भारतीय संविधान में 7वां शेड्यूल

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Indian Constitution
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यह लेख लॉयड लॉ कॉलेज के Ranojoy Middya ने लिखा है। इस लेख में भारतीय संविधान के 7वें शेड्यूल पर चर्चा की गई है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja ने किया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन)

जब भी हम एक फेडरल राष्ट्र के संविधान के बारे में बात करते हैं, तो हमारे दिमाग में प्रमुख विशेषताएं आती हैं वह है, यूनियन और स्टेट के बीच की शक्ति का वितरण (डिस्ट्रीब्यूशन)। लेकिन जहां तक भारतीय संविधान का सवाल है, यह प्रकृति में थोड़ा भिन्न है क्योंकि, जिस यूनियनिज्म की अवधारणा (कांसेप्ट) का पालन हमारा संविधान  करता है, वह हमारे देशवासियों की विशिष्ट (पेक्यूलियर) आवश्यकताओं से उत्पन्न होती है, जिसने बाद में भारत में एक तरह का यूनियनिज्म तैयार किया था। लेजिस्लेटिव शक्तियों के प्रसार (डिसेमिनेशन) के संदर्भ में, हमारे संविधान के निर्माताओं ने गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1935 द्वारा निर्धारित (लेड डाउन) पैटर्न के साथ समानता बनाए रखी, जिसने स्टेट लेजिस्लेचर या असेंबलीज पर यूनियन पार्लियामेंट को प्रधानता देने की अनुमति दी। लेजिस्लेटिव शक्तियाँ, यूनियन और स्टेट लेजिस्लेचर के बीच शक्तियों के वितरण  की योजना के इर्द-गिर्द घूमती हैं, जो संविधान के 7वें शेड्यूल के तहत तीन लिस्ट्स में प्रदान की जाती है। 

इस लेख में संविधान के तहत उन लिस्ट्स के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है।

यूनियन लिस्ट (लिस्ट I) (पार्लियामेंट लेजिस्लेशन)

इस लिस्ट में 97 आइटम शामिल हैं और इसमें वे विषय शामिल हैं जो राष्ट्रीय महत्व के हैं और पूरे देश के लिए समान कानूनों को स्वीकार करते हैं, और इन मामलों को कानून बनाने की लेजिस्लेटिव शक्तियां पूरी तरह से यूनियन पार्लियामेंट में निहित (वैस्टेड) हैं। यूनियन लिस्ट के दायरे में आने वाले अभिन्न विषय हैं जैसे: रक्षा, विदेशी मामले (फॉरेन अफेयर्स), मुद्रा (करेंसी) और सिक्का (कॉइनेज), युद्ध और शांति, परमाणु ऊर्जा (एटॉमिक एनर्जी), राष्ट्रीय संसाधन (रिसोर्सेज), रेलवे, डाक और टेलीग्राफ, नागरिकता, नेविगेशन और शिपिंग, विदेश व्यापार, इंटर-स्टेट व्यापार और वाणिज्य (कॉमर्स), बैंकिंग, बीमा, राष्ट्रीय राजमार्ग (हाईवे), जनगणना (सेंसस), चुनाव, उच्च शिक्षा संस्थान (इंस्टीट्यूशंस) और अन्य।

7वां शेड्यूल

(आर्टिकल 246)

लिस्ट I- यूनियन लिस्ट

(पार्लियामेंट लेजिस्लेशन)

  1. भारत की और उसके प्रत्येक भाग की रक्षा, जिसमें रक्षा के लिए तैयारी और ऐसे सभी कार्य शामिल हैं, जो युद्ध के समय, युद्ध के संचालन (प्रॉसिक्यूशन) और उसकी समाप्ति के पश्चात्‌ प्रभावी सैन्यवियोजन (डीमोबिलाइजेशन) में सहायक हों।
  2. नौसेना, सेना और वायु सेना; यूनियन के अन्य सशस्त्र (आर्म्ड) बल।

2A. यूनियन के किसी सशस्त्र बल या यूनियन के नियंत्रण के अधीन किसी अन्य बल का या उसकी किसी टुकड़ी या यूनिट का किसी स्टेट में सिविल शक्ति की सहायता में अभिनियोजन (डिप्लॉयमेंट); ऐसे अभिनियोजन के समय ऐसे बलों के सदस्यों की शक्तियाँ, अधिकार क्षेत्र (जूरिस्डिक्शन), विशेषाधिकार और दायित्व (लायबिलिटीज)।

  1. छावनी (कैंटोनमेंट) क्षेत्रों का परिसीमन (डीलिमिटेशन), ऐसे क्षेत्रों में स्थानीय (लोकल) स्वशासन (सेल्फ-गर्वनमेंट), ऐसे क्षेत्रों के भीतर छावनी प्राधिकारियों (अथॉरिटीज) का गठन (कांस्टीट्यूशन) और उनकी शक्तियाँ तथा ऐसे क्षेत्रों में गृह वास-सुविधा (एकोमोडेशन) का विनियमन (जिसके अंदर रेंट का नियंत्रण है)।
  2. नौसेना, सेना और वायु सेना के कार्य।
  3. आर्म्स, फायर आर्म्स, गोलाबारूद (एम्युनिशन) और विस्फोटक।
  4. परमाणु ऊर्जा और उसके उत्पादन (प्रोडक्शन) के लिए आवश्यक खनिज (मिनरल) संसाधन स्त्रोत (सोर्सेज)।
  5. पार्लियामेंट द्वारा बनाए गए कानून की रक्षा के लिए या युद्ध के संचालन के लिए आवश्यक घोषित किए गए उद्योग।
  6. सेंट्रल इंटेलिजेंस और इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो।
  7. रक्षा, विदेश कार्य या भारत की सुरक्षा संबंधी कारणों से निवारक निरोध (प्रिवेंटिव डिटेंशन); इस प्रकार निरोध में रखे गए व्यक्ति।
  8. विदेश कार्य, सभी विषय जिनके द्वारा यूनियन का किसी विदेश से संबंध होता है।
  9. राजनयिक (डिप्लोमेटिक), कौंसलर और व्यापारिक प्रतिनिधित्व (रिप्रेजेंटेशन)।
  10. यूनाइटेड नेशंस ऑर्गेनाइजेशन।
  11. अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों (कांफ्रेंस), संगमों (एसोसिएशन) और अन्य निकायों (बॉडीज) में भाग लेना और उनमें लिए गए फैसलों को लागू करना।
  12. विदेशों से ट्रिटीज और एग्रीमेंट करना और विदेशों से की गई ट्रिटीज, एग्रीमेंट और कन्वेंशंस को लागू करना।
  13. युद्ध और शांति।
  14. वैदेशिक (फॉरेन) अधिकार क्षेत्र।
  15. नागरिकता, देशीयकरण (नेचुरलाइजेशन) और अन्यदेशीय (एलियन)।
  16. प्रत्यर्पण (एक्सट्रेडिशन)।
  17. भारत में प्रवेश और उसमें से उत्प्रवास (इमिग्रेशन) और निष्कासन (एक्सपल्शन); पासपोर्ट और वीजा।
  18. भारत से बाहर के स्थानों की तीर्थयात्राएँ।
  19. खुले समुद्र या आकाश में की गई दस्युता (पायरेसी) और अपराध; स्थल या खुले समुद्र या आकाश में राष्ट्रों की विधि के विरुद्ध किए गए अपराध।
  20. रेल।
  21. ऐसे राजमार्ग जिन्हें पार्लियामेंट द्वारा बनाए गए कानून द्वारा या उसके तहत राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किया गया है।
  22. यंत्र नोदित जलयानों (मेकेनिकली प्रोपेल्ड वेसल्स) के संबंध में ऐसे राष्ट्रीय जलमार्गों (इनलैंड वाटरवेज) पर शिपिंग और नेविगेशन, जो पार्लियामेंट द्वारा बनाए गए कानून द्वारा राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किए गए हैं; ऐसे जलमार्गों पर मार्ग का नियम।
  23. समुद्री शिपिंग और नेविगेशन, जिसके अंदर ज्वारीय (टाइडल) जल में शिपिंग और नेविगेशन आता है; व्यापारिक समुद्री के लिए शिक्षा और प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) का प्रावधान (प्रोवीजन) और ऐसी शिक्षा और प्रशिक्षण को रेगुलेट करना। नौसेना, सैन्य और वायु सेना काम करती है।
  24. लाइटहाउस, जिसमें लाइटशिप, बीकन और शिपिंग और विमान (एयरक्राफ्ट) की सुरक्षा के लिए अन्य प्रावधान शामिल हैं।
  25. पार्लियामेंट या मौजूदा कानून द्वारा बनाए गए कानून या उसके तहत घोषित बंदरगाह, जिसके अंदर उनका परिसीमन और उनमें पत्तन प्राधिकारियों (पोर्ट अथॉरिटीज) का गठन और उनकी शक्तियाँ हैं।
  26. पत्तन करतीन (क्वारेंटाइन), जिसके अंदर उससे संबंधित अस्पताल हैं; नाविक (सीमेन) और समुद्रीय अस्पताल।
  27. वायुमार्ग; विमान और हवाई नेविगेशन; हवाई अड्डों का प्रावधान; हवाई यातायात (ट्रैफिक) और हवाई अड्डों का रेगुलेशन और संगठन (ऑर्गेनाइजेशन); वैमानिक (एयरोनॉटिकल) शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए व्यवस्था तथा स्टेट्स और अन्य एजेंसीज द्वारा दी जाने वाली ऐसी शिक्षा और प्रशिक्षण का रेगुलेशन।
  28. रेलवे, समुद्र या वायु मार्ग द्वारा, या यांत्रिक (मेकेनिकली) रूप से चलने वाले जहाजों में राष्ट्रीय जलमार्ग द्वारा यात्रियों और सामानों की वाहन (कैरेज)।
  29. डाक और टेलीग्राफ; टेलीफोन, वायरलेस, प्रसारण (ब्रॉडकास्टिंग) और संचार (कम्युनिकेशन) के अन्य समान रूप।
  30. यूनियन की संपत्ति और उससे होने वाला राजस्व (रेवेन्यू), लेकिन किसी स्टेट में स्थित संपत्ति के संबंध में, वहां तक के सिवाय जहां तक पार्लियामेंट कानून द्वारा अन्यथा विषय (सब्जेक्ट) करे, उस स्टेट के लेजिस्लेशन के अधीन रहते हुए।
  31. (एंट्री 33, संविधान (7वें अमेंडमेंट) एक्ट, 1956 द्वारा हटाया गया है।
  32. भारतीय स्टेट्स के शासकों (रूलर्स) की सम्पदा (एस्टेट्स) के लिए कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स।
  33. यूनियन का सार्वजनिक (पब्लिक) ऋण।
  34. मुद्रा, सिक्का निर्माण ,और कानूनी निविदा (टेंडर,); विदेशी मुद्रा।
  35. विदेशी ऋण।
  36. भारतीय रिजर्व बैंक।
  37. डाकघर बचत बैंक।
  38. भारत सरकार या किसी स्टेट की सरकार द्वारा आयोजित लॉटरी।
  39. विदेशों के साथ व्यापार और वाणिज्य; सीमा शुल्क सीमांतों (कस्टम फ्रंटियर्स) के आर-पार इंपोर्ट और एक्सपोर्ट; सीमा शुल्क सीमाओं की परिभाषा।
  40. इंटर स्टेट व्यापार और वाणिज्य।
  41. बैंकिंग, बीमा और वित्तीय (फाइनेंशियल) कॉर्पोरेशन सहित व्यापारिक कॉर्पोरेशन का इनकॉरपोरेशम, रेगुलेशन और वाइंडिंग अप, लेकिन सहकारी समितियां (को-ऑपरेटिव सोसाइटीज) शामिल नहीं हैं।
  42. कॉर्पोरेशन का इनकॉरपोरेशन, रेगुलेशन और वाइंडिंग अप, चाहे व्यापार निगम हो या न हो, जिनका उद्देश्य एक स्टेट तक सीमित नहीं हैं, लेकिन विश्वविद्यालय शामिल नहीं हैं।
  43. बैंकिंग।
  44. एक्सचेंज के बिल, चेक, वचन पत्र (प्रोमिसरी नोट) और अन्य समान लिखत यंत्र।
  45. बीमा।
  46. स्टॉक एक्सचेंज और वायदा (फ्यूचर्स) बाजार।
  47. पेटेंट, आविष्कार (इनवेंशंस) और डिजाइन; कॉपीराइट; व्यापार चिह्न (ट्रेड मार्क) और पण्य वस्तु चिह्न (मर्चेंडाइज मार्क)।
  48. बांटो (वेट) और मापों (मेजर) के मानकों (स्टैंडर्ड) की स्थापना।
  49. भारत से बाहर एक्सपोर्ट किए जाने वाले या एक स्टेट से दूसरे स्टेट में परिवहन (ट्रांसपोर्ट) किए जाने वाले माल के लिए गुणवत्ता (क्वालिटी) के मानकों की स्थापना।
  50. कारखाने, जिनका नियंत्रण यूनियन द्वारा, पार्लियामेंट द्वारा बनाए गए कानून द्वारा सार्वजनिक हित में समीचीन (एक्सपीडिएंट) घोषित किया जाता है।
  51. तेल क्षेत्रों (फील्ड्स) और खनिज (मिनरल) तेल संसाधनों (रिसोर्सेज) का रेगुलेशन और विकास; पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पाद; अन्य तरल (लिक्विड) पदार्थ और अन्य पदार्थ जिन्हें पार्लियामेंट ने कानून द्वारा खतरनाक रूप से ज्वलनशील (इनफ्लेमेबल) घोषित किया है।
  52. खानों और खनिज विकास का उस सीमा तक रेगुलेशन, जिस सीमा तक यूनियन के नियंत्रण में इस तरह के रेगुलेशन और विकास को पार्लियामेंट द्वारा बनाए गए कानून द्वारा जनहित में समीचीन घोषित किया जाता है।
  53. खानों और तेल क्षेत्रों में श्रम (लेबर) और सुरक्षा का रेगुलेशन।
  54. इंटर स्टेट नदियों और नदी दूनो (वैलिज) का उस सीमा तक रेगुलेशन और विकास, जिस सीमा तक यूनियन के नियंत्रण में ऐसे रेगुलेशन और विकास को पार्लियामेंट द्वारा बनाए गए कानून द्वारा जनहित में समीचीन घोषित किया जाता है।
  55. प्रादेशिक (टेरिटोरियल) जल से परे मछली पकड़ना और मछली पालन (फिशरीज)।
  56. यूनियन एजेंसीज द्वारा नमक का विनिर्माण (मैन्युफैक्चर), आपूर्ति (सप्लाई) और वितरण; एवं अन्य एजेंसीज द्वारा नमक के विनिर्माण, आपूर्ति और वितरण का रेगुलेशन और नियंत्रण।
  57. अफीम (ओपियम) की खेती, निर्माण और एक्सपोर्ट के लिए बिक्री।
  58. प्रदर्शन के लिए चलचित्र (सिनेमाटोग्राफ) फिल्मों को मंजूरी देना।
  59. यूनियन के कर्मचारियों से संबंधित औद्योगिक (इंडस्ट्रियल) विवाद।
  60. इस संविधान के प्रारंभ होने पर राष्ट्रीय पुस्तकालय, भारतीय संग्रहालय (म्यूज़ियम), शाही (इंपीरियल) युद्ध संग्रहालय, विक्टोरिया स्मारक (मेमोरियल) और भारतीय युद्ध स्मारक के रूप में ज्ञात संस्थान, और भारत सरकार द्वारा पूर्ण या आंशिक (पार्शियल) रूप से वित्तपोषित (फाइनेंस्ड) किए गए थे और पार्लियामेंट द्वारा बनाए गए कानून द्वारा राष्ट्रीय महत्व के लिए घोषित वैसी ही कोई अन्य संस्था। 
  61. इस संविधान के प्रारंभ में संस्थानों को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय के नामों से ज्ञात संस्थाएं; आर्टिकल 371 E के अनुसरण (परस्यूंस) में स्थापित विश्वविद्यालय; पार्लियामेंट द्वारा बनाए गए कानून द्वारा घोषित राष्ट्रीय महत्व की अन्य संस्था।
  62. भारत सरकार द्वारा पूर्ण या आंशिक रूप से वित्तपोषित वैज्ञानिक या तकनीकी (टेक्निकल) शिक्षा के लिए संस्थान और पार्लियामेंट द्वारा बनाए गए कानून द्वारा घोषित किए गए राष्ट्रीय महत्व के संस्थान।
  63. यूनियन एजेंसीज और संस्थानों के लिए-
  1. पुलिस अधिकारियों के प्रशिक्षण सहित पेशेवर (प्रोफेशनल), व्यावसायिक (वोकेशनल) या तकनीकी प्रशिक्षण; या
  2. विशेष अध्ययन (स्ट्डीज) या अनुसंधान (रिसर्च) को बढ़ावा देना; या
  3. अपराध की जांच या पता लगाने में वैज्ञानिक या तकनीकी सहायता।
  1. उच्च शिक्षा या अनुसंधान और वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थानों के लिए संस्थानों में समन्वय (को ऑर्डिनेशन) और मानकों का निर्धारण (डिटरमिनेशन)।
  2. प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक (मॉन्यूमेंट्स) और अभिलेख (रिकॉर्ड), और पुरातात्विक स्थल (आर्कियोलॉजिकल साइट्स) और अवशेष (रिमेंस), [पार्लियामेंट द्वारा बनाए गए कानून द्वारा या उसके तहत राष्ट्रीय महत्व के लिए घोषित किए गए]।
  3. भारतीय सर्वेक्षण (सर्वे), भारतीय भूवैज्ञानिक (जियोलॉजिकल), वनस्पति विज्ञान (बोटेनिकल), प्राणी विज्ञान (जूलॉजिकल) और मानव विज्ञान (एंथ्रोपोलिजिक) सर्वेक्षण; मौसम विज्ञान (मेटियोरोलॉजिकल) संगठन।
  4. जनगणना (सेंसस)
  5. यूनियन पब्लिक सर्विस; अखिल भारतीय (ऑल इंडिया) सेवाएं; यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन।
  6. यूनियन पेंशन, यानी भारत सरकार द्वारा या भारत की संचित निधि (कंसोलिडेटेड फंड) से देय पेंशन।
  7. पार्लियामेंट, स्टेट्स के लेजिस्लेचर्स के लिए और प्रेसिडेंट और वाइस प्रेसिडेंट के कार्यालयों के लिए चुनाव; इलेक्शन कमिशन।
  8. पार्लियामेंट के सदस्यों, राज्य सभा के चेयरमैन और डेप्युटी चेयरमैन के तथा लोक सभा के स्पीकर और डेप्युटी स्पीकर के वेतन और भत्ते (अलाउंसेज)।
  9. पार्लियामेंट के प्रत्येक सदन और प्रत्येक सदन के सदस्यों और कमिटीज की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां (इम्यूनिटीज); पार्लियामेंट की कमिटीज या पार्लियामेंट द्वारा नियुक्त कमिशंस के समक्ष साक्ष्य देने या दस्तावेज पेश करने के लिए व्यक्तियों की उपस्थिति को लागू करना।
  10. प्रेसिडेंट और गवर्नर की अनुपस्थिति (एब्सेंस) की छुट्टी के संबंध में उपलब्धियां, भत्ते, विशेषाधिकार और अधिकार; यूनियन के मंत्रियों के वेतन और भत्ते; कंप्ट्रोलर और ऑडिटर जनरल की अनुपस्थिति की छुट्टी और सेवा की अन्य शर्तों के संबंध में वेतन, भत्ते और अधिकार।
  11. यूनियन और स्टेट्स के अकाउंट्स की ऑडिट करना।
  12. सुप्रीम कोर्ट का गठन, संगठन, अधिकार क्षेत्रा और शक्तियां (ऐसे कोर्ट की अवमानना (कंटेम्प्ट) सहित), और उसमें ली गई फीस; सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विधि व्यवसाय (प्रैक्टिस) करने के हकदार व्यक्ति।
  13. हाई कोर्ट्स के अधिकारियों और कर्मचारियों के प्रावधानों को छोड़कर हाई कोर्ट्स का गठन और संगठन [(छुट्टियों सहित)]; हाई कोर्ट्स के समक्ष विधि व्यवसाय करने के हकदार व्यक्ति।
  14. किसी हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र का विस्तार, और किसी भी यूनियन राज्यक्षेत्र (टेरिटरी) से हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र का अपवर्जन (एक्सक्लूजन)।
  15. किसी स्टेट के पुलिस बल के सदस्यों की शक्तियों और अधिकार क्षेत्र का उस स्टेट के बाहर किसी भी क्षेत्र में विस्तार, लेकिन ऐसा नहीं है कि एक स्टेट की पुलिस उस स्टेट के बाहर किसी भी क्षेत्र में शक्तियों और अधिकार क्षेत्रा का प्रयोग करने में सक्षम हो, बिना उस स्टेट की सरकार की सहमति के जिसमें ऐसा क्षेत्र स्थित है; और किसी स्टेट से संबंधित पुलिस बल के सदस्यों की शक्तियों और अधिकार क्षेत्र का उस स्टेट के बाहर के रेलवे क्षेत्रों में विस्तार।
  16. इंटर-स्टेट प्रवास (माइग्रेशन); इंटर स्टेट क्वारंटाइन।
  17. कृषि आय के अलावा अन्य आय पर कर (टैक्स)।
  18. एक्सपोर्ट शुल्क सहित सीमा शुल्क (कस्टम ड्यूटी) के कर्तव्य।
  19. भारत में विनिर्मित या उत्पादित (प्रोड्यूस्ड) तंबाकू और अन्य माल पर उत्पाद-शुल्क (एक्साइज ड्यूटी) जिसके अंतर्गत-
  1. मानवीय उपभोग के लिए ऐल्कोहाली लिकर,
  2. अफीम, इंडियन हेंप और अन्य स्वापक औषधियाँ तथा स्वापक (नार्कोटिक) पदार्थ, नहीं हैं; किंतु ऐसी औषधीय (मेडिसिनल) और प्रसाधन (टॉयलेट) निर्मितियाँ (प्रिपरेशंस) हैं जिसमें ऐल्कोहाल या इस प्रविष्टि के उप पैरा (B) का कोई पदार्थ अंतर्विष्ट (इंक्लूड) है।  
  1. निगम कर (कॉर्पोरेशन टैक्स)।
  2. व्यक्तियों और कंपनियों की कृषि भूमि को छोड़ कर, पूंजी मूल्य (कैपिटल वैल्यू) पर कर और कंपनियों की पूंजी पर कर। 
  3. कृषि भूमि के अलावा अन्य संपत्ति के संबंध में संपदा (एस्टेट) शुल्क
  4. कृषि भूमि के अलावा अन्य संपत्ति के सक्सेशन के संबंध में कर्तव्य।
  5. रेलवे, समुद्र या हवाई मार्ग से ले जाने वाले माल या यात्रियों पर टर्मिनल कर; रेल किराए और माल भाड़ों (फ्राइट्स) पर कर।
  6. स्टॉक एक्सचेंज और वायदा बाजारों में लेनदेन पर स्टैंप शुल्क के अलावा अन्य कर।
  7. एक्सचेंज के बिल, चेक, वचन पत्र, लदान (लेडिंग) के बिल, साख पत्र, बीमा की नीतियां (पॉलिसीज), शेयरों के हस्तांतरण (ट्रांसफर), डिबेंचर, प्रतिनिधि (प्रॉक्सी) और प्राप्तियों के संबंध में स्टाम्प शुल्क की दरें (रेट्स)।
  8. समाचार पत्रों की बिक्री या खरीद और उसमें प्रकाशित (पब्लिश) विज्ञापनों पर कर। (यह एंट्री संविधान (101वें अमेंडमेंट) एक्ट, 2016 द्वारा हटा दी गई थी।)

92A. समाचार पत्रों के अलावा अन्य वस्तुओं की बिक्री या खरीद पर कर, जहां ऐसी बिक्री या खरीद इंटर स्टेट व्यापार या वाणिज्य के दौरान होती है।

92B. माल की खेप (कन्साइनमेंट) पर कर (चाहे खेप इसे बनाने वाले व्यक्ति के लिए हो या किसी अन्य व्यक्ति को), जहां ऐसी खेप इंटर स्टेट व्यापार या वाणिज्य के दौरान होती है।

92C. सेवाओं पर कर। (यह एंट्री संविधान (101वें अमेंडमेंट) एक्ट, 2016, द्वारा हटा दी गई थी।)

  1. इस लिस्ट के किसी भी मामले के संबंध में कानूनों के विरुद्ध अपराध।
  2. इस लिस्ट के किसी भी मामले के प्रयोजन (पर्पज) के लिए पूछताछ, सर्वेक्षण और आंकड़े (स्टेटिस्टिक्स)।
  3. इस सूची के किसी भी मामले के संबंध में सुप्रीम कोर्ट को छोड़कर सभी कोर्ट्स की अधिकार क्षेत्र और शक्तियां; नावधिकरण  विषयक (एडमिरल्टी) अधिकार क्षेत्र।
  4. इस सूची में किसी भी मामले के संबंध में फीस, लेकिन किसी भी कोर्ट में ली गई फीस शामिल नहीं है।
  5. कोई अन्य मामला जो लिस्ट II या लिस्ट III में सूचीबद्ध (एन्यूमेरेटेड) नहीं है, जिसमें उन लिस्ट में से किसी में भी उल्लेख नहीं किया गया कर शामिल है।

स्टेट लिस्ट (लिस्ट II) (स्टेट लेजिस्लेचर)

इस लिस्ट में 66 आइटम हैं और उन विषयों के बारे में बात करते हैं जो स्थानीय या स्टेट के हित से संबंधित हैं इसलिए यह सीधे स्टेट लेजिस्लेचर की लेजिस्लेटिव क्षमता (कॉम्पिटेंस) के भीतर आता है। स्टेट लिस्ट में प्रमुख एंट्रीज हैं: स्टेट कोर्ट की फीस, जेल, स्थानीय सरकार, सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस, सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता, अस्पताल और औषधालय (डिस्पेंसरीज) भारत के भीतर तीर्थयात्रा, नशीले पदार्थ, विकलांग (डिसेबल्ड) और बेरोजगारों के लिए राहत, पुस्तकालय, संचार, कृषि, पशुपालन (एनिमल हसबेंडरी), जल आपूर्ति, सिंचाई और नहरें, मछलियों का पालन, सड़क यात्री कर और माल कर, कैपिटेशन कर और अन्य एंट्रीज।

(7वां शेड्यूल)

(आर्टिकल 246)

लिस्ट II- स्टेट लिस्ट

(स्टेट लेजिस्लेचर)

  1. सार्वजनिक व्यवस्था (लेकिन इसके अंदर सिविल शक्ति की सहायता के लिए (नौसेना, सेना या वायु सेना या यूनियन के किसी अन्य सशस्त्र बल या यूनियन के नियंत्रण के अधीन किसी अन्य बल का या उसकी किसी टुकड़ी या यूनिट का प्रयोग) नहीं है)।
  2. पुलिस (रेलवे और ग्राम पुलिस सहित) यह, लिस्ट I की एंट्री 2A के प्रावधानों के अधीन है।
  3. हाई कोर्ट के अधिकारी और सेवक; किराया और राजस्व कोर्ट्स में प्रक्रिया; सुप्रीम कोर्ट को छोड़कर सभी कोर्ट्स में ली जाने वाली फीस शामिल है।
  4. कारागार, सुधारशालाएं (रिफॉर्मेटरीज), बोर्स्टल संस्थान और समान प्रकृति की अन्य संस्थाएं और उनमें हिरासत में लिए गए व्यक्ति; जेलों और अन्य संस्थानों के उपयोग के लिए अन्य स्टेट्स के साथ व्यवस्था करना।
  5. स्थानीय शासन, अर्थात्‌ नगर कॉर्पोरेशन, सुदार न्यासों (इंप्रूवमेंट ट्रस्ट्स), जिला बोर्ड्स, खनन-बस्ती (माइनिंग सेटलमेंट) प्राधिकारियों और स्थानीय स्वशासन या ग्राम प्रशासन (एडमिनिस्ट्रेशन) के प्रयोजनों के लिए अन्य स्थानीय प्राधिकारियों का गठन और शक्तियाँ।
  6. सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता; अस्पतालों और औषधालयों।
  7. तीर्थयात्रा, भारत के बाहर के स्थानों की तीर्थयात्रा के अलावा।
  8. मादक (इंटॉक्सिकेटिंग) द्रव्य (लिकर्स) यानी की मादक द्रव्यों का उत्पादन, विनिर्माण, कब्जा, परिवहन, खरीद और बिक्री।
  9. विकलांगों और बेरोजगारों के लिए राहत।
  10. शव गढ़ना और कब्रिस्तान; शव दाह (क्रीमेशन) और श्मशान घाट।
  11. (11वीं एंट्री को संविधान (42वें अमेंडमेंट) एक्ट, 1976 द्वारा हटाया गया है।)
  12. स्टेट द्वारा नियंत्रित या वित्तपोषित पुस्तकालय, संग्रहालय और अन्य समान संस्थान; प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों और अभिलेखों को छोड़कर जिन्हें पार्लियामेंट द्वारा या उनके द्वारा बनाए गए कानून के तहत राष्ट्रीय महत्व के लिए घोषित किया गया है।
  13. संचार, अर्थात सड़कें, पुल, घाट और संचार के अन्य साधन जो लिस्टI में निर्दिष्ट (स्पेसिफाइड) नहीं हैं; नगरपालिका (म्युनिसिपल) ट्रामवे; रोपवे; ऐसे जलमार्गों के संबंध में लिस्ट I और लिस्ट III के प्रावधानों के अधीन अंतरराष्ट्रीय जलमार्ग और उस पर यातायात; यांत्रिक चालित वाहनों के अलावा अन्य वाहन।
  14. कृषि, जिसमें कृषि शिक्षा और अनुसंधान, कीटों से सुरक्षा और पौधों की बीमारियों की रोकथाम शामिल है।
  15. पशुधन का परिरक्षण (प्रिजर्वेशन), संरक्षण (प्रोटेक्शन), स्टॉक में सुधार और जीव-जंतुओं के रोगों का निवारण (प्रिवेंशन); पशु चिकित्सा प्रशिक्षण और व्यवसाय।
  16. पौंड और पशु अतिचार की रोकथाम।
  17. जल, अर्थात् जल आपूर्ति, सिंचाई और नहरें, जल निकासी (ड्रेनेज) और तटबंध (एंबेंकमेंट्स), जल भंडारण (स्टोरेज) और जल शक्ति, जो लिस्ट I की एंट्री 56 के प्रावधानों के अधीन है।
  18. भूमि, अर्थात् भूमि में या उस पर अधिकार, भू-स्वाधिकारी (लैंड टेन्यूर्स) जिसमें जमींदार और काश्तकार (टेनेंट) के संबंध शामिल हैं, और रेंट का संग्रह; कृषि भूमि का हस्तांतरण और अन्य संक्रामण (एलिनेशन); भूमि सुधार और कृषि ऋण; उपनिवेश (कॉलोनाइजेशन)
  19. (19वीं एंट्री को, संविधान (42वें अमेंडमेंट) एक्ट, 1976 के द्वारा हटा दिया गया था।)
  20. (20वीं एंट्री को, संविधान (42वें अमेंडमेंट) एक्ट, 1976 के द्वारा हटा दिया गया था।)
  21. मछली का पालन।
  22. लिस्ट I की एंट्री 34 के प्रावधानों के अधीन वार्डों के कोर्ट; बोझिल (एनकंबर्ड) और अटैच्ड सम्पदा।
  23. यूनियन के नियंत्रण में विनियम और विकास के संबंध में लिस्ट I के प्रावधानों के अधीन खानों और खनिज विकास का रेगुलेशन।
  24. लिस्ट I की [एंट्रीज 7 और 52] के प्रावधानों के अधीन कारखाने।
  25. गैस और गैस संकर्म (वर्कर्स)।
  26. लिस्ट III की एंट्री 33 के प्रावधानों के अधीन स्टेट के भीतर व्यापार और वाणिज्य।
  27. लिस्ट III की एंट्री 33 के प्रावधानों के अधीन वस्तुओं का उत्पादन, आपूर्ति और वितरण।
  28. बाजार और मेले।
  29. (एंट्री 29 को संविधान (42वे अमेंडमेंट) एक्ट, 1976 के द्वारा हटा दिया गया था।)
  30. साहूकार (मनी लैंडिंग) और मनी लैंडर; कृषि ऋण से मुक्ति।
  31. पांथशाला (इंस) और पांथशालापाल (इंस कीपर)
  32. ऐसे कॉरपोरेशंस का, जो लिस्ट 1 में निर्दिष्ट कॉरपोरेशंस से भिन्न हैं और विश्वविद्यालयों का इनकॉरपोरशन, रेगुलेशन और वाइंडिंग अप; अनइनकोर्पोरेटेड व्यापारिक, साहित्यिक (लिटरेरी), वैज्ञानिक, धार्मिक और अन्य सोसाइटीज और संगम; सहकारी सोसाइटियाँ।
  33. थिएटर और नाटकीय प्रदर्शन; लिस्ट I की एंट्री 60 के प्रावधानों के अधीन सिनेमा; खेल, मनोरंजन और आमोद (एम्यूजमेंट)।
  34. सट्टा और जुआ।
  35. स्टेट में निहित या उसके कब्जे में संकर्म, भूमि और भवन।
  36. (एंट्री 36, संविधान (7वें अमेंडमेंट) एक्ट, 1956 द्वारा हटाई गई है।)
  37. पार्लियामेंट द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन स्टेट के लेजिस्लेचर के लिए चुनाव।
  38. स्टेट के लेजिस्लेचर के सदस्यों, लेजिस्लेटीव असेंबली के स्पीकर और डेप्युटी स्पीकर और, यदि कोई लेजिस्लेचर काउंसिल है, तो उसके चेयरमैन और डेप्युटी चेयरमैन के वेतन और भत्ते।
  39. लेजिस्लेटिव असेंबली और उसके सदस्यों और कमिटीज की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां, और, यदि कोई लेजिस्लेटिव काउंसिल है, तो उस काउंसिल की और उसके सदस्यों और कमिटीज की; स्टेट लेजिस्लेचर की कमिटीज के समक्ष साक्ष्य देने या दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए व्यक्तियों की उपस्थिति का प्रवर्तन।
  40. स्टेट के मंत्रियों के वेतन और भत्ते।
  41. स्टेट पब्लिक सर्विसेज; स्टेट पब्लिक सर्विस कमीशन।
  42. स्टेट पेंशन, अर्थात् स्टेट द्वारा या स्टेट की संचित निधि से देय पेंशन।
  43. स्टेट का सार्वजनिक ऋण।
  44. गुप्त कोष (ट्रेजर ट्रॉव)।
  45. भूमि राजस्व, जिसमें राजस्व का आकलन (असेसमेंट) और संग्रह, भूमि अभिलेखों का रखरखाव (मेंटेनेंस), राजस्व उद्देश्यों के लिए सर्वेक्षण और अधिकारों के रिकॉर्ड, और राजस्व का हस्तांतरण शामिल है।
  46. कृषि आय पर कर।
  47. कृषि भूमि के उत्तराधिकार के संबंध में शुल्क।
  48. कृषि भूमि के संबंध में संपदा शुल्क।
  49. भूमि और भवनों पर कर।
  50. पार्लियामेंट द्वारा बनाए गए कानून द्वारा, खनिज विकास के संबंध में अधिरोपित (लिमिटेशन) निर्बंधनों (इंपोज्ड) के अधीन रहते हुए, खनिज संबंधी अधिकारों पर कर।
  51. स्टेट में विनिर्मित या उत्पादित निम्नलिखित वस्तुओं पर उत्पाद शुल्क और भारत में कहीं और विनिर्मित या उत्पादित समान वस्तुओं पर समान या कम दरों पर प्रतिकारी (काउंटरवेलिंग) शुल्क: –
  1. मानव उपभोग (कंसंप्शन) के लिए मादक शराब;
  2. अफीम, भारतीय भांग और अन्य मादक दवाएं और नशीले पदार्थ; लेकिन इस एंट्री के उप-पैरा (B) में शामिल शराब या किसी भी पदार्थ से युक्त औषधीय और  प्रसाधन निर्मितियाँ (टॉयलेट प्रिपरेशंस) शामिल नहीं है।
  1. स्थानीय क्षेत्र में उपभोग, प्रयोग या बिक्री के लिए माल के प्रवेश पर कर। (यह एंट्री, संविधान (101वें अमेंडमेंट) एक्ट, 2016 द्वारा हटा दी गई थी)
  2. बिजली की खपत या बिक्री पर कर।
  3. लिस्ट I की एंट्री 92A के प्रावधानों के अधीन समाचार पत्रों के अलावा अन्य वस्तुओं की बिक्री या खरीद पर कर।
  4. समाचार पत्रों में प्रकाशित विज्ञापनों और रेडियो या टेलीविजन द्वारा प्रसारित विज्ञापनों के अलावा अन्य विज्ञापनों पर कर। (यह एंट्री, संविधान 101वें अमेंडमेंट) एक्ट, 2016 द्वारा बदली गई थी।
  5. सड़क या अंतरराष्ट्रीय जलमार्ग से ले जाए जाने वाले माल और यात्रियों पर कर।
  6. लिस्ट III की एंट्री 35 के प्रावधानों के अधीन ट्रामकारों सहित सड़कों पर उपयोग के लिए उपयुक्त वाहनों पर कर, चाहे यांत्रिक रूप से चालित हों या नहीं।
  7. जानवरों और नावों पर कर।
  8. टोल।
  9. व्यवसायों, व्यापारों, बुलाहटों (कॉलिंग) और रोजगार पर कर।
  10. कैपिटेशन कर।
  11. मनोरंजन, आमोद, सट्टेबाजी और जुए पर कर सहित विलासिता (लक्जरी) की वस्तुओं पर कर। (यह एंट्री संविधान 101वें अमेंडमेंट) एक्ट, 2016 द्वारा बदली गई थी।)
  12. स्टाम्प शुल्क की दरों के संबंध में लिस्ट I के प्रावधानों में निर्दिष्ट दस्तावेजों के अलावा अन्य दस्तावेजों के संबंध में स्टाम्प शुल्क की दरें।
  13. इस लिस्ट के किसी भी मामले के संबंध में कानूनों के विरुद्ध अपराध।
  14. इस लिस्ट के किसी भी मामले के संबंध में सुप्रीम कोर्ट को छोड़कर सभी कोर्टों की अधिकार क्षेत्र और शक्तियां।
  15. इस लिस्ट में किसी भी मामले के संबंध में फीस, लेकिन किसी भी कोर्ट में ली गई फीस शामिल नहीं है।

कंकर्रेंट लिस्ट (लिस्ट III) (पार्लियामेंट और स्टेट लेजिस्लेचर)

यह लिस्ट भारतीय लेजिस्लेचर की सबसे विशिष्ट (डिस्टिंक्टिव) विशेषताओं में से है क्योंकि यह किसी अन्य देश के फेडरल संविधान में नहीं पाई जाती है। लिस्ट में  47 एंट्री उल्लिखित है, और यूनियन पार्लियामेंट और स्टेट लेजिस्लेचर के पास अधिकार है की वह दोनो, इन सभी एंट्रीज़ के संबंध में कानून बना सकते हैं, क्योंकि दोनों के पास कानून की कंकर्रेंट शक्ति है। यह विशेष लिस्ट ज्यादातर दो गुना (2-फोल्ड) वितरण की अत्यधिक कठोरता को ढीला करने के लिए एक उपकरण (डिवाइस) के रूप में कार्य करती है। इसे अक्सर, संविधान के ट्वाइलाइट क्षेत्र के रूप में माना जाता है, क्योंकि यह लेजिस्लेटिव शक्ति को मामलों की महत्वता के आधार पर, स्टेट लेजिस्लेचर को पार्लियामेंट से भिन्न होने की अनुमति देता है। जैसे महत्वपूर्ण मामलों के संबंध में, स्टेट लेजिस्लेचर प्रभार (चार्ज) लेती है और महत्वपूर्ण मामलों के संबंध में पार्लियामेंट भी ऐसा ही करती है। साथ ही यूनियन पार्लियामेंट द्वारा पास कानूनों के प्रवर्धन (एम्प्लीफिकेशन) के संदर्भ में स्टेट लेजिस्लेचर को इसके लिए पूरक (सप्लीमेंट्री) कानून पेश करने का अधिकार भी होता है। कुछ प्रमुख सूचीबद्ध (लिस्टेड) विषय इस प्रकार हैं; आपराधिक कानून, आपराधिक प्रक्रिया, स्टेट की सुरक्षा, विवाह और तलाक, कृषि भूमि के अलावा अन्य संपत्ति के हस्तांतरण, अनुबंध (कॉन्ट्रेक्ट), कार्रवाई योग्य गलतियाँ, दिवालियापन (बैंकरप्टसी) और दिवाला (इनसोलवेंसी), ट्रस्ट और ट्रस्टी, न्याय प्रशासन, साक्ष्य और शपथ, सिविल प्रोसीजर, कोर्ट की अवमानना, पागलपन, जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम, जंगल, जंगली जानवरों और पक्षियों की सुरक्षा, जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन (प्लानिंग), ट्रेड यूनियन, शिक्षा, श्रम कल्याण, अंतरराष्ट्रीय शिपिंग और नेविगेशन, खाद्य पदार्थ, मूल्य नियंत्रण, स्टाम्प शुल्क, और अन्य एंट्रीज भी शामिल है। संविधान के प्रारंभ में, उक्त लिस्ट में 52 एंट्रीज़ हुआ करती थी, लेकिन 42वें संविधान अमेंडमेंट एक्ट, 1976 के बाद, 5 और एंट्रीयां इसमें शामिल की गईं।

7वां शेड्यूल

(आर्टिकल 246)

लिस्ट III- कंकर्रेंट लिस्ट

(पार्लियामेंट और स्टेट लेजिस्लेचर)

  1. इस संविधान के इंडियन पीनल कोड में शामिल सभी मामलों सहित आपराधिक कानून, लेकिन लिस्ट I या लिस्ट II में निर्दिष्ट किसी भी मामले के संबंध में कानूनों के खिलाफ अपराधों को छोड़कर और नौसेना, सेना या वायु सेना या किसी के उपयोग को छोड़कर सिविल शक्ति की सहायता में यूनियन के अन्य सशस्त्र बल।
  2. इस संविधान के प्रारंभ में कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर में शामिल सभी मामलों सहित आपराधिक प्रक्रिया।
  3. स्टेट की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव, या समुदाय के लिए आवश्यक आपूर्ति और सेवाओं के रखरखाव से जुड़े कारणों के लिए निवारक निरोध; और ऐसे निरोध के अधीन व्यक्ति।
  4. इस लिस्ट की एंट्री 3 में निर्दिष्ट कारणों से बंदियों, आरोपी व्यक्तियों और निवारक निरोध के अधीन व्यक्तियों को एक स्टेट से दूसरे स्टेट में हटाया जाना।
  5. विवाह और तलाक; शिशुओं और नाबालिगों; दत्तक ग्रहण (अडॉप्शन); वसीयत (विल), निर्वसीयतता (इंटेस्टेसी), और उत्तराधिकार; संयुक्त परिवार और विभाजन (पार्टिशन); वे सभी मामले जिनके संबंध में न्यायिक कार्यवाही में पक्षकार इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले अपने व्यक्तिगत (पर्सनल) कानून के अधीन थे।
  6. कृषि भूमि के अलावा अन्य संपत्ति का हस्तांतरण; कार्यों और दस्तावेजों का पंजीकरण।
  7. अनुबंध, जिसमें भागीदारी (पार्टनरशिप), एजेंसी, गाड़ी के अनुबंध और अन्य विशेष प्रकार के अनुबंध शामिल हैं, लेकिन इसमें कृषि भूमि से संबंधित अनुबंध शामिल नहीं हैं।
  8. अनुयोज्य दोष (एक्शनेबल रोंग्स)।
  9. दिवालियापन और दिवाला।
  10. ट्रस्ट और ट्रस्टी।
  11. प्रशासक-सामान्य (एडमिनिस्ट्रेटर- जनरल) और आधिकारिक ट्रस्टीज।

11A. न्याय का प्रशासन; सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स को छोड़कर सभी कोर्ट्स का गठन और संगठन।

  1. साक्ष्य और शपथ; कानूनों, सार्वजनिक कार्यों और अभिलेखों और न्यायिक कार्यवाही की मान्यता।
  2. सिविल प्रोसीजर जिसके अंदर ऐसे सभी विषय हैं जो, इस संविधान के प्रारंभ में कोड ऑफ सिविल प्रोसीजर में शामिल सभी मामलों, सीमा और मध्यस्थता (आर्बिट्रेशन) सहित है।
  3. कोर्ट की अवमानना, लेकिन इसमें सुप्रीम कोर्ट की अवमानना ​​शामिल नहीं है।
  4. आहिंडन (वैग्रंसी); यायावरी (नोमेडिक) और प्रवासी जनजातियाँ (माइग्रेटरी ट्राइब्स)।
  5. पागलपन और मानसिक कमी, जिसके अंदर पागलों और मानसिक कमी वाले व्यक्तियों को ग्रहण करने (रिसेप्शन) या उनका उपचार करने के स्थान शामिल हैं। 
  6. पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम।

17A. जंगल।

17B. जंगली जानवरों और पक्षियों का संरक्षण।

  1. खाद्य पदार्थों और अन्य सामानों में मिलावट।
  2. ड्रग्स और जहर, अफीम के संबंध में लिस्ट I की एंट्री 59 के प्रावधानों के अधीन।
  3. आर्थिक और सामाजिक योजना।

20A. जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन।

  1. वाणिज्यिक (कमर्शियल) और औद्योगिक एकाधिकार (मोनोपोलीज), संयोजन और ट्रस्ट।
  2. ट्रेड यूनियन; औद्योगिक और श्रम विवाद।
  3. सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक बीमा; रोजगार और बेरोजगारी।
  4. काम की शर्तें, भविष्य निधि (प्रोविडेंट फंड), नियोक्ता की देनदारी, कामगारों का मुआवजा, अमान्यता और वृद्धावस्था (ओल्ड एज) पेंशन और मातृत्व (मेटरनिटी) लाभ सहित श्रम का कल्याण।
  5. तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा और विश्वविद्यालयों सहित शिक्षा, लिस्ट I की एंट्रीयों 63, 64, 65 और 66 के प्रावधानों के अधीन; श्रम का व्यावसायिक और तकनीकी प्रशिक्षण।
  6. कानूनी, चिकित्सा और अन्य पेशे।
  7. भारत और पाकिस्तान के डोमिनियन की स्थापना के कारण अपने मूल निवास स्थान से विस्थापित (डिस्प्लेस्ड) व्यक्तियों की राहत और पुनर्वास (रिहैबिलिटेशन)।
  8. दान और धर्मार्थ (चेरिटेबल) संस्थान, धर्मार्थ और धार्मिक वन्यास (एंडोवमेंट्स) और धार्मिक संस्थान।
  9. मनुष्यों, जानवरों या पौधों को प्रभावित करने वाले संक्रामक (इनफेक्शिअस) या सांसर्गिक (कंटेजियस) रोगों या कीटों के एक स्टेट से दूसरे स्टेट में फैलने की रोकथाम।
  10. जन्म और मृत्यु के पंजीकरण सहित महत्वपूर्ण आँकड़े।
  11. पार्लियामेंट या मौजूदा कानून द्वारा या बनाए गए कानून द्वारा या उसके तहत घोषित किए गए बंदरगाहों के अलावा अन्य बंदरगाह प्रमुख बंदरगाह हैं।
  12. राष्ट्रीय जलमार्गों के संबंध में लिस्ट I के प्रावधानों के अधीन यांत्रिक रूप से चालित जहाजों के संबंध में अंतरराष्ट्रीय जलमार्गों पर शिपिंग और नेविगेशन, और ऐसे जलमार्गों पर सड़क के नियम, और अंतरराष्ट्रीय जलमार्गों पर यात्रियों और माल की ढुलाई।
  13. व्यापार और वाणिज्य, और उत्पादन, आपूर्ति और वितरण, –
  1. किसी भी इंडस्ट्री के उत्पाद जहां यूनियन द्वारा ऐसी कारखाने का नियंत्रण पार्लियामेंट द्वारा बनाए गए कानून द्वारा सार्वजनिक हित में समीचीन घोषित किया जाता है, और ऐसे उत्पादों के समान इंपोर्टेड सामान;
  2. खाद्य पदार्थ, जिसमें खाद्य तिलहन (ऑयल सीड्स) और तेल शामिल हैं;
  3. पशुओं का चारा, जिसमें खली (ऑयलकेक्स) और अन्य सारकृत (कंसन्ट्रेट्स) चारे शामिल हैं;
  4. कच्चा कपास का (फॉडर), चाहे वह ओटी हुई हो (गिन्ड) या बिना ओटी हो (अनगिन्ड), और बिनौले (कॉटन सीड्स) का, और
  5. कच्चा जूट।

33A. मानकों की स्थापना को छोड़कर बाट और माप।

  1. मूल्य नियंत्रण।
  2. यांत्रिक रूप से चालित वाहन जिसमें वे सिद्धांत भी शामिल हैं जिन पर ऐसे वाहनों पर कर लगाया जाना है।
  3. कारखाना।
  4. बॉयलर।
  5. बिजली।
  6. अखबार, किताबें और प्रिंटिंग प्रेस।
  7. पुरातत्व स्थल और उनके अलावा अन्य अवशेष जो [पार्लियामेंट द्वारा बनाए गए कानून द्वारा या उसके तहत घोषित] राष्ट्रीय महत्व के हैं।
  8. संपत्ति (कृषि भूमि सहित) की हिरासत, प्रबंधन और निपटान कानून द्वारा घोषित संपत्ति को खाली करने वाली संपत्ति के रूप में घोषित किया गया है।
  9. संपत्ति का अर्जन (एक्विजिशन) और अधिग्रहण (रिक्विजिशन)।
  10. करों और अन्य सार्वजनिक मांगों के संबंध में दावों की स्थिति में वसूली, जिसमें उस स्टेट के बाहर उत्पन्न होने वाले भूमि-राजस्व की बकाया राशि और ऐसे बकाया के रूप में वसूली योग्य राशि शामिल है।
  11. न्यायिक स्टाम्प के माध्यम से एकत्र किए गए शुल्क या शुल्क के अलावा अन्य स्टाम्प शुल्क, लेकिन स्टाम्प शुल्क की दरों सहित नहीं।
  12. लिस्ट II या लिस्ट III में निर्दिष्ट किसी भी मामले के प्रयोजनों के लिए पूछताछ और आंकड़े।
  13. इस लिस्ट के किसी भी मामले के संबंध में सुप्रीम कोर्ट को छोड़कर सभी कोर्टों की अधिकार क्षेत्र और शक्तियां।
  14. इस लिस्ट में किसी भी मामले के संबंध में फीस, लेकिन किसी भी कोर्ट में ली गई फीस शामिल नहीं है।

भारतीय संविधान के 7वें शेड्यूल पर ऐतिहासिक निर्णय

“हमारे निष्कर्ष (फाइंडिंग) के मद्देनजर का आक्षेपित (इंपिंग्ड) एक्ट पूरी तरह से स्टेट लेजिस्लेचर की लेजिस्लेटिव क्षमता के भीतर है और लिस्ट II की एंट्री 6 के साथ पठित (रीड) एंट्री 6 द्वारा पूरी तरह से कवर किया गया है, हमारे लिए संविधान के आर्टिकल 246 के क्लॉज (3) पर आधारित तर्कों से निपटना आवश्यक नहीं है, इन निम्नलिखित तर्कों को छोड़कर: एक बार जब आक्षेपित एक्ट, एंट्री 8 के साथ पठित एंट्री 6 के चारों कोनों के भीतर है, तो कोई भी यूनियन कानून जो लिस्ट I में से किसी एक एंट्री के संदर्भ में है या लिस्ट III की किसी एंट्री के संदर्भ में बनाया गया है, वह किसी स्टेट द्वारा बनाए गए कानून की वैधता (वैलिडिटी) को प्रभावित नही कर सकता है। इस तरह के संदर्भ में कब्जे वाले क्षेत्र का तर्क पूरी तरह से मुद्दे से बाहर है। यदि कोई विशेष मामला स्टेट लेजिस्लेचर की अनन्य (एक्सक्लूसिव) क्षमता के भीतर है, अर्थात लिस्ट II में जो यूनियन के लिए निषिद्ध (प्रोहिबिटेड) क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। इसी तरह, यदि कोई मामला यूनियन की विशिष्ट क्षमता के भीतर है, तो वह स्टेट्स के लिए निषिद्ध क्षेत्र बन जाता है। कब्जे वाले क्षेत्र की अवधारणा लिस्ट III में एंट्रीज के संदर्भ में बनाए गए कानूनों के मामले में वास्तव में प्रासंगिक (रेलिवेंट) है। दूसरे शब्दों में, जब भी किसी लेजिस्लेचर को किसी स्टेट लेजिस्लेचर की लेजिस्लेटिव क्षमता से परे कहा जाता है, तो उसे इसी स्थिति में रूल ऑफ पिथ एंड सब्सटेंस को लागू करके, यह पता लगाना चाहिए की क्या वह लेजिस्लेचर लिस्ट II की किसी भी एंट्री के भीतर आता है। यदि ऐसा होता है, तो कोई और प्रश्न नहीं उठ सकता; लेजिस्लेटिव क्षमता के आधार पर जो प्रश्न किए गए है वह विफल हो जाएंगे। ऐसा नहीं हो सकता है कि ऐसी स्थिति में भी आर्टिकल 246(3) को स्टेट लेजिस्लेचर की लेजिस्लेटिव अक्षमता के आधार पर कानून को अमान्य करने के लिए नियोजित (एम्प्लॉय) किया जा सकता है। यदि, दूसरी ओर स्टेट लेजिस्लेचर, जो मुद्दे में है वह पिथ और सब्सटेंस के रूल को लागू करने वाली लिस्ट III में एक एंट्री से संबंधित है, तो भी लेजिस्लेचर वैध होगा, इसके साथ असंगत (इनकंसिस्टेंट) पार्लियामेंटरी इनैक्टमेंट के अधीन, एक ऐसी स्थिति से निपटा जाएगा जिसके द्वारा आर्टिकल 254 को निपटाया जाता है। जैसा कि पहले ही बताया गया है, कोई भी आकस्मिक (इंसीडेंटल) खाई (ट्रेंच), पार्लियामेंट के लिए आरक्षित (रिजर्व) क्षेत्र पर अतिक्रमण (इनक्रोच) का कार्य नहीं है, हालांकि टी.एल. वेंकटराम अय्यर, जे. ने, ए.एस. कृष्णा बनाम स्टेट ऑफ मद्रास, 1957 एस.सी.आर. 399 के मामले में यह इंगित (पॉइंट) किया था की लेजिस्लेटिव बॉडी की क्षमता से परे खाई की सीमा यह निर्धारित करने में एक तत्व हो सकती है कि क्या कानून रंगीन है। यहां ऐसा कोई सवाल नहीं उठता।”

“इस प्रकार यह स्पष्ट है कि केबल ऑपरेटर, प्रतिवादी (रिस्पॉन्डेंट) 1 इस मामले में प्रदर्शक (एग्जिबिटर) है और ग्राहक के मनोरंजन के प्रदाता (प्रोवाइडर) भी है। इसलिए, उन्हें अकेले ही इस प्रदर्शनी से होने वाले मनोरंजन पर कर का भुगतान करने के लिए कहा जा सकता है। इसलिए, यह प्रावधान संविधान के 7वें शेड्यूल की लिस्ट II की एंट्री 62 की सीमा को पार नहीं करता है और इंट्रा वायर्स है। दर्शकों के अंत तक केबल लिंक प्रदान करना सब-केबल ऑपरेटर की एकमात्र भूमिका है। अत: यह अकल्पनीय (इनकंसीवेबल) है कि केबल लाइन पर सिग्नल के रूप में तैयार मनोरंजन प्रस्तुत करने के बावजूद, केबल ऑपरेटर को संविधान के 7वें शेड्यूल की लिस्ट II की एंट्री 62 के अर्थ के भीतर मनोरंजन प्रदान करने वाला नहीं कहा जा सकता है। जब तक स्टेट एक्ट, लिस्ट II की एंट्री 62 के दायरे में रहता है और संविधान के आर्टिकल 286 या उसके तहत बनाए गए कानूनों के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करता है, तब तक स्टेट एक्ट की वैधता प्रश्न से परे है। इस प्रकार, प्रतिवादी 1 जो अलग-अलग केबल ऑपरेटर्स को टीवी सिग्नल प्राप्त करने और प्रदान करने में लगा हुआ है, एक्ट की धारा 4A की उप-धारा (4A) के क्लॉज (ii) के तहत कर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है।

“उपरोक्त मानदंड (क्राइटेरिया) के तहत इस प्रश्न पर विचार किया जाना चाहिए। इस प्रकार माना जाता है, यह स्वयं इस मुद्दे को हल करेगा कि क्या पीनल कोड की धारा 489A से 489D के प्रावधान, जिसके तहत याचिकाकर्ता (पेटीशनर) को दोषी ठहराया गया था, एक ऐसे मामले से संबंधित कानून है जिस पर स्टेट या यूनियन की लेजिस्लेटिव शक्ति का विस्तार होता है?

इन चार धाराओं को, करेंसी नोट्स फॉर्जरी एक्ट, 1899, द्वारा फॉर्जरी के खिलाफ, सुरक्षा प्रदान करने के लिए और बेहतर प्रावधान प्रदान करने के लिए “करेंसी नोट्स और बैंक नोट्स के” शीर्षक के तहत इंडियन पीनल कोड में जोड़ा गया था। यह विवादित नहीं है; जैसा कि हाई कोर्ट के समक्ष कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर की धारा 491(1) के तहत आवेदन किया गया था, कि धाराओं का यह समूह अपने आप में एक कानून है। “मुद्रा, सिक्का और कानूनी निविदा” ऐसे मामले हैं, जिन्हें संविधान के 7वें शेड्यूल में यूनियन लिस्ट की एंट्री संख्या 36 में स्पष्ट रूप से शामिल किया गया है। उसी शेड्यूल में यूनियन लिस्ट की एंट्री संख्या 93 विशेष रूप से पार्लियामेंट को “यूनियन लिस्ट में किसी भी मामले के संबंध में कानूनों के खिलाफ अपराध” के संबंध में कानून बनाने की शक्ति प्रदान करती है। इन एंट्रीयों को एक साथ पढ़ें, तो यह संदेह से परे है कि करेंसी नोट और बैंक नोट, जिनसे धारा 489A से 489D के तहत अपराध संबंधित हैं, ऐसे मामले हैं जो विशेष रूप से यूनियन लेजिस्लेचर की लेजिस्लेटिव क्षमता के भीतर हैं। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि जिन अपराधों के लिए याचिकाकर्ता को दोषी ठहराया गया है, वे उस मामले से संबंधित अपराध हैं, जिस पर यूनियन की कार्यकारी (एक्जीक्यूटिव) शक्ति का विस्तार होता है, और याचिकाकर्ता की सजा को माफ करने के लिए सक्षम “उपयुक्त सरकार” केंद्र सरकार होगी, और स्टेट सरकार नहीं।” इस कोर्ट ने कहा कि इंडियन पीनल कोड, दंड कानूनों का एक संकलन (कंपाइलेशन) है, जो विभिन्न मामलों से संबंधित अपराधों के लिए प्रावधान करता है, संविधान के 7वें शेड्यूल की विभिन्न लिस्ट में विभिन्न एंट्रीज के लिए बेहतर है और कई अपराध जो उन मामलों से संबंधित हैं, वे पीनल कोड में शामिल हैं, जो विशेष रूप से यूनियन लिस्ट में दी हुई एंट्रीज के तहत कवर किए जाते हैं। चूंकि विचाराधीन अपराध यूनियन लिस्ट में विषय वस्तु से संबंधित थे, इसलिए इस कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि केंद्र सरकार अपीलकर्ता की सजा को माफ करने के लिए सक्षम सरकार थी। जीवी रामनैय्या के मामले में निर्णय, इस प्रकार स्पष्ट रूप से कहता है कि यह अपराध है, जिसके संबंध में सजा को कम करने की मांग की जाती है, जो यह निर्धारित करती है कि कौन सी सरकार उपयुक्त सरकार है।

“हमारे प्रश्न का उत्तर पैरा 52.4 में प्रस्तुत किया गया है। वह है:-

प्रश्न 52.4. क्या छूट की शक्ति के प्रयोग के लिए भारत के संविधान के 7वें शेड्यूल की लिस्ट III में एनलिस्टेड विषय-वस्तु पर यूनियन या स्टेट की प्रधानता है?

उत्तर: संविधान के 7वें शेड्यूल की लिस्ट III में मामलों के संबंध में, आमतौर पर अकेले स्टेट की कार्यकारी शक्ति का विस्तार होना चाहिए। इस सामान्य सिद्धांत के दो अपवाद हैं, जैसा कि संविधान के आर्टिकल 73(1) के प्रोविजो में कहा गया है। संविधान में या पार्लियामेंट द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में किसी भी स्पष्ट प्रावधान के अभाव में, यह स्टेट की कार्यकारी शक्ति है जो अकेले ही विस्तारित होनी चाहिए।

पार्लियामेंट की रेसिडूअरी शक्तियां

जैसा कि ऊपर वर्णित किया गया है, संविधान निर्माताओं ने मामलों के विभाजन को तीन भागों में विभाजित किया है। राष्ट्रीय महत्व के मामलों को यूनियन लिस्ट में रखा गया है, जो विशुद्ध रूप से स्टेट या स्थानीय महत्व के हैं, उन्हें स्टेट लिस्ट द्वारा निपटाया जाना चाहिए, और वे मामले जो स्टेट्स और यूनियन के लिए समान हित के हैं, उन्हें कंकर्रेंट लिस्ट में रखा गया है। इस तरह, निर्माताओं ने देश की विविधता (डाइवर्सिटी) को ध्यान में रखते हुए कानून में एकरूपता (यूनिफोर्मिटी) सुनिश्चित की गई थी। पार्लियामेंट और स्टेट लेजिस्लेचर दोनों के पास यूनियन और स्टेट लिस्ट की एंट्रीज पर कानून बनाने की विशेष शक्तियाँ हैं। हालाँकि, ऐसी स्थिति की घटना को भांपते (सेंस) हुए जिसमें उन मामलों पर कानून की आवश्यकता हो सकती है, जो तीनों लिस्टस में से किसी में मौजूद नहीं हैं, संविधान के निर्माता, संविधान के आर्टिकल 248 और यूनियन लिस्ट की एंट्री 97 में रेसिडुअरी प्रावधानों के साथ आए, जिसके अनुसार रेसिडुअरी शक्तियाँ पार्लियामेंट में निहित थीं।

आर्टिकल 248 लेजिस्लेचर की रेसिडुअरी शक्तियाँ

  1. पार्लियामेंट के पास, कंकर्रेंट लिस्ट या स्टेट लिस्ट में शामिल नहीं किए गए किसी भी मामले के संबंध में कानून बनाने की विशेष शक्ति है।
  2. ऐसी शक्ति में, उन लिस्ट्स में से किसी में भी उल्लेख नहीं किए गए कर को लागू करने वाला कोई कानून बनाने की शक्ति शामिल होगी।

यूनियन लिस्ट की एंट्री 97

कोई अन्य मामला जो लिस्ट II या लिस्ट III में एनलिस्टेड नहीं है, जिसमें, वो कर शामिल है जिसका उल्लेख उन लिस्ट्स में से किसी में भी नहीं किया गया है।

इसलिए, भारत के संविधान के आर्टिकल 248 और यूनियन लिस्ट की एंट्री 97 के तहत यूनियन को कानून बनाने की रेसिडुअरी शक्तियां प्रदान की गई है। यदि तीन लिस्ट्स में से किसी में भी कोई एंट्री, कानून के किसी पहलू को शामिल नहीं करती है, तो इसे तीनों लिस्ट्स में से किसी में भी एनलिस्टेड नहीं किया गया मामला माना जाएगा और इसके परिणामस्वरूप यह केवल लिस्ट 1 की एंट्री 97 और आर्टिकल 248 के तहत पार्लियामेंट से संबंधित होगा। वास्तव में आर्टिकल 248 के सटीक दायरे और सीमा को एंट्री 97, लिस्ट I के साथ स्वीकार किया जाता है।

लेकिन रेसिडुअरी शक्तियों के दायरे में प्रतिबंध भी होते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि यूनियन, स्टेट और कंकर्रेंट सहित, यह तीनों लिस्ट्स लगभग हर संभव विषय को कवर करती है। इसलिए यह निर्णय करने का दायित्व कोर्ट पर है कि कोई विषय वस्तु रेसिडुअरी शक्ति के अंतर्गत आती है या नहीं। रेसिडुअरी शक्ति को पेश करने की तर्कसंगतता (रेशनलिटी) पार्लियामेंट को किसी भी विषय पर पंजीकरण करने में सक्षम बनाना है चाहे वह विषय हो जो सदन की जांच से बच गए हों, और जो वर्तमान में बिल्कुल भी पहचानने योग्य नहीं हैं। इसलिए, संविधान निर्माताओं का स्पष्ट रूप से इरादा था कि रेसिडुअरी शक्तियों के तहत सहारा अंतिम उपाय होगा।

पार्लियामेंट की रेसिडुअरी शक्ति पर मुख्य मामले

  • इस मुद्दे पर जोर देते हुए कि क्या आर्टिकल 248 के साथ लिस्ट I की एंट्री 97 से प्राप्त रेसिडुअरी शक्ति निश्चित रूप से संविधान में अमेंडमेंट करने की शक्ति ले सकती है, सुप्रीम कोर्ट ने आई.सी. गोलकनाथ और अन्य बनाम स्टेट ऑफ पंजाब और अन्य (27 फरवरी 1967) के मामले में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि;

“(ii) जबकि संविधान के अमेंडमेंट के लिए समर्पित एक पूरा हिस्सा है, लेकिन संविधान के आर्टिकल 248 में या लिस्ट 1 की किसी भी एंट्री में अमेंडमेंट का कोई विशेष उल्लेख नहीं है। कुछ परिस्थितियों में आर्टिकल 248 के साथ लिस्ट I की एंट्री 97 की तुलना में  ‘आर्टिकल 368’ के तहत प्रदान की गई  अमेंडमेंट की अशक्ति को पढ़ना अधिक उपयुक्त होगा। (826H- 826A) संविधान निर्माताओं का मूल उद्देश्य स्टेट्स को रेसिडुअरी शक्ति देना था। तथ्य केवल यह है कि संविधान सभा द्वारा संविधान के पास होने के दौरान रेसिडुअरी शक्ति यूनियन में निहित थी, इसलिए, इसका मतलब यह नहीं होगा कि इसमें संविधान में अमेंडमेंट करने की शक्ति शामिल है। इसके अलावा, संविधान के मौलिक कानून को बदलने के लिए रेसिडुअरी शक्ति का उपयोग नहीं किया जा सकता है, क्योंकि सभी कानून आर्टिकल 245 के तहत हैं, जो “इस संविधान के प्रावधानों के अधीन है”। [827B, H] इसके अलावा आर्टिकल 368 में प्रदान की गई प्रक्रिया की समानता से सामान्य कानून के लिए प्रदान की गई प्रक्रिया, ‘संवैधानिक कानून और सामान्य कानून के बीच’ बुनियादी अंतर को समाप्त नहीं कर सकती है। यह आर्टिकल 368 के तहत एक गुणवत्ता (क्वालिटी) और कार्य करने की प्रकृति है और यह अन्य प्रक्रिया के समान नहीं है, जिस पर जोर दिया जाना चाहिए। आर्टिकल 368 की प्रक्रिया का पालन करने के बाद साधारण कानून नहीं बल्कि मौलिक कानून सामने आता है। [829 D; 830 C-D]।”

इससे पहले कि रेसिडुअरी शक्ति का सहारा लेकर पार्लियामेंट के लिए अनन्य लेजिस्लेटिव क्षमता का दावा किया जा सके, स्टेट लेजिस्लेचर की लेजिस्लेटिव अक्षमता (इनकंपिटेंस) स्पष्ट रूप से स्थापित होनी चाहिए। एंट्री 97 अपने आप में विशिष्ट है कि किसी मामले को उस एंट्री के तहत तभी लाया जा सकता है जब वह लिस्ट II या लिस्ट III में एनलिस्टेड न हो और कर के मामले में यदि उन लिस्ट्स में से किसी में इसका उल्लेख न किया गया हो। हमारे जैसे फेडरल संविधान में जहां लेजिस्लेटिव विषयों का विभाजन है, लेकिन रेसिडुअरी शक्ति पार्लियामेंट में निहित है, ऐसी रेसिडुअरी शक्ति की इतनी व्यापक (वाइड) व्याख्या नहीं की जा सकती है कि स्टेट लेजिस्लेचर की शक्ति को कम कर दिया जाए। यह  फेडरल सिद्धांत को प्रभावित करता है और खतरे में डाल सकता है। संविधान की फेडरल प्रकृति एक मांग करती है कि व्याख्या जो पार्लियामेंट द्वारा लेजिस्लेटिव शक्ति के प्रयोग की अनुमति देती है, उसमें निहित रेसिडुअरी शक्तियों के अनुसार स्टेट के कानून पर खाई (ट्रेंच) जाती है और जो स्टेट की स्वायत्तता (ऑटोनोमी) को नष्ट या कम कर देगी।”

अब मुख्य बात पर आते हैं कि क्या पूरा क्षेत्र एंट्री 54 द्वारा कवर किया गया है या नही और सेवा कर की वसूली अक्षम है, एंट्री 97 में “अन्य” शब्द को छोड़कर एंट्री 97, लिस्ट I और आर्टिकल 248 की भाषा पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब कोई आर्टिकल 246(1) के साथ लिस्ट I की एंट्री 97 को पढ़ता है तो यह लिस्ट I में एंट्री 1 से 96 में निर्दिष्ट मामलों के संबंध में कानून बनाने के लिए विशेष शक्ति प्रदान करता है और दूसरा, यह एंट्री 97 द्वारा कानून बनाने की रेसिडुअरी शक्ति प्रदान करता है। आर्टिकल 248, पार्लियामेंट की किसी भी व्यक्त शक्तियों के लिए प्रदान नहीं करता है बल्कि केवल इसकी रेसिडुअरी शक्ति के लिए प्रदान करता है। आर्टिकल 248, आर्टिकल 246(1) द्वारा प्रदान की गई  शक्ति में कुछ भी नहीं जोड़ता है, जिसे एंट्री 97, लिस्ट I के साथ पढ़ा जाता है। लेजिस्लेचर के विषयों की विस्तृत गणना (एन्यूमेरेशन) के संदर्भ में रेसिडुअरी शक्ति प्रदान करने का क्या अर्थ है? एंट्री 97, लिस्ट I, जो पार्लियामेंट को रेसिडुअरी शक्तियां प्रदान करती है, “कोई भी अन्य मामला जो लिस्ट II और लिस्ट III में एनलिस्टेड नहीं है, जिसका उन लिस्ट्स में से किसी में भी उल्लेख नहीं किया गया है” प्रदान करता है। “अन्य” शब्द महत्वपूर्ण है। इसका अर्थ है “एंट्रीज 1-96 में उल्लिखित विषय के अलावा कानून का कोई भी विषय”। अंत में, हमें कर के विषय और माप के बीच स्पष्ट अंतर को ध्यान में रखना चाहिए।”

आर्टिकल 248 में “कंकर्रेंट लिस्ट या स्टेट लिस्ट में शामिल नहीं है” का अर्थ आर्टिकल 246 के क्लॉज (1) के संदर्भ में होना चाहिए, जो लिस्ट I में मामलों के संबंध में पार्लियामेंट को विशेष शक्ति देता है। इसके अलावा कोई भी मामला जो तीनों लिस्ट्स में से किसी एक में एनलिस्टेड हैं। जाहिर है, आर्टिकल 248 में पार्लियामेंट को दी गई रेसिडुअरी शक्ति में वह शक्ति शामिल नहीं हो सकती है जो विशेष रूप से आर्टिकल 246 के क्लॉज (1) के तहत पहले से प्रदत्त (कॉन्फर) लिस्ट I में मौजूद मामलों पर पार्लियामेंट को दी जाती है, ताकि आर्टिकल 248 में “किसी भी मामले” के शब्दों को अलग करने का प्रयास किया जा सके और लिस्ट I की एंट्री 97 में “कोई अन्य मामला” बिना किसी अंतर के एक भेद है। एंट्री 97 की सामग्री के संदर्भ में दो प्रावधानों में भाषा में अंतर होना चाहिए था क्योंकि वह एंट्री लिस्ट I में पहले से वर्णित और अन्य लिस्ट्स में एनलिस्टेड मामलों के अलावा अन्य मामलों के बारे में बोलती है। इस तथ्य के बावजूद कि रेसिडुअरी शक्ति आर्टिकल 248 के तहत यूनियन लेजिस्लेचर में निहित है और इसका परिणाम लिस्ट I की एंट्री 97 में अनुवादित किया गया है, यह कहने का कोई लाभ नहीं हो सकता है कि विचार उन मामलों पर ऐसी रेसिडुअरी शक्ति प्रदान करने का था जो कि तैयार करते समय तीन लिस्ट्स के बारे में सोचा या सोचा नहीं जा सकता था। यह इस तथ्य से स्पष्ट है, जैसा कि काउंसिल द्वारा बताया गया है, कि लिस्ट्स में 209 मामले शामिल हैं जो सावधानीपूर्वक और विस्तृत शब्दों में समावेशी (इंक्लूसिव) और भाषा को छोड़कर कुछ के मामले में, जिन्होंने संविधान बनाया है, का उपयोग करने के लिए किया गया है। गेयर, सी.जे. के शब्द, इन रे सी.पी. बरार एक्ट संख्या XIV, 1938  [1939] एफ.सी.आर. 18, 38 पर “अपनी लेजिस्लेटिव लिस्ट्स की लंबाई और विस्तार में फेडरल संविधानों में अद्वितीय (यूनीक)”, लिस्ट्स में इस तरह के विस्तृत शब्दों वाले मामलों के लेआउट में और आर्टिकल 246(1) के संदर्भ में, आर्टिकल 248 और एंट्री 97, लिस्ट I में निहित रेसिडुअरी शक्ति को उन मामलों के संबंध में एक अर्थ शक्ति के रूप में माना जाना चाहिए, जो इन 3 लिस्ट्स में से किसी एक में भी शामिल नहीं हैं।  इसलिए, इस तरह की रेसिडुअरी शक्ति का आमतौर पर किसी आर्टिकल या 3 लिस्ट्स में से किसी एक में एंट्री के तहत पहले से ही निपटाए गए मामले के संबंध में दावा नहीं किया जा सकता है, जो की लिस्ट II या लिस्ट III में कुछ भी शामिल नहीं है।”

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