अफरे- एक्सप्लेनेशन ऑफ सेक्शन 159 ऑफ आईपीसी,1860 (दंगा- भारतीय दंड संहिता,1860 की धारा 159 की व्याख्या)

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Indian Penal Code
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इस ब्लॉग पोस्ट में, Niharika Mittal, ने दंगे के तत्वों और भेदों की चर्चा की है। इस लेख को Divyansha Saluja द्वारा अनुवादित किया गया है।

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परिचय (इंट्रोडक्शन)

शब्द “दंगा” का अर्थ है दो या दो से अधिक लोगो के बीच झड़प या लड़ाई होना, झड़प के बीच प्रहार होना चाहिए, या फिर किसी भी पक्ष के पास हथियार होना चाहिए। “दंगे” का अपराध लोगों को दहशत में लाने के लिए किया जाता है और यह एक सार्वजनिक अपराध है। भारतीय दंड संहिता,1860 (इंडियन पीनल कोड,1860) की धारा 159 के अनुसार, दंगे को इस प्रकार परिभाषित किया गया है, “जब दो या दो से अधिक व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर लड़कर, सार्वजनिक शांति को भंग करते हैं, तो यह माना जाता है कि वह दंगा कर रहे हैं। “दंगा करने की सजा, धारा 160 के तहत एक महीने तक की कैद या 100 रुपये तक का जुर्माना या दोनों भी हो सकते है। यह अपराध अनिवार्य रूप से एक निश्चित (डेफिनेट) हमले या सार्वजनिक शांति भंग करने के अपराध को दर्शाता है। किसी स्थान पर केवल झगड़ा या गाली-गलौज करना, जिसके चलते मारपीट तक या लड़ाई तक बात नहीं पहुंचती, तो वह झड़प, आई.पी.सी की धारा 160 का ध्यान आकर्षित (अटेंशन) करने के लिए पर्याप्त नहीं है। दंगे को पूरी तरह से अपराध बनाने के लिए लड़ाई-झगड़ा करना एक आवश्यक तत्व (एलिमेंट) है। इसका मतलब है कि दोनों पक्षों को आक्रामक (अग्रेसिव) होना और उस लड़ाई में भाग लेना जरूरी है।

अंग्रेजी कानून के तहत दंगा (अफरे अकॉर्डिंग टू इंग्लिश लॉज़)

अंग्रेजी कानून में, यदि दो या दो से अधिक व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर अधिपति (सॉवरेन) की प्रजा (सब्जेक्ट) को दहशत में लाने के लिए लड़ते हैं, तो वह एक दंगा माना जाता है और सामान्य विधि के अनुसार एक दुराचार (मिस्डिमीनर) भी माना जाता है। लड़ाई करने के लिए, एक निजी स्थान पर या किसी ऐसी जगह पर, जहां कोई भी व्यक्ति मौजूद ना हो, सिवाय उन लोगों के जो झगड़ा करने में सहायता कर रहे हैं और उकसाने का कार्य कर रहे हैं, तो भी वह झगड़ा दंगे के रूप में नहीं माना जा सकता, लेकिन ऐसे किसी भी विषय के लिए सभा या भीड़ का इकट्ठा होना गैरकानूनी है, और  दोनों पक्षों को इससे संबंधित अपराधों के लिए दोषी ठहराया (कनविक्ट) जा सकता है।

कानूनी रूप से गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के, बचाव या बचाव के प्रयास के लिए, कार्यालय के निष्पादन (एक्जीक्यूशन) में न्याय के अधिकारियों को हिंसक (वायलेंट) रूप से परेशान करना, दंगे का एक उग्र (एग्रावेटेड) रूप है। यूनाइटेड किंगडम की रानी के न्यायालयों में, यहां तक ​​कि महल के प्रांगण (यार्ड) जो कि न्यायालय के पास होते हैं, वहां पर भी ऐसा किए जाने पर, अपराध गंभीर रूप से दंडनीय  होता है और यहां तक कि निम्न न्यायालय (इन्फीरीअर कोर्ट) की उपस्थिति में यह अपराध किए जाने पर भी अत्यधिक दंडनीय है और जुर्माना भी देना पड़ सकता है।

झगड़ालू और धमकी भरे शब्द स्वयं, कानून में ऐसी दहशत उत्पन्न नहीं कर सकते हैं, जिसे दंगे के रूप में माना जा सकता हो, लेकिन फिर भी वास्तविक हिंसा (एक्चुअल वायलेंस) की उपस्थिति के बिना भी दंगा किया जा सकता है, जैसे कि, जहां व्यक्ति स्वयं ही खतरनाक और असामान्य हथियारों से लैस (आर्म्ड) हैं, इस तरह से स्वाभाविक (नेचरल) रूप से ही वह साधारण व्यक्तियों के बीच दहशत का कारण बन जाता है, जो सामान्य विधि में अपराध माना जाता है।  

किसी भी प्रत्यक्ष (डायरेक्ट) साक्ष्य के अभाव (एब्सेंस) में भी, दंगे जैसे अपराध को साबित करने के लिए यह पर्याप्त होगा कि, महारानी की प्रजा को दहशत में लाने के लिए यह अपराध किया गया था और  इस अपराध को दिखाने के लिए यह भी पर्याप्त है कि ऐसी परिस्थितियों में कोई भी उचित (रीजनेबल) व्यक्ति भयभीत या आतंकित (इंटिमिडेटेड) हो सकता है।

यह अपराध जुर्माने और कारावास (इंप्रिजनमेंट) से दंडनीय है।

दंगे का अर्थ (मीनिंग ऑफ अफरे)

ब्लैकस्टोन के अनुसार, “यह अपराध सार्वजनिक स्थान पर दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच होता है और महामहिम (हिज़ मैजिस्टी) की प्रजा में दहशत लाने के लिए किया जाता है, और यदि लड़ाई अकेले में हो रही हो, तो यह कोई दंगा नहीं बल्कि एक धर्षण (असॉल्ट) कहलाता है।” अपराध का सार (जिस्ट) यह है कि यह जनता के लिए दहशत का कारण बनता है। शब्द ‘अफरे’ फ्रांसीसी शब्द ‘अफरेयर’ से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘भयभीत करना’ और इसलिए, कानूनी अर्थों में इसे लोगों के लिए आतंक पैदा करने वाले सार्वजनिक अपराध के लिए माना जाता है। इस अपराध के तहत दोष सिद्ध होने के लिए, यह पर्याप्त है कि जनता के लिए कोई खतरे का संकेत हुआ होगा। यह जरूरी नहीं है कि जनता का कोई खास सदस्य इस बात का सबूत दे कि वह घबरा गया था। अशांति के समय जनता की उपस्थिति यह दिखाने के लिए पर्याप्त होगी कि जनता अशांति के कारण चिंतित हो गई थी और दंगे का अपराध साबित करने के लिए जनता की शांति भंग होना पर्याप्त है।

दंगे के मूल तत्व (इंग्रेडिएंट्स ऑफ अफरे)

दंगे में निम्नलिखित तत्व शामिल होते  हैं:

  • दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा लड़ना।
  • लड़ाई सार्वजनिक स्थान पर होनी चाहिए।
  • इस तरह की लड़ाई से सार्वजनिक शांति भंग भी होनी चाहिए।

दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा लड़ाई (फाइटिंग बाय टू और मोर देन टू पर्सन)

दंगे का अपराध अपने आप मैं ही एक लड़ाई को दर्शाता है, अर्थात, एक द्विपक्षीय (बाइलैटरल) कृत्य , जिसमें दो पक्ष भाग लेते हैं और जब जिस पार्टी पर हमला किया जाता है वह बिना किसी प्रतिरोध (रिज़िस्टेंस) के हमले के अधीन हो जाती है, तो यह एक दंगा नहीं कहलाया जा सकता। लड़ाई का तात्पर्य (एम्पलाई) अनिवार्य रूप से दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच एक दूसरे के खिलाफ महारत (मास्टरी) हासिल करने के लिए लड़ाई झगड़ा करना होना चाहिए। जब एक पक्ष के सदस्य दूसरे पक्ष के सदस्यों को पीटते हैं और वह पक्ष जवाबी कार्रवाई (रीटेलिएट) नहीं करता या जवाबी कार्रवाई करने का प्रयास नहीं करता, और निष्क्रिय (पैसिव) रहता है तो यह नहीं कहा जा सकता है कि एक पक्ष के सदस्यों और दूसरे पक्ष सदस्यों के बीच लड़ाई थी और दंगे के अपराध को स्थापित नहीं किया जा सकता। जोधे बनाम राज्य  (ए आई आर 1952 ऑल। 788 पृष्ठ 794 पर)।

आई.पी.सी की धारा 160 के तहत अवेक्षित (कंटेंप्लेटेड) “लड़ाई” निश्चित रूप से एक मात्र झगड़े से अलग है। पी. रामनाथ अय्यर, लॉ लेक्सिकॉन में “लड़ाई” को इस प्रकार परिभाषित करता है:  

“वार या हथियारों की मदद लेकर, युद्ध या लड़ाई में जीत के लिए संघर्ष करना या फिर किसी दुश्मन को हराना, वश में करना या उसे नष्ट करने का प्रयास करना।”

“लड़ाई” का अर्थ है दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच क्रोधित कथनों का आदान-प्रदान, न कि केवल सामान्य स्वर में बात करना। हालाँकि लड़ाई या झगड़े के लिए दो लोगों की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन उनके बीच का अंतर पूर्ण रूप से स्पष्ट है।  

सार्वजनिक स्थान पर लड़ना (फाइटिंग इन ए पब्लिक प्लेस) 

वह स्थान जहाँ जनता जाती है, चाहे उन्हे जाने का अधिकार हो या न हो, वह सार्वजनिक स्थान कहलाता है।  सार्वजनिक रूप से किए गए कार्य और सार्वजनिक स्थान पर किए गए कार्य के बीच अंतर है। इंग्लैंड में, कुछ क़ानून ऐसे कार्यो को दंडात्मक बनाते हैं जो की सार्वजनिक रूप से किए गए हो और अन्य कानून कुछ ऐसे कार्यो को दंडत्मक बनते हैं जो सार्वजनिक स्थान पर किए गए हो, ताकि इंग्लैंड में आपराधिक संविधि (क्रिमिनल् स्टेट्यूट लॉ) सार्वजनिक रूप से किए गए अप्राध और सार्वजनिक जगह पर किए गए अप्राध के बीच अंतर बता सके। भारतीय विधानमंडल (लेजिस्लेचर) के अधिनियमों में भी यही सीमांकन (डीमार्कैशन) दर्शाई गई है। यहां पर दर्शाया गया अपराध सार्वजनिक स्थान पर और जनता की उपस्थिति में किया जाना चाहिए, जिसके बिना सार्वजनिक शांति भंग नहीं हो सकती।

सार्वजनिक शांति भंग होना (डिस्टर्बन्स ऑफ पब्लिक पीस)

दंगा करने के लिए न केवल लड़ाई होनी चाहिए, बल्कि इससे सार्वजनिक शांति भंग होनी चाहिए। 

दंगे के अभिलक्षण (कैरेक्टरिस्टिक ऑफ अफरे)

  • दंगे का आरोप दोनों पक्षों को आरोपी व्यक्ति के रूप में लाता है क्योंकि यह अपराध दोनों लड़ाई समूहों (ग्रुप्स) द्वारा होता है।
  • यह जमानती (बेलबल) अपराध है। 
  • यह गैर-शमनीय (नॉन-कंपाउंडेबल) अपराध है। 
  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1973) ने अब इसे संज्ञेय (कॉग्निजेबले ) अपराध बना दिया है। 
  • यह किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा आजमाया जा सकता है और संक्षेप (समरी) में विचारणीय (ट्राईबल) है।

कुछ महत्वपूर्ण मामले (सम इम्पोर्टेन्ट केस)

जगन्नाथ साह [(1937) ओ.डब्ल्यू.एन. 37]

जगन्नाथ साह बनाम बिहार राज्य, के मामले में, शहर के एक सार्वजनिक सड़क पर दो भाई आपस में झगड़ रहे थे और गाली-गलौज कर रहे थे। उनके आसपास भारी संख्या में लोग जमा हो गए। यहां तक ​​कि जाम भी हो गया लेकिन उनके बीच कोई वास्तविक लड़ाई नहीं हुई। इस मामले में यह माना गया था कि कोई दंगा नहीं किया गया था। 

बाबू राम और एन. बनाम सम्राट [(1930) आई.एल.आर. 53. ए.एल.एल.229]

बाबू राम और एन. बनाम एम्परर, के मामले में, सार्वजनिक स्थान पर दो अन्य व्यक्तियों द्वारा एक व्यक्ति पर हमला किया गया और उसे पूरी तरह पराजित कर दिया गया। वह केवल अपना बचाव कर सकता था। यह माना गया कि वे अपराध के दोषी थे क्योंकि सार्वजनिक स्थान पर लड़ाई हुई थी जिससे सार्वजनिक शांति भंग हुई थी।  

बल्वा और दंगा के बीच का अंतर (डिस्टिंगक्शन बिटवीन रायट एंड अफरे)

यह अपराध दंगों से निम्न प्रकार से भिन्न है:-  

  • निजी स्थान पर बल्वा नहीं किया जा सकता है जबकि निजी स्थान पर दंगा किया जा सकता है। 
  • दंगा करने के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों की उपस्थिति होनी चाहिए जबकि बल्वा के लिए पांच या अधिक व्यक्ति होने चाहिए। 

दंगा और हमले के बीच का अंतर (डिस्टिंगक्शन बिटवीन अफरे एंड असॉल्ट)

दंगा हमले से अलग है: –  

  • सार्वजनिक स्थान पर दंगा हो सकता है, जबकि हमला कहीं भी हो सकता है।
  • दंगे को सार्वजनिक शांति के खिलाफ अपराध माना जाता है जबकि हमला, व्यक्ति के खिलाफ होता है। 

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

इस प्रकार दंगे का अपराध एक द्विपक्षीय कार्य है जिसमें दो या दो से अधिक पक्ष एक दूसरे के खिलाफ लड़ने के लिए भाग लेते हैं, जो एक सार्वजनिक स्थान पर किया जाता है और इसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक शांति भंग होती है। इस अपराध को स्थापित करने के लिए पक्षों के बीच एक वास्तविक लड़ाई होनी चाहिए पर केवल झगड़े का परिणाम दंगा नहीं होता। आई.पी.सी की धारा 159 इसे परिभाषित करती है और धारा 160, अपराध के लिए सजा का प्रावधान (प्रोविजन) करती है। इसे, बल्वा और हमले से भी अलग माना गया है, स्थान जहां अपराध किया गया था, व्यक्तियों  की संख्या और जनता प्रभावित हुई थी या नहीं, के कारणों की वजह से।

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