इसे Pruthvi Ramakanta Hegde द्वारा लिखा गया है। यह लेख “सामान्य ग्रहणाधिकार (लियन) और विशेष ग्रहणाधिकार के बीच अंतर” विषय पर है। इस लेख में लेखक ने सामान्य और विशेष ग्रहणाधिकार के बीच अंतर को प्रासंगिक उदाहरणों के साथ शामिल किया है। साथ ही, प्रत्येक प्रकार के ग्रहणाधिकार का अर्थ और इसके संबंध में न्यायिक दृष्टिकोण पर भी चर्चा की गई है। इस लेख का अनुवाद Ayushi Shukla के द्वारा किया गया है।
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परिचय
किसी भी वित्तीय लेनदेन में, पक्ष की हित को सुरक्षित रखना एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है जब कोई ऋण दिया जाता है और भुगतान न होने का जोखिम हो सकता है। ऐसे मामलों में, कानून के तहत कुछ उपाय उपलब्ध होते हैं। इन उपायों में से एक उपाय “ग्रहणाधिकार” की अवधारणा है।
ग्रहणाधिकार की इस अवधारणा से भुगतान न होने और कर्तव्यों के निर्वहन न होने के जोखिम को कम किया जा सकता है।
ग्रहणाधिकार की अवधारणा में, एक व्यक्ति या संस्था को किसी अन्य की संपत्ति पर कब्जा बनाए रखने का अधिकार होता है। यह अधिकार तब तक जारी रहता है जब तक कि ऋण या दायित्व पूरी तरह से पूर्ण न हो जाए। ग्रहणाधिकार की अवधारणा का प्रबंधन संपत्ति अंतरण (ट्रांसफर) अधिनियम, 1882 (जिसे आगे ‘टीपी अधिनियम’ कहा गया है) और भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 के प्रावधानों के अनुसार किया जाता है।
ग्रहणाधिकार को दो प्रकारों में विभाजित किया गया है, जिनमें सामान्य ग्रहणाधिकार और विशेष ग्रहणाधिकार शामिल हैं। ग्रहणाधिकार के दोनों प्रकार का उद्देश्य भुगतान और विशिष्ट दायित्वों के प्रदर्शन को सुरक्षित करना है। हालांकि, ये अपने क्षेत्र, अनुप्रयोग और जो अधिकार वे लेनदार को प्रदान करते हैं, उनमें भिन्न हैं।
सामान्य और विशेष ग्रहणाधिकार के बीच अंतर पर चर्चा करने से पहले, आइए ग्रहणाधिकार का अर्थ समझें।
ग्रहणाधिकार का अर्थ
भारतीय कानून के तहत ग्रहणाधिकार शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। हालांकि, हम सभी जानते हैं कि कई अधिनियमों ने ग्रहणाधिकार की अवधारणा पर चर्चा की है। ऐसा ही एक अधिनियम है भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 और वस्तुओं की बिक्री अधिनियम, 1930
सामान्य शब्दों में, हम कह सकते हैं कि ग्रहणाधिकार का अर्थ है उस व्यक्ति की संपत्ति पर कब्जा बनाए रखना जब तक उस व्यक्ति द्वारा लिया गया ऋण चुकाया न जाए।
दूसरे शब्दों में, ग्रहणाधिकार संपत्ति या संपत्तियों पर एक कानूनी दावा है जो किसी ऋण के लिए सुरक्षा के रूप में कार्य करता है। तदनुसार, जिसने पैसा उधार दिया है, या किसी कानूनी निर्णय के तहत (जैसे किसी अदालत द्वारा नियुक्त रिसीवर), को संपत्ति पर अधिकार होता है, जब तक कि ऋण चुकाया न जाए।
ग्रहणाधिकार का मुख्य उद्देश्य
यह सरल रूप से कहा जा सकता है कि ग्रहणाधिकार का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ऋण या दायित्व पूरा किया जाए।
उदाहरण के लिए, जब कोई व्यक्ति घर खरीदने के लिए बंधक (मॉर्गेज) लेता है, तो बैंक या ऋणदाता संपत्ति पर ग्रहणाधिकार रखते हैं। ऋणदाता के पास ऋण के लिए संपत्ति को सुरक्षा के रूप में रखने का कानूनी दावा होता है। यदि उधारकर्ता बंधक का भुगतान करने में विफल रहता है, तो ऋणदाता संपत्ति पर ग्रहणाधिकार लागू कर सकता है, संपत्ति को जब्त कर सकता है और उसे बेचकर ऋण की राशि वसूल सकता है।
कैम्ब्रिज डिक्शनरी के अनुसार, ग्रहणाधिकार का अर्थ है दूसरों की संपत्ति को तब तक रोके रखना जब तक वे अपना पूरा ऋण चुकता नहीं कर देते। सामान्यतः ग्रहणाधिकार को अनुबंध अधिनियम के अनुसार दो प्रकारों में विभाजित किया गया है। ये हैं सामान्य ग्रहणाधिकार और विशेष ग्रहणाधिकार। इन प्रकार के ग्रहणाधिकारों को क्रमशः भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 171 और धारा 170 के तहत मान्यता प्राप्त है।
अब हम आगे बढ़ते हैं और सामान्य और विशेष ग्रहणाधिकार के बीच मुख्य अंतर पर चर्चा करते हैं।
सामान्य ग्रहणाधिकार और विशेष ग्रहणाधिकार के बीच अंतर
अर्थ
सामान्य ग्रहणाधिकार
सामान्य ग्रहणाधिकार का अर्थ है कुछ पेशेवरों द्वारा दूसरों की संपत्ति को तब तक रोककर रखने का कानूनी अधिकार जब तक कि उनका ऋण या दायित्व पूरा न हो जाए। इसके अलावा, सामान्य ग्रहणाधिकार के तहत लेनदार किसी भी संपत्ति को तब तक रोके रख सकता है जब तक कि देनदार द्वारा बकाया ऋण का भुगतान न हो जाए। यह एक विशेष संपत्ति तक सीमित नहीं है।
उदाहरण के लिए, बैंकर अपने ग्राहकों की संपत्तियों पर इस अधिकार का उपयोग कर सकते हैं ताकि सभी बकाया शुल्क वसूले जा सकें। यह शुल्क किसी विशेष कार्य से संबंधित नहीं होता।
विशेष ग्रहणाधिकार
विशेष ग्रहणाधिकार एक कानूनी अधिकार है जो किसी व्यक्ति, आमतौर पर लेनदार, को किसी विशिष्ट संपत्ति पर कब्जा बनाए रखने की अनुमति देता है जब तक कि उस संपत्ति से संबंधित विशेष ऋण या दायित्व पूरा न हो जाए। यह ग्रहणाधिकार केवल उस विशेष संपत्ति पर लागू होता है जिसके लिए ऋण उत्पन्न हुआ है।
उदाहरण के लिए, यदि एक यांत्रिक विशेषज्ञ (मैकेनिक) एक कार की मरम्मत करता है, तो उसे उस कार पर विशेष ग्रहणाधिकार हो सकता है। इसका अर्थ है कि वह कार को तब तक रोक सकता है जब तक कि मरम्मत का बिल चुकाया न जाए। यह ग्रहणाधिकार केवल कार तक सीमित है और मालिक की अन्य संपत्तियों तक नहीं बढ़ता।
क्षेत्र
सामान्य ग्रहणाधिकार
सामान्य ग्रहणाधिकार का क्षेत्र व्यापक और विस्तृत होता है। यह देनदार की सभी संपत्तियों और संसाधनों को शामिल करता है, जिसमें न केवल वर्तमान संपत्तियां बल्कि भविष्य में प्राप्त होने वाली संपत्तियां भी शामिल हैं। लेनदार के पास देनदार की संपत्तियों को तब तक रखने का ग्रहणाधिकार होता है जब तक कि पूरा ऋण चुका न दिया जाए। इस प्रकार, यह ग्रहणाधिकार लेनदार को एक बड़ा स्तर का संरक्षण प्रदान करता है।
विशेष ग्रहणाधिकार
विशेष ग्रहणाधिकार का क्षेत्र सामान्य ग्रहणाधिकार की तुलना में अधिक सीमित होता है। यह केवल उस विशिष्ट संपत्ति या संसाधनों पर लागू होता है जो सीधे संबंधित ऋण या सेवा से जुड़ी होती हैं। लेनदार विशेष संपत्ति पर कब्जा तब तक बनाए रख सकता है जब तक कि विशेष सेवा का भुगतान पूरा न हो जाए। सामान्य ग्रहणाधिकार के विपरीत, विशेष ग्रहणाधिकार देनदार की सभी संपत्तियों को कवर नहीं करता। यह केवल उस विशेष वस्तु या संपत्ति तक सीमित होता है जो ऋण या सेवा से संबंधित होती है।
उदाहरण
सामान्य ग्रहणाधिकार
सामान्य ग्रहणाधिकार की अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए निम्नलिखित उदाहरण देखे जा सकते हैं:
- यदि किसी ग्राहक के पास ओवरड्राफ्ट है, तो बैंक ग्राहक की सभी संसाधनों और धन पर सामान्य ग्रहणाधिकार का उपयोग कर सकता है। इसका अर्थ है कि बैंक ग्राहक की संसाधनों को तब तक रोक सकता है जब तक कि ओवरड्राफ्ट पूरी तरह से चुकाया न जाए।
- जब कोई व्यक्ति अपने करों का भुगतान नहीं करता, तो सरकार करदाता की संपत्ति पर सामान्य ग्रहणाधिकार लगा सकती है। इसके बाद, सरकार इन संपत्तियों को जब्त कर सकती है और उन्हें बेचकर कर का ऋण वसूल सकती है।
- कुछ मामलों में, ऋणदाता किसी व्यवसाय की संसाधनों पर सामान्य ग्रहणाधिकार प्राप्त कर सकते हैं ताकि ऋण के लिए सुरक्षा प्रदान की जा सके। यह ऋणदाता को व्यवसाय के संसाधन को तब तक रखने की अनुमति देता है जब तक कि ऋण पूरी तरह से चुकाया न जाए।
विशेष ग्रहणाधिकार
यहां कुछ उदाहरण दिए गए हैं जो यह दर्शाते हैं कि विशेष ग्रहणाधिकार कैसे काम करता है:
- यदि एक यांत्रिक विशेषज्ञ एक वाहन की मरम्मत करता है और ग्राहक सेवा के लिए भुगतान करने में विफल रहता है, तो यांत्रिक विशेषज्ञ वाहन पर ग्रहणाधिकार रख सकता है। मैकेनिक वाहन को तब तक रोक सकता है जब तक कि ग्राहक विशेष मरम्मत कार्य के लिए भुगतान न कर दे।
- एक कारीगर, जैसे कि जौहरी या दर्जी, ग्राहक की वस्तु (जैसे गहने या कपड़े) को रोक सकता है यदि प्रदान की गई सेवाओं या श्रम के लिए भुगतान नहीं किया गया है। यह ग्रहणाधिकार केवल उस विशिष्ट वस्तु पर लागू होता है जिस पर कार्य किया गया था।
- एक परिवहनकर्ता या शिपिंग कंपनी उन माल पर ग्रहणाधिकार का उपयोग कर सकती है जिन्हें उन्होंने वितरित किया है, यदि ग्राहक शिपिंग शुल्क का भुगतान नहीं करता। यह ग्रहणाधिकार केवल उन विशेष माल तक सीमित होता है जिन्हें परिवहन किया गया था।
कानूनी मान्यता
सामान्य ग्रहणाधिकार
भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 171 सामान्य ग्रहणाधिकार के बारे में बात करती है। हालांकि, इस धारा में सामान्य ग्रहणाधिकार को परिभाषित नहीं किया गया है। इस धारा के अनुसार, कुछ पेशेवर जैसे बैंकर, फैक्टर, वेयरफिंगर, उच्च न्यायालय के वकील और पॉलिसी ब्रोकर को सामान्य ग्रहणाधिकार नामक विशेष कानूनी अधिकार दिया गया है। यदि कोई व्यक्ति किसी कारण से इन पेशेवरों को अपनी संपत्ति देता है, तो ऐसे मामलों में इन पेशेवरों को उन वस्तुओं को तब तक रखने का अधिकार होता है जब तक कि सभी ऋण पूरी तरह से चुकता न हो जाएं। यह ग्रहणाधिकार उस व्यक्ति द्वारा बकाया कुल राशि पर लागू होता है, न कि केवल उन वस्तुओं से संबंधित विशिष्ट भुगतान पर।
इस धारा से यह समझा जा सकता है कि सामान्य ग्रहणाधिकार का मतलब है किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति को तब तक रोके रखना जब तक कि ऋण या दावा चुकाया न जाए। सामान्य ग्रहणाधिकार कुछ लोगों को तब तक वस्तुओं को रोकने का ग्रहणाधिकार देता है जब तक कि उन्हें पूरा भुगतान नहीं कर दिया जाए। ये लोग संपत्तियों को तब भी रख सकते हैं, भले ही ऋण का उन संपत्तियों से कोई संबंध न हो।
उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति बैंक से ऋण लेता है और उसे अपनी कीमती वस्तुएं गिरवी रखनी पड़ती हैं। बैंक उन कीमती वस्तुओं को न केवल तब तक रख सकता है जब तक कि ऋण संतुष्ट न हो जाए, बल्कि अन्य बकाया ऋणों के लिए भी रख सकता है, जैसे शुल्क या अन्य ऋण।
इसके अलावा, एक वेयरफिंगर, जो बंदरगाह पर वस्तुओं को संग्रहीत करता है, को संग्रहीत वस्तुओं को तब तक रोकने का ग्रहणाधिकार है जब तक कि भंडारण और अन्य सेवाओं से संबंधित सभी बकाया राशि का भुगतान न हो जाए।
यह वस्तुओं को रोकने का ग्रहणाधिकार इन पेशेवरों के लिए एक पूर्ण ग्रहणाधिकार है, जब तक कि कोई समझौता स्पष्ट रूप से कुछ अलग न कहे।
एम. मल्लिका बनाम भारतीय स्टेट बैंक और अन्य (2006)
तथ्य
एम. मल्लिका बनाम भारतीय स्टेट बैंक और अन्य (2006) के मामले में, अपीलकर्ताओं ने ऋण लिया और भारतीय स्टेट बैंक के खिलाफ शिकायतें दर्ज कीं। उनका तर्क था कि बैंक ने उनके हक़ विलेख वापस करने में विफलता दिखाई, जबकि उन्होंने ऋण राशि चुका दी थी। हालांकि, बैंक ने दावा किया कि अपीलकर्ताओं के पास अन्य ऋणों के लिए गारंटर के रूप में अभी भी बकाया राशि है।
मुद्दा
इस मामले का मुख्य मुद्दा यह था कि क्या बैंक के पास अनुबंध अधिनियम की धारा 171 के तहत प्रदान किए गए सामान्य ग्रहणाधिकार के अनुसार हक़ विलेख रखने की शक्ति है।
निर्णय
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद निर्णय दिया कि बैंक को हक़ विलेख पर सामान्य ग्रहणाधिकार का उपयोग करने का अधिकार है। इसके अलावा, अदालत ने यह भी समझाया कि यद्यपि टीपी अधिनियम की धारा 60 एक बंधकदार को पूर्ण भुगतान के बाद दस्तावेजों को पुनः प्राप्त करने की अनुमति देती है, लेकिन भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 171 बैंक को किसी भी अप्राप्त ऋण के लिए दस्तावेजों को सुरक्षा के रूप में रखने की अनुमति देती है।
कृष्ण किशोर कर बनाम यूनाइटेड कमर्शियल बैंक और अन्य (1981)
तथ्य
कृष्ण किशोर कर बनाम यूनाइटेड कमर्शियल बैंक और अन्य (1981) के मामले में, वादी, कृष्ण किशोर कर, ने यूनाइटेड कमर्शियल बैंक के साथ 1,83,500 रुपये का मार्जिन मनी जमा किया था। यह जमा विभिन्न लेनदेन और ऋणों को सुरक्षित करने के लिए था। हालांकि, वादी ने बाद में उन ऋणों से संबंधित अन्य प्रतिवादी के साथ सभी बकाया राशि का निपटान कर लिया। निपटान के बावजूद, बैंक ने मार्जिन मनी को बनाए रखा और उस पर सामान्य ग्रहणाधिकार का दावा किया।
मुद्दे
- क्या बैंक सामान्य ग्रहणाधिकार के तहत वादी की मार्जिन मनी पर दावा कर सकता है, जबकि वादी ने अपनी देनदारी का निपटान कर दिया था?
- क्या वादी द्वारा जमा की गई मार्जिन मनी पर एक स्पष्ट अनुबंध होने के बावजूद सामान्य ग्रहणाधिकार लागू किया जा सकता है?
निर्णय
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि बैंक मार्जिन मनी पर सामान्य ग्रहणाधिकार का दावा नहीं कर सकता। यह देखा गया कि यद्यपि सामान्य ग्रहणाधिकार बैंकरों को ग्राहक की संपत्तियों को तब तक रखने का अधिकार देता है जब तक कि ऋणों का भुगतान न हो जाए, यह सभी मामलों में लागू नहीं होता। विशेष रूप से, जब एक स्पष्ट अनुबंध मौजूद हो जो जमा की गई धनराशि के उद्देश्य और दायरे को परिभाषित करता हो।
यह अनुबंध बैंक की सामान्य ग्रहणाधिकार को लागू करने की क्षमता को सीमित करता है। इस मामले में, मार्जिन मनी जमा एक स्पष्ट अनुबंध द्वारा शासित था जिसने इसके उद्देश्य को निर्दिष्ट किया और सामान्य ग्रहणाधिकार के आवेदन को प्रतिबंधित किया। इसलिए, क्योंकि वादी ने पहले ही मार्जिन मनी से संबंधित बकाया राशि का निपटान कर लिया था, बैंक का उस पर कोई वैध दावा नहीं था। अदालत ने आदेश दिया कि बैंक को वादी को मार्जिन मनी वापस करनी चाहिए।
विशिष्ट ग्रहणाधिकार
भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 170 “विशिष्ट ग्रहणाधिकार” शब्द को विशेष रूप से परिभाषित नहीं करती है। हालांकि, यह विशिष्ट ग्रहणाधिकार की अवधारणा को समझाती है। धारा 170 उस स्थिति की बात करती है जहां एक भंडारकर्ता ने वस्तुओं पर अपने श्रम या कौशल का उपयोग करके काम किया हो। ऐसी परिस्थितियों में, भंडारकर्ता को यह अधिकार होता है कि वह उन वस्तुओं को तब तक अपने पास रख सके जब तक कि उन वस्तुओं के संबंध में प्रदान की गई विशिष्ट सेवाओं के लिए भुगतान न हो जाए।
इस धारा से सामान्य रूप से यह समझा जा सकता है कि विशिष्ट ग्रहणाधिकार का अर्थ है कि किसी व्यक्ति को यह ग्रहणाधिकार होता है कि वह विशिष्ट वस्तुओं को तब तक अपने पास रख सके जब तक कि उन सेवाओं के लिए भुगतान न हो जाए जो प्रदान की गई थीं। इस प्रकार का ग्रहणाधिकार विशिष्ट वस्तुओं पर लागू होता है, लेकिन किसी सामान्य खाता संतुलन या अन्य किसी ऋण पर लागू नहीं होता।
उदाहरण के लिए, ‘A’ एक खुरदरे हीरे को कट और पॉलिश कराने के लिए जौहरी को देता है, और जौहरी वह काम करता है। जौहरी उस हीरे को तब तक रोक कर रख सकता है जब तक कि A सेवाओं के लिए भुगतान न कर दे। यहां जौहरी का ग्रहणाधिकार केवल दिए गए हीरे तक ही सीमित है, क्योंकि सेवाएं विशेष रूप से उसी हीरे के संबंध में प्रदान की गई थीं।
यदि A कपड़ा ‘B’ (दर्जी) को एक कोट बनाने के लिए देता है, लेकिन B तीन महीने की उधारी देने का वादा करता है, तो B कोट को तब तक नहीं रोक सकता जब तक भुगतान न हो जाए। ऐसा इसलिए है क्योंकि क्रेडिट का एक समझौता था, और दर्जी को कोट रखने का कोई अधिकार नहीं है। इसे इस तरह समझा जा सकता है कि वस्तुओं को केवल तभी रखा जा सकता है जब पक्षों के बीच कोई स्पष्ट समझौता न हो।
प्रवर्तन
सामान्य ग्रहणाधिकार
सामान्य ग्रहणाधिकार से लेनदार को यह अधिकार मिलता है कि वह अपनी कब्जे में मौजूद किसी भी संपत्ति को तब तक रोके रखे जब तक कि ऋणी द्वारा सभी ऋण चुकता न हो जाएं। यह मायने नहीं रखता कि संपत्ति उस विशिष्ट ऋण से संबंधित है या नहीं। सामान्य ग्रहणाधिकार में, लेनदार कई प्रकार की संपत्तियों का कब्जा बनाए रख सकता है। इस प्रकार के ग्रहणाधिकार में संपत्ति केवल विशिष्ट ऋण से संबंधित नहीं होती। यह ग्रहणाधिकार लेनदार के कब्जे में मौजूद सभी संपत्तियों पर लागू होता है जब तक कि ऋणी की सभी सामान्य देनदारी पूरी तरह से चुकता न हो जाए।
उदाहरण के लिए, यदि एक ग्राहक बैंक का कोई पैसा बकाया रखता है, तो बैंकर ग्राहक की ओर से रखी गई सभी प्रतिभूतियों (सिक्योरिटीज) या धन पर सामान्य ग्रहणाधिकार का उपयोग कर सकता है।
विशिष्ट ग्रहणाधिकार
विशिष्ट ग्रहणाधिकार केवल उस विशिष्ट संपत्ति पर लागू होता है जो सीधे तौर पर ऋण या दायित्व से संबंधित होती है। लेनदार उस विशिष्ट संपत्ति का कब्जा तब तक रख सकता है जब तक संबंधित ऋण चुकाया न जाए। यदि ऋणी ऋण राशि चुकाने से इनकार करता है, तो ग्रहणाधिकार धारक संपत्ति को बेचकर ऋण वसूल सकता है। लेकिन ऐसा आमतौर पर कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करने या अदालत की मंजूरी प्राप्त करने के बाद ही किया जा सकता है, जो क्षेत्राधिकार पर निर्भर करता है। ग्रहणाधिकार धारक अन्य संपत्तियों पर दावा नहीं कर सकता जो असंबंधित ऋण से जुड़ी हों।
उदाहरण के लिए, यदि एक उधारकर्ता ऋण को सुरक्षित करने के लिए सोना गिरवी रखता है, तो ऋणदाता ऋण चुकता होने तक सोने का कब्जा बनाए रख सकता है।
फायदे
सामान्य ग्रहणाधिकार
- सामान्य ग्रहणाधिकार के साथ लेनदार को अधिक सुरक्षा मिलती है क्योंकि वे किसी भी संपत्ति को जब्त कर सकते हैं, न कि केवल विशिष्ट वस्तुओं को।
- लेनदार को यह साबित करने की आवश्यकता नहीं होती कि संपत्ति ऋण से सीधे तौर पर जुड़ी है। यह इसे विशिष्ट ग्रहणाधिकार की तुलना में लागू करने में सरल बनाता है।
- जिन मामलों में ऋणी की संपत्ति पर सामान्य और विशिष्ट ग्रहणाधिकार दोनों हैं, वहां सामान्य ग्रहणाधिकार आमतौर पर प्राथमिकता लेता है और पहले निपटारा किया जाता है।
- सामान्य ग्रहणाधिकार विशेष ग्रहणाधिकारसे कम सामान्य होते हैं और उनके बारे में नियम स्थान के आधार पर बदल सकते हैं।
विशिष्ट ग्रहणाधिकार
- लेनदार को स्पष्ट रूप से पता होता है कि वे किस संपत्ति को ऋण निपटाने के लिए ले सकते हैं, क्योंकि यह केवल एक विशिष्ट संपत्ति से जुड़ा होता है।
- चूंकि लेनदार को ऋणी की सभी संपत्तियों से नहीं गुजरना पड़ता, इसे लागू करना सामान्य ग्रहणाधिकार की तुलना में तेज़ होता है।
- यह अधिक न्यायपूर्ण माना जाता है क्योंकि लेनदार केवल उस संपत्ति को ले सकता है जो सीधे ऋण से संबंधित हो। इससे अन्य संपत्तियों की रक्षा होती है।
- विशिष्ट ग्रहणाधिकार के साथ, ऋणी की अन्य संपत्तियां जो ऋण से संबंधित नहीं हैं, सुरक्षित रहती हैं।
- यदि कर्जदार की संपत्ति पर कई लिंस हैं, तो सामान्य लिंस से पहले सामान्यत: विशेष लिंस का निपटान किया जाता है।
नुकसान
सामान्य ग्रहणाधिकार
- लेनदार के लिए विशिष्ट संपत्तियों का पता लगाना और जब्त करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि यह ग्रहणाधिकार ऋणी की सभी संपत्तियों पर लागू होता है।
- सामान्य ग्रहणाधिकार के तहत जब्त की जा सकने वाली संपत्तियों की विस्तृत श्रृंखला ऋणी को बहुत कम संसाधनों के साथ छोड़ सकती है, जिससे उनके लिए बुनियादी जीवन व्यय को पूरा करना मुश्किल हो जाता है।
- लेनदारों को सामान्य ग्रहणाधिकार को लागू करने में अधिक समय और खर्च का सामना करना पड़ सकता है। यह विशेष रूप से समय लेने वाला हो सकता है, यदि संपत्तियों की पहचान और कब्जा करने के लिए कानूनी सहायता की आवश्यकता हो।
विशिष्ट ग्रहणाधिकार
- ग्रहणाधिकार केवल उसी विशिष्ट संपत्ति या संसाधन को शामिल करता है जिस पर यह संलग्न होता है। इसलिए यह अन्य कर्ज़ों या संपत्तियों की रक्षा नहीं करता।
- यदि संपत्ति खो जाती है या क्षतिग्रस्त हो जाती है, तो लेनदार को वह पूरी राशि नहीं मिल सकती जो वह वसूल करना चाहता था।
- सम्पत्ति का मूल्य समय के साथ घट सकता है, जिससे लेनदार के लिए पूरे कर्ज़ की राशि वसूल करना कठिन हो सकता है।
- यदि ऋणी पुनर्भुगतान करने में विफल रहता है, तो लेनदार को पूरी राशि वसूलने में समस्या हो सकती है।
- संपत्ति को जब्त करने के लिए कानूनी कार्रवाई में लेनदार के लिए बहुत समय और पैसे की आवश्यकता होती है।
- जब संपत्ति बेची जाती है, तो विशिष्ट लियन धारक को पहले भुगतान नहीं मिल सकता यदि अन्य लियन को प्राथमिकता मिलती है।
न्यायिक घोषणाएँ
सामान्य ग्रहणाधिकार
बैंक ऑफ बिहार बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (1971)
तथ्य
बैंक ऑफ बिहार बनाम बिहार राज्य और अन्य (1971) मामले में, बैंक अपीलकर्ता था जिसने जगदीशपुर जमींदारी कंपनी लिमिटेड (प्रतिवादी संख्या 2) को कैश क्रेडिट प्रणाली के तहत अग्रिम प्रदान किया। सुरक्षा के रूप में, कंपनी ने चीनी के बोरे बैंक को गिरवी रखे। ये चीनी के बोरे गोदामों में संग्रहीत थे, और इन गोदामों की चाबियां बैंक के पास थीं।
1949 में, बिहार राज्य ने गोदाम से 1,818 चीनी के बोरे जब्त कर लिए। यह राशनिंग ग्रहणाधिकारी और जिला मजिस्ट्रेट पटना द्वारा जारी आदेश के अनुसार किया गया। बैंक, जो एक गिरवी रखने वाला था, ने चीनी को प्रतिवादी संख्या 2 के ऋण के बदले सुरक्षा के रूप में रखा।
बाद में चीनी बेची गई, और बिक्री की आय सरकारी कोष में जमा कर दी गई। गन्ना आयुक्त ने बिहार और उड़ीसा सार्वजनिक मांग वसूली अधिनियम, 1914 के तहत भिटा चीनी कारखाने द्वारा बकाया चीनी उपकर के लिए इस राशि को जब्त कर लिया। इस कारखाने का प्रतिवादी संख्या 2 के साथ एक व्यावसायिक समझौता था।
बैंक ने बिहार राज्य और जगदीशपुर जमींदारी कंपनी लिमिटेड के खिलाफ या तो चीनी वापस करने या जब्त की गई चीनी के मूल्य के लिए मुआवजा देने के उद्देश्य से मुकदमा दायर किया।
मुद्दे
मुख्य मुद्दा यह था कि क्या बैंक, एक गिरवी रखने वाले के रूप में, जब्त की गई चीनी पर सामान्य ग्रहणाधिकार का प्रयोग कर सकता है या नहीं?
निर्णय
प्रारंभ में विचारण न्यायालय ने बैंक के पक्ष में फैसला सुनाया। उसने कहा कि चीनी को जब्त करते समय सरकार ने बैंक के गिरवी रखने के ग्रहणाधिकार को समाप्त नहीं किया। अदालत ने आगे बिहार राज्य को बैंक को 93,910 रुपये ब्याज सहित भुगतान करने का आदेश दिया।
हालांकि, जब मामला अपील में गया, तो पटना उच्च न्यायालय ने विचारण न्यायालय के फैसले से असहमति व्यक्त की। उसने निर्णय दिया कि बैंक को चीनी या उसकी बिक्री से प्राप्त धन का दावा करने का कोई अधिकार नहीं था। ऐसा इसलिए था क्योंकि सरकार द्वारा संपत्ति की जब्ती वैध थी। इसी तरह, जब्त की गई संपत्तियों की बिक्री से प्राप्त धन का उपयोग चीनी उपकर से संबंधित बकाया ऋणों को चुकाने के लिए किया गया।
हालांकि, जब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में अपील पर गया, तो उसने पटना उच्च न्यायालय के फैसले से असहमति जताई। सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय बैंक के पक्ष में था। उसने कहा कि बैंक को चीनी को ऋण राशि की सुरक्षा के रूप में रखने का ग्रहणाधिकार था। सरकार द्वारा जब्ती ने बैंक के चीनी पर ग्रहणाधिकार को समाप्त नहीं किया। इसलिए, सरकार को जब्त की गई चीनी के मूल्य के लिए बैंक को मुआवजा देना पड़ा।
सिटी यूनियन बैंक लिमिटेड बनाम सी. थंगाराजन (2003)
तथ्य:
सिटी यूनियन बैंक लिमिटेड बनाम सी. थंगाराजन (2003) मामले में, सिटी यूनियन बैंक ने 1986 में कुमारास्वामी, चेल्लाप्पा और थंगाराजन से 2,568.15 रुपये की वसूली के लिए मुकदमा दायर किया। यह 1983 में लिए गए 4,000 रुपये के ऋण के लिए बनाए गए एक वचन पत्र पर आधारित था। थंगाराजन ने ऋण लेने से इनकार कर दिया और कहा कि उनका बैंक के साथ ऋण के संबंध में कोई व्यवहार नहीं है।
थंगाराजन, जो एक सम्मानित तमिल पंडित थे, ने बैंक के खिलाफ मुकदमा दायर कर 11,053 रुपये की वसूली की मांग की, जिसमें एक सावधि जमा (एफ.डी.) पर ब्याज और 10,000 रुपये की प्रतिष्ठा क्षति के लिए हर्जाना शामिल था। उन्होंने 1985 में 10,000 रुपये जमा किए थे, लेकिन जब उन्होंने विजया बैंक के माध्यम से राशि निकालने का प्रयास किया, तो सिटी यूनियन बैंक ने इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और एफ.डी. पर थंगाराजन की कथित ऋण देनदारी के कारण ग्रहणाधिकार का दावा किया।
मुद्दे
मुख्य कारण निम्नलिखित थे :
- क्या थंगाराजन अन्य प्रतिवादियों के साथ ऋण के लिए उत्तरदायी थे?
- क्या बैंक थंगाराजन के एफ.डी. पर कथित ऋण की वसूली के लिए सामान्य ग्रहणाधिकार का प्रयोग कर सकता था?
- क्या थंगाराजन को प्रतिष्ठा क्षति के लिए हर्जाना मिलने का ग्रहणाधिकार था?
निर्णय
विचारण न्यायालय ने पाया कि थंगाराजन ने वचन पत्र पर हस्ताक्षर किए थे, जिससे वे ऋण के लिए उत्तरदायी थे। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि ऋण की वसूली के लिए एक अलग मुकदमा दायर करके बैंक ने एफ.डी. पर अपने ग्रहणाधिकार को त्याग दिया था। अदालत ने थंगाराजन को उनकी एफ.डी. के लिए 13,055 रुपये और प्रतिष्ठा क्षति के लिए 2,000 रुपये का हर्जाना दिया।
दोनों पक्षों ने अपील की, लेकिन अपीलीय अदालत ने विचारण न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा और कहा कि बैंक स्पष्ट अनुबंध या थंगाराजन की अनुमति के बिना सामान्य ग्रहणाधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता था।
एम. शांति बनाम बैंक ऑफ बड़ौदा (2017)
तथ्य
एम. शांति बनाम बैंक ऑफ बड़ौदा (2017) के मामले में, याचिकाकर्ता ने 2013 में बैंक ऑफ बड़ौदा से ₹47 लाख का ऋण लिया। याचिकाकर्ता ने इस ऋण राशि के लिए संपत्ति के दस्तावेज़ों को गारंटी के रूप में बैंक को सौंपा। 2015 तक वह नियमित रूप से किश्तें जमा कर रही थीं, लेकिन बाद में उन्हें वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ा। उन्होंने ऋण राशि चुकाने और अपनी संपत्ति वापस लेने की इच्छा व्यक्त की। हालांकि, बैंक ने संपत्ति के दस्तावेज़ लौटाने से इनकार कर दिया और दावा किया कि याचिकाकर्ता सीएमएस शैक्षणिक न्यास (ट्रस्ट) से संबंधित एक अन्य ऋण राशि के लिए भी गारंटर हैं। इस न्यास पर एक बड़ा बकाया था।
मुद्दा
मुद्दा यह था कि क्या बैंक याचिकाकर्ता के ऋण चुकाने के बावजूद उनके संपत्ति दस्तावेज़ों को एक अन्य ऋण के गारंटी के लिए कानूनी रूप से रोक सकता है। साथ ही, क्या बैंक “सामान्य ग्रहणाधिकार” का उपयोग करके दस्तावेज़ों को रोक सकता है?
निर्णय
ओडिशा उच्च न्यायालय ने भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 171 के अनुसार यह देखा कि बैंकरों को किसी भी ऐसी वस्तु को रखने का अधिकार है जो उन्हें किसी खाते के सामान्य संतुलन के लिए गारंटी के रूप में दी गई हो। यह अधिकार तभी लागू होता है जब कोई विशेष अनुबंध इसे समाप्त न करता हो।
न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि बैंक केवल उन संपत्तियों पर “ग्रहणाधिकार” का अधिकार लागू कर सकता है जो उसके ग्राहक द्वारा उसे दी गई हों। हालांकि, बैंक को उन वस्तुओं या संपत्तियों को रखने का अधिकार नहीं है जो किसी अन्य व्यक्ति की हैं, भले ही ग्राहक उस लेनदेन में शामिल हो।
“ग्रहणाधिकार” का अधिकार केवल तभी लागू हो सकता है जब बकाया राशि ग्राहक के अपने खाते से संबंधित हो, न कि अन्य पक्षों के खातों से, भले ही ग्राहक गारंटर हो। साझेदारी से जुड़े मामलों में, बैंक किसी एक साझेदार के निजी खाते पर साझेदारी के बकायों के लिए “ग्रहणाधिकार” लागू नहीं कर सकता।
अदालत ने बैंक को याचिकाकर्ता को उनकी संपत्ति दस्तावेज़ (यहां, स्वर्ण आभूषण) लौटाने का आदेश दिया और कहा कि बैंक अनुचित व्यवहार कर रहा था। भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 171 या बैंक के नियमों का सहारा लेकर बैंक इस मामले में दस्तावेज़ों को रोक नहीं सकता। अदालत ने बैंक द्वारा भेजे गए नोटिस को रद्द कर दिया और स्वर्ण आभूषण तुरंत लौटाने का आदेश दिया। दोनों पक्षों को अपने-अपने कानूनी खर्च स्वयं वहन करने का निर्देश दिया गया।
विशिष्ट अधिकार
विजय कुमार बनाम जालंधर बॉडी बिल्डर्स एंड अदर्स
तथ्य
विजय कुमार बनाम जालंधर बॉडी बिल्डर्स एंड अदर्स (1981) के मामले में, याचिकाकर्ता विजय कुमार ने एक बैंक के साथ व्यवसायिक संबंध स्थापित किए, जिसमें उन्होंने सावधि जमा (फिक्स्ड डिपॉजिट) रसीदों (एफ डी आर) के माध्यम से गारंटी प्रदान की। ये एफ डी आर बैंक गारंटी के लिए विशेष रूप से सुरक्षा के रूप में बैंक को सौंपे गए थे।
विवाद तब उत्पन्न हुआ जब बैंक ने इन एफ.डी.आर. पर “सामान्य ग्रहणाधिकार” लागू करने का प्रयास किया, जबकि मूल गारंटी का निपटान पहले ही हो चुका था। बैंक ने यह दावा किया कि एफ.डी.आर. का उपयोग एक असंबंधित ओवरड्राफ्ट खाते की शेष राशि को निपटाने के लिए किया जाएगा।
मुद्दे
क्या बैंक को उस फिक्स्ड डिपॉजिट रसीदों (एफ डी आर) पर “सामान्य ग्रहणाधिकार” का दावा करने का अधिकार है, जो विशेष रूप से एक विशेष उद्देश्य के लिए सौंपे गए थे?
निर्णय
अदालत ने कहा कि जबकि बैंकों को भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 171 के तहत सामान्य ग्रहणाधिकार प्राप्त होता है, यह अधिकार पक्षों के बीच एक विशिष्ट अनुबंध द्वारा निरस्त किया जा सकता है।
इस मामले में, एफ डी आर को एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए गिरवी रखा गया था, और वह उद्देश्य पहले ही पूरा हो चुका था। इसलिए, बैंक केवल एफ.डी.आर पर “विशिष्ट ग्रहणाधिकार” का दावा कर सकता था और अन्य असंबंधित देनों के लिए “सामान्य अधिकार” लागू नहीं कर सकता था।
अदालत ने निर्णय दिया कि ओवरड्राफ्ट खाते का निपटान करने के लिए एफ डी आर का उपयोग करने का बैंक का दावा अवैध था।
सामान्य ग्रहणाधिकार और विशेष ग्रहणाधिकार के बीच अंतर का सारांश
मापदंड | सामान्य ग्रहणाधिकार | विशेष ग्रहणाधिकार |
परिभाषा | इस ग्रहणाधिकार के तहत, यह लेनदार को किसी अन्य व्यक्ति के स्वामित्व वाले सामान को तब तक रखने का अधिकार देता है जब तक वह बकाया राशि का भुगतान न कर दे।
उदाहरण के लिए, यदि किसी ग्राहक के ऋण बकाया हैं, तो बैंक इस ग्रहणाधिकार का उपयोग विभिन्न दस्तावेज़ों पर कर सकता है। |
इस प्रकार के ग्रहणाधिकार के तहत, व्यक्ति विशिष्ट सामान को तब तक रख सकता है जब तक उन सामानों का भुगतान नहीं मिल जाता।
उदाहरण के लिए, एक दर्जी ग्राहक के लिए एक अनुकूलित वाद बनाता है। दर्जी को सूट को तब तक रखने का ग्रहणाधिकार है जब तक ग्राहक उसका भुगतान नहीं करता। |
परिधि (स्कोप) | यह सभी प्रकार के सामानों पर लागू होता है जिनका भुगतान नहीं किया गया है। यह मायने नहीं रखता कि ऋण की राशि क्या है। एक बैंक विभिन्न प्रकार के ऋणों के तहत इस ग्रहणाधिकार का उपयोग कर सकता है। | इस प्रकार का ग्रहणाधिकार केवल कुछ विशेष वस्तुओं पर लागू होता है। यह ग्रहणाधिकार उन विशेष वस्तुओं तक सीमित होता है। यह ग्रहणाधिकार विशेष वस्तुओं तक सीमित होता है क्योंकि यह इस सिद्धांत पर आधारित है कि ग्रहणाधिकार धारक के पास उन वस्तुओं के भुगतान को सुरक्षित करने के लिए विशेष वस्तुओं पर कब्जा बनाए रखने का कानूनी ग्रहणाधिकार है। |
स्वचालित की तुलना में समझौता | यह ग्रहणाधिकार स्वचालित रूप से नहीं दिया जाता है; यह सामान्यतः पक्षों के बीच एक लिखित समझौते की आवश्यकता होती है। | यह ग्रहणाधिकार भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 के अनुसार स्वचालित रूप से आता है। इस प्रकार के ग्रहणाधिकार में यह ग्रहणाधिकार बिना किसी विशेष समझौते के स्वचालित रूप से प्राप्त होता है। |
बेचने का ग्रहणाधिकार | सामान्य ग्रहणाधिकार का धारक यह ग्रहणाधिकार नहीं रखता कि वह वस्तुओं को बेचकर अवैतनिक (अनपेड) कर्ज की वसूली करे। वह केवल वस्तुओं को कब्जे में रख सकता है जब तक कर्ज की राशि का भुगतान नहीं हो जाता। | विशेष ग्रहणाधिकार में, धारक सामान्यतः वस्तुओं को नहीं बेच सकता। लेकिन वह विशेष परिस्थितियों में कुछ ग्रहणाधिकार बेच सकता है। |
सामान्य उपयोगकर्ता | बैंक और वित्तीय संस्थाएँ अक्सर इस प्रकार के ऋण का उपयोग करती हैं। इसके अलावा, वेयरहाउस कर्ता और पॉलिसी ब्रोकर भी इस ऋण का प्रयोग कर सकते हैं। ये संस्थाएँ विशिष्ट वस्तुओं या दस्तावेजों को अपनी सेवाओं के लिए भुगतान किए जाने तक कब्जे में रख सकती हैं। | सेवा प्रदाता, जैसे कि मरम्मत की दुकानें या स्टोरेज कंपनियाँ, अक्सर इस प्रकार के ऋण का उपयोग करती हैं। इसके अतिरिक्त, अन्य पक्ष जैसे बैली, एजेंट, पैलजी, साझेदार, अवैतनिक विक्रेता और वस्तुओं के खोजी भी इस ऋण का उपयोग करते हैं। |
ऋणी के दावे | यह दावा कई ऋणियों के खिलाफ दावे करने की अनुमति देता है। उदाहरण के लिए, यदि एक व्यापार विभिन्न ऋणों में पैसा उधार लिया है, तो बैंक उनके संपत्ति को रख सकता है। | यह ग्रहणाधिकार केवल एक ही कर्जदार तक सीमित है। इसका मतलब है कि ग्रहणाधिकार केवल उस व्यक्ति या संस्था पर लागू होता है। |
प्रवर्तन | धारक किसी भी कर्ज़दार की संपत्ति को बेच सकता है ताकि पूरी बकाया रकम वसूल किया जा सके, चाहे वह विशिष्ट सामान हो या न हो। | ग्रहणाधिकार को केवल विशिष्ट वस्तुओं को बेचकर लागू किया जा सकता है, लेकिन कर्ज़दार की अन्य संपत्तियों को नहीं। |
समाप्ति | एक सामान्य लेन तभी तक प्रभावी रहता है जब तक उधारी करने वाले द्वारा लेनधारक को सभी बकाया कर्ज़ चुका नहीं दिए जाते। | एक विशेष लेन तब समाप्त हो जाता है जब संबंधित वस्तु से जुड़ी विशिष्ट देनदारी का भुगतान किया जाता है। |
निष्कर्ष
सामान्य ग्रहणाधिकार और विशेष ग्रहणाधिकार दोनों ही लेनदारों को अपनी सुरक्षा के लिए उपाय हैं। सामान्य ग्रहणाधिकार लेनदारों को यह अधिकार देती है कि वे देनदार की संपत्ति को तब तक अपने पास रखें जब तक सभी बकाया भुगतान नहीं किया जाता, भले ही वह बकाया उन संपत्ति से सीधे संबंध में न हो। सामान्य ग्रहणाधिकार का सामान्य रूप से उपयोग बैंक करते हैं। दूसरी ओर, एक विशेष ग्रहणाधिकार केवल उस संपत्ति के एक विशिष्ट वस्तुओं पर लागू होती है जो किसी विशिष्ट देनदारी से जुड़ी होती है।
सामान्य ग्रहणाधिकार व्यापक होती है और यह पक्षों के बीच सभी देनदारियों को शामिल करती है। सामान्य ग्रहणाधिकार में समय के साथ कई वित्तीय लेन-देन हो सकते हैं। यह दृष्टिकोण लेनदारों को सुरक्षा प्रदान करता है क्योंकि यह देनदार की संपत्तियों को तब तक रखता है जब तक सभी बकाए का भुगतान नहीं हो जाता। हालांकि, विशेष लेन दूसरी ओर केवल एकल, विशिष्ट देनदारी पर केंद्रित होती है। इससे इसकी सीमा सीमित हो जाती है। हालांकि, दोनों प्रकार की लेन अपने-अपने दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफ ए क्यू)
क्या व्यक्तिगत संपत्ति पर लेन लगाया जा सकता है?
हाँ, व्यक्तिगत संपत्तियों जैसे कि कार, गहनों या उपकरणों पर ग्रहणाधिकार लगाया जा सकता है।
बंधक से ग्रहणाधिकार में क्या अंतर है?
बंधक में, ऋण की राशि के लिए संपत्ति को संपार्श्विक (कोलेटरल) के रूप में उपयोग किया जाता है। बंधक भी एक प्रकार का ग्रहणाधिकार है। लेकिन ग्रहणाधिकार विभिन्न प्रकार की संपत्तियों और देनदारियों पर लागू हो सकता है। यह केवल बंधक तक सीमित नहीं है। बंधक एक प्रकार की संपत्ति है जिसमें मालिक अपनी संपत्ति पर ऋण के सुरक्षा के रूप में किसी को कानूनी दावा देता है। दूसरी ओर, ग्रहणाधिकार एक कानूनी अधिकार है संपत्ति को रखने या दावा करने का, क्योंकि बकाया ऋण है।
ग्रहणाधिकार वाली संपत्ति को बेचने का क्या प्रभाव होता है?
यदि कोई व्यक्ति ग्रहणाधिकार वाली संपत्ति को बेचता है, तो उस व्यक्ति को ग्रहणाधिकार धारक के हित का भुगतान करना होगा। दूसरे शब्दों में, ग्रहणाधिकार धारक बिक्री के बाद भी संपत्ति का दावा कर सकता है।
संदर्भ