन के कार्यों की स्वतंत्र निगरानी करने में स्वतंत्र निदेशकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उनसे स्वतंत्र निर्णय लेने, कठिन प्रश्न पूछने और किसी भी संदिग्ध या अनैतिक प्रथाओं को चुनौती देने की अपेक्षा की जाती है। हालाँकि, पीएनबी के मामले में, ऐसा प्रतीत हुआ कि कुछ स्वतंत्र निदेशकों ने अपने कर्तव्यों को पूरा करने में कमी की है, जिससे हितधारकों के बीच निराशा की भावना पैदा हुई और विश्वास की हानि हुई।

पीएनबी धोखाधड़ी ने गैर-कार्यकारी निदेशकों की भूमिका और स्वतंत्रता को मजबूत करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। कॉर्पोरेट प्रशासन तंत्र की प्रभावशीलता को बढ़ाने और यह सुनिश्चित करने के लिए सुधारों का आह्वान किया गया कि स्वतंत्र निदेशकों के पास प्रबंधन के कार्यों की प्रभावी ढंग से जांच करने और शेयरधारकों और जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए आवश्यक कौशल, अनुभव और स्वतंत्रता हो।

चिंताओं को संबोधित करना

कठपुतली आरोपों का मुकाबला करने के लिए, कई उपाय लागू किए जा सकते हैं:

  • उन्नत प्रकटीकरण: कंपनियों को स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति के पीछे के तर्क और संस्थापकों या सहयोगियों के साथ उनके संभावित संबंधों का खुलासा करना चाहिए।
  • विविध मंडल संरचना: विभिन्न पृष्ठभूमि के स्वतंत्र निदेशकों को शामिल करके मंडल में विविधता लाने से एक समान निर्णय लेने के माहौल को रोकने में मदद मिल सकती है।
  • मजबूत मूल्यांकन प्रक्रिया: स्वतंत्रता के लिए सख्त मानदंडों के साथ-साथ स्वतंत्र निदेशकों के नियमित प्रदर्शन मूल्यांकन से हितों के किसी भी संभावित टकराव की पहचान करने में मदद मिल सकती है।
  • स्वतंत्र निदेशकों के लिए सुरक्षा: मुखबिर सुरक्षा और क्षतिपूर्ति प्रावधान स्वतंत्र निदेशकों को प्रतिशोध के डर के बिना चिंताओं को व्यक्त करने का आत्मविश्वास प्रदान कर सकते हैं।

नियंत्रण: नियामक प्रावधान

स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति के संबंध में, कंपनी अधिनियम, 2013 ऐसे व्यक्तियों की एक सूची प्रदान करता है जो कंपनी से संबंधित हैं और कंपनी के मामलों में रुचि रखते हैं, जो उन्हें कुछ सीमाओं से अधिक स्वतंत्र निदेशकों के रूप में नियुक्त होने से अयोग्य घोषित करता है। स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति के लिए मंडल की मंजूरी की आवश्यकता होती है। वे लगातार पांच साल तक सेवा दे सकते हैं। सामान्य बैठक में विशेष प्रस्ताव पारित कर अगले पांच वर्षों के लिए पुनर्नियुक्ति संभव है।

धारा 149(7) के तहत, स्वतंत्र निदेशकों को अपनी पहली मंडल बैठक में अपनी स्वतंत्रता की स्थिति की घोषणा करनी होगी, प्रत्येक वित्तीय वर्ष में पहली बैठक में इसकी पुनरावृत्ति (रिकरिंग) करनी होगी, और जब भी ऐसी कोई परिस्थिति उत्पन्न होती है जो एक निदेशक के रूप में उनकी स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकती है।

स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका और कार्य काफी हद तक कंपनी अधिनियम, 2013, सेबी (सूचीबद्धता दायित्व और प्रकटीकरण आवश्यकताएँ) विनियम, 2015 और हाल ही में, सेबी (सूचीबद्ध दायित्व और प्रकटीकरण आवश्यकताएँ) (संशोधन) विनियम, 2018 के माध्यम से नियंत्रित होते हैं।

तदनुसार, एक सूचीबद्ध कंपनी के लिए जहां निदेशक मंडल का अध्यक्ष एक गैर-कार्यकारी निदेशक है, निदेशक मंडल में कुल निदेशकों का कम से कम एक तिहाई स्वतंत्र निदेशक शामिल होंगे और जहां सूचीबद्ध इकाई में नियमित गैर-कार्यकारी अध्यक्ष नहीं है, वहां निदेशक मंडल के कम से कम आधे हिस्से में स्वतंत्र निदेशक शामिल होंगे।

सेबी ने आदेश दिया कि सूचीबद्ध संस्थाओं के निदेशक मंडल में कम से कम एक स्वतंत्र महिला निदेशक होगी।

निष्कर्ष

अच्छे कॉर्पोरेट प्रशासन और सभी हितधारकों के हितों की सुरक्षा का लक्ष्य स्वतंत्र निदेशकों के हाथ में है। यद्यपि अनैतिक आचरण या हितों के टकराव के उदाहरण हैं, लेकिन यह मान लेना सही नहीं है कि सभी स्वतंत्र निदेशक कठपुतली के रूप में कार्य करते हैं। ऐसे आरोप स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति और कामकाज में अधिक प्रतिबद्धता और पारदर्शिता की आवश्यकता पर जोर देते हैं।

प्रकटीकरण प्रथाओं को बढ़ाकर और स्वतंत्रता की संस्कृति को प्रोत्साहित करके, कंपनियां संस्थापकों के हाथों की कठपुतली बनने के बजाय कॉर्पोरेट प्रशासन के निष्पक्ष संरक्षक बनने की दिशा में काम कर सकती हैं।

सरकार को यह समझने की अत्यधिक आवश्यकता है कि उन्हें ईमानदार, स्वतंत्र निदेशकों की रक्षा करनी चाहिए। केवल जब स्वतंत्र निदेशकों को विश्वास होगा कि वे कानून के तहत संरक्षित हैं, तभी वे अपने कार्यों को लगन से करने और अपने अधिकार का कुशलतापूर्वक उपयोग करने में सक्षम होंगे।

संदर्भ

 

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